History

Guru Teg Bahadur Biography In Hindi – गुरु तेग बहादुर का जीवनी

Guru Teg Bahadur Biography In Hindi – गुरु तेग बहादुर का जीवनी

Guru Teg Bahadur Biography In Hindi

सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर थे | विश्व इतिहास में धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांत की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण की आहुति दे दी. सिख धर्म में उनके बलिदान को बड़ी ही श्रद्धा से याद किया जाता है. उनका निधन साल 1675 में 24 नवंबर को हुआ था.कश्मीर में हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाने के वे सख्त विरोधी रहे और खुद भी इस्लाम कबूलने से मना कर दिया. औरंगजेब के आदेश पर उनकी हत्या कर दी गई.पिता ने उन्हें त्याग मल नाम दिया था लेकिन मुगलों के खिलाफ युद्ध में बहादुरी की वजह से वे तेग बहादुर के नाम से मशहूर हो गए.दिल्ली का मशहूर गुरुद्वारा शीश गंज साहिब जहां है वहीं पर उन्हें कत्ल किया गया था और उनकी अंत्येष्टि हुई. वो जगह आज रकाबगंज साहिब के नाम से जानी जाती है.साल 1665 में उन्होंने आनंदपुर साहिब शहर बनाया और बसाया.उन्होंने 115 शबद भी लिखे, जो अब पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा हैं.

गुरु तेग बहादुर की जीवनी:-

श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 01 अप्रैल, सन् 1621 में हुआ था| गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नवें गुरु थे| गुरु तेग बहादुर जी ने ही प्रथम गुरु “गुरु नानक” द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे.श्री गुरु तेग बहादुर जी के द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं| गुरु तेग बहादुर जी ने जी ने ही कश्मीरी पण्डितों और अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने से घोर विरोध किया था.इस्लाम स्वीकार न करने के कारण सन् 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हे इस्लाम कबूल करने को कहा पर गुरु साहब ने कहा “शीश कटा सकते है केश नहीं”.उसी समय औरंगजेब ने गुरुजी का सभी हिन्दू मुस्लिम सीख ईसाई के सामने सिर कटवा दिया था| गुरु द्वारा शीश गंजसाहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया.विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है|इस महावाक्य के अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था.गुरु तेग बहादुर जी के इस बलिदान से काफी लोगों में बदलाव की ज्वाला उठ चुकी थी| गुरु जी के लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था| इसलिए गुरु जी ने अपने धर्म की रक्षा करने के लिए कभी भी किसी के आगे सर नहीं झुकाया था.अपने सीख धर्म की लाज रखते हुए उन्होने सर कटवा लिया लेकिन इस्लाम नहीं कबूला.आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध श्री गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी|यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था| गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे.11 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फ़तवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग बहादुर ने अपने मुंह से सी तक नहीं कहा..

गुरु तेग बहादुर का प्रारम्भिक जीवन :-

श्री गुरू तेग बहादुर जी का जन्म 01 अप्रैल, सन् 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ| गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नवें गुरु तथा गुरु हरगोविंद जी के पांचवें पुत्र भी थे.आठवें गुरु हरगोविंद जी के पोते “हरीकृष्ण राय” जी की बेवक्त मृत्यु हो गयी थी जिसकी वजह से गुरु तेग बहादुर जी को नवां गुरु बनाया गया.श्री गुरु तेग बहादुर जी ने आनंदपुर साहिब का निर्माण कराया था और ये उसी जगह रहने भी लगे| गुरु तेग बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था|गुरु तेग बहादुर जी बचपन से ही वीर थे उन्होने केवल 14 वर्ष की आयु में ही अपने पिता का साथ दिया और मुगलों को धूल चटाई थी..

गुरु तेग बहादुर सिंह जी की धर्म यात्राएं:-

धर्म के प्रचार के लिए गुरु तेग बहादुर जी ने कई स्थानों की यात्राएं की. कई स्थानों के भ्रमण करते हुए वे आनंदपुर साहब से किरतपुर, रोपण, सैफाबाद से होकर वह ख़िआला यानी ‘खदल’ पहुंच गए. ख़िआला में धर्म उपदेश देते हुए वे , दमदमा साहब से होकर कुरुक्षेत्र पहुंच गए. कुरुक्षेत्र से होते हुए तेग बहादुर जी ने यमुना के किनारे से होकर कड़ामानकपुर पहुंच गए और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूक दास जी का उद्गार किया.  गुरु तेज बहादुर जी ने धर्म प्रचार एवं लोगों के लिए सहज मार्ग हेतु कई अनेक स्थानों की यात्राएं की जैसे प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में यात्रा करते हुए पहुंचे. उनके द्वारा की गई इन क्षेत्रों में यात्राओं में ज्यादातर आध्यात्मिक, सामाजिक , आर्थिक उन्नत के लिए एवं रचनात्मक कार्य भी सम्मिलित थे. गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने मानव कल्याण हेतु, आध्यात्मिकता , धर्म , सच्चाई का ज्ञान लोगों को वितरित किया. इतना ही नहीं उन्होंने रूढ़ियों , अंधविश्वासों की आलोचना की और नए आदर्शों की स्थापना भी की.तेग बहादुर जी ने मानव कल्याण हेतु  कुएँ खुदवाना , धर्मशालाएं बनवाना आदि जन परोपकार के लिए कार्य भी किए . इन्हीं जनकल्याण एवं धर्म यात्राओं के बीच 1666 में गुरु जी के यहां पटना साहब में पुत्र धन की प्राप्ति हुई. गुरुजी का यही पुत्र आगे चलकर सिखों के दसवें गुरु , ‘गुरु गोविंद सिंह’ जी के नाम से जाने गये .

गुरु जी के द्वारा लेखन कार्य:-

सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी ने बहुत सी रचनाएं लिखी जो ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं. तेग बहादुर जी ने अपनी रचनाओं को  शुद्ध हिंदी में सरल एवं भाव युक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ जैसी रचनाओँ को लिखकर प्रस्तुत किया. गुरु जी ने मानव कल्याण हेतु एवं धर्म की रक्षा के लिए स्वयं एवं अपने दो शिष्यों के साथ खुद को बलिदान कर दिया. उन्होंने अपने देश एवं देश के नागरिकों के हित के लिए अपने देश की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया और धार्मिक, संस्कृति वैचारिक  को जनता के नाते लोगों को स्वतंत्र एवं निर्भरता के साथ जीवन जीने का रास्ता दिखाया.

धर्म के लिए गुरु तेग बहादुर की बलिदान गाथा:-

उस समय की बात है, औरंगजेब का जब शासन काल था, तो उसके दरबार में एक विद्वान पंडित आकर “भागवत गीता” का श्लोक पड़ता और उसका अर्थ औरंगजेब को समझाता था. गीता का श्लोक सुनाते समय पंडित औरंगजेब को कुछ गीता के श्लोकों एवं उसके अर्थों का वर्णन नहीं किया करता था. एक दिन दुर्भाग्यवश पंडित की तबीयत खराब हो गई और उसने औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए अपने पुत्र को भेज दिया.  परंतु उसने अपने पुत्र को यह नहीं बताया कि , कुछ गीता के श्लोकों को वह औरंगजेब के सामने वर्णित नहीं किया करता था. पंडित के बेटे ने जाकर गीता का संपूर्ण रूप उसके अर्थ के साथ से वर्णन औरंगजेब के सामने कर दिया. जिससे औरंगजेब को यह ज्ञात हो गया, कि हर जाति के धर्मों का अपना एक अलग ही महत्व है एवं हर धर्म अपने में महान धर्म होता है.परंतु औरंगजेब केवल अपने धर्म को ही महत्वता देता था, और किसी अन्य धर्म की प्रशंसा सुनना ही पसंद करता था. फिर तुरंत औरंगजेब के सलाहकारों ने उसे यह बताया कि सभी धर्मों के लोगों को केवल इस्लाम धर्म ही धारण करवा देना चाहिए. औरंगजेब को यह सलाह पसंद आई और उसने सबको इस्लाम धर्म धारण करने का आदेश दिया और इस कार्य को पूरा करने के लिए कुछ लोगों को जिम्मेदारी भी सौंप दी.
उसने यह सख्त आदेश जारी करवाया की सभी धर्मों एवं जाति के लोगों को केवल इस्लाम धर्म ही कबूल करना होगा अन्यथा उनको मौत के घाट उतार दिया जाएगा. इस तरह औरंगजेब ने जबरदस्ती अन्य धर्मों के लोगों को इस्लाम धर्म धारण करने पर मजबूर करना शुरू कर दिया और उन्हें प्रताड़ित भी किया.औरंगजेब के इस प्रताड़ना से प्रभावित होकर कश्मीर के पंडित गुरु तेग बहादुर सिंह जी के पास पहुंच गए और उन्हें बताया कि औरंगजेब ने किस तरीके से इस्लाम धर्म को अन्य धर्म के लोगों को धारण करने का आदेश दिया है और उन लोगों को बहुत ही दुख दायक तरीके से प्रताड़ित किया जा रहा है. इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि उनकी बहू-बेटियों की इज्जत को बहुत खतरा रहता है और जिस जगह पर वे लोग पानी भरने जाते हैं वहां पर हड्डियां एवं अन्य प्रकार की धर्म भ्रष्ट हेतु की चीजें फेंक दी जाती हैं. यह सब कुछ समस्याओं का वर्णन उन्होंने गुरु तेग बहादुर सिंह जी के सामने किया और कहा कि हमें और हमारे धर्म को सुरक्षित करें.जिस वक्त कश्मीरी पंडित अपनी समस्याओं का वर्णन गुरु तेग बहादुर सिंह जी के सामने कर रहे थे, उसी समय वहां पर उनके 9 वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम (गुरु गोविंद सिंह) पहुंच गए और अपने पिताजी से यह पूछने लगे कि यह सभी लोग इतने उदास एवं भय पूर्ण क्यों लग रहे हैं ? और पिताजी आप इतने गंभीरतापूर्वक किस चीज का विचार कर रहे हैं ? गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने कश्मीरी पंडितों की सभी समस्याओं का वर्णन अपने सुपुत्र बाला प्रीतम के सपने किया .गुरु जी के पुत्र ने गुरु जी से पूछा कि कैसे इन लोगों की सहायता करके इनको विषम परिस्थिति से बाहर निकाला जा सकता है ? इस पर गुरुजी ने अपने पुत्र को जवाब दिया कि इस विषम परिस्थिति से उभरने के लिए बलिदान देना होगा. इसके जवाब में उनके सुपुत्र बाला प्रीतम जी ने कहा कि, इस जनहित के कार्य को करने के लिए आप जैसा कोई -और योग्य पुरुष नहीं है. भले ही आपको इसके लिए बलिदान देना पड़े आप बलिदान दीजिए परंतु इनके धर्म की रक्षा अवश्य करें.बाला प्रीतम की बातों को सुनकर वहां उपस्थित सभी लोगों ने उनसे यह कहां, कि यदि आपके पिता श्री ने बलिदान दे दिया तो आप अनाथ हो जाओगे और आपकी माता को विधवा के रूप में जीवन व्यतीत करना होगा. इस पर बाला प्रीतम ने उपस्थित वहां सभी लोगों को यह जवाब दिया, कि यदि सिर्फ एक की बलिदानी से लाखों मासूम बच्चे अनाथ होने से बच जाएंगे और यदि सिर्फ मेरी माँ के विधवा होने से अनेकों माएँ विधवा होने से बच सकती है, तो मुझे यह बलिदान गर्व से मंजूर है.इसके बाद गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों को एक संदेशा औरंगजेब को पहुंचाने के लिए कहा उन्होंने बोला कि , “औरंगजेब यह कह दो, कि यदि तेग बहादुर जी इस्लाम कबूल कर लेंगे तो हम भी अपनी स्वेच्छा से इस्लाम धर्म को कबूल कर लेंगे और अगर गुरु जी ने आपके इस्लाम धर्म को कबूल नहीं किया तो हम भी आपके धर्म को कबूल नहीं करेंगे और आप हम पर किसी भी प्रकार का जुल्म इस्लाम धर्म को कबूल करने के लिए नहीं करोगे  और जबरन इस्लाम धर्म को भी कबूल करने के लिए बाधित नहीं करोगे”. औरंगजेब ने उनकी कही बातों को स्वीकार कर लिया.इसके बाद गुरु तेग बहादुर दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में अपनी स्वेच्छा से पहुंच गए. इसके बाद औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म कबूल करवाने के लिए अनेकों प्रकार के लालच दिए और इतना ही नहीं इस्लाम धर्म कबूल ना करने पर उनको अनेकों तरीके से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं उनको इस्लाम धर्म कबूल करवाने के लिए बंदी बनाकर उनके सामने उनके दो-शिष्यों को मौत के घाट उतार दिया गया है.जिससे औरंगजेब ने सोचा कि ऐसा करने से गुरु तेग बहादुर यह देखकर भयभीत हो जाएंगे और आसानी से इस्लाम कबूल कर लेंगे.परंतु इससे भी गुरु तेग बहादुर जी टस से मस नहीं हुए और अपने अटल निर्णय पर डटे रहे. गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगजेब यह कहा कि, जो तुम यें जबरन लोगों को इस्लाम धर्म कबूल कबूल करने के लिए मजबूर कर रहे हो ना , तो यह भी समझ लो, कि तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो. तुम्हारा इस्लाम धर्म तुमको यह अनुमति नहीं देता कि तुम किसी भी अन्य धर्म को जबरन अपने धर्म में परिवर्तित करो.औरंगजेब को गुरु तेग बहादुर की यह बातें बहुत बुरी लगी और उसे बहुत गुस्सा आया. औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी को शीश काटकर मृत्युदंड देने का हुक्म दे दिया.

गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान:-

औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को 24 नवंबर 1675 को शीश काटकर मृत्युदंड देने का आदेश दे दिया. सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी के याद में उनके “शहीदी स्थल” पर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है, जिसका नाम “शीशगंज साहिब” है. हमें गुरु तेग बहादुर सिंह जी के जीवन परिचय से यह सीख लेनी चाहिए कि, जनसेवा एवं मानव कल्याण सबसे सर्वोपरि है. उन्होंने मानव कल्याण हेतु अनगिनत कार्य किए थे.उन्होंने यह भी बताया है कि सभी प्रकार के धर्म अपने में बहुत महत्वपूर्ण हैं और उनका एक अपना महत्व भी होता है. कोई भी धर्म छोटा या बड़ा नहीं होता सब धर्म अपने में सामान्य होते हैं.  गुरुजी ने मानव कल्याण एवं धर्म रक्षा हेतु अपने आप को बलिदान कर दिया .आज के समय में हमें भी जरूरत है कि, उनकी बातों का आदर करें और उन्हें अपने जीवन में फॉलो करें किसी भी धर्म एवं जाति के लोगों का निरादर नहीं करना चाहिए.  सभी धर्म को सम्मान एवं महत्वता  देनी चाहिए.

श्री गुरु तेग बहादुर जी और औरंगजेब के समय की कहानी:-

ये बात औरंगज़ेब के शासन काल की बात है| औरंगज़ेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज़ “भगवद गीता” के श्लोक पढ़ता था और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था.फिर क्या हुआ की एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगज़ेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया|लेकिन पंडित अपने बेटे को ये बताना भूल गया कि उसे गीता में से किन श्लोकों का अर्थ राजा के सामने व्यक्त नहीं करना था|पंडित के बेटे ने जाकर औरंगज़ेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया| गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगज़ेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आपमें महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि वह अपने के धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी.औरंगजेब के जुल्म से त्रस्त कश्मीरी पंडित एवम सभी हिन्दू गुरु तेगबहादुर जी के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है, यातनाएं दी जा रही हैं| मारा पिटा जा रहा है.गुरु चिंतातुर हो समाधान पर विचार कर रहे थे तो उनके नौ वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम (गोविन्द सिंह) ने उनकी चिंता का कारण पूछा, पिता ने उनको सभी परेशानियों के बारे में बताया और कहा की सभी लोगों को औरंगजेब के जुल्म से बचाने के लिए मुझे प्राणघातक अत्याचार सहते हुए प्राणों का बलिदान करना होगा.गुरु जी जैसे वीर पिता की वीर संतान के मुख पर कोई भय नहीं था| गोविंद जी ने जरा सा भी दुख नहीं दिखाया की मेरे पिता को अपना जीवन गंवाना होगा.उपस्थित लोगों द्वारा उनको बताने पर कि आपके पिता के बलिदान से आप अनाथ हो जाएंगे और आपकी मां विधवा तो बाल प्रीतम ने उत्तर दियाः“यदि मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं या अकेले मेरी माता के विधवा होने जाने से लाखों माताएँ विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।”छोटे से बालक का ऐसा वाक्य सुनकर सब आश्चर्य चकित रह गए| उसके बाद श्री गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों से भी हिंदुओं से कहा कि आप सभी जाकर औरंगज़ेब से कह दें कि यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे.इस बीच यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाएंगे तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे|इस बात को सुनने के बाद औरंगजेब को गुस्सा आया उसे लगा की बेइज्जती हो गयी है और उसने गुरु जी को बन्दी बनाए जाने के लिए आदेश दे दिए.गुरु तेगबहादुर जी ने औरंगजेब के अत्याचार को सहा और उससे कहा कि यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा बिलकुल भी नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके उसपे अपना इस्लाम धर्म थोपा जाएगा मुस्लिम बनाया जाएगा.गुरु तेग बहादुर जी की ये सभी बातें सुन कर औरंगजेब को गुस्सा आ गया और उसने आगबबूला हो कर दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया.

 

One thought on “Guru Teg Bahadur Biography In Hindi – गुरु तेग बहादुर का जीवनी

  • This is very interesting biography. This is really helpful info.

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *