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essay in hindi | सुभद्रा कुमारी चौहान

essay in hindi | सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान

‘ खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी ‘ की लेखिका को ऐसा कौन है जो न आनता हो । इसी एक कविता ने सभी आबाल वृद्धों से सपना जी का परिचय करा दिया । स्कूलों पड़ने वाले बच्चों को और कुछ याद हो या न हो पर यह कविता अवश्य याद होगी । हिन्दी साहित्य में राष्ट्र प्रेम से पूर्ण काव्यकारों में सुभद्रा जी का विशेष स्थान है और महिला काव्यकारों में तो प्रथम |
जीवन – वृत्त- सुभद्रा जी का जन्म प्रयाग में सन् १ ९ ०४ ई . में हुआ था । इनके पिता डाकुर रामनाथ सिंह ने इनकी शिक्षा की व्यवस्था क्राथवेस्ट गर्ल्स स्कूल में की थी । १५ वर्ष की स्था में ही इनका विवाह खण्डवा निवासी ठा . लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ सम्पत्र हो गया था । विवाहोपरान्त काशी में इनका अध्ययन पुनः प्रारम्भ हुआ । परन्तु असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें जेल यात्रा करनी पड़ी और शिक्षा फिर बीच में ही छूट गई । ये आजीवन देश – सेवा में लगी रहीं । मध्य प्रदेश विधान सभा के लिये ये सदस्य निर्वाचित हुई । सन् १ ९ ४७ ई ० विधान सभा जाते हुए , मुर्गी के बच्चों की प्राण रक्षा के लिये , कार दुर्घटना में इनकी मृत्यु हो गई ।

रचनायें – सुभद्रा जी की रचनायें तीन रूपों में उपलब्ध है
(१) काव्य , ( २ ) कहानी ( ३ ) बाल साहित्य !

‘ मुकुल ‘ तथा तीन धारा इनकी काव्य कृतियां हैं मुकुल पर इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयोग से ” सेक्सरिया पुरस्कार ” प्राप्त हुआ था । ‘ बिखरे मोती ‘ तथा ‘ उन्मादिनी इनके कहानी संग्रह है । सभा के खेल ‘ तथा ‘ सीधे – सादे चित्र इनके बाल साहित्य सम्बन्धी ग्रंथ है ।

काव्य विशेषतायें — सुभद्रा जी की रचनाओं में तीन भावों का प्रतिपादन हुआ है -१ राष्ट्र भक्ति
(२) वात्सल्य- प्रेम , ३. प्रणय – भावना । राष्ट्र भक्ति से ओत  प्रोत रचनाओं में सुभद्रा जी को अपूर्व सफलता प्राप्त हुई । इनकी कुछ रचनाओं में भारतीय विगत वैभव शौर्य एवं पराक्रम के दर्शन होते हैं , जलियाँ काला बाग ‘ , ‘ वीरों का कैसा हो वसन्त ‘ ‘झाँसी की रानी ‘ आदि रचनायें इस दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण हैं । झांसी वाली रानी ‘ की कविता तो देश के सभी हिन्दी भाषी प्रान्तों में गले का हार है ही । इनकी लेखनी की शक्ति के दो उदाहरण देखिये –
  भूषण अथवा कवि चन्द नहीं ,
      बिजली भर दें वह छन्द नहीं ,
       है कलम बँधी स्वच्छन्द नहीं !
      फिर हमें बतावे कौन हन्त !
      वीरों का कैसा हो बसन्त ?
X X X
मात भूमि बलि वेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाली महारानी लक्ष्मी की समाधि को देखकर सुभद्रा जो कह उठी–
बढ़ जाता है मान वीर का रण में बलि होने से ।
     मूल्यक्ती होती सोने की , भस्म यथा सोने से ।।
    रानी से भी अधिक हमें अब यह समाधि है प्यारी I
     यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की आशा की चिंगारी ।।

वात्सल्य एवं प्रणय सम्बन्धी रचनाओं में सुभद्रा जी की नारी सुलभ भावुकता का प्राधान्य वासना के स्थान पर त्याग और आत्म समर्पण की भावना है । वात्सल्य भावना में बालिका का हृदय – स्पर्शी चित्र देखिये –

ओ माँ , कह कर बुला रही थी , मिट्टी खाकर आयी थी ।
कुछ मुँह में , कुछ लिये हाथ में , मुझे खिलाने आयी थी ।
दीप शिखा है अंधकार की , बनी घटा – सी उजियाली ,
ऊया है यह कमल श्रृंग की , है पतझड़ की हरियाली।

मर्मस्पर्शी आत्म समर्पण –
पूजा और पुजापा प्रभुवर , इसी पुजारिन को समझो ,
  दान , दक्षिणा और निछावर , इसी भिखारिन को समझो ।

भाषा – सुभद्रा जी की भाषा सरल , सुबोध एवम् सरल खड़ी बोली है । उसमें कला के कृत्रिम सौन्दर्य और कल्पना की ऊंची उड़ानों का अभाव है । भावों की भाँति भाषा भी आडम्बरहीन और स्वाभाविकता से युक्त हैं । भाषा में ओज , प्रसाद एवम् माधुर्य गुण सर्वत्र विद्यमान है । अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है , उन्हें लाने का कोई प्रयास एवम् प्रयत्न नहीं किया गया । उर्दू के प्रचलित शब्द भी ग्रहण किये गये हैं ।

शैली – काव्य के क्षेत्र में इनकी शैली सरल , मधुर एवम् प्रभावशालिनी है । कहानी के क्षेत्र में शैली भावात्मक एवम् वर्णनात्मक है ।

रस , छन्द एवम् अलंकार — वात्सल्य एवं वीर रस की निष्पत्ति बड़े सजीव ढंग से की गई है । छन्द – योजना में आधुनिक तुकान्त छन्दों का प्रयोग किया गया है । अर्ध – बोध के सहायक के रूप में उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा आदि अलंकार स्वाभाविक रूप से आये हैं , उनके लिये कोई श्रम या प्रयास नहीं किया गया ।

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