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Nanaji Deshmukh Biography in Hindi – नानाजी देशमुख की जीवनी

नानाजी देशमुख की जीवनी

Nanaji Deshmukh Biography in Hindi

नानाजी देशमुख भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। उन्होंने 60 साल की उम्र के बाद राजनीति से सन्न्यास लिया। नानाजी देशमुख को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।नानाजी देशमुख को लोग ‘चंडिकादास अमृतराव देशमुख’ के नाम से भी जानते हैं। वे ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के मज़बूत स्तंभ थे। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण लोगों के बीच स्वावलंबन के कार्यों के लिए हमेशा याद किया जाता है।नानाजी देशमुख का जन्म 1916 को महाराष्ट्र के छोटे से गाँव में हुआ था.

नानाजी जब पैदा हुए तब उनका नाम चंडिकादास अमृतदास देशमुख था. नानाजी गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार से थे. बचपन से उन्होंने गरीबी को देखा था, उनके परिवार को रोज के खाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी.  नानाजी का बचपन संघर्ष से भरा हुआ था.नानाजी देशमुख का जन्म 1916 को महाराष्ट्र के छोटे से गाँव में हुआ था. नानाजी जब पैदा हुए तब उनका नाम चंडिकादास अमृतदास देशमुख था. नानाजी गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार से थे.

बचपन से उन्होंने गरीबी को देखा था, उनके परिवार को रोज के खाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी.  नानाजी का बचपन संघर्ष से भरा हुआ था.नानाजी को पढ़ने का बहुत शौक था. पैसों की कमी के बावजूद नानाजी की यह इच्छा कम नहीं हुई थी. नानाजी ने खुद मेहनत करके, यहाँ-वहां से पैसे जुटाए और अपनी शिक्षा को जारी रखा था.

नानाजी ने हाई स्कूल की पढाई राजस्थान के सिकर जिले से की थी, यहाँ उनको पढाई के लिए छात्रवृत्ति भी मिली थी. इसी समय नानाजी की मुलाकात डॉक्टर हेडगेवार से हुई, जो स्वयंसेवक संघ के संस्थापक भी थे. इन्होने नानाजी को संघ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, और रोजाना शाखा में आने का निमंत्रण भी दिया था.

इसके बाद डॉक्टर हेडगेवार ने नानाजी को आगे कॉलेज की पढाई के लिए बिरला कॉलेज में जाने के लिए कहा. उस समय नानाजी के पास इतने पैसे नहीं थे, कि वे इस कॉलेज में दाखिला ले सकें. हेडगेवार जी ने उनको पैसों की मदद भी करनी चाही, लेकिन स्वाभिमानी नानाजी ने आदरपूर्ण तरीके से उन्हें इंकार कर दिया. इसके बाद नानाजी ने कुछ साल खुद मेहनत की और पैसे जमा किये. 1937 में नानाजी ने बिरला कॉलेज में दाखिला ले लिया. इसी दौरान नानाजी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को भी ज्वाइन किया और वे इससे जुड़े कार्यों में भी पूर्ण रूप से सक्रीय थे. 1939 में नानाजी ने संघ शिक्षा के लिए 1 साल का कोर्स किया.

क्रमांक (S.no.) परिचय बिंदु (Introduction Points) परिचय जानकारी (Introduction Information)
1. पूरा नाम (Full Name) चंडिकादास अमृतदास देशमुख
2. प्रसिद्ध नाम (Other Name) नानाजी देशमुख
3. जन्म तिथि (Birth Date) 11 अक्टूबर 1916
4. जन्म स्थान (Birth Place) हिंगोली जिला, महाराष्ट्र
5. राष्ट्रीयता (Nationality) भारतीय
6. पेशा (Profession) समाजसेवक
7. धर्म (Religion) हिन्दू
8. जाति (Caste) ब्राह्मण
9. राशि (Zodiac Sign)
10. प्रसिद्धि (Famous As) दीनदयाल शोध संस्थान
11. उम्र (Age) 93
12. मृत्यु (Death) 27 फ़रवरी 2010
13. मृत्यु स्थान (Death Place) चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, मध्यप्रदेश
14. राजनीतिक पार्टी (Political Party) भारतीय जन संघ
15. पेशा (Profession) राजनेता, समाज सुधारक,

संघ की स्थापना – RSS in Nanaji Deshmukh

नानाजी का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तर प्रदेश रहा। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से नानाजी के पारिवारिक सम्बन्ध थे। वे बचपन से ही उनके संपर्क में रहते थे। वहीं हेडगेवार जी ने भी नानाजी की सामाजिक प्रतिभा को शुरु में ही पहचान लिया था। उन्होंने नानाजी को संघ की शाखा में आने के लिए कहा।

1940 में हेडगेवार के निधन के बाद बाबा साहब आप्टे के निर्देशन पर नानाजी संघ के कामकाज संभालने लगे। इसके बाद आरएसएस को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी नानाजी पर आ गई और इस संघर्ष को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बनाते हुए नानाजी ने अपना पूरा जीवन आरएसएस के नाम कर दिया। उन्होंने महाराष्ट्र सहित देश के विभिन राज्यों में घूम घूम कर युवाओं को आरएसएस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया तथा इस कार्य में वे काफी हद तक सफल भी हुए।

संघ के प्रचारक के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश में पहले आगरा और फिर गोरखपुर भेजा गया। उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब थी। नानाजी एक धर्मशाला में रहते थे। वहाँ हर तीसरे दिन कमरा बदलना पड़ता था। अन्ततः कांग्रेस के एक नेता ने उन्हें इस शर्त पर स्थायी कमरा दिलवाया कि वे उसका खाना बना दिया करेंगे। नानाजी के परिश्रम से तीन साल में गोरखपुर के आस-पास 250 शाखाएँ खुल गयीं। विद्यालयों की पढ़ाई तथा संस्कारहीन वातावरण देखकर उन्होंने गोरखपुर में 1950 में पहला ‘सरस्वती शिशु मन्दिर’ स्थापित किया। आज तो ऐसे विद्यालयों की संख्या देश में 50,000 से भी अधिक है।

1947 में आरएसएस ने पाञ्चजन्य नामक दो साप्ताहिक व् स्वदेश हिंदी समाचार पत्र निकालने की शुरुआत की। अटल बिहारी बाजपेयी को सम्पादन दीनदयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, फिर भी भूमिगत होकर इन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य जारी रहा।

राजनीतिक जीवन

नानाजी देशमुख ‘लोकमान्य तिलक’ के विचारों से बहुत प्रभावित थे। ‘डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार’ (संघ संस्थापक) ने ही उन्हें संघ से जोड़ा था। नानाजी देशमुख के विलक्षण संगठन कौशल ने 1950 से 1977 तक भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी। उत्तर प्रदेश में संघ प्रचारक के रूप में उन्हें पहले आगरा और फिर गोरखपुर भेजा गया।

उन दिनों संघ की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। नानाजी देशमुख एक धर्मशाला में रहते थे। उनके परिश्रम से 3 साल में गोरखपुर के आस-पास लगभग 250 शाखाएँ खोली गयीं। उन्होंने गोरखपुर में 1950 में पहला ‘सरस्वती शिशु मन्दिर’ नामक स्कूल स्थापित किया। आज सरस्वती शिशु मन्दिरों की संख्या देश में लगभग 50 हजार से भी ज्यादा है।

प्रबन्धक का पद

‘राष्ट्रधर्म प्रकाशन’ की स्थापना 1947 में रक्षा बन्धन के अवसर पर लखनऊ में हुई, इसके प्रबन्धक नानाजी देशमुख बनाये गए। वहाँ से मासिक ‘राष्ट्रधर्म’, ‘साप्ताहिक पांचजन्य’ तथा ‘दैनिक स्वदेश’ अख़बार निकाले गये। 1952 में जनसंघ की स्थापना होने पर उत्तर प्रदेश में उसका कार्य नानाजी देशमुख को सौंपा गया।

महामन्त्री के रूप में

नानाजी देशमुख आपातकाल के विरुद्ध बनी ‘लोक संघर्ष समिति’ के मन्त्री थे। उस काल में हुए देशव्यापी सत्याग्रह में एक लाख से भी अधिक व्यक्तियों ने गिरफ़्तारी दी थी। इन्दिरा गांधी 1977 के चुनाव में हार गयीं और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में दिल्ली में जनता पार्टी की सरकार बनी।

नानाजी देशमुख उस समय सत्ता या दल में बड़े से बड़ा पद ले सकते थे; लेकिन उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़कर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के माध्यम से गोंडा और चित्रकूट में ग्राम विकास का कार्य शुरू किया।

संन्यास राजनीति से

60 साल की उम्र पूरी होते ही नानाजी देशमुख ने राजनीति से संन्यास ले लिया था। राजनीति में वे अटल बिहारी वाजपेयीलालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा (BJP) के नेताओं से वरिष्ठ थे और भाजपा के गठन के काफ़ी पहले राजनीति छोड़ चुके थे।

अपने जीवनकाल में नानाजी देशमुख ने सामाजिक संगठनों जैसे- ‘दीनदयाल शोध संस्थान’, ‘ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ और ‘बाल जगत’ की स्थापना की। उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले में भी उन्होंने अभूतपूर्व सामाजिक कार्य किया। 1999 में उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया। उन्हें इसी साल राज्यसभा के लिए भी नामांकित किया गया। लोकसभा के लिये वे बलरामपुर से चुने गये थे।

निधन – Nanaji Deshmukh Died 

1989 में भारत भ्रमण के दौरान नानाजी पहली बार भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट आए और अंतिम रूप से यहीं बस गए। चित्रकूट के जंगलों में पाई जाने वाली जड़ीबूटियों की उपयोगिता जन जन तक पहुंचाने के लिए नानाजी द्वारा आरोग्यधाम की स्थापना की गई जहां विभिन आयुर्वेदिक चिकित्सा व् औषधियों का निर्माण होता है। यहां जनजातीय बच्चों को भी नानाजी के प्रकल्पों के माध्यम से शिक्षित व् आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। सन् 2010 में 27 फरवरी को चित्रकूट में ही इस महान आत्मा का इस मृत्युलोक से प्रस्थान हुआ।

सम्मान और पुरूस्कार – Nanaji Deshmukh Awards

1999 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया। चित्रकूट स्थित ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ में पधारे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख द्वारा कमज़ोर वर्ग के उत्थान में उठाए गए क़दमों की सराहना की थी और इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों को अनुकरणीय बताया था। मरणोपरांत 2019 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें यह पुरूस्कार दिया।

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