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Brahmagupta Biography In Hindi – गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त की जीवनी

Brahmagupta Biography In Hindi – गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त की जीवनी

Brahmagupta Biography In Hindi

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भारत के इतिहास में गणित के क्षेत्र में कई धुरंधर आचार्य हुए है जिनमें आर्यभट, भास्कराचार्य प्रथम के बाद ब्रह्मगुप्त का नाम ही आता हैं. इन्होनों दो बड़े ग्रंथों की रचना की ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त’ और ‘खण्ड-खाद्यक’ जिनका अरबी भाषा में भी अनुवाद हो चूका है. ब्रह्मगुप्त भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे. उनका जन्म 598 ई. में राजस्थान में भीनमाल में हुआ था. इनके पिता का नाम विष्णु था. उन्हें भिल्लमाल आचार्य के नाम से जाना जाता हैं.

वें तत्कालीन गुर्जर प्रदेश (भीनमाल) के अंतर्गत आनेवाले प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे. वे एक महान गणितज्ञ थे. उन्होंने भारतीय गणित को सर्वोच्च शिखर पर पहुचा दिया था.

उन्होंने भारतीय गणित को लगभग सर्वोच्च शिखर तक पहुंचा दिया था। इसी कारण बारहवीं शताब्दी के विख्यात ज्योतिष गणितज्ञ भास्कराचार्य ने उन्हें ‘गणक चक्र चूड़ामणि’ के नाम से संबोधित किया था। गणित के क्षेत्र में ब्रह्मगुप्ता की सबसे बड़ी उपलब्धि है अनिवार्य वर्ग समीकरण – अय2 +1= र2 का हल प्रस्तुत करना।

पाश्चात्य गणित के इतिहास में इस समीकरण के हल का श्रेय जोल पेल (1688ई.) को दिया जाता है और ‘पेल’ समीकरण के नाम से ही जाना जाता हैं। परंतु वास्तविक यह है कि पेल से 1000 वर्ष पहले ब्रह्मगुप्त ने इस समीकरण का हल प्रस्तुत कर दिया था। इसके लिए ब्रह्मगुप्ता ने जिन प्रमेयिकाओ की खोज की थी उन्हें भारतीय गणित में ‘भावना’ कहा गया है।

बाहरवी शताब्दी के विख्यात ज्योतिष गणितज्ञ भास्कराचार्य ने उन्हें गणक चक्र चूडामणि के नाम से संबोधित किया था. आर्यभट्ट के बाद भारत के पहले गणित शास्त्री भास्कराचार्य प्रथम और उसके बाद ब्रह्मगुप्त हुए.

वे खगोल शास्त्री भी थे. उन्होंने शून्य के उपयोग के नियम खोजे थे. उनकें मुलाको को ज्योतिषी भास्कराचार्य ने सिद्धांत शिरोमणि का आधार माना हैं. उनके ग्रन्थ में ब्रह्मास्फुट सिद्धांत और खंड खाद्यक बेहद प्रसिद्ध हैं.

ब्रह्मगुप्त के ये ग्रन्थ इतने प्रसिद्द हुए कि खलीफाओं के राज्यकाल में उनका अनुवाद अरबी भाषा में कराया गया. उनके ग्रंथों को अरब देश में अल सिंद हिंद और अल अर्कंद के नाम से जाना गया.

इन ग्रंथों के माध्यम से ही पहली बार अरबों को भारतीय गणित और ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त हुआ. इस तरह से ब्रह्मगुप्त अरबी के गणितज्ञ एवं ज्योतिषियों के गुरु थे. ब्रह्मास्फुट सिद्धांत उनका सबसे पहला ग्रन्थ था. उसमें शून्य को एक अलग ग्रन्थ के रूप में बताया गया.

इस ग्रंथ में ऋणात्मक अंकों और शून्य पर गणित के सभी नियमों का वर्णन किया गया हैं. उनके ग्रंथ में बीजगणित भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है. उन्होंने बीजगणित का पर्याप्त विकास किया और ज्योतिष के प्रश्नों को हल करने में उनका प्रयोग किया.

ज्योतिष विज्ञान भी विज्ञान और गणित पर ही आधारित हैं. ब्रह्मगुप्त ने चक्रीय चतुर्भुज में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.  ब्रह्मगुप्त ने बताया कि चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत होते हैं. 668 ई में ब्रह्मगुप्त की मृत्यु हो गई.

ब्रह्मगुप्त फ़ॉर्मूला :- Brahmagupta Formula

ब्रह्मगुप्त का सबसे महत्वपूर्ण योगदान चक्रीय चतुर्भुज पर है। उन्होने बताया कि चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत होते हैं। ब्रह्मगुप्त ने चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल निकालने का सन्निकट सूत्र (approximate formula) तथा यथातथ सूत्र (exact formula) भी दिया है।

Formula – Click Here 

जहाँ t = चक्रीय चतुर्भुज का अर्धपरिमाप तथा p, q, r, s उसकी भुजाओं की नाप है। हेरोन का सूत्र, जो एक त्रिभुज के क्षेत्रफल निकालने का सूत्र है, इसका एक विशिष्ट रूप है।

ब्रह्मगुप्त ने अपना दूसरा ग्रंथ-खंड 67 वर्ष की आयु में 665 ई. मे लिखा था। इसमें उन्होंने पांचांग बनाने का ज्ञान प्रदान किया है अंग्रेज विद्वान कोलबर्क ने सन 1817 मे ब्रह्मगुप्ता के ग्रंथ के कुत्तकध्यय (बीजगणित) का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद प्रकाशित किया था। तब यूरोप के विद्वानों को जाने की आधुनिक बीजगणित वास्तव मे भारतीय बीजगणित पर आधारित हैं ब्रह्मगुप्त ने ध्यान गुहोपदेश नामक ग्रंथ की भी रचना की थी। उनकी मृत्यु सन 680 ईसवी में हुई थी।

वास्तव में ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के बहुत बड़े आचार्य थे। आर्यभट के बाद भारत के पहले गणित शास्त्री ‘भास्कराचार्य प्रथम’ थे। उसके बाद ब्रह्मगुप्त हुए। ब्रह्मगुप्त खगोल शास्त्री भी थे और आपने ‘शून्य’ के उपयोग के नियम खोजे थे। इसके बाद अंकगणित और बीजगणित के विषय में लिखने वाले कई गणितशास्त्री हुए।

 

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