9TH SST

9 class economics notes – कृषि, खाद्यान्न सुरक्षा एवं गुणवत्ता

कृषि, खाद्यान्न सुरक्षा एवं गुणवत्ता

9 class economics notes

class – 9

subject – economics

lesson 5 – कृषि, खाद्यान्न सुरक्षा एवं गुणवत्ता

कृषि, खाद्यान्न सुरक्षा एवं गुणवत्ता
इकाई की मुख्य बातें-भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ लगभग 64 प्रतिशत से अधिकजनसंख्या आज भी कृषि पर ही आजीविका के लिए निर्भर है। कृषि वस्तुतः भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री प्रो० स्वामीनाथन का मानना है कि भारत के कृषक परिवार
में देश की लगभग दो तिहाई जनसंख्या संबंधित है। यह राष्ट्रीय आय का औसतन 20% हिस्सा प्रदान करती है तथा ग्रामीण भारत की 80 प्रतिशत श्रमशक्ति को रोजगार देती है। इसलिए कृषि श्रमिकों के लिए रोजगार का निर्यात एवं विदेशी मुद्रा का महत्त्वपूर्ण साधन है तथा वह औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने, पूँजी निर्माण में वृद्धि लाने तथा लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में भी
अमूल्य योगदान देती हैं

बिहार में कृषि
‘आर्थिक दृष्टि से भारत के पिछड़े राज्यों में बिहार सबसे बड़ा राज्य है, जहाँ कृषि ही प्रधान व्यवसाय है। बिहार की कुल आय का बड़ा भाग इसी क्षेत्र से उत्पादित होता है। बिहार राज्य की बहुसंख्यक जनसंख्या जो लगभग 80% से अधिक गाँवों में निवास करती है साथ ही राज्य की
अधिकांश जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।

बिहार में कृषि का महत्त्व
बिहार में कृषि के निम्नलिखित महत्त्व है-
(i) राज्य की आय में महत्त्वपूर्ण योगदान।
(ii) रोजगार एवं आजीविका का प्रमुख साधन।
(iii) औद्योगिक विकास में योगदान।
(iv) सरकार की आय का साधन।
(v) योजना की सफलता में योगदान।

बिहार में कृषि के पिछड़ेपन के कारण
बिहार में कृषि के पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं-
1. कृषि पर जनसंख्या का अत्यधिक भार
2. भूमि का असमान वितरण।
3. मौनसून पर निर्भरता
4. बाढ़, अकाल तथा सूखे की विभीषिका
5. खेती के पुराने अवैज्ञानिक तरीके एवं निम्न उत्पादकता
6. उन्नत खाद, उन्नत बीज का अभाव
7. सिंचाई सुविधाओं का अभाव
8. पूँजी की कमी।
9. भूमि का उपविभाजन एवं अपखण्ड
-10. अशिक्षा।

बिहार में कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय-
(i) जनसंख्या का नियंत्रण करना
(ii) सुनिश्चित सिंचाई की व्यवस्था करना
(iii) बाढ़ नियंत्रण एवं बेहतर जल-प्रबंधन करना
(iv) उन्नत, बेहतर कृषि तकनीक का उपयोग करना
(v) कृषि में संस्थागत वित्त का अधिक प्रवाह करना

फसल के प्रकार
भारत एवं बिहार में फसल को दो भागों में बाँटा जाता है।
फसल
(i)खाद्य फसल
(धान, गेहूँ, मक्का, जौ, महुआ
ज्वार, बाजरा, चना, अरहर आदि)
(ii)नकदी, फसल
(ईख, जूट, तिलहन, दलहन,
मिर्च, आलू, प्याज आदि)

(i)1. भदई
3. रबी
4.गरमा
2. खरीफ या अगहनी

1. भदई (शरदकालीन)-भदई की फसलें मई-जून में बोई जाती है जो अगस्त, सितम्बर तक अर्थात् हिन्दी मास सावन, भादों दो में तैयार हो जाती है। मक्का, ज्वार, जूट एवं धान की कुछ विशिष्ट किस्में मुख्य फसल हैं।
2. खरीफ या अगहनी (शीतकालीन)-खरीफ या अगहनी फसल में शीतकालीन धान प्रधान फसल है। इसकी बुआई जून में की जाती है और हिन्दी मास अगहन (दिसम्बर) में यह तैयार हो जाता है।
3. रबी (वसंतकालीन)-रबी के अंतर्गत गेहूँ, जौ, चना, खेसारी, मटर, मसूर, अरहर, सरसों आदि विभिन्न प्रकार की दलहन एवं तिलहन फसलें सम्मिलित हैं। अक्टूबर, नवम्बर के महीनों में फसलों की बुआई की जाती है और मार्च (वसंत ऋतु) तक तैयार हो जाती है।
4. गरमा (ग्रीष्मकालीन)-गरमा फसलों में हरी सब्जी का विशेष स्थान है। इस ऋतु में विशेष किस्म के धान एवं मक्का की भी खेती की जाती है।

खाद्यान्न के स्त्रोत
खाद्यान्न के स्त्रोत से हम जरूरत के अनुसार खाद्य पदार्थों की पूर्ति पर बल देते हैं। खाद्यान्न के स्त्रोत के रूप में गहन खेती, कृषि नीति, आयात नीति, जरूरत से अधिक उपज नीति, भंडारण नीति को माना जाता है।

खाद्यान्न की गुणवत्ता
खाद्य पदार्थ के स्वावलंबन का मुख्य आधार खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता है। यदि व्यक्ति कैलोरी की आवश्यकता के अनुसार खाद्यान्न ग्रहण करता है तो उसे आत्मसंतुष्टि मिलती है और वह सफल एवं कुशल व्यक्ति के रूप में अपने आप को उपस्थित करता है। खाद्य, का एक
गुणात्मक पहलू ही मानव के शरीर में स्वस्थ जीवन व स्वस्थ विचार उत्पन्न करता है।

खाद्य सुरक्षा
खाद्य सुरक्षा का अर्थ सभी लोगों के लिए सदैव भोजन की उपलब्धता, पहुँच और उसे प्राप्त करने के सामर्थ्य से है।
खाद्य सुरक्षा के निम्नलिखित आयाम है-
(i) खाद्य उपलब्धता का तात्पर्य देश में खाद्य उत्पादन, खाद्य आयात और सरकारी अनाज भंडारों में संचित पिछले वर्षों के स्टॉक से है।
(ii) खाद्य पहुँच का अर्थ है कि खाद्य समाज के प्रत्येक व्यक्ति को निर्बाध रूप से उपलब्ध हो।
(iii) सामर्थ्य का अर्थ है कि लोगों के पास अपनी भोजन व आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त पौष्टिक भोजन खरीदने के लिए धन उपलब्ध हो।

खाद्य सुरक्षा के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि करना।
2. खाद्यान्न वितरण की सुव्यवस्था करना।
3. सामुदायिक विकास द्वारा सहयोग तथा संगठन बनाना।
4. खाद्यान्न प्रशासन में सुधार करना।
5. जनसंख्या नियोजन को लागू करना।
6. उपभोग की वर्तमान आदतों में परिवर्तन करना।

अनाज की उपलब्धता के दो मुख्य घटक
(क) बफर स्टॉक
(ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली
(क) बफर स्टॉक-भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज गेहूँ और चावल को सरकारी भंडार में सुरक्षित रखा जाता है। यह अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती है। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है।
(ख) सार्वजनिक वितरण प्रणाली-भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार नियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं। जहाँ से खाद्यान्न वितरित होती है उसे हम राशन की दुकान कहते हैं। देशभर में अभी लगभग 4.6 लाख राशन की दुकानें है। यहाँ पर इन खाद्यान्नों को बाजार कीमत से कम कीमत पर लोगों के द्वारा बेचा जाता है। राशन कार्ड रखने वाला कोई भी परिवार प्रतिमाह इनकी एक अनुबंधित भाग जैसे 35 kg अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5kg चीनी निकटवर्ती राशन की दुकान से खरीद सकता है।

राशन कार्ड के प्रकार :
(क) निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए अंत्योदय कार्ड।
(ख) निर्धनता रेखा के नीचे के लोगों के लिए गरीबी रेखा वाला कार्ड (BPL card)।
(ग) अन्य लोगों के लिए गरीबी रेखा के ऊपर वाला कार्ड (APL)

भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत :
भारत में राशन व्यवस्था की शुरुआत बंगाल के अकाल की पृष्ठभूमि में 1940 के दशक में हुई। फिर हरितक्रांति के पूर्व भारी खाद्य संकट के कारण 60 के दशक के दौरान राशन प्रणाली पुनर्जीवित की गई।

राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम
राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम 14 नवंबर, 2004 को पूरक श्रम रोजगार के सृजन को तीव्र करने के उद्देश्य से देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में प्रारंभ किया गया। यह कार्यक्रम उन समस्त ग्रामीण गरीबों के लिए है जिन्हें रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल
शारीरिक श्रम के इच्छुक है। इसे शत-प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में लागू किया गया और राज्यों को निःशुल्क अनाज मुहैया कराया जाता रहा है। वर्ष 2004-05 में इस कार्यक्रम के लिए 20 लाख टन अनाज के अतिरिक्त 2020 करोड़ रुपये निर्गत किए गए।

अंत्योदय अन्न योजना
अंत्योदय अन्न योजना दिसम्बर, 2000 में शुरु की गई थी। इस योजना के अंतर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आने वाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवार में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई। 2 रुपये प्रति kg गेहूँ और 3 रुपये प्रति kg अनाज उपलब्ध कराया गया।
अनाज की यह मात्रा अप्रैल, 2002 में 25 kg से बढ़ाकर 35 kg कर दी गई। जून, 2003 और अगस्त, 2004 में इसमें 50-50 लाख अतिरिक्त BPL परिवार दो बार जोड़े गए। इससे इस योजना में आनेवाले परिवार की संख्या 2 करोड़ हो गई।

गैर सरकारी संगठनों की भूमिका
इसमें सहकारी समितियाँ अहम भूमिका निभा रही है। यह निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमतवाली दुकानें खोलती है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता
निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है।
प्रश्न और उत्तर
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही उत्तर का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) लिखें।

1.बिहारवासियों के जीवन निर्वाह का मुख्य साधन है-
(क) उद्योग
(ख) व्यापार
(ग) कृषि
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ग)

2.राज्य में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिंचाई साधन है-
(क) कुएँ एवं नलकूप
(ख) नहरें
(ग) तालाब
(घ) नदी
उत्तर-(क)

3. बाढ़ से राज्य में बर्बादी होती है-
(क) फसल की
(ख) मनुष्य एवं मवेशी की
(ग) आवास की
(घ) इन सभी की
उत्तर-(घ)

4. काल से राज्य में बर्बादी होती है-
(क) खाद्यान्न फसल
(ख) मनुष्य एवं मवेशी
(ग) उद्योग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क)

5.शीतकालीन कृषि किसे कहा जाता है ?
(क) भदई
(ख) खरीफ या अगहनी
(ग) रबी
(घ) गरमा
उत्तर-(ख)

6.सन् 1943 में भारत के किस प्रांत में भयानक अकाल पड़ा ?
(क) बिहार
(ख) राजस्थान
(ग) बंगाल
(घ) उड़ीसा
उत्तर-(ग)

7.विगत वर्षों के अंतर्गत भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान-
(क) बढ़ा है
(ख) घटा है
(ग) स्थिर है
(घ) बढ़ता-घटता है
उत्तर-(ख)

8. निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए कौन सा कार्ड उपयोगी है ?
(क) बी० पी० एल० कार्ड
(ख) अंत्योदय कार्ड
(ग) ए. पी. एल. कार्ड
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख)

9.निम्नलिखित में कौन खाद्यान्न के स्त्रोत है-
(क) गहन खेती नीति
(ख) आयात नीति
(ग) भंडारण नीति
(घ) इनमें सभी
उत्तर-(घ)

10. गैर सरकारी संगठन के रूप में बिहार में कौन सा डेयरी प्रोजेक्ट कार्य कर रहा है ?
(क) पटना डेयरी
(ख) मदर डेयरी
(ग) अमूल डेयरी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(क)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
1.बिहार राज्य में कृषि……… जनसंख्या के आजीविका का साधन हैं।
2.बिहार में कृषि की………निम्न है।
3.बिहार की कृषि के लिए सिंचाई………. महत्त्व रखती है।
4.राज्य में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र………… हैं।
5. बफर स्टॉक का निर्माण………….करती है।
6.निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए………कार्ड है।
7. भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़…………. है।
8.औद्योगिक श्रमिक की दैनिक आवश्यकता………… कैलोरी है।
9. दिल्ली में……….. डेयरी कार्य करती है।
10. हरित क्रांति……… से प्रभावित होकर भारत में लागू की गयी।
उत्तर-1. बहुसंख्यक, 2. उत्पादकता, 3. अत्यधिक, 4. काफी अधिक, 5. सरकार, 6. बी० पी० एल०, 7. कृषि, 8. 3600, 9. मदर, 10. मेक्सिको।

III. सही कथन में टिक (√) तथा गलत कथन में क्रॉस (x) करें-
1. बिहार की अर्थव्यवस्था में उद्योग सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
2. बिहार की कृषि अत्याधुनिक है।
3. राज्य में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र काफी अधिक है।
4. कृषि उद्योग के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करती है।
5. एक अध्यापक की दैनिक आवश्यकता कम से कम 2600 कैलोरी है।
6. खाद्यान्न की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अधिक कैलोरीयुक्त खाद्य पदार्थों की उपज परविशेष ध्यान की आवश्यकता नहीं है।
7. ‘जय जवान जय किसान’ का नारा लाल बहादुर शास्त्री ने दिया।
8. कृषि भारत एवं बिहार का आर्थिक इकाई है।
उत्तर-1. गलत, 2. गलत, 3. सही, 4. सही, 5. सही, 6. गलत, 7. सही, 8. सही।

IV. लघु उत्तरीय प्रश्न (उत्तर 20 शब्दों में दें)
प्रश्न 1. बिहार में कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार उपाय बताएँ।
उत्तर-बिहार में कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार उपाय निम्नलिखित हैं-
(i) सुनिश्चित सिंचाई की व्यवस्था की जाय।
(ii) बाढ़ नियंत्रण एवं बेहतर जल प्रबंधन की जाए।
(iii) उन्नत, बेहतर कृषि तकनीक का प्रयोग किया जाय।
(iv) कृषि में संस्थागत वित्त का अधिक प्रवाह की जाय।

प्रश्न 2. खाद्य फसल और नकदी फसल में अंतर बताएँ।
उत्तर-खाद्य फसल और नकदी फसल में महत्त्वपूर्ण अंतर है-खाद्य फसल में किसान को तुरंत लाभ नहीं मिलता है, जबकि नकदी फसल में किसान को तुरंत लाभ प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 3. कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं ?
उत्तर-गरीबी रेखा से नीचे के लोग, कृषक मजदूर, किसान आदि खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते है क्योंकि इनकी क्रय शक्ति बहुत ही कम पायी जाती है।

प्रश्न 4. क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है। कैसे?
उत्तर-हाँ। हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है क्योंकि अब इसके पास खाद्यान्नों का बफर स्टॉक है जो इसे खाद्य सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है। इससे ही भारत में अकाल, भूखमरी, सुनामी जैसे आपदाओं से खुद का निपटारा किया है।

प्रश्न 5. सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है ?
उत्तर-सरकार बफर स्टॉक बनाती है क्योंकि कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण को सुनिश्चित किया जा सके। यह खराब मौसम या फिर आपदाकाल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में भी मदद करता है।

प्रश्न 6. सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में करती है इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (जी० डी० एस०) कहते हैं।

प्रश्न 7. राशन कार्ड कितने प्रकार के होते ? चर्चा करें।
उत्तर-राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं-
(क) निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए अंत्योदय कार्ड।
(ख) निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए गरीबी रेखावाला कार्ड (बी० पी० एल०)।
(ग) अन्य लोगों के लिए गरीबी रेखा के ऊपरवाला कार्ड (ए० पी० एल०)।

v. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(उत्तर 100 शब्दों में दें)
प्रश्न 1. बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका की विवेचना करें।
उत्तर-बिहार में कृषि वस्तुओं की खरीद-बिक्री द्वारा अन्य लोगों के विकास एवं विस्तार का अवसर प्रदान करती है। इसलिए यहाँ की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका निम्नलिखित है-
1. राज्य की आय में महत्त्वपूर्ण योगदान-बिहार की कुल आय में सबसे अधिक योगदान कृषि क्षेत्र का है। इसके द्वारा ही उद्योगों को कच्चा माल की आपूर्ति हो पाती है।
2. रोजगार एवं आजीविका का प्रमुख साधन-बिहार में कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक जनसंख्या लगी हुई है। इसलिए यह रोजगार एवं आजीविका का प्रमुख साधन बन गया है। .
3. औद्योगिक विकास में योगदान-बिहार की अर्थव्यवस्था के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि कृषि क्षेत्र से ही उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति हो पाती है। इसलिए उद्योगों की इसपर अधिक निर्भरता कायम रहती है।
4. सरकार की आय का साधन-बिहार सरकार की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसी साधन के बदौलत वह राजस्व को एकत्रित करती है और अपनी अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करती है।
5. योजना की सफलता में योगदान-बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषिगत योजना की सफलता में कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि इसकी सफलता से ही बेकारी, गरीबी तथा अकाली से सरकार मुकाबला करती है।
इस प्रकार, बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 2. बिहार के खाद्यान्न फसल एवं उसके प्रकार की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर-बिहार राज्य की खाद्यान्न फसल गेहूँ और धान है। इसके निम्नलिखित चार प्रकार है-
1. भदई, 2. खरीफ या अगहनी, 3. रबी, 4. गरमा।
1. भदई (शीतकालीन)-भदई की फसलें मई, जून में बोई जाती है जो अगस्त, सितम्बर तक अर्थात् हिन्दी मास सावन भादों में तैयार हो जाती है। मक्का, ज्वार, जूट एवं धान की कुछ विशिष्ट किस्में मुख्य फसल है। मानसून पूर्व की वर्षा पर आधारित भदई, फसलों का उत्पादन
पठारी प्रदेश की अपेक्षा बिहार के मैदानी भाग में अधिक होता है।
2. खरीफ या अगहनी (शीतकालीन)-खरीफ या अगहनी फसल में शीतकालीन धान प्रमुख फसल है। इसकी बुआई जून में की जाती है और हिन्दी मास अगहन (दिसम्बर) में तैयार हो जाता है। बिहार की कृषि में अगहनी फसल का सर्वोच्च स्थान है।
3. रबी (वसंतकालीन)-रबी के अंतर्गत गेहूँ, जौ, चना, खेसारी, मटर, मसूर, अरहर, सरसों आदि विभिन्न प्रकार की दलहन एवं तिलहन की फसलें सम्मिलित है। अक्टूबर-नवम्बर के महीने में फसलों की बुआई की जाती है और जो मार्च (वसंत ऋतु) तक तैयार हो जाती है। राज्य
की कुल कृषि भूमि के एक-तिहाई भाग पर रबी की खेती की जाती है।
4. गरमा (ग्रीष्मकालीन)-राज्य में जहाँ भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है अथवा नमी भूमि वाले क्षेत्र है वहाँ गरमा फसलों की खेती होती है। गरमा फसलों में हरी सब्जियाँ का विशेष स्थान है। इस ऋतु में विशेष किस्म के धान एवं मक्का की खेती की जाती है। बिहार के नालंदा जिले में तथा वैशाली एवं सारण के गंगा तट पर हरी सब्जियाँ की खेती की जाती है। इस प्रकार, बिहार में तीन प्रकार के खाद्यान्न फसलों भदई, रबी, खरीफ, गरमा की खेती
की जाती है।

प्रश्न 3. जब कोई आपदाएँ आती हैं तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है ? चर्चा करें।
उत्तर-जब कोई आपदाएँ आती हैं तो इसके कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है। इससे प्रभावित क्षेत्र में खाद्य की कमी हो जाती है। यह विशेषकर बाढ़, सूखा, अकाल, भूकम्प, महामारी के दौरान होती है। इस क्षेत्र में खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती है।ऐसी परिस्थिति में लोग ऊँची कीमत पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद पाते हैं क्योंकि कम आय के कारण उच्च कीमत पर खाद्य पदार्थ पाना उनके पहुँच के बाहर ही होता है।
अगर यह प्राकृतिक आपदा विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लंबे समय तक बनी रहती है तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। अकाल की स्थिति में व्यापक भुखमरी आ जाती है।
इस प्रकार, जब कोई प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं तो खाद्य पूर्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और देश को इससे निपटने के लिए विशेष आयात नीति अपनानी पड़ती है जिससे खाद्यान्न की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके।

प्रश्न 4. गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया ? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली, अंत्योदय अन्न योजना, शासकीय सतर्कता जैसी योजनाओं को शुरू किया। जिनमें दो योजनाएँ निम्न हैं-
(i) राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम-राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम 14 नवम्बर, 2004 को पूरक श्रम रोजगार के सृजन को तीव्र करने के उद्देश्य से देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में प्रारंभ किया गया था। यह कार्यक्रम उन समस्त ग्रामीण गरीबों के लिए है, जिन्हें
रोजगार की आवश्यकता है और जो अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हैं। इसे शत-प्रतिशत केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के रूप में लागू किया गया और राज्यों को नि:शुल्क अनाज मुहैया कराया जाता रहा है जिला स्तर पर कलक्टर शीर्ष अधिकारी हैं और उनपर इस कार्यक्रम की योजना बनाने, कार्यान्वयन समन्वयन और पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी है। वर्ष 2004-05 में इस कार्यक्रम के
लिए 20 लाख टन अनाज के अतिरिक्त 2,020 करोड़ रुपये निर्गत किए गए हैं।
(ii) अंत्योदय अन्न योजना-अंत्योदय अन्न योजना दिसम्बर 2000 में शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आनेवाले निर्धनता रेखा से नीचे के परिवारों में से एक करोड़ लोगों की पहचान की गई। 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रुपये प्रति किलोग्राम की अत्यधिक आर्थिक सहायता प्राप्तदर पर प्रत्येक पात्र परिवार को 25 किलोग्राम अनाज उपलब्ध
कराया गया। अनाज की यह मात्रा अप्रैल, 2002 में 25 किलोग्राम से बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दी गई। जनू, 2003 और अगस्त 2004 में इसमें 50-50 लाख अतिरिक्त बी० पी० एल० परिवार दो बार जोड़े गए। इससे इस योजना में आने वाले परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।

प्रश्न 5. खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में गैर सरकारी संगठन की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में गैर सरकारी संगठन एवं सहकारी समितियाँ खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। सहकारी समितियाँ निर्धन लोगों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकानें खोलती है। दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है। गुजरात में दूध
दूध उत्पादों में अमूल, बिहार में दूध तथा दूध उत्पादों में पटना डेयरी जो ‘सुधा’ नाम से जाना जाता है। सफल सहकारी समितियों के उदाहरण हैं। इसने देश में श्वेत क्रांति ला दी है। विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है। एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट साइंस (ए. डी. एस.) अनाज बैंक कार्यक्रम को एक सफल और नए प्रकार के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में स्वीकृति प्राप्त कर ली है।
इस प्रकार, खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

VI. टिप्पणी लिखें:
(i) न्यूनतम समर्थित कीमत-किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है।
(ii) सब्सिडी (अनुदान)-वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है। इससे घरेलू उत्पादकों के लिए ऊँची आय कायम रखते हुए उपभोक्ता कीमतों को कम किया जा सकता है।
(iii) बी० पी० एल० कार्ड-यह कार्ड निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए जारी किया जाता है। यह गरीबी रेखा वाला कार्ड (BPL Card) कहा जाता है।
(iv) बफर स्टॉक-बफर स्टॉक अनाज की कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज वितरण के लिए किया जाता है। खराब मौसम में या फिर आपदाकाल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में भी मदद करता है।
(v) जन वितरण प्रणाली-भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार विनियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं।

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