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Ramdhari Singh Dinkar in biography – रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी | Ramdhari Singh Dinkar biography in Hindi

Ramdhari Singh Dinkar in biography

रामधारी सिंह दिनकर हिंदी का एक चमकता सूरज जिसने हिंदी को नये रूप में समाज को प्रस्तुत किया। हिंदी का एक एक शब्द और स्पस्ट लेखन दिनकर जी को हिंदी में महानतम स्थान पर रखता है। दिनकर वह जिसने हिंदी को उस शिखर पर रख दिया है।

“जिस मिट्टी ने लहू पिया,
वह फूल खिलायेगी ही,
अम्बर पर घन बन छायेगा
ही उच्छवास तुम्हारा।
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।”
कुछ ऐसी कविताये होती है जो हमें आंदोलित कर देती है और उसकी गूंज कई सालो तक हमारे मन में बसी रहती है . रामधारी सिंह दिनकर ऐसे ही कवियों में से एक हैं . देशभक्ति और ओजस्वी कविताओ के लिए प्रसिद्ध रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रसिद्ध लेखक, कवी एवं निबंधकार थे . एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की भी अभिव्यक्ति है . वीर रस और राष्ट्रवाद की भावना को बढाने वाली प्रेरणादायक देशभक्तिपूर्ण रचना के कारण उन्हें राष्ट्रकवि (“राष्ट्रीय कवि”) के रूप में सम्मान दिया गया . भारतीय स्वतंत्रता अभियान के समय में उन्होंने अपनी कविताओ से ही जंग छेड़ दी थी . उनकी लिखी कविताएं किसी अनपढ़ किसान को भी उतनी ही पसंद है जितनी कि उन पर रिसर्च करने वाले स्कॉलर को.

Ramdhari Singh Dinkar biography in Hindi

कवि रामधारी सिंह दिनकर को भारत का राष्ट्र कवि भी कहा जाता है। रामधारी सिंह दिनकर हिंदी भाषा के मुख्य कवि और लेखक थे। दिनकर जी को उनकी रचनाओं के लिए पदम विभूषण पुरुस्कार से भी सम्मानित किया गया। दिनकर जी की कविताओं में ओज, वीरता और आक्रोश की झलक दिखाई देती है इसीलिए दिनकर जी को आधुनिक काल का सबसे उच्च कोटि का वीर रस का कवि माना जाता है। रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने दिनकर जी के बारे में कहा कि दिनकरजी ने देश में क्रान्तिकारी आन्दोलन को स्वर दिया।रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी | Ramdhari Singh Dinkar biography in Hindiदिनकर जी की कविताओं में देशभक्ति और आक्रोश दिखता है। नामवर सिंह ने उनकी प्रशंसा में कहा कि दिनकरजी अपने युग के सचमुच सूर्य थे। भारतवर्ष के सर्वप्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने 1959 दिनकर जी को पदम विभूषण पुरुस्कार से सम्मानित भी किया। देश की स्वतंत्रता से पहले दिनकर जी को विद्रोही कवि के रूप में जाना जाता था और आजादी के बाद इन्हें राष्ट्रकवि के नाम से जाना जाने लगा

जीवन परिचय –

कवि रामधारी सिंह का जन्म 23 सितंबर 1908 में सिमरिया, बेगुसराय  (बिहार) में हुआ था। इनके पिता रवि सिंह एक सामान्य से किसान थे और माता मनरूप देवी सामान्य ग्रहणी थीं। जब ये मात्र 2 वर्ष के थे उसी समय इनके पिता का देहांत हो गया। विधवा माँ ने किसी तरह बच्चों का पालन पोषण किया। बचपन से ही संघर्ष भरा जीवन जीने के वजह से ही शायद दिनकर जी की कविताओं में भी संघर्षता का भाव झलकता है। जीवन की कठोरताओं ने उनके मानस पटल पर गहरा प्रभाव डाला।

शिक्षा –

दिनकर जी की प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव के ही एक छोटे प्राथमिक विद्यालय में प्राप्त की। बाद में मोकामाघाट हाई स्कूल नामक स्कूल से इन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त की। उस समय कम उम्र में ही विवाह कर दिया जाता था और दिनकर जी का भी विवाह हो गया इसके उपरांत एक पुत्र का भी जन्म हुआ। 1932 में दिनकर जी ने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में बी. ए. ऑनर्स किया|

बी. ए. ऑनर्स होने के अगले ही वर्ष दिनकर जी को एक स्कूल में प्रधानाध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। बाद में 1934 में बिहार सरकार की सेवा के अधीन सब-रजिस्ट्रार के पद पर भी कार्य किया। आगे चलकर भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति का कार्यभार संभाला बाद में भारत सरकार के हिंदी सलाहकार के रूप में भी कार्य किया।

सम्मान –

दिनकर जी द्वारा रचित काव्य “कुरुक्षेत्र” को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 64 वां स्थान मिला। 1959 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें पदम् विभूषण देकर सम्मानित किया। रचना उर्वशी के लिए दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरुस्कार मिला, उर्वशी एक स्वर्ग की अप्सरा पर रचित कहानी है इस रचना में प्रेम और संबंधों की झलक दिखती है। उर्वशी को छोड़कर दिनकर जी की सभी रचनाओं में वीर रस की भावना दिखाई देती है। दिनकर जी की पुस्तक “संस्कृति के चार अध्याय” भारतीय संस्क्रति और इसकी विविधता पर आधारित है इसके लिए दिनकर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।

दिनकर जी ने कुछ बाल साहित्य पर भी रचनायें लिखी हैं जिनमें ‘मिर्च का मजा’ और ‘सूरज का ब्याह‘ काफी प्रसिद्ध हैं। उनकी रचना ‘रश्मिरथी’ कर्ण के चरित्र चित्रण पर आधारित है।

दिनकर जी की कविता ‘वीर’ की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –

खम ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब ज़ोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।

कुछ अन्य रचनाओँ की झलक –

रे रोक युधिष्ठर को न यहाँ,
जाने दे उनको स्वर्ग धीर पर फिरा हमें गांडीव गदा,
लौटा दे अर्जुन भीम वीर – (हिमालय से)

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो – (कुरुक्षेत्र से)

मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। – (रश्मिरथी से)

काव्य –

1. बारदोली-विजय संदेश 1928

2. प्रणभंग 1929

3. रेणुका 1935

4. हुंकार 1938

5. रसवन्ती 1939

6. द्वन्द्गीत 1940

7. कुरूक्षेत्र 1946

8. धुप-छाह 1947

9. सामधेनी 1947

10. बापू 1947

11. इतिहास के आँसू 1951

12. धूप और धुआँ 1951

13. मिर्च का मजा 1951

14. रथिमरथी 1952

15. दिल्ली 1954

16. नीम के पत्ते 1954

17. नील कुसुम 1955

18. सूरज का ब्याह 1955

19. चक्रवाल 1956

20. कवि-श्री 1957

21. सीपी और शंख 1957

22. नये सुभाषित 1957

23. लोकप्रिय कवि दिनकर 1960

24. उर्वशी 1961

25. परशुराम की प्रतीक्षा 1963

26. आत्मा की आँखें 1964

27. कोयला और कवित्व 1964

28. मृत्ति-तिलक 1964

29. दिनकर की सूक्तियाँ 1964

30. हारे की हरिनाम 1970

31. संचियता 1973

32. दिनकर के गीत 1973

33. रश्मिलोक 1974

34. उर्वशी तथा अन्य श्रृंगारिक कविताएँ

गद्य –

35. मिटूटी की ओर 1946

36. चित्तोड़ का साका 1948

37. अर्धनारीश्वर 1952

38. रेती के फूल 1954

39. हमारी सांस्कृतिक एकता 1955

40. भारत की सांस्कृतिक कहानी 1955

41. संस्कृति के चार अध्याय 1956

42. उजली आग 1956

43. देश-विदेश 1957

44. राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता 1955

45. काव्य की भूमिका 1958

46. पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण 1958

47. वेणु वन 1958

48. धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969

49. वट-पीपल 1961

50. लोकदेव नेहरू 1965

51. शुद्ध कविता की खोज 1966

52. साहित्य-मुखी 1968

53. राष्ट्र-भाषा-आंदोलन और गांधीजी 1968

54. हे राम! 1968

55. संस्मरण और श्रृांजलियाँ 1970

56. भारतीय एकता 1971

57. मेरी यात्राएँ 1971

58. दिनकर की डायरी 1973

59. चेतना को शिला 1973

60. विवाह की मुसीबतें 1973

61. आधुनिक बोध

विभिन्न लेखकों के विचार

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा था की –
दिनकर जी उन लोगो के बीच काफी प्रसिद्ध थे जिनकी मातृभाषा हिंदी नही थी और अपनी मातृभाषा वालो के लिये वे प्यार का प्रतिक थे।

हरिवंशराय बच्चन के अनुसार वे भारतीय ज्ञानपीठ अवार्ड के हकदार थे।

रामवृक्ष बेनीपुरी ने लिखा था की दिनकर की कविताओ ने स्वतंत्रता अभियान के समय में युवाओ की काफी सहायता की है।

नामवर सिंह ने लिखा था की वे अपने समय के सूरज थे। अपनी युवावस्था में, भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी काफी प्रशंसा की थी।

हिंदी लेखक राजेन्द्र यादव के उपन्यास ‘सारा आकाश’ में उन्होंने दिनकरजी की कविताओ की चंद लाइने भी ली है, जो हमेशा से ही लोगो की प्रेरित करते आ रही है।

आपातकालीन समय में जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान पर एक लाख लोगो को जमा करने के लिये दिनकर जी की प्रसिद्ध कविता भी सुनाई थी : सिंघासन खाली करो के जनता आती है।

अवार्ड और सम्मान –

कविताओ के साथ-साथ दिनकरजी ने सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर भी अपनी कविताये लिखी है, जिनमे उन्होंने मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को मुख्य निशाना बनाया था।

उन्हें काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तर प्रदेश सरकार और भारत सरकार की तरफ से महाकाव्य कविता कुरुक्षेत्र के लिये बहुत से अवार्ड मिल चुके है।

संस्कृति के चार अध्याय के लिये उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी अवार्ड मिला। भारत सरकार ने उन्हें 1959 में पद्म भुषण से सम्मानित किया था।

भागलपुर यूनिवर्सिटी ने उन्हें LLD की डिग्री से सम्मानित किया था। राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर की तरफ से 8 नवम्बर 1968 को उन्हें साहित्य-चौदमनी का सम्मान दिया गया था।

उर्वशी के लिये उन्हें 1972 में ज्ञानपीठ अवार्ड देकर सम्मानित किया गया था। इसके बाद 1952 में वे राज्य सभा के नियुक्त सदस्य बने। दिनकर के चहेतों की यही इच्छा है की दिनकर जी राष्ट्रकवि अवार्ड के हक़दार है।

मुख्य कविताये

  • विजय सन्देश (1928)
  • प्राणभंग (1929)
  • रेणुका (1935)
  • हुंकार (1938)
  • रसवंती (1939)
  • द्वन्दगीत (1940)
  • कुरुक्षेत्र (1946)
  • धुप छाह (1946)
  • सामधेनी (1947)
  • बापू (1947)
  • इतिहास के आंसू (1951)
  • धुप और धुआं (1951)
  • मिर्च का मज़ा (1951)
  • रश्मिरथी (1952)
  • दिल्ली (1954)
  • नीम के पत्ते (1954)
  • सूरज का ब्याह (1955)
  • नील कुसुम (1954)
  • चक्रवाल (1956)
  • कविश्री (1957)
  • सीपे और शंख (1957)
  • नये सुभाषित (1957)
  • रामधारी सिंह ‘दिनकर’
  • उर्वशी (1961)
  • परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
  • कोयला एयर कवित्व (1964)
  • मृत्ति तिलक (1964)
  • आत्मा की आंखे (1964)
  • हारे को हरिनाम (1970)
  • भगवान के डाकिये (1970)

24 अप्रैल, 1974 को रामधारी सिंह दिनकर जी का निधन हो गया लेकिन अपनी रचनाओं के सहारे वो हमेशा अमर रहेंगे।

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