माखन लाल चतुर्वेदी | Essay in Hindi | Makhan Lal Chaturvedi
माखन लाल चतुर्वेदी | Essay in Hindi | Makhan Lal Chaturvedi
जीवन – परिचय – माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म अप्रैल ४ सन् १८८ ९ ई ० में मध्य प्रदेश में हुआ था । इनके पिता का नाम पं ० नन्दलाल चतुर्वेदी था । प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात इन्होंने घर पर ही संस्कृत , बंगला , गुजराती , अंग्रेजी आदि भाषाओं का अध्ययन किया । इन्होंने कुछ दिन अध्यापन कार्य भी किया । सन् १ ९ १३ ई ० में वे सुप्रसिद्ध मासिक ” प्रभा ” के सम्पादक नियुक्त हुये । श्री गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रेरणा तथा साहचर्य के कारण वे राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने गये । कई बार इन्हें जेल यात्रा करनी पड़ी । चतुर्वेदी जी सन् १ ९ ४५ में हरिद्वार में सम्पन्न हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष हुए । जब वे ७५ वर्ष के हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण अलंकार प्रदान किया और ७७ वें वर्ष में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने ७५०० रुपये की थैली अर्पित की l १ ९ ५५ में केन्द्रीय साहित्य अकादमी ने ‘ हिमतरंगिनी ‘ पर हिन्दी का पहला अकादमी पुरस्कार उन्हें दिया l ८० वर्ष की अवस्था में सन् १ ९ ६८ में इनका स्वर्गवास हो गया । चतुर्वेदी जी को सागर विश्व विद्यालय ने डी . लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया था ।
काव्यगत विशेषतायें – माखनलाल चतुर्वेदी जी की प्रसिद्धि कवि रूप में अधिक है और गाकार के रूप में कम । इनके काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीयता की भावना और समर्पण का भाव है । लको कविता ” पुष्प और अभिलाषा ” फूल मातृभूमि पर न्यौछावर ( बलिदान ) होने की अभिलाषा करता है| फुल कहता है-
चाह नहीं ; मैं सुरबाला के ,
गहनों में गूंथा जाऊँ ।
चाह नहीं देवों के सिर पर ,
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ ? ”
मुझे तोड़ लेना बन माली ,
उस पथ में देना तुम फेंक ।
मातृ – भूमि पर शीश चढ़ाने ,
जिस पथ जातें वीर अनेक । ”
चतुर्वेदी जी की रचनाओं में यदि कहीं ज्वालामुखी की तरह धधकता हुआ अन्तर्मन है तो कहीं पौरुष हुँकार और कहीं करुणा से भरी मनुहार है । कवि ” जवानी ” को सम्बोधित करते हुए ( नव जवानों से ) आत्म – बलिदान करने के लिए कहता है-
” पहन ले नर मुंड माला , उठ , स्वमुंड सुमेरू करले ,
भूमि सा तू पहन बाना आज घानी ।
प्राण तेरे साथ हैं , उठ री जवानी ।। ”
दूसरे स्थान पर कवि कहता है ”
रक्त है ? या है नसों में क्षुद्र पानी !
जाँच कर , तू सीस दे – देकर जवानी ।
कवि को वृक्ष भी फल देते अथवा शीश देते हुये दीख पड़ते हैं । वे भी बलिदान के प्रेरक हैं- हमें शिक्षा देते हैं –
” मस्तकों को दे रही , संकेत कैसे , वृक्षा डाली !
फल दिये ? या सिर दिये ! तरु की कहानी
गूंथकर युग में बताती चल जवानी ! ”
क्रान्ति के लिये नव जवानों को प्रेरित करता हुआ कवि कहता है –
” क्या जले बारुद ? हिम के प्राण पाये !
क्या मिला ? जो प्रलय के सपने न आये । ”
धरा ? यह तरबूज है दो फाँक कर दे ,
चढ़ा दे स्वातन्त्र्य – प्रभु पर अमर पानी
विश्व माने – तू जवानी है जवानी । ”
अन्त में कवि चेतावनी देता है –
“ फूल गिरते शूल शिर ऊँचा किये हैं ,
रसों के अभिमान को नीरस किये हैं !
खून हो जाये न तेरा देख , पानी ,
मरण का त्यौहार , जीवन की जवानी । ”
भाषा – शैली- चतुर्वेदी जी की भाषा सरस , सरल , आकर्षक , प्रवाह युक्त एवं प्रभावपूर्ण खड़ी बोली है । उसमें बोल – चाल के शब्दों के साथ – साथ उर्दू , फारसी के शब्द भी आये हैं । इससे भाषा में अधिक माधुर्य पैदा हो गया है । इनकी कविता के भाव पक्ष की कमी को कलापक्ष पूर्ण कर देता है । इनकी शैली भी सरल , सरस और प्रवाहपूर्ण है । इनकी छन्द योजना में नवीनता है ।
रचनायें – चतुर्वेदी जी के कविता संग्रह इस प्रकार हैं हिमकिरीटिनी , हिम तरंगिनी , माता , युग , चरण , समर्पण , वेणु लो गूंजे धरा । इसके अतिरिक्त इनका ” साहित्य देवता ” गद्य – काव्य की एक अमर कृति है । इनके भाषाओं के– “ चिन्तक की लाचारी ” तथा “ आत्म दीक्षा ” नामक संग्रह भी प्रकाशित हुये हैं । ।