Kabir Das Biography in Hindi – कबीर दास की जीवनी
Kabir Das Biography in Hindi – कबीर दास की जीवनी
Kabir Das Biography in Hindi
प्रसिद्ध संत कबीर (Kabir Das) के जन्म में विद्वान एकमत नही है | कुछ उनका जन्म 1398 ईस्वी में मानते है | कहा जाता है कि वे एक विधवा ब्राह्मणी की सन्तान थे जिन्हें वह लोकलाज के कारण वाराणसी के निकट लहरताला तालाब के किनारे छोड़ गयी थी |वहा से उन्हें नीरू नाम के जुलाहे और उसकी पत्नी नीमा अपने घर ले गये और बच्चे का पालन-पोषण किया | जबलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति डा.राजबली पाण्डेय का मत इससे भिन्न है | उनका कहना है कि कबीर का जन्म 1500 ईस्वी के लगभग इस जुलाहा जाति से हुआ जो कुछ ही पीढ़ी पहले हिन्दू से मुसलमान हुयी थी जिसके अंदर बहुत हिन्दू संस्कार जीवित थे |
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
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नाम (Name) | कबीर दास |
जन्म (Birth) | 1440 ईस्वी |
मृत्यु (Death) | 1518 ईस्वी |
जन्म स्थान (Birth Place) | काशी (वाराणसी) |
कार्यक्षेत्र (Profession) | कवि, संत |
पिता का नाम (Father Name) | नीरू जुलाहे |
गुरु (Teacher) | गुरु रामानंद जी |
पत्नी का नाम(Wife Name) | ज्ञात नहीं |
भाषा(Language) | सधुक्कड़ी (मूल भाषा) ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी (साहित्यिक भाषा) |
कबीर की शिक्षा:-
ऐसा कहा जाता हैं कि कबीर को बचपन में पढ़ने-लिखने में कोई रूचि नहीं थी और साथ ही न ही उनकी कोई खेल-कूद में रूचि थी। परिवार में अत्यधिक गरीबी के कारण उनके माता-पिता भी उनको पढ़ाने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए कबीर ने कभी भी अपने जीवन में किताबी शिक्षा ग्रहण नहीं की।कहा जाता हैं कि कबीर के मुख से कहे गये दोहों को लिखित रूप उनके शिष्यों द्वारा किया गया। कबीर के कामात्य और लोई नाम के दो शिष्य थे, जिनका कबीर ने अपने दोहों में कई बार ज़िक्र किया हैं।
कबीर की रामानंद द्वारा गुरु दीक्षा:-
कबीर के दौर में काशी में रामानंद प्रसिद्ध पंडित और विद्वान व्यक्ति थे, कबीर ने कई बार रामानंद से मिलने और उन्हें अपना शिष्य बनाने की विनती कि लेकिन उस समय जातिवाद अपने चरम पर था इसलिए हर बार उन्हें आश्रम से भगा दिया जाता था।एक दिन कबीर ने गुरु रामानंद से मिलने की तरकीब लगायी। रामानंद रोज सुबह जल्दी 4 बजे गंगा स्नान करने घाट पर जाया करते थे, एक दिन कबीर उनके रास्ते में लेट गये। जैसे ही रामानंद उस रास्ते से निकले उनका पैर कबीर पर पड़ा।बालक कबीर को देखकर अचानक से उनके मुंह से निकल पड़ा “राम-राम”, अपने गुरु रामानंद (Kabir Das ke Guru ka Naam) को प्रत्यक्ष देखकर कबीर बेहद खुश हुए और कबीर को राम-राम नाम का गुरु मन्त्र मिल गया। रामानंद कबीर की श्रद्धा को देखकर अत्यंत प्रसन्न होकर उन्हें अपना शिष्य बना लिया।
कबीर का वैवाहिक जीवन – विवाह पत्नी व बच्चे
संत कबीरदास का विवाह लोई नाम की कन्या से हुआ था। विवाह के बाद कबीर और लोईको दो संतानें हुई, जिसमें एक लड़का व दूसरी लड़की। कबीर के लड़के का नाम कमाल तथालड़की का नाम कमाली था।कबीर की धार्मिक प्रवृति होने के कारण उनके घर साधु-संत और सत्संग करने वालों की हर दिन आवाजाही बनी रहती थी। अत्यधिक गरीबी और ऊपर से निरंतर मेहमानों की आवाजाही के कारण अक्सर कबीर की पत्नी कबीर से झगड़ा करती थी। इस पर कबीर अपनी पत्नी को किस तरह समझाते थे इसका वर्णन इस दोहे में इस प्रकार से हैं।
सुनि अंघली लोई बंपीर।
इन मुड़ियन भजि सरन कबीर।।
कबीर के एक और दोहे से इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि उनका पुत्र कमाल कबीर के विचारों का विरोधी था। जो इस प्रकार हैं:
बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।।
वहीं कबीर को मानने वाली दूसरी धारा का मानना हैं कि कबीर बाल-ब्रह्मचारी और विराणी थे। उनके अनुसार कामात्य उनका शिष्य था तथा कमाली और लोई उनका शिष्या का नाम था। कबीर लोई शब्द का इस्तेमाल कम्बल के रूप में भी करते थे जो इस प्रकार हैं:
“कहत कबीर सुनहु रे लोई।
हरि बिन राखन हार न कोई।।”
कबीर के एक दूसरे दोहे से इस बात का संकेत मिलता हैं कि कबीर की पत्नी ही बाद में कबीर की शिष्या बन गयी होंगी। जो इस प्रकार हैं:
“नारी तो हम भी करी, पाया नहीं विचार।
जब जानी तब परिहरि, नारी महा विकार।।”
संत कबीर का साहित्य:-
कबीर दास जी के नामों से मिले मिले ग्रंथों की संख्या अलग-अलग हैं। एच.एल विल्सन के अनुसार कबीर के नाम से कुल 8 ग्रन्थ हैं। वहीं विशप जी.एच वेस्टकॉट ने कबीर के नाम पर कुल 84 ग्रंथों की सूची जारी की हैं।कबीरदास की वाणी का संग्रह “बीजक” नाम से मशहूर हैं, यह तीन हिस्सों में विभाजित हैं जो इस प्रकार से हैं, रमैनी, सबद और सारवी।
कबीर की गुरु दीक्षा:-
कबीर का पालन-पोषण बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था. जहाँ पर शिक्षा के बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता था. उस दौरान रामानंद जी काशी के प्रसिद्द विद्वान और पंडित थे. कबीर ने कई बार उनके आश्रम में जाने और उनसे मिलने की विनती की लेकिन उन्हें हर बार भगा दिया जाता था और उस समय जात-पात का भी काफी चलन था. ऊपर से काशी में पंडों का भी राज रहता था.एक दिन कबीर ने यह देखा कि गुरु रामानंद जी हर सुबह 4-5 बजे स्नान करने के लिए घाट पर जाते हैं. कबीर ने पूरे घाट पर बाड लगा दी और बाड का केवल एक ही हिस्सा खुला छोड़ा. वही पर कबीर रात को सो गए. जब सुबह-सुबह रामानंद जी स्नान करने आये तो बाड देखकर ठीक उसी स्थान पर से निकले जहाँ से कबीर ने खुली जगह छोड़ी थी. सूर्योदय से पूर्व के अँधेरे में गुरु ने कबीर को देखा नहीं और कबीर के पैर पर चढ़ गए. जैसे ही गुरु पैर पर चढ़े कबीर के मुख से राम राम राम निकल पड़ा.गुरु को प्रत्यक्ष देख कबीर बेहद ही खुश हो गए उन्हें उनके दर्शन भी हो गए, चरण पादुकाओं का स्पर्श भी मिल गया और इसके साथ ही राम नाम रूपी भक्तिरस भी मिल गया. इस घटना के बाद रामानंद जी ने कबीर को अपना शिष्य बना लिया.
कबीर दास का धर्म:-
कबीर दास के एक पद के अनुसार जीवन जीने का सही तरीका ही उनका धर्मं हैं. वह धर्मं से न हिन्दू हैं न मुसलमान. कबीर दास जी धार्मिक रीति रिवाजों के काफी निंदक रहे हैं. उन्होंने धर्म के नाम पर चल रही कुप्रथाओं का भी विरोध किया हैं. कबीर दास का जन्म सिख धर्मं की स्थापना के समकालीन था इसी कारण उनका प्रभाव सिख धर्मं में भी दिखता हैं. कबीर ने अपने जीवन काल में कई बार हिन्दू और मुस्लिमो का विरोध झेलना पड़ा.
कबीर की मृत्यु:-
संत कबीर की मृत्यु सन 1518 ई. को मगहर में हुई थी. कबीर के अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों में बराबर थे. जब कबीर की मृत्यु हुई तब उनके अंतिम संस्कार पर भी विवाद हो गया था. उनके मुस्लिम अनुयायी चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से हो जबकि हिन्दू, हिन्दू रीति रिवाजो से करना चाहते थे. इस कहानी के अनुसार इस विवाद के चलते उनके शव से चादर उड़ गयी और उनके शरीर के पास पड़े फूलों को हिन्दू मुस्लिम में आधा-आधा बाँट लिया. हिन्दू और मुसलमानों दोनों से अपने तरीकों से फूलों के रूप में अंतिम संस्कार किया. कबीर के मृत्यु स्थान पर उनकी समाधी बनाई गयी हैं.
कबीर की रचनाये:-
कबीर के नाम पर एकसठ रचनाएँ उपलब्ध हैं. जिसके नाम निम्नानुसार हैं
- अगाध मंगल
- अठपहरा
- अनुराग सागर
- अमर मूल
- अर्जनाम कबीर का
- अलिफ़ नामा
- अक्षर खंड की रमैनी
- अक्षर भेद की रमैनी
- आरती कबीर कृत
- उग्र गीता
- उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा
- कबीर और धर्मंदास की गोष्ठी
- कबीर की वाणी
- कबीर अष्टक
- कबीर गोरख की गोष्ठी
- कबीर की साखी
- कबीर परिचय की साखी
- कर्म कांड की रमैनी
- काया पंजी
- चौका पर की रमैनी
- चौतीसा कबीर का
- छप्पय कबीर का
- जन्म बोध
- तीसा जंत्र
- नाम महातम की साखी
- निर्भय ज्ञान
- पिय पहचानवे के अंग
- पुकार कबीर कृत
- बलख की फैज़
- वारामासी
- बीजक
- व्रन्हा निरूपण
- भक्ति के अंग
- भाषो षड चौंतीस
- मुहम्मद बोध
- मगल बोध
- रमैनी
- राम रक्षा
- राम सार
- रेखता
- विचार माला
- विवेक सागर
- शब्द अलह टुक
- शब्द राग काफी और राग फगुआ
- शब्द राग गौरी और राग भैरव
- शब्द वंशावली
- शब्दावली
- संत कबीर की बंदी छोर
- सननामा
- सत्संग कौ अग
- साधो को अंग
- सुरति सम्वाद
- स्वास गुज्झार
- हिंडोरा वा रेखता
- हस मुक्तावालो
- ज्ञान गुदड़ी
- ज्ञान चौतीसी
- ज्ञान सरोदय
- ज्ञान सागर
- ज्ञान सम्बोध
- ज्ञान स्तोश्र
संत कबीरदास जी की कुछ प्रमुख दोहे :
हरि बिन राखन हार न कोई ।।
कहत कबीर सुनहु रे लोई।
इन मुड़ियन भजि सरन कबीर ।।
सुनि अंघली लोई बंपीर।
हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।
बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया तो कभी कहते हैं,
हरि जननी मैं बालक तोरा ||