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bihar board 12 biology | पर्यावरण के मुद्दे

bihar board 12 biology | पर्यावरण के मुद्दे

पर्यावरण के मुद्दे 

[ ENVIRONMENT ISSUES ]
    महत्त्वपूर्ण तथ्य
•प्रदूषण – प्रदूषण वायु , भूमि , जल या मृदा के भौतिक , रासायनिक या जैवीय अभिलक्षणों का एक अवांछनीय परिवर्तन है ।
•प्रदूषण – अवांछनीय परिवर्तन उत्पन्न करने वाले कारकों को प्रदूषक करता है।
• शैवाल प्रस्फुटन – जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है इसे शैवाल प्रस्फुटन कहते हैं। •त्वरित रपाषण – मनुष्य के क्रियाकलापों , जैसे उद्योगों और घरों के बहिःस्राव काल प्रभावन प्रक्रम मैं मूलतः तेजी ला सकते हैं । इस प्रक्रिया को संवर्ध या त्वरित सुपोषण कहते हैं ।
• ई वस्ट्स – ऐसे कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट ( ई – वस्ट्स ) कहलाते हैं ।
• अंजोर छिद्र – ऐंटार्कटिक क्षेत्र में ओजोन की परत काफी पतली हो गई है जिसे सामान्यतः आजोन छिद्र कहा जाता है ।
•हिम अंधता — आँखों में यूवी – बी विकिरण के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है । जिसे हिम अंधता मोतियाबिन्द कहते हैं ।
•मॉट्रियल प्रोटोकॉल – ओजोन अवक्षय के हानिकर प्रभाव को देखते हुए सन् 1987 में मॉट्रिपल ( कनाडा ) में एक अंतराष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर हुए जिसे मॉट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है ।
•झूम खेती – लाटो और जलाओ कृषि जिसे आमतौर पर भारत के उत्तर – पूर्वी राज्यों में झूम खेती कहा जाता है ।
•चिपको आंदोलन – सन् 1974 में ठेकेदारों द्वारा काटे जा रहे वृक्षों की रक्षा के लिए इससे चिपक कर स्थानीय महिलाओं ने काफी बहादुरी का परिचय दिया । इसे चिपको आंदोलन कहा गया ।
NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
अभ्यास ( Exercises )
1. घरेलू वाहितमल के विभिन्न घटक क्या हैं ? वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभावों की चर्चा करें ।
उत्तर – घलू वाहितमल के विभिन्न घटक इस प्रकार हैं-
( i ) निलंबित ठोस , जैसे बालू , गाद और चिकनी मिट्टी ।
( 2 ) कोलॉइडी पदार्थ , जैसे मल पदार्थ ( फीकल मैटर ) , जीवाणु , वस्त्र और कागज के रेशे ।
( 3 ) विलीन पदार्थ , जैसे पोषक ( नाइट्रेट , अमोनिया , फॉस्फेट , सोडियम , कैल्सियम ) ।
चित्र : नदी के कुछ महत्त्वपूर्ण लक्षणों पर वाहितमल विसर्जन का प्रभाव ।
( a ) चित्र में कुछ परिवर्तन दर्शाए गए हैं जिन्हें नदी में वाहितमल के विसर्जन के बाद देखा जा सकता है। अभिवाही जलाशय में जैव पदार्थ के जैव निम्नीकरण से जुड़े सूक्ष्म जीव ऑक्सीजन की काफी मात्रा का उपयोग करते हैं । इसके फलस्वरूप वाहितमल विसर्जन स्थल पर भी अनुप्रवाह जल में घुल्य ऑक्सीजन की मात्रा में तेजी से गिरावट आती है और इसके कारण मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों की मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है ।
( b ) जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है इसे शैवाल प्रस्फुटन ( अल्गल ब्लूम ) कहा जाता है । इसके कारण जलाशयों का रंग विशेष प्रकार का हो जाता है । शैवाल प्रस्फुटन के कारण जल की गुणवत्ता घट जाती है और मछलियाँ मर जाती हैं । कुछ प्रस्फुटनकारी शैवाल मनुष्य और जानवरों के लिए अतिशय विषैले होते हैं ।
( c ) नीलाशोण ( मोव ) रंग के सुंदर फूल जलाशयों में काफी चिताकर्षक आकार के प्लावी पौधों पर होते हैं । ये पौधे अपने सुंदर फूलों के कारण भारत में उगाए गये थे , लेकिन अपनी अतिशय वृद्धि के कारण तबाही मचा रहे हैं । ये पौधे हटाने की क्षमता से कहीं अधिक तेजी से वृद्धि कर , जलमार्गों को अवरुद्ध कर रहे हैं ।
2. आप अपने घर , विद्यालय या अपने अन्य स्थानों के भ्रमण के दौरान जो अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं , उनकी सूची बनाएँ । क्या आप उन्हें आसानी से कम कर सकते हैं ? कौन से ऐसे अपशिष्ट हैं जिनको कम करना कठिन या असंभव होगा ?
उत्तर – घरों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के नाम इस प्रकार हैं-
( i ) कागज , ( ii ) सब्जियों तथा फलों के छिलके , ( iii ) प्लास्टिक की थैलियाँ , ( iv ) ब्लेड , ( v ) वस्त्र , ( vi ) प्लास्टिक और शीशे के अपशिष्ट और ( vii ) धातु के टुकड़े आदि । स्कूल से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के नाम इस प्रकार हैं- ( i ) कागज , ( ii ) फलों के छिलके , ( iii ) पेंसिल के टुकड़े , ( iv ) बॉलपेन या जेल पेन के रिफिल आदि ।
   भ्रमण के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट पदार्थों के नाम इस प्रकार हैं- ( i ) कागज , ( ii ) प्लास्टिक की थैलियाँ , बोतल आदि । ( iii ) फल एवं दूसरे खाने योग्य खाद्य पदार्थों के शेष बचे पदार्थ एवं ( iv ) वस्त्र आदि ।
     नहीं , इन अपशिष्ट पदार्थो को कम करना बहुत ही मुश्किल कार्य है । हम केवल सब्जियों और फलों के छिलकों , पोलीथीन थैलियों और कागज आदि को कम कर सकते हैं ।
3. वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें । वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने वाले उपाय क्या हैं ?
उत्तर – वैश्विक उष्णता में वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं-
( i ) जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग , वृक्षान्मूलन तथा भूमि प्रयोग में परिवर्तन के कारण CO2 , के प्रतिशत में वृद्धिा
( ii ) ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह के ताप का बढ़ जाना ।
( iii ) मानव जनसंख्या में वृद्धि के कारण दनों का कटना है ।
  वैश्विक उष्णता के प्रभाव-
( i ) CO2 की सांद्रता में वृद्धि से प्रकाश – र श्लेषण की दर में वृद्धि होगी जिससे स्टोमेटा के परिवहन क्षमता में कमी आती है ।
( ii ) भूमंडलीय औसत तापक्रम में वृद्धि से ध्रुवीय बर्फ पिघलेगी जो बाढ़ तथा सूखे को बढ़ाएगी । कुछ निम्न भूमि पानी में डूब जाएगी ।
( iii ) तापक्रम में परिवर्तन से बहुत – सी जातियाँ ध्रुव की ओर स्थानांतरित हो जाएंगी । ताप संवेदी वृक्षों की बड़ी संख्या लुप्त हो जाएगी और उनका स्थान छोटी झाड़ियाँ ले लेंगी ।
( iv ) तापक्रम में वृद्धि अनेक पादप रोग तथा रोगवाहकों को जन्म देंगे तथा खरपतवार में वृद्धि होगी । इस प्रकार कुल उत्पादन कम हो जाएगा । वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने वाले उपाय- ( i ) जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करके ,
( ii ) ऊर्जा दक्षता में सुधार करके ,
( iii ) वनोन्मूलन को कम करके ,
( iv ) वृक्षारोपण और मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करके तथा
( v ) वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयास करके।
    हम वैश्विक उष्णता वृद्धि को कुछ सीमा तक नियंत्रित कर सकते हैं ।
4. कॉलम अ और ब में दिए गए पदों का मिलान करें-
5. निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें ( क ) सुपोषण ( यूटोफिकेशन )
( ख ) जैव आवर्धन ( बायोलॉजिकल मैग्निफिकेशन ) ।
( ग ) भौमजल ( भूजल ) का अवक्षय और इसकी पुनर्पूर्ति के तरीके ।
उत्तर- ( क ) सुपोषण ( यूट्रोफिकेशन ) -सुपोषण झील का प्राकृतिक काल प्रभावन दर्शाता है ‘ बनी झील अधिक उम्र की हो जाती है । यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है । जलवायु , झील का आकार और अन्य कारकों के अनुसार झील का यह प्राकृतिक काल प्रभावन हजारों वर्षों में होता है । लेकिन मनुष्य के क्रियाकलाप , जैसे उद्योगों और घरों के बहिःस्रावकाल प्रधापन में मूलतः तेजी ला सकते हैं । इस प्रक्रिया को त्वरित सुपोषण कहा जाता है । गत शताब्दी में पृथ्वी के कई भागों की झील का वाहितमल और कृषि तथा औद्योगिक अपशिष्ट के कारण तीव्र मुजोषण हुआ है । इसके मुख्य संदूषक नाइट्रेट और फॉस्फोरस हैं जो पौधों के लिए पोषक का कार्य करते हैं । इनके कारण शैवाल की वृद्धि अति उद्दीपित होती है जिसके कारण से अरमणीक मलफेन ( स्कम ) बनते हैं तथा अरुचिकर गंध निकलती है । ऐसा होने से जल में विलीन ऑक्सीजन जो अन्य जल – जीवों के लिए अनिवार्य ( वाइटल ) है , समाप्त हो जाती है । साथ ही झील में बहकर आने वाले अन्य प्रदूषक संपूर्ण मत्स्य समष्टि विषाक्त कर सकते हैं । जिनके अपघटन के अवशेष से जल में विलीन ऑक्सीजन की मात्रा और कम हो जाती है । इस प्रकार झील के जलीय जीव वास्तव में घुटकर मर सकती हैं । ( ख ) जैव आवर्धन ( बायोमैग्निफिकेशन ) -उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य श्रृंखला जैव आवर्धन कर सकती है । जैव आवर्धन का अर्थ है , क्रमिक पोश्व स्तर पर आविषाक्त की सांद्रता में वृद्धि का होना । इसका कारण है जीव द्वारा संग्रहित अविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चतर पोषण स्तर पर पहुंच जाता है । यह परिघटना पारा एवं डीडीटी के लिए सुविदित है । इस प्रकार क्रमिक पोषण स्तरों पर डीडीटी की सांद्रता बढ़ जाती है । यदि जल में यह सांदता 0.003 पीपीबी ( ppb = पार्ट्स पर बिलियन ) से शुरू होती है तो अंत में जैव आवर्धन के द्वारा मत्स्यभक्षी पक्षियों में बढ़कर 25 पीपीएम हो जाती है । पक्षियों में डीडीटी की उच्च सांद्रता कैल्सियम उपापचय को नुकसान पहुंचाती है जिसके कारण अंड – कवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जिसके कारण पक्षी समष्टि की संख्या में कमी हो जाती है ।
( ग ) भौमजल ( भूजल ) का अवक्षय और इसकी पुनर्पूर्ति के तरीके – पानी नवीकरणीय स्त्रोत है फिर भी यह आवश्यक हो गया है कि हम इसकी पुनर्पूर्ति करें । भौमजल ( भूजल ) का स्तर सिंचाई के कारण दिन पर दिन गिरता जा रहा है ।
    बड़े शहर में लाखों लोग रहते हैं जो कि 100 या 200 वर्ग किमी . के क्षेत्र को घेरे हुए हैं । उन लाखों लोगों तक पीने के स्वच्छ पानी की आपूर्ति करना बहुत ही मुश्किल कार्य हो रहा है । इसका कारण यह है कि उस क्षेत्र में भूजल का स्तर बहुत ही नीचे गिर चुका है । भूजल स्तर में गिरावट का कारण है तालाबों में औद्योगिक अपशिष्टों का जमघट और अपशिष्टों के कारण भूजल रिसाव के स्रोतों गड्ढों में अपशिष्ट पदार्थों का जम जाना , कम वर्षा होना , वनों का समाप्त होना आदि ।
भूजल के अवक्षय की पुनर्पूर्ति निम्न उपायों द्वारा की जा सकती है-
जिन क्षेत्रों में भूजल का स्तर गिर चुका है उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार की फसलें उगानी चाहिए जिनमें कम पानी का प्रयोग होता हो ; हम अपने दैनिक कार्यो के लिए कम से कम पानी का प्रयोग करें ; वर्षा के पानी को एकत्रित करके उसका प्रयोग करें और वर्षा के पानी को मृदा में रिसने दें । गड्ढ़ों के रिसाव की जाँच करें ; औद्योगिक अपशिष्टों के कारण तालाबों में इकट्ठे हो चुके मलवे की सफाई करें जिनसे पानी का रिसाव मृदा में जा सके ।
6. एंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं ? पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार प्रभाव पड़ेंगे ?
उत्तर – ऐंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद इसलिए बनते हैं क्योंकि यह दक्षिणी गोलार्द्ध का अंतिम सिरा है और यहाँ पर ओजोन की परत पतली है । समताप मंडल में क्लोरोफ्लोरोकार्बनों के जुड़ते रहने के कारण उनका ओजोन स्तर पर स्थायी और सतत् प्रभाव पड़ता है । यद्यपि समतापमंडल में ओजोन का अवक्षय विस्तृत रूप से होता रहता है लेकिन यह अवक्षय एंटार्कटिक क्षेत्र में विशेषरूप से अधिक होता है । इसके फलस्वरूप यहाँ काफी बड़े क्षेत्र में ओजोन की परत काफी पतली हो गई है जिसे सामान्यतः ओजोन छिद्र कहा जाता है ।
 पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर प्रभाव – पराबैंगनी विकिरणों के बढ़ने से डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और उत्परिवर्तन हो सकता है । इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं , इसकी कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं । हमारे आँख का स्वच्छमंडल ( कॉर्निया ) यूवी – बी विकिरण का अवशोषण करता है । इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है । जिसे हम अंधता ( स्नो – ल्माइंडनेश मोतियाबिन्द ) आदि कहा जाता है ।
7. वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और समुदायों की भूमिका की चर्चा करें ।
उत्तर – भारत में इसका लंबा इतिहास है । सन् 1731 में राजस्थान में जोधपुर नरेश ने एक नए महल के निर्माण के लिए अपने एक मंत्री से लकड़ी का इंतजाम करने के लिए कहा । राजा के मंत्री और कर्मी एक गाँव , जहाँ बिश्नोई परिवार के लोग रहा करते थे , के पास के जंगल में वृक्ष काटने के लिए गए । विश्नोई परिवार की अमृता नामक एक महिला ने अद्भुत साहस का परिचय दिया । वह महिला पेड़ से चिपक कर खड़ी हो गई और उसने राजा के लोगों से कहा कि वृक्ष को काटने से पहले मुझे काटने का साहस करो । उसके लिए वृक्ष की रक्षा अपने जीवन से कहीं अधिक बढ़कर है । दुःख की बात है कि राजा के लोगों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और पेड़ के साथ – साथ अमृता देवी को भी काट दिया । उसके बाद उसकी तीन बेटियों तथा विश्मोई परिवार के सैकड़ों लोगों ने वृक्ष की रक्षा में अपने प्राण गवां दिए । इतिहास में कहीं भी इस प्रकार की प्रतिबद्धता की कोई मिसाल नहीं है जबकि पर्यावरण की रक्षा के लिए मनुष्य ने अपना बलिदान कर दिया हो । हाल ही में , भारत सरकार ने अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार देना शुरू किया है । यह पुरस्कार ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे व्यक्तियों या समुदायों को दिया जाता है जिन्होंने वन्यजीवों की रक्षा के लिए अद्भुत साहस और समर्पणा दिखाया हो । हिमालय के गढ़वाल में चिपको आंदोलन के बारे में हमने सुना है । सन् 1974 में ठेकेदारी द्वारा काटे जा रहे वृक्षों की रक्षा के लिए इससे चिपककर स्थानीय महिलाओं ने काफी बहादुरी का परिचय दिया । विश्वभर में लोगों ने ‘ चिपको आंदोल ‘ की सराहना की है ।
    स्थानीय समुदायों की भागीदारी के महत्त्व को महसूस करते हुए भारत सरकार ने 1980 के दशक में संयुक्त वन प्रबंधन ( ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट / जे एफ एम ) लागू किया जिससे कि स्वकीय समुदायों के साथ मिलकर काफी अच्छी तरह से वनों की रक्षा और प्रबंधन का कार्य किया जा सके । वनों के प्रति उनकी सेवाओं के बदले ये समुदाय विविध प्रकार के वनोत्पाद ( फॉरेन्ट प्रोडक्ट्स ) जैसे – फल , गोंद , रबड़ , दवाई आदि प्राप्त कर लाभ उठाते हैं । इस प्रकार का संरक्षण निर्वहनीय तरीके ( सस्टेनेबल ) से किया जा सकता है ।
8. पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे ?
उत्तर – निम्नलिखित उपायों द्वारा हम पर्यावरणीय प्रदूषण पर नियंत्रण पा सकते हैं
( i ) ऐसे ईंधन या कच्चे माल का चुनाव करना चाहिए । जो कम प्रदूषण पैदा करता हो ।
( ii ) उत्पादन की ऐसी प्रक्रिया या क्रियाकलाप का चुनाव करना चाहिए , जिससे कम प्रदूषण पैदा होता है ।
( iii ) फिल्टर , थैलियाँ तथा स्थिर विद्युतिकी अवक्षेपकों ; जैसे – कार्य कुशल प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना करनी चाहिए जो निलंबित कणिकीय पदार्थ को नियंत्रण में रख सकें ।
( iv ) गैस प्रदूषण के लिए परिवर्तक के अवशोषण टॉवर का प्रयोग करना चाहिए ।
( v ) प्रदूषकों को पर्याप्त ऊंचाई पर छोड़ना चाहिए , जहाँ से हवा के कारण वे तनु हो सकें ।
( vi ) औद्योगिक क्षेत्रों के चारों तरफ वनस्पति लगाई जाएँ ।
( vii ) वनों का संरक्षण करना चाहिए ।
( viii ) वृक्षों के बिना कारण काटने पर प्रतिबंध लगना चाहिए ।
( ix ) पुनः वृक्षारोपण करना चाहिए ।
( x ) पीड़क , कीटनाशकों को कम से कम प्रयोग करना चाहिए । जैव नियंत्रण विधि अपनानी चाहिए। ( xi ) मृदा अपरदन रोकने के लिए घास , छोटे पौधे तथा वृक्ष उगाने चाहिए ।
( xii ) ठोस पदार्थों को गलाकर या चक्रीकरण द्वारा नवीन वस्तुएं बनानी चाहिए ।
( xiii ) शोर न करने वाली मशीनों का निर्माण करना चाहिए ।
( xiv ) अपशिष्ट पदार्थ जिनका दहन नहीं हो सकता उन पदार्थो से निचली भूमि या गड्डों को भरना चाहिए ।
( xv ) तालाबों , झीलों तथा जलधाराओं में वाहितमल न डालें तथा कपड़े आदि न धोएँ । ( xvi ) प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर सख्त कार्यवाही हों ।
( xv ) पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए कठोर नियम बनाना चाहिए ।
9. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें
( क ) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट ,
( ख ) पुराने बेकार जहाज और ई – अपशिष्ट , ( ग ) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट ।
उत्तर- ( क ) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट — न्यूक्लीय अपशिष्ट से निकलने वाला विकिरण जीवों के लिए बेहद नुकसानदेह होता है क्योंकि इसके कारण अति उच्चदर से उत्परिवर्तन ( म्यूदेशन ) होते हैं । न्यूक्लीय अपशिष्ट विकिरणे की ज्यादा मात्रा ( डोज ) घातक यानी जानलेवा ( लीथल ) होती है लेकिन कम मात्रा के कारण कई विकार होते हैं । इसका सबसे अधिक घातक रूप कैंसर है । इसलिए न्यूक्लीय अपशिष्ट अत्यंत प्रभावकारी प्रदूषक हैं और इसके उपचार में बनायक सावधानी की जरूरत है । यह सिफारिश की गई है कि परवर्ती भंडारण का कार्य उचित रूप से कवचित पात्रों में महानों के नीचे लगभग 500 मीटर की गहराई में पृथ्वी में गाड़कर करना चाहिए । यद्यपि , निपटान को इस विधि के बारे में भी लोगों का कड़ा विरोध है ।
( ख ) पुराने बेकार जहाज और ई – अपशिष्ट – ऐसे कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट ( ई – वेस्ट्स ) कहलाते हैं । ई – अपशिष्ट को लैंडफिल्स में गाड़ दिया जाता है या जलाकर भस्म कर दिया जाता है । विकसित देशों में उत्पादित ई – अपशिष्ट का आधे से अधिक भाग विकासशील देशों , खासकर चीन , भारत तथा पाकिस्तान में निर्यात किया जाता है जबकि तांबा , लोहा , सिलिकॉन , निकल और स्वर्ण जैसे धातु पुनश्चक्रण ( रीसाइक्लिंग ) प्रक्रियाओं द्वारा प्राप्त किए जाते हैं । विकसित देशों में ई – अपशिष्ट के पुनश्चक्रण की सुविधाएँ तो उपलब्ध हैं ; लेकिन विकासशील देशों में यह कार्य प्रायः हाथ से किया जाता है । इस प्रकार इस कार्य से जुड़े कर्मियों पर ई अपशिष्ट में मौजूद विषैले पदार्थों का प्रभाव पड़ता है । ई – अपशिष्ट के उपचार का एक मात्र हल पुनश्चक्रण है , यदि इसे पर्यावरण – अनुकूल या हितैषी तरीके से किया जाए ।
( ग ) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट – ठोस अपशिष्ट में वे सभी चीजें शामिल हैं जो कूड़े – कचरे में फेंकी जाती है । नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट में घरों , कार्यालयों , भंडारों , विद्यालों आदि से रद्दी में फेंकी गई सभी चीजें आती हैं जो नगरपालिका द्वारा इकट्ठा की जाती हैं और उनका . निपटान किया जाता हैं । नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट में आमतौर पर कागज , खाद्य अपशिष्ट , कांच , धातु , रबड़ , चमड़ा , वस्त्र आदि होते हैं । इनको जलाने से अपशिष्ट के आयतन में कमी आ जाती है । लेकिन यह सामान्यतः पूरी तरह जलता नहीं है और खुले में इसे फेंकने से यह चूहों और मक्खियों के लिए प्रजनन स्थल का कार्य करता है । सैनिटरी लैंडफिल्स खुले स्थान में जलाकर ढेर लगाने के बदले अपनाया गया था । सैनिटरी लैंडफिल में अपशिष्ट को संहनन ( कॉम्पैक्शन ) के बाद गड्ढा या खाई में डाला जाता है और प्रतिदिन धूल – मिट्टी ( डर्ट ) से ढंक दिया जाता है ।
    हमारे द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-
( क ) जैव निम्नीकरण योग्य ( वायोडिग्रेडेबल ) , ( ख ) पुनश्चक्रण योग्य और
( ग ) जैव निम्नीकरण अयोग्य ।
   यह महत्त्वपूर्ण है कि उत्पन्न सभी कचरे की छटाई की जाए । जिस कचरे का प्रयोग या पुनश्चक्रण किया जा सकता है उसे अलग किया जाए । कचरावीन या गुदड़िया ( रैंग पिकर ) पुनश्चक्रण किए जाने वाले पदार्थों को अलग कर एक बड़ा काम करता है । जैव निम्नीकरणीय पदार्थों को जमीन में गहरे गड्ढे में रखा जा सकता है और प्राकृतिक रूप में अपघटन के लिए छोड़ दिया जाता है । इसके पश्चात् केवल अजैव निम्नीकरण निपटान के लिए बच जाता है । हमारा मुख्य लक्ष्य होना चाहिए कि कचरा कम उत्पन्न हो लेकिन इसके स्थान पर हम लोग अजैवनिम्नीकरणीय उत्पादों का प्रयोग अधिक करते जा रहे हैं । पूरे देश में राज्य सरकारें प्रयास कर रही हैं कि प्लास्टिक का प्रयोग न हो और इनके बदले पारितंत्र – हितैषी या मैत्री पैकिंग का प्रयोग हो । हम जब सामान खरीदने जाएं तो कपड़े का थैला या अन्य प्राकृतिक रेशे के बने कैरी – बैग लेकर जाएँ और पॉलिथीन के बने थैले को लेने से मना करें ।
10. दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास किए गए ? क्या दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ ?
उत्तर – वाहनों की संख्या काफी अधिक होने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर देश में सबसे अधिक है । यहाँ पर वाहनों की संख्या गुजरात और पश्चिम बंगाल में कुल मिलाकर जितने वाहन हैं या उससे अधिक है । सन् 1990 के एक आंकड़ों के अनुसार दिल्ली का स्थान विश्व के 41 सर्वाधिक प्रदूधित नगरों में चौथा है । दिल्ली में वायु प्रदूषण का मामला इतना खतरनाक हो गया कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका ( पी.आई.एल. ) दायर की गई । सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी कड़ी निंदा की गई और न्यायालय ने भारत सरकार को एक निश्चित अवधि में उचित उपाय करने का आदेश दिया साथ ही , यह भी आदेश दिया कि सभी सरकारी वाहनों यानी बसों में डीजल के स्थान पर संपीडित प्राकृतिक गैस ( सी . एन . जी ) का प्रयोग किया जाए । वर्ष 2002 के अंत तक दिल्ली की सभी बसों को सीएनजी में परिवर्तित कर दिया गया । वाहन में सीएनजी सबसे अच्छी तरह जलता ( bum ) है और बहुत ही कम मात्रा में जलने से बचता है जबकि डीजल या पेट्रोल के मामले में ऐसा नहीं है । इसके अलावा यह पेट्रोल या डीजल से सस्ता है । चोर इसकी चोरी नहीं कर सकता और पेट्रोल तथा डीजल की तरह इसे अपमिश्रित नहीं किया जा सकता । सीएनजी में परिवर्तित करने में मुख्य समस्या इसे वितरण स्थल / पंप तक ले जाने के लिए पाइप लाइन बिछाने की कठिनाई को लेकर और इसकी अबांधित सप्लाई करने की है । साथ ही साथ दिल्ली में वाहन प्रदूषण को कम करने के जो अन्य उपाय किए गए हैं , वे हैं पुरानी गाड़ियों को धीरे – धीरे हटा देना , सीसा रहित पेट्रोल और डीजल का प्रयोग , कम गंधक ( सल्फर ) युक्त पेट्रोल और डीजल का प्रयोग , वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तकों का प्रयोग , वाहनों के लिए कठोर प्रदूषण स्तर लागू करना आदि । दिल्ली में किए गए इन प्रयासों के कारण यहाँ की वायु की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ । एक आकलन के अनुसार सन् 1997-2005 तक दिल्ली में CO2 और So2 , के स्तर में काफी गिरावट आई है ।
11. निम्नलिखित के बारे में चर्चा करें
( क ) ग्रीन हाउस गैसें ।
( ख ) उत्प्रेरक परिवर्तक ( कैटालिटिक कनवर्टर ) । ( ग ) पराबैंगनी – बी ( अल्ट्रावायलेट बी ) ।
उत्तर- ( क ) ग्रीन हाउस गैसें – कार्बन डाइऑक्साइड , मिथेन , जलवाष्प , नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोराफ्लोरो कार्वन आदि ग्रीन हाउस गैसें हैं । ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी से दीर्घ तरंग ( अवरक्त ) विकिरण अवशोषित करती हैं और पुनः पृथ्वी की ओर उत्सर्जित करती हैं । यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक पृथ्वी की ओर उत्सर्जित करने हेतु दीर्घ तरंग विकिरण शेष नहीं रह जाता ।
( ख ) उत्प्रेरक परिवर्तक ( कैटालिटिक कनवर्टर ) -उत्प्रेरक परिवर्तक ( कैटालिटिक कनवर्टर ) में कीमती धातु , प्लैटिनम – पैलेडियम और रेडियम लगे होते हैं जो उत्प्रेरक ( कैटेलिस्ट ) का कार्य करते हैं । ये परिवर्तक स्वचालित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैले गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं । जैसे ही निर्वात उत्प्रेरक परिवर्तक से होकर गुजरता है अद्ध हाइड्रोकार्बनडाइऑक्साइड और जल में बदल जाता है और कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रिक ऑक्साइड क्रमशः कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है । उत्प्रेरक परिवर्तक युक्त मोटर वाहनों में सीसा रहित ( अनलेडेड ) पेट्रोल का उपर्योग करना चाहिए , क्योंकि सीसा युक्त पेट्रोल उत्प्रेरक को अक्रिय करता है ।
( ग ) पराबैंगनी – बी ( अल्ट्रावायलेट – बी ) -पराबैंगनी – बी ( यूवी – बी ) की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य ( बेवलेंथ ) युक्त पराबैंगनी ( यूवी ) विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा लगभग पूरा का पूरा अवशोषित हो जाता है बशर्ते कि ओजोन स्तर ज्यों का त्यों रहे । लेकिन यूबी – बी डीएनए को क्षतिग्रस्त करता है और उत्परिवर्तन हो सकता है । इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं , इसकी कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं । हमारे आँख का स्वच्छमंडल ( कॉर्निया ) यूवी – बी विकिरण को अवशोषण करता है । इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है । जिसे हिम अंधता ( स्नो-ल्माइंडनेश ) मोतियाबिन्द आदि कहा जाता है। इसके उद्भासन से कॉर्निया स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है ।
परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
1. सूर्य की रोशनी से पराबैंगनी विकिरण की प्रक्रिया होती है जिसमें उत्पादित होती है
( a ) CO
( b ) SO2
( c ) 03
( d ) फ्लोराइड
उत्तर- ( c ) 03
2. इनमें से कौन वायु प्रदूषक नहीं है
( a ) CO
( b ) CO2
( c ) SO2
( d ) हाइड्रोकार्बन
उत्तर- ( a ) CO
3. इनमें से कौन सबसे अधिक ऊर्जा के स्रोत हैं लेकिन प्रदूषक नहीं हैं
( a ) नाभिकीय ऊर्जा
( b ) सौर ऊर्जा
( c ) कोयला
( d ) ऐल्युवियल मृदा
उत्तर- ( b ) सौर ऊर्जा ।
4. ताजमहल किसके द्वारा नष्ट हो सकता है ?
( a ) यमुना नदी में बाढ़ से
( b ) संगमरमर के उच्च ताप पर अपघटन से
( c ) मथुरा के तेल शोधक कारखाने से निकली SO2 से
( d ) उपरोक्त सभी से
उत्तर- ( c ) मथुरा के तेल शोधक कारखाने से निकली SO2 से ।
5. मुख्य वायु प्रदूषक हैं
( a ) CO
( b ) CO2
( c ) N2
( d ) गंधक
उत्तर- ( b ) CO2
6. मुम्बई और कोलकाता के शहरों में मुख्य प्रदूषक हैं
( a ) CO,SO2
( b ) ओजोन
( c ) हाइड्रोकार्बन और गर्म वायु
( d ) शैवालों के बीजाणु
उत्तर- ( a ) CO , SO2
7. प्रकाश रासायनिक धूम में उपस्थित शक्तिशाली तत्त्व जो आँखों में जलन पैदा करते हैं
( a ) नाइट्रिक ऑक्साइड
( b ) SO2
( c ) PAN
( d ) ओजोन
उत्तर- ( a ) PAN
8. वायुमंडल में CO2 की सांद्रता में वृद्धि हानिकारक है क्योंकि यह
( a ) धूम बनाता है ?
( b ) ताप अवशोषित करता है
( c ) श्वसन संबंधी रोग उत्पन्न करता है
( d ) त्वचा रोग उत्पन्न करता है
उत्तर- ( b ) ताप अवशोषित करता है ।
9. समताप मंडल में ( UQ ) विकिरण अवशोषित करता है
( a ) O2
( b ) O3
( c ) SO2
( d ) Ar
उत्तर- ( b ) O2
10. ऑटोमोबाइल निर्वातक में उपस्थित सर्वाधिक हानिकारक कणकीय पदार्थ है
( a ) मरकरी
( b ) लेड
( c ) कैडमियम
( d ) आर्सेनिक
उत्तर- ( b ) लेड
. II . रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. भारत सरकार ने………. में जल प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण अधिनियम पारित किया है ।
2. घरेलू मल में मुख्य रूप से……….. निम्नीकरणीय कार्वनिक पदार्थ होते हैं जिनका अपघटन आसानी से होता है ।
3. उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य श्रृंखला ………… कर सकते हैं ।
4. झील में बहकर आने वाले प्रदूषक………..समष्टि को विषाक्त कर सकते हैं ।
उत्तर -1 . 1972 , 2. जैव , 3. जैव आवर्धन , 4. संपूर्ण मत्स्य ।
III . निम्नलिखित में से कौन – सा कथन सत्य है और कौन – सा असत्य है
1. औद्योगिक अपशिष्ट जल जीवधारियों के लिए हानिकारक है ।
2. खतरनाक अपशिष्ट जैसे पुराने बेकार जहाज , रेडियो सक्रिय अपशिष्ट और ई – अपशिष्ट के निपटान के लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत होती है ।
3. मृदा प्रदूषण मुख्य रूप से कृषि रसायनों और इसके ऊपर डाले गए ठोस अपशिष्टों के निक्षालकों के कारण होता है ।
4. वैश्विक प्रकृति की दो मुख्य पर्यावरणीय समस्याएँ हैं , ग्रीन हाउस के बढ़ते हुए प्रभाव , जिसके कारण पृथ्वी कर गर्मी बढ़ रही , और समतापमंडल में ओजोन का अवक्षय हो रहा है ।
5. ग्रीन हाउस प्रभाव की वृद्धि मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और CFCs के उत्सर्जन में वृद्धि के कारण और वनोन्मूलन के कारण भी होती है ।
उत्तर – 1.सत्य , 2. सत्य , 3. सत्य , 4. सत्य ,5.सत्य। IV . स्तंभ -1 में दिए गए पदों का स्तंभ- II पदों के साथ सही मिलान करें :
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रदूषण की परिभाषा दें ?
उत्तर – वायु , मृदा जल में अवांछनीय पदार्थों के कारण भौतिक रासायनिक तथा जैविक विशेषताओं में परिवर्तन प्रदूषण कहलाता है ।
प्रश्न 2. कणकीय पदार्थ क्या हैं ?
उत्तर – ठोस कण जैसे – राख , धुंआ , धूल , एस्वेस्टस , तंतु , कीटनाशक या कुछ धातु जैसे– Pb . Hg , C4 , तथा Fe जो छोटे होने के कारण हवा में तैरते रहते हैं कणकीय पदार्थ कहलाते हैं । प्रश्न 3. भूरी वायु किसे कहते हैं ?
उत्तर – तेज सूर्य विकिरण में , अधिक यातायात वाले शहरों में नाइट्रोजन ऑक्साइड द्वारा प्रकाश रासायनिक धूम कुहरा का निर्माण होता है , जिसे भूरी वायु कहते हैं ।
प्रश्न 4. जैविक आवर्धन क्या है ?
उत्तर – वह परिघटना , जिसके अंतर्गत कुछ विशेष प्रदूषक आहार श्रृंखला के साथ सांद्रता में बढ़ते हुए ऊत्तकों में जमा हो जाते हैं , उसे जैविक आवर्धन कहलाते हैं ।
प्रश्न 5. ओजोन छिद्र कहाँ पाया गया ?
उत्तर – अन्टार्कटिका ।
प्रश्न 6. प्रदूषक आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – प्रदूषक वे पदार्थ हैं जो वातावरण को प्रदूषित करते हैं ।
प्रश्न 7. अस्थायी प्रदूषक से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – अस्थायी प्रदूषकों में परिवर्तन सरलता से हो जाता है ।
प्रश्न 8. स्थायी प्रदूषक क्या हैं ?
उत्तर – स्थायी प्रदूषक प्रायः अपरिवर्तित रहते हैं , जैसे नाभिकीय अपशिष्ट पदार्थ , प्लास्टिक्स , कीटनाशक आदि ।
प्रश्न 9. सामान्य वर्षा जल का pH कितना होता है ? उत्तर -5.6 से 6.5
प्रश्न 10. सबसे अधिक हानिकारक प्रदूषण कौन – सा है ?
उत्तर – सबसे अधिक हानिकारक विकिरण प्रदूषण है ।
प्रश्न 11. जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत क्या हैं ?
उत्तर – औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ , कृषि प्रवाह , नगरपालिका वाहितमल , जल सुपोषण आदि जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं ।
प्रश्न 12. प्रदूषण में वृद्धि होने का क्या कारण है ? उत्तर – औद्योगिक विकास और तकनीकी उन्नति के फलस्वरूप प्रदूषण बढ़ा है ।
प्रश्न 13. BOD क्या है ?
उत्तर – बॉयोलोजिकल ऑक्सीजन डिमांड ।
प्रश्न 14. COD क्या है ?
उत्तर – केमिकल ऑक्सीजन डिमांड ।
प्रश्न 15. मान लें एक जलाशय में कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ डाले जा रहे हैं । उसमें क्या कमी आ जायेगी ?
उत्तर – वे जलाशय जिनमें कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ अधिक होते हैं , उनमें घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है ।
प्रश्न 16. DDT क्यों सबसे अधिक हानिकारक कीट एवं पीड़कनाशक रसायन है ?
उत्तर- DDT का विघटन आसान नहीं है , क्योंकि यह वातावरण में 15 वर्ष तक रह सकता है ।
प्रश्न 17. प्रमुख प्राथमिक प्रदूषक कौन – कौन से हैं ? उत्तर- CO2 , SO2.NO तथा हाइड्रोकार्वन आदि प्रमुख प्राथमिक प्रदूयक हैं ।
प्रश्न 18. अम्लीय वर्षा कैसे हानिकारक है ?
उत्तर – अम्लीय वर्षा द्वारा मृदा के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं ।
प्रश्न 19. पौधाघर प्रभाव ( ग्रीन हाउस प्रभाव ) कैसे उत्पन्न होता है ?
उत्तर – वातावरण में अधिक CO2 होने से यह एक कंबल का कार्य करती है और ऊष्मा को निकलने नहीं देती जिसके फलस्वरूप पौधाघर प्रभाव उत्पन्न होता है ।
प्रश्न 20. वायु प्रदूषण के कारण हमें कौन – कौन से रोग हो सकते हैं ?
उत्तर – वायु प्रदूषण द्वारा सिर – दर्द , नेत्रों की झिल्ली प्रभावित होती है , श्वसनांग भी प्रभावित होते हैं और भयानक कैंसर रोग भी हो सकता है ।
     लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. कणकीय पदार्थ क्या हैं ? यह किस प्रकार मनुष्य के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है ?
उत्तर – ऐसे ठोस कण या तरल बूंद ( एसेसोल ) जिनका व्यास lum – 10um तक होता है वे हवा में तैरते रहते हैं , जैसे – कालिख , धुआँ , धूल , एसबेस्टम तंतु , कीटनाशक Hg , Pb , Cu तथा Fe धातु तथा जैविक कारक जैसे – सूक्ष्म धूल तथा पराग ।
    तैरने वाले कणकीय पदार्थ निम्न वायुमंडल में मनुष्य के श्वसन तंत्र को उत्तेजित कर दमा , दीर्घकालिक श्वसनी शोथ इत्यादि बीमारी उत्पन्न करते हैं । ऊपरी वायुमंडल में जमा हुआ कणकीय पदार्थ विकिरण तथा ताप बजट में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाता है जिससे धरती की सतह का तापमान कम हो जाता है ।
प्रश्न 2. प्रदूषण को परिभाषित करें । जैव विघटनकारी तथा अजैव विघटनकारी प्रदूषकों की तुलना करें ।
उत्तर – हवा , पानी में जमीन की भौतिक , रासायनिक अथवा जैविक विशेषताओं में अवांछनीय परिवर्तन को प्रदूषण कहते हैं ।
प्रश्न 3. ओजोन परत का क्या तात्पर्य है ? CFCs तथा ओजोन अवक्षय करने वाले पदार्थ किस तरह ओजोन परत को प्रभावित करते हैं ?
उत्तर – समुद्र तल से 20-26 किमी . ऊपर समतापमंडल में ( O3 ) की एक मोटी परत लगभग 0.29 से.मी. से 0.40 से.मी. पाई जाती है । यह परत सूर्य से आनेवाली पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से पृथ्वी के जीव – जगत को बचाती है । CFCs . N2O तथा CH4 , ओजोन अवक्षय करने वाले पदार्थो का वायुमंडल में बिखरना O3 को नष्ट करता है । ये क्रियाशील क्लोरीन का निर्माण 4U विकिरण के साथ करते हैं । जो O3 का क्षय करता है । ये O3 का विच्छेदन O तथा O2 , में कर देते हैं । CH4 तथा N2O भी जटिल क्रियाओं द्वारा ओजोन क्षय करते हैं।
प्रश्न 4. अम्ल वर्षा क्या है ? इसका पौधों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – वृहत् रूप में अम्ल वर्षा उन अनेक तरीकों को कहा जाता है जिससे वायुमंडल से अम्ल धरती पर जमा होता है । अम्ल का जमाव आर्द्र या शुष्क हो सकता है ।
   आर्द्र जमाव – वर्षा , कुहरा या बर्फ के द्वारा अम्ल के जमाव को आर्द्र जमाव कहते हैं ।
    शुष्क जमाव – वायु द्वारा बहाकर लाए गए कणों तथा अम्लीय गैसों को कहते हैं जो धरती की सतहों पर बैठ जाते हैं ।
      नाइट्रोजन ऑक्साइड ( NO2 ) , उड़नशील कार्बनिक यौगिक ( VOC3 ) तथा ( SO2 ) का उत्पादन कोयला ( उद्योगों ) तथा पेट्रोलियम ( ऑटोमोबाइल ) के जलने से होता है । ये गैसें हवा में अति प्रतिक्रियात्मक होती हैं । जल में घुलकर धरती पर अम्ल वर्षा के रूप में आ जाती है । अम्ल वर्षा का pH 5.6 से भी कम होता है ।
पौधों पर प्रभाव-
( i ) पादपों की पत्तियों , फूलों तथा फलों को नुकसान पहुंचाता है ।
( ii ) कुल उत्पादन को कम करता है ।
प्रश्न 5. मृदा प्रदूषण किस प्रकार होते हैं , वर्णन करें। उत्तर- ( i ) अपशिष्ट – औद्योगिक अपशिष्ट , नगरीय अपशिष्ट तथा मेडिकल एवं अस्पतालों के अपशिष्ट को फेंकने से भूमि प्रदूषित हो जाती है ।
  औद्योगिक ठोस अपशिष्ट , औद्योगिक उत्सर्जन के गिरने तथा ताप ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाला फ्लाई ऐश आसपास के पर्यावरण को दूषित करता है । रेडियो विकिरण पदार्थ , नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र से निकलकर मृदा को संक्रमित करते हैं ।
( ii ) नगरीय अपशिष्ट – इसके अंतर्गत घरेलू तथा रसोई के अपशिष्ट , बाजार के अपशिष्ट , अस्पताल , पशुओं एवं पोल्ट्री के अपशिष्ट , कसाईखानों के अपशिष्ट आते हैं ।
   पोलिथीन बैग , प्लास्टिक शीट , प्लास्टिक तथा शीशे की बोतलें , धातु सुईयाँ आदि नगरीय अपशिष्ट के उदाहरण हैं ।
( iii ) कृषि रसायन – कीटनाशक , खरपतवार नाशक , अत्यधिक अकार्बनिक उर्वरक आदि मृदा के रासायनिक गुणों को बदल देते हैं ।
( iv ) खनन ऑपरेशन – विकृत खनन से ऊपरी भूमि का पूरी तरह नुकसान होता है तथा पूरा क्षेत्र जहरीली धातु एवं रासायन से संक्रमित हो जाता है । प्रश्न 6. शोर क्या है ? मनुष्य पर शोर के प्रभाव की व्याख्या संक्षेप में करें ।
उत्तर – ध्वनि का वह स्तर जहाँ से शारीरिक परेशानी शुरू हो जाती है , शोर कहलाता है ।
                       या ,
ध्वनि की सामान्य तीव्रता अर्थात् 10–¹² Wm–²से अधिक तीव्र ध्वनि शोर कहलाती है ।
शोर के प्रभाव-
( i ) शोर दिल की धड़कन , पेरीफेरल संवहन तथा श्वसन तरीकों पर गहरा प्रभाव डालता है ।
( ii ) लंबे समय तक शोर वाले पर्यावरण में रहने पर गुस्सा , उत्तेजनशीलता , सिर दर्द , अनिंदा आदि की बीमारी उत्पन्न हो जाती है ।
प्रश्न 7. गैसीय प्रदूषकों के नियंत्रण हेतु किन तकनीकों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर- ( i ) दहन – ऑक्सीकरण योग्य गैसीय प्रदूषण उच्च ताप पर पूरी तरह जल जाते हैं । उदाहरण – पेट्रो रासायनिक पदार्थ , उर्वरक , पेंट , वार्निश उद्योग आदि ।
( ii ) अवशोषण – इस तकनीक में गैसीय प्रदूषकों का उपयोगी अवशोषक पदार्थों में अवशोषण हो जाता है ।
( iii ) अधिशोषण – जहरीली गैसों , वाष्प तथा ज्वलनशील मिश्रण को नियंत्रित करने हेतु उपयोग किया जाता है , जिसे सक्षमता से हटाया या स्थानांतरित किया जा सकता है । ठोस सतहों पर ये अवशोषित हो जाते हैं ।
प्रश्न 8. जल प्रदूषक के कितने प्रकार हैं ? वर्णन करें।
उत्तर – जल प्रदूषक तीन प्रकार के होते हैं-
( i ) जैविक – रोगाणु जैसे वायरस , बैक्टीरिया , प्रोटोजोआ , शैवाल , हैलमिथिस आदि ।
( ii ) रासायनिक – कार्बनिक रसायन – जैव नाशक , पॉलोक्लोरीनेटेड बाईफिनायल या ( PCB ) 1 अकार्बनिक रसायन – फॉस्फेट , नाइट्रेट , फ्लोराइड तथा भारी तत्त्व जैसे As , Pb , Cd , Hg आदि । ( iii ) भौतिक – उद्योगों के निकले गर्म जल , तेल वाहक से गिरा हुआ तेल आदि ।
प्रश्न 9. भारत में पर्यावरणीय कानूनों का ब्यौरा दें । उत्तर – पर्यावरण ( सुरक्षा ) अधिनियम 1986 – इसके अंतर्गत वायु , जल , मृदा की गुणवत्ता तथा ध्वनि प्रदूषण के नियंत्रण से संबंधित सुरक्षा कानून हैं ।
   कीटनाशक अधिनियम , 1968 – कीटनाशक के उपयोग से लेकर आयात – निर्यात , बिक्री , यातायात तथा वितरण के नियमों को देखता है जिससे पर्यावरण में इसके खतरे को रोका जा सके । जल ( प्रदूषण , बचाव एवं नियंत्रण ) अधिनियम , 1974 – जल से संबंधित अधिनियम है ।
वायु ( प्रदूषण , बचाव एवं नियंत्रण ) अधिनियम , 1981 – वायु की गुणवत्ता रखने हेतु महत्त्वपूर्ण अधिनियम है ।
प्रश्न 10. BOD तथा COD क्या हैं , वर्णन करें ।
उत्तर – कार्बनिक अवशिष्ट की मात्रा बढ़ने से अपघटन की दर बढ़ती है तथा ( O2 ) का उपयोग बढ़ता है । जल में घुली हुई O2 , ( DO ) की मात्रा घटती है । जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग ( BOD ) ऑक्सीजन मापक है । इससे जल में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की दर का पता चलता है । जहाँ उच्च BOD है वहाँ DO निम्न होगा । रासायनिक ऑक्सीजन माँग ( COD ) – यह जल में प्रदूषण के भार का मापक है । जल में कुल कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण हेतु आवश्यक O2 , की मात्रा के बराबर है ।
               दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्राथमिक तथा द्वितीयक वायु प्रदूषकों के बीच अंतर-
उत्तर-
प्रश्न 2. ( i ) भूमिगत जल के प्रदूषण के कारण होने वाले तीन रोगों का नाम लिखें ।
( ii ) मृदा में उपस्थित ठोस अपशिष्टों के प्रबंधन के बारे में संक्षिप्त विवरण दें ।
उत्तर- ( i ) औद्योगिक तथा नगरीय अपशिष्टों , उत्सर्जन , सीवेज चैनलों तथा कृषि से बहकर आए जलों द्वारा भूमित जल का दूषित होना कई बीमारियों को जन्म देता है । जैसे-
( क ) पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता – पेयजल में नाइट्रेट की अत्यधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । नवजात शिशुओं की मृत्यु भी हो सकती है । यह हीमोग्लोबिन के साथ प्रतिक्रिया कर इसे मिथेहिमोग्लोबिन बनाता है जो ( O2 ) यातायात को विकृत बना देते हैं । इसे ब्लू बेबी सिंड्रोम कहते हैं ।
( ख ) पेयजल में फ्लोराइड की अधिकता – फ्लोराइड अधिक होने पर दाँतों की विषमताएँ जन्म लेती हैं । हड्डी में कड़ापन तथा अकड्न आ जाती है । जोड़ों का दर्द होता है जिसे कंकाल फ्लूरोसिस कहते हैं ।
( ग ) भारत में कई जगहों पर आर्सेनिक भूमिगत जल संक्रमित किए हुए है । खासकर प्रकृति में पाए जाने वाले वेडरॉक में ।
   भूमिगत जल के अत्यधिक उपयोग से भूमि तथा चट्टानों के स्रोतों से आर्सेनिक का निक्षालन शुरू हो सकता है और भूमिगत जल संक्रमित हो सकता है । आर्सेनिक के लगातार संपर्क से ब्लैड फुट बीमारी हो जाती है । आर्सेनिक से डायरिया , पेरिफेरल न्यूरीटिस तथा हाइडर केराटोसिस तथा फेफड़े एवं त्वचा का कैंसर हो सकता है ।
( ii ) मृदा में उपस्थित ठोस अपशिष्टों के प्रबंधन के अंतर्गत निम्नलिखित बातें आती हैं
( क ) अपशिष्टों को एकत्र करना तथा उसका वर्गीकरण करना ।
( ख ) खराब धातुओं तथा प्लास्टिकों जैसे संसाधनों को इकट्ठा कर उसे पुनः चक्रण के बाद फिर से उपयोग करना ।
( ग ) पर्यावरण का कम से कम नुकसान करते हुए उसे फेंकना ।
प्रश्न 3. भूमंडलीय पन के संभावित प्रभाव क्या हैं ? उत्तर – कोष्णता प्रवृत्तियों में वायुमंडलीय ( CO2 ) में वृद्धि तथा अनुमानित भूमंडलीय तापन के कारण कई कुप्रभावों की संभावना है-
( क ) मौसम तथा जलवायु पर प्रभाव- ( CO2 ) तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी के औसत तापमान को बढ़ाती हैं । बीसवीं सदी में भूमंडलीय माथ्य तापमान में लगभग 0.6°C तक की वृद्धि हुई है । जलवायु परिवर्तन पर अंर्तसरकारी पैनल के तीसरे निर्धारण प्रतिवेदन के अनुसार यह अनुमानित है कि सन् 2100 तक पृथ्वी के औसत तापमान में 1.4 ° C – 5.8 ° C तक की वृद्धि होगी । अलग – अलग जगहों में इससे अंतर हो सकता है – टुंड्रा जीवोम में , उष्णकटिबंधीय वर्षा प्रचुर वन की तुलना में ज्यादा तापाणन हो सकता है बाट , सूखा आदि में पर्याप्त वृद्धि हो सकती है ।
जलवायु बदलाव से उष्णकटिबंधीत एवं सम उष्ण कटिबंधीय भागों में मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव होगा । खासकर रोगवाहक एवं जलीय रोगाणु में बदलाव से ।
( ख ) समुद्र तल में परिवर्तन -20 वीं सदी में समुद्रतल में प्रतिवर्ष 1.5-0.5 ° m की वृद्धि हुई है । समुद्रतल में वृद्धि के लिए कई कारकों का योगदान रहता है सागर का उष्मीय फैलाव , हिमनदों का पिघलना , अंटार्कटिका तथा ग्रीनलैंड की बर्फ , पट्टियों का पिघलना तथा स्थलीय जल भंडार में परिवर्तन । समुदतल में वृद्धि से मानव बस्तियों , पर्यटन , मीठे जल की पूर्ति , मत्स्य , खुले ढाँचे , कृषि तथा शुष्क भूमि एवं आर्द भूमि पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है ।
( ग ) जातियों के वितरण परिसर पर प्रभाव – प्रत्येक जाति एक विशेष तापक्रम परिसर में पाई जाती है । ताप में वृद्धि से जीवों का भौगोलिक वितरण प्रभावित हो सकता है । कई जातियाँ ध्रुवीय दिशा या उच्च पर्वतों की ओर विस्थापित हो जाएँगी तथा वनस्पति 250-600 किमी . तक स्थानांतरित हो जाएगी । यह जाति विविधता तथा पारिस्थितिकी अभिक्रियाओं पर चिह्नित प्रभाव डालेगा ।
( घ ) खाद्य उत्पादन – तापक्रम में वृद्धि से पौधों में कई रोग एवं पीड़क जंतु , खरपतवार एवं श्वसन क्रिया की दर में वृद्धि हो सकती है । इससे फसल उत्पादन कम हो जाएगा । किन्तु शीतोष्ण जलवायु में फसल की उत्पादकता बढ़ सकती है । करीब 1 ° C तापक्रम में वृद्धि केवल दक्षिण – पूर्वी एशिया में चावल उत्पादन को करीब 5 % गिरा देगा । कार्बन डाइऑक्साइड का उर्वरक उद्योग लाभकारी प्रभाव के बावजूद , खाद्य उत्पादन गिरेगा तथा पूरे विश्व में खाद्य समस्या उत्पन्न हो जाएगी ।

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