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Pran Biography in Hindi | प्राण की जीवनी

Pran Biography in Hindi | प्राण की जीवनी

Pran Biography in Hindi

आज बात कर रहे है प्राण की , जिन्होंने  अपनी कमाल के अभिनय और एकदम जुदा अंदाज की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में वह पहचान बना ली |प्राण गुजरे ज़माने के मशहूर खलनायक और एक चरित्र अभिनेता है। करीब 60 साल के अपने फिल्मी करियर में प्राण ने चार सौ से ज्यादा फिल्में की है। इनमें से अधिकतर उनके अभिनय के बूते चलीं। आख़िर ये उनकी खलनायकी ही थी जिसने प्राण को फिल्मों के हीरो से भी अधिक मेहनताना दिलवाया।प्राण का जन्म 12 जनवरी 1920 को दिल्ली में लाला केवलकृष्ण सिकंद के घर हुआ। उनके पिता सरकारी ठेकेदार थे। प्राण की शिक्षा-दीक्षा पंजाब के कपूरथला, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के मेरठ, देहरादून और रामपुर मे हुई। प्राण ने करियर की शुरुआत फोटोग्राफर के तौर पर की थी। वह भी आज के पाकिस्तान के लाहौर से। पर 40 के दशक मे परदे पर उतर आए। पहली फिल्म थी ‘यमला जट’। 1948 मे बँटवारे के वक्त पत्नीबच्चों समेत मुंबई आ गए। शुरू मे नाकाम रहे। इसी बीच लेखक सआदत हसन मंटो की मदद से ‘जिद्दी’ मे काम मिल गया। देव आनंद इस फिल्म के हीरो थे। फिर तो गाड़ी चल पड़ी। 1969 से 82 के बीच का दौर प्राण के नाम रहा। उस दौर मे कोई भी ऐसी कामयाब फिल्म नही बनी जिसमे प्राण न हो। एक वक्त ऐसा भी आया जब प्राण अपनी फिल्मों के हीरो के बराबर पैसे लेने लगे। ‘मधुमती’, ‘जिस देश मे गंगा बहती है’ , ‘राम और श्याम’ , ‘देवदास’ ऐसी ही फ़िल्मे थी। इस दौर मे कोई भी बड़ा हीरो नही बचा जिसने प्राण के साथ काम न किया हो।फिल्मों में आने से पहले प्राण फोटोग्राफर बनना चाह रहे थे। उन्हें स्मोकिंग पाइप के साथ वाकिंग स्टिक जमा करने का बहुत ही शौक था। वे कहते थे कि 100 साल से पहले हुए नहीं मरेंगे, लेकिन अफसोस की बात यह रही कि इससे पहले ही उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया। अपनी फिल्मों में लाजवाब अभिनय की वजह से प्राण आज भी अपने प्रशंसकों के दिलों में जिंदा हैं। एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ वे एक अच्छे इंसान भी थे, जो दूसरों के बारे में भी खूब सोचते थे।

फिल्मी करियर:-

प्राण ने 400 से भी अधिक फिल्मों में काम किया था। आपको यह जानकर ताज्जुब हो सकता है कि प्राण ने जितनी भी फिल्में कीं, उन सभी में प्राण का लुक अलग-अलग देखने को मिला, जहां उन्होंने हमेशा ही अपने लुक के साथ एक्सपेरिमेंट किया और किसी भी फिल्म में उनका लुक रिपीट नहीं हुआ था। इस तरह से ऐसा करने वाले वे बॉलीवुड के एकमात्र अभिनेता भी बन गए थे।मधुमति और जिस देश में गंगा बहती है जैसी फिल्मों ने प्राण को सुपरस्टार के रूप में स्थापित कर दिया था। उसी तरह से जंजीर, उपकार, पूरब और पश्चिम, हाफ टिकट एवं परिचय जैसी फिल्मों में प्राण ने इतना लाजवाब अभिनय किया कि उनके फैंस उन पर लट्टू हो गए थे। प्राण ने इन फिल्मों के जरिए यह दिखा दिया कि एक्टिंग करने की जो काबिलियत उनमें है, वह वाकई सबसे जुदा है। अभिनय के मामले में कोई उन्हें टक्कर नहीं दे सकता था, ऐसा उन्होंने साबित करके दिखाया| फिल्मों में आने से पहले प्राण फोटोग्राफर बनना चाह रहे थे। उन्हें स्मोकिंग पाइप के साथ वाकिंग स्टिक जमा करने का बहुत ही शौक था। वे कहते थे कि 100 साल से पहले हुए नहीं मरेंगे, लेकिन अफसोस की बात यह रही कि इससे पहले ही उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया। अपनी फिल्मों में लाजवाब अभिनय की वजह से प्राण आज भी अपने प्रशंसकों के दिलों में जिंदा हैं। एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ वे एक अच्छे इंसान भी थे, जो दूसरों के बारे में भी खूब सोचते थे।

सबसे पहले राजकपूर ने प्राण को पारम्परिक खलनायकी के घेरे से बाहर निकालने का प्रयास किया था फिल्म “जिस देश में गंगा बहती है (1960) ” से | इस फिल्म में प्राण ने राका डाकू का किरदार निभाया था | प्राण की कडकती आवाज ने राका डाकू का किरदार तो पसंद किया लेकिन दर्शको का प्यार नही मिल सका | इसके बाद मनोज कुमार ने प्राण को “उपकार (1968)” में मंगल चाचा का किरदार देकर खलनायकी के घेरे से पुरी तरह आजाद करा दिया |

मंगल चाचा के किरदार को प्राण  ने अपने अभिनय कौशल से अमर बना दिया | मनोज कुमार की ज्यादातर फिल्मो में प्राण खलनायक से कही ज्यादा चरित्र भूमिका निभाते थे मसलन “शहीद” , “पूरब और पश्चिम” , “बेईमान” , “सन्यासी” , “दस नम्बरी” , “पत्थर के सनम” आदि | 1973 में एक फिल्म आयी जंजीर | अमिताभ बच्चन की इस पहली हिट फिल्म में शेर खा  का किरदार प्राण के निभाये चरित्र किरदारों में सबसे बेहतरीन किरदार माना जाता है | आगे चलकर अमिताभ बच्चन के साथ उनकी कई फिल्मे सफल हुई मसलन “डॉन” , “अमर अकबर अन्थोनी” , “मजबूर” , “दोस्ताना” , “नास्तिक” , “कालिया ” और “शराबी” |

प्राण  इतने लोकप्रिय थे कि फिल्मो में कास्टिंग के दौरान पर्दे पर सबसे आखिरी में “and PRAN” लिखा आता था ताकि दर्शको को यह नाम अलग से दिखाई दे | कोई संयोग नही कि उनकी इसी अहमियत को देखते हुए उनके जीवन पर पुस्तक का नाम भी “एंड प्राण” रखा गया जिसके लेखक बन्नी रुबेन है | प्राण अकेले ऐसे कलाकार थे जिन्होंने कपूर खानदान की सभी पीढियों के कलाकारों के साथ अभिनय किया है | प्राण अपने दौर के सभी चर्चित नायको चाहे वह दिलीप कुमार हो , देव आनन्द हो या फिर राज कपूर , अपनी खलनायकी के दमखम पर उन्हें बराबरी की टक्कर देते थे |

कई बार तो वो दृश्यों में अभिनेताओ पर भारी पड़ जाते थे | नब्बे के दशक में बाद उन्होंने फिल्म अभिनय के प्रस्ताव अस्वीकार करना शुरू कर दिया | हिंदी सिनेमा में अहम योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया | साथ ही साल 1997 में उन्हें फिल्म फेयर के लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से सम्मानित किया गया | अपने लम्बे फ़िल्मी करियर और शानदार सफलता को देखते हुए साल 2012 का दादा साहब फाल्के सम्मान दिया गया | 12 जुलाई 2013 को इस शानदार अभिनेता ने प्राण त्यागे |

 

 

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