poem

कागज पर उतरे हुए अक्षर दिखाते हैं, इन्सान का रुप साकार।

कागज पर उतरे हुए अक्षर दिखाते हैं, इन्सान का रुप साकार।

कागज पर उतरे हुए अक्षर दिखाते हैं, इन्सान का रुप साकार।

 

कागज पर उतरे हुए अक्षर दिखाते हैं,

इन्सान का रुप साकार।

पर इन्सान ही बनाता है उन्हें,

अपनी प्रतिष्ठा का आधार।

दोस्तों! कागज पर उतारे,

अक्षरों का भाव देखो।

इनसे इन्सान की सच्चाई का झुकाव देखो।

हमसबों से गरीबी उन्मूलन के भाषण तो कहलाते हैं,

पर क्या इन भाषणों से गरीबी मिटा पाते हैं?

मैं कहता हूँ-नहीं… तो फिर क्यों बनाता है इन्सान,

इन्हें भाषण का आधार?

जिनके हाथों में है पसरी हुई,

दरिद्रता की रेखाएँ अपार।।

                                                                                  Author – Balendu Shekhar ( M.a )

 

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