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Birsa Munda Biography in Hindi – बिरसा मुंडा की जीवनी

Birsa Munda Biography in Hindi – बिरसा मुंडा की जीवनी

Birsa Munda Biography in Hindi

बिरसा मुंडा भारत के एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और लोक नायक थे जिनकी ख्याति अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में  काफी हुयी थी | उनके द्वारा चलाया जाने वाला सहस्राब्दवादी आंदोलन ने बिहार और झारखंड में खूब प्रभाव डाला था | केवल 25 वर्ष के जीवन में उन्होंने इतने मुकाम हासिल कर लिए थे कि आज भी भारत की जनता उन्हें याद करती है और भारतीय संसद में एकमात्र आदिवासी नेता बिरसा मुंडा का चित्र टंगा हुआ है ||

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची जिले के उलिहतु गाँव में हुआ था | मुंडा रीती रिवाज के अनुसार उनका नाम बृहस्पतिवार के हिसाब से बिरसा रखा गया था | बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था | उनका परिवार रोजगार की तलाश में उनके जन्म के बाद उलिहतु से कुरुमब्दा आकर बस गया जहा वो खेतो में काम करके अपना जीवन चलाते थे | उसके बाद फिर काम की तलाश में उनका परिवार बम्बा चला गया |

बिंदु (Points) जानकारी (Information)
नाम (Name) बिरसा मुंडा
जन्म (Date of Birth) 15 नवम्बर 1875
जन्म स्थान (Birth Place) उलीहातू, खूंटी (झारखंड)
पिता का नाम (Father Name) सुगना मुंडा
माता का नाम (Mother Name) कर्मी हाटू मुंडा
प्रसिद्धी कारण (Known For) क्रांतिकारी
विवाह स्थिति (Marital Status) अविवाहित
मृत्यु (Death) 9 जून 1900
मृत्यु कारण (Death Cause) हैजा

बिरसा मुंडा का संघर्ष

1886 से 1890 तक बिरसा मुंडा का परिवार चाईबासा में रहता था, जो सरदार विरोधी गतिविधियों के प्रभाव में आया था. वह भी इस गतिविधियों से प्रभावित थे और सरदार विरोधी आंदोलन को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. 1890 में उनके परिवार ने सरदार के आंदोलन का समर्थन करने के लिए जर्मन मिशन में अपनी सदस्यता छोड़ दी.

बाद में उन्होंने खुद को पोरहत क्षेत्र में संरक्षित जंगल में मुंडाओं के पारंपरिक अधिकारों पर लागू किए गए अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ लोकप्रिय आंदोलन आंदोलन में शामिल किया. 1890 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने भारत के कुल नियंत्रण हासिल करने के लिए ब्रिटिश कंपनी की योजनाओं के बारे में आम लोगों में जागरूकता फैलाना शुरू किया.

बिरसा मुंडा एक सफल नेता के रूप में उभरे और कृषि टूटने और संस्कृति परिवर्तन की दोहरी चुनौती के खिलाफ विद्रोह किया. उनके नेतृत्व में, आदिवासी आंदोलनों ने गति प्राप्त की और अंग्रेजों के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए गए. आंदोलन ने दिखाया कि आदिवासी मिट्टी के असली मालिक थे और बिचौलियों और अंग्रेजों को खदेड़ने की भी मांग की.

अंततः उनके अचानक निधन के बाद आंदोलन समाप्त हो गया. लेकिन यह उल्लेखनीय रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने औपनिवेशिक सरकार को कानूनों को लागू करने के लिए मजबूर किया ताकि आदिवासी लोगों की भूमि को डिकस (बाहरी लोगों) द्वारा आसानी से दूर नहीं किया जा सके. यह आदिवासी समुदाय की ताकत और ब्रिटिश राज के पूर्वाग्रह के खिलाफ खड़े होने वाले साहस आदिवासियों की ताकत का भी प्रतीक था.

बिरसा मुंडा सर्वशक्तिमान के स्वयंभू दूत भी थे और उन्होंने हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया. उन्होंने सिफारिश की कि जो आदिवासी लोग ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, वे अपनी मूल धार्मिक प्रणाली में लौट आए और उन्होंने एक ईश्वर की अवधारणा की वकालत की. आखिरकार, वह उन आदिवासी लोगों के लिए एक देव-व्यक्ति के रूप में आया. जिन्होंने उनका आशीर्वाद मांगा.

लोगों का विश्वास

इसके बाद बिरसा के जीवन में एक नया मोड़ आया। उनका स्वामी आनन्द पाण्डे से सम्पर्क हो गया और उन्हें हिन्दू धर्म तथा महाभारत के पात्रों का परिचय मिला।

यह कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे।

लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाते हैं।

Birsa Munda Biography Hindi

प्रभाव में वृद्धि

जन-सामान्य का बिरसा में काफ़ी दृढ़ विश्वास हो चुका था, इससे बिरसा को अपने प्रभाव में वृद्धि करने में मदद मिली।

लोग उनकी बातें सुनने के लिए बड़ी संख्या में एकत्र होने लगे। बिरसा ने पुराने अंधविश्वासों का खंडन किया।

लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी। उनकी बातों का प्रभाव यह पड़ा कि ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी और जो मुंडा ईसाई बन गये थे, वे फिर से अपने पुराने धर्म में लौटने लगे।

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मुंडा विद्रोह का नेतृत्‍व

1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया।

1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया औरहजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी।

लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवनकाल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया।

उन्हें उस इलाके के लोग “धरती बाबा” के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने कीचेतना जागी।

Birsa Munda Biography Hindi

गिरफ़्तारी

बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण करने वाले ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा भी लोगों को दी।

यह देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लोगों की भीड़ जमा करने से रोका। बिरसा का कहना था कि मैं तो अपनी जाति को अपना धर्म सिखा रहा हूँ। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया, लेकिन गांव वालों ने उन्हें छुड़ा लिया।

शीघ्र ही वे फिर गिरफ़्तार करके दो वर्ष के लिए हज़ारीबाग़ जेल में डाल दिये गये। बाद में उन्हें इस चेतावनी के साथ छोड़ा गया कि वे कोई प्रचार नहीं करेंगे।

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संगठन का निर्माण

परन्तु बिरसा कहाँ मानने वाले थे। छूटने के बाद उन्होंने अपने अनुयायियों के दो दल बनाए।

एक दल मुंडा धर्म का प्रचार करने लगा और दूसरा राजनीतिक कार्य करने लगा। नए युवक भी भर्ती किये गए।

इस पर सरकार ने फिर उनकी गिरफ़्तारी का वारंट निकाला, किन्तु बिरसा मुंडा पकड़ में नहीं आये। इस बार का आन्दोलन बलपूर्वक सत्ता पर अधिकार के उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ा।

यूरोपीय अधिकारियों और पादरियों को हटाकर उनके स्थान पर बिरसा के नेतृत्व में नये राज्य की स्थापना का निश्चय किया गया।

बिरसा मुंडा की मृत्यु

3 मार्च 1900 को बिरसा की आदिवासी छापामार सेना के साथ मकोपाई वन (चक्रधरपुर) में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गिरफ्तार किया गया था. 9 जून 1900 को रांची जेल में 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई, जहाँ उन्हें कैद कर लिया गया था. ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि उनकी मृत्यु हैजा से हुई हैं, हालांकि सरकार ने बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाए. अफवाहों ने हवा देते हुए कहा कि शायद उन्हें जहर दिया गया था.

स्मारक

इस क्रांतिकारी को सम्मानित करने के लिए, कई संस्थानों / कॉलेजों और स्थानों का नाम उनके नाम पर रखा गया है. कुछ प्रमुख हैं ‘बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’, ‘बिरसा कृषि विश्वविद्यालय’, ‘बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम’ और ‘बिरसा मुंडा एयरपोर्ट’ आदि हैं.

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