Babar history in Hindi – बाबर का जीवन परिचय
Babar history in Hindi
आज बात करने जा रहे है बाबर का,जो मुगल साम्राज्य का संंस्थापक था, बाबर ने मुगल वंश केे साथ ही पद-पादशाही की स्थापना भी की थी, बाबर का पूरा नाम ज़हीर-उद-दीन मोहम्मद बाबर (Zahir-ud-din Mohammad Babur ) था । बाबर सुन्नी इस्लाम को मानने वाला था।
- महम बेगम (बाबर के समय मुग़ल साम्राज्य की रानी और बादशाह बेगम)
- आयशा सुल्तान बेगम
- मासूमा सुल्तान बेगम
- जैनाब सुल्तान बेगम
- बीबी मुबारिका
- गुलरुख बेगम
- दिलदार बेगम
- गुलनार अगाचा
- नजरुल आगाचा
बाबर की 17 सन्तानें हुईं थी जिनमें से सबसे बड़ा बेटा हुमायूँ था, जो बाबर के बाद राजगद्दी पर बैठा ।
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | बाबर जीवन परिचय |
1. | पूरा नाम | जहिरुदीन मुहम्मद बाबर |
2. | जन्म | 23 फ़रवरी 1483 |
3. | जन्म स्थान | फरगना घाटी, तुर्किस्तान |
4. | माता-पिता | कुतलुग निगार खानम, उमर शेख मिर्जा |
5. | पत्नी | आयशा सुल्तान, जैनब सुल्तान, मासूमा सुल्तान, महम सुल्तान, गुलरुख बेगम, दिलदार, मुबारका, बेगा बेगम |
6. | बेटे-बेटी | हुमायूँ, कामरान मिर्जा, अस्करी मिर्जा, हिंदल, अहमद, शाहरुख़, गुलजार बेगम, गुलरंग,गुलबदन, गुलबर्ग |
7. | मृत्यु | 26 दिसम्बर, 1530 आगरा, भारत |
बाबर की शारीरिक क्षमता के बारे में –
माना जाता है कि बाबर शारीरिक रूप से बहुत ही शक्तिशाली था और उसे व्यायाम करना अति प्रिय था. कहा जाता है, कि वह अपने कंधे को मजबूत करने के लिए दो लोगों को अपने कंधों पर बैठाकर दौड़ता था. व्यायाम करने के लिए बाबर जब दौड़ता था, तब यदि उसके सामने कोई नदी आ जाती थी, तो उसे वह तैर कर पार भी करता था. कुछ लोगों का कहना यह भी है, कि बाबर ने गंगा नदी को दो बार तैरकर पार किया था.
बाबर को भारत आने का क्या कारण था ?
जब बाबर का शासनकाल शुरू हुआ सब उसने मध्य एशिया में अपना शासन फैलाने की सूची परंतु वहां पर बाबर अपना समराज नहीं फैला पाया. इसके बाद उसकी नजर भारत पर पड़ी. उस समय भारत की राजनीतिक परिस्थिति बहुत ही कमजोर थी जो बाबर को भारत आने के लिए अनुकूल परिस्थिति लगी. उस दौरान इब्राहिम लोधी दिल्ली का सुल्तान हुआ करता था, परंतु उसने बहुत ही लड़ाइयां भी लड़ी और वह लगातार उन लड़कियों में हारता भी रहा. इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खान उसकी इस असफलता से बहुत ही चिंतित थे , क्योंकि वे दिल्ली के सल्तनत पर एक छत्र राज करना चाहते थे. उसी दौरान पंजाब के गवर्नर दौलत खान को भी लोधी का कार्य पसंद नहीं आ रहा था. आलम खान और दौलत खान बाबर को भलीभांति जानते थे. उसी दौरान उन्होंने बाबर को दिल्ली आने का न्योता भेजा. बाबर को यह अच्छा लगा की उसे दिल्ली आकर अपने साम्राज्य को बढ़ाने का भी अवसर मिलने वाला है.
खानवा का युद्ध –
बाबर ने जितनी भी लड़ाइयां लड़ी थी, उनमें से यह खानवा की लड़ाई एक प्रमुख लड़ाई थी. खानवा गांव के आसपास बाबर ने इस युद्ध को लड़ा था. राणा संग्राम सिंह ने सोचा कि पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद बाबर अपने स्वदेश लौट जाएगा परंतु ऐसा नहीं हुआ. बाबर ने भारत में ही रहकर शासन करने का मन बना लिया था. परिणाम स्वरूप राणा संग्राम सिंह को भी बाबर के साथ युद्ध करने के लिए आना पड़ा. इस युद्ध को 17 मार्च 1527 में लड़ा गया था. इसमें राजपूत अपनी वीरता से लड़े थे, परंतु बाबर के तोप खानों की वजह से वह ज्यादा देर तक युद्ध मैदान में अपनी बढ़त नहीं जमा पाए और युद्ध हार गए. मेवाड़ के महाराजा राणा संग्राम सिंह ने अपनी पराजय को देख आत्महत्या कर ली. मेवाड़ की महिलाओं ने बाबर के सामने खुद को विवश के रूप में नहीं दिखानी चाहती थी और उन्होंने भी जोहर कर लिया.
चंदेरी का युद्ध –
चंदेरी दुर्ग मध्य प्रदेश के गुना के नजदीकी में अशोकनगर जिले में मौजूद है. आज भी यहां की भूमि राजपूतों का पराक्रम, जटों की वीरता और महिलाओं के जोहर के लिए भी जाना जाता है. खानवा के युद्ध में राणा संग्राम सिंह को हराने के बाद बाबर की नजर चंदेरी दुर्ग पर पड़ी. उस समय पर मालवा के राजा मेदनी राय थे, उस समय वहां उनका आधिपत्य था. खानवा के युद्ध में मेदनी राय और उनकी सेना का सामना बाबर से पहले ही हो चुका था. जिससे बाबर तो पहले ही दुश्मन के रूप में था ही. बाबर ने राजा मेदनी राय की से उनका किला मांगा. इसके बदले में बाबर ने युद्ध में जीते हुए जिलो में से कई जिला देने को कहा और कई अन्य भी उपहार देने की भी बात कही थी. परंतु राजा मेदनी राय को उनका किला बहुत महत्वपूर्ण था और उसे किसी भी हाल में खोना नहीं चाहते थे. सबसे बड़ी बात उन्होंने बाबर के सामने खुद को समर्पित करना सही नहीं समझा. इसी वजह से बाबर ने 1528 में मेदनी राय को युद्ध के लिए ललकारा. उसकी किले को पाने की चाहत ने उसे युद्ध में विजई बना दिया. इसके साथ ही राजा मेदनी राय की बहुत ही बुरी तरीके से पराजय हुई.
घाघरा का युद्ध –
बाबर अब तक कई शासकों और राजपूतों को युद्ध में हरा चुका था. इसी के कारण बिहार और बंगाल में अफगानी शासकों ने बाबर का विरोध किया और उसे वापस भेजने के लिए रणनीति बनाने लगे . बाबर को एक के बाद एक युद्ध में विजय मिली. जिससे उसको खुद पर और भी अभिमान हुआ इसके फलस्वरूप 1529 में बाबर और अफगान शासकों के बीच में युद्ध छिड़ गया. बाबर ने घाघरा का युद्ध भी आसानी से जीत लिया. घागरा युद्ध के बाद बाबर और उसकी सेनाओं ने हिंदुस्तान के अन्य राज्यों को भी लूटना शुरू कर दिया.
बाबर की क्रूरता
बाबर ने मुगल साम्राज्य की स्थापना करने के बाद भारत में बाबर की सेना ने खूब लूटपाट मचाई थी. बाबर अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक क्रूरता दिखाता था और उसने खूब नरसंहार भी किया था. बाबर को किसी भी प्रकार का ग्लानि या अफसोस नहीं होता था. बाबर के क्रूरता के बहुत से आपको इतिहास में प्रमाण मिल जाएंगे. बाबर किसी भी धर्म पर विश्वास नहीं करता था. इसीलिए उसने कभी भी यहां के लोगों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित होने के लिए दबाव नहीं डाला था. बाबर का स्वभाव थोड़ा अइयाश किस्म का भी था .
बाबर ने 1526 इसवीं से लेकर अगले चार वर्षों तक हिंदुस्तान में सैन्य अभियानों के जरिये कई जीतें हासिल कीं। किन्तु शासन का सुख भोगने के लिए वह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सका। घाघरा नदी के किनारे हुआ युद्ध उसके जीवन का अंतिम युद्ध माना जाता था। बाबर की तबीयत जल्द ही बिगड़ गयी। बीमारी के कारण 47 वर्ष की आयु में 26 दिसंबर 1530 इसवीं को बाबर की आगरा में मृत्यु हुई। बाबर के शव काेे प्रारम्भ में आगरा के आरामबाग में दफनाया गया बाद मेंं काबुल में उसके उसके द्वारा चुने हुऐ स्थान पर दफनाया गया था।