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Dalai Lama Biography in Hindi – दलाई लामा का जीवनी

Dalai Lama Biography in Hindi – दलाई लामा का जीवनी

Dalai Lama Biography in Hindi

पूरे विश्व में शांति और प्रेम का संदेश प्रचारित करने वाले शांतिदूत दलाई लामा १४ वें तेनजिन ग्यात्सो (Tenzin Gyatso) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और अध्यात्मिक गुरू है. दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई, 1935 को तेकस्तर (तिब्बत) में हुआ था. 15 वर्ष की उम्र में वे दलाई लामा के रूप में तिब्बत की राजनीतिक सत्ता के प्रमुख बने. इसी वर्ष चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर दिया जिसके बाद दलाई लामा अपने हजारों अनुयायियों के साथ भारत में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला आ गया. यहां उन्होंने तिब्बत की निर्वासित सरकार की स्थापना की. इसके बाद से दलाई लामा ने तिब्बत की स्वायत्तता के लिए अनेक प्रयास किए हैं. हालांकि, चीन की सरकार ने निर्वासित तिब्बत सरकार के साथ समझौता करने की कोई मंशा आज तक प्रकट नहीं की है. वे भारत में धर्मशाला स्थित तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख हैं. तिब्बती लोग उन्हें पूर्व के दलाई लामाओं का अवतार मानते हैं. दलाई लामा अपने मानवतावादी कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं. उन्हें 1989 में नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.

 

दलाई लामा का प्रारंभिक जीवन:-

दलाई लामा के जन्म के समय उनके गाँव ताक्त्सेर (Taktser) में केवल 20 परिवार रहते थे. दलाई लामा के अभिभावक किसान थे और भेड़-बकरियां चराकर अपना गुजारा करते थे, वो बाजरा, आलू और अनाज की खेती करते थे. ल्हामो के अतिरिक्त उनके परिवार में 6 अन्य बच्चे भी थे जिनमें 4 लड़के और 2 लड़कियां शामिल थी.

बौद्ध धर्म की शिक्षा:-

बौद्ध धर्म ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भगवान बुद्ध ने प्रारम्भ किया. यह दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्मों में से एक है. भारत से शुरू हुए इस धर्म का पूर्व और दक्षिण एशिया में तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ. तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार 8वीं शताब्दी में हुआ. बौद्ध धर्म के अनुसार आर्यसत्य चार हैं-. पहला, इस संसार मेंदुख है. दूसरा, दुख के कारण हैं. तीसरा दुख के निवारण हैं और चौथा दुखों का निवारण अष्टांगिक मार्ग पर चलकर किया जा सकता है . अष्टांगिक मार्ग हैं-सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति एवं सम्यक समाधि.आर्य सत्यों में मानव के अस्तित्व, जीवन, मृत्यु और स्व के बारे में अनेक शिक्षाएं समाहित हैं. अन्य धर्मों में जहां ईश्वर पर विश्वास को प्रमुखता दी गई है जबकि बौद्ध धर्म में सत्य की खोज करने, उसे समझने और उसे अपने अनुभवों की कसौटी पर कसने को महत्व दिया गया है. बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य का पुनर्जन्म होता है किन्तु वह इस जीवन में उस मनुष्य के अपने कर्म पर निर्भर है. जिस तरह एक दीपक से दूसरा दीपक प्रकाशित होता है, उसी तरह किसी एक व्यक्ति की चेतना दूसरे व्यक्ति की चेतना में समाहित हो सकती है.

दलाई लामा का इतिहास:-

  • दलाई लामा को 14 वी शताब्दी से गेलुग्पा बुद्धिज्म का मुखिया मानते हैं, जिसका मतलब पीली हेट होता हैं. 17वीं शताब्दी से दलाई लामा पर राजनैतिक जिम्मेदारियां भी आ गयी, उस समय से लामा दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. तात्कालीन दलाई लामा 14 वे दलाई लामा हैं. दलाई लामा के नियुक्ति की प्रक्रिया में अब तक किसी तरह की रुकावट नहीं आई हैं. तिब्बत के लोग विश्वास करते हैं कि जब भी किसी दलाई लामा की मृत्यु होती हैं तो तुरंत ही तिब्बत में कही और दलाई लामा का जन्म हो जाता हैं, मतलब दलाई लामा की आत्मा वो ही होती हैं जो पहले लामा की रही हैं, आत्मा नष्ट नहीं होती, ये अमर हैं और शरीर बदलती रहती हैं.
  • उन्हें कैसे खोजा गया (How he was discovered) : वर्तमान दलाई लामा से पहले वाले दलाई लामा यानि कि 13वें दलाई लामा ने सन 1933 को स्वर्ग में वास किया था. उनके देहांत के समय बौद्धों ने अगले दलाई लामा को खोजने के लिए प्रार्थना की और उन्होंने अपनी प्रार्थनाओं और शक्तियों से नए दलाई लामा के चिन्ह खोजने शुरू किये जो उन्हें नये दलाई लामा तक ले जा सकते थे, अंतत: उन्हें नये दलाई लामा के तिब्बत के उत्तरी पूर्वी भाग में होने का आभास हुआ, और ये प्रतीत हुआ कि दलाई लामा मठ के पास किसी अजीब सी जगह पर रह रहे हैं. बहुत सारे बौद्ध यात्रा पर निकल गए और काफी खोजने के बाद उन्हें ल्हामो धोंडअप (Lhamo Dhondup) का घर मिला था, वहां उन्होंने ल्हामो से और उसके अभिभावकों से बात की और ल्हामो की परीक्षा ली, बौद्ध अपने साथ मठ से बहुत तरह की वस्तुएं लाये थे जिनमें कुछ तो 13 वे दलाई लामा की वस्तुएं थी. मात्र 2 वर्षीय ल्हामो ने 13 वे दलाई लामा की वस्तुओं को पहचान लिया और बौद्ध संतों को समझ आ गया कि उन्हें उनका अगला दलाई लामा मिल गया हैं, इस तरह 13 वे दलाई लामा थुबटेन ग्यास्तो के बाद अगले दलाई लामा की खोजने की प्रक्रिया समाप्त हुयी.

दलाई लामा के चीन के साथ मतभेद:-

दलाई लामा ने तिब्बत की स्वायत्ता के लिए अब तक अनेक प्रयास किए हैं. 1963 में उन्होंने तिब्बत के संविधान का प्रारूप जारी किया जिसमें तिब्बत सरकार के लोकतंत्रीकरण सहित अनेक सुधारों को सम्मिलित किया गया था. इस संविधान को निर्वासित तिब्बतियों का चार्टर कहा जाता है.सितम्बर 1987 में दलाई लामा ने चीन सरकार के साथ समझौते और वहां अशांति की स्थिति खत्म करने के लिए तिब्बत के लिए पांच बिंदु का शांति प्रस्ताव तैयार किया. 15 जून, 988 को उन्होंने स्ट्रासबोर्ग (फ्रांस) में अमरीकी संसद के सदस्यों को सम्बोधित किया, जिसमें उन्होंने चीन सरकार के साथ बातचीत का प्रस्ताव दिया और चीन के अंदर ही तिब्बत स्वायत्तशासी लोकतांत्रिक राजनीतिक क्षेत्र की मांग की. इसमें तिब्बत की विदेश नीति और रक्षा को चीन के नियंत्रण में रखा गया था. इन दोनों को छोड़कर अन्य मामलों को तिब्बत सरकार के अधीन रखा गया था.तिब्बत की निर्वासित सरकार ने स्ट्रासबोर्ग प्रस्ताव के प्रति चीन के नकारात्मक रुख को देखते हुए वर्ष 1991 में इसे अवैधानिक करार दे दिया.

दलाई लामा के मानवतावादी कार्य:-

दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता हैं. बोधिसत्व की परम्परा का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा को समर्पित किया है. उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं और ज्ञान, करुणा, पर्यावरण संतुलन सहित विभिन्न विषयों पर अनेक कांफ्रेंस, व्याख्यान और कार्यशालाओं को सम्बोधित किया है. दलाई लामा ने अमेरिका, रूस सहित यूरोप, एशिया और लैटिन अमेरिका के कई देशों की यात्रा की है.दलाई लामा को तिब्बत की मुक्ति के अहिंसक प्रयासों और पर्यावरण समस्याओं को दूर करने के प्रयासों के लिए वर्ष 1989 में नोबल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.10 मार्च 2011 को तिब्बत से निर्वासन की 52वीं वर्षगांठ पर उन्होंने तिब्बत की निर्वासित सरकार के राजीनितक प्रमुख की अपनी जिम्मेदारी किसी निर्वाचित नेता को सौंपने की इच्छा प्रकट की.

दलाई लामा का नेतृत्व और जिम्मेदारियां:-

  • 1950 में तिब्बत में चायना की घुसपैठ के बाद उन्हें न चाहते हुए भी राजनीति में आना पड़ा, लेकिन इससे पहले 1949 में द्वितीय विश्व युद्ध की हार के बाद से चायना एक कम्युनिस्ट देश बन गया था और 1950 के प्रारंभ में लगभग 80 हजार चायनीज सैनिक तिब्बत में प्रवेश कर गए और चायना ने तिब्बत पर अपने अधिकार का दावा भी किया.
  • दलाई लामा ने चायना का दौरा किया और वहां के प्रशासन से तिब्बत छोड़ने का कहा, लेकिन वो नहीं माने इसके अलावा लामा ने कुछ पडोसी देशों से भी घुसपैठ को हटाने में मदद करने की मांग की, अन्य देश चायना से डर गए और वे लामा की ज्यादा मदद नहीं कर सके.
  • 1954 में वो बीजिंग गये और वहां उन्होंने माओ ज़ेडोंग और देंग जिओपिंग (Deng Xiaoping) और चौ एनलाई (Chou Enlai) जैसे अन्य चायनीज नेताओं से बात की.
  • इसके बाद बहुत वर्षों तक चायना द्वारा अपने लोगों को प्रताड़ित होते देखने और ल्हासा में चायनीज फ़ौज द्वारा तिब्बतियों के राष्ट्रीय विरोध को दबाने के बाद अप्रैल 1959 में लामा भारत के लिए रवाना हो गए, तब से वो भारत के धर्मशाला में रह रहे हैं.
  • उनके निर्वासन के दौरान तिब्बत के लिए परम-पूज्य दलाई लामा ने यूनाइटेड नेशन में आवाज़ उठायी. जनरल असेम्बली ने तिब्बत में 1959, 1961 और 1965 में तीन प्रस्ताव दिए.
  • 1963 में परम पूज्य ने तिब्बत के लिए डेमोक्रटिक संविधान दिया, जिसके कारण तिब्बत में प्रशासन के साथ ही बड़ा जनतांत्रिक सुधार हुआ, इस नए लोकतान्त्रिक संविधान को निष्कासन के दौरान तिब्बतियों का घोषणा पत्र कहा गया. इस घोषणापत्र में अभिव्यक्ति, विश्वास और असेम्बली की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता हैं. यह तिब्बत से निर्वासित लोगों के लिए गाइडलाइन भी हैं.
  • 21 सितम्बर 1987 को यूनाइटेड स्टेट्स कांग्रेस में अपने भाषण के दौरान दलाई लामा ने तिब्बत के लिए 5 सूत्रीय शांति प्रस्ताव रखा और तिब्बत की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पहला कदम बढाया था. ये 5 सूत्रीय प्रस्ताव निम्न था.
  • सम्पूर्ण तिब्बत को शान्त-क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए.
  • चायना की जनसंख्या को ट्रांसफर की नीति को समाप्त किया जाये जिसके कारण तिब्बत की जनसंख्या पर गलत प्रभाव पड रहा हैं.
  • तिब्बत के लोगों और उनके मौलिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान किया जाए.
  • तिब्बत के प्राकृतिक वातावरण को संरक्षित किया जाए और चायना द्वारा तिब्बत में परमाणु हथियारों के प्रयोग और इसके कचरे को फैकने से रोका जाए.
  • तिब्बत के भविष्य को देखते हुए तिब्बत और चायना के लोगों के मध्य में शान्ति एवं संवाद स्थापित करने की कोशिश की जाए.
  • 15 जून 1988 को स्ट्रासबर्ग में यूरोपियन पार्लियामेंट के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने पांच सूत्रिय शान्ति प्रस्ताव को फिर से समझाया था. उन्होंने चायनीज और तिब्बत के मध्य वार्ता का प्रस्ताव रखा था जिससे तिब्बत के तीनों प्रोविंसेज में डेमोक्रेटिक पोलिटिकल पार्टी का शासन हो सके. यह रिपब्लिक ऑफ़ चायना के लोगों की सहायता से सम्भव हैं और यहाँ पर चायना की सरकार विदेश नीति और रक्षा के लिए जिम्मेदार होगी.
  • मई 1990 में दलाई लामा के सुधार कार्यों के लिए तिब्बत का निष्कासन पूरी तरह से लोकतान्त्रिक हो गया, तिब्बत का मंत्रिमंडल (कशाग) जो कि तब तक दलाई लामा द्वारा नियुक्त था, उन्हें भी तिब्बत से निष्कासन में पार्लियामेंट में शामिल कर लिया गया. उसी वर्ष भारत और 33 से अधिक देशों में रह रहे निष्कासित तिब्बतियों ने ग्यारहवीं तिब्बत असेम्बली के लिए एक व्यक्ति-एक वोट के आधार पर चुना, और इस असेम्बली ने नए कैबिनेट के लिए सदस्य चुने.
  • 1992 में सेंट्रल तिब्बत एडमिनीस्ट्रेशन ने भविष्य के स्वतंत्र तिब्बत के लिए गाइडलाइन पब्लिश की हैं, जिसमें साफ़ कहा गया हैं कि तिब्बत के स्वतंत्र होते ही पहला टास्क अंतरिम सरकार बनाना होगा जिसकी जिम्मेदारी होगी कि वो संविधान सभा बनाये और देश में लोकतंत्र एवं संविधान बनाये, दलाई लामा ने ये आशा जताई हैं कि भविष्य के तिब्बत में तीन पारम्परिक प्रोविंस होंगे यु-संग (U-Tsang,), आमदो (Amdo) और खाम (Kham,) जिनमे संघीय और लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था होगी.
  • सितम्बर 2001 में जनतंत्रात्मक तिब्बत इलेक्टोरेट की तरफ कदम बढाते हुए सीधे मंत्रिमंडल के अध्यक्ष कालोन त्रिपा (Kalon Tripa ) को चुन लिया. कालोन ने अपना मंत्रिमंडल खुद चुना जिसे तिब्बतन असेम्बली को एप्रूव करना पड़ा. तिब्बत के इतिहास में ये पहली बार था जब लोगों ने अपने राजनेता को खुद को चुना था. कालोन ट्रिपा के चुनाव के बाद दलाई लामा द्वारा तिब्बत में चलायी जाने वाली आध्यात्मिक और अस्थायी शक्ति समाप्त हो गयी.

दलाई लामा की राजनैतिक सेवानिवृति:-

  • 1969 में दलाई लामा ने ये स्पष्ट किया था कि दलाई लामा की पहचान और इनके पुनर्जन्म को मान्यता देनी चाहिए या नहीं, ये पूरी तरह से तिब्बती, मंगोलियन और हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का निर्णय होना चाहिए.
  • 14 मार्च 2011 को दलाई लामा को निष्कासित तिब्बत पार्लियामेंट की जिम्मेदारी से मुक्त करने का आग्रह किया, क्योंकि निष्कासित तिब्बती घोषणा-पत्र के अनुसार वो तब भी राज्य के मुखिया थे. उन्होंने घोषणा की कि वो दलाई लामा के पास रहने वाली आध्यात्मिक और राजनैतिक शक्तियों की परम्परा को समाप्त कर देंगे, हालांकि उस समय किसी भी तरह के स्पष्ट दिशा-निर्देश ना होने के कारण ये रिस्की था कि भविष्य के दलाई लामा के पहचान में राजनैतिक हित भी छूपे हो सकते हैं.
  • 29 मई 2011 को दलाई लामा ने लोकतान्त्रिक रूप से चुने गए नेता को अस्थायी नियुक्ति दे दी. और इस तरह उन्होंने औपचारिक तौर पर 368 वर्षों से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनैतिक मुखिया के तौर पर दलाई लामा के काम करने की परम्परा को पूर्ण विराम दिया.  
  • 24 सितम्बर 2011 को अगले दलाई लामा की पहचान सम्बंधित स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किये गये जिससे भविष्य में किसी भी तरह के धोखे और संशय की संभावना ना रहे. उन्होंने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहले चार दलाई लामा केवल आध्यात्मिक मामलों में ही नियुक्त रहेंगे. उन्होंने ये भी सुनिश्चित किया कि लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए नेता को ही तिब्बत की राजनैतिक जिमेदारियां सौंपी जायेगी. दलाई लामा का घर गादेन फोड़रेंग (Gaden Phodrang) केवल इस कार्य को पूरा करेगा.
  • दलाई लामा ने ये घोषणा की कि जब वो 90 वर्ष के होंगे तब वो तिब्बत के बुद्धिस्ट परम्पराओं वाले मठों के प्रमुख लामाओं से, तिब्बत की जनता से और बुद्धत्व में रूचि रखने वाले तिब्बत के अन्य प्रबुद्ध जनों से बात करके ये निर्णय करेंगे कि दलाई लामा के बाद भी संस्था को रखना चाहिए या नहीं, उनके इस वक्तव्य से बहुत से अर्थ निकाले गये, यदि 15 वां दलाई लामा पहचाना जाता हैं तो उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी दलाई लामा के गाडेन फोद्रेंग ट्रस्ट (Gaden Phodrang Trust) को सम्भालने की होगी. उन्हें तिब्ब्ती बौद्ध परम्पराओं के विभिन्न मुखियाओं, दलाई लामा की वंश-परम्परा से जुड़े और धर्म का संरक्षण करने वाले सभी व्यक्तियों से सलाह-मशवरा करना होगा. वो इन सबसे किसी भी मामले में सलाह ले सकते हैं, लामा ने ये भी कहा कि वो इस सन्दर्भ में लिखित नियम बनाकर रखेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि पारम्परीक तरीकों से चुनाव की प्रकिया के अतिरिक्त कोई भी प्रक्रिया मान्य नहीं होगी क्योंकि पीपल्स रिपब्लिक चायना के एजेंट भी अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए दलाई लामा चुन सकते हैं.
  • जब से परम पूज्य ने अपनी राजनातिक शक्तियाँ चुने हुए प्रतिनिधयों को सौंपी हैं तब से वो खुदको सेवानिवृत मानते हैं.

दलाई लामा से जुड़े अन्य रोचक तथ्य (Other Interesting Facts About Dalai Lama)

  • दलाई लामा शान्ति के प्रचार-प्रसार के लिए पहचाने जाने वाले व्यक्ति हैं. उन्होंने सन 1989 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था, जोकि उन्हें तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए किए गये अहिंसात्मक संघर्ष एवं पर्यावर्णीय कार्यों के लिए दिया गया था.
  • दलाई लामा ने अब तक 6 महाद्वीपों में 47 देशों की यात्रा की हैं और उन्होंने 150 अवार्ड्स, सम्मानीय डोक्टोरेट, पुरुस्कार इत्यादि जीते हैं, ये सब उन्हें शान्ति, अहिंसा, सर्व धर्म समभाव, जीव दया जैसे विषयों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के कारण मिला हैं. उन्होंने 110 से भी ज्यादा पुस्तकों में को-ऑथर के तौर पर काम किया हैं.
  • दलाई लामा विभिन्न धर्मों के मुखियाओं से मिलकर सर्व-धर्म समभाव की दिशा में काम करते रहते हैं. 1980 के मध्य में दलाई लामा ने आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ भी संवाद किया था जिनमें साइकोलोजी, न्यूरोबायोलोजी, क्वांटम फिजिक्स और कोस्मोलोजी जैसे क्षेत्र के वैज्ञानिक भी शामिल थे, जिससे बुद्धिस्ट साधुओं और विश्व के वैज्ञानिकों के मध्य सामंजस्य स्थापित हुआ. इससे मानसिक शान्ति के लिए नए अवसरों की राह खुली, और इसके बाद ही निष्कासित तिब्बतियों के पुनर्निवासन वाले मठों के पारम्परिक पाठ्यक्रम में भी आधुनिक विज्ञान को शामिल किया गया.

इस तरह दलाई लामा वास्तव में कोई नाम नहीं हैं, ये बौद्ध धर्म में साधूओं में सर्वोच्च पद है, जिनका वर्षों से उदेश्य सिर्फ शांति का प्रचार करना ही रहा हैं, जबकि चीन द्वारा तिब्बत को हडपने के बाद उनकी स्थिति उस हद तक अच्छी नहीं थी कि वो अपने मन में प्रेम, करुणा को बनाये रख सके. लेकिन भारत में शरणार्थी के तौर पर रहते हुए दलाई लामा ने शान्ति, प्रेम, करुणा, सद्भाव का जो प्रचार किया हैं उसे पूरी दुनिया ने सराहा हैं.

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