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nibandh in hindi | सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘ निराला ‘

nibandh in hindi | सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘ निराला ‘

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘ निराला ‘

निराला जी जहाँ एक ओर अद्वैतवादी हैं वहाँ दूसरी ओर प्रगतिवादी । जहाँ एक ओर कठोर हैं वहाँ दूसरी ओर कोमल । जहाँ एक ओर मस्तिष्क का प्राधान्य है तो दूसरी ओर हृदय का ।। विरोधी तत्वों की समन्वय क्षमता यदि कहीं मिलती है , तो वे निराला जी हैं |

जीवन वृत्त – निराला जी का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में सन् १८ ९ ७ ई . में बसर पंचमी के दिन हुआ था । इनके पिता पं . रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव जिले के रहने वाले थे और मेदिनीपुर रियासत में नौकरी करते थे । घर पर ही शिक्षा का श्रीगणेश हुआ । प्रकृति में प्रारम्भ से ही स्वच्छन्दता थी , अतः मैट्रिक से आगे शिक्षा न चल सकी । १४ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह मनोहरा देवी के साथ हो गया था । पिता जी की मृत्यु के बाद इन्होंने भी रियासत की नौकरी कर ली थी । पिता की मृत्यु का आघात अभी भूल भी न पाए थे कि बाईस वर्ष की अवस्था में इनकी पत्नी का भी स्वर्गवास है । गया । आर्थिक संकटों , संघर्षों तथा जीवन को यथार्थ अनुभूतियों ने निराला जी के जीवन की दिशा जो मोड़ दी । ये राम कृष्ण मिशन , अद्वैत आश्रम बैनूर मठ चले गये । वहाँ उन्होंने दर्शन – शास्त्र का अध्ययन किया और आश्रम के ‘ समन्वय ‘ नामक पत्र के सम्पादन का कार्य भी किया । इसके पश्चात कलकत्ते से प्रकाशित ‘ मतवाला ‘ साप्ताहिक पत्र का भी इन्होंने सम्पादन किया । फिर ये लखनऊ की गये । कुछ समय लखनऊ में रहने के बाद ये इलाहाबाद चले गये और अन्त तक स्थायी रूप इलाहाबाद रहकर आर्थिक संकटों एवं अभावों की दुनिया में रहते हुये भी इन्होंने बहुमुखी साहित्य की सृष्टि की ।

निराला जी गम्भीर दार्शनिक , आत्माभिमानी एवं मानवातावादी थे । करुणा , दयालुता , दानशीलता और संवेदनशीलता , इनके जीवन की चिरसंगिनी थीं । दीन – दुखियों और असहायों का सहायक यह साहित्य महारथी , १५ अक्टूबर , १ ९ ६१ ई ० को भारत भूमि को त्याग कर सदा के लिये चला गया ।

रचनायें – निसला जी ने साहित्य के सभी अंगों पर विद्वत्ता एवं अधिकारपूर्ण लेखनी चलाई है । इनकी रचनायें अग्रलिखित हैं |

काव्य- परिमल , गीतिका , तुलसीदास , अनामिका , अर्चना , अणिमा , आराधना , कुकुरमुत्ता आदि ।

उपन्यास- अप्सरा , अलका , निरूपमा , प्रभावती , काले कारनामे आदि ।

कहानी – सुकुल की बीवी , लिसी , सखी अपना घर , चतुरी चमार आदि ।

निबन्ध- प्रबन्ध पद्य , प्रबन्ध प्रतिभा , प्रबन्ध परिचय , चाबुक रवीन्द्र हानन आदि ।

रेखाचित्र – कुल्जी , भाट , बिल्लेसुर आदि ।

जीवनी – राणा प्रताप , भीष्म , महाभारत , प्रहलाद , ध्रुव , शकुन्तला ।

अनूदित – कपाल कुण्डला , चन्द्रशेखर आदि ।

काव्यगत विशेषताएँ – निराला जी के काव्य में जहाँ एक ओर शक्ति और अदम्य पौरुष है वहीं दूसरी ओर शृंगार भी है । जहाँ एक ओर दार्शनिकता है वहां दूसरी ओर देश – प्रेम । जहाँ एक ओर सामाजिक वैषम्य के प्रति विद्रोह है , वहाँ दूसरी ओर मानवता के प्रति करुणा , संवेदना और टीस है । जहां एक ओर बुद्धि तत्व है , वहीं दूसरी ओर हृदय तत्व हैं । कहीं जागरण है , तो कहीं उन्माद और कहीं सिंह गर्जना । कहीं छायावादी निराला है , तो कहीं रहस्यवादी । कहीं प्रगतिवादी , तो कहीं मानवतावादी । भारतीय विधवा का एक भावपूर्ण चित्र देखिये –

वह इष्ट देव के मन्दिर की पूजा सी ,
वह दीप शिखा सी शान्त भाव में लीन ।
वह क्रूर काल – ताण्डव की स्मृति रेखा सी ,
वह टूटे तरु की छटी लता सी दीन ।
दलित भारत की ही विधवा है ।

अतुकान्त कविता में भिखारी का भाव भरा शब्द चित्र देखिये –

वह आता है ।
दो ट्रक कलेजे के करता ,
पछताता पथ पर आता ।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक ,
चल रहा लकुटिया टेक ,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को ,
मुंह फटी पुरानी झोली को फैलाता ।।

वर्तमान पूँजीवाद के प्रति विद्रोह

अबे सुनबे गुलाब !
भूल मत गर , पाई खुशबू रङ्गों – आब
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतरा रहा कैपीटलिस्ट ।।

भाषा – निराला जी की भाषा खड़ी बोली है । संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्राधान्य है । बंगला के प्रभाव के कारण भाषा में संगीतात्मकता है । समासान्त – पदावली तथा क्लिष्ट पद – योजना के कारण भाषा प्रायः दुरूह हो गई है , क्रिया – पदों का लोप अर्थ की दुर्बोधता में सहायक है । प्रगतिवादी कविताओं की भाषा सरल और बोधगम्य है । उर्दू , फारसी तथा अंग्रेजी , शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं ।

शैली – निराला जी की शैली अतुकान्त शैली है , जो बंगला शैली से प्रभावित है । क्रिया पदों से रहित , समासान्त पदों का प्रयोग इनकी शैली की विशेषता है । शैली ओज एवम् प्रभावपूर्ण हैं । संगीतात्मकता इनका विशेष गुण है । निराला जी की शैली मौलिक है । वे अपनी शैली के स्वयं उन्मदाता थे ।

रस , छन्द एवम् अलंकार – निराला जी के काव्य में श्रृंगार तथा वीर रसों का प्राधान्य है । दार्शनिक रचनाओं में शान्त रस भी कहीं – कहीं मिल जाता है । छन्द योजना की दृष्टि से निराला जी हिन्दी में मुक्त छन्द के प्रतिष्ठता कहे जाते हैं । निराला जी का काव्य अतुकान्त मुक्त छन्द से भरा पड़ा है ।

अलंकारों की दृष्टि से निराला जी को अनुप्रास , उपमा , रूपक तथा सन्देह आदि अलंकार अधिक प्रिय हैं । सांगोपांग रूपक के वर्णन बड़े सजीव हैं । उपमाओं के लिये निराला जी ने नवीन उपमाओं का सृजन किया है ।

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