9th hindi

bseb 9th hindi note | समुद्र

समुद्र

bseb 9th hindi note

वर्ग – 9

विषय – हिंदी

पाठ 11 – समुद्र

समुद्र
                           -सीताकांत महापात्र
                    कवि – परिचय

सीताकांत महापात्र का जन्म 17 सितम्बर , 1937 ई . को हुआ । इन्होंने उडिया परम्परा के आचार – विचार को बखूबी चित्रित किया है । वे भारतीय साहित्य में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं । उनकी कविताओं में दयालु साधारण और निर्दोष प्रतीत होते हैं ।
सीताकांत महापात्र उड़िया कवि और आलोचक हैं । इनका जन्म उड़ीसा के एक गाँव हुआ था । सीताकान्त महापात्र साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि हैं । ये 1965 बेच के आई . ए . एस . अधिकारी थे । महापात्र जितने अच्छे कवि हैं उतने ही अच्छे प्रशासनिक सेवक भी हैं । ‘समुद्र ‘ पर कविताएँ भारतीय साहित्य में बहुत कम लिखी गयी हैं । इन्होंने ‘ समुद्र ‘ की मूल प्रवृत्ति देने की अभिलाषा ‘ को चिह्नित किया है । मनुष्य की प्रवृत्ति सदा केवल लेने का रहता है इसलिए कवि ने मनुष्य और प्रकृति के अंतर को स्पष्ट किया है ।

कविता का भावार्थ

” समुद्र ‘ शीर्षक कविता उड़िया के चर्चित साहित्यकार सीताकांत महापात्र द्वारा रचित है । सीताकांत महापात्र के साहित्य में जन साधारण के प्रति गहरी सहानुभूति की अभिव्यक्ति हुई है । उन्होंने परंपरा और सांस्कृतिक बोध को अपने लेखन में पर्याप्त जगह दी है ।
इस कविता में कवि ने समुद्र को समाज का प्रतीक बना कर अपनी बात कही है । समाज के पास कुछ नहीं रहता उसका सबकुछ लोगों का है । वह अपनी अबूझ भाषा में कहता रहता है कि जिसे जो चीज चाहिए वह ले जाए । देने से उसका मन नहीं भरता ।
लोग समुद्र से घोंघे चुन कर लाते हैं । कोई उसका बटन बनाता , कोई नाड़ा काटने के औजार ही बनाता है तो कोई उसे अपने टेबुल पर यादगार के तौर पर सजाकर रखता है । परंतु उसे किसी भी तरह समुद्र के किनारे पड़े रेत में जितना सुन्दर नहीं बनाया जा सकता । जो चीज पूरे समाज के लिए सुन्दर व उपयोगी होती है वह किसी एक व्यक्ति पास जाकर अपनी सुन्दरता व उपयोगिता खो देती है । इसी तरह की बात खेलने में मस्त केंकड़ों के साथ है । यदि उन्हें पकड़ लिया तो उन्हें कहीं उस तरह आनंदित नहीं देख पाओंगे । इससे भी मन नहीं भरता तो चाहो जितना फोटो खींच कर उसे फ्रेम में मढ़वाकर अपने टीवी के बगल में सजा दो । वह फ्रेम में बंधा सोता रहेगा । उसमें कोई स्पन्दन नहीं होगा जिससे सौन्दर्य फूटे ।
जो कुछ भी लेना है समाज से उसे ले लो पर वह खत्म नहीं होगा । वे ठीक उसी तरह जैसे सदियों का प्यासा लगातार समुद्र का पानी पीते जाता है फिर भी वह सूखता नहीं है । जो देना है उसे खुशी – खुशी दे जाओ पर कोई भला समुद्र ( समाज ) को क्या देगा । सिवा अपने चंचल पैरों के निशान के । एक – दो दिन हरने के बाद सभी बेचैनी पूर्वक वापस चले जाते हैं ।
उन पैरों के निशान को समय मिटा देता है । यह उसका काम है । किसी के बेचैनी वापसी अपने स्वभाव के अनुसार समुद्र ( समाज ) अपने लहरों से मिटा देता है ।
इस कविता में कवि ने उपभोक्तावादी संस्कृति पर चोट किया है । उपभोग से तृप्ति नहीं मिलती है ।

कविता के साथ

प्रश्न 1. ‘ समुद्र ‘ अबूझ भाषा में क्या कहता रहता है ?

उत्तर – ‘ समुद्र ‘ अबूझ भाषा में यह कहता रहता है कि मुझसे जो भी ले जाना चाहते हो ले जाओ , जितना चाहते हो उतना ले जाओ परन्तु मेरे देने की अभिलाषा हमेशा बची रहेगी । तुम क्या चाहते हो ले जाना , सब कुछ ले जाओ घोंघे इत्यादि । फिर भी कुछ भी खत्म नहीं होगा मेरा क्यों चिर तृषित सूर्य लगातार हमारी छाती से जल पीते जा रहे हैं फिर भी मैं नहीं सूखा मेरा काम सबको अपने अस्थिर आलोडन में मिला लेना है ।

प्रश्न 2. समुद्र में देने का भाव प्रबल है , कवि समुद्र के माध्यम से क्या कहना चाहता ।

उत्तर – कवि समुद्र के माध्यम से यही कहना चाहता है कि जिस तरह समुद्र का अपना कुछ भी नहीं होता उसी तरह मनुष्य को भी यह समझना चाहिए कि इस पृथ्वी पर प्रकृति में जितनी वस्तुएँ हैं उस पर सभी का हक है , वह किसी एक का नहीं है । समुद्र अपना सबकुछ देकर अपनी सार्थकता समझता है उसी प्रकार मनुष्य को भी एक – दूसरे के काम में आकर ही उसकी सार्थकता है ।

प्रश्न 3. निम्नांकित पंक्तियों का भाव सौंदर्य स्पष्ट करें । सोता रहूँगा छोटे से फ्रेम में बँधा गर्जन – तर्जन मेरा नाच गीत उद्वेलन कुछ भी नहीं होगा ।

उत्तर – प्रस्तुत पक्तियाँ सीताकांत महापात्र के ‘ समुद्र ‘ कविता से ली गयी हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने समुद्र की विशालता , उदारता का परिचय दिया है एवं मनुष्य के उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का परिचय दिया है । वह कहता है कि मुझसे जितना चाहते हो ले जाओ या तुम मुझे फोटो में कैद करना चाहते हो । तुम खींच लो जहाँ तुम्हारी टीवी के बगल में पड़ा रहूँगा परन्तु मेरा गजन – तर्जन उद्वेलन वहाँ नहीं होगा । आशय यह है कि प्रकृति के सौन्दर्य या समुद्र के सौन्दर्य को किसी कैमरे द्वारा कैद नहीं कर सकते । यदि मेरा सौन्दर्य रेखना चाहते हो तो तुम्हें मेरे पास आना होगा । तुम मुझसे जो चाहते हो ले जाना , ले जाओ परन्तु मुझे कुछ नहीं होगा । मेरा कुछ भी खत्म नहीं होगा ।

प्रश्न 4. ‘ नन्हें – नन्हें सहस्र गड्ढों के लिए भला इतनी पृथ्वी पाओगे कहाँ से ‘ कवि का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि समुद्र की विशालता में असंख्य जीव सुखपूर्वक जी रहे हैं । समुद्री किनारे जो हजारों मील में फैले हैं , न जाने वहाँ कितने मस्त केंकड़ें , नन्हें – नन्हें सहस्र गड्ढों में जीवन के लुत्फ उठा रहे हैं । यहाँ ये निर्द्वन्द्व हैं , स्वतंत्र हैं । यदि स्वार्थवश हम उन्हें पकड़ कर अपने घर ले भी आते हैं तो हम उन्हें वह वातावरण उपलब्ध नहीं करा सकते । हमारे पास इतनी जगह कहाँ है ? आज मनुष्य तो खुद आवास के लिए जगह की कमी महसूस कर रहा है । उसके पास इन जीवों के लिए इतनी पृथ्वी उपलब्ध कराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । अतः कवि का इशारा है कि उन्हें अपने प्राकृतिक आवास में ही रहने दिया जाए । उन्हें काँच के जार में कैद करना अपराध है । अपनी खुशी के लिए दूसरों की खुशी छीनना ठीक नहीं है । इन्हें तो कीचड़ , पानी से सने शीतल वातानुकूलित नन्हें – नन्हें गड्ढों में जीने दें ।

प्रश्न 5. कविता में चिर तृषित कौन हैं ?

उत्तर – कविता में चिर – तृषित सूर्य है जो समुद्र की छाती से लगातार उसका जल सोख रहा है परन्तु समुद्र नहीं सूखता । द्विविध अर्थ में मनुष्य भी चिर – तृषित सूर्य की तरह है जो समुद्र से लेना ही चाहता है और लगातार ले रहा है । समुद्र भी अपनी अबूझ भाषा में कहता है कि जितना चाहते हो ले जाओ ।

प्रश्न 6. सप्रसंग व्याख्या करें :

( क ) उन पद – चिह्नों को लीप – पोंछकर मिटाना ही तो है काम मेरा तुम्हारी आतुर वापसी को अपने स्वभाव सुलभ अस्थिर आलोड़न में मिला लेना ही तो है काम मेरा ।

उत्तर – इन पंक्तियों के माध्यम से सीताकांत महापात्र कहना चाहते हैं कि समुद्र छोटी – छोटी लालसाओं से ऊपर है । मनुष्य किसी को कुछ देता है तो उसके मन पर दान रूपी अभिमान का नशा छा जाता है । समुद्र की महानता तो देखिए कि वह हीरे , मोती , घोंघे , सीप कुछ भी ले जाने की खुली छूट दे रखा है और बदले में कुछ नहीं चाहता है । बालू रूपी हृदय पर बने पैरों के छोटे – छोटे निशान को भी वह भूल जाना चाहता है कि मैंने किसी को कुछ दिया है । अत : उन यादों के पद – चिह्नों को लहरों के द्वारा लीप – पोछकर मिटाते रहता है । समुद्र का यह प्राकृतिक स्वभाव है । वह मनुष्य को पुनः पुनः आने का निमंत्रण भी संकेतों के माध्यम से दे डालता है । समुद्र मनुष्य को लेने की सहज प्रवृत्ति को अपनी अस्थिर तरंगों में समेटते हुए अपनी विशालता में समाहित कर लेता है ।

( ख ) क्या चाहते हो ले जाना घोंघे क्या बनाओगे ले जाकर कमीज के बटन नाड़ा काटने के औजार । यहाँ समुद्र मनुष्य से प्रश्न करता है । इस तरह के प्रश्न के पीछे मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का पता चलता है । आप इससे कहाँ तक सहमत हैं । इस पर अपने विचार प्रकट करें ।

उत्तर – हाँ , इन पंक्तियों से मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का पता चलता है । उपभोक्तावादी संस्कृति में जी रहे मनुष्य वह सब कुछ हथिया लेना चाहता है जो उसे पसंद है । इस प्रवृत्ति को समुद्र अच्छी तरह से जानता है , अत : वह मनुष्य से स्वागतपूर्वक कहता है कि तुम्हें क्या चाहिए ? घोंघे , सीप , मोती … , क्या बनाओगे ले जाकर , कमीज के बटन या नाड़ा काटने के औजार । मनुष्य को समुद्र की पवित्र , निश्छल भावना को समझना चाहिए । रेत पर पड़े निष्प्राण घोंघे , सीप , मोती , समुद्र के सुनहरे अतीत की कथा कह रहे हैं । इनकी सुंदरता इसी में है कि वे यथा स्थान बने रहें , परन्तु मनुष्य उपभोक्तावादी संस्कृति के चक्कर में पड़कर संवेदनहीन हो गया है । वह समुद्र के यादगार वस्तुओं का जैसे – तैसे उपभोग करता रहता है ।

प्रश्न 7. कविता के अनुसार मनुष्य और समुद्र की प्रकृति में क्या अंतर है ?

उत्तर – समुद्र में देने की भावना प्रवल हैं । वह चाहता है कि मनुष्य जो कुछ भी मुझसे ले जाना चाहता है , ले जाए । मनुष्य जिस तरह चाहे उसे उपभोग करे परन्तु अपनी अबूझ भाषा मेंमनुष्य को सीख भी देती है कि मेरी तरह तुम दूसरों के काम आओ । वहीं मनुष्य की प्रवृत्ति के विपरीत उपभोक्तावादी है , वह केवल अपने स्वार्थ की बात करता है , केवल लेना जानता है , देना नहीं । दूसरों की सौंदर्यजनित वस्तुओं को किसी कीमत पर अपना बनना चाहता है । परन्त समुद्र मनुष्य को सीख देता है कि जीवन को परमार्थ में लगाओ , मेरा काम तो अस्थिर आलोड़न में मिलाना है ।

प्रश्न 8. कविता के माध्यम से आपको क्या संदेश मिला ?

उत्तर – सीताकांत महापात्र की कविता ‘ समुद्र ‘ हमें यह संदेश देती है कि मनुष्य को उपभोक्तावादी नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रकृति में जो सौंदर्य है वह मनुष्य के घरों में टेबल पर नहीं रहेगा । समुद्र में लगातार देने की प्रबल इच्छा है , वह चाहता है कि जितना चाहो ले जाओ उसी तरह मनुष्य को भी चाहिए कि वह सदा दूसरों की मदद करें , यथासंभव लेने की इच्छा न कर जिस तरह समुद्र सूर्य को लगातार अपनी छाती से पानी पोषित करता रहता है , बिना स्वार्थ का उसी तरह मनुष्य को भी बिना स्वार्थ का दूसरों की मदद करना चाहिए । प्रकृति में जो सौंदर्य है , उसे प्रकृति में ही रहने देने की कोशिश की जानी चाहिए ।

प्रश्न 9. ‘ किंतु मेरी रेत पर जिस तरह दिखते हैं । उस तरह कभी नहीं दिखेंगे ‘ पंक्तियों के माध्यम से कवि का क्या आशय है ?

उत्तर – यहाँ कवि सीताकांत महापात्र कहना चाहते हैं कि जो वस्तुएँ प्रकृति में विराजमान हैं वे प्रकृति में ही अधिक सौंदर्यवान दीखते हैं । परंतु मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के कारण जब उसे अपने घर की चारदीवारी की सुंदरता बढ़ाने के लिए प्रकृति से उठा लाता है तो उसका सौन्दर्य एक कमरे में कैद हो जाता है । जो वस्तु सारी प्रकृति में अपनी सुंदरता बिखेर रहा था । वह एक बंद कमरे में कैद होकर रह गया । इस स्थिति में जहाँ पहले था वैसा सौन्दर्य कैसे दीखता । समुद्र की रेत पर घोंघों का अलग सौंदर्य है , वह सौन्दर्य मनुष्य के यहाँ नहीं दिखेंगे । अर्थात् समुद्र प्रकृति का सौन्दर्य है उसे प्रकृति में ही रहने दिया जाए । उसे अलग – थलग नहीं किया जाए ।

प्रश्न 10. ‘ जितना चाहो ले जाओ । फिर भी बची रहेगी देने की अभिलाषा ‘ से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – कवि के दृष्टिकोण में समुद्र का हृदय विशाल है । उसकी प्रवृत्ति देने की है मनुष्य की प्रवृत्ति लेने की है । जितना चाहो ले जाओ । फिर भी बची रहेगी देने की अभिलाषा ‘ इससे मनुष्य की लघुता स्पष्ट हो जाती है । मानो समुद्र को यह ज्ञात है कि उसके पास जो कुछ भी है वह उसका अपना नहीं है । उसे भी कहीं से मिला है , अतः वह खुले हाथ लुटाने में नहीं हिचकता । मनुष्य पृथ्वी का सबसे बुद्धिजीवी प्राणी है परन्तु यहाँ समुद्र की देने की अभिलाषा के सामने उसकी बुद्धि बौनी दिखाई देती है । मनुष्य हर वस्तु को अपना ही समझता है । यह दृष्टि मनुष्य की संकीर्णता को प्रदर्शित करती है । उसे भी समुद्र की तरह हृदय रखना चाहिए । यदि जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं तो खुलकर करें । समुद्र हमें बताना चाहता है कि हमें दूसरों के लिए त्याग करना चाहिए ।

भाषा की बात

प्रश्न 1. निम्नांकित शब्दों में से संज्ञा तथा सर्वनाम को अलग – अलग करें ।

उत्तर – समुद्र संज्ञा कुछ टेबुल संज्ञा 1 – सर्वनामअपने सर्वनाम फोटो संज्ञा तुम्हारे सर्वनाम वह सर्वनाम घोंघे संज्ञा ।

प्रश्न 2. निम्नांकित शब्दों से दो – दो पर्यायवाची शब्द बनाएँ ।

उत्तर – समुद्र -वाराधिप , सिन्धु ।
अभिलाषा- इच्छा , आकांक्षा ।
पृथ्वी- भू , वसुंधरा ।
सूर्य -रवि , दिनकर ।

प्रश्न 3. निम्नलिखित के समास बताएँ ।

उत्तर – अस्थिर -जो स्थिर न हो –  नञ।
पदचिह्न- पद का चिह्न – तत्पुरुष ।
आवश्यकतानुसार -आवश्यकता के अनुसार – तत्पुत्प ।

प्रश्न 4. कविता से विदेशज शब्द चुनें ।

उत्तर – बटन , टेबुल , टीवी , फ्रेम ।

प्रश्न 5. निम्नलिखित रेखांकित कारक चिह्नों को पहचानें ।

उत्तर– ( क ) कमीजों के बटन – संबंध कारक ।
( ख ) टेबुल पर यादगार – अधिकरण कारक ।
( ग ) खेलकूद में मस्त केकड़े – अधिकरण कारक । ( घ ) नन्हें – नन्हें सहस गड्ढों के लिए – सम्प्रदान कारक । ( छ ) उन पदचिह्नों को – कर्म कारक ।

 

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