Manohar Parrikar biography in hindi – मनोहर पर्रिकर की जीवनी
Manohar Parrikar biography in hindi – मनोहर पर्रिकर की जीवनी
Manohar Parrikar biography in hindi
मनोहर पर्रिकर सादा जीवन उच्च विचार की प्रकृति वाले व्यक्ति थे एवं हमेशा एक साधारण एवं आम इंसान की तरह अपने जीवन के अंतिम सांस तक भारत माता की सेवा करते रहे.मनोहर पर्रिकर का पूरा नाम मनोहर गोपाल कृष्ण प्रभु परिकर है, इनका जन्म 13 दिसंबर सन 1955 को गोवा राज्य के मापुसा नामक स्थान पर हुआ था.
इनके पिता का नाम गोपाल कृष्ण पर्रिकर एवं माता का नाम राधाबाई पर्रिकर था.उनकी पत्नी का नाम मेधा पर्रिकर एवं इनके दो पुत्र हैं जिनका नाम अभिजीत पर्रिकर एवं उत्पल पर्रिकर है.
इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा मार गांव में पूरी की, इसके बाद सन 1978 में IIT मुंबई से से स्नातक किया.
वर्ष 2001 में इन्हें आईआईटी मुंबई द्वारा विशिष्ट भूतपूर्व छात्र की उपाधि प्रदान की गई.
नाम | मनोहर गोपाल कृष्ण प्रभु पर्रीकर |
जन्म | 13 दिसम्बर 1955 |
मृत्यु | 17 मार्च 2019 |
जन्म स्थान | मापुसा ,गोवा ,भारत |
उम्र | 63 वर्ष |
पिता का नाम | गोपाल कृष्ण पर्रीकर |
माता का नाम | राधा बाई पर्रीकर |
पत्नी | मेधा पर्रीकर |
धर्म | हिन्दू |
भाषा | हिंदी और इंग्लिश |
बेटे | अभिजीत पर्रीकर और उत्पल पर्रीकर |
स्नातक | आईआईटी ग्रेजुएट, मुंबई 1978 |
करियर | राजनीतिज्ञ, गोवा के मुख्यमंत्री, देश के रक्षा मंत्री (2014 से लेकर 2017 तक) |
पार्टी | भारतीय जनता पार्टी |
पसंदीदा खेल | क्रिकेट |
रूचि | जेनेटिक्स |
यात्रा | USA |
मनोहर पर्रिकर का राजनीतिक सफर (Manohar Parrikar’s Political Career)
पर्रिकर अपने स्कूलों के दिनों से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए थे. अपनी पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने आरएसएस की युवा शाखा के लिए भी काम करना शुरू कर दिया था. वहीं स्कूल से पास होने के बाद उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू कर दी. वहीं अपनी ये पढ़ाई पूरी करने के बाद एक बार फिर उन्होंने आरएसएस को अपनी सेवा देना शुरू कर दिया. जिसके बाद उन्हें बीजेपी पार्टी का सदस्य बनने का मौका मिला और उन्होंने बीजेपी पार्टी की तरफ से पहली बार चुनाव भी लड़ा. बीजेपी ने पर्रिकर को साल 1994 में गोवा की पणजी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया. वहीं पर्रिकर को इस चुनाव में जीत मिली. लेकिन बीजेपी इन चुनाव में कुछ खास नहीं कर सकी. वहीं पर्रिकर ने गोवा की विधानसभा सभा में विपक्ष नेता की भूमिका भी निभाई हुई है.
पहली बार बने गोवा के मुख्यमंत्री (Manohar Parrikar Chief Minister of Goa)
साल 2000 में गोवा में हुए विधान सभा चुनावों में बीजेपी पार्टी को लोगों का साथ मिला और बीजेपी को गोवा की सत्ता में आने का मौका मिला. वहीं सत्ता में आते ही बीजेपी पार्टी ने इस राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर पर्रिकर को चुना. वहीं 24 अक्टूबर को पर्रिकर ने बतौर गोवा का मुख्यमंत्री बन अपना कार्य शुरू कर दिया. हालांकि पर्रिकर के परिवार के हालात उस वक्त सही नहीं चल रहे थे और उनकी पत्नी कैंसर से ग्रस्त थी. पर्रिकर के मुख्यमंत्री बनने के ठीक एक साल बाद उनकी पत्नी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. पत्नी के जाने के बाद पर्रिकर ने गोवा के मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ अपने बच्चों की जिम्मेदारी भी बहुत अच्छे तरीके से निभाई.
लेकिन किन्हीं कारणों से उनका ये कार्यकाल ज्यादा समय तक नहीं चल पाया और 27 फरवरी 2002 को उन्हें अपनी ये कुर्सी छोड़नी पड़ी. वहीं 5 जून 2002 को फिर से उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया.
मुख्यमंत्री से लेकर देश के रक्षा मंत्री बनने का सफर
वहीं साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार मिली और पर्रिकर को मुख्यमंत्री के पद को छोड़ना पड़ा. जिसके बाद बीजेपी पार्टी को साल 2012 में गोवा में हुए चुनाव में फिर जीत मिली और फिर से बीजेपी ने पर्रिकर को मुख्यमंत्री बना दिया. वहीं 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी पार्टी को जीत मिली और पार्टी केंद्र में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई. वहीं जब देश के रक्षा मंत्री को चुनने की बारी आई, तो बीजेपी की पहली पसंद पर्रिकर बने और उन्होंने देश का रक्षा मंत्री बना दिया गया. देश के रक्षा मंत्री बनने के लिए पर्रिकर को अपना मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा और उनकी जगह लक्ष्मीकांत को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया.
पर्रिकर के मिले सम्मान एंव पुरस्कार (Manohar Parrikar Awards and Achievements)
- वर्ष 2001 में इन्हें आईआईटी मुंबई द्वारा सम्मानित किया गया.
- वर्ष 2012 में इन्हें सीएनएन-आईबीएन पुरूस्कार से समानित किया गया. यह अवार्ड राजनीति की श्रेणी में साफ़ छवि वाले नेता को दिया जाता हैं.
पर्रिकर से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें (manohar parrikar unknown facts)
- बीजेपी द्वारा गोवा के बनाए गए पहले मुख्यमंत्री
साल 1961 में भारत की सरकार ने पुर्तगालियों से गोवा को स्वतन्त्र करवाया था. वहीं साल 1987 में गोवा पूरी तरह से हमारे देश का एक प्रदेश घोषित कर दिया गया था. जिसके बाद बीजेपी ने साल 2000 में पहली बार इस राज्य के विधान सभा चुनाव में अपनी विजय हासिल की थी. चुनाव जीतने के बाद पर्रिकर को मुख्यमंत्री बनाया था. जिसके साथ ही पर्रिकर बीजेपी द्वारा गोवा के बनाए गए पहले मुख्यमंत्री बन गए थे.
- साधारण व्यक्ति की तरह रहन-सहन
गोवा के मुख्यमंत्री होने के बाद भी पर्रिकर ने अपने रहन-सहन में जरा भी बदलाव नहीं किया. कहा जाता है कि वो अपने राज्य की विधान सभा खुद स्कूटर चलाकर जाया करते थे. इतना ही नहीं उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने घर को नहीं छोड़ा और सरकार द्वारा दिए गए घर में नहीं गए.
- सोशल मीडिया पर सक्रिय
पर्रिकर पहले ऐसे आईआईटी ग्रेजुएट हैं जो कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं. पर्रिकर से पहले हमारे देश का ऐसा कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बना था, जिसके पास आईआईटी की डिग्री हो. इतना ही नहीं पर्रिकर सोशल मीडिया में भी काफी सक्रिय हैं और वो इस माध्यम से लोगों से जुड़े रहते हैं.
- पर्रिकर की सेहत को लेकर फैली थी अफवाह (rumours about Parrikar’s health)
हाल ही में पर्रिकर की सेहत को लेकर मीडिया में एक झूठी खबर फैलाई गई थी, जिसमें कहा गया था कि पर्रिकर को कैंसर है. वहीं इस खबर के फैलने के बाद लीलावती अस्पताल ने एक बयान जारी कर कहा था कि मीडिया में ये झूठी खबर फैलाई जा रही है. पर्रिकर को किसी भी तरह का कैंसर नहीं है. दरअसल पर्रिकर को विषाक्त भोजन (food poisoning) के चलते लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाया गया था.
मनोहर पर्रिकर की मृत्यु (Manohar Parrikar Death)
मनोहर पर्रिकर मार्च 2018 से अग्नाशय कैंसर से पीड़ित थे. बीमारी के बावजूद भी वह राज्य की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. उनका एक फोटो भी वायरल हुआ था जिसमे वे एक पुल का निरीक्षण कर रहे थे. इस दौरान उनकी नाक में रीले ट्यूब (Ryle’s Tube) लगी हुई थी. जिसके बाद कई अन्य विपक्षी नेताओं ने बीजेपी को अपना निशाना बनाया था और कहा बीजेपी मनोहर पर्रिकर को आराम करने दे रही हैं.
कैंसर के इलाज के लिए वह कई बार अमेरिका भी गए. लेकिन वहां भी डॉक्टर उनका इलाज करने में असमर्थ रहे अंतत: उन्हें दिल्ली एम्स में इलाज के लिए भर्ती किया गया. 17 मार्च 2019 को मनोहर पर्रिकर पणजी स्थित निजी आवास पर उन्होंने अपनी आखरी सांसे ली. उनकी मृत्यु की पहली जानकारी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा देश को दी गयी.
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