12-psychology

Bihar board class 12th Psychology notes chapter 5

Bihar board class 12th Psychology notes chapter 5

Bihar board class 12th Psychology notes chapter 5

चिकित्सा उपागम

        [Therapeutic Approaches]
पाठ्यक्रम
मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं प्रक्रिया; चिकित्सा के प्रकार; मानसिक रोगियों का पुन: स्थापन
 याद रखने योग्य बातें
1. मनश्चिकित्सा उपचार चाहनेवाले या स्वार्थी तथा उपचार करनेवाले या चिकित्सा के बीच में एक ऐच्छिक संबंध है।
2. मनश्चिकित्सा का उद्देश्य दुरनुकूलन व्यवहारों को बदलना, वैयक्तिक कष्ट की भावन को कम करना तथा रोगी को अपने पर्यावरण में बेहतर ढंग से अनुकूलन करने में मदद करना है।
3. अपर्याप्त वैवाहिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन की यह आवश्यकता होती है कि व्यक्ति के वैयक्तिक पर्यावरण में परिवर्तन किए जाएँ।
4. सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक विशेष संबंध को चिकित्सात्मक संबंध या चिकित्सात्मक मैत्री कहा जाता है।
5. सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति दया और करुणा तो होती है, किन्तु दूसरे व्यक्ति की तरह वह अनुभव नहीं कर सकता।
6. बौद्धिक समझ भावशून्य इस आशय से होती है कि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की तरह अनुभव कर पाने में असमर्थ होता है और न ही वह सहानुभूति का अनुभव कर पाता है।
7. चिकित्सा को सेवार्थी के विश्वास और भरोसे का किसी भी प्रकार से कभी भी अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए।
8. मनोगतिक चिकित्सा मुक्त साहचर्य विधि और स्वन को बताने की विधि का उपयोग सेवार्थी की भावनाओं और विचारों को प्राप्त करने के लिए करती है।
9. मनोगतिक चिकित्सा संवेगात्मक अंतदृष्टि को महत्त्वपूर्ण लाभ मानती है जो सेवार्थी उपचार
के द्वारा प्राप्त करता है।
10. एक पूर्ण विकसित अन्यारोपण तंत्रिकाताप चिकित्सक को सेवार्थी के द्वारा सहे जा रहे
अंत:मनोद्वंद्व के स्वरूप के प्रति अभिज्ञ बनाता है।
11. सकारात्मक अन्यारोपण में सेवार्थी चिकित्सक की पूजा करने लगता है या उससे प्रेम करने लगता है कि चिकित्सक का अनुमोदन चाहता है।
12. नकारात्मक अन्यारोपण तब प्रदर्शित होता है जब सेवार्थी में चिकित्सक के प्रति शत्रुता, क्रोध और अमर्ष या अप्रसन्नता की भावना होती है।
13. सचेतन प्रतिरोध तब होता है जब सेवार्थी जान-बूझकर किसी सूचना को छिपाता है।
14. अचेतन प्रतिरोध तब उपस्थित माना जाता है जब सेवार्थी चिकित्सा सत्र के दौरान मूक या चुप हो जाता है, तुच्छ बातों का पुनः स्मरण करता है किन्तु संवेगात्मक बातों को नहीं, नियोजित भेंट में अनुपस्थित होता है तथा चिकित्सा सत्र के लिए देर से आता है।
15. स्पष्टीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से चिकित्सक किसी अस्पष्ट या भ्रामक घटना को केन्द्र बिन्दु लाता है।
16. अंतर्दृष्टि एक क्रमिक प्रक्रिया है जहाँ अचेतन स्मृतियाँ लगातार सचेतन अभिज्ञाता में समाकलित होती रहती है; ये अचेतन घटनाएँ स्मृतियाँ अन्यारोपण में पुनः अनुभूत होती है और समाकलित की जाती हैं।
17. सांवेगिक समझ भूतकाल की अप्रीतिकर घटनाओं के प्रति अपनी अविवेकी प्रतिक्रिया की स्वीकृति, सांवेगिक रूप से परिवर्तन की तत्परता तथा परिवर्तन करना सांवेगिक अंतर्दृष्टि है।
18. संज्ञानात्मक चिकित्साओं में मनोवैज्ञानिक कष्ट का करण अविवेकी विचारों और विश्वासों में स्थापित किया जाता है।
19. दोषपूर्ण व्यवहार का शमन करना या उन्हें समाप्त करना और उन्हें अनुकूली व्यवहार प्रतिरूपों से प्रतिस्थापित करना उपचार का उद्देश्य होता है।
20. निषेधात्मक प्रबलन.का तात्पर्य अवाछिंत अनक्रिया के साथ संलग्न एक ऐसे परिणाम से।
21. संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों, जैसे-दुरिचता अवसाद, आंतक दौरा, सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षिप्त और प्रभावोत्पादक
22. मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप स विकसित होने की सहज आवश्यकता से अभिप्रेरित होते हैं।
23. समाकलित होने का तात्पर्य है साकल्य-बोध, एक संपूर्ण व्यक्ति होना, भिन्न-भिन्न अनुभवों के होते हुए भी मूल भाव में वही व्यक्ति होना।
24. उद्बोधक चिकित्सा में चिकित्सक निष्कपट होता है और अपनी भावनाओं, मूल्यों और आने अपने अस्तित्व के बारे में सेवार्थी से खुलकर बात करता है।
25. सेवार्थी-कॉन्द्रित चिकित्सा कार्ल रोजर्स द्वारा प्रतिपादित की गई है।
26. गेस्यल्ट चिकित्सा को फ्रेडरिक पल्स ने अपनी पत्नी लॉरा पल्र्स के साथ प्रस्तुत की थी।
27. गेस्टाल्ट चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति को आत्म-जागरुकता एवं आत्म-स्वीकृति की थी।
28, वैकल्पिक चिकित्सा में पारंपरिक औषध-उपचार या मनश्चिकित्सा की वैकल्पिक उपचार संभावनाएँ होती हैं। योग, ध्यान, ऐक्यूपंक्चर, वनौषधि आदि वैकल्पिक चिकित्साएँ हैं।
29. योग एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसे पतंजलि के योग सूत्र के अष्टांग योग में विस्तृत रूप से बताया गया है।
30. योग का आशय केवल आसन था शरीर संस्थिति घटक अथवा श्वसन अभ्यास या प्राणायाम अथवा दोनों के संयोग से होता है।
31. तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक, जो अत्यधिक वायु-संचार करती है तथा जो सुदर्शन क्रिया योग में प्रयुक्त की जाती है, लाभदायक, कम खतरेवाली और कम खर्च वाली तकनीक है।
   (एन. सी. ई. आर. टी. पाठ्यपुस्तक तथा    परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
                वस्तुनिष्ठ प्रश्न
           (Objective Questions)
1. अमेरिका में सिखाए जानेवाले योग को क्या कहते हैं?
(क) योग
(ख) कुंडलिनी योग
(ग) सुदर्शन योग
(घ) निष्ठा योग
उत्तर (ख)
2. निम्नलिखित में किसमें मंत्रों के उच्चारण के साथ वसन तकनीक या प्राणायाम को संयुक्त किया जाता है?
(क) ध्यान
(ख) सुदर्शन योग
(ग) कुंडलिनी योग
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (ग)
3. मानसिक रोगियों के पुनः स्थापन का उद्देश्य होता है-
(क) रोगी को सशक्त बनाना
 (ख) रोगी को घर देना
(ग) रोगी की देखभाल करना
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
4. मानसिक रोगियों के पुनः स्थापन का उद्देश्य होता है-
(क) व्यावसायिक चिकित्सा
(ख) सामाजिक कौशल प्रशिक्षण
(ग) व्यावसायिक प्रशिक्षण
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
5. योग विधि बढ़ाती है-
(क) भावदशा
(ख) ध्यान
(ग) दबाव सहिष्णुता
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
6. अपर्याप्त वैवाहिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन की यह आवश्यकता होती है कि व्यक्ति के पर्यावरण में परिवर्तन किए जाएँ-
(क) वैयक्तिक
(ख) सामाजिक
(ग) आर्थिक
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
7. निम्नलिखित में कौन मनश्चिकित्सात्मक उपागम के लक्षण नहीं हैं ?
(क) चिकित्सा के विभिन्न सिद्धांतों में अंतनिर्हित नियमों का व्यवस्थित या क्रमबद्ध अनुप्रयोग होता है।
(ख) चिकित्सात्मक स्थितियों में कए चिकित्सक और सेवार्थी होता है जो अपनी व्यवहारात्मक समस्याओं के लिए सहायता चाहता है।
(ग) केवल वे व्यक्ति जिन्होंने कुशल पर्यवक्षण में
व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, मनश्चिकित्सा कर सकते हैं, हर कोई नहीं।
(घ) मनश्चिकित्सा उपचार चाहनेवाले या सेवार्थी तथा उपचार करनेवाले के बीच में एक ऐच्छिक संबंध है।
उत्तर-(घ)
8. निम्नलिखित में कौन मनश्चिकित्सा में उद्देश्य नहीं हैं ?
(क) संगात्मक दबाव को अधिक बढ़ाना
(ख) आत्म-जागरुकता को बढ़ाना
(ग) निर्णय को सुकर बनाना
(घ) जीवन में अपनी विकल्पों के प्रति जागरूक होना
उत्तर-(क)
9. सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक संबंध को क्या कहा जाता है?
(क) मैत्री
(ख) सकारात्मक मैत्री
(ग) चिकित्सात्मक मैत्री
(घ) व्यवहारात्मक मैत्री
उत्तर-(ग)
10. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है?
(क) सहानुभूति में व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की तरह का अनुभव नहीं कर सकता
(ख) सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति बिल्कुल करुणा नहीं होती है
(ग) सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति दया और करुणा होती है
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ख)
11. मनोगतिक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया?
(क) कार्ल रोजर्स
(ख) फ्रेडरिक पर्ल्स
(ग) सिगमंड फ्रायड
(घ) वोल्प
उत्तर-(ग)
12. अंतः मनोद्वंद्व को बाहर निकालने के लिए किस विधि का उपयोग होता है ?
(क) मुक्त साहचर्य विधि
(ख) अन्यारोपण विधि
(ग) स्पष्टीकरण विधि
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
13. निम्नलिखित में किसमें सेवार्थी चिकित्सक की पूजा करने लगता है ?
(क) नकारात्मक अन्यारोपण
(ख) सकारात्मक अन्यारोपण
(ग) अन्यारोपण तंत्रिकाताप
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (ख)
14. निम्नलिखित में निर्वचन के विश्लेषणात्मक तकनीक कौन-सी है?
(क) प्रतिरोधी
(ख) स्पष्टीकरण
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (ग)
15. निम्नलिखित में कौन रोगी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता है ?
(क) प्रतिरोधी
(ख) स्पष्टीकरण
(ग) अन्यारोपण
(घ) समाकलन कार्य
उत्तर (घ)
16. निम्नलिखित में किसमें अचेतन स्मृतियां लगातार सचेतन अभिज्ञता में समाकलित होती रहती हैं ?
(क) अंतर्दृष्टि
(ख) अन्यारोपण
(ग) स्वप्न विधि
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (क)
17. निम्नलिखित में कौन सेवार्थी को कष्ट प्रदान करते हैं ?
(क) अपक्रियात्मक व्यवहार
(ख) क्रियात्मक व्यवहार
(ग) व्यक्तिगत व्यवहार
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(क)
18. क्रमिक विसंवेदनीकरण को किसने प्रतिपादित किया ?
(क) अल्बर्ट एलिस
(ख) वोल्प
(ग) विक्टर फ्रेंकल
(घ) जॉन पर्ल्स
उत्तर-(ख)
19. यदि कोई अनुकूली व्यवहार कभी-कभी ही घटित होता है जो इस न्यूनता को बढ़ाने के लिए क्या दिया जाता है ?
(क) निषोधात्मक प्रबलन
(ख) विमुखी अनुबंधन
(ग) सकारात्मक प्रबलन
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (ग)
20. संवेग तर्क चिकित्सा को किसने प्रतिपादितकिया ?
(क) अल्बर्ट एलिस
(ख) विक्टर फ्रेंकल
(ग) आरन बेक
(घ) सिगमंड फ्रायड
उत्तर (क)
21. निम्नांकित में से व्यवहार चिकित्सा किस सिद्धांत पर आधारित है ? 
(क) अभिपेरणा के सिद्धांत पर
 (ख) प्रत्यक्षण के सिद्धांत पर
(ग) सीखने के सिद्धांत पर
(घ) इनमें सभी सिद्धांतों पर
उत्तर-(ग)
22. मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा का संबंध है-
(क) फ्रायड से
(ख) युंग से
(ग) एडलर से
(घ) मैस्लो से
उत्तर-(क)
23. मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों के जीवन दर्शन में-
(क) निश्चितता पाई जाती है
(ख) दूसरों के जीवन दर्शन की नकल पाई जाती है
(ग) अपूर्वता पाई जाती है
(घ) भावी योजनाओं की झलक पाई जाती है
उत्तर-(क)
24. मानसिक अस्वस्थता का प्रमुख लक्षण है-
(क) उल्टी-सीधी हरकतें करना
(ख) पागलपन के लक्षण
(ग) संतुलित व्यवहार न करना
(घ) नई परिस्थिति में घूटन महसूस करना
उत्तर (ग)
25. इनमें किसे ‘विशेषक उपागम’ का अग्रणी माना जाता है ?
(क) गेस्टॉल्ट
(ख) गॉर्डन ऑलपोर्ट
(ग) टिचनर
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (ख)
26. व्यक्ति का मूल्यांकन करने के लिए सबसे अधिक उपयोग की जानेवाली तकनीकों के अंतर्गत कौन-सा नहीं आता है ?
(क) मनोमितिक परीक्षण
(ख) आत्म-प्रतिवेदन माप
(ग) प्रक्षेपी तकनीकें
(घ) अविभेदित प्रकार
उत्तर-(घ)
27. जर्मन शब्द ‘गेस्टाल्ट’ का अर्थ है-
(क) विकृति
(ख) समग्र
(ग) दुश्चिता
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ख)
28. व्यवहार चिकित्सा की जिस प्रविधि में रोगी को वास्तविक परिस्थिति में रखकर इसमें काफी मात्रा में चिंता उत्पन्न कर दी जाती है, उसे कहा जाता है- 
(क) फ्लडिंग
(ख) विरुचि चिकित्सा
(ग) अन्तः स्फोटात्मक चिकित्सा
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
29. बीमारियों का अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण का दसवां संस्करण-ICD-10 कब प्रकाशित किया गया है?
(क) 1982- ई०
(ख) 1992 ई०
(ग) 2006 ई०
(घ) 2009 ई०
उत्तर-(ख)
30. बुलिमिया एक ऐसी विकृति है जिसमें रोगी को-
(क) भूख कम लगता है
(ख) प्यास अधिक लगता है
(ग) भूख अधिक लगता है
(घ) प्यास कम लगता है
उत्तर-(ग)
31. मनोगतिक चिकित्सा सर्वप्रथम के द्वारा प्रतिपादित किया गया ? 
(क) फ्रायड
(ख) एडलर
(ग) युग
(घ) वाटसन
उत्तर-(क)
32. रैसनल इमोटिव चिकित्सा का प्रतिपादन किया गया था- 
(क) इलिस
(ख) बेक
(ग) फ्रीडमैन
(घ) टर्क
उत्तर-(क)
33. किसने मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन किया ? 
(क) कार्ल रोजर्स
(ख) सिगमंड फ्रायड
(ग) रौल मे
(घ) विक्टर फैंक्ल
उत्तर-(ख)
34. निम्नांकित में किस अंतरण में क्लायंट चिकित्सक के प्रति घृणा, ईर्ष्या आदि को दिखलाता है ?
(क) धनात्मक
(ख) ऋणात्मक
(ग) धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
35. मन, मस्तिष्क तवा असंकाय तंत्र के आपसी संबंघको अध्ययन करने वाले विज्ञान को कहा जाता है?
(क) लाइको-न्यूरो इम्यूनोलॉजी
(ख) फेकल्टी साइकोलॉजी
(ग) कंग्सलल साइकोलॉजी
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (क)
36. मनोविश्लेषणात्मक चिकित्सा में निम्नांकित में किसका महत्व सर्वाधिक बतलाया गया है?
(क) स्थानान्तरण
(ख) प्रतिरोध
(ग) स्वतंत्र साहचर्य
(घ) स्वप्न विश्लेषण
उत्तर (घ)
              अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
        (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. मनश्चिकित्सा क्या है?
उत्तर-मनश्चिकित्सा उपचार चाहनेवाले या सेवार्थी तथा उपचार करनेवाले या चिकित्सक के बीच में एक ऐचिछक संबंध है।
प्रश्न 2. मनश्चिकित्सा का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर-मनश्चिकित्सा का उद्देश्य दुरनुकूलक व्यवहारों को बदलना, वैयक्तिक कष्ट की भावना को कम करना तथा रोगी को अपने पर्यावरण से बेहतर ढंग से अनुकूलन करने में मदर करना है।
प्रश्न 3. चिकित्सात्मक मैत्री किसे कहते हैं?
उत्तर-सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक विशेष संबंध को चिकित्सात्मक संबंध या चिकित्सात्मक मैत्री कहा जाता है। यह न तो एक क्षणिक परिचय होता है और न ही एक स्थायी एवं टिकाऊ संबंध।
प्रश्न 4. चिकित्सात्मक मैत्री के दो मुख्य घटक कौन-से हैं ?
उत्तर-चिकित्सात्मक मैत्री के दो मुख्य घटक हैं-
(i) पहला घटक इस संबंध की सविदात्मक प्रकृति है, जिसमें दो इच्छुक व्यक्ति, सेवार्थी एवं चिकित्सक, एक ऐसी साझेदारी भागीदारी में प्रवेश करते हैं जिसका उद्देश्य सेवार्थी की समस्याओं का निराकरण करने में उसकी मदद करना होता है।
(ii) दूसरा घटक है-चिकित्सा की सीमित अवधि।
प्रश्न 5. सहानुभूति क्या होती है?
उत्तर-तनुभूति में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की दुर्दशा को समझ सकता है तथा उसी की तरह अनुभव कर सकता है।
प्रश्न 6. तद्नुभूति क्या होती है?
उत्तर-तट्नुभूति में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की दुर्दशा को समझ सकता है तथा उसी का तरह अनुभव कर सकता है।
प्रश्न 7. मनश्चिकित्सा को कितने समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है ?
उत्तर-मनश्चिकित्सा को तीन व्यापक समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
(i) मनोगतिक मनश्चिकित्सा, (ii) व्यवहार मनश्चिकित्सा, (iii) अस्तित्वपरक मनश्चिकिता
प्रश्न 8. व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ किस कारण होती हैं?
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यवहार एवं संज्ञान के दोषपूर्ण अधिगम के कारण उत्पन्न होती है।
प्रश्न 9. अस्तित्वपरक चिकित्सा की क्या अवधारणा है?
उत्तर-अस्तित्वपरक चिकित्सा की अवधारणा है कि अपने जीवन और अस्तित्व के अर्थ में संबंधित प्रश्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण होते हैं।
प्रश्न 10. मनोगतिक चिकित्सा में क्या उत्पन्न किया जाता है ?
उत्तर-मनोगतिक चिकित्सा में बाल्यावस्था की अतृप्त इच्छाएँ तथा बाल्यावस्था के अनसुलझे भय अंत: मनोद्वंद्व को उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 11. व्यवहार चिकित्सा की अभिधारण क्या है?
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा की अभिधारण है कि दोषपूर्ण अनुबंधन प्रतिरूप, दोषपूर्ण अधिगम तथा दोषपूर्ण चिंतन एवं विश्वास दुरनुकूलक व्यवहारों को उत्पन्न करते हैं जो बाद में मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बनते हैं।
प्रश्न 12. अस्तित्वपरक चिकित्सा किसे महत्त्व देती है?
उत्तर-अस्तित्वपरक चिकित्सा वर्तमान को महत्त्व देती है। यह व्यक्ति के अकेलेपन, विसबंधन, अपने अस्तित्व की व्यर्थता के बोध इत्यादि से जुड़ी वर्तमान भावनाएँ हैं जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण है।
प्रश्न 13. मनोगतिक चिकित्सा के उपचार की मुख्य विधि क्या है ?
उत्तर-मनोगतिक चिकित्सा मुक्त साहचर्य विधि और स्वप्न को बताने की विधि का उपयोग सेवार्थी की भावनाओं और विचारों को प्राप्त करने के लिए करती है। इस सामग्री की व्याख्या सेवार्थी के समक्ष की जाती है ताकि इसकी मदद से वह अपने द्वंद्रों का सामना और समाधान कर अपनी समस्याओं पर विजय पा सके।
प्रश्न 14. मानवतावादी चिकित्सा किसे मुख्य लाभ मानती है ?
उत्तर-मानवतावादी चिकित्सा व्यक्तिगत संवृद्धि को मुख्य लाभ मानती है।
प्रश्न 15. व्यक्तिगत संवृद्धि क्या है ?
उत्तर-व्यक्तिगत संवृद्धि अपने बारे में और अपनी आकांक्षाओं, संवेगों तथा अभिप्रेरकों के
बारे में बढ़ती समझ प्राप्त करने की प्रक्रिया है।
प्रश्न 16. मनोगतिक चिकित्सा का प्रतिपादन किसने किया था ?
उत्तर-मनोगतिक चिकित्सा का प्रतिपादन फ्रायड द्वारा किया गया था।
प्रश्न 17. अंत: मनोद्वंद्व को बाहर निकालने के लिए किन विधियों का आविष्कार किया गया?
उत्तर-अंत: मनोद्वंद्व को बाहर निकालने के लिए दो महत्त्वपूर्ण विधियाँ-मुक्त साहचर्य विधि
तथा स्वप्न व्याख्या विधि का आविष्कार किया गया।
प्रश्न 18. सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि क्या है ?
उत्तर-मुक्त साहचर्य विधि सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि है।
प्रश्न 19. मुक्त साहचर्य विधि किसे कहते हैं ?
उत्तर-सेवार्थी को एक विचार को दूसरे विचार से मुक्त रूप से संबद्ध करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इस विधि को मुक्त साहचर्य विधि कहते हैं।
प्रश्न 20. रोगी के उपचार करने का क्या उपाय है ?
उत्तर-अन्यारोपन तथा व्याख्या या निर्वचन रोगी का उपचार करने के उपाय है।
प्रश्न 21. सकारात्मक अन्यारोपण क्या है?
उत्तर-कारात्मक अन्यारोपण में सेवार्थी चिकित्सक की पूजा करने लगता है या उससे प्रेम करने लगता है और चिकित्सक का अनुमोदन चाहता है।
प्रश्न 22. नकारात्मक अन्यारोपण कब प्रदर्शित होता है?
उत्तर-नकारात्मक अन्यारोपण तब प्रदर्शित होता है जब सेवार्थी में चिकित्सक के प्रति शत्रुता क्रोध और अमर्ष या अप्रसन्नता की भावना होती है।
प्रश्न 23. अन्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिरोध क्यों होता है?
उत्तर-चूॅंकि अन्यारोपण की प्रक्रिया अचेतन इच्छाओं और द्वंद्वों को अनावृत्त करती है, जिसमें कष्ट का स्तर बढ़ जाता है इसलिए सेवार्थी अन्यारोपण का प्रतिरोध करता है।
प्रश्न 24. सचेत प्रतिरोध कब होता है?
उत्तर-सचेत प्रतिरोध तब होता है जब सेवार्थी जान-बूझकर किसी सूचना को छिपाता है।
प्रश्न 25. अचेतन प्रतिरोध कब होता है?
उत्तर-अचेतन प्रतिरोध तब माना जाता है जब सेवार्थी चिकित्सा सत्र के दौरान मूक या चुप हो जाता है, तुच्छ बातों का पुनः स्मरण करता है किन्तु संवेगात्मक बातों का नहीं, नियोजित भेंट में अनुपस्थित होता है तथा चिकित्सा सत्र के लिए घर से आता है।
प्रश्न 26, परिवर्तन को किस युक्ति द्वारा प्रभावित किया जाता है?
उत्तर-निर्वचन मूल युक्ति है जिससे परिवर्तन को प्रभावित किया जाता है।
प्रश्न 27. निर्वचन की दो विश्लेषणात्मक तकनीक कौन-सी है?
उत्तर-प्रतिरोध तथा स्पष्टीकरण निर्वचन की दो विश्लेषणात्मक तकनीक है।
प्रश्न 28. प्रतिरोध क्या है?
उत्तर-प्रतिरोध निर्वचन की विश्लेषणात्मक तकनीक है जिसमें चिकित्सक सेवार्थी के किसी एक मानसिक पक्ष की ओर संकेत करता है जिसका सामना सेवार्थी को अवश्य करना चाहिए।
प्रश्न 29. स्पष्टीकरण क्या है?
उत्तर-स्पष्टीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से चिकित्सक किसी अस्पष्ट या भ्रामक घटना को केन्द्रबिन्दु में लाता है।
प्रश्न 30. समाकलन कार्य किसे कहते हैं?
उत्तर-प्रतिरोध, स्पष्टीकरण तथा निर्वचन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत प्रक्रिया को समाकलन कार्य कहते हैं।
प्रश्न 31. समाकलन कार्य में क्या कार्य होता है?
उत्तर-समाकलन कार्य रोगी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में तथा बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता है।
प्रश्न 32. ‘अंतर्दृष्टि’ से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-अंतर्दृष्टि एक क्रमिक प्रक्रिया है जहाँ अचेतन स्मृतियाँ लगातार सचेतन अभिज्ञता में समाकलित होती रहती है; ये अचेतन घटनाएँ एवं स्मृतियाँ अन्यारोपण में पुनः अनुभूत होती हैं और समाकलित की जाती हैं।
प्रश्न 33. सांवेगिक समझ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-सांवेगिक समझ भूतकाल की अप्रीतिकर घटनाओं के प्रति अपनी अविवेकी प्रतिक्रिया की स्वीकृति, सांवेगिक रूप से परिवर्तन की तत्परता तथा परिवर्तन करना सांवेगिक अंतर्दृष्टि है।
प्रश्न 34. व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक कष्ट क्यों उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक कष्ट दोषपूर्ण व्यवहार प्रतिरूपों या विचार प्रतिरूपों के कारण उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 35. व्यवहार चिकित्सा का केन्द्र बिन्दु क्या होता है ?
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा का केन्द्र बिन्दु सेवार्थी में विद्यमान व्यवहार और विचार होते हैं।
प्रश्न 36. व्यवहार चिकित्सा का आधार क्या होता है ?
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा का आधार दोषपूर्ण या अपक्रियात्मक व्यवहार को निरूपित करना, इस व्यवहारों को प्रबलित तथा संपोषित करने वाले कारकों तथा उन विधियों को खोजना है जिनसे उन्हें परिवर्तित किया जा सके।
प्रश्न 37. अपक्रियात्मक व्यवहार क्या होते हैं?
उत्तर-अपक्रियात्मक व्यवहार वे व्यवहार होते हैं जो सेवार्थी को कष्ट प्रदान करते हैं।
प्रश्न 38. पूर्ववर्ती कारक क्या होते हैं ?
उत्तर-पूर्ववर्ती कारक कारक होते हैं जो व्यक्ति को उस व्यवहार में मग्न हो जाने के लिए पहले ही से प्रवृत्त कर देते हैं।
प्रश्न 39. संपोषण कारक क्या होते हैं ?
उत्तर-संपोषण कारक वे कारक होते हैं जो दोषपूर्ण व्यवहार के स्थायित्व को प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 40. स्थापन संक्रिया का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-यदि एक बच्चा रात का भोजन करने में परेशान करता है तो स्थापन संक्रिया यह होगी कि चायकाल के समय खाने की मात्रा को घटा दिया जाए। उससे रात के भोजन के समय भूख बढ़ जाएगी तथा इस प्रकार रात के भोजन के समय खाने का प्रबलन मूल्य बढ़ जाएगा।
प्रश्न 41. व्यवहार को परिवर्तित करने की तकनीकों का क्या सिद्धांत है ?
उत्तर-व्यवहार को परिवर्तित करने की तकनीकों का सिद्धांत है सेवार्थी के भाव-प्रबोधन स्तर को कम करना, प्राचीन अनुबंधन या क्रियाप्रसूत अनुबंधन द्वारा व्यवहार को बदलना जिसमें प्रबलन की भिन्न-भिन्न प्रासंगिकता हो, साथ ही यदि आवश्यकता हो तो प्रतिस्थानिक अधिगम प्रक्रिया का भी उपयोग करना।
प्रश्न 42. व्यवहार परिष्करण की मुख्य तकनीक क्या है ?
उत्तर-व्यवहार परिष्करण की दो मुख्य तकनीके हैं-निषेधात्मक प्रबलन तथा विमुखी अनुबंधन।
प्रश्न 43. निषेधात्मक प्रबलन से आपका क्या तात्पर्य है
उत्तर-निषेधात्मक प्रबलन का तात्पर्य अवांछित अनुक्रिया के साथ संलग्न एक ऐसे परिणाम से है जो कष्टकर या पसंद न किया जानेवाला हो।
प्रश्न 44. निषेधात्मक प्रबलन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-एक अध्यापक कक्षा में शोर मचाने के लिए एक बालक को फटकार लगाता है, यह निषेधात्मक प्रबलन है।
प्रश्न 45. विमुखी अनुबंधन क्या है ?
उत्तर-विमुखी अनुबंधन का संबंध अवांछित अनुक्रिया के विमुखी परिणाम के साथ पुनरावृत्त साहचर्य से है।
प्रश्न 46. विमुखी अनुबंधन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-एक मघव्यसनी को बिजली का एक हल्का आघात दिया जाए और मघ सुॅंघने को कहा जाए। ऐसी पुनरावृत युग्मन से माघ की गंधक उसके लिए अरुचिकर हो जाएगी क्योंकिं बिजली के आघात की पीडा़ के साथ इसका साहचर्य स्थापित हो जाएगा और व्यक्ति मघ छोड़ देगा।
प्रश्न 47. सकारात्मक प्रबलन कर दिया जाता है?
उत्तर- यदि कोई अनुकूली व्यवहार कभी-कभी ही घटित होता है तो इस न्यूनता को बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रबलन दिया जाता है।
प्रश्न 48, सकारात्मक प्रबलन का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-यदि कोई बालक गृहकार्य नियमित रूप से नहीं करता तो उसकी माँ नियत समय गृहकार्य करने के लिए सकारात्मक प्रबलन के रूप में बच्चे का मनपसंद पकवान बनाकर दे सकती है। मनपसंद भोजन का सकारात्मक प्रबलन उसके नियम समय पर गृहकार्य करने के व्यवहार को बढ़ाएगा।
प्रश्न 49. टोकन अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर-व्यवहारात्मक समस्याओं वाले लोगों को कोई वांछित व्यवहार करने पर हर बार पुरस्कार के रूप में एक टोकन दिया जा सकता है। ये टोकन संगृहीत किए जाते हैं और किसी पुरस्कार से उनका विनिमय या आदान-प्रदान किया जाता है, जैसे रोगी को बाहर घुमान ले जाना इसे टोकन अर्थव्यवस्था कहते हैं।
प्रश्न 50. विभेदक प्रबलन क्या है?
उत्तर-विभेदक प्रबलन द्वारा एक साथ अवांछित व्यवहार को घटाया जा सकता है तथा वांछित व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
प्रश्न 51. क्रमिक विसंवेदीकरण को किसने प्रतिपादत किया था ?
उत्तर-दुर्भीति या अविवेकी भय के उपचार के लिए वोल्प द्वारा प्रतिपादित क्रमिक विसंवेदनीकरण एक तकनीक है।
प्रश्न 52. प्रगामी पेशीय विश्रांति क्या है?
उत्तर-प्रगामी पेशीय विश्रांति दुश्चिंता के स्तर को कम करने की एक विधि है जिसमें सेवा को पेशीय तनाव या तनाव के प्रति जागरुकता लाने के लिए, विशिष्ट पेशी समूहों को संकुचि करना सिखाया जाता है।
प्रश्न 53. अन्योज्य प्रावरोध का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर-इस सिद्धांत के अनुसार दो परस्पर विरोधी शक्तियों को एक ही समय में उपस्थिति कमजोर शक्ति को अवरुद्ध करती है। अतः, पहले वित्श्रांति की अनुक्रिया विकसित की जाती है तत्पश्चात् धीरे से दुश्चिंता उत्पन्न करनेवाले दृश्य की कल्पना की जाती है और विश्रांति से दुश्चिंता पर विजय प्राप्त की जाती है। सेवार्थी अपनी विश्रांत अवस्था के कारण प्रगामी तीव्रतर दुश्चिंता को सहन करने योग्य हो जाता है।
प्रश्न 54. मॉडलिंग प्रक्रिया क्या है
उत्तर-मॉडलिंग या प्रतिरूपण की प्रक्रिया में सेवार्थी एक विशेष प्रकार से व्यवहार करना रखता है। इसमें वह कोई भूमिका-प्रतिरूप या चिकित्सक, जो प्रारंभ में भूमिका प्रतिरूप की तरह कार्य करता है, के व्यवहार का प्रेक्षण करके उस व्यवहार को करना सीखता है।
प्रश्न 55. प्रतिस्थानिक अधिगम क्या है?
उत्तर-दूसरों का प्रेक्षण करते हुए सीखना को प्रतिस्थानिक अधिगम कहते हैं।
प्रश्न 56. संज्ञानात्मक चिकित्सा में मनोवैज्ञानिक कष्ट का कारण किसे माना जाता है?
उत्तर-संज्ञानात्मक चिकित्साओं में मनोवैज्ञानिक कष्ट का कारण विवेकी विचारों और विश्वासों में स्थापित किया जाता है।
प्रश्न 57. संवेग तर्क चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर-अल्बर्ट एलिस ने संवेग तर्क चिकित्सा को प्रतिपादित किया।
प्रश्न 58. संवेग तर्क चिकित्सा की केन्द्रीय धारणा क्या है?
उत्तर-इस चिकित्सा की केन्द्रीय धारण है कि अविवेकी विश्वास पूर्ववर्ती घटनाओं ओर उनके परिणामों के बीच मध्यस्थ करते हैं।
प्रश्न 59. संवेग तर्क चिकित्सा में पहला चरण क्या है?
उत्तर-संवेग तर्क चिकित्सा में पहला चरण है-पूर्ववर्ती विश्वास-परिणाम विश्लेषण।
प्रश्न 60. अविवेकी विश्वासों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-अविवेकी विश्वासों के उदाहरण हैं। जैसे-किसी को हर एक का प्यार हर समय मिलना चाहिए; मनुष्य की तंगहाली बाह्य पटनाओं के कारण होती है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं होता, इत्यादि।
प्रश्न 61. अविवेकी विश्वासों के क्या परिणाम होते हैं?
उत्तर-अविवेकी विश्वासों के कारण पूर्ववर्ती घटना का विकृत प्रत्यक्षण नकारात्मक संवेगों और व्यवहारों के परिणाम का कारण बनता है।
प्रश्न 62. अविवेकी विश्वासों का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-अविवेकी विश्वासों का मूल्यांकन प्रश्नावली और साक्षात्कार के द्वारा किया जाता है
प्रश्न 63. आरन बेक का संज्ञानात्मक सिद्धान्त क्या है?
उत्तर-आरन बेक के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार परिवार और समाज द्वारा दिये गय बाल्यावस्था के अनुभव मूल अन्विति योजना या मूल स्कीमा या तंत्र के रूप में विकसित हो जाते हैं, जिसमें व्यक्ति के विश्वास और क्रिया के प्रतिरूप सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 64, वर्तमान में मनोविकार के लिए किस चिकित्सा का सर्वाधिक प्रयोग होता है?
उत्तर-संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा का।
प्रश्न 65. संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा किस प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों का उपचार करती है?
उत्तर-संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों; जैसे-दुश्चिता, अवसाद, आंतक दौरा, सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यदि के लिए एक संक्षिप्त और प्रभावोत्पादक उपचार है।
प्रश्न 66. उद्बोधक चिकित्सा का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर-उद्बोधक चिकित्सा का उद्देश्य अपने जीवन की परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना जीवन में अर्थवत्ता और उत्तरदायित्व बोध प्राप्त कराने में सेवार्थी की सहायता करना है।
प्रश्न 67. सेवार्थी केन्द्रित चिकित्सा किसने प्रतिपादित की थी?
उत्तर-सेवार्थी केन्द्रित चिकित्सा कार्ल रोबर्स द्वारा प्रतिपादित की गई थी।
प्रश्न 68, गेस्टाल्ट चिकित्सा का क्या उद्देश्य है?
उत्तर-गेस्टाल्ट चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति की आत्म-जागरुकता एवं आत्म-स्वीकृति के स्तर को बढ़ाना होता है।
प्रश्न 69. गेस्टाल्ट चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर-गेस्टाल्ट चिकित्सा फ्रेडरिक पर्ल्स ने अपनी पत्नी लॉरा पर्ल्स के साथ प्रस्तुत की।
प्रश्न 70. कुछ वैकल्पिक चिकित्सा के नाम लिखिए।
उत्तर-योग, ध्यान, ऐक्यूपंक्चर, वनौषधि, उपचार इत्यादि वैकल्पिक चिकित्साएँ हैं।
प्रश्न 71. योग का क्या आशय है ?
उत्तर-योग का आशय केवल आसन या शरीर संस्थिति घटक अथवा श्वसन अभ्यास या प्राणायाम अथवा दोनों के संयोग से होता है।
प्रश्न 72. ध्यान का संबंध किससे होता है ?
 उत्तर-ध्यान का संबंध श्वासे अथवा किसी वस्तु या विचार या किसी मंत्र पर ध्यान केन्द्रित करने के अभ्यास से है।
प्रश्न 73. विपश्यना ध्यान क्या है ?
उत्तर-विपश्यना ध्यान, जिसे सतर्कता आधारित ध्यान के नाम से भी जाना जाता है, में ध्यान को बांधे रखने के लिए कोई निष्क्रिय रूप से विभिन्न शारीरिक संवेदनाओं एवं विचारों, जो उस चेतना में आते रहते हैं, का प्रेक्षण करता है।
प्रश्न 74. किस प्रकार की समस्याओं के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा सबसे उपयुक्त मानी जाती है ?
उत्तर-संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों; जैसे- दुश्चिता, अवसाद, आंतक दौरा, सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षिप्त एवं प्रभावोत्पादक उपचार है।
प्रश्न 75. अपक्रियात्मक संज्ञानात्मक संरचना किसे कहते हैं?
उत्तर-संज्ञात्मक विकृतियाँ चिंतन के ऐसे तरीके है जो सामान्य प्रकृति के होते हैं किन्तु वे वास्तविकता को नकारात्मक तरीके से विकृत करते हैं। विचारों के इन प्रतिरूपी को अपक्रियात्मक संज्ञानात्मक संरचना कहते हैं।
प्रश्न 76. उद्बोधक चिकित्सा को किसने प्रतिपादित किया था ?
उत्तर-विक्टर फ्रेंसल ने उद्बोधक चिकित्सा को प्रभावित किया।
प्रश्न 77. विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा क्या है ?
उत्तर-विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा जैव-आयुर्विज्ञान चिकित्सा का एक प्रकार है जिसमें इलेक्ट्रोड द्वारा बिजली के हल्के आघात रोगी के मस्तिष्क में दिए जाते हैं जिससे आक्षेप उत्पन हो सके।
प्रश्न 78. सुदर्शन क्रिया योग में कौन-सी तकनीक उपयोग में लाई जाती है ?
उत्तर-तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक, जो अत्यधिक वायु संचार करती है, सुदर्शन क्रिया योग से उपयोग की जाती है।
प्रश्न 79. तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक से किस प्रकार विकारों में फायदा होता है?
उत्तर-यह दबाव, दुश्चिता, अभिघातज उत्तर दबाव विकार, अवसाद, दबाव-संबंध चिकित्सा रोग, मादक द्रव्यों का दुरुपयोग तथा अपराधियों के पुनःस्थापन के लिए उपयोग की जाती है।
                   लघु उत्तरात्मक प्रश्न
            (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. मनश्चिकित्सात्मक उपागमों में पाए जानेवाले अभिलक्षणों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर-सभी मनश्चिकित्सात्मक उपागमों में निम्न अभिलक्षण पाए जाते हैं :
(1) चिकित्सा के विभिन्न सिद्धांतों में अंतर्निहित नियमों का व्यवस्थित या क्रमबद्ध अनुप्रयोग होता है।
(ii) केवल वे व्यक्ति, जिन्होंने कुशल पर्यवेक्षण में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, मनश्चिकित्सा कर सकते हैं, हर कोई नहीं।
(iii) चिकित्सात्मक स्थितियों में एक चिकित्सक और एक सेवार्थी होता है जो अपनी संवेगात्मक समस्याओं के लिए सहायता चाहता है और प्राप्त करता है।
(iv) इन दोनों व्यक्तियों, चिकित्सक एवं सेवार्थी के बीच की अंत:क्रिया के परिणामस्वरूप एवं चिकित्सात्मक संबंध का निर्माण एवं उसका सुदृढीकरण होता है। यह एक गोपनीय, अंतवैयक्तिक एवं गत्यात्मक संबंध होता है। वही मानवीय संबंध किसी भी मनोविज्ञान चिकित्सा का केन्द्र होता है तथा यही परिवर्तन का माध्य बनता है।
प्रश्न 2. मनश्चिकित्साओं के उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर-सभी मनश्चिकित्साओं के उद्देय निम्नलिखित लक्ष्यों में कुछ या सब होते हैं-
(i) सेवार्थी के सुधार के संकल्प को प्रबलित करना।
(ii) संवेगात्मक दबाव को कम करना।
(iii) सकारात्मक विकास के लिए संभाव्यताओं को प्रकट करना।
(iv) आदतों में संशोधन करना।
(v) चिंतन के प्रतिरूपों में परिवर्तन करना।
(vi) आत्म-जागरुकता को बढ़ावा।
(vii) अंतर्वैयक्तिक संबंधों एवं संप्रेषण में सुधार करना।
(viii) निर्णयन को सुकर बनाना।
(ix) जीवन में अपने विकल्पों के प्रति जागरूक होना।
(x) अपने सामाजिक पर्यावरण से एक सर्जनात्मक एवं आत्म-जागरूक तरीके से संबंधित होना।
प्रश्न 3. सहानुभूति तथा तदनुभूति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-तनुभूति सहानुभूति तथा किसी दूसरे व्यक्ति की स्थिति की बौद्धिक समझ से भिन्न होती है। सहानुभूति में व्यक्ति को दूसरे के कष्ट के प्रति दया और करुणा होती है किन्तु दूसरे व्यक्ति की तरह वह अनुभव नहीं कर सकता। बौद्धिक समझ भाव-शून्य इस आशय से होती है कि कोई व्यक्ति की दुर्दशा को समझ सकता है तथा उसकी की तरह अनुभव कर सकता है। इसका
तात्पर्य हुआ है कि दूसरे व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से या उसके स्थान पर स्वयं को रखकर बातों को समझना। तद्नुभूति चिकित्सात्मक संबंध को समृद्ध बनाती है तथा इसे एक स्वास्थ्यकर संबंध में परिवर्तित करती है।
प्रश्न 4. मनश्चिकित्सा के विभिन्न प्रकार कौन-से हैं ? किस आधार पर इनका वर्गीकरण किया गया है ?
उत्तर-मनश्चिकित्सा को तीन व्यापक समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(i) मनोगतिक मनश्चिकित्सा।
(ii) व्यवहार मनश्चिकित्सा।
(iii) अस्तित्वपरक मनश्चिकित्सा।
मनश्चिकित्सा का वर्गीकरण निम्नलिखित प्राचलों के आधार पर किया गया है:
(i) क्या कारण है, जिसने समस्या को उत्पन्न किया ?
(ii) कारण का प्रादुर्भाव कैसे हुआ ?
(iii) उपचार की मुख्य विधि क्या है ?
(iv) सेवार्थी और चिकित्सक के बीच चिकित्सात्मक संबंध की स्वीकृति क्या होती है ?
(v) सेवार्थी के मुख्य लाभ क्या हैं ?
(iv) उपचार की अवधि क्या है?
प्रश्न 5. नैदानिक निरूपण के क्या लाभ हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर-नैदानिक निरूपण के निम्नलिखित लाभ हैं-
(i) समस्या की समझ-चिकित्सा सेवार्थी द्वारा अनुभव किए जा रहे कष्टों के निहितार्थों को समझने में समर्थ होता है।
(ii) मनश्चिकित्सा में उपचार हेतु लक्ष्य क्षेत्रों की पहचान-सैद्धांतिक निरूपण में चिकित्सा के लिए समस्या के लक्ष्य-क्षेत्रों की स्पष्ट रूप से पहचान की जाती है। अतः, यदि कोई सेवार्थी किसी नौकरी पर बने रहने में असमर्थता के लिए मदद चाहता है और अपने उच्च अधिकारियों का सामना करने में असमर्थता अभिव्यक्त करता है तो व्यवहार चिकित्सा में नैदानिक निरूपण इसे दुश्चिता तथा आग्रहिता कौशलों में कमी बताएगा। अतः अपने आपको
निश्चयात्मक रूप से व्यक्त रने में असमर्थता अभिव्यक्त तथा बढ़ी हुई दुश्चिता लक्ष्य-क्षेत्र के रूप में पहचाने गए।
(ii) उपचार के लिए तकनीक का वरण या चुनाव-उपचर के लिए तकनीक का मुख्य चुनाव इस बात पर निर्भर करना है कि चिकित्सक किस प्रकार की चिकित्सात्मक व्यवस्था में चिकित्सा के परिणाम से प्रत्याशाएँ नैदानिक निरूपण पर निर्भर करते हैं।
प्रश्न 6. “अन्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिरोध भी होता है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-अन्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिरोध (Resistance) भी होता है। चूंकि अन्यारोपण की प्रक्रिया अचेतन इच्छाओं और द्वंद्रों को अनावृत करती है, जिससे कष्ट का स्तर बढ़ जाता है। इसलिए सेवार्थी अन्यारोपण का प्रतिरोध करना है। इस प्रतिरोध के कारण अपने आपको अचेतन मन की कष्टकर स्मृतियों के पुनः स्मरण से बचाने के लिए सेवार्थी चिकित्सा की प्रगति का विरोध करता है। प्रतिरोध सचेतन और अचेतन दोनों हो सकता है। सचेतन प्रतिरोध तब होता है जब सेवार्थी जान-बूझकर किसी सूचना को छिपाता है। अचेतन प्रतिरोध तब उपस्थित माना जाता है, जब सेवार्थी चिकित्सा सत्र के दौरान मूक या चुप हो जाता है, तुच्छ बातों का पुनः स्मरण करता है किन्तु
संवेगात्मक बातों का नहीं, नियोजित भेंट में अनुपस्थित होता है तथा चिकित्सा सत्र के लिए देर
से आता है। चिकित्सक बार-बार इसे सेवार्थी के सामने रखकर तथा दुश्चिता, भय, शर्म जैसे संवेगों को उभार कर, जो इस प्रतिरोध के कारण हैं, इस प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करता है।
प्रश्न 7. निर्वचन की विश्लेषणात्मक तकनीकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-निर्वचन की दो विश्लेषणात्मक तकनीक हैं-
(i) प्रतिरोध, (ii) स्पष्टीकरण।
प्रतिरोध में चिकित्सक सेवार्थी के किसी एक मानसिक पक्ष की ओर संकेत करता है जिसका सामना सेवार्थी को अवश्य करना चाहिए। स्पष्टीकरण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से चिकित्सक किसी अस्पष्ट या भ्रामक घटना को केन्द्रबिन्दु में लाता है। यह घटना के महत्त्वपूर्ण विस्तृत वर्णन की महत्त्वहीन वर्णन से अलग करके तथा विशिष्टता प्रदान करके किया जाता है।
निर्वचन एक अधिक सूक्ष्म प्रक्रिया है। यह मनोविश्लेषण का शिखर माना जाता है। चिकित्सक
मुक्त साहचर्य, स्वप्न व्याख्या, अन्यारोपण तथा प्रतिरोध को प्रक्रिया में अभिव्यक्त अचेतन सामग्री का उपयोग सेवार्थी को अभिज्ञ बनाने के लिए करता है कि किन मानसिक अंतर्वस्तुओं एवं द्वंद्वों ने कुछ घटनाओं, लक्षणों तथा द्वंद्वों को उत्पन्न किया है। निर्वचन बालवस्था में भोगे हुए वंचन या अंत:मनोद्वंद्व पर केन्द्रित हो सकता है।
प्रश्न 8. समाकलन कार्य किसे कहते हैं ? समाकलन कार्य का परिणाम क्या है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-प्रतिरोध, स्पष्टीकरण तथा निर्वचन को प्रयुक्त करने की पुनरावृत्त प्रक्रिया को समाकलन कार्य (Working through) कहते हैं। समाकलन कार्य रोगी को अपने आपको और अपनी समस्या के स्रोत को समझने में तथा बाहर आई सामग्री को अपने अहं में समाकलित करने में सहायता करता है।
समाकलन कार्य का परिणाम है अंतर्दृष्टि (Insight)। अंतर्दृष्टि कोई आकस्मिक घटना नहीं है बल्कि एक क्रमिक प्रक्रिया है जहाँ अचेतन घटनाएँ स्मृतियाँ अन्यारोपण में पुनः अनुभूत होती हैं और समाकलित की जाती हैं। जैसे यह प्रक्रिया चलती रहती है, सेवार्थी बौद्धिक एवं सांवेगिक स्तर पर अपने आपको बेहतर समझने लगता है और अपनी समस्याओं और द्वंद्वों के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त करता है। बौद्धिक अंतर्दृष्टि है। सांवेगिक समझ भूतकाल की अप्रीतिकर घटनाओं के प्रति अपनी अविवेकी प्रतिक्रिया की स्वीकृति, सांवेगिक रूप में परिवर्तन करना सांवेगिक अंतर्दृष्टि
चिकित्सा का अतिम बिन्दु है जब सेवार्थी अपने बारे में एक नई समझ प्राप्त कर चुका होता है। बदले में भूतकाल के द्वंद्व, रक्षा युक्तियाँ और शारीरिक लक्षण भी नहीं रह जाते और सेवार्थी मनोवैज्ञानिक रूप से एक स्वस्थ व्यक्ति हो जाता है। इस अवस्था पर मनोविश्लेषण समाप्त कर या जाता है।
प्रश्न 9. मनोगतिक चिकित्सा में उपचार की अवधि क्या होती है ?
उत्तर-सप्ताह में चार-पाँच दिनों तक रोज एक घंटे के सत्र साथ मनोविश्लेषण कई वर्षों तक चल सकता है। यह एक गहन उपचार है। उपचार में तीन अवस्थाएं (Three stages) होती हैं। पहली अवस्था प्रारंभिक अवस्था है। सेवार्थी नित्यकर्मी से परिचित हो जाता है, विश्लेषक से एक चिकित्सात्मक संबंध स्थापित करता है तथा अपनी चेतना से भूत और वर्तमान को कष्टप्रद
घटनाओं के बारे में सतही सामग्रियों को संस्मृति प्रक्रिया से वह कुछ राहत महसूस करता है। दूसरी
अवस्था मध्य अवस्था है जो एक लंबी प्रक्रिया है। इसकी विशेषता सेवार्थी की ओर से अन्यारोपण
और प्रतिरोध तथा चिकित्सक के द्वारा प्रतिरोध एवं स्पष्टीकरण अर्थात् समाकलन कार्य है। तीसरी
अवस्था समाप्ति की अवस्था है जिसमें विश्लेषक के साथ संबंध भंग हो जाता है और सेवार्थी चिकित्सा छोड़ने की तैयारी कर लेता है।
प्रश्न 10. व्यवहार चिकित्सा क्या है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा मनश्चिकित्सा का एक प्रकार है-
व्यवहार चिकित्साओं का यह मानना है कि मनोवैज्ञानिक कष्ट दोषपूर्ण व्यवहार प्रतिरूपों या
विचार प्रतिरूपों के कारण उत्पन्न होते हैं। अत: इनका केन्द्रबिन्दु सेवार्थी में विद्यमान व्यवहार और विचार होते हैं। उसका अतीत केवल उसके दोषपूर्ण व्यवहार तथा विचार प्रतिरूपों की उत्पत्ति को समझने के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण होता है। अतीत को फिर से सक्रिय नहीं किया जाता। वर्तमान में केवल दोषपूर्ण प्रतिरूपों में सुधार किया जाता है।
  अधिगम के सिद्धांतों का नैदानिक अनुप्रयोग ही व्यवहार चिकित्सा को गठित करता है।व्यवहार चिकित्सा में विशिष्ट तकनीकों एवं सुधारोन्मुख हस्तक्षेपों का एक विशाल समुच्चय होता है। यह कोई एकीकृत सिद्धांत नहीं है जिसे क्लिनिकल निदान या विद्यमान लक्षणों को ध्यान में रखे बिना अनुप्रयुक्त किया जा सके। अनुप्रयुक्त किए जानेवाली विशिष्ट तकनीकों या सुधारोन्मुख हस्तक्षेपों के चयन में सेवार्थी के लक्षण तथा क्लिनिकल निदान मार्गदर्शक कारक होते हैं। दुर्भीति या अत्यधिक और अपंगकारी भय के उपचार के लिए तकनीकों के एक समुच्चय को प्रयुक्त करने की आवश्यकता होगी जबकि क्रोध-प्रस्फोटन के उपचार के लिए दूसरी। अवसादग्रस्त सेवार्थी को
चिकित्सा दुश्चितित सेवार्थी से भिन्न होगी। व्यवहार चिकित्सा का आधार दोषपूर्ण या अप्रक्रियात्मक
व्यवहार को निरूपित करना, इन व्यवहारों को प्रबलित तथा संपोषित करनेवाले कारकों तथा उन विधियों को खोजना है जिनसे उन्हें परिवर्तित किया जा सके।
प्रश्न 11. विश्रांत की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर-विश्रांत की विधियाँ-दुश्चिता मनोवैज्ञानिक कष्ट की अभिव्यक्ति है जिसके लिए सेवार्थी उपचार चाहता है। व्यवहारात्मक चिकित्सा दुश्चिता को सेवार्थी के भाव-प्रबोधन के स्तर को बढ़ाने के रूप में देखता है जो दोषपूर्ण व्यवहार उत्पन्न करने में एक पूर्ववर्ती कारक की तरह कार्य करता है। सेवार्थी दुश्चिता का कम करने के लिए धूम्रपान कर सकता है, अपने आपको अन्य क्रियाओं में निमग्न कर सकता है; जैसे-भोजन या दुश्चिता के कारण लंबे समय तक अपने अध्ययन में एकाग्र नहीं कर पाता है। अतः, दुश्चिता में कमी अत्यधिक भोजन या धूम्रपान के
अवांछित व्यवहारों को कम करेगी। दुश्चिता के स्तर को कम करने के लिए विश्रांति की विधियों का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, प्रगामी पेशीय विश्रांति और ध्यान एक विश्रांति में सेवार्थी को पेशीय तनाव या तनाव के प्रति जागरुकता लाने के लिए विशिष्ट पेशी समूहों को संकुचित करना सिखाया जाता है। सेवार्थी के पेशी समूह; जैसे-अग्रबाहु को तानना सीखने के बाद सेवार्थ को तनाव को मुक्त करने के लिए कहा जाता है। सेवार्थी को यह भी बताया जाता है कि उसे
(सेवार्थी) वर्तमान में ही तनाव है और इसकी विपरीत अवस्था में जाना है। पुनरावृत्त अभ्यास के साथ सेवार्थी शरीर की सारी पेशियों को विश्रांत करना सीख जाता है।
प्रश्न 12. अन्योन्य प्रावरोध के सिद्धांत को समझाइए।
उत्तर-अन्योन्य प्रावरोध के सिद्धांत के अनुसार दो परस्परविरोधी शक्तियों की एक ही समय में उपस्थिति कमजोर शक्ति को अवरुद्ध करती है। अतः, पहले विश्रांति की अनुक्रिया विकसित की जाती है तत्पश्चात् धीरे-से दुश्चिता उत्पन्न करनेवाले दृश्य की कल्पना की जाती है और विश्राति से दुश्चिता पर विजय प्राप्त की जाती है। सेवार्थी अपने विश्राति अवस्था के कारण प्रगामी तीव्रतर दुश्चिता को सहन करने योग्य हो जाता है। मॉडलिंग या प्रतिरूपण (Modelling) कि प्रक्रिया में सेवार्थी एक विशेष प्रकार से व्यवहार करना सीखता है। इसमें वह कोई भूमिका-प्रतिरूप (Role model) या चिकित्सक, जो प्रारंभ में भूमिका-प्रतिरूप की तरह कार्य करता है, के व्यवहार का प्रेक्षण करके उस व्यवहार को करना सीखता है। प्रतिस्थानिक अधिगम अर्थात दसरों का व्यवहार का प्रक्षण करके उस व्यवहार को करना सीखता है। प्रतिस्पारिक अधिगम अर्थात् दूसरों का
प्रेक्षण करते हुए सीखना, का उपयोग किया जाता है और व्यवहार में आए हुए छोटे-छोटे माॅडल के व्यवहारों को अर्जित करना सीख जाता है।
प्रश्न 13 गेस्टाल्ट चिकिया क्या है। उसके क्या देश्य है?
उत्तर-गेस्टाल्ट चिकित्सा-जन शब्द ‘गेस्याट’ का अर्थ है-‘सम’। यह चिकित्सा फ्रेडरिक (फिट्ज) पल्र्स ने अपनी पत्नी लॉरा पल्र्स के साथ प्रस्तुत की थी। गेस्टाल्ट चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति की आत्या-जागरुकता एवं आत्म-स्वीकृति के स्तर को बढ़ाना होता है। सेवार्थी को शारीरिक प्रक्रियाओं और संवेगों, जो जागरुकता को अवरुद्ध करते हैं, को पहचानना सिखाया जाता है। चिकित्सक इसके लिए सेवार्थी को अपनी भावनाओं और द्वंद्वों के बारे में उसकी कल्पनाओं की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करता है। यह चिकित्सा समूहों में भी प्रयुक्त की जा
सकती है।
प्रश्न 14. मनश्चिकित्सा के नैतिक सिद्धांत क्या है?
उत्तर-मनश्चिकित्सा के नैतिक सिद्धांत-
कुछ नैतिक मानक जिनका व्यवसायी मनोश्चिकित्सकों द्वारा प्रयोग किया जाना चाहिए, वे हैं
1. सेवार्थी से सुविज्ञ सहमति लेनी चाहिए।
2. सेवाथों को गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए।
3. व्यक्तिगत कष्ट और व्यथा को कम करना मनश्चिकित्सक के प्रत्येक प्रयासों का लक्ष्य होना चाहिए।
4. चिकित्सक-सेवाथी संबंध की अखंडता महत्त्वपूर्ण है।
5. मानय अधिकार एवं गरिमा के लिए आदर।
6 व्यावसायिक सक्षमता एवं कौशल आवश्यक है।
प्रश्न 15. क्या विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा मानसिक विकारों के उपचार के लिए प्रयुक्त की जानी चाहिए?
उत्तर-विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा-विद्युत आक्षेपी चिकित्सा जैव-आयुर्विज्ञान चिकित्सा का एक दूसरा प्रकार है। इलेक्ट्रोड द्वारा बिजली के हल्के आधाल रोगी के मस्तिष्क में दिए जाते हैं जिससे आक्षेप उत्पन्न हो सके। जब रोगी के सुधार के लिए बिजली के आघात आवश्यक समझे जाते हैं तो ये केवल मनोरोगविज्ञानी के द्वारा ही दिए जाते हैं विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा एक नयी उपचार नहीं है और यह तभी दिया जाता है जब दवाएँ रोगी के लक्षणों को नियत्रित करने में प्रभावी नहीं होती हैं।
प्रश्न 16, संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा पर संक्षेप में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा-यह सर्वाधिक प्रचलित चिकित्सा पद्धति है। मनोश्चिकित्सा की प्रभाविता एवं परिणाम पर किए गए अनुसंधान ने निर्णायक रूप से यह प्रमाणित किया है कि संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों; जैसे- दुश्चिता, अवसाद, आतंक दौरा, सीमावती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षिप्त और प्रभावोत्पादन उपचार है। मनोविकृति रूपरेखा बताने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा जैव-मनोसामाजिक उपागम का उपयोग करती है। यह संज्ञानात्मक चिकित्सा को व्यवहारपरक तकनीकों के साथ संयुक्त करती है।
इसमें सेवार्थी के कष्टों का मूल या उद्गम जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक क्षेत्रों में होता है। अतः, समस्या के जैविक पक्षों को विश्रांति की विधियों द्वारा, मनोवैज्ञानिक पक्षों को व्यवहार चिकित्सा तथा संज्ञात्मक चिकित्सा तकनीकों द्वारा और सामाजिक पक्षों को पर्यावरण में परिवर्तन द्वारा संबोधित करने के कारण संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा को एक व्यापक चिकित्सा बनाती है जिसका उपयोग करना आसान है, यह कई प्रकार के विकारों के लिए प्रयुक्त की जा सकती है तथा जिसकी प्रभावोत्पादकता प्रमाणित हो चुकी है।
प्रश्न 17. सुदर्शन क्रिया योग पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-सुदर्शन क्रिया योग-तीव्र गति से श्वास लेने की तकनीक, जो अत्यधिक वायु-संचार करती है तथा जो सुदर्शन क्रिया योग में प्रयुक्त की जाती है, लाभदायक, कम खतरेवाली और कम खर्चवाली तकनीक है। यह दबाव, दुश्चिता, अभिघातज उत्तर दबाव विकार, अवसाद, दबाव-संबंधी चिकित्सा रोग, मादक द्रव्यों का दुरुपयोग तथा अपराधियों के पुनः स्थापन के लिए
उपयोग की जाती है। सुदर्शन क्रिया योग का उपयोग सामूहिक विपदा के उत्तरजीवियों में अभिधातज उत्तर दबाव विकास को समाप्त करने के लिए एक लोक-स्वास्थ्य हस्तक्षेप तकनीक के रूप में किया जाता है। योग, विधि कुशल-क्षेम, भावदशा, ध्यान, मानसिक केन्द्रीयता तथा दबाव सहिष्णुता को बढ़ती है। एक कुशल योग शिक्षक द्वारा उचित प्रशिक्षण तथा प्रतिदिन 30 मिनट तक का अभ्यास इसके लाभ को बढ़ा सकता है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिकाविज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro Sciences, NIHMHANS),भारत में किए गए शोध ने प्रदर्शित किया है कि सुदर्शन क्रिया अवसाद को कम करता है। इसके
अलावा जो मद्यव्यसनी रोगी सुदर्शन क्रिया योग का अभ्यास करते हैं उनके अवसाद एवं दबाव स्तर में कमी पाई गई है। अनिद्रा का उपचार योग से किया गया है। योग नींद आने की अवधि को कम करता है तथा निद्रा की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
प्रश्न 18. विभेदक प्रबलन को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-विभेदक प्रबलन-विभेदक प्रबलन द्वारा एक साथ अवांछित व्यवहार को घटाया जा सकता है, तथा वांछित व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सकता है। वांछित व्यवहार के लिए सकारात्मक प्रबलन तथा अवांछित व्यवहार के लिए निषेधात्मक प्रबलन के साथ-साथ उपयोग एक विधि हो सकती है। दूसरी विधि वाछित व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रबलन देना तथा अवांछित व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रबलन देना तथा अवांछित व्यवहार को उपेक्षा करना
है। दूसरी विधि कम कष्टकर तथा समान रूप से प्रबलन देना तथा अवांछित व्यवहार को
सकारात्मक रूप से बदल देना तथा अवांछित समान रूप से प्रभावी है। उदाहरण के लिए, एक लड़की इसलिए रोती और रूठती है कि उसके कहने पर उसे सिनेमा दिखाने नहीं ले जाया जाता। माता-पिता को अनुदेश दिया जाता है कि यदि वह रूठे और रोए नहीं तो उसे सिनेमा ले जाया जाए। इसके बाद, उन्हें अनुदेश दिया जाता है कि जब भी लड़की रूठे या रोए तो उसके उपेक्षा की जाए। इस प्रकार शिष्टतापूर्वक सिनेमा ले जाने के लिए कहने का वांछित व्यवहार बढ़ता है तथा रोने और रूठने का अवांछित व्यवहार कम होता है।
प्रश्न 19. मनोवृत्ति के स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर-मनोवृत्ति या अभिवृत्ति एक प्रचलित शब्द है जिसका व्यवहार हम प्राय: अपने दैनिक जीवन दिन-प्रतिदिन करते रहते हैं। अर्थात् किसी व्यक्ति की मानसिक प्रतिछाया या तस्वीर को, जो किसी व्यक्ति या समूह, वस्तु, परिस्थिति, घटना आदि के प्रति व्यक्ति के अनुकूल या प्रतिकूल
दृष्टिकोण अथवा विचार को प्रकट करता है, मनोवृत्ति या अभिवृति कहते हैं। ऋच, क्रेचफिल्ड तथा वैलेची ने मनोवृत्ति को परिभाषित करते हुए कहा है कि “किसी एक वस्तु के संबंध में तीन इन तीन तंत्रों का टिकाऊ तंत्र मनोवृत्ति कहलाता है।” इन तीनों तंत्रों से मनोवृत्ति का वास्तविक स्वरूप सही ढंग से स्पष्ट होता है। ये तीन तंत्र है-पहला, संज्ञानात्मक संघटक अर्थात् किसी विस्तु से संबंधित व्यक्ति के संवेगात्मक अनुभव को भावात्मक संघटक कहते हैं। दूसरा, भावात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु से संबंधित व्यक्ति के संवेगात्मक अनुभव को भावात्मक संघटक कहते हैं। तीसरा, व्यवहारात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु के प्रति व्यवहार या क्रिया करने की तत्परता को व्यवहारात्मक संघटक कहते हैं। इस प्रकार मनोवृत्ति उपर्युक्त तीनों संघटकों का एक टिकाऊ तंत्र है।
                                           दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
                               (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र का वर्णन कीजिए। मनश्चिकित्सा में चिकित्सात्मक संबंध के महत्त्व को उजागर कीजिए।
उत्तर-मनश्चिकित्सा उपचार चाहनेवाले या सेवार्थी तथा उपचार करनेवाले या चिकित्सा के बीच में एक ऐच्छिक संबंध है। इस संबंध का उद्देश्य उन मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान करना होता है जिनका सामना सेवार्थी द्वारा किया जा रहा हो। यह संबंध सेवार्थी के विश्वास को बनाने में सहायक होता है जिससे वह अपनी समस्याओं के बारे में मुक्त होकर चर्चा कर सके। मनश्चिकित्सा का उद्देश्य दुरनुकूलक व्यवहारों को बदलना, वैयक्तिक कष्ट की भावना को कम करना तथा रोगी को अपने पर्यावरण से बेहतर ढंग से अनुकूलन करने में मदद करना है। अपर्याप्त
वैवाहिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन की वह आवश्यकता होती है कि व्यक्ति के वैयक्तिक पर्यावरण में परिवर्तन किए जाएँ।
सभी मनश्चिकित्सात्मक उपागमों में निम्न अभिलक्षण पाए जाते हैं-
(i) चिकित्सा के विभिन्न सिद्धांत में अंतर्निहित नियमों का व्यवस्थित या क्रमबद्ध अनुप्रयोग होता है,
(ii) केवल वे व्यक्ति, जिन्होंने कुशल पर्यवेक्षण में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, मनश्चिकित्सा कर सकते हैं, हर कोई ही, एक अप्रशिक्षित व्यक्ति अनजाने में लाभ के बजाय हानि अधिक पहुंचा सकता है।
(iii) चिकित्सात्मक स्थितियों में एक चिकित्सक और एक सेवार्थी होता है जो अपनी संवेगात्मक समस्याओं के लिए सहायता चाहता है और प्राप्त करता है चिकित्सात्मक प्रक्रिया में यही व्यक्ति ध्यान का मुख्य केन्द्र होता है; तथा
(iv) इन दोनों व्यक्तियों, चिकित्सक एवं सेवार्थी के बीच अंत:क्रिया के परिणामस्वरूप एक चिकित्सात्मक संबंध का निर्माण एवं उसका सुदृढीकरण होता है। यह मानवीय संबंध किसी भी मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का केन्द्र होता है तथा यही परिवर्तन का माध्यम बनता है।
मनश्चिकित्सा में चिकित्सात्मक संबंध का महत्त्व- सेवार्थी एवं चिकित्सक के बीच एक विशेष संबंध को चिकित्सात्मक संबंध या चिकित्सात्मक मैत्री कहा जाता हैं यह न तो एक क्षणिक परिचय होता है और न ही एक स्थायी एवं टिकाऊ संबंध।
इस चिकित्सात्मक मैत्री के दो मुख्य घटक होते हैं। पहला घटक इस संबंध के संविदात्मक
प्रकृति है, जिसमें दो इच्छुक व्यक्ति, सेवार्थी एवं चिकित्सक, एक ऐसी साझेदारी या भागीदारी में प्रवेश करते हैं जिसका उद्देश्य सेवार्थी की समस्याओं का निराकरण करने में उसकी मदद करना होता है। चिकित्सात्मक मैत्री का दूसरा घटक है-चिकित्सा की सीमित अवधि। यह मैत्री तब तक चलती है जब तक सेवार्थी अपनी समस्याओं का सामना करने में समर्थ न हो जाए तथा अपने जीवन का नियंत्रण अपने हाथ में न ले ले। इस संबंध की कई अनूठी विशिष्टताएँ हैं। यह एक विश्वास तथा भरोसे पर आधारित संबंध है। उच्चस्तरीय विश्वास सेवार्थी को चिकित्सक के सामने
अपना बोझ हल्का करने तथा उसके सामने अपनी मनोवैज्ञानिक और व्यक्तिगत समस्याओं को विश्वस्त रूप से बताने में समर्थ बनाता है। चिकित्सक सेवार्थी के प्रति अपनी स्वीकृति, तदनुभूति,सच्चाई और गर्मजोशी दिखाकर इसे बढ़ावा दिखाता रहेगा चाहे इसके प्रति अशिष्ट व्यवहार क्यों न करे या पूर्व में की गई या सोची गई ‘गलत’ बातों को क्यों न बताएं। यह अशर्त सकारात्मक आदर (Unconditional positive regard) की भावना है जो चिकित्सक की सेवार्थी के प्रति होती है। चिकित्सक की सेवार्थी के प्रति तद्नुभूति होती है।
चिकित्सात्मक संबंध के लिए यह भी आवश्यक है कि चिकित्सा सेवार्थी द्वारा अभिव्यक्त किए गए अनुभवों, घटनाओं, भावनाओं तथा विचारों के प्रति नियमबद्ध गोपनीयता का अवश्य पालन करे। चिकित्सक को सेवार्थी विश्वास और भरोसे का किसी भी प्रकार से कभी भी अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए। अंतत: यह एक व्यावसायिक संबंध है इसे ऐसा ही रहना चाहिए।
प्रश्न 2. एक चिकित्सक सेवार्थी से अपने सभी विचार यहाँ तक कि प्रारंभिक बाल्यावस्था के अनुभवों को बताने को कहता है। इसमें उपयोग की गई तकनीक और चिकित्सा के प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-इसमें अंत:मनोद्वंद्व के स्वरूप को बाहर निकालने की विधि का उपयोग किया गया
है। यह चिकित्सा मनोगतिक चिकित्सा है। चूंकि मनोगतिक उपागम अंत:द्वंद्व मनोवैज्ञानिक विकारों
का मुख्य कारण समझता है। अतः, उपचार में पहला चरण इसी अंत:मनोद्वंद्व को बाहर निकालना है। मनोविश्लेषण ने अंत:मनोद्वंद्व को बाहर निकालने के लिए दो महत्त्वपूर्ण विधियों मुक्त साहचर्य (Free association) विधि तथा स्वप्न व्याख्या (Dream interpretation) विधि का आविष्कार किया। मुक्त साहचर्य विधि सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि है। जब एक बार चिकित्सात्मक संबंध स्थापित हो जाता है और सेवार्थी आरामदेह महसूस करने लगता है तब चिकित्सक उससे कहता है कि वह स्तरण पटल (Couch) पर लेट जाए, अपनी आँखों को बंद कर ले और मन में जो कुछ भी आए उसे बिना किसी अपरोधन या काट-छाँट के बताने को कहता
है। सेवार्थी को एक विचार को दूसरे विचार से मुक्त रूप से संबद्ध करने के लिए प्रोत्साहित किया
जाता है और इस विधि को मुक्त साहचर्य विधि कहते हैं। जब सेवार्थी एक आरामदायक और विश्वसनीय वातावरण में मन में जो कुछ भी आए बोलता है तब नियंत्रक पराहम् तथा सतर्क अहं को प्रसुप्तावस्था में रखा जाता है। चूंकि चिकित्सक बीच में हस्तक्षेप नहीं करता इसलिए विचारों का मुक्त प्रवाह, अचेतन मन की इच्छाएँ और द्वंद्व जो अहं द्वारा दमित की जाती रही हों वे सचेतन मन में प्रकट होने लगती हैं। सेवार्थी का यह मुक्त बिना काट-छाँट वाला शाब्दिक वृत्तांत सेवार्थी के अचेतन मन की एक खिड़की है जिसमें अभिगमन का चिकित्सक को अवसर मिलता है। इस
तकनीक के साथ ही साथ सेवार्थी को निद्रा से जागने पर अपने स्वप्नों को लिख लेने को कहा जाता है। मनोविश्लेषक इन स्वप्नों को अचेतन मन में उपस्थित अतृप्त इच्छाओं के प्रतीक के रूप में देखता है। स्वप्न की प्रतिमाएँ प्रतीक है जो अंत: मानसिक शक्तियों का संकेतक होती हैं। स्वप्न
प्रतीकों का उपयोग करते हैं क्योंकि वे अप्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्त होते हैं इसलिए अहं को सकर्त
नहीं करते। यदि अतृप्त इच्छाएं प्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्त की जाएँ तो सदैव सतर्क अहं उन्हें दमित कर देगा जो पुनः दुश्चिता का कारण बनेगा। इन प्रतीकों की व्याख्या अनुवाद की एक स्वीकृत परपरा के अनुसार की जाती है जो अतृप्त इच्छाओं और द्वंद्वों के संकेतक होते हैं।
प्रश्न 3. व्यवहार चिकित्सा में प्रयुक्त विभिन्न तकनीकों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-व्यवहार चिकित्सा में विभिन्न तकनीक प्रयुक्त किए जाते हैं। इन तकनीकों का सिद्धांत है संवार्थी के भाव-प्रबोधन स्तर को कम करना, प्राचीन अनुबंधन या क्रियाप्रसूत अनुबंधन द्वारा व्यवहार को बदलना जिसमें प्रबल की भिन्न-भिन्न प्रासंगिकता हो, साथ ही यदि आवश्यकता हो तो प्रतिस्थानिक (Vicarious) अधिगम प्रक्रिया का भी उपयोग करना।
व्यवहार परिष्करण की दो मुख्य तकनीकें हैं- निषेधात्मक प्रबलन तथा विमुखी अनुबंधन।
(i)निषेधात्मक प्रबलन (Negative reinforcement) का तात्पर्य अवांछित अनुक्रिया के साथ संलग्न एक ऐसे परिणाम से है जो कष्टकर या पसंद न किया जानेवाला हो। उदाहरणार्थ, एक अध्यापक कक्षा में शोर मचाने के लिए कए बालक को फटकार लगाता है। यह निषेधात्मक प्रबलन है।
(ii) विमुखी अनुबंधन (Aversive conditioning) का तात्पर्य अवांछित अनुक्रिया के विमुख परिणाम के साथ पुनरावृत्त साहचर्य से है। उदाहरण के लिए, एक मद्यव्यसनी को बिजली का एक हल्का आघात दिया जाए और मद्य सूंघने को कहा जाए। ऐसे पुनरावृत्त युग्मन से मद्य की गंध उसके लिए अरुचिकर हो जाएगी क्योंकि बिजली के आघात की पीड़ा के साथ इसका साहचर्य स्थापित हो जाएगा और व्यक्ति मद्य छोड़ देगा।
(iii) यदि कोई. अनुकूली व्यवहार कभी-कभी ही घटित होता है तो इस न्यूनता को बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रबलन (Positive reinforcement) दिया जाता है। उदाहरण के लिए यदि एक बालक गृहकार्य नियमित रूप से नहीं करता तो उसकी माँ नियत समय गृहकार्य करने के लिए सकारात्मक प्रबल के रूप में बच्चे को बनाकर दे सकती है। मनपसंद भोजन का सकारात्मक प्रबलन उसके नियत समय पर गृहकार्य करने के व्यवहार को बढ़ाएगा। व्यवहारात्मक
समस्याओं वाले लोगों को कोई वांछित व्यवहार करने पर हर बार पुरस्कार के रूप में एक टोकन दिया जा सकता है। ये टोकन संगृहीत किए जाते हैं और किसी पुरस्कार से उनका विनिमय या आदान-प्रदान किया जाता है, जैसे रोगी को बाहर घुमाने ले जाना या बच्चे को बाहर खाना खिलाना। इसे टोकन अर्थव्यवस्था (Token economy) कहते हैं।
प्रश्न 4. उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए कि संज्ञानात्मक विकृति किस प्रकार घटित होती है ?
उत्तर-संज्ञानात्मक चिकित्साओं में मनोवैज्ञानिक कष्ट का कारण अविवेकी विचारों और विश्वासों में स्थापित किया जाता है।
(i) अल्बर्ट एलिस (Albert Elis) ने संवेग तर्क चिकित्सा (Rational emotive therapy, RET) को प्रभावित किया। इस चिकित्सा की केन्द्रीय धारणा है कि अविवेकी विश्वास पूर्ववर्ती घटनाओं और उनके परिणामों के बीच मध्यस्थता करते हैं। संवेग तर्क चिकित्सा में पहला चरण है पूर्ववर्ती-विश्वास-परिणाम (पू.वि.प.) विश्लेषण। पूर्ववर्ती घटनाओं जिनसे मनोवैज्ञानिक कष्ट उत्पन्न हुआ, को लिख लिया जाता है। सेवार्थी के साक्षात्कार द्वारा उसके उन अविवेक विश्वासों का पता लगाया जाता है जो उसकी वर्तमानकालिक वास्तविकता को विकृत कर रहे हैं। हो सकता है इन विवेकी विश्वासों को पुष्ट करनेवाले आनुभाविक प्रमाण पर्यावरण में नहीं भी हो। इन विश्वासों को अनिवार्य या चाहिए विचार कह सकते हैं, तात्पर्य यह है कि कोई भी बात एक विशिष्ट तरह से होनी ‘अनिवार्य’ या ‘चाहिए’ है। अविवेकी विश्वासों के उदाहरण है। जैसे-“किसी को हर एक का प्यार हर समय मिलना चाहिए”, “मनुष्य की तंगहाली बाह्य
घटनाओं के कारण होती है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं होता” इत्यादि। अविवेकी विश्वासों के कारण पूर्ववर्ती घटना का विकृत प्रत्यक्षण नकारात्मक संवेगों और व्यवहारों के परिणाम का कारण बनता है। अविवेकी विश्वासों का मूल्यांकन प्रश्नावली और साक्षात्कार के द्वारा किया जाता है। संवेग तर्क चिकित्सा की प्रक्रिया में चिकित्सक अनिदेशात्मक प्रश्न करने के प्रक्रिया से अविवेकी विश्वासों का खंडन करता है। प्रश्न करने का स्वरूप सौम्य होता है, निदेशात्मक या जाँच-पड़ताल वाला नहीं। ये प्रश्न सेवार्थी को अपने जीवन और समस्याओं से संबंधित
पूर्वधारणाओं के बारे में गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। धीरे-धीरे सेवार्थी अपने जीवन
दर्शन में परिवर्तन लाकर अविवेकी विश्वासों को परिवर्तित करने में समर्थ हो जाता है। तर्कमूलक
विश्वास तंत्र अविवेकी विश्वास तंत्र को प्रतिस्थापित करता है और मनोवैज्ञानिक कष्टों में कमी
आती है।
(ii) दूसरी संज्ञानात्मक चिकित्सा आरन बेक (Aaron Beck) की है। दुश्चिता या अवसाद द्वारा अभिलक्षित मनोवैज्ञानिक कष्ट संबंधी उनके सिद्धांत के अनुसार परिवार और समाज द्वारा दिए गए बाल्यावस्था के अनुभव मूल अन्विति योजना या मूल स्कीमा (Core schema) या तंत्र के रूप में विकसित हो जाते हैं, जिनमें व्यक्ति के विश्वास और क्रिया के प्रतिरूप सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार एक सेवार्थ जो बाल्यावस्था में अपने माता-पिता द्वारा उपेक्षित था एक ऐसा मूल स्कीमा विकसित कर लेता है कि “मैं बाछित नहीं हूँ।” जीवनकाल के दौरान कोई निर्णायक
घटना उसके जीवन में घटित होती है। विद्यालय में सबके सामने अध्यापक के द्वारा उसकी हंसी
उड़ाई जाती है। यह निर्णायक घटना उसके मूल स्कीमा “मैं बाछित नहीं हूँ।” को क्रियाशील कर
देती है जो नकारात्मक स्वचालित विचारों को विकसित करती है। नकारात्मक विचार सतत अविवेकी विचार होते हैं; जैसे-कोई मुझे प्यार नहीं करता, मैं कुरूप हूँ मैं मूर्ख हूँ, मैं सफल नही हो सकता/सकती इत्यादि। इन नकारात्मक स्वचालित विचारों में संज्ञानात्मक विकृतियाँ भी होती हैं। संज्ञानात्मक विकृतियों चिंतन के ऐसे तरीके हैं जो सामान्य प्रकृति के होते हैं किन्तु वे वास्तविकता को नकारात्मक तरीके से विकृत के होते हैं। विचारों के इन प्रतिरूपों को अपक्रियात्मक संज्ञानात्मक संरचना (Dyfunctional cognitive structures) कहते हैं। सामाजिक यथार्थ के बारे में ये संज्ञानात्मक त्रुटियाँ उत्पन्न करती हैं।
इन विचारों का बार-बार उत्पन्न होना दुश्चिता और अवसाद की भावनाओं को विकसित करता है। चिकित्सक जो प्रश्न करता है वे सौम्य होते हैं तथा सेवार्थी के विश्वासों और विचारों के प्रति बिना धमकी वाले किन्तु उनका खंडन करनेवाले होते हैं। इन प्रश्नों के उदाहरण कुछ ऐसे हो सकते हैं, “क्यों हर कोई तुम्हें प्यार करे ?” “तुम्हारे लिए सफल होना क्या अर्थ रखता है ?” इत्यादि। ये प्रश्न सेवार्थी को अपने नकारात्मक स्वचालित विचारों की विपरीत दिशा में सोचने को बाध्य करते हैं जिससे वह अपने अपक्रियात्मक स्कीमा के स्वरूप के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त करता है तथा अपनी संज्ञानात्मक संरचना को परिवर्तित करने में समर्थ होता है। इस चिकित्सा का लक्ष्य संज्ञानात्मक पुनःसंरचना को प्राप्त करना है जो दुश्चिता तथा अवसाद को घटाती है।
प्रश्न 5. कौन-सी चिकित्सा सेवार्थी को व्यक्तिगत संवृद्धि चाहने एवं अपनी संभाव्यताओं की सिद्धि के लिए प्रेरित करती है ? उन चिकित्साओं की चर्चा कीजिए जो इस सिद्धांत पर आधारित हैं।
उत्तर-मानवतावादी अस्तित्वपरक चिकित्सा सेवार्थी को व्यक्तिगत संवृद्धि चाहने एवं अपनी संभाव्यताओं की सिद्धि के लिए प्रेरित करती है मानवतावादी-अस्तित्वपरक चिकित्सा की धारणा है मनोवैज्ञानिक कष्ट व्यक्ति के अकेलापन, विसंबंधन तथा जीवन का अर्थ समझने और यथार्थ संतुष्टि प्राप्त करने में अयोग्यता की भावनाओं के कारण उत्पन्न होते हैं। मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि (Self-actualisation) की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप से विकसित होने की सहज आवश्यकता से अभिप्रेरित होते हैं। जब समाज और परिवार के द्वारा ये आवश्यकताएँ बाधित की जाती हैं तो मनुष्य मनोवैज्ञानिक कष्ट का अनुभव करता है। आत्मसिद्धि को एक सहज शक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो व्यक्ति को अधिक जटिल, संतुलित और समाकलित होने के लिए अर्थात् बिना खंडित हुए जटिलता एवं संतुलन प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। समाकलित होने का तात्पर्य है साकल्य-बोध, एक संपूर्ण व्यक्ति होना, भिन्न-भिन्न अनुभवों के होते हुए भी मूल भाव में वही व्यक्ति होना। जिस तरह से भोजन या पानी की कमी कष्ट का कारण होती है, उसी तरह आत्मसिद्धि का कुठित होना भी कष्ट का कारण होता है।
जब सेवार्थी अपने जीवन में आत्मसिद्धि की बाधाओं का प्रत्यक्षण कर उनको दूर करने योग्य हो जाता है तब रोगोपचार घटित होता है। आत्मसिद्धि के लिए आवश्यक है संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति। समाज और परिवार संवेगों की इस मुक्त अभिव्यक्ति को नियंत्रित करते हैं क्योंकि उन्हें भय होता है कि संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति से समाज को क्षति पहुंच सकती है क्योंकि इससे ध्वंसात्मक शक्तियाँ उन्मुक्त हो सकती हैं। यह नियंत्रण सांवेगिक समाकलन की प्रक्रिया को निष्फल करके विध्वंसक व्यवहार और नकारात्मक संवेगों का कारण बनता है। इसलिए चिकित्सा के दौरान एक अनुज्ञात्मक, अनिर्णयात्मक तथा विकृतिपूर्ण वातावरण तैयार किया जाता है जिसमें सेवार्थी के संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति हो सके तथा जटिलता, संतुलन और समाकलन प्राप्त किया जा सके। इसमें मूल पूर्वधारणा यह है कि सेवार्थी को अपने व्यवहारों का नियंत्रण करने की स्वतंत्रता है तथा यह उसका ही उत्तरदायित्व है। चिकित्सक केवल एक सुगमकर्ता और मार्गदर्शक
होता है। चिकित्सा को सफलता के लिए सेवार्थी स्वयं उत्तरदायी होता है। चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य सेवार्थी की जागरुकता को बढ़ाना है। जैसे-जैसे सेवार्थी अपने विशिष्ट व्यक्तिगत अनुभवों को समझने लगता है वह स्वस्थ होने लगता है। सेवार्थी आत्म-संवृद्धि की प्रक्रिया को प्रारंभ करता है जिससे यह स्वस्थ हो जाता है।
प्रश्न 6. मनश्चिकित्सा में स्वास्थ्य-लाभ के लिए किन कारकों का योगदान होता है ? कुछ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की गणना कीजिए। 
उत्तर-मनश्चिकित्सा में स्वास्थ्य-लाभ में योगदान देनेवाले कारक निम्नलिखित हैं :
(i) स्वास्थ्य-लाभ में एक महत्त्वपूर्ण कारक है चिकित्सक द्वारा अपनाई गई तकनीक तथा रागी/सेवार्थी के साथ इन्हीं तकनीकों का परिपालन। यदि दुश्चित सेवार्थी को स्वस्थ करने के लिए व्यवहार पद्धति और संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा शाखा अपनाई जाती है तो विश्रांति की विधियाँ और संज्ञानात्मक पुनः संरचना तकनीक स्वास्थ्य-लाभ में बहुत बड़ा योगदान देती है।
(ii) चिकित्सात्मक मैत्री जो चिकित्सक एवं रोगी/सेवार्थी के बीच में बनती है, में स्वास्थ्य लाभ से गुण विद्यमान होते हैं क्योंकि चिकित्सक नियमित रूप से सेवार्थी से मिलता है तथा उसे तदनुभूति और हार्दिकता प्रदान करता है।
(iii) चिकित्सा के प्रारंभिक सत्रों में जब रोगी/सेवार्थी की समस्याओं की प्रकृति को समझने के लिए उसका साक्षात्कार किया जाता है, जो वह स्वयं द्वारा अनुभव किए जा रहे संवेगात्मक समस्याओं को चिकित्सक के सामने रखता है। संवेगों को बाहर निकालने की इस प्रक्रिया को भाव-विरेचन या कथार्सिस कहते हैं और इसमें स्वास्थ्य-लाभ के गुण विद्यामन होते हैं।
(iv) मनश्चिकित्सा से संबंधित अनेक अविशिष्ट कारक हैं। इनमें कुछ कारक रोगी/सेवार्थी से संबधित बताए जाते हैं तथा कुछ चिकित्सक से। ये कारक अविशिष्ट इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ये मनश्चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियों, भिन्न रोगियों/सेवार्थियों तथा भिन्न मनश्चिकित्सकों के आर-पार घटित होती हैं। रोगियों/सेवार्थियों पर लागू होनेवाले अविशिष्ट कारक हैं-परिवर्तन के लिए अभिप्रेरणा उपचार के कारण सुधार की प्रत्याशा इत्यादि। इन्हें रोगी चर (Patient
variables) कहा जाता है। चिकित्सक पर लागू होनेवाले विशिष्ट कारक हैं-सकारात्मक स्वभाव,
अनसुलझे संवेगात्मक द्वंद्वों की अनुपस्थिति, अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की उपस्थिति इत्यादि। इन्हें
चिकित्सक चर (Therapist variables) कहा जाता है।
योग, ध्यान, ऐक्यूपंक्चर, वनौषधि, उपचार आदि वैकल्पिक चिकित्साएँ हैं।
योग एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसे पतंजलि के योग सूत्र के अष्टांग योग में विस्तृत रूप से बताया गया है। योग, जैसा कि सामान्यतः आजकल इसे कहा जाता है, का आशय केवल आसन या शरीर संस्थति घटक अथवा श्वसन अभ्यास अथवा किसी वस्तु या विचार या किसी मंत्र पर ध्यान केन्द्रित करने के अभ्यास से है। जहाँ ध्यान केन्द्रित किया जाता है। विपश्यना ध्यान जिसे सतर्कता-आधारित ध्यान के नाम से भी जाना जाता है, में ध्यान बाँधे रखने के लिए कोई नियत वस्तु या चिार नहीं होता है। व्यक्ति निष्क्रिय रूप से विभिन्न शारीरिक संवेदनाओं एवं
विचारों, जो उसकी चेतना में आते रहते हैं, प्रेक्षण करता है।
प्रश्न 7. मानसिक रोगियों के पुनः स्थापन के लिए कौन-सी तकनीकों का उपयोग किया जाता है?
                     अथवा,
मानसिक रोगियों के पुनःस्थापन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-मानसिक रोगियों का पुनःस्थापन-मनोवैज्ञानिक विकारों के उपचार के दो घटक होते हैं अर्थात् लक्षणों में कमी आना तथा क्रियाशीलता या जीवन की गुणवत्ता के स्तर में सुधार लाना। कम तीव्र विकारों; जैसे-सामान्यीकृत दुश्चिता, प्रतिक्रियात्मक अवसाद या दुर्गति के लक्षणों में कमी आना जीवन की गुणवत्ता में सुधार से संबंधित नहीं हो सकता है। कई रोगी नकारात्मक क्षणों से ग्रसित होते हैं; जैसे-काम करने या दूसरे लोगों के साथ अन्योन्यक्रिया में अभिरुचि तथा अभिप्रेरणा का अभाव। इस तरह के रोगियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पुनःस्थापना की आवश्यकता होती है। पुन:स्थापना का उद्देश्य रोगी को सशक्त बनाना होता है जिससे जितना संभव हो सके वह समाज का एक उत्पादक सदस्य बन सके। पुन:स्थापन में रोगियों को व्यावसायिक चिकित्सा, सामाजिक कौशल प्रशिक्षण तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है। व्यावसायिक चिकित्सा में रोगियों को मोमबत्ती बनाना, कागज की थैली बनाना और कपड़ा बुनना सिखाया जाता
है जिससे वे एक कार्य अनुशासन बना सकें। भूमिका निर्वाह, अनुकरण और अनुदेश के माध्यम से रोगियों को सामाजिक कौशल प्रशिक्षण दिया जाता है जिसे कि वे अंतर्वैयक्तिक कौशल विकसित कर सकें। इसका उद्देश्य होता है रोगी को सामाजिक समूह में काम करना सिखाना। संज्ञानात्मक पुनः प्रशिक्षण मूल संज्ञानात्मक प्रकार्यों; जैसे-अवधान, स्मृति और अधिशासी प्रकार्यों में सुधार लाने के लिए दिया जाता हैं जब रोगी में पर्याप्त सुधार आ जाता है तो उसे व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है जिसमें उत्पादक रोजगार प्रारंभ करने के लिए आवश्यक कौशलों में अर्जन में उसकी मदद की जाती है।
प्रश्न 8. मनश्चिकित्सा का वर्गीकरण प्राचलों पर किया गया है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर-मनश्चिकित्सा का वर्गीकरण निम्नलिखित प्राचलों पर आधारित है-
(i) क्या कारण है, जिसने समस्या को उत्पन्न किया ?
मनोगतिक चिकित्सा के अनुसार अंत:मनोद्वंद्व अर्थात् व्यक्ति के मानस में विद्यमान द्वंद्व मनोवैज्ञानिक समस्याओं का स्रोत होते हैं। व्यवहार चिकित्सा के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यवहार एवं संज्ञान के दोषपूर्ण अधिगम के कारण उत्पन्न होती हैं अस्तित्वपरक चिकित्सा की अभिधारणा है कि अपने जीवन और अस्तित्व के अर्थ से संबंधित प्रश्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण होते हैं।
(ii) कारण का प्रादुर्भाव कैसे हुआ ?
मनोगतिक चिकित्सा में बाल्यावस्था की अतृप्त इच्छाएँ तथा बाल्यावस्था के अनसुलझे भय अंत:मनोद्वंद्व को उत्पन्न करते हैं। व्यवहार चिकित्सा की अभिधारणा है कि दोषपूर्ण चिंतन एवं विश्वास दुरनुकूलक व्यवहारों को उत्पन्न करते हैं जो बाद में मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बनते हैं। अस्तित्वपरक चिकित्सा वर्तमान को महत्त्व देती है। यह व्यक्ति के अकेलेपन, विसंबंधन (Alienation) अपने अस्तित्व की व्यर्थता के बोध इत्यादि से जुड़ी वर्तमान भावनाएँ हैं जो मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण है।
(iii) उपचार की मुख्य विधि क्या है ?
मनोगतिक चिकित्सा मुक्त साहचर्य विधि और स्वन को बताने की विधि का उपयोग सेवार्थी की भावनाओं और विचारों को प्राप्त करने के लिए करती है। इस सामग्री की व्याख्या सेवार्थी के समक्ष की जाती है ताकि इसकी मदद से वह अपने द्वंद्वों का सामना और समाधान कर अपनी समस्याओं पर विजय पा सके। व्यवहार चिकित्सा दोषपूर्ण अनुबंधन प्रतिरूप की पहचान कर वैकल्पिक व्यवहारात्मक प्रासंगिकता (Behavioural contingencies) नियम करती है जिससे व्यवहार में सुधार हो सके। इस प्रकार की चिकित्सा में प्रयुक्त संज्ञानात्मक विधियाँ सेवार्थी के दोषपूर्ण चिंतन प्रतिरूप को चुनौती देकर उसे अपने मनोवैज्ञानिक कष्टों पर विजय पाने में मदद करती हैं। अस्तित्वपरक चिकित्सा एक चिकित्सात्मक पर्यावरण प्रदान करती है जो सकारात्मक स्वीकारात्मक तथा अनिर्णयात्मक होता है। सेवार्थी अपनी समस्याओं के बारे में बात कर सकता है तथा चिकित्सा एक सुकरकर्ता की तरह कार्य करता है। सेवार्थी व्यक्ति संबुद्धि की प्रक्रिया के माध्यम से समाधान तक पहुँचता है।
(iv) सेवार्थी और चिकित्सक के बीच चिकित्सात्मक संबंध की प्रकृति क्या होती है ?
मनोगतिक चिकित्सा का मानना है कि चिकित्सा सेवार्थी की अपेक्षा उसके अंत: मनोद्वंद्व को ज्यादा अच्छी तरह से समझता है इसलिए वह (चिकित्सक) सेवार्थी के विचारों और भावनाओं
की व्याख्या उसके लिए करता है जिससे वह (सेवार्थी) उनको समझ सके। व्यवहार चिकित्सा का मानना है कि चिकित्सक सेवार्थी के दोषपूर्ण व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को पहचानने में समर्थ होता है। इसके आगे व्यवहार चिकित्सा का यह भी मानना है कि चिकित्सक उचित व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को जानने में समर्थ होता है जो सेवार्थी के लिए अनुकूली होगा। मनोगतिक और व्यवहार चिकित्सा दोनों का मानना है कि चिकित्सक सेवार्थी की समस्याओं के समाधान तक पहुंचने में समर्थ होते हैं। इन चिकित्सकों के विपरीत अस्तित्वपरक चिकित्सा इस बात पर बल देती है कि चिकित्सक केवल एक गर्मजोशी भरा और तद्नुभूतिक संबंधन प्रदान करता है, जिसमें सेवार्थी अपनी समस्याओं की प्रकृति और कारण स्वयं अन्वेषण करने में सुरक्षित महसूस करता है।
(v) सेवार्थी को मुख्य लाभ क्या है ?
मनोगतिक चिकित्सा संवेगात्मक अंतर्दृष्टि को महत्त्वपूर्ण लाभ मानती है जो सेवार्थी उपचार के द्वारा प्राप्त करता है। संवेगात्मक अंतर्दृष्टि तब उपस्थित मानी जाती है जब सेवार्थी अपने द्वंद्वों को बौद्धिक रूप से समझता है; द्वंद्वों को संवेगात्मक रूप से स्वीकार करने में समर्थ होता है। इस संवेगात्मक अंतर्दृष्टि के परिणामस्वरूप सेवार्थी के लक्षण दूर रहते हैं तथा कष्ट कम हो जाते हैं। व्यवहार चिकित्सा दोषपूर्ण व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को अनुकूली प्रतिरूपों में बदलने को उपचार का मुख्य लाभ मानती है। अनुकूली या स्वस्थ्य व्यवहार और विचारों के प्रतिरूपों को स्थापित करने से कष्ट में कमी और लक्षणों का दूर होना सुनिश्चित होता है। मानवतावादी चिकित्सा व्यक्तिगत संवृद्धि को मुख्य लाभ मानती है। व्यक्तिगत संवृद्धि अपेन बारे में बढ़ती समझ प्राप्त करने की प्रक्रिया है।
(vi) उपचार की अवधि क्या है?
क्लासिकी मनोविश्लेषण की अवधि कई वर्षों तक की हो सकती है। हालांकि मनोगतिक चिकित्सा के कई आधुनिक रूपांतर 10-15 सत्रों में पूरे हो जाते हैं। व्यवहार और संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा तथा अस्तित्वपरक चिकित्सा संक्षिप्त होती हैं तथा कुछ महीनों में ही पूरी हो जाती हैं।
प्रश्न 9. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए :
(1) अस्तित्वपरक चिकित्सा। (ii) सेवार्थी-केन्द्रित चिकित्सा।
उत्तर-(i) अस्तित्वपरक चिकित्सा-विक्टर फ्रेंकल (Victor Frankl) नामक एक मनोरोगविज्ञानी और तंत्रिकाविज्ञानी ने उद्बोधक चिकित्सा (Logotherapy) प्रतिपादित की। लॉगोस (Logos) आत्मा के लिए ग्रीक भाषा का एक शब्द है और उद्बोधक चिकित्सा का तात्पर्य आत्मा का उपचार है। फ्रेंकल जीवन के प्रति खतरनाक परिस्थितियों में भी अर्थ प्राप्त करने की इस प्रक्रिया को अर्थ निर्माण की प्रक्रिया कहते हैं। इस अर्थ निर्माण की प्रक्रिया का आधार व्यक्ति की अपने अस्तित्व का आध्यात्मिक अचेतन भी होता है जो प्रेम, सौंदर्यात्मक अभिज्ञता और जीवन मूल्यों का भंडार होता है। जब व्यक्ति के अस्तित्व के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक या आध्यात्मिक पक्षों से जीवन की समस्याएं जुड़ती हैं तो तंत्रिकातापी दुश्चिता उत्पन्न होती है। फ्रेंकल ने निरर्थकता की भावना को उत्पन्न करने में आध्यात्मिक दुश्चिता की भूमिका पर जोर दिया है और इसलिए उसे अस्तित्व दुश्चिता (Existential anxiety) अर्थात् आध्यात्मिक मुल की तंत्रिकातापी दुश्चिंता कहा जा सकता है। उद्बोधक चिकित्सा का उद्देश्य अपने जीवन का
परिस्थितियों को ध्यान में रखे बिना जीवन में अर्थवत्ता और उत्तदायित्व बोध प्राप्त कराने में सेवार्थी की सहायता करना है। चिकित्सा-सेवार्थी के जीवन की विशिष्ट प्रकृति पर जोर देता है और सेवार्थी को अपने जीवन में अर्थवत्ता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
उद्बोधक चिकित्सा में चिकित्सक निष्कपट होता है और अपनी भावनाओं, मूल्यों और अपने अस्तित्व के बारे में सेवार्थी से खुलकर बात करता है। इसमें आज और अभी’ पर जोर दिया जाता है और अन्यारोपण को सक्रिय रूप से हतोत्साहित किया जाता है। चिकित्सक सेवार्थी को वर्तमान की तात्कालिकता का स्मरण कराता है। अपने अस्तित्व का अर्थ प्राप्त करने की प्रक्रिया में सेवार्थी की मदद करना चिकित्सक का लक्ष्य होता है।
(ii) सेवार्थी-केन्द्रित चिकित्सा-सेवार्थी-केन्द्रित चिकित्सा कार्ल रोजर्स (Carl Rogers) द्वारा प्रतिपादित की गई है। रोजर्स ने वैज्ञानिक निग्रह को सेवार्थी-केन्द्रित चिकित्सा का व्यष्टीकृत पद्धति से संयुक्त किया। रोजर्स ने मनश्चिकित्सा में स्व के संप्रत्यय को प्रस्तुत किया और उनकी चिकित्सा का मानना है कि किसी व्यक्ति के अस्तित्व का मूल स्वतंत्रता और वरण होते हैं। चिकित्सा एक ऐसा गर्मजोशी का संबंध प्रदान करती है जिससे सेवार्थी अपनी विघटित भावनाओं के साथ संबद्ध होता है। चिकित्सक अनुभूति प्रदर्शित करना है अर्थात् सेवार्थी के अनुभवों को समझना, जैसे कि वे उसकी के हों, उसके प्रति सहृदय होता है तथा अशर्त सकारात्मक आदर यह बताता है कि चिकित्सक की सकारात्मक हार्दिकता सेवार्थी की उन भावनाओं पर आश्रित नहीं
है जो वह चिकित्सा सत्र के दौरान प्रदर्शित करता है। यह अनन्य अशर्त हार्दिकता यह सुनिश्चित करती है कि सेवार्थी चिकित्सक के ऊपर विश्वास कर सकता है तथा स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकता है। सेवार्थी इतना सुरक्षित महसूस करता है कि वह अपनी भावनाओं का अन्वेषण करने लगता है। चिकित्सक सेवार्थी की भावनाओं का अनिर्णयात्मक तरीके से परावर्तन करता है। यह परावर्तन सेवार्थी के कथनों की पुनः अभिव्यक्ति से प्राप्त किया जाता है अर्थात् सेवार्थी के कथनों के अर्थवर्धन के लिए उससे सरल स्पष्टीकरण मांगना। परावर्तन की यह प्रक्रिया सेवार्थी को समाकलित होने में मदद करती है। समायोजन बढ़ने के साथ ही व्यक्तिगत संबंध भी सुधरते हैं।
सार यह है कि यह चिकित्सा सेवार्थी को अपना वास्तविक स्व होने में मदद करती है जिसमें
चिकित्सक एक सुगमकर्ता की भूमिका निभाता है।
प्रश्न 10. छिपकली/तिलचटा के दुर्भीति भय का सामाजिक अधिगम सिद्धान्तकार किस प्रकार स्पष्टीकरण करेगा ? इसी दुर्भीति का एक मनोविश्लेषक किस प्रकार स्पष्टीकरण करेगा?
उत्तर-छिपकली/तिलचट्टा आदि से होनेवाले भय को दुर्भीति कहते हैं। जिन लोगों को दुर्भीति होती है उन्हें किसी विशिष्ट वस्तु लोग या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अर्वक भय होता है। यह बहुधा दुश्चिता विकार से उत्पन्न होती है। दुर्भीति या अविवेकी भय के उपचार के लिए वोल्प द्वारा प्रतिपादित क्रमित विसंवेदनीकरण एक तकनीक है। छिपकली/तिलचट्टा के दुर्भीति भय वाले व्यक्ति का साक्षात्कार मनोविश्लेषक भय उत्पन्न करनेवाली स्थितियों को जानने के लिए किया जाता है तथा सेवार्थी के साथ-साथ चिकित्सक भय उत्पन्न करनेवाले उद्दीपकों का एक पदानुक्रम तैयार करता है तथा सबसे नीचे रखता हैं मनोविश्लेषक सेवार्थी को विश्रांत करता है और सबको कम दुश्चिता उत्पन्न करनेवाली स्थिति के बारे में सोचने को कहता है। सेवार्थी से कहा जाता है कि जरा-सा भी तनाव महसूस करने पर भयानक स्थिति के बारे में सोचना बंद कर दे। कई सत्रों के पश्चात् सेवार्थी विश्रांति की अवस्था बनाए रखते हुए तीव्र भय उत्पन्न करनेवाली स्थितियों के बारे में सोचने में समर्थ हो जाता है। इस प्रकार सेवार्थी छिपकली या तिलचट्टा के भय के प्रति
विसंवेदनशील हो जाता है। जहाँ अन्योन्य प्रावरोध का सिद्धांत क्रियाशील होता है। पहले विश्रांत की अनुक्रिया विकसित की जाती है तत्पश्चात् धीरे से दुश्चिता उत्पन्न करनेवाले दृश्य की कल्पना की जाती है और विश्राति से दुश्चिता पर विजय प्राप्त की जाती है। इसके अतिरिक्त मनोविश्लेषक सौम्य तथा बिना धमकी वाले किन्तु सेवार्थी के दुर्भाति भय का खंडन करनेवाले प्रश्न करता है। ये प्रश्न सेवार्थी को दुर्भाति भय की विपरीत दिशा में सोचने को बाध्य करते हैं जो दुश्चिंता की घटाती है। सामाजिक अधिगम सिद्धान्तकार सामाजिक पक्षों को पर्यावरण परिवर्तन द्वारा स्पष्ट करेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *