Bihar board class 8th Geography chapter 3 A
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(क) लौह-इस्पात उद्योग
पाठ का सारांश :- अधिकांश वस्तुएँ जिनका उपयोग हम दैनिक उपयोग में वस्तुओं, औजारों व मशीनों के रूप में करते हैं, वे सभी लोहा या इस्पात से बनती हैं। जैसे—रेलगाड़ी, बस, पुल, साइकिल इत्यादि । इसके अलावा खनन में प्रयोग होने वाली मशीनें, कृषि उपकरण, बड़े-बड़े पोत,
रेलमार्ग, औद्योगिक व विद्युत इकाईयाँ इत्यादि सभी का निर्माण लौह इस्पात से किया जाता है।
इन सभी वस्तुओं के निर्माण हेतु जिस स्थान पर लौह-इस्पात का उत्पादन किया जाता है, उन्हें लौह-इस्पात उद्योग केन्द्र कहा जाता है। भारत में प्रमुख लोहे इस्पात केन्द्र झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु में है। यह एक आधारभूत या पोषक उद्योग है जिसके उत्पाद पर अन्य दूसरे उद्योग निर्भर हैं। भारत में छोटानागपुर पठार के सटे क्षेत्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पं. बंगाल उच्च कोटि के लौह अयस्क तथा अच्छी गुणवत्ता वाले कोककारी कोयला और अन्य संसाधनों से परिपूर्ण हैं। जिसके कारण इन प्रदेशों में लौह इस्पात उद्योग स्थापित किये गये हैं। इसी प्रकार, कर्नाटक में भद्रावती और विजयनगर, आंध्रप्रदेश में विशाखापतनम्, तमिलनाडु में सेलम स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। इस्पात के निर्माण के लिए सबसे पहले कच्चे माल के रूप में लौह अयस्क एवं अन्य खनिज प्राप्त किया जाता है। इसे झोंककर भट्ठी (बलास्ट फर्नेस) में गलाया जाता है। यह तरल रूप में आ जाता है तो इसे साँचे में डालकर ढलवा लोहा बनाया जाता है । ढलवाँ लोहे को पुनः गलाकर ऑक्सीकरण द्वारा अशुद्धता हटाकर मैंगनीज, निकल, क्रोमियम चूना-पत्थर मिलाकर शुद्ध किया जाता है तथा मिश्र धातु बनाया जाता है। अब इस धातु को रोलिंग, प्रेसिंग एवं ढलाई के द्वारा निश्चित आकार दिया जाता है।
भारत में इस्पात बनाने का पहला कारखाना 1907 ई. में साकची नामक स्थान पर प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जमशेदजी टाटा द्वारा लगाया गया था । यह स्थान वर्तमान में झारखंड में स्थित है।
इस संयंत्र के लिए लौह अयस्क नोआमंडी, बदाम पहाड़ एवं गुरु महिसानी (उड़ीसा) की पहाड़ियों से प्राप्त होता है जो यहाँ से लगभग 100 किलोमीटर दूर है। कुल अयस्क की आवश्यकता का 50% भाग अकेले नोआमंडी से आता है। कोयला झरिया की खानों से मिलता है। चूना-पत्थर 320 किलोमीटर की दूरी से विशेषकर विरमित्रपुर, हाथीबारी, बिसरा और कटनी से आता है।
डोलोमाईट पागपोश से आता है । पानी की आवश्यकता स्वर्णरेखा और खरकई नदियाँ पूरा करती हैं। टिस्को के संयत्र से सलाखें, गर्डर, पहिए और पटरियाँ, चादरें, स्लीपर एवं फिश प्लेट बनाये जाते हैं। यहाँ उत्पादित माल को दूसरी जगह भेजने के लिए जमशेदपुर का संयंत्र दक्षिण पूर्वी रेलमार्ग द्वारा कोलकाता एवं शेष भारत से जुड़ा है तथा सड़क मार्गों से भी अच्छी प्रकार जुड़ा है। कोलकाता पत्तन द्वारा निर्मित सामान को विदेशों में भी भेजा जाता है। यहाँ स्थानीय संथाली लोग काम करते हैं और इनके साथ-साथ बिहार, पश्चिम-बंगाल, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश के लोग भी कार्य करते हैं।
बोकारो में भी लौह इस्पात उद्योग केन्द्र हैं जिनकी स्थापना 1964 ई. में की गयी थी। इस संयंत्र के लिए लौह अयस्क किरीबुरू (उड़ीसा) से प्राप्त होता है। यहाँ अनेक प्रकार के उद्योगों के लिए सहायक कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होने वाली स्टील की चादरें, गर्डर, सलाखें, लौह के पैड, रेलपटरियाँ, फिश प्लेट इत्यादि बनाये जाते हैं।
लौह इस्पात उद्योग को किसी भी देश के उद्योगों की रीढ़ माना जाता है क्योंकि औद्योगिक विकास हेतु बुनियादी वस्तु, औजारों, मशीनों व आधारभूत ढाँचे का निर्माण लौह-इस्पात से ही होता है। यदि हम विश्व परिप्रेक्ष्य में देखें तो ज्ञात होगा कि जिन देशों में लौह इस्पात की खपत
अधिक है वे देश ही विकसित हैं। अगर भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्र निर्माताओं ने इस उद्योग की आवश्यकता को समझते हुए सर्वप्रथम इस उद्योग को स्थापित किया और आज यह उद्योग देश की अधिकांश आवश्यकता की पूर्ति के साथ इस्पात का निर्यात
भी कर रहा है। भारत केवल उच्च कोटि के कुछ इस्पात का आयात करता है। भारत विश्व में स्पंज लोहे का सबसे बड़ा उत्पादक है। अब तो भारत में विदेशों से प्राप्त लोहा-इस्पात स्क्रैपर से नया इस्पात तैयार कर धन व साधनों की बचत कर रहा है।
अभ्यास के प्रश्न
I. बहुवैकल्पिक प्रश्न-
सही विकल्प को चुनें।
1. भद्रावती लौह-इस्पात उत्पादक केन्द्र किस राज्य में है ?
(क) झारखंड
(ख) तमिलनाडु
(ग) कर्नाटक
(घ) छत्तीसगढ़
2. जमशेदपुर स्थित टाटा लौह इस्पात केन्द्र की स्थापना किस वर्ष की गई थी?
(क) 1910
(ख) 1905
(ग) 1917
(घ) 1907
3. बोकारो लौह-इस्पात केन्द्र किस पंचवर्षीय योजना में लगाया गया था?
(क) पहली
(ख) दूसरी
(ग) तीसरी
(घ) चौथी
4. इनमें से कौन लौह इस्पात उत्पादक केन्द्र सेल के अंतर्गत नहीं है ?
(क) दुर्गापुर
(ख) बोकारो
(ग) भिलाई
(घ) वर्णपुर
5. सेलम लौह इस्पात केन्द्र किस राज्य में अवस्थित है ?
(क) तमिलनाडु
(ख) कर्नाटक
(ग) झारखंड
(घ) केरल
उत्तर-1. (ग) कर्नाटक, 2. (घ) 1907, 3. (घ) चौथी, 4. (घ) बर्णपुर, 5. (क) तमिलनाडु ।
II. खाली स्थानों को उपयुक्त शब्दों के साथ पूरा करें।
1. धातु को रोलिंग, प्रोसेसिंग एवं………. के द्वारा निश्चित आकार दिया जाता है।
2. उड़ीसा में ……..लौह इस्पात केन्द्र है।
3. विजयनगर लौह इस्पात केन्द्र…………. राज्य में है।
4. टिस्को को……………. की खानों से कोयला मिलता है।
5. बोकारो लौह इस्पात केन्द्र …….. की सहायता से लगाया गया था ।
उत्तर-1. ढलाई, 2. राउरकेला (सेल), 3. कर्नाटक, 4. झरिया,
5. रूस (सोवियत संघ)।
III. सही मिलान करें-
1. दुर्गापुर
2. विशाखपत्तनम
3. भिलाई
4. भद्रावती
उत्तर-
1. दुर्गापुर
2. विशाखपत्तनम (क) आंध्रप्रदेश
3. भिलाई
4. भद्रावती
IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए । (अधिकतम 50 शब्दों में)-
1. बोकारो लौह इस्पात केन्द्र को मैंगनीज किन-किन स्थानों से प्राप्त होता है ? केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर–बोकारो लौह इस्पात केन्द्र को मैंगनीज बदमा पहाड़, गुरु महिसानी एवं सुलायपत से प्राप्त होता है।
2. टिस्को को जल की सुविधा कहाँ से मिलती है ?
उत्तर-टिस्को को जल की सुविधा स्वर्णरेखा और खरकई नदियों से मिलती है।
3. टिस्को में कामगार के रूप में मुख्यतः कौन से लोग हैं ?
उत्तर-टिस्को में कामगार के रूप में मुख्यत: स्थानीय संथाली लोग हैं तथा इनके साथ-साथ बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा मध्यप्रदेश के लोग भी कार्य करते हैं।
4. बोकारो लौह इस्पात केन्द्र कब और किसके सहयोग से स्थापित की गई थी?
उत्तर-बोकारो लौह इस्पात केन्द्र 1964 ई. में रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के सहयोग से स्थापित की गई थी।
5. टिस्को में बनने वाली कुछ चीजों के नाम लिखिए ।
उत्तर–सलाखें, गर्डर, पहिए, पटरियाँ, चादरें, स्लीपर एवं फिश, प्लेट आदि ।
v. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (अधिकतम 200 शब्दों में)-
1. टिस्को लौह इस्पात केन्द्र को मिलने वाली सुविधाओं का विस्तृत विवरण दीजिए ।
उत्तर-टिस्को लौह इस्पात केन्द्र को लौह-अयस्क नोआमंडी (प. सिंहभूम), बदमा पहाड़ एवं गुरु महिसानी (उड़ीसा) की पहाड़ियों से प्राप्त होता है जो यहाँ से लगभग 100 किलोमीटर दूर । कुल अयस्क की आवश्यकता का 50% भाग अकेले नोआमंडी से आता है। कोयला झरिया की खानों से मिलता है। चूनापत्थर 320 किलोमीटर की दूरी से विशेषकर विरमित्रपुर, हाथीबारी, बिसरा और कटनी से आता है। डोलोमाईट पागपोश से आता है। पानी की आवश्यकता स्वर्णरेखा और खरकई नदियाँ पूरा करती हैं। टिस्को के संयत्र से सलाखें, गर्डर, पहिए और पटरियाँ, चादरें, स्लीपर एवं फिश प्लेट बनाये जाते हैं।
2. बोकारो लौह इस्पात केन्द्र को उपलब्ध भौगोलिक सुविधाओं का वर्णन करें।
उत्तर–बोकारो लौह इस्पात केन्द्र को बोकारो स्टील लिमिटेड (B.S.L.) के नाम से भी जाना जाता है। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के तहत इसे 1964 ई में रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के सहयोग से सार्वजनिक क्षेत्र के प्रक्रम के रूप में इसकी स्थापना की गई थी। इसकी स्थापना कच्चे माल की उपलब्धता वाले स्थानों के नजदीक की गई है जिससे यहाँ तैयार इस्पात कम लागत पर उपलब्ध है।
इस संयंत्र के लिए लौह-अयस्क किरीबुरू (उड़ीसा) से प्राप्त होता है। चूना पत्थर विरमित्रपुत्र (बंगाल), कोयला झरिया और बोकारो की खानों से, पानी दामोदर नदी से, मैंगनीज बदमा पहाड़, गुरु महिसानी एवं सुलायपत से प्राप्त होता है।
3. इस्पात निर्माण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लौह-इस्पात उद्योग को किसी भी देश के उद्योगों की रीढ़ माना जाता है क्योंकि औद्योगिक विकास हेतु बुनियादी वस्तु, औजारों, मशीनों व आधारभूत ढाँचे का निर्माण लौह-इस्पात से ही होता है। यदि हम विश्व में देखें तो पाते हैं कि जिन देशों में लौह इस्पात की खपत अधिक
है वे देश ही विकसित है। जैसे—जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस इत्यादि । भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्र निर्माताओं ने इस उद्योग की आवश्यकता को समझते हुए सर्वप्रथम इस उद्योग को स्थापित किया और आज यह उद्योग देश की अधिकांश आवश्यकता की पूर्ति के साथ इस्पात को निर्यात भी कर रहा है। भारत केवल उच्च कोटि के कुछ इस्पात का आयात करता है। भारत विश्व में स्पंज लोहे का सबसे बड़ा उत्पादक है। अब तो भारत में विदेशों से प्राप्त लोहा-इस्पात स्क्रैपर (अन्न-उपयोगी) से नया इस्पात तैयार कर धन व साधनों की बचत कर रहा है।
वित्तीय वर्ष 09-10 के दौरान भारत में लौह इस्पात का उत्पादन-
उत्पादन (मिलियन टन में)
कुल उत्पादन 59.69
आयात 7.29
निर्यात 3.24
उपभोग (घरेलू) 56.48