9th hindi

Music practice of Bihar | बिहार की संगीत साधना

बिहार की संगीत साधना

Music practice of Bihar

वर्ग – 9

विषय – हिंदी

पाठ 2 – बिहार की संगीत साधना

 बिहार की संगीत साधना

सारांश

विहार की संगीत प्रवाह सदियों पुरानी हैं । गौतम बुद्ध भी वीणा के मर्म से परिचित थे । चाणक्य । गायन तथा नृत्य में प्रवीण गणिकाओं को राज्य द्वारा संरक्षण प्रदान किया था । समुद्रगुप्त को “ संगीत मार्तण्ड ” की संज्ञा दी गई थी । हर्षवर्द्धन के काल में बाणभट्ट जैसे लोक संगीता थे । स्पष्ट है कि बिहार में लोक संगीत ही नहीं शास्त्रीय संगीत की भी धुम रही है । कहा जाता है कि तानसेन के दर्जनों शिष्य मंडलिया को बिहार के अनेक राजाओं के दरबार में सम्मानपूर्ण आश्रय मिला था । उस समय के बिहार में ध्रुपद गायन का काफी चलन था ।
शास्त्रीय गायन ( ध्रुपद , ख्याल , ठुमरी ) में बिहार का स्थान प्रथम था । बिहारियों ने शास्त्रीय संगीत में नये रागों का भी जन्म दिया है । शास्त्रीय संगीत की धाराओं में महत्वपूर्ण धारा ध्रुपद है । मुगल साम्राज्य के पतन के बाद बिहार के अनेक राजाओं ने अपने पास संगीतज्ञ रखा करते थे । बेतिया के राजा गजसिंह ध्रुपद गायक “ मलिक ” को अपने राज्य में भाया और ध्रुपद गायन की शिक्षा देने के लिए रखी थी । दूसरे राज्यों से भी यहाँ ध्रुपद की शिक्षा पाने के लिए लोग आया करते थे । 1936 में मुजफ्फरपुर में अखिल भारतीय संगीत समारोह हुआ उसमें कुंज बिहारी मिश्र का स्थान ऊपर रहा ।
ध्रुपद गायन में दरभंगा भी पीछा नहीं रहा । प . रामचन्द्र मलिक को ध्रुपद का ध्रुव कहा जाता है । इन्होंने न केवल ध्रुपद में बल्कि तुमरी और दादर गायन में भी अग्रणी रहे । गया जिले निवासी पं . सियाराम तिवारी भी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की । डुमराँव राज्य दरबार से पं . घनारंग दूबे गायक और कवि थे । पंडित रामप्रसाद के गायन के कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर भी बहुत प्रभावित हुए थे ।
ख्याल– ख्याल शास्त्रीय गायन का दूसरा रूप है । इस गायन में भी बिहार का स्थान लोकप्रिय रहा है । कुमार श्यामनन्दन सिंह ने इसमें ख्याति पायी । श्यामनन्दन सिंह पं . भीष्मदेव चटर्जी के शिष्य थे । इन्होंने अनेक ख्याल गायन के विद्वानों से भी शिक्षा ग्रहण की । ख्याल गायन में श्यामनन्दन सिंह के अलावे मुंगेर के पं . चन्द्रशेखर खाँ । बेतिया के जाकिर हुसैन और मौजूद हुसैन का नाम भी महत्वपूर्ण है ।
ठुमरी – तुमरी बिहार और उत्तर प्रदेश में विकसित हुई इसीलिए इसे पुरव की गायकी कहा जाता है । इस गायन की प्रतिष्ठा दिलाने में गया का नाम आगे है । इसके अलावे सहरसा के मांगन खवास का ठुमरी गायन सर्वश्रेष्ठ था । पटना सिटी ( अजीमाबाद ) में पेशेवर नर्तकी ‘ जोहरा ‘ , दरभंगा का ‘ गौहर ‘ भागलपुर का कज्जन का नाम श्रेष्ठ ठुमरी गायक थे । बिहार की ठुमरी में संवेदना तथा कल्पना का सहज और मधुर समावेश है वैसा कहीं नहीं । यहाँ तक कहा जाता है कि पूर्वी क्षेत्र की आत्मा तुमरी में बस्ती है और रामूजी इन ठुमरी में प्राण फुकने वाले श्रेष्ठ गायक थे ।
बिहार की धरती गायन क्षेत्र में ही अग्रणी नहीं वादन में भी महत्वपूर्ण श्रेष्ठता प्राप्त की है । पखावज जिसे मृदंग कहा जाता है की वादन में विष्णुदेव पाठक का नाम सबकी वाणी पर है । जमीरा निवासी लल्लन बाबु या कुन्देन्दु तुषार हार धवला ” ( सरस्वती वंदना ) को अपने मृदंग से शब्दशः ध्वनित करते थे ।
सारंगी जिसकी आज महत्ता कमती जा रही है कभी इसकी सर्वमान्य प्रतिष्ठा हुआ करती की । बिहार के सारंगी वादक में बहादुर खाँ , किशोरी प्रसाद मिश्र आदि का नाम उल्लेखनीय है ।
इसराज वादक पंडित चन्द्रिका दूवे की प्रशंसा रवीन्द्रनाथ ने भी की है । आज इस वाद्य यंत्र का नाम लुप्त प्रायः हो चुकी है । सितार वादन के नाम सुदीन पाठक को जाता है । दिन रात की अठिन मेहनत से उन्होंने अपना नाम ऊँचा किया । उनका शिष्य रामेश्वर पाठक एकलव्य की भाँति शिक्षा ग्रहण कर अपना नाम कमाया । शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ का नाम कौन नहीं जानता है । उनका पैतृक भूमि डुमराँव में था बाद में वे बनारस में बस गये ।
इसी तरह तबला वादक सरोदवादक तथा बाँसुरी वादन में भी बिहार का नाम है ।
बाँसुरी वादक में मुज्तबा हुसैन , सरोद वादक असगर अभी तबला वादक अजय ठाकुर का नाम गर्व से लिया जाता है । आज शास्त्रीय गायन वादन की लोकप्रियता घट गई है । आवश्यकता इस बात की है कि बिहार सरकार संगीत के लिए महाविद्यालय की स्थापना करें ताकि खोई हुई गरिमा वापस लौट आए ।

अभ्यास

प्रश्न 1. समुद्रगुप्त कौन थे ? वे किस वाद्य को बजाने में प्रवीण थे ?

उत्तर – समुद्रगुप्त भारत के सम्राट् थे । वे वीणा बजाने में प्रवीण थे ।

प्रश्न 2. बिहार में शास्त्रीय संगीत के कितने और कौन – कौन से रूप विशेष प्रचलित रहे ।

उत्तर – बिहार में शास्त्रीय संगीत के तीन रूप है : ( 1 ) ध्रुपद , ( iii ) ख्याल , ( iii ) ठुमरी ।

प्रश्न 3. बेतिया घराना का संक्षिप्त इतिहास दीजिए ।

उत्तर — बेतिया ‘ ध्रुपद ‘ शास्त्रीय संगीत का नैहर है । बेतिया के राजा ‘ गजसिंह ‘ ने मल्लिक बन्धुओं को कुरुक्षेत्र से लाकर अपने दरबार में शरण दी । बेतिया में दूसरे प्रान्त से लोग ध्रुपद की शिक्षा ग्रहण करने आते थे । बेतिया घरानों के ध्रुपद गायको में कुंज बिहारी मल्लिक , श्यामा मल्लिक , उमाचरण मल्लिक , बच्चा मल्लिक , शंकर लाल मिश्र प्रमुख थे । अखिल भारतीय संगीत समारोह जो 1936 में मुजफ्फरपुर में सम्पन्न हुआ था कुंज बिहारी मिश्र की धुम रही ।

प्रश्न 4. दरभंगा घराना के सर्वश्रेष्ठ गायक कौन माने जाते हैं ?

उत्तर – दरभंगा घराने के सर्वश्रेष्ठ गायक पं . रामचतुर मलिक माने जाते हैं ।

प्रश्न 5. घनगई ग्राम कहाँ पड़ता है ? बिहार के शास्त्रीय संगीत परम्परा में उस गाँव का क्या महत्त्व है ?

उत्तर – डुमराँव बक्सर जिला में पड़ता है । धनगई निवासी पं . घनारंग दूबे डुमराव महाराज के दरबार के सम्मानित गायक तथा उच्च कोटि के कवि रहे हैं । इसी गाँव के रघुनन्दन दूबे , सहदेव दूबे तथा रामप्रसाद पाण्डेय ने शास्त्रीय गायन में ख्याति पाई । रामप्रसाद पाण्डेय की गायन की प्रशंसा कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी की है । इस तरह घनाई गाँव शास्त्रीय गायन में अपना नाम ऊंचा किया है ।

प्रश्न 6. जमीरा गाँव के संगीत साधक कौन थे ? उनकी क्या विशेषता थी ?

उत्तर – जमीरा गाँव के संगीत साधक के रूप में लल्लन सिंह का नाम आता है । इन्होंने ध्रुपद गायन के विकास में योगदान दिया । ये पखावजवादकों में एक थे ।

प्रश्न 7. श्यामानन्द सिंह कौन थे ? संगीत के प्रति उनमें कैसे रूची जागी थी ?

उत्तर – श्यामानन्दन सिंह वनैली राज के राजकुमार थे । उनकी प्रसिद्धि ख्याल गायन के कारण हुआ । श्यामानन्दन सिंह जब दार्जिलिंग जा रहे थे । उन्होंने पं . भीष्मदेव चटर्जी का रिकार्ड सुना फलतः उनकी इच्छा चटर्जी से संगीत सीखने की हुई ।

प्रश्न 8. संगीत में डुमराँव के योगदान पर टिप्पणी लिखें ।

उत्तर – घनगई के ध्रुपद परिवार का सम्बन्ध डुमराँव के राजघराने से था । इनकी प्रसिद्धि डुमराँव घराना से मिली । घनगई के पं . घनानन्द दूबे डुमराँव राजदरबार के सम्मानित गायक तथा कवि थे । घनगई के ही रघुनन्दन दूबे , सहदेव दूबे तथा राय प्रसाद पाण्डेय ने काफी ख्याति पाई ।

प्रश्न 9. सुदीन पाठक किस बाजा के विशेषज्ञ थे ? उनकी स्वभावगत विशेषता का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।

उत्तर – सुदीन पाठक , सितार वादन के विशेषज्ञ थे । वे एकान्त साधक थे । रातभर कमरों में बंद होकर सितार बजाते और सबेरा होने के पहले सितार के तार खोलकर रख देते । उन्होंने बाहर जाकर अपने गुणों का प्रदर्शन नहीं किया और न कोई शिष्य ही बनाया ।

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