8TH SST

bihar board 8 class history notes | अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष

bihar board 8 class history notes | अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष

bihar board 8 class history notes | अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष

अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष
(1857 का विद्रोह)
पाठ का सारांश- अंग्रेजी शासन से भारत का हर तबका, हर वर्ग परेशान था। जमींदार, नवाब, राजा, किसान, व्यापारी, शिल्पकार, बुनकर, धनवान, गरीब, मजदूर सभी परेशान हो अपने-अपने तरीके से अंग्रेजी शासन का विरोध कर रहे थे। अंग्रेजों ने दरअसल समस्त भारतीयों का जीना हराम कर दिया था। किसी भी राज्य की सुरक्षा सेना पुलिस करती है। जब सेना-पुलिस भी किसी राजा या राज्य के खिलाफ बगावत कर दे तो क्या होगा? 1857 में अंग्रेजी सरकार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
भारतीय सैनिकों की शिकायतें-अंग्रेज भारतीय सैनिकों के साथ भी बहुत भेद-भाव करते थे। अंग्रेज सैनिकों की अपेक्षा भारतीय सैनिकों को बहुत कम पैसे मिलते थे। उन्हें ऊँचे पद भी नहीं दिये जाते थे। उनकी धार्मिक भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ बल्कि हमला तक किया जाता था । हिन्दू धर्म में उस समय समुद्र पार करके दूसरे देशों में जाना पाप माना जाता था। पर, 1856 में कानून बनाकर अंग्रेजों ने युद्ध हेतु भारतीय सैनिकों को दूसरे देश में जाकर लड़ने को अनिवार्य कर दिया जिससे उनका असंतोष और भड़क उठा था।
रही-सही कसर ‘इन्फील्ड राइफलें’ ने पूरी कर असंतोष की अग्नि को घधका दिया। इस राइफल के कारतूस पर कागज का एक खोल चढ़ा होता था। कारतूस भरने के पहले खोल को दाँत से काटकर हटाना पड़ता था। इस बात ने हिन्दू और मुसलमान दोनों सैनिकों को उत्तेजित कर दिया कि उन खोल को बनाने में गाय-सूअर व अन्य जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल हुआ है। जहाँ गाय हिन्दुओं के लिए पवित्र है वहीं सूअर मुसलमानों के लिए। दोनों धर्म के सैनिक भड़क गये कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं।
विद्रोह का आरंभ – मार्च, 1857 में बैरकपुर छावनी के एक युवा सिपाही मंगल पाण्डे ने नए कारतूस और राइफल लेने से इन्कार कर दिया। दबाव डालने पर उसने अपने अफसर पर हमला कर दिया। उसे गिरफ्तार करके तुरंत फाँसी पर लटका दिया गया। इसके कुछ दिनों के बाद मेरठ छावनी के 90 सैनिकों ने भी ऐसा ही किया। उन्हें भी गिरफ्तार कर 10 वर्षों की सजा सुनाई गई। इस घटना ने उस छावनी के सभी भारतीय सैनिकों को भड़का दिया। 10 मई, 1857 को उन्होंने पूरी छावनी में विद्रोह कर दिया। उन्होंने अपने साथियों को छुड़ाया, अपने अफसरों की हत्या कर दी और शास्त्रागार लूट लिये। उन्होंने फिर मेरठ शहर में अंग्रेजों और उनके समर्थकों के साथ सरकारी खजाने को लूट लिया। फिर वे दिल्ली पर कब्जा कर लिये।
इन विद्रोही सिपाहियों ने मुगल बादशाह को अपना नेता घोषित कर उन्हीं के निर्देशन में संघर्ष चलाने का फैसला लिया। शहरी लोगों के एक बड़े वर्ग के विद्रोहियों ने साथ दिया ।
बगावत फैलने लगी–दक्षिण और पश्चिम भारत को छोड़ पूरे देश में बगावत की आग फैलने लगी। असंतुष्ट राजाओं, नवाबों और जमींदारों ने भी विद्रोहियों का साथ दिया। उनकी उम्मीद थी कि अंग्रेज भारत से चले जाएंगे तो उन्हें अपना खोया हुआ रूतबा वापस मिल जाएगा । दिल्ली के बाद कानपुर, लखनऊ, झाँसी, आरा इत्यादि जगहों पर विद्रोहियों ने अंग्रेजी शासन को समाप्त कर दिया ।
1857 का विद्रोह और बिहार:–बाबू कुंवर सिंह 1857 के विद्रोह में बिहार और आस-पास के इलाके के नेता थे। उन्होंने अंग्रेजों को जमकर चुनौती दी। बहावी नेताओं, मौलवी विलायत अली और इनायत अली के विरोध करने पर अंग्रेजों ने इन्हें गिरफ्तार कर व अन्य बहावी नेताओं का कठोरता से दमन कर पटना शहर को तो बचा लिया पर आरा, जगदीशपुर पर बाबू कुंवर सिंह विजय प्राप्त कर ली। बाद में अंग्रेजों के हमले से घायल होकर बाबू कुंवर सिंह की मौत हो गयी। बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, बलिया आदि क्षेत्र भी अंग्रेजों के हाथ से निकल गये। कुँवर सिंह के निधन के बाद उनके भाई अमर सिंह ने छापामार युद्ध से अंग्रेजों को परेशान किया।
अंतत: वे भी गिरफ्तार कर लिये गये । उनपर मुकदमा चला। इस बीच उनका भी निधन हो गया।
विद्रोही क्या चाहते थे—विद्रोही चाहते थे कि अंग्रेज भारत से चले जाएँ और भारत में पूर्व की मुगलकालीन शांत राजव्यवस्था बरकरार हो जाए। जिन शासकों का शासन छिन गया उन्हें वापस प्राप्त हो जाए। व्यापारियों को स्वतंत्र रूप से व्यापार करने की आजादी हो । सभी लोग स्वतंत्र रूप से अपनी आजीविका चलाएँ।
विद्रोह को दबा दिया गया—अंग्रेजों ने दो वर्ष के अंदर इंग्लैंड से और फौज मंगाकर भारत में जगह-जगह विद्रोह को पूरी तरह से दबा दिया। मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बेटों को उसके सामने ही गोली मार दी गयी और जफर को रंगून भेज दिया गया जहाँ 1862 में उनकी मृत्यु हो गई। लखनऊ पर कब्जा कर लिया गया। बेगम हजरत महल नेपाल भाग गयी। कानपुर को भी अंग्रेजों ने जीत लिया। नाना साहब नेपाल चले गए । झांसी की रानी युद्ध करती हुई शहीद हो गयी। तात्या टोपे भी एक जमींदार के धोखे के कारण पकड़ लिए गए।
कहाँ बंदूक और कहाँ तलवार, बंदूक की जीत तो होनी ही थी। अंग्रेजों ने 1857 में उठे विद्रोह को 2 वर्षों के अंदर पूरी तरह से दबा-कुचल दिया ।
विद्रोह के बाद का वर्ष 1858 में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पास कर भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर सीधे ब्रिटेन की सरकार के शासन को स्थापित किया ।
भारत का प्रमुख प्रशासक ब्रिटिश सरकार के एक मंत्री को बनाया गया। इसे भारत सचिव कहा गया । भारत के सभी शासकों को भरोसा दिलाया गया कि भविष्य में उनके राज्य को उनसे छीना नहीं जाएगा।
यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ाकर 2:5 कर दी गयी। यानी प्रत्येक पाँच भारतीय सैनिक पर दो गोरे सिपाहियों को लगाया गया। यह भी तय किया गया कि अवध, बिहार, मध्य भारत एवं दक्षिण भारत से सिपाहियों की भर्ती की जगह पर गोरखा, सिक्ख और पठान सैनिकों की ज्यादा भर्ती की जाएगी।
इन तीन समूहों के सैनिकों ने विद्रोह को दबाने में कंपनी को काफी सहयोग दिया था।
पाठ के अन्दर आए प्रश्नों के उत्तर
1. गतिविधि:- आप इस अंग्रेज अधिकारी के कथन को भारतीय सैनिकों के संदर्भ में किस रूप में देखते हैं?
उत्तर-1856 में अंग्रेज अधिकारी गवर्नर लॉर्ड डलहौजी ने सत्य ही कहा था कि सेना के समाज से जुड़ाव को अनदेखा नहीं करना चाहिए । सेना भी समाज का ही हिस्सा है। यदि भारतीय जनता पर आघात किया जाता है तो सेना भी इससे अप्रभावित नहीं रह सकती। क्योंकि सेना भी समाज का ही एक अभिन्न अंग है, हिस्सा है। सैनिक भी किसी का बाप होता है, भाई, बेटा
या पति होता है।
2. गतिविधि–विद्रोही सैनिकों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता क्यों चुना होगा?
उत्तर-मुगलों ने भारतीय जनता का उस प्रकार से कभी शोषण नहीं किया जैसा अंग्रेजों ने किया । बल्कि मुगल शासकों में अधिकतर सभी भारतीय वर्ग को साथ लेकर चलने की समझदारी दिखाई थी। इसलिए विद्रोही सैनिकों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता चुना।
3. गतिविधि:-कुंवर सिंह के जीवन की कौन-सी बात आपको अच्छी लगी? बताएँ।
उत्तर–बाबू कुंवर सिंह ने बुढ़ापे की उम्र में भी विद्रोहियों का साथ दिया । देशभक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। उन्होंने वृद्ध अवस्था में भी अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। यह बात कुंवर सिंह के जीवन की मुझे सबसे अच्छी लगी।
4. गतिविधि–सोचें, अंग्रेजों ने सबसे पहले दिल्ली पर ही अधिकार क्यों जमाया?
उत्तर-दिल्ली भारत की सत्ता का केन्द्र था। दिल्ली पर अधिकार करने का सांकेतिक अर्थ था पूरे भारत पर अधिकार करना । इसीलिए अंग्रेजों ने सबसे पहले दिल्ली पर ही अधिकार जमाया ।
अभ्यास
आइए फिर से याद करें-
1. सही विकल्पों को चुनें।
(i) 1857 का विद्रोह कहाँ से आरम्भ हुआ?
(क) मेरठ
(ख) दिल्ली
(ग) झांसी
(घ) कानपुर
(ii) मंगल पाण्डे किस छावनी के युवा सिपाही थे?
(क) दानापुर-
(ख) लखनऊ
(ग) मेरठ
(घ) बैरकपुर
(iii) झांसी में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया?
(क) कुँवर सिंह
(ख) नाना साहब
(ग) लक्ष्मीबाई
(घ) बेगम हजरत महल
(iv) कुंवर सिंह कहाँ के जमींदार थे?
(क) पीर अली
(ख) विलायत अली
(ग) अहमदुल्ला
(घ) वजीबुल हक
उत्तर-(i) (क), (ii) (घ), (iii) (ग), (iv) (ख), (v) (ख)।

2. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ-
(क) जगदीशपुर                     (क) नाना साहब
(ख) कानपुर                          (ख) कुंवर सिंह
(ग) दिल्ली                             (ग) विष्णुभट्ट गोडसे
(घ) लखनऊ                           (घ) बहादुरशाह जफर
(ङ) मांझा प्रवास                     (ङ) बेगम हजरत महल

उत्तर
(क) जगदीशपुर                     (ख) कुँवर सिंह
(ख) कानपुर                          (क) नाना साहब
(ग) दिल्ली                            (घ) बहादुर शाह जफर
(घ) लखनऊ                         (ङ) बेगम हजरत महल
(ङ) माझा प्रवास                    (ग) विष्णु भट्ट गोडसे
आइए विचार करें-
(i) जमींदार अंग्रेजी शासन का विरोध क्यों कर रहे थे?
उत्तर-कई जमींदारों की जमींदारी अंग्रेजी शासन की वजह से छिन गई थी। उन्हें उम्मीद थी कि अंग्रेजों के भारत से चले जाने पर उनकी खोयी हुई जमींदारी वापस मिल जाएगी। इसलिए वे भी अंग्रेजी शासन का विरोध कर रहे थे।
(ii) सैनिकों में असंतोष के क्या कारण थे?
उत्तर-अंग्रेजी सेना में काम करने वाले भारतीय सिपाही खुश नहीं थे। उन्हें अंग्रेज सिपाहियों की अपेक्षा बहुत कम वेतन मिलता था। वे चाहे कितना भी अच्छा काम करें उन्हें हवलदार या सूबेदार से ऊंचा पद नहीं दिया जाता था। ये दोनों पद काफी छोटे होते थे। सेना के सारे पद अंग्रेजों के लिए सुरक्षित होते थे। सेना के लिए बनाए गए नियमों से भी वे खफा थे। नए नियमों के अनुसार भारतीय सैनिकों को दूसरे देशों के साथ होने वाले युद्धों के लिए समुद्र पार भी जाना होगा, ऐसा प्रावधान किया गया। यह कानून 1856 में बना था। हिन्दू धर्म में उस समय समुद्र पार जाना पाप माना जाता था।
(iii) बहादुर शाह जफर के समर्थन से क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर—बहादुर शाह जफर के समर्थन से विद्रोहियों का मनोबल बढ़ गया। अब मुगल सल्तनत की सत्ता भी सांकेतिक रूप से उनके साथ थी। बहादुर शाह जफर के समर्थन से विद्रोह की ज्वाला और भड़क उठी।
(iv) विद्रोह को दबाने में अंग्रेज क्यों सफल रहे?
उत्तर-विद्रोहियों के पास तलवारें थीं और परंपरागत हथियार जबकि अंग्रेजों के पास शक्तिशाली बंदूकें थीं। भला बंदूकों के आगे तलवार की क्या औकात/बंदूक की ताकत को जीतना ही था। फिर अंग्रेजों ने इंगलैंड से भारी फौजें मंगा ली थी जो बंदूकों और आधुनिक तोपों से लैस थीं। इस कारण अंग्रेज विद्रोह को दबाने में सफल रहे।
(v) 1857 के विद्रोह में कुंवर सिंह का क्या योगदान रहा?
उत्तर–बाबू कुँवर सिंह ने बिहार और उत्तर प्रदेश में विद्रोह की ज्वाला को भड़का दिया। अंग्रेजों ने उनसे जगदीशपुर की जमींदारी छीन ली थी। उन्होंने विद्रोहियों का साथ लेकर अपनी जमींदारी वापस पा ली और इस प्रकार से अन्य वैसे जमींदारों और शासकों के लिए प्रेरणा-स्रोत बने जिनकी सत्ता अंग्रेजों ने छीन ली थी। फिर अन्य नवाब व जमींदार भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुलकर विद्रोह में शामिल हो गए।
(vi) विद्रोहियों के उद्देश्यों को अपने शब्दों में व्यक्त करें।
उत्तर-विद्रोही चाहते थे कि भारत से अंग्रेजी शासन का अंत हो जाए । अंग्रेज मुक्त भारत उनका उद्देश्य था। साथ ही वे चाहते थे कि अंग्रेजों की बदनीतियों का अंत हो जाए, मुगल सल्तनत  के दौर की शांति भारत में लौट आए। उन्होंने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि जमींदारों को उनकी छीनी गई जागीर लौटा दी जाएगी। व्यापारियों को सभी वस्तुओं के व्यापार की आजादी होगी। भारतीयों को सरकारी सेवा में ऊंचा पद मिलेगा। पंडितों एवं मौलबियों के धर्मों की भी रक्षा का आश्वासन दिया गया। बुनकरों एवं शिल्पकारों को भी सरकारी सहायता का भरोसा दिया गया।
(vii) विद्रोह के बाद अंग्रेजी शासन के स्वरूप में क्या बदलाव आया?
उत्तर-विद्रोह के बाद 1858 में ब्रिटिश संसद ने कानून पास करते हुए भारत से ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन को समाप्त कर सीधे ब्रिटेन की सरकार के शासन को स्थापित किया। भारत के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में उनके राज्य को उनसे छीना नहीं जाएगा।
सैनिक ढांचे में बदलाव करते हुए यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गयी। उनका अनुपात 2:5 हो गया यानी प्रत्येक पाँच भारतीय सैनिकों पर दो गोरे सिपाहियों को लगाया गया। अवध, बिहार, मध्य भारत एवं दक्षिण भारत से सिपाहियों की भर्ती करने की जगह गोरखा, सिक्ख और पठान का ज्यादा संख्या में भर्ती किया गया। इन तीन समूहों के सैनिकों ने विद्रोह को दबाने में कम्पनी को काफी सहयोग दिया था। यह भी तय किया उन्होंने कि भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन के साथ छेड़-छाड़ नहीं की जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *