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Pappu Yadav Biography in hindi – जानिए पप्पू यादव का इतिहास

Pappu Yadav Biography in hindi – जानिए पप्पू यादव का इतिहास

बिहार की राजनीति में खास पहचान बनाने वाले बाहुबली का नाम तो है राजेश रंजन पर पहचान है पप्पू यादव के नाम से। पप्पू की खास पहचान तब बनी जब वह 1990 में निर्दलीय विधायक बनकर बिहार विधानसभा में पहुंचे। उसके बाद का उनका सियासी सफर आपराधिक मामलों में विवादों से भरा रहा। मारधाड़ से भरपूर। तब बड़े-बड़े दबंग भी पप्पू से टकराने से बचते रहे। हालांकि पप्पू मानते रहे हैं कि सामाजिक अंतरविरोधों के कारण उनकी ऐसी छवि गढ़ दी गयी।पप्पू यादव बिहार की राजनीति का एक बड़ा नाम है. पप्पू यादव की गिनती भी लालू प्रसाद यादव के करीबी नेताओं में होती थी. हालांकि फिर एक समय ऐसा भी आया जब लालू प्रसाद यादव की पार्टी ने पप्पू यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. तो चलिए आज के इस आर्टिकल हम जानते है कि पप्पू यादव का इतिहास:-

Pappu Yadav Biography in hindi – जानिए पप्पू यादव का इतिहास

पप्पू यादव निजी जीवन 

पूरा नाम –  राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव

जन्म तिथि – 24 Dec 1967 (उम्र 53)

जन्म स्थान – पूर्णिया (बिहार)

पार्टी का नाम – Rashtriya Janata Dal

शिक्षा – Graduate

व्यवसाय – कृषक

पिता का नाम – श्री चन्द्र नारायण प्रसाद यादव

माता का नाम – श्रीमती शांति प्रिया

जीवनसाथी का नाम – रीमती रंजीत रंजन

जीवनसाथी का व्यवसाय – राजनीतिज्ञ

संतान – 1 पुत्र 1 पुत्री

पप्पू यादव की जीवनी Biography of Pappu Yadav

पप्पू यादव का जन्म 24 दिसम्बर 1967 को हुआ था. पप्पू यादव का असली नाम राजेश रंजन है. पप्पू यादव के पिता का नाम चन्द्र नारायण प्रसाद यादव है. पप्पू यादव की माता का नाम शान्ति प्रिया है. पप्पू यादव की पत्नी का नाम रंजिता रंजन है. रंजीत रंजन कांग्रेस की पूर्व सांसद है. पप्पू यादव और रंजिता रंजन का एक बेटा सार्थक रंजन और एक बेटी प्रकृति रंजन है.

पप्पू यादव की शिक्षा pappu yadav education

पप्पू यादव ने अपनी स्कूली शिक्षा सुपौल के आनंद मार्ग स्कूल से पूरी की है. इसके बाद पप्पू यादव ने मधेपुरा के बी एन मंडल विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक किया. इसके अलावा इग्नू से डिजास्टर मैनेजमेंट और ह्यूमन राइट्स में डिप्लोमा किया है.

पप्पू यादव का राजनीतिक करियर Pappu Yadav’s political career

पप्पू यादव का नाम राजनीति के गलियारों में सबसे पहली बार साल 1990 में सुनाई दिया. इस साल बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मधेपुरा की सिंहेश्वर सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद पप्पू यादव ने अगले ही साल 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में बिहार के पूर्णिया से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद पप्पू यादव ने वापस कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

दो चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़कर जीतने वाले पप्पू यादव इसके बाद समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. समाजवादी पार्टी का बिहार में कोई ख़ास वोट बैंक नहीं था. लेकिन पप्पू यादव ने 1996 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर पूर्णिया से चुनाव लड़ा और फिर से जीत हासिल करके लोकसभा पहुंचे. इसके बाद साल 1999 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने फिर से पूर्णिया से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

इसके बाद पप्पू यादव लालू प्रसाद यादव की पार्टी RJD में शामिल हो गए. पप्पू यादव ने साल 2004 में मधेपुरा सीट पर हुए उपचुनाव में आरेजडी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. साल 2009 में जब पप्पू यादव को एक हत्या के मामले में दोषी करार दिया गया और उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई तो RJD ने उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया. इसके बाद पप्पू यादव ने साल 2009 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट पर अपनी मां को बतौर निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा किया. हालांकि इस चुनाव में उनकी मां को हार का सामना करना पड़ा.

साल 2013 में जेल से रिहा होने के बाद पप्पू यादव वापस से RJD में शामिल हो गए. इसके बाद साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने प्रचंड मोदी लहर के बावजूद चार बार सांसद रहे शरद यादव को करीब 50 हजार वोटों के अंतर से हराया और पांचवी बार लोकसभा सांसद रहे. हालांकि इस चुनाव के करीब एक साल बाद ही मई 2015 में RJD ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते एक बार फिर से पप्पू यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

RJD से बाहर होने के बाद पप्पू यादव ने अपनी खुद की पार्टी जन अधिकार पार्टी बनाई और 2019 के चुनाव में मधेपुरा से चुनाव लड़ा, हालांकि इस चुनाव में पप्पू यादव को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी पप्पू यादव और उनकी पार्टी जन अधिकार पार्टी को निराशा ही हाथ लगी. बिहार विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव की पार्टी ने 154 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन पप्पू यादव समेत उनकी पार्टी को भारी पराजय का सामना करना पड़ा है. उनके सभी प्रत्याशी चुनाव हार गए.

पप्पू यादव और रंजीत रंजन की लव स्टोरी pappu yadav and ranjeet ranjan love story

बात साल 1991 की है। एक मामले में पप्पू यादव पटना की जेल में बंद थे। वे अक्सर जेल सुपरिटेडेंट के आवास से सटे मैदान में लड़कों को खेलते देखा करते थे। इन्हीं लड़कों में एक विक्‍की था। पप्‍पू की विक्की से नजदीकियां बढ़ गईं। फिर एक दिन पप्पू ने उसके फैमिली एलबम में रंजीत की टेनिस खेलती तस्‍वीर देखी। यह पहली नजर में प्‍यार था। इसके बाद जब जेल से छूटे तो रंजीत को देखने अक्सर वहां चले जाते थे, जहां वे टेनिस खेलतीं थीं। पप्‍पू ने पहली बार उन्‍हें पटना क्‍लब में देखा था।

शुरू हुआ लड़की से मिलने व इंप्रेस करने की कोशिशों का दौर

यह पप्‍पू के लड़की से मिलने और इंप्रेस करने के मौके तलाशने का दौर था। लेकिन रंजीत को यह पसंद नहीं था। उनकी बेरूखी कम होने का नाम नहीं ले रही थीं तो पप्पू भी अपनी कोशिश छोड़ने को तैयार नहीं थे। पटना के मगध महिला महाविद्यालय से पढ़ने के बाद रंजीत ने पंजाब विश्‍वविद्यालय में एडमिशन ले लिया और वहीं टेनिस की प्रैक्टिस करने लगीं। वे नेशनल व इंटरनेशनल टेनिस खेलतीं थी। पिता सेना से रिटायर होने के बाद गुरुद्वारे में ग्रंथी हो गए थे।

दीवानगी का जानकारी होने पर रंजीत ने मना किया, नहीं माने

अब पप्‍पू ने रंजीत को फॉलो करने के लिए पटना से पंजाब तक के चक्‍कर लगाने शुरू कर दिए थे। यह सिलसिला करीब तीन साल तक चलता रहा। दो साल तक तो रंजीत को इसका पता तक नहीं चला। जब इस दीवानगी का पता चला तो रंजीत ने कड़े शब्‍दों में मना किया, लेकिन पप्पू कहां मानने वाले थे। उनके नहीं मानने पर यह भी समझाया कि वे सिख हैं और पप्पू हिंदू, इसलिए परिवार वाले उनकी शादी के लिए राजी नहीं होंगे।

लड़की के परिवार को मनाने की लगातार करते रहे कोशिश

अब बात परिवार तक पहुंचने की बारी थी। रंजीता के माता-पिता इस शादी के खिलाफ थे, लेकिन पप्पू के आनंदमार्गी पिता चंद्र नारायण प्रसाद और माता शांति प्रिया अपने बेटे की खुशी के लिए राजी हो गए थे। पप्पू अब रंजीत के बहन-बहनोई को मनाने चंडीगढ़ जा पहुंचे, लेकिन बात नहीं बनी। इसी बीच राजनीति में मुकाम बना चुके पप्‍पू को पता चला कि कांग्रेस नेता एसएस अहलूवालिया की बात रंजीता का परिवार नहीं टाल सकता है। फिर क्‍या था, पप्पू ने दिल्ली जाकर अहलूवालिया से मदद की गुहार लगाई। उन्‍होंने मदद भी की।

इस प्रेम कहानी में टर्निंग प्‍वाइंट बनी सुसाइड की कोशिश

प्‍यार को पाने की इस कोशिश का क्‍लाइमेक्‍स तब आया जब हताशा में पप्‍पू ने नींद की ढेरों गोलियां खा लीं। हालत बिगड़ी तो इलाज के लिए उन्‍हें पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्‍पताल में भर्ती कराया गया। इस घटना के बाद उनके प्रति रंजीत का व्यवहार कुछ नरम हुआ। यह इस प्रेम कहानी का टर्निंग प्‍वाइंट था।

रास्‍ता भटक गया था शादी के लिए आती दुल्‍हन का विमान

रंजीत के पप्‍पू को लेकर सॉफ्ट होने के बाद उनके माता-पिता भी मान गए। फिर देानों की शादी पूर्णिया के गुरुद्वारे में होनी तय की गई। तय हुआ कि फिर शादी आनंद मार्ग पद्धति से होगी। लेकिन एक और गतिरोध का आना बाकी था। शादी के लिए दुल्‍हन रंजीत और उनके परिवार को लेकर आ रहा चार्टर्ड विमान रास्ते में ही भटक गया। इसके बाद तो हंगामा मच गया। अंतत: जब विमान पहुंचा तो सबों ने राहत की सांस ली।

पूर्णिया में धूमधाम से हुई थी शादी, आए थे लालू यादव भी

फरवरी 2094 में पप्‍पू व रंजीत की शादी के लिए पूर्णिया की सड़कों को सजाया गया था। सारे होटल और गेस्ट हाउस बुक कर दिए गए थे। इस शादी में चौधरी देवीलाल, लालू प्रसाद यादव, डीपी यादव और राज बब्बर सहित अनेक गणमान्‍य लोग शामिल हुए थे। आम लोगों के लिए भी खास व्यवस्था की गई थी।

पत्‍नी के स्‍वभाव के कायल हैं पप्‍पू, खूब करते हैं सराहना

पप्‍पू और रंजीत रंजन बिहार की पहली जोड़ी है, जिसने एक साथ संसद में प्रवेश पाया है। आज पप्पू यादव जन अधिकार पार्टी के अध्‍यक्ष व पूर्व सांसद हैं तो पत्नी रंजीता रंजन सुपौल से कांग्रेस की पूर्व सांसद रहीं हैं। आज रंजीत रंजन दमदार राजनेता के साथ अच्‍छी पत्‍नी व मां भी हैं। पप्‍पू अपनी पत्‍नी की सराहना करते थकते नहीं है। उनके इमानदार व बिना लाग-लपेट वाले स्‍वभाव के वे कायल हैं।

17 साल से ज्यादा समय जेल में बिता चुके हैं यादव

बिहार के मधेपुरा से निर्दलीय सांसद रहे पप्पू यादव ने अपनी बिहार से तिहाड़ की यात्रा यानी पटना की जेल से लेकर दिल्ली के तिहाड़ जेल तक का सफर तय किया हैं। पप्पू यादव संगीन आरोप में 17 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। पप्पू यादव ने अपने करियर की शुरूआत विधायक के तौर पर की थी। पप्पू यादव ने 1990 में  मधेपुरा से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उसके बाद उन्होंने पूर्णिया से 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा और वहां भी जीत हासिल की। इसके बाद यादव कई पार्टियों से जुड़े वो आरजेडी, समाजवादी पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े और जीते भी।

आरजेडी से निकाला तो खुद की राजनितिक पार्टी बनाई  

यादव ने साल 1991, 1996, 1999 और 2004 में लोकसभा चुनाव जीता जिसके बाद 2015 में आरजेडी से पप्पू यादव को निकाल दिया गया था। राजद से निकाले जाने के बाद पप्पू यादव ने अपनी नई पार्टी बनाई और नाम रखा जन अधिकार पार्टी।

बेटे को बड़ा किक्रेटर बनाना चाहते हैं यादव

पप्पू यादव के परिवार में उनके माता-पिता के अलावा एक छोटी बहन हैं, जो डॉक्टर हैं। उनके बहनोई फर्रुखाबाद में कई मेडिकल कॉलेज चलाते हैं। पप्पू का एक बेटा और एक बेटी है। बेटे सार्थक रंजन दिल्ली अंडर 19 क्रिकेट टीम के उप कप्तान हैं। जबकि उनकी बेटी दिल्ली में पढ़ती हैं। पप्पू को भरोसा है कि उनका बेटा 1 दिन बड़ा क्रिकेटर बनेगा।

एंबुलेंस पकड़ाकर फिर चर्चा में आए यादव

हाल ही में पप्पू यादव काफी चर्चा में हैं, उन्होंने सारण लोकसभा से सांसद राजीव प्रताप रूडी की सांसद निधि से खरीदी गई दो दर्जन से अधिक एम्बुलेंस खोज निकाली थीं। जिसके बाद से बिहार सरकार ने उन्हें जेल में बंद कर दिया था। सोशल मीडिया पर पप्पू यादव को देश के लोगों का काफी समर्थन मिला था।

पप्पू यादव के पास है करोड़ों की संपत्ति, बैंकों में लाखों की रकम, 21 लाख की पॉलिसी समेत इतना पड़ा है सोना

पप्पू यादव ने जो हलफनामा लोकसभा चुनाव 2019 में भरा है उसके मुताबिक उनके पास 7,80,500 रुपए का सोना है. वही कैश के नाम पर इतने लाख रुपए की नकदी है.

32 साल पुराने वाले में गिपफ्तार होने वाले जन अधिकार पार्टी के मुखिया राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के पास करोड़ों की संपत्ति है. दरअसल पप्पू यादव को गिरफ्तार करने के लिए रात के 11 बजे कोर्ट खोला गया. पप्पू यादव को बिहार पुलिस ने महामारी अधिनियम और आपदा प्रबंधन अधिनियम उल्लंघन के मामले में हिरासत में लिया था जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन क्या आप पप्पू यादव की संपत्ति के बारे में जानते है.

बात ज्यादा पुरानी नहीं है लोकसभा चुनाव 2019 में भरे गए हलफनामे के मुताबिक पप्पू यादव के पास करीब 11 करोड़ का एसेट है. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक पप्पू यादव की कुल एसेट 11,95,43,561 रुपए है. जबकि लायबिलिटी के नाम पर 1,76,95,194 करोड़ की रकम है.

इन बैंकों में जमा है लाखो की रकम

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक पप्पू यादव के खाते देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई और देश के सबसे बड़े प्राइवेट बैंक एचडीएफसी में है. इन बैकों में जमा कुल रकम 33 लाख के करीब है. वहीं कैश की बात करें तो पप्पू यादव ने जो हलफनामा दिया था उसके मुताबिक उनके पास करीब 2,61,714 रुपए की नकदी है. पॉलिसी की बात करें तो पप्पू यादव के पास एलआईसी की पॉलिसी है जिसमें 21 लाख के करीब की रकम है.

इतने लाख का है सोना

पप्पू यादव ने जो हलफनामा लोकसभा चुनाव 2019 में भरा है उसके मुताबिक उनके पास 7,80,500 रुपए का सोना है. जिसमें गहने भी शामिल हैं. गाड़ी की बात करें तो पप्पू यादव के पास करीब 7.77 लाख रुपए की गाड़ी है. हालांकि उनके पास कौन सी गाड़ी है इसका खुलासा हलफनामे में नहीं दिया गया है. अदर एसेट की बात करें तो हाउसहोल्ड एसेट के नाम पर पप्पू यादव ने करीब 8.76 लाख रुपए की रकम दिखाई हुई है.

करोड़ो की प्रापर्टी के मालिक है पप्पू है यादव

अचल संपत्ति में प्रापर्टी की बात करें तो हलफ्नामें के मुताबिक पप्पू यादव के पास करीब 1.5 करोड़ की एग्रीकल्चर लैंड हैं. वहीं 9 करोड़ से ज्यादा की रकम कमर्शियल बिल्डिंग्स के नाम पर हलफनामें में भरी गई है. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक इन प्रापर्टी की मार्केट वैल्यू करीब 11 करोड़ रुपए बैठती है.

रोचक तथ्‍य

उनकी पत्नी रंजीत रंजन भी सुपौल से सांसद हैं और कांग्रेस पार्टी से जुड़ी हैं।

  • 1991 उन्होंने पुरीना निर्वाचन क्षेत्र से 10 वीं लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
  • 1996 उन्हें पुरीना से सपा उम्मीदवार के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया, जहां उन्होंने भाजपा के राजेंद्र प्रसाद गुप्ता को 3,16,155 मतों के अंतर से हराया। वे 1998 के चुनावों में बीजेपी के जय कृष्ण मंडल से हार गए थे।
  • 1999 उन्हें एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पुरीना से 13 वीं लोकसभा के लिए चुना गया, जहाँ उन्होंने अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वी जय कृष्ण मंडल को 2,52,566 मतों के अंतर से हराया।
  • 2004 माधेपुर से राजद उम्मीदवार के रूप में आगामी उप-चुनावों में उन्हें फिर से चुना गया, जहाँ उन्होंने जदयू के अंतर से राजेंद्र प्रसाद यादव को हराया।
  • 2014 वे 16 वीं लोकसभा माधेपुर में चुने गए, जहाँ उन्होंने जेडीयू के शरद यादव को 56,209 मतों के अंतर से हराया। 2015 में उन्होंने अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी बनाई लेकिन कोई भी सीट जीतने में नाकाम रहे।

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