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bihar board class 12 civics notes | दो ध्रुवीयता का अन्त

bihar board class 12 civics notes | दो ध्रुवीयता का अन्त

                              (THE END OF BIPOLATIRY)
                                        याद रखने योग्य बातें
• शीतयुद्ध का सबसे बड़ा प्रतीक : बर्लिन-दीवार 9 नवम्बर, 1989 को तोड़ी गई।
• बर्लिन की दीवार का जीवन काल : इसका जीवन 28 वर्ष तक रहा। यानी 1961 में
बनी तथा 1989 में विध्वंस हुई।
• यू०एस०एस०आर० का पूरा नाम : यूनियन ऑफ सोशलिस्ट सोवियत रिपब्लिक या
समाजवादी सोवियत गणराज्य।
• ब्लादिमीर लेनिन (1870-1924): वह सोवियत के प्रथम महान साम्यवादी (सफल) नेता
माने जाते हैं।
• रूस में सफल साम्यवादी क्रांति हुई : अक्टूबर 1917
• अफगानिस्तान में सोवियत संघ ने हस्तक्षेप शुरू किया : 1979 से।
• मार्च 1985 : मिखाइल गोर्बाचेव सोयित संघ की कम्युनिस्ट पाटी के महासचिव चुने गये।
बोरिस येल्तसिन को रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रमुख बनाया। सोवियत संघ में सुधारों
की श्रृंखला शुरू की।
• अक्टूबर 1989 : सोवियत संघ की घोषणा की ‘वारसा समझौते के सदस्य अपना भविष्य
तय करने के लिए स्वतंत्र हैं। नवंबर में बर्लिन की दीवार गिरी।
• फरवरी 1990 : गोर्बाचेव ने सोवियत संसद ड्यूमा के चुनाव के लिए बहुदलीय राजनीति
की शुरुआत की। सोवियत सत्ता पर कम्युनिस्ट पार्टी का 72 वर्ष पुराना एकाधिकार समाप्त।
• जून 1990 : रूसी संसद ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित की।
• मार्च 1990 : लिथुआनिया स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य
बना।
• जून 1991 : येल्तसिन का कम्युनिस्ट पाटी से इस्तीफा। रूस के राष्ट्रपति बने।
• अगस्त 1991 : कम्युनिस्ट पार्टी के गरमपंथियों ने गोर्बाचेव के खिलाफ एक असफल
तख्तापलट प्रयास किया।
• सितंबर 1991 : एटोनिया, लताविया और लिथुआनिया, तीनों बाल्टिक गणराज्य संयुक्त
राष्ट्रसंघ के सदस्य बने। (मार्च 2004 में उत्तर अटलांटिक संधि (NATO) संगठन में
शामिल)
• दिसंबर 1991 : रूस, बेलारूस और उक्रेन ने 1922 की सोवियत संघ के निर्माण से
संबद्ध संधि को समाप्त करने का फैसला किया और स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल बनाया।
आर्मेनिया, अजरबैजान, माल्दोवा, कजाकिस्तान, किरगिझस्तान, ताजिकिस्तान,
तुर्कमेनिस्तान और उज्वेकिस्तान भी राष्ट्रकुल में शामिल। जार्जिया 1993 में राष्ट्रकुल का
सदस्य बना। संयुक्त राष्ट्रसंघ में सोवियत संघ की सीट रूस को मिली।
• 25 दिसंबर, 1991 : गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया। सोवियत संघ का अंत।
                                         वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. निम्नलिखित में मेल बैठाएँ-                        [NCERT T.B.Q.4]
(i) मिखाइल गोर्बाचेव                       (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
(ii) शॉक थेरेपी                               (ख) सैन्य समझौता
(iii) रूस                                        (ग) सुधारों की शुरुआत
(iv) बोरिस येल्तसिन                        (घ) आर्थिक मॉडल
(v) वारसा                                       (ङ) रूस के राष्ट्रपति
            उत्तर-(i)-(ग), (ii)-(घ), (iii)-(क), (iv)-(ङ), (v)-(ख)।
1. सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत
                                                                                   [NCERT T.B.Q. 1]
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियंत्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियंत्रण राज्य करता था।
                                                    उत्तर-(ग)
2. निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ।
(क) अफगान-संकट
(ख) बर्लिन-दीवार का गिरना
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) रूसी क्रांति                    उत्तर-(घ) (क) (ख) (ग)
3. निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?
                                                                            [NCERT T.B.Q.3]
(क) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अंत
(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सी आईएस) का जन्म।
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव।
(घ) मध्यपूर्व में संकट।                         उत्तर-(घ)
4. शीतयुद्ध सबसे बड़ा प्रतीक थी-
(क) बर्लिन दीवार का खड़ा किया जाना
(ख) 1989 में पूर्वी जर्मनी की आम जनता द्वारा बर्लिन दीवार का गिराया जाना
(ग) जर्मनी में द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व एडोल्फ हिटलर के नेतृत्व में मानी पार्टी का
उत्थान
(घ) उपर्युक्त में कोई भी नहीं                      उत्तर-(क)
5. पूर्वी जर्मनी के लोगों ने वर्लिन दीवार गिरायी थी-
(क) 1946 में
(ख) 1947 में
(ग) 1989 में
(घ) 1991 में                                          उत्तर-(ग)
6. बर्लिन की दीवार बनाई गई थी-
(क) 1961 में
(ख) 1951 में
(ग) 1971 में
(घ) 2001 में।                                         उत्तर-(क)
7. लेनिन का जीवन-काल माना जाता है-
(क) 1870-1924
(ख) 1870-1954
(ग) 1870-1934
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं।                         उत्तर-(क)
8. निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है? [B.M.2009A]
(क) अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचार धारात्मक युद्ध की समाप्ति
(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल की उत्पत्ति
(ग) विश्व व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में परिवर्तन
(घ) मध्यपूर्व में संकट                                उत्तर-(ग)
9. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में शीतयुद्ध का प्रारंभ हुआ- [B.M. 2009A]
(क) 1945
(ख) 1962
(ग) 1946
(घ) 1964                                              उत्तर-(क)
10. सोवियत संघ का विघटन हुआ-                         [B.M. 2009A]
(क) 25 दिसम्बर, 1991
(ख) 25 दिसंबर, 1990
(ग) 25 दिसंबर, 1992
(घ) 25 दिसंबर, 1993                              उत्तर-(क)
11. सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
                                                                                                 [B.M. 2009A]
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी
(ख) उत्पादन के पर राज्य का स्वामित्व/नियंत्रण होना
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियंत्रण राज्य करता था।
                                                        उत्तर-(ग)
12. निम्नलिखित में से कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है? [B.M. 2009A]
(क) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारात्मक लड़ाई का अंत।
(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सी आई एस) का जन्म।
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव
(घ) मध्यपूर्व में संकट                                  उत्तर-(घ)
13. 1917 में रूस में समाजवादी राज्य की स्थापना किसने की?       [B.M. 2009A]
(क) कार्ल मार्स
(ख) फ्रेडरिक एंजिल्स
(ग) लेनिन
(घ) स्टालिन                                                उत्तर-(ग)
14. किसने पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्त की नीति प्रतिपादित की?          [B.M. 2009A]
(क) लियोनिड ब्रेजनेव
(ख) निकिता खुश्चेव
(ग) मिखाईल गोर्वाचोव
(घ) बोरिस येल्तसीन                                  उत्तर-(ग)
15. सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति कौन थे?                            [B.M. 2009A]
(क) जोसेफ स्टालीन
(ख) कोसीजीन
(ग) वुल्गानीन
(घ) मिखाईल गोर्वाचोव                             उत्तर-(घ)
16. पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को विभाजित करने वाली बर्लिन की दिवार कब गिरा
दी गई?                                                                     [B.M.2009A]
(क) 1989
(ख) 1990
(ग) 1991
(घ) 1992                                            उत्तर-(क)
17. जर्मनी का एकीकरण कब हुआ था?                  [B.M. 2009A]
(क) 1989
(ख) 1991
(ग) 1993
(घ) 1992                                       उत्तर-(ख)
18. शॉक धेरेपी को अपनाया गया-                        (B.M.2009A)
(क) 1990
(ख) 1991
(ग) 1989
(घ) 1992                                        उत्तर-(क)
19. सोवियत गुट से सबसे पहले कौन-सा देश अलग हुआ?     [B.M. 2009A)
(क) पोलैंड
(ख) युगोस्लाविया
(ग) पूर्वी जर्मनी
(घ) अल्बानिया                                   उत्तर-(ग)
                                          अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. बर्लिन-दीवार का निर्माण एवं विध्वंस किस तरह ऐतिहासिक घटना कहलाती है?
How is the construction and destruction of Berlin wall called a historical
event?
उत्तर-शीतयुद्ध के सबसे सरगर्म दौर में बर्लिन-दीवार (1961 ई. में) खड़ी की गई थी
और यह दीवार शीतयुद्ध का सबसे बड़ा प्रतीक थी। 1989 में पूर्वी जर्मनी की आम जनता ने इस
दीवार को गिरा दिया। इस नाटकीय घटना के बाद और भी नाटकीय तथा ऐतिहासिक घटनाक्रम
सामने आया। इसकी परिणति दूसरी दुनिया के पतन और शीतयुद्ध की समाप्ति में हुई। दूसरे
विश्वयुद्ध के बाद विभाजित हो चुके जर्मनी का अब एकीकरण हो गया।
2. दूसरी दुनिया के विघटन का आशय संक्षेप में बताइए।
Tell briefly the meaning of the disintegration of Second World?
उत्तर- सोवियत संघ के खेमे में शामिल पूर्वी यूरोप के आठ देशों ने एक-एक करके जनता
के प्रदर्शनों को देखकर अपने साम्यवादी शासन को बदल डाला। शीतयुद्ध के अंंत के समय
सोवियत संघ को यह सब चुपचाप देखते रहना पड़ा। ऐसा किसी सैन्य मजबूरी से नहीं। बल्कि
आम जनता की सामूहिक कार्यवाही के दबाव के कारण हुआ। अंत में स्वयं सोवियत संघ का
विघटन हो गया।
3. ब्लादिमीर लेनिन का एक महान सोवियत संघ के नेता के रूप में संक्षेप में उल्लेख
कीजिए।
Mention briefly Bladimir Lenin as a great Soviet leader.
उत्तर-ब्लादिमीर लेनिन का जन्म 1870 तथा देहांत 1924 में हुआ था। यह बोल्शेविक
कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक थे। अक्टूबर 1917 की सफल रूसी क्रांति के नायक लेनिन, क्रांति
के बाद सबसे कठिन दौर (1917-24) में सोवियत समाजवादी गणराज्य (USSR) के संस्थापक
तथा अध्यक्ष रहे। वह मार्क्सवाद के असाधारण सिद्धांतकार और उसे व्यावहारिक रूप देने में महारथी साबित हुए। लेनिन पूरी दुनिया में साम्यवाद के प्रेरणा स्रोत बने रहे। उन्होंने अथक परिश्रम करके सोवियत संघ को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर किया।
4. सोवियत प्रणाली क्या थी? इसकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
What was Soviet system? Describe briefly its major features.
उत्तर-समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू.एस.एस. आर) रूस में हुई 1917 की समाजवादी
क्रांति के बाद अस्तित्व में आया। यह क्रांति पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध में हुई थी और समाजवाद के आदर्शों और समतामूलक समाज की जरूरत से प्रेरित थी। यह मानव इतिहास में निजी संपत्ति की संस्था को समाप्त करने और समाज को समानता के सिद्धांत पर सचेत रूप से लड़ने की सबसे
बड़ी कोशिश थी। ऐसा करने में सोवियत प्रणाली के निर्माताओं ने राज्य और ‘पार्टी की संस्था’ को
प्राथमिक महत्त्व दिया। सोवियत राजनीतिक प्रणाली की धुरी कम्युनिस्ट पार्टी थी। इसमें किसी अन्य राजनीतिक दल या विपक्ष के लिए जगह नहीं थी। अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण में थी।
5. सोवियत प्रणाली का पूर्वी यूरोप या दूसरी दुनिया पर क्या प्रारंभिक प्रभाव पड़ा
था?
What was impact of Soviet system on eastern Europe or Second World?
उत्तर-दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पूर्वी यूरोप के देश सोवियत संघ के अंकुश में आ गये।
सोवियत सेना ने इन्हें फासीवाद ताकतों के चुंगल से मुक्त कराया था। इन सभी देशों की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढ़ाला गया। इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या ‘दूसरी दुनिया’ कहा जाता है। इस खेमे का नेता समाजवादी सोवियत गणराज्य था।
6. जोजेफ स्टालिन का सोवियत संघ के एक महत्त्वपूर्ण नेता के रूप में संक्षिप्त परिचय
दीजिए।
Give a brief introduction of Joseph Stalin as an important leader of Soviet Union.
उत्तर-जोजेफ स्टालिन (1879-1953)—वह लेनिन के बाद सोवियत संघ का सर्वोच्च
नेता एवं राष्ट्रध्यक्ष बना। उसने सोवियत संघ को मजबूत बनाने के दौर में सन् 1924 से 1953
तक नेतृत्व प्रदान किया। उसके काल में सोवियत संघ का तीव्रता से औद्योगिकरण हुआ। खेती
का बलपूर्वक सामूहिकीकरण कर दिया गया। उसे सन् 1930 के दशक से लेकर 1953 तक सोवियत संघ में तानाशाही की स्थापना के लिए दोषी करार दिया जाता है। जो भी हो उसी के नेतृत्व में सोवियत संघ ने मित्रराष्ट्रों का साथ दिया तथा धुरीराष्ट्रों को पराजित करने में उसने स्मरणीय भूमिका का निर्वाह किया। उसी के काल में शीतयुद्ध शुरू हो गया जो अनेक वर्षों तक चला।
7. निकिता खुश्चेव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
Give a brief intorduction of Nikita Khrushehev.
उत्तर-निकिता खुश्चेव (Nikita Khrushchev) (1894-1971)-वह सोवियत संघ
के राष्ट्रपति 1953 से 1964 तक रहे। वह स्टालिन की तानाशाही एवं अधिनायकवादी नेतृत्व शैली के कट्टर आलोचक थे। उन्होंने 1956 में अपने देश में कुछ सुधार लागू किये थे। उन्होंने पश्चिम के साथ ‘शांतिपूर्ण सहअस्तित्व’ का सुझाव रखा तथा हंगरी के जन-विद्रोह के दमन और क्यूबा के मिसाइल संकट में शामिल थे।
8. लिओनिड ब्रेझनेव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
Give a brief introduction of Leonid Brezhnev.
उत्तर-लिओनिड ब्रेजनेव (Leonid Brezhnev)-वह 1906 में उत्पन्न हुए थे तथा
1982 ई. में उनका देहान्त हुआ। वह सन् 1964 से 1982 तक सोवियत संघ के राष्ट्रपति रहे थे।
उन्होंने एशिया की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का सुझाव दिया था।
वह सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य सम्बन्ध सुधारने तथा पारस्परिक
तनाव में कमी लाने के लिए प्रयत्नशील रहे लेकिन उन्होंने चेकोस्लोवाकिया के जन-विद्रोह का
दमन किया। उन्होंने अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का सैन्य आक्रमण कराया जिनके बहुत ही
दुखद प्रभाव अफगानों को उठाने पड़े।
9. मिखाइल गोर्बाचेव कौन थे? उनके द्वारा किये गये सुधारों एवं अच्छे कार्यों का
उल्लेख कीजिए।
(Vio was Mikhail Gorbachev? Mentions reforms and good works done by him.)
उत्तर-मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev)-उनका जन्म 1931 में हुआ था।
वह सोवियत संघ के अन्तिम राष्ट्रपति (1985 से 1991 ई. तक) थे। उनका नाम रूसी इतिहास
में सुधारों के लिए जाना जाता है। उन्होंने पेरेस्रोइका (पुनर्रचना) और ग्लासनोस्त (खुलेपन) के
आर्थिक और राजनीतिक सुधार शुरू किए। गोर्बाचेव ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हथियारों
की होड़ पर रोक लगाई। अफगानिस्तान और पूर्वी यूरोप से सोवियत सेना वापस बुलाई यह
अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने की दृष्टि से उनका एक बहुत ही अच्छा कार्य था। वह जर्मनी के
एकीकरण में सहायक बने। उन्होंने शीतयुद्ध समाप्त किया। उन पर सोवियत संघ के विघटन का
आरोप लगाया जाता है, लेकिन उन्होंने वस्तुत: सोवियत संघ के लोगों को राजनीतिक घुटन से
मुक्ति दिलायी।
10. बोरिस येल्तसिन का संक्षिप्त परिचय एवं महत्त्वपूर्ण कार्यों का भी उल्लेख कीजिए।
Give a brief introduction of Boris Yeltsin and mention his important works also.
उत्तर-बोरिस येल्तसिन (Boris Yeltsin)―उनका जन्म 1931 में हुआ था। वह रूस
के प्रथम चुने हुए राष्ट्रपति बने। इस पद पर उन्होंने 1991 से 1999 तक कार्य किया। वह कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता केन्द्र तक पहुँचे। राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा उन्हें मास्को को मेयर बनाया गया था। कालान्तर में वह गोर्बाचेव के आलोचकों में शामिल हो गये थे और उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने 1991 में सोवियत संघ के शासन के विरुद्ध उठे विरोधी आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने सोवियत संघ के विघटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। उन्हें साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के दौरान रूसी लोगों को हुए कष्ट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।
11. शॉक थेरेपी का एक दुःखदायी आर्थिक दुष्परिणाम लिखिए।
Write one painful adverse economic Consequence of Shock Therapy.
उत्तर-रूस में कुल डेढ़ हजार बैक और अन्य वित्तीय संस्थान थे जिनमें से लगभग आधे
‘शॉक थेरेपी’ के परिणामस्वरूप दिवालिया हो गए। एक ऐसा ही बैंक इकॉम था। रूस के इस दूसरे सबसे बड़े बैंक इकॉम के दिवालिया होने से ग्राहको के अलावा दस हजार कंपनियों और शेयरधारको की जमापूंँजी भी डूब गई।
                                              लघु उत्तरीय प्रश्न
1. ‘द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा।’ तथ्य देकर
प्रमाणित करें।
After the Second World War the Soviet Union become a great power.’ Prove it, giving facts.
उत्तर-(1) दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा। अमेरिका
को छोड़ दें तो सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था शेष विश्व की तुलना में कहीं ज्यादा विकसित थी।
(2) सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी। उसके पास विशाल ऊर्जा-संसाधन था
जिसमें खनिज, तेल, लोहा और इस्पात तथा मशीनरी उत्पाद शामिल हैं।
(3) सोवियत संघ के दूर-दराज के इलाके भी आवागमन की सुव्यवस्थित और विशाल प्रणाली
के कारण आपस में जुड़े हुए थे।
(4) सोवियत संघ का घरेलू उपभोक्ता-उद्योग भी बहुत उन्नत था और पिन से लेकर कार
तक सभी चीजों का उत्पादन वहाँ होता था। यद्यपि सोवियत संघ के उपभोक्ता उद्योग में बनने
वाली वस्तुएँ गुणवत्ता के लिहाज से पश्चिमी देशों के स्तर की नहीं थीं।
(5) सोवियत संघ की सरकार ने अपने सभी नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर
सुनिश्चित कर दिया था। सरकार बुनियादी जरूरत की चीजें मसलन स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा बच्चों की देखभाल तथा लोक-कल्याण की अन्य चीजें रियायती दर पर मुहैया कराती थी। बेरोजगारी नहीं थी।
(6) मिल्कित का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था तथा भूमि और अन्य उत्पादक संपदाओं
पर स्वामित्व होने के अलावा नियंत्रण भी राज्य का ही था।
(7) हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर संयुक्त राज्य अमेरिका को बराबर
की टक्कर दी।
2. सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की
अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।
Mention any three features that distinguish the Soviet economy from that of a capitalist country like the US?              [NCERT T.B.Q.6]
उत्तर-(1) सोवियत अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी देश जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका
(पश्चिमी जर्मनी या अब की एकीकृत जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन आदि) देशों की अर्थव्यवस्था निजी
सम्पत्ति की संस्था को समाप्त कर दिया गया था। मिल्कित का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व था।
(2) समाजवादी अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी देशों या अर्थव्यवस्था के विपरीत राज्य (या समाज)
और पार्टी की सस्था को प्राथमिक महत्त्व दिया। उत्पादन के साधनों (भूमि, पूँजी आदि) पर पूर्णतया राज्य का नियंत्रण था।
(3) पूँजीवादी देशों के विपरीत सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध और राज्य के नियंत्रण
में थी। निजी क्षेत्र-व्यक्तियों, निजी कम्पनियों तथा उद्यमियों को उत्पादन, वितरण आदि से दूर
रखा जाता था। भूमि और उत्पादन सम्पदाओं पर स्वामित्व होने के अलावा नियंत्रण भी राज्य का
ही था। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे पूँजीवादी देशो में भूमि और अन्य उत्पादक सम्पदाओं,
कारखाने, मिलों, कम्पनियों आदि) पर स्वामित्व भी व्यक्तियों या व्यक्ति-समूहों (कम्पनियों या
पूँजीपतियों अथवा उद्योगपतियों) का होता है।
3. किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?
What were the factors that forced Gorbachev to initiate the reforms in the USSR.                                                            [NCERT T.B.Q.7]
उत्तर-निम्नलिखित कारणों की वजह से मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए
बाध्य हुए-
(1) 1980 के दशक के मध्य में (जब वह सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव
(जनरल सेक्रेटरी) बने तब देखा गया कि पश्चिम के देशों में (जिन देशों से से सोवियत संघ
प्रतियोगिता करने का दावा करता था) सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांति हो रही थी और
सोवियत संघ को उनकी बराबरी में लाने के लिए सुधार जरूरी हो गए थे। गोर्बाचेव ने देश के
अन्दर आर्थिक राजनीतिक सुधारों और लोकतंत्रीकरण की नीति चलायी। सोवियत संघ की जनता तथा स्वयं गोर्बाचेव ने भी महसूस किया कि अनेक वर्षों से उनके देश की अर्थव्यवस्था की गति अवरुद्ध हो रही थी इससे देश में उपभोक्ता-वस्तुओं की बड़ी कमी महसूस हो रही थी। सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा भांग अपनी राज्य व्यवस्था को संदेह की दृष्टि से देखने लगा था।
(2) गोर्बाचेव ने सैन्य व्यय को कम करके राष्ट्रीय संसाधनों को विकास कार्यों में लगाने के
लिए यह आवश्यक समझा कि पश्चिमी देशों के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाया जाये तथा
जनता को नागरिक अधिकार देने तथा दम घुटने की राजनीतिक फिजा से छुटकारा देने के लिए
सोवियत संघ को लोकतांत्रिक रूप दिया जाये, क्योंकि पूर्वी यूरोपीय देशों की, (जो सोवियत संघ
के खेमे के हिस्से थे) जनता ने अपनी सरकारों की (सोवियत संघ समर्थक नीतियों) नीतियों और
सोवियत संघ के नियंत्रण का विरोध करना शुरू कर दिया था। गोर्बाचेव के शासक रहते सोवियत
संघ ने ऐसी गड़बड़ियों में उस तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जैसा अतीत में होता था। (पूर्वी यूरोप
की साम्यवादी सरकारें एक के बाद एक गिरती चली गई।
(3) सोवियत संघ के बाहर पूर्वी यूरोप में साम्यवादी सरकारों की समाप्ति का प्रभाव सोवियत
संघ पर पड़ना स्वाभाविक था सोवियत संघ के अन्दर राजनीतिक संकट गहराता गया। गोर्बाचेव
ने देश के अन्दर आर्थिक राजनीतिक सुधारों को नीति चलायी ताकि लोकतंत्रीकरण हो जाये तथा
जनता में व्याप्त असंतोष समाप्त किया जा सके। इन सुधार नीतियों का कट्टर कम्युनिस्ट नेताओं
द्वारा विरोध किया जाने लगा। 1991 में एक सैनिक तख्तापलट भी हुआ। कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े गरमपंथियों ने इसे बढ़ावा दिया था।
(4) सोवियत संघ पर पश्चिमी देशों के उदारवादी लोकतंत्रीय/गणतंत्रीय एवं संघीय शासन
प्रणालियों का व्यापक प्रभाव पड़ चुका था। 1991 में जब कट्टरपंथियों (साम्यवादियों) ने गोर्बाचेव पर तानाशाही के तरीके अपनाने के लिए दबाव डाला तो उसने स्पष्ट कर दिया कि अब देश की जनता स्वतंत्रता का स्वाद चख चुकी है। वह भी कम्युनिस्ट पार्टी के पुरानी रंगत वाले शासन में नहीं जाना चाहते थे।
(5) बोरिस येल्तसिन (जिसे स्वयं गोर्बाचेव ने मास्को का मेयर बनवाया था) ने सैनिक
तख्तापलट के विरोध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे नायक की तरह उभरे। रूसी गणराज्य ने जहाँ बोरिस येल्तसिन ने आम चुनाव जीता था, केन्द्रीयकृत नियंत्रण को मानने से इन्कार कर दिया। सत्ता मास्को से गणराज्यों की ओर खिसकने लगी। ऐसी विशेषकर सोवियत संघ के उन भागों में हुआ जो ज्यादातर यूरोपीकृत थे और स्वयं को संप्रभु मानते थे। लोग स्वयं को राजव्यवस्था और शासकों से जोड़कर नहीं देख पा रहे थे। मिखाइल गोर्बाचेव ने सुधार कर इन समस्याओं को हल करने का वायदा किया। उन्होने अर्थव्यवस्था को सुधारने, पश्चिम की बराबरी पर लाने और प्रशासनिक ढांँचे में ढील देने का वायदा किया।
यद्यपि गोर्बाचेव ने अपना वायदा पूरा किया फिर भी उनके आलोचकों ने उन्हें नहीं छोड़ा और
यह दोष उन पर लगाया कि उन्हें और तेज गति से कदम उठाने चाहिए। उधर विशेषाधिकार प्राप्त साम्यवादी गोर्बाचेव पर दोष लगा रहे थे कि वे बहुत जल्दबाजी कर रहे हैं इसलिए सोवियत
व्यवस्था से उन्हें जो फायदे मिले हुए थे वे उनसे छीने जा रहे हैं। इस खींचतान में गोर्बाचेव का
सर्मथन हर तरफ से जाता रहा।
4. “भारत का उज्वेकिस्तान से मजबूत सांस्कृतिक सम्बन्ध है इसका उदाहरण यह है
कि इस देश में हिन्दुस्तानी फिल्मों की धूम रहती है।” व्याख्या कीजिए।
“India has strong cultural-relation with Uzbekistan, its example in this
one that Hindustani films are very popular in this country.” Explain.
उत्तर-उज्वेकिस्तान तथा भारत में अच्छे तथा मजबूत सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं इसका साक्ष्य
फिल्म हैं।
(1) सोवियत संघ को विघटित हुए सात साल बीत गये लेकिन हिंदी फिल्मों के लिए उज्वेक
लोगों में वही ललक मौजूद है। हिन्दुस्तान में किसी फिल्म का प्रदर्शन हुआ नहीं कि चंद हफ्तों के
भीतर इसकी पाइरेटेड कॉपियाँ उज्वेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में बिकने के लिए उपलब्ध हो जाती हैं।
(2) ताशकंद (याद रहे इसी शहर में लालबहादुर शास्त्री के काल में भारत-पाक समझौता
रूस की मध्यस्थता के साथ 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुआ था।) के एक बड़े बाजार के
नजदीक हिन्दी फिल्मों की एक दुकान मुहम्मद शरीफ पत की है। मुहम्मद शरीफ अफगानी हैं और पाकिस्तान के सीमाप्रांत के शहर पेशावर से वीडियो मंगाते हैं। उनका कहना है-‘यहाँ हिंदी
फिल्मों के बहुतेरे दीवाने है। मैं तो कहूँगा कि ताशकंद के 70 फीसदी लोग इन फिल्मों को खरीदते हैं। हम लोग रोजाना लगभग 100 वीडियो बेच लेते हैं। मैंने अभी-अभी 1000, और वीडियो का ‘ऑर्डर’ दिया है। उज्बेक लोग मध्य एशियाई हैं; वे एशिया के अंग हैं। उनकी एक साझी संस्कृति हैं। इसी कारण वे लोग भारतीय फिल्मों को पसंद करते हैं।”
(3) ब्रिटेन के (बी.बी.सी.) एक संवाददाता द्वारा दी गई एक रिपोर्ट के आधार पर कहा जा
सकता है कि साझे इतिहास के बावजूद भारतीय फिल्मों और उनके ‘हीरो’ के लिए उज्बेकी लोगों की दीवानगी उज्बेकिस्तानवासी अनेक भारतीयों को आश्चर्यजनक जान पड़ती है।
(4) ताशकंद स्थित भारतीय दूतावास के अशोक शमर बताते हैं: “हम जहाँ भी जाते है.
और स्थानीय अधिकारियों से मिलते है (काबीना मंत्री तक) बातचीत में हमेशा इसका जिक्र करते
हैं। इससे पता चलता है कि भारतीय फिल्म, संस्कृति, गीत और खास तौर पर राजकपूर यहाँ
घर-घर जाने जाते हैं। यहाँ अधिकांश लोग हिंदी गीत गा लेते हैं। अर्थ चाहे न मालूम हो लेकिन
उनका उच्चारण सही होता है और वे संगीत भी पकड़ लेते है। मैंने पाया कि मेरे सारे पड़ोसी हिंदी गीत बजाते हैं और गा लेते है। मैं जब उज्वेकिस्तान आया तो यह मेरे लिए सचमुच बहुत आश्चर्य की बात थी।”
5. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
What were the major consequences of the disintegration of the Soviet Union for countries like India?                     [NCERT T.B.Q. 8]
उत्तर-भारत के लिए सोवियत संघ के विघटन के परिणाम (Consequences of
Disintegration of Soviet Union for India) ―
(1) भारत शीतयुद्ध को रोकने की चाह करने वाले राष्ट्रों में अग्रणी राष्ट्र था। उसे महसूस
हुआ कि अब विश्व में शीतयुद्ध का दौर और अन्तर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष की
समाप्ति हो जायेगी। भारत ने महसूस किया कि अब सैन्य गुटों के गठन की प्रक्रिया रुकेगी तथा
हथियारों की तेज दौड़ भी थमेगी। भारत में सरकार तथा जनता को एक नई अन्तर्राष्ट्रीय शांति
सम्भावना दिखाई देने लगी।
(2) भारत अन्य प्रजातंत्रीय देशों की तरह विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका की तरफ
और मजबूती से दोस्ती करने के लिए बढ़ता चला गया। मिश्रित अर्थव्यवस्था को सन् 1991 से
ही धीरे-धीरे छोड़ दिया गया। नई आर्थिक नीति की घोषणा कर दी गई। भारत में भी लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्था मानने लगे। भारत में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नातियाँ अपनाई जाने लगी। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी विभिन्न संस्थाएं देश की प्रबल परामर्शदात्री मानी जाने लगीं।
(3) सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत में राजनीतिक रूप से उदारवादी लोकतंत्र
राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने वाला अधिक प्रबल रूप में बुद्धिजीवियों तथा अधिकांश
पार्टियों द्वारा समझा जाने लगा है। अनेक वामपंथी विचारकों को एक झटका-सा लगा है। वे मानते हैं कि शीघ्र ही पुन: विश्व में साम्यवाद का बोलबाला होगा।
(4) भारत ने मध्य एशियाई देशों के प्रति अपनी विदेश नीति को नये सिरे से तय करना
शुरू कर दिया है। सोवियत संघ से अलग हुए सभी पन्द्रह गणराज्यों से भारत के सम्बन्ध नये
रूप से निर्धारित किये जा रहे हैं। भारत चीन, रूस के साथ-साथ पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भी
मुक्त व्यापार को अपनाना जरूरी मान रहा है। भारत रूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान,
उज्बेकिस्तान और अजर बेजान से तेल और गैस अन्य (जो इन चीजों के बड़े उत्पादक है) देशों
वे क्षेत्रों से पाइप-लाइन गुजार करके लाने तथा अपनी जरूरतें पूरी करने के प्रयास में जुटा हुआ
है। भारत रूस के साथ-साथ इन देशों में अपनी संस्कृति (हिन्दी फिल्में एवं गीत) के प्रचार के
लिए कई तरह के समझौते कर चुका
6. “सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं हैं।” क्या यह सम्भव है?
“The end of Soviet Union is not the end of Socialism” Is it possible?
उत्तर-(1) अनेक लोग (जो राजनीति में रुचि रखते हैं) प्राय: यह वाद-विवाद करते रहते
हैं कि सोवियत संघ का अन्त समाजवाद का अन्त नहीं है क्योंकि. (i) विचारधाराओं का अन्त
अचानक किसी एक घटना से नहीं होता। समाजवाद एक विचारधारा है। उसका विरोध पूँजीवादी
विचारक ही करते हैं। समाजवाद का मूल आधार या आत्मा समाज या सर्वसाधारण का कल्याण
है। दूसरी ओर पूँजीवाद का आधार-व्यक्तिगत स्वार्थ तथा निर्बल असहाय का शोषण करना है।
(2) समाजवाद अवश्यम्भावी है आज नहीं तो कल जरूर आयेगा क्योंकि विश्व में निर्धन
देशों तथा निर्धन लोगों की संख्या कहीं अधिक है। इतिहास इस बात का गवाह है कि राजतंत्र
तानाशाही का अंत हुआ तो उनके स्थान पर लोकतंत्र एवं उदारवादी शासन प्रणाली आयी।
सामान्तवाद तथा जमींदारी तथा जागीरदारी का अन्त हुआ तो भूमि जोतने वालों को मिली। पूँजीवाद का अन्त होगा तो.समाजवाद ही आयेगा।
                                          दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. सोवियत प्रणाली के प्रमुख दोषों एवं कुछ महत्त्वपूर्ण असफलताओं का उल्लेख
कीजिए
(Describe main defects and important failures of the Soviet System.)
उत्तर-सोवियत प्रणाली के दोष एवं असफलताएँ (Defects and Failures of
Soviet system)-(1) सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया। यह
प्रणाली सत्तावादी होती गई और नागरिकों का जीवन कठिन होता चला गया।
(2) लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होने के कारण लोग अपनी असहमति अक्सर
चुटकुलों और कार्टूनों में व्यक्त करते थे। सोवियत संघ की अधिकांश संस्थानों में सुधार की जरूरत थी।
(3) सोवियत संघ में एक दल यानी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था और इस दल का सभी
संस्थाओं पर गहरा अंकुश था। यह दल जनता के प्रति जवाबदेह नहीं था।
(4) जनता के अपनी संस्कृति और बाकी मामलों की साज-संभाल अपने आप करने के लिए
15 गणराज्यों को आपस में मिलाकर सोवियत संघ बनाया था लेकिन पार्टी ने जनता की इस इच्छा को पहचानने से इंकार कर दिया। हालांकि सोवियत संघ के नक्शे में रूस, संघ के पन्द्रह गणराज्यों में से एक था लेकिन वास्तव में रूस का हर मामले में प्रभुत्व था। अन्य क्षेत्रों की जनता अक्सर उपेक्षित और दमित महसूस करती थी।
(5) हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर अमेरिका को बराबर की टक्कर
दी लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। सोवियत संघ प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे
(मसलन-परिवहन, ऊर्जा) के मामले में पश्चिमी देशों की तुलना में पीछे रह गया, लेकिन सबसे
बड़ी बात तो यह थी कि सोवियत संघ अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं
को पूरा नहीं कर सका।
(6) सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया। इससे सोवियत संघ की
व्यवस्था और भी कमजोर हुई।
(7) हालाँकि सोवियत संघ में लोगों का पारिश्रमिक लगातार बढ़ा लेकिन उत्पादकता और
प्रौद्योगिकी के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे छूट गया। इससे हर तरह की
उपभोक्ता वस्तुओं की कमी हो गई।
(8) खाद्यान्न का आयात साल-दर-साल बढ़ता गया। 1970 के दशक में अंतिम वर्षों में यह
व्यवस्था लड़खड़ा रही थी और अंतत: ठहर सी गयी।
2. मिखाइल गोर्बाचेव के काल में सोवियत संघ किस तरह से विघटन की ओर अग्रसर
हुआ था? विवरण दीजिए।
How did Soviet Union advance towards disintegration during the period
of Mikhail Gorbeahes? Give description.
उत्तर-मिखाइल गोर्बाचेव और सोवियत संघ का विघटन (Mikhail Gorbacher
and Distintegration of Soviet Union)-(1) मिखाइल गोर्बाचेव ने इस व्यवस्था को
सुधारना चाहा। वे 1980 के दशक के मध्य में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव
बने। पश्चिम के देशों में सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांति हो रही थी और सोवियत संघ
को इसकी बराबरी में लाने के लिए सुधार जरूरी हो गए थे। गोर्बाचेव ने पश्चिम के देशों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने, सोवियत संघ को लोकतांत्रिक रूप देने और वहाँ सुधार करने का फैसला किया। इस फैसले की कुछ ऐसी भी परिणतियाँ रहीं जिनकी किसी को कोई अंदाजा नहीं था। पूर्वी यूरोप के देश सोवियत खेमे के हिस्से थे। इन देशों की जनता ने अपनी सरकारों और सोवियत नियंत्रण का विरोध करना शुरू कर दिया। गोर्बाचेव के शासक रहते सोवियत संघ ने ऐसी गड़बड़ियों में उस तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जैसा अतीत में होता था। पूर्वी यूरोप की साम्यवादी सरकारें एक के बाद एक गिर गईं।
(2) सोवियत संघ के बाहर हो रहे इन परिवर्तनों के साथ-साथ अंदर भी संकट गहराता जा
रहा था और इससे सोवियत संघ के विघटन की गति और तेज हुई। गोर्बाचेव ने देश के अंदर
आर्थिक-राजनीतिक सुधारों और लोकतंत्रीकरण की नीति चलायी। इन सुधार नीतियों का कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं द्वारा विरोध किया गया।
(3) 1991 में एक सैनिक तख्तापलट भी हुआ। कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े गरमपंथियों ने इसे
बढ़ावा दिया था। तब तक जनता को स्वतंत्रता का स्वाद मिल चुका था और वे कम्युनिस्ट पार्टी
के पुरानी रंगत वाले शासन में नहीं जाना चाहते थे। येल्तसिन ने इस तख्तापलट के विरोध में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे नायक की तरह उभरे। रूसी गणराज्य ने, जहाँ बोरिस येल्तसिन ने आम चुनाव जीता था, केंद्रीकृत नियंत्रण को मानने से इंकार कर दिया।
(4) संत्ता मास्को से गणराज्यों की तरफ खिसकने लगी। ऐसा खासकर सोवियत संघ के उन
भागों में हुआ जो ज्यादा यूरोपीकृत थे और अपने को संप्रभु राज्य मानते थे। आश्चर्यजनक तौर
पर मध्य-एशियाई गणराज्यों ने अपने लिए स्वतंत्रता की मांग नहीं की। वे ‘सोवियत संघ के साथ
ही रहना चाहते थे। सन् 1991 के दिसम्बर में येल्तसिन के नेतृत्व में सोवियत संघ के तीन बड़े
गणराज्य रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। कम्युनिस्ट पार्टी प्रतिबंधित हो गई और परवर्ती सोवियत गणराज्यों ने पूँजीवाद तथा लोकतंत्र का अपना आधार बनाया।
(5) साम्यवादी सोवियत गणराज्य के विघटन की घोषणा और स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल
(कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) का गठन बाकी गणराज्यों, खासकर मध्य एशियाई गणराज्यों के लिए बहुत आश्चर्यचकित करने वाला था। ये गणराज्य अभी ‘स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल’ से बाहर थे। इस मुद्दे को तुरंत हल कर लिया गया। इन्हें ‘राष्ट्रकुल’ का संस्थापक सदस्य बनाया गया।
(6) रूस को सोवियत संघ का उत्तराधिकारी राज्य स्वीकार किया गया। रूस को सुरक्षा परिषद्
में सोवियत संघ की सीट (जगह/स्थान) मिला। सोवियत संघ ने जो अंतर्राष्ट्रीय करार और संधियाँ
की थीं उन सबको निभाने का जिम्मा अब रूस का था। सोवियत संघ के विघटन के बाद के समय
में पूर्ववर्ती गणराज्यों के बीच एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न देश का दर्जा रूस को मिला। उसने
अमेरिका के साथ परमाणु निशस्त्रीकरण की दिशा में कुछ कदम भी उठाए। सोवियत संघ अब नहीं रहा; वह दफन हो चुका था।
3. सोवियत संघ का विघटन क्यों हुआ?
Why did the Soviet Union disintegrate?              [B.M. 2009A]
उत्तर-सोवियत संघ के विघटन के लिए उत्तरदायी कारक या कारण (Factors or
Causes responsible for the disintegration of Soviet Union)-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति 1991 में अचानक बिखर गई। सोवियत संघ तथा वहाँ अक्टूबर 1917 की क्रांति के उपरान्त से चली आ रही साम्यवादी व्यवस्था का अन्त हो गया। इस घटना के लिए अनेक कारक (कारण) उत्तरदायी थे जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख थे-
(1) राजनीतिक-आर्थिक संस्थाओं की आन्तरिक कमजोरियाँ (Internal weakness
of Political Economic Institutions)- इसमें कोई संदेह नहीं है कि सोवियत संघ की
राजनीतिक-आर्थिक संस्थाएं अंदरूनी कमजोरी के कारण लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी। यही सोवियत संघ के पतन का कारण रहा। कई सालों तक अर्थव्यवस्था गतिरुद्ध रही। इससे
उपभोक्ता-वस्तुओं की बड़ी कमी हो गई और सोवियत संघ की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी राजव्यवस्था को शक की नजर से देखने लगा; उस पर खुलेआम सवाल खड़े करने शुरू किए।
(2) हथियारों की पागल दौड़ में शामिल होना (Entry in mad-race of the
Weapons)-यह व्यवस्था इतनी कमजोर कैसे हुई और अर्थव्यवस्था में गतिरोध क्यों आया?
इसका उत्तर काफी हद तक साफ है। इस सिलसिले में एक बात एकदम स्पष्ट है कि सोवियत संघ
ने अपने संसाधनों का अधिकांश परमाणु हथियार और सैन्य साजो-सामान पर लगाया। उसने अपने संसाधन पूर्वी यूरोप के अपने पिछलग्गू देशों के विकास पर भी खर्च किए ताकि वे सोवियत नियंत्रण में बने रहें। इससे सोवियत संघ पर गहरा आर्थिक दबाव बना और सोवियत व्यवस्था इसका सामना नहीं कर सकी।
(3) पश्चिमी देशों की तुलना पर जनता निराश (Public become disappointed
after comparing with Western Countries)-इसी के साथ एक और बात हुई। पश्चिमी
मुल्कों की तरक्की के बारे में सोवियत संघ के आम नागरिकों की जानकारी बढ़ी। वे अपनी
राजव्यवस्था और पश्चिमी देशों की राजव्यवस्था के बीच मौजूद अंतर भांप सकते थे। सालों से
इन लोगों को बताया जा रहा था कि सोवियत राजव्यवस्था पश्चिम के पूँजीवाद से बेहतर है लेकिन सच्चाई यह थी कि सोवियत संघ पिछड़ चुका था और अपने पिछड़ेपन की पहचान से लोगों को राजनीतिक-मनोवैज्ञानिक रूप से धक्का लगा।
(4) कम्युनिस्ट पार्टी का एकाधिकार (Monopoly of the Communist Party)-
सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से गतिरुद्ध हो चुका था। सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के प्रति जवाबदेह नहीं रह गई थी। गतिरुद्ध प्रशासन, भारी भ्रष्टाचार और अपनी गलतियों को सुधारने में व्यवस्था की अक्षमता, शासन में ज्यादा खुलापन लाने के प्रति अनिच्छा और देश की विशालता के बावजूद सत्ता का केंद्रीकृत होना-इन सारी बातों के कारण आम जनता अलग-थलग पड़ गई। इससे भी बुरी बात यह थी कि ‘पार्टी’ के अधिकारियों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे। लोग अपने को राजव्यवस्था और शासकों से जोड़कर नहीं देख पा रहे थे और सरकार का जनाधार खिसकता चला गया।
(5) गोर्बाचेव के सुधार (Reforms of Gorbachev)-मिखाईल गोर्बाचेव के सुधारों में
इन दोनों समस्याओं के समाधान का वायदा था। गोर्बाचेव ने अर्थव्यवस्था को सुधारने, पश्चिम
की बराबरी पर लाने और प्रशासनिक ढाँचे में ढील देने का वायदा किया। गोर्बाचेव तो रोग का
ठीक-ठीक निदान कर रहे थे और सुधारों को लागू करने का उनका प्रयास भी ठीक था-ऐसे में
आपको आश्चर्य हो सकता है कि फिर सोवियत संघ टूटा क्यों? इस बिंदु पर आकर उत्तर ज्यादा
विवादित हो जाते हैं। इस स्थिति को हमें आगे के इतिहासकार शायद ज्यादा बेहतर ढंग से समझा पाएँ। सबसे सटीक उत्तर तो यह जान पड़ता है कि जब गोर्बाचेव ने सुधारों को लागू किया और व्यवस्था में ढील दी तो लोगों की आकांक्षाओं-अपेक्षाओं का ऐसा ज्वार उमड़ा जिसका अनुमान शायद ही कोई लगा सकता था। इस पर काबू पाना एक अर्थ में असंभव हो गया। सोवियत संघ
में जनता के एक तबके की सोच यह थी कि गोर्बाचेव को ज्यादा तेज गति से कदम उठाने चाहिए। ये लोग उनकी कार्यपद्धति से धीरज खो बैठे और निराश हो गए। इन लोगों ने जैसा सोचा था वैसा फायदा उन्हें नहीं हुआ या संभव है उन्हें बहुत धीमी गति से फायदा हो रहा हो। जनता के एक हिस्से खासकर, कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य और वे लोग जो सोवियत व्यवस्था से फायदे में थे, के विचार ठीक इसके विपरीत थे। इनका कहना था कि हमारी सत्ता और विशेषाधिकार अब कम हो रहे हैं और गोर्बाचेव बहुत जल्दबाजी दिखा रहे इस खींचतान में गोर्बाचेव का समर्थन हर तरफ से जाता रहा और जनमत आपस में बँट गया। जो लोग उनके साथ थे उनका भी मोहभंग हुआ। ऐसे लोगों ने सोचा कि गोर्बाचेव खुद अपनी ही नीतियों का ठीक तरह से बचाव नहीं कर पा रहे हैं।
(6) राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार (The Rise of Nationalism and
the desire for Sovereignty)-इन सारी बातों के बावजूद संभवत: सोवियत संघ का विघटन न होता। लेकिन, एक घटना ने अधिकांश पर्यवेक्षकों को चौंकाया और सोवियत व्यवस्था के अंदर
लोग भी इससे दंग रह गए। वह घटना थी राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता की इच्छा के उभार
की। रूस और बाल्टिक गणराज्य (एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया), यूक्रेन तथा जार्जिया
जैसे सोवियत संघ के विभिन्न का उभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और सर्वाधिक
तत्कालिक कारण सिद्ध हुआ। इस मसले पर भी अलग-अलग राय मिलती है।
(7) टिप्पणी एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण (Comment and critical outlook)-
(क) एक विचार तो यह है कि राष्ट्रीयता की भावना और तड़प सोवियत संघ के समूचे इतिहास
में कहीं-न-कहीं जारी थी और चाहे सुधार होते या न होते, सोवियत संघ में अंदरूनी संघर्ष होना
ही था। खैर! यह तो इतिहास की अनिवार्यता के बारे में अनुमान लगाना हुआ लेकिन सोवियत
संघ के आकार, विविधता तथा इसकी बढ़ती हुई आंतरिक समस्याओं को देखते हुए ऐसा सोचना
असंगत भी नहीं है।
(ख) कुछ अन्य लोग सोचते हैं कि गोर्बाचेव के सुधारों ने राष्ट्रवादियों के असंतोष को इस
सीमा तक भड़काया कि उस पर शासकों का नियंत्रण नहीं रहा।
(ग) विडंबना यह है कि शीतयुद्ध के दौरान (1945-90 ई.) बहुत-से लोग सोचते थे कि
सोवियत संघ के मध्य-एशियाई गणराज्यों में राष्ट्रवादी आकांक्षाओं का उभार सबसे दमदार होगा
क्योंकि ये गणराज्य रूस से धार्मिक और नस्ली लिहाज से अलग और आर्थिक रूप से पिछड़े
हुए थे।
(घ) सोवियत संघ के प्रति राष्ट्रवादी असंतोष यूरोपीय और अपेक्षाकृत समृद्ध गणराज्यों-
रूस, यूक्रेन, जार्जिया और बाल्टिक क्षेत्र में सबसे प्रबल नजर आया। यहाँ के आम लोग अपने
को मध्य एशियाई गणराज्यों के लोगों से अलग-थलग महसूस कर रहे थे। इनका आपस में भी
अलगाव था। इन गणराज्यों के लोगों में यह भाव घर कर गया कि ज्यादा पिछड़े इलाकों को
सोवियत संघ में शामिल रखने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।
4. सोवियत संघ के विघटन के परिणामों एवं प्रभावों पर विचार-विमर्श कीजिए।
Discuss impacts and results of the disintigration of Soviet Union.
                                                                                   [B.M.2009A]
उत्तर-सोवियत संघ के विघटन के प्रभाव एवं परिणाम (impacts and
Consequences of disintigration of Soviet Union)-सोवियत संघ की ‘दूसरी दुनिया
और पूर्वी यूरोप के समाजवादी व्यवस्था के पतन के परिणाम विश्व राजनीति के लिहाज से गंभीर
रहे। इससे मोटे तौर पर तीन प्रकार के दूरगामी परिवर्तन हुए। हर परिवर्तन के बहुत सारे प्रभाव
हुए। उन सभी प्रभावों को यहाँ सूचीबद्ध करना उचित नहीं होगा।
(1) अव्वल तो ‘दूसरी दुनिया के पतन का एक परिणाम शीतयुद्ध के दौर के संघर्ष की
समाप्ति में हुआ। समाजवादी प्रणाली पूंजीवादी प्रणाली को पछाड़ पाएगी या नहीं यह
विचारधारात्मक विवाद अब कोई मुद्दा नहीं रहा। शीतयुद्ध के इस विवाद ने दोनों गुटों की सेनाओं
को उलझाया था, हथियारों की तेज होड़ शुरू की थी, परमाणु हथियारों के संचय को बढ़ावा दिया था तथा विश्व को सैन्य गुटों में बांटा था। शीतयुद्ध के समाप्त होने से हथियारों की होड़ भी समाप्त हो गई और एक नई शांति की संभावना का जन्म हुआ।
(2) दूसरा यह कि विश्व राजनीति में शक्ति-संबंध बदल गए और इस कारण विचारों और
संस्थाओं के आपेक्षित प्रभाव में बदलाव आया। शीतयुद्ध के अंत के समय केवल दो संभावनाएँ
थीं—या तो बची हुई महाशक्ति का दबदबा रहेगा और एकध्रुवीय विश्व बनेगा या फिर कई देश
अथवा देशों के अलग-अलग समूह अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण मोहरे बनकर उभरेंगे और
इस तरह बहुध्रुवीय विश्व बनेगा जहाँ किसी एक देश का बोलबाला नहीं होगा। हुआ यह कि
अमेरिका अकेली महाशक्ति बन बैठा। अमेरिका की ताकत और प्रतिष्ठा की शह पाने से अब
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्था है। विश्व बैंक और
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएँ विभिन्न देशों की ताकतवर सलाहकार बन गई क्योंकि इन देशों को पूँजीवाद की ओर कदम बढ़ाने के लिए इन संस्थानों ने कर्ज दिया है। राजनीतिक रूप से
उदारवादी लोकतंत्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने की सर्वश्रेष्ठ धारणा के रूप में उभरा है।
(3) तीसरी बात यह है कि सोवियत खेमे के अंत का एक अर्थ था नये देशों का उदय। इन
सभी देशों की स्वतंत्र पहचान और पसंद है। इनमें कुछ देश, खासकर बाल्टिक और पूर्वी यूरोप
के देश यूरोपीय संघ’ से जुड़ना और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का हिस्सा बनना
चाहते थे। मध्य एशियाई देश अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाना चाहते थे। इन
देशों ने रूस के साथ अपने मजबूत रिश्ते को जारी रखा और पश्चिमी देशों, अमेरिका, चीन तथा
अन्य देशों के साथ संबंध बनाए। इस तरह अंतर्राष्ट्रीय फलक पर कई नए खिलाड़ी सामने आये।
हरेक के हित, पहचान और आर्थिक-राजनीतिक समस्याएँ अलग-अलग थीं। आगे इन्ही मुद्दों पर
चर्चा की जाएगी।
5. शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे
वेहतर तरीका था?
What was Shock Therapy? Was this the best way to make a truisition
from Communism to Capitalism?                    [NCERT T.B.Q.9]
उत्तर-(I) शॉक थेरेपी का अर्थ (Meaning of Shock Therapy)-साम्यवाद के
पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक
पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और
पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक
और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को ‘शॉक थेरेपी’ (आघात पहुँचाकर उपचार
करना) कहा गया। भूतपूर्व ‘दूसरी दुनिया के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनता
अलग-अलग रही लेकिन इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे।
(II) साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण एवं शॉक थेरेपी (A transition from
Communisnt to Capitalism and Shock Therapy)-(1) हर देश को पूँजीवादी
अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना था। इसका मतलब था सोवियत संघ के दौर की हर संरचना से पूरी तरह निजात पाना। ‘शॉक थेरेपी’ की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक ‘फार्म’ को निजी ‘फार्म’ में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई। इस संक्रमण में राज्य नियंत्रित समाजवाद या पूँजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था या ‘तीसरे रुख’ को मंजूर नहीं किया गया।
(2) ‘शॉक थेरेपी’ से इन अर्थव्यवस्थाओं के बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति रुझान बुनियादी तौर
पर बदल गए। अब माना जाने लगा कि ज्यादा-से-ज्यादा व्यापार करके ही विकास किया जा सकता है। इस कारण ‘मुक्त व्यापार’ को पूर्ण रूप से अपनाना जरूरी माना गया। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई।
(3) अंतत: इस संक्रमण में सोवियत खेमे के देशों में मौजूद व्यापारिक गठबंधनों को समाप्त
कर दिया गया। खेमे के प्रत्येक देश को एक-दूसरे से जोड़ने की जगह सीधे पश्चिमी मुल्कों से
जोड़ा गया। इस तरह धीरे-धीरे इन देशों को पश्चिमी अर्थतंत्र में समाहित किया गया। पश्चिमी
दुनिया के पूँजीवादी देश अब नेता की भूमिका निभाते हुए अपनी विभिन्न एजेंसियों और संगठनों
के सहारे इस खेमे के देशों के विकास का मार्गदर्शन और नियंत्रण करेंगे।
6. ‘शॉक थेरेपी’ के परिणामों का वर्णन कीजिए।
Discuss consequences of Shock Therapy.
उत्तर-‘शॉक थेरेपी’ के परिणाम (Consequences of Shock Therapy)-(1)1990
में अपनायी गई ‘शॉक थेरेपी’ जनता को उपभोग के उस ‘आनंदलोक’ तक नहीं ले गई जिसका
उसने वादा किया था। अमूमन ‘शॉक थेरेपी’ से पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई और
इस क्षेत्र की जनता को बर्बादी की मार झेलनी पड़ी।
(2) रूस में, पूरा का पूरा राज्य-नियंत्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा उठा। लगभग 90 प्रतिशत
उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया। आर्थिक ढाँचे का यह पुनर्निर्माण चूंँकि सरकार द्वारा निर्देशित औद्योगिक नीति के बजाय बाजार की ताकतें कर रही थी, इसलिए यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ। इसे ‘इतिहास की सबसे बड़ी गराज-सेल’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि महत्त्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम-से-कम करके ऑकी गई और उन्हें औने-पौने दामों में बेच दिया गया। हालाँकि इस महा-बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों ने अपने अधिकार-पत्र कालाबाजारियों के हाथों बेच दिये क्योंकि उन्हें धन की जरूरत थी।
(3) रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई। मुद्रास्फीति इतनी ज्यादा
बढ़ी कि लोगों की जमापूँजी जाती रही।
(4) सामूहिक खेती की प्रणाली समाप्त हो चुकी थी और लोगों को अब खाद्यान्न की सुरक्षा
मौजूद नहीं रही। रूस ने खाद्यान्न का आयात करना शुरू किया। सन् 1999 में वास्तविक ‘सकल
घरेलू उत्पाद 1989 की तुलना में कहीं नीचे था। पुराना व्यापारिक ढाँचा तो टूट चुका था लेकिन
इसकी जगह कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पायी थी।
(5) समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था को क्रम से नष्ट किया गया। सरकारी रियायतों के
खात्मे के कारण ज्यादातर लोग गरीबी में पड़ गए। मध्य वर्ग समाज के हाशिए पर आ गया और
अकादमिक-बौद्धिक कामों से जुड़े लोग या तो बिखर गए या बाहर चले गए। कई देशों में एक
‘माफिया वर्ग’ (जरायमपेशा लोग) उभरा और उसने अधिकतर आर्थिक गतिविधियों को अपने
नियंत्रण में ले लिया। निजीकरण ने नई विषमताओं को जन्म दिया। पूर्व सोवियत संघ में शामिल
रहे गणराज्यों और खासकर रूस में अमीर और गरीब लोगों के बीच तीखा विभाजन हो गया।
पहले की व्यवस्था के विपरीत, अब धनी और निर्धन लोगों के बीच बहुत गहरी आर्थिक
असमानता थी।
(6) आर्थिक बदलाव को बड़ी प्राथमिकता दी गई और उस पर पर्याप्त ध्यान भी दिया गया
लेकिन लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्माण का कार्य ऐसी प्राथमिकता के साथ नहीं हो सका। इन सभी देशों के संविधान हड़बड़ी में तैयार किए गए। रूस सहित अधिकांश देशों में राष्ट्रपति को
कार्यपालिका प्रमुख बनाया गया और उसके हाथ में लगभग हरसंभव शक्ति थमा दी गई। फलस्वरूप संसद अपेक्षाकृत कमजोर संस्था रह गई।
(7) मध्य एशिया के देशों में राष्ट्रपति को बहुत अधिक शक्तियां प्राप्त थीं और इनमें कुछ
सत्तावादी हो गए। मिसाल के तौर पर तुर्कमेनिस्तान और उज्वेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने पहले 10
वर्षों के लिए अपने को इस पद पर बहाल किया और इसके बाद समय-सीमा को अगले 10 सालों के लिए बढ़ा दिया। इन राष्ट्रपतियों ने अपने फैसलों से असहमति या विरोध की अनुमति नहीं दी। अधिकतर देशों में न्यायिक संस्कृति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को स्थापित करने का काम करना अभी भी बाकी है। रूस सहित अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था ने सन् 2000 में यानी अपनी आजादी के 10 साल बाद खड़ा होना शुरू किया। इन अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन का कारण था खनिज-तेल, प्राकृतिक गैस और धातु जैसे प्राकृतिक संसाधनों का निर्यात।
(8) रूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्वेकिस्तान और अजरबैजान तेल और गैस के
बड़े उत्पादक देश हैं। बाकी देशों को अपने क्षेत्र से तेल की पाइप-लाइन गुजरने के कारण फायदा
हुआ। इस एवज में इन्हें किराया मिलता है। एक हद तक विनिर्माण का काम भी फिर शुरू हुआ।
7. पूर्व सोवियत संघ में हुए संघर्ष और तनाव पर विचार-विमर्श कीजिए।
Discuss tensions and conflicts which took place in the former Soviet
Republics.
उत्तर-(1) पूर्व सोवियत गणराज्यों में संघर्ष और तनाव (Tensions and Conflicts in
Former Soviet Republics)-पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका
वाले क्षेत्र हैं। अनेक गणराज्यों ने गृहयुद्ध और बगावत को झेला है। इसके साथ-साथ इन देशों में
बाहरी ताकतों की दखल भी बढ़ी है। इससे स्थिति और भी जटिल हुई है।
(2) चेचन्या और दागिस्तान में आन्दोलन (Movements in Chechnaya and
Dagistan)-रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आंदोलन
चले। मास्को ने चेचन विद्रोहियों से निपटने के जो तरीके अपनाये और जिस गैर-जिम्मेदाराना तरीके से सैन्य बमबारी की उसमें मानवधिकार का व्यापक उल्लंघन हुआ लेकिन इससे आजादी की आवाज दबायी नहीं जा सकी।
(3) तजाकिस्तान में दीर्घ गृहयुद्ध (Long Civil War in Tajakistan) ― मध्य एशिया
में, तजाकिस्तान दस वर्षों यानी 2001 तक गृहयुद्ध की चपेट में रहा। इस पूरे क्षेत्र में कई सांप्रदायिक संघर्ष चल रहे हैं। अजरबैजान का एक प्रांत नगरनों कराबाख है। यहाँ के कुछ स्थानीय अर्मेनियाई अलग होकर अर्मेनिया से मिलना चाहते हैं। जार्जिया में दो प्रांत स्वतंत्रता चाहते हैं और गृहयुद्ध लड़ रहे हैं। यूक्रेन, किरगिझस्तान तथा जार्जिया में मौजूदा शासन को उखाड़ फेंकने के लिए आंदोलन चल रहे हैं। कई देश और प्रांत नदी-जल के सवाल पर आपस में भिड़े हुए हैं। इन सारी बातों की वजह से अस्थिरता का माहौल है और आम नागरिक का जीवन दूभर है।
(4) विशाल प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति तथा विदेशी शक्तियों की रुचि बढ़ना
(Vast Natural Resources and interest offoreign powers increased) – मध्य एशियाई  गणराज्यों में हाइड्रोकार्बनिक (पेट्रोलियम) संसाधनों का विशाल भंडार है। इससे इन गणराज्यों को आर्थिक लाभ हुआ है लेकिन इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन चला है। यह क्षेत्र रूस, चीन और अफगानिस्तान से सटा है तथा पश्चिम एशिया से नजदीक है। 11 सितंबर, 2001 की घटना के बाद अमेरिका इस क्षेत्र में सैनिक ठिकाना बनाना चाहता था। उसने किराए पर ठिकाने हासिल करने के लिए मध्य एशिया के सभी राज्यों को भुगतान किया और अफगानिस्तान तथा इराक में युद्ध के दौरान इन क्षेत्रों से अपने विमानों को उड़ाने की अनुमति ली। रूस इन राज्यों को अपना निकटवर्ती ‘विदेश’ मानता है और उसका मानना है कि इन राज्यों को रूस के प्रभाव में रहना चाहिए। खनिज तेल जैसे संसाधन की मौजूदगी के कारण चीन के हित भी इस क्षेत्र से जुड़े हैं और चीनियों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में आकर व्यापार करना शुरू कर दिया है। पूर्वी यूरोप में चेकोस्लोवाकिया शांतिपूर्वक दो भागों में बँट गया। चेक तथा स्लोवाक नाम के दो देश बने। लेकिन सबसे गहन संघर्ष बाल्कन क्षेत्र के गणराज्य यूगोस्लाविया में हुआ। सन् 1991 के बाद यूगोस्लाविया कई प्रांतों में टूट गया और इसमें शामिल बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। यहाँ ‘नाटो’ को हस्तक्षेप करना पड़ा, यूगोस्लाविया पर बमबारी हुई और जातीय संघर्ष ने गृहयुद्ध का रूप लिया।
8. भारत और सोवियत संघ के आर्थिक, राजनैतिक, सैन्य तथा सांस्कृतिक सम्बन्धों
पर एक निबन्ध लिखें।
Write an essay on India’s economic political, military and Cultural
Relations with Soviet Union.
                                                  अथवा,
भारत रूस तथा पूर्व साम्यवादी गणराज्यों के सम्बन्धों का विवरण दीजिए।
Describe India’s relation with Russia and former Communist Republics.
उत्तर-प्रस्तावना (Introduction)-शीतयुद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के
संबंध बहुत गहरे थे। इससे आलोचकों को यह कहने का अवसर भी मिला कि भारत सोवियत
खेमे (गुट) का हिस्सा था। इस दौरान भारत और सोवियत संघ के संबंध बहुआयामी थे।
पहलू (Aspects)-(1) आर्थिक (Economic)-सोवियत संघ ने भारत के सार्वजनिक
क्षेत्र की कंपनियों की ऐसे वक्त में मदद की जब ऐसी मदद पाना मुश्किल था। सोवियत संघ ने
भिलाई, बोकारो और विशाखापट्टनम के इस्पात कारखानों तथा भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स जैसे
मशीनरी संयंत्रों के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता दी। भारत में जब विदेशी मुद्रा की कमी
थी तब सोवियत संघ ने रुपये को माध्यम बनाकर भारत के साथ व्यापार किया।
(2) राजनीतिक (Political)-सोवियत संघ ने कश्मीर मामले पर संयुक्त राष्ट्रसंघ में
भारत के रुख को समर्थन दिया। सोवियत संघ ने भारत के संघर्ष के गाढ़े दिनों खासकर सन् 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान मदद की। भारत ने भी सोवियत संघ की विदेश नीति का अप्रत्यक्ष, लेकिन महत्त्वपूर्ण तरीके से समर्थन किया।
(3) सैन्य (Military)-भारत को सोवियत संघ ने ऐसे वक्त में सैनिक साजो-सामान दिए
जब शायद ही कोई अन्य देश अपनी सैन्य टेक्नोलॉजी भारत को देने के लिए तैयार था। सोवियत
संघ ने भारत के साथ कई ऐसे समझौते किए जिससे भारत संयुक्त रूप से सैन्य उपकरण तैयार
कर सका।
(4) सांस्कृतिक (Cultural) –हिंदी फिल्म और भारतीय संस्कृति सोवियत संघ में
लोकप्रिय थे। बड़ी संख्या में भारतीय लेखक और कलाकारों ने सोवियत संघ की यात्रा की।
(ब) भारत-रूस व पूर्ण-साम्यवादी गणराज्य के सम्बन्धों का संक्षिप्त इतिहास (A
brief of history of India’s relations with Russia and formal Communist
Republics)-(1) भारत ने साम्यवादी रह चुके सभी देशों के साथ अच्छे संबंध कायम किए हैं।
लेकिन भारत के संबंध रूस के साथ सबसे ज्यादा गहरे हैं। भारत की विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण
पहलू भारत का रूस के साथ संबंध है या रूस संबंधों का इतिहास आपसी विश्वास और साझे
हितों का इतिहास है। भारत-रूस के आपसी संबंध इन देशों की जनता की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं। भारतीय हिन्दी फिल्मों के नायकों में राजकपूर से लेकर अमिताभ बच्चन तक रूस और पूर्व सोवियत संघ के बाकी गणराज्यों में घर-घर जाने जाते हैं। आप इस क्षेत्र में हिंदी फिल्मी गीत
बजते सुन सकते है और भारत यहाँ के जनमानस का एक अंग है।
(2) रूस और भारत दोनों का सपना बहुधुवीय विश्व का है। बहुध्रुवीय विश्व से इन दोनों
देशों का आशय यह है कि अंतर्राष्ट्रीय फलक पर कई शक्तियाँ मौजूद हों, सुरक्षा की सामूहिक
जिम्मेदारी हो (यानी किसी भी देश पर हमला हो तो सभी देश उसे अपने लिए खतरा माने और
साथ मिलकर कार्यवाही करे), क्षेत्रीयताओं को ज्यादा जगह मिलें, अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों का समाधान
बातचीत के द्वारा हो, हर देश की स्वतंत्र विदेश नीति हो और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं द्वारा
फैसले किए जाएँ तथा इन संस्थाओं को मजबूत, लोकतांत्रिक और शक्तिसंपन्न बनाया जाए।
2001 के भारत-रूस सामरिक समझौते के अंग के रूप में भारत और रूस के बीच 80 द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए हैं।
(3) भारत को रूस के साथ अपने संबंधों के कारण कश्मीर, ऊर्जा-आपूर्ति, अंतर्राष्ट्रीय
आतंकवाद से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान, पश्चिम एशिया में पहुंच बनाने तथा चीन के
साथ अपने संबंधों में संतुलन लाने जैसे मसलों में फायदे हुए हैं।
(4) रूस को भारत के संबंध से सबसे बड़ा फायदा यह है कि भारत रूस के लिए हथियारों
का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार देश है।
(5) भारतीय सेना को अधिकांश सैनिक साजो-सामान रूस से प्राप्त होते हैं। चूंकि भारत तेल
के आयातक देशों में से एक है इसलिए भी भारत रूस के लिए महत्त्वपूर्ण है। उसने तेल के संकट
की घड़ी में हमेशा भारत की मदद की है। भारत रूस से अपने ऊर्जा-आयात को भी बढ़ाने की
कोशिश कर रहा है।
(6) ऐसी कोशिश कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ भी चल रही है। इन गणराज्यों
के साथ सहयोग के अंतर्गत तेल वाले इलाकों में साझेदारी और निवेश करना भी शामिल है। रूस
भारत की परमाण्विक योजना के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। रूस ने भारत के अंतरिक्ष उद्योग में भी
जरूरत के वक्त क्रायोजेनिक रॉकेट देकर मदद की है। भारत और रूस विभिन्न वैज्ञानिक
परियोजनाओं में साझीदार है।
                                                     ★★★

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