hindi Essay

essay in hindi | महादेवी वर्मा

essay in hindi | महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा

आज के नारी उत्थान के युग में महादेवी जी ने न केवल साहित्य – सूजन के माध्यम से अपितु नारी कल्याण सम्बन्धी अनेकों संस्थाओं को जन्म एवं प्रश्रय देकर इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है । प्रयाग महिला विद्या पीठ ‘ इसका ज्वलन्त प्रमाण है । महादेवी जी , जहाँ एक श्रेष्ठ कवियित्री धी , वहाँ मौलिक गद्यकार भी ।
जीवन वृत्त – महादेवी जी का जन्म फर्रुखाबाद में सन् १ ९ ०७ ई . में हुआ था । इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा इन्दौर के ‘ डेली कॉलिज ‘ में प्रोफेसर थे । महादेवी जी की प्रारम्भिक शिक्षा यहीं से हुई । माता हेमरानी एक भक्त एवं विदुषी महिला थी । उनकी भक्ति – भावना का प्रभाव महादेवी पर पड़ा । छठी कक्षा नक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् नो वर्ष को अल्पायु में ही इनका विवाह बरेली के डॉ स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया था । फलस्वरूप शिक्षा – क्रमबीच में ही टूट गया । चार पाँच वर्ष पश्चात् १ ९ २० ई ० में प्रयाग में मिडिल पास किया । इसके चार वर्ष बाद इन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की ।
१ ९ २६ ई ० में दर्शन विषय लेकर इन्होंने बी.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके पश्चात प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम ० ए ० परीक्षा पास की । महादेवी जी मिडिल से लेकर एम ० ए ० तक सदैव वर्मा प्रथम श्रेणी में ही पास होती रहीं । मिडिल और हाई स्कूल तो उनका सर्वप्रथम स्थान रहा ।
एम ० ए ० करने के बाद महादेवी जी ‘ प्रयाग ‘ महिला विद्यापीठ ‘ में प्रधानाचार्या के पद पर नियुक्त हुयीं । कुछ दिनों तक हिन्दी को नारी पत्रिका ‘ चाँद ‘ का भी आपने सम्पादन किया । अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के कारण ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद को सदस्या भी मनोनीत हो गई थीं । सन् १ ९ ८७ में आपका स्वर्गवास हो गया ।

यकाव्यकार के रूप में रचनायें – भाव , भाषा और संगीत के संगम पर बैठकर महादेवी जी ने जिन काव्य ग्रंथों की रचना की है वे हैं – नौहार , रश्मि , नीरजा , सांध्य गीत और दीप शिखा । ‘ यामा ‘ इनको नीहार , रश्मि नीरजा की कविताओं का सचित्र संग्रह है । महादेवी जी को हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने ‘ नीहार की रचना ५०० रु.का सेक्सरिया पुरस्कार तथा यामा ‘ पर १२०० रु का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्रदान कर पुरस्कृत किया था १ ९ सितम्बर १ ९ ८७ को आपका नश्वर शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो गया ।
काव्यगत विशेषतायें – अन्तरतम की अनन्त वेदना और पीड़ा को लेकर महादेवी जी साहित्य के क्षेत्र में अवतीर्ण हुई । प्रकृति का प्रत्येक कण इनकी विरह वेदना से तादात्म्य सम्बन्ध स्थापित किए हुए है विरहजन्य अभाओं एवं अनुभूतियों की मधुर अभिव्यक्ति इनके काव्य का श्रृङ्गार है । मौरा के काव्य में अपने प्रियतम , गिरधर गुपाल ‘ के लिए जो वेदना , टीस , कसक , प्रतीक्षा , आतुरता एवं आत्म निवेदन था , वही महादेवी के काव्य में भी है- परन्तु महादेवी के प्रियतम अज्ञात हैं और मीरा का अलौकिक प्रेम था और महादेवी जी का लौकिक । महादेवी जी को रहस्यवादी शैली उनकी वेदनापूर्ण अभिव्यक्तियों का सुन्दर एवं मधुर आवरण है ।
कुछ उदाहरण देखिये –
प्रियतम के मिलन के लिए करुणातुर प्रार्थना का नारी – सुलभ चित्र देखिए
यदि तुम आ जाते एक बार ,
                          कितनी करुणा , कितने सन्देश
         पथ में बिछ जाते बन पराग ।
                          गाता प्राणों का तार – तार
        अनुराग भरा उन्माद राग ।
                          आंसू लेते वे पद पखार ।
       प्रियतम के बिना रात में नींद कैसी ।

रात भर की प्रतीक्षा देखिये —
पथ देख बिता दी रैन , मैं प्रिय पहचानी नहीं ।

महादेवी जी पीड़ा में सोते ही रहना चाहती हैं –
ठहरो , बेसुध पीड़ा को , मेरी न कहीं छू लेना ।
   जब तक वे आ न जगावें बस सोती रहने देना ।।

भाषा – महादेवी जी की प्रारम्भिक रचनायें ब्रज भाषा में होती थीं , फिर उन्होंने खड़ी बोली में पर्दापण किया । इनकी खड़ी बोली शुद्ध , परिष्कृत एवं परिमार्जित है । संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्राधान्य है । कोमलकान्त पदावली से युक्त इनकी भाषा माधुर्य से ओत – प्रोत है । भावों के अनुसार भाषा में भी प्रभावोत्पादकता है ।
भाषा के विषय में आचार्य शुक्ल का मत— “ गीत लिखने की शैली में जैसी सफलता महादेवी जी को हुई वैसी और किसी को नहीं । न तो भाषा का ऐसा स्निग्ध प्रवाह और कहीं मिलता है और न हृदय की भावभंगिमा । जगह – जगह ऐसी ढली हुई और अनूठी व्यंजना से परी हुई पदावली मिलती है कि हृदय खिल उठता है । ”

शैली – महादेवी जी की शैली “ गीत शैली ” है । इनकी शैली धीरे – धीरे विकसित शैली का परिष्कृत रूप है । इनकी शैली को ” भावात्मक गीत शैली ” कहा जा सकता है । इस शैली में भाव , भाषा और संगीत का समन्वय है । लक्षणा अथवा व्यंजना के प्रयोग ने शैली में अस्पष्टता उत्पन्न कर दी है|

रस , छंद तथा अलंकार – महादेवी जी का काव्य वियोग श्रृंगार का काव्य है , करुण रस भी कहीं – कहीं मिल जाता है ।
छंद योजना में महादेवी जी ने केवल ‘ आधुनिक पद ‘ को ही अपनाया है , जिसे गीत कहते हैं ।
अलंकारों की दृष्टि से रूपक तथा प्रस्तुत से अप्रस्तुत का बोध कराने वाले समासोक्ति आदि अलंकारों की प्रधानता है , जैसी रहस्यवादी कवियों में होती है ।

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