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Bihar Board Class 11 Biology notes | पुष्पी पादपों की अकारिकी

Bihar Board Class 11 Biology notes | पुष्पी पादपों की अकारिकी

इकाई-2 : पादप एवं प्राणियों में संरचनात्मक संगठन
      (UNIT 2 : STRUCTURAL ORGANIATION IN PLANTS AND ANINMALS)
                        (MORPHOLOGY OF FLOWERING PLANTS)
                                                  अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. पुष्पक्रम को धारण करनेवाले दंड को क्या कहा जाता है?
उत्तर-पुष्पदंड (Peduncle)।
2. प्रांकुर (Plumule) को ढंके रहने वाले भाग का नाम बतायें।
उत्तर-Poleptile (प्रांकुर चोल)।
3. Polygamous पादपों के दो उदाहरण दें।
उत्तर-आम एवं पॉलीगोनम।
4. भ्रूणपोषधारी (Endospermic) में बीज प्रायः एकबीजपत्री या द्विबीजपत्री होते हैं?
उत्तर-एकबीजपत्रधारी (Monocotyledonous)।
उत्तर-Brassicaccae अथवा सरसों कुल।
6. वह पादप जिनपर द्विलिंगी व एकलिंगी या अलिंगी पुष्प पाये जाते हैं, क्या
कहलाते हैं?
उत्तर-Polygamous.
7. शकरकंद (Sweet Potato) में भोजन संग्रह करनेवाली जड़ को क्या कहते हैं?
उत्तर-गुलिकीय जड़ें (Tubercular root)।
8. सरसों, गुड़हल एवं सूरजमुखी में किस प्रकार का पर्ण विन्यास (Phyllotaxy) होता
उत्तर-एकांतरी (Alternate type)।
9. जब किसी पुष्प के स्त्रीकेसर (Pistil) में सभी अण्डप (Carpels) जुड़े हों तो ऐसे
स्त्रीकेसर को क्या कहते हैं?
उत्तर-युक्तांडपी (Syncarpus)।
10. अंडाशय में बीजांडों के सजावट को क्या कहा जाता है?
उत्तर-बीजांडान्यास (Placentation)।
11. द्विक नारियल (DoubleCoconut) के फलों या बीजों का प्रकीर्णन किसके माध्यम
से होता है?
उत्तर-जल द्वारा।
                                        लघु उत्तरीय प्रश्न
1. मूल के रूपांतरण से आप क्या समझते हैं? निम्नलिखित में किस प्रकार का
रूपांतरण पाया जाता है?
(क) बरगद, (ख) शलजम, (ग) मैंग्रोव वृक्षा           [N.C.E.R.T. (Q.1)]
उत्तर-कुछ पौधों की मूल (जड़) पानी एवं खनिजों के अवशोषण तथा संवहन के
अतिरिक्त अन्य कार्यों जैसे भोजन संचय करने के लिए, सहारे के लिए, श्वसन के लिए
अपने आपको रूपांतरित कर लेती हैं, इसे ही मूल का रूपांतरण कहा जाता है।
निम्नलिखित पौधों के मूल रूपांतरण के कारण इस प्रकार हैं।
(क) बरगद-सहारा देने के लिए, ऐसे मूल को प्रोप मूल कहते हैं।
(ख) शलजम-भोजन संचय के लिए मूसला जड़ों का रूपांतरण।
(ग) मैंग्रोव वृक्ष-श्वसन क्रिया के लिए अपस्थानिक जड़ों में रूपांतरण।
2. बाह्य लक्षणों के आधार पर निम्नलिखित कथनों की पुष्टि करें।
(i) पौधे के सभी भूमिगत भाग सदैव मूल नहीं होते।
(ii) फूल एक रूपांतरित प्ररोह है।                    [N.C.ER.T. (Q.2)]
उत्तर-(i) पौधे के सभी भूमिगत भाग सदैव मूल नहीं होते इसे हम आलू के उदाहरण
द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं। आलू जमीन के नीचे पाया जाता है, फिर भी वह निम्न लक्षणों के
आधार पर तना माना जाता है-(a) इसपर शल्क पत्र (Scale leaves) पाया जाता है।
(b) इसपर छोटी-छोटी कलियाँ पाई जाती हैं, जिसे आँख कहा जाता है। (c) इनमें गाँठे
(Nodes) पायी जाती हैं।
(ii) फूल एक रूपांतरित प्ररोह है-इसके बारे में सर्वप्रथम 1760 ई. में Goethe ने
बताया। इसे हम निम्न आधार पर कह सकते है-फूल में प्ररोह के समान Internodes
काफी सघन एवं सेपल, पेटल, स्टेमेन एवं कारपेल के रूप में विभक्त होते हैं।
3. एक पिच्छाकार संयुक्त पत्ती हस्ताकार संयुक्त पत्ती से किस प्रकार भिन्न है?
                                                                            [N.C.E.R..(Q.3)]]
उत्तर-पिच्छाकार संयुक्त पत्ती (Finnately Compound Leaf)-वैसी पत्तियाँ
जिसमें बहुत से पत्रक (Leaflets) एक ही अक्ष (Axis) जो मध्यशिरा के रूप में होती हैं, पर
स्थित होते हैं, पिच्छाकार संयुक्त पत्ती कहलाती है जैसे-नीम।
हस्ताकार संयुक्त पत्ती (Palmatelycompound Leaf)-वैसी पत्तियाँ जिसमें पत्रक
(Leaflets) एक ही बिन्दु अर्थात् पर्णवन्त की चोटी से जुड़े रहते हैं, हस्ताकार संयुक्त पत्ती
कहलाती हैं जैसे-सिल्क कॉटन वृक्ष।
4. विभिन्न प्रकार के पर्ण विन्यास का उदाहरण सहित वर्णन करो।।N.C.E.R.T. (Q.4)]
उत्तर-तने अथवा शाखा पर पत्तियों के विन्यास्त रहने के क्रम को पर्ण विन्यास
(Phyllotaxy) कहते हैं, यह तीन प्रकार का होता है-
(i) एकांतर पर्ण विन्यास (Alternate Phyllotaxy)-इसमें एक अकेली पत्ती प्रत्येक
गांठ पर एकांतर रूप में लगी रहती है। जैसे-गुड़हल, सरसों एवं सूर्यमुखी इत्यादि के पर्ण
विन्यास।
(ii) सम्मुख पर्णविन्यास (oppositePhyllotaxy)- इसमें प्रत्येक गांठ पर एक जोड़ी
पत्ती निकलती है और एक दूसरे के सम्मुख होती है। जैसे-केलोट्रॉपिस (आकार) और
अमरुद का पर्णविन्यास।
(iii) चक्करदार पर्णविन्यास (Whorled Phyllotaxy)-यदि एक ही गाँठ पर दो
से अधिक पत्तियाँ निकलती हैं और वे उसके चारों ओर एक चक्कर-सा बनाती हैं तो उसे
चक्करदार पर्णविन्यास कहते हैं। जैसे-एल्सटोनिया (डेविल ट्री) का पर्णविन्यास।
5. निम्नलिखित की परिभाषा बतावें- (i) पुष्पदल विन्यास, (ii) बीजांडन्यास,
(iii) त्रिज्यासममित, (iv) एकव्यास सममित, (v) उर्ध्ववर्ती, (vi) परिजायांगी पुष्प,
(vii) दललग्न पुंकेसर।                                          [N.C.E.R.T. (Q.5)]
उत्तर-(i) पुष्पदल विन्यास (Aestivation)-पुष्पकली (Flower bruds) में उसी
चक्र की अन्य इकाइयों के सापेक्ष कैलिक्स या कोरोला के लगे रहने के क्रम को पुष्पदल
विन्यास कहते हैं।
(ii) बीजांडान्यास (Placentation)-अंडाशय में बीजांड के लगे रहने के क्रम को
बीजांडन्यास कहते हैं।
(ii) त्रिज्य सममित (Actinomorphic)-जब किसी फूल को दो बराबर भागों में
विभक्त किया जा सके तब उसे त्रिज्यसममित कहते हैं। जैसे-धतूरा, मिर्च, सरसों इत्यादि।
(iv) एकव्यास सममित (Zygomorphic)-जब फूल को केवल एक विशेष उर्ध्वाधर
समतल से दो समान भागों में विभक्त किया जाता है तो उसे एकव्यास सममित कहते हैं।
जैसे-मटर, गुलमोहर, सेम इत्यादि।
(v) उर्ध्ववर्ती (Superior ovary)-जब अधोजायांगता (Hypogynous) पुष्प में
जायांग (Gynoecium) सर्वोच्च स्थान पर स्थित होता है और अन्य अंग नीचे होते हैं तो
इसे उर्ध्ववर्ती कहते हैं। जैसे-सरसों, गुड़हल, बैगन इत्यादि।
(vi) परिजायंगी पुष्प (Perigynous Flower)-जब जायांग मध्य में और अन्य भाग
पुष्पासन के किनारे पर स्थित होते हैं तथा ये लगभग समान ऊँचाई तक होते हैं तो इसे
गरिजायांगी पुष्प कहते हैं। इसमें अंडाशय आधा अधावर्ती होता है। जैसे-पल्म, गुलाल
इत्यादि।
(vii) दललग्न पुंकेसर (Epipetalous Stamen)-जब पुंकेसर पेटल से जुड़ा रहता
है तो इसे दललग्न पुंकेसर कहते हैं। जैसे-लिली में।
6. निम्नलिखित में अंतर बताएँ-
(क) असीमाक्षी तथा ससीमाक्षी पुष्पक्रम,
(ख) झकड़ा जड़ (मूल) तथा अपस्थानिक मूल,
(ग) वियुक्तांडपी तथा युक्तांडपी अंडाशय।                   [N.C.E.R.T. (Q.6)]
उत्तर-(क) असीमाक्षी तथा ससीमाक्षी पुष्पक्रम में अंतर-
(ख) झकड़ा जड़ (मूल) तथा अपस्थानिक मूल में अंतर-
(ग) वियुक्तांडपी तथा युक्तांडपी अंडाशय में अंतर-
7. निम्नलिखित के चिन्हित चित्र बनायें-
(क) चने का बीज, (ख) मक्के के बीज का अनुदैर्ध्यकाट। [N.C.E.R.T.)
उत्तर-(क) चने का बीज-
(ख) मक्के के बीज का अनुदैर्ध्यकाट-
8. ऐसे फूल का सूत्र लिखो जो त्रिज्या सममित, उभयलिंगी अघोजायांगी, 5 संयुक्त
बाह्यदली, 5 मुक्तदली, 5 मुक्त पुंकेसरी, द्वियुक्तांडपी तथा उर्ध्ववर्ती अंडाशय है।
                                                                    [N.C.ER.T. (Q.14)]
उत्तर-जब किसी फूल को दो बराबर भागों में विभक्त किया जा सके तब उसे
त्रिज्यासममित कहते हैं, जैसे-सरसों, धतूरा, मिर्च इत्यादि।
इसका पुष्पसूत्र निम्न है-
                                      दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. उचित उदाहरणों सहित तने के रूपांतरणों का वर्णन करें।   [N.C.E.R.T. (Q.8)]
उत्तर-तने सदैव आशा के अनुसार प्ररूपी नहीं होते, वे विभिन्न कार्यों को सम्पन्न
करने के लिए अपने आपको विभिन्न रूपों में रूपांतरित कर लेते हैं-
(i) भोजन संचय के लिए-आलू, अदरक, हल्दी, जमीकन्द, अरबी के भूमिगत तने
भोजन संचय के लिए रूपांतरित हो जाते हैं। वृद्धि के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों के समय
ये चिरकालिक अंग की तरह कार्य करते हैं।
(ii) Support के लिए-घीया, खीरा, तरबूज, अंगूर इत्यादि में तने के प्रलान, जो
कक्षीय कली से निकलते हैं, पतले तथा कुंडलित होते हैं और सोधे को ऊपर चढ़ने में सहायता
करते हैं।
(iii) सुरक्षा (Protection) के लिए-तने की कक्षीय कलियाँ काष्ठीय, सीपे तथा
नुकीले काँटों में रूपांतरित हो जाते हैं। ये पौधों को पशुओं से बचाते हैं, जैसे-सिट्स
बोगेनविलिया इत्यादि।
(iv) प्रकाश संश्लेएण के लिए-शुष्क क्षेत्रों के पौधे चपटे तने (ओपशिया, कैक्टस)
अथवा गूदेदार सिलिंडराकार (यूफॉरबिया) रचनाओं में रूपांतरित हो जाते हैं। इनके तनों में
क्लोरोफिल होता है और ये प्रकाश संश्लेषण करते हैं।
(v) भूस्तारी (Spread Underground)-कुछ पौधों के भूमिगत तने जैसे घास तथा
स्ट्राबेरी आदि नई कर्म स्थिति (निश) में फैल जाते हैं और जब पुराने पौधे मर जाते हैं तो
नये पौधे बनाते हैं।
(vi) कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation)-पुदीना तथा चमेली जैसे पौधों
में प्रमुख अक्ष के आधार से एक पार्श्व शाखा निकलती है और कुछ समय तक वायवीय
वृद्धि करने के बाद जमीन को छूती है। पिस्टिया तथा आइकोरनिया जैसे कलीय पादपों में
एक पार्श्वीय शाखा निकलती है, जिसकी पोरियाँ छोटी होती है जिसके प्रत्येक गाँठ पर
पत्तियों का झुंड तथा फूल का गुच्छा तथा गुलदाउदी में पावीय शाखाएँ आधार तथा भूमिगत
प्रमुख तने से निकलती है और मिट्टी के नीचे क्षैतिज रूप से वृद्धि करती हैं और उसके बाद
बाहर निकल आती हैं और पत्तियाँ युक्त प्ररोह बनाती हैं।
2. फाबेसी तथा सोलेनेसी कुल के एक-एक पुष्प को उदाहरण के रूप में लें तथा उनका
अर्द्धतकनीकी विवरण प्रस्तुत करें। अध्ययन के पश्चात् उनके पुष्पीय चित्र भी बनाएँ।
                                                                              [N.C.ER.T. (Q.9)]
उत्तर-(i) फाबेसी कुल-
उदाहरण-मटर का पुष्प, फाबेसी कुल को पहले पैपिलिओनाइडी कहा जाता था। यह
लेग्युमिनेसी कुल का उपकुल था। यह सारे विश्व में पाया जाता है।
कायिक अभिलक्षण (Vegetative characters)-वृक्ष, झाड़ी, शाक, मूलग्रंथियों
सहित मूल।
तना-सीधा अथवा प्रतान।
पत्तियाँ-सरल, अथवा संयुक्त पिच्छाकार, एकांतर, पर्णाधार तल्पयुक्त, अनुपर्णी
जालिका शिराविन्यास।
पुष्पी अभिलक्षण (Floral characters)-
पुष्पावन्यास-असामाक्षा।
फूल-उभयलिंगी, एकव्यास सममित।
कैलिक्स-सेपल-5, संयुक्तबाह्यदल, कोरछादी. पुष्यदल विन्यास।
कोरोला-पेटल-5, विमुक्तदली, पैपिलिओनेसियस, पश्च बड़ा तथा सबसे बाहरी,
अगले दो पार्श्वीय (पंख-विंग) तथा दो अग्र तथा सबसे भीतर वाले जुड़कर एक नोतल
बनाते हैं, पुष्पदल विन्यास-वैक्सीलरी।
पुमंग-पुंकेसर-10, द्विसंघी, परागकोश द्विकोष्ठी।
जायांग-अंडाशय एक अंडपी, उर्ध्ववर्ती, अनेकों बीजांड सहित एक कोष्ठीय, वर्तिका
एकल।
फाग-लेग्यूम।
बीज-एक से अधिक, अभ्रूणपोषीय।
पुष्पी सूत्र-
आर्थिक महत्त्व-इस कुल के सदस्यों में अनेक प्रकार की दाल (चना, अरहर, सेम,
मूंग, सोयाबीन), खाद्य तेल (सोयाबीन, मूंगफली), रंग (नील), तंतु (सनई), चारा
(संसवेनिया ट्राईफोलियम), सजावटी फूल (ल्यूपिन, स्वीअपी), औषधि (मुलैठी) के स्रोत
होते हैं।
(ii) सोलेनेसी कुल-
उदाहरण-आलू
यह एक बड़ा कुल है। प्रायः इसे आलू कुल भी कहते हैं। ये उष्ण कटिबंधीय, उपोष्ण
तथा शीतोष्ण में फैले रहते हैं।
कायिक अभिलक्षण-इसके पौधे प्राय: शाकीय, झाड़ियाँ तथा छोटे वृक्ष वाले होते हैं।
तना-शाकीय, कभी-कभी, काष्ठीय, वायवीय, सीधा, सिलिंडराकार, शाखित, ठोस
अथवा खोखला, रोमयुक्त अथवा अरोमिल, भूमिगत, जैसे-आलू (सोलैनम ट्यूबीरोसम)।
पत्तियाँ-एकांतर, सरल, कर्मी संयुक्त पिच्छाकार अनुपर्णी, जालिका विन्यास।
पुष्पी अभिलक्षण-
सोलैनम नाइग्रम पौधा (अ) पुष्पीशाखा, (ब) पुष्प, (स) पुष्प की अनुदैर्ध्य काट,
(द) पुंकेसर, (य) अंडप, (२) पुष्पी चित्र।
पुष्पक्रम-एकल कक्षीय, ससीमाक्षी जैसे-सोलैनम में।
फूल-उभयलिंगी, त्रिज्यसममित।
कैलिक्स-सेपल-5, संयुक्त दीर्घस्थायी, कोरस्पर्शी पुष्पदल विन्यास।
कोरोला-पेटल-5, संयुक्त, कोरस्पर्शी पुष्पदल विन्यास।
पुमंग-पुंकेसर-5, दललग्न।
जायांग-द्विअंडपी, युक्तांडपी, अंडाशय उर्ध्ववर्ती, द्विकोष्ठी, बीजांडासन फूला हुआ
जिसमें बहुत से बीजांड।
फल-संपुट अथवा सरस।
बीज-भ्रूणपोषी अनेक।
पुष्पसूत्र-
आर्थिक महत्त्व-इस कुल के अधिकांश सदस्य भोजन (टमाटर, बैगन, आलू), मसाले
(मिर्च), औषधि (बेलाडोना, अश्वगंधा) धूमक (तंबाकू), सजावटी पौधे (पिटुनिआ) के
स्रोत हैं।
3. पुष्पी पादपों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के बीजांडान्यासों का वर्णन करें।
                                                                     [N.C.ER.T. (Q.10)]
उत्तर-अंडाशय में बीजांड के लगे रहने के क्रम को बीजांडान्यास (Placentation)
कहते हैं। बीजांडान्यास के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित होते हैं-
(i) सीमांत (Marginal)-इसमें बीजांडासन अंडाशय के अधर सीवन के साथ-साथ
कटक बनाता है। बीजांड कटक पर स्थित होते हैं जो दो कतारें बनाती हैं, जैसे-मटर में।
बीजांडान्यास के प्रकार-(अ) सीमांत, (ब) स्तंभीय: (स) भित्तीय,
(द) मुक्तस्तंभीय, (य) आधारी।
(ii) स्तंभीय (Axial)-जब बीजांडासन अक्षीय होता है और बीजांड बहुकोष्ठकी
अंडाशय पर लगे होते हैं तो इसे स्तंभीय बीजांडान्यास कहते हैं, जैसे-गुड़हल, टमाटर
तथा नींबू।
(ii) भितीय (Parietal)-इसमें बीजांड अंडाशय की भीतरी भित्ति पर अथवा परिधीय
भाग में लगे रहते हैं। अंडाशय एक कोष्ठक होता है लेकिन आभासी पट बनने के कारण दो
कोष्ठक में विभक्त हो जाता है, जैसे-कुसीफर (सरसों) तथा आर्जेमन।
(iv) मुक्तस्तंभीय (Free Central)-जब बीजांड केंद्रीय कक्ष में होते हैं और यह
पुटीय नहीं होते तो इसे मुक्तस्तंभीय कहते हैं, जैसे-डायऐंथस तथा प्रिमरोज इत्यादि।
(v) आधारी (Basal)-इस बीजांडन्यास में बीजांडासन अंडाशय के आधार पर होता
है और इसमें केवल एक बीजांड होता है, जैसे-सूरजमुखी, गेंदा इत्यादि।
4. लिलिएसी कुल का वर्णन करें।
उत्तर-इसे प्रायः लिली कुल भी कहते हैं। यह एकबीजपत्री है और सारे विश्व में पाए
जाते हैं।
कायिक अभिलक्षण-दीर्घकालिक शाक सहित भूमिगत शल्ककंद या कॉर्म या प्रकंद।
पत्तियाँ–अधिकांश आधारी एकांतर, लंबे, अनुपर्णी समानांतर शिराविन्यास।
पुष्पी अभिलक्षण-
एलिसमसीपी (प्याज) का पौधा (अ) एक पौधा, (ब) पुष्पक्रम,
(स) एक पुष्प, (द) पुष्पी चित्र।
पुष्पक्रम-एकल या ससीमाक्ष, प्रायः पुष्पछत्र।
 फूल-त्रिज्यासममित, द्विलिंगी।
परिदलपुंज-परिदल छ: (3 +3) प्राय: नली में जुड़े हुए, कोरस्पर्शी पुष्पदल विन्यास।
पुमंग-पुंकेसर छ: (3+3)
जायांग-त्रिअंडपी, युक्तांडपी, अंडाशय उर्ध्ववर्ती, त्रिकोष्ठकी जिसमें अनेकों बीज
स्तंभीय बीजांडासन।
फल-संपुट, कभी-कभी सरस।
बीज-भ्रूणपोषीय।
पुष्पी सूत्र-
आर्थिक महत्त्व-इस कुल के अधिकांश पौधे सजावटी (ट्यूलिप, ग्लेरिओसा), औषधि
के स्रोत (एलो), सब्जियाँ (एस्पेरेगस) तथा कॉल्चिकम ऑटुमनेल देने वाले होते है।
5. पुष्प क्या है? एक प्रारूपी एंजियोस्पर्म पुष्प के भागों का वर्णन करें।
                                                                  [N.C.E.R.T. (Q.111]
उत्तर-एंजियोस्पर्म में फूल एक महत्त्वपूर्ण भाग है। यह रूपांतरित प्ररोह है जो लैंगिक
जनन के लिए होता है। प्रत्येक पुष्ष के चार भाग होते हैं-
(i) बाह्यदलपुंज (Calyx)-यह पुष्प का सबसे बाहरी भाग है और इसकी इकाई को
सेपल कहते हैं। यह प्रायः हरे रंग की होती है और कली की अवस्था में फूल की रक्षा करती
है। यह संयुक्त बाहादली अथवा पृथक बाह्यदली दो प्रकार की होती है।
(ii) दलपुंज (Corolla)-यह प्राय: चमकीली एवं रंगीन होती है। इसकी प्रत्येक इकाई
को पेटल कहते हैं। यह परागण के लिए कीटों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। यह भी
संयुक्तदली अथवा बाह्यदली होती है। इसकी रंग एवं आकृति भिन्न-भिन्न होती है। यह
नलिकाकार घंटाकार कीप के आकार का तथा चक्राकार हो सकती है।
(ii) पुमंग (Androecium)-यह पुष्प का नर प्रजनन अंग है। इसके प्रत्येक इकाई
को पुंकेसर कहते हैं।
प्रत्येक पुंकेसर के तीन भाग होते हैं-तंतु (Filament), योजी (Connective) एवं
परागकोश (Anther)। प्रत्येक परागकोष प्रायः द्विपालिक (Bilobed) होता है और प्रत्येक
पाली में दो कोष्ठक (Chambers) होते हैं, जिसमें परागकण पाया जाता है।
जब पुंकेसर पेटल से जुड़ा रहता है तो उसे दललग्न (एपीपेट्लस) कहते हैं,
जैसे-बैंगन, यदि परिदल (एपिपेटल) से जुड़ा हो तो उसे परिदल लग्न (एपीफिलस) कहते
हैं, जैसे लिली में। जब पुंकेसर एक गुच्छे में रहता है तो उसे एकसंघी (Monoandrous)
जैसे-गुडहल में, जब दो बंडल में रहता है तो उसे द्विसंघी कहते हैं, जैसे-मटर में, जब
दो से अधिक बंडल में रहता है तो उसे बहुसंघी (Polyandrous) कहते है, जैसे-सिट्रस
में।
(iv) जायांग (Gynoecium)- यह फूल का मादा. जनन अंग होता है। ये एक अथवा
अधिक अंडप से मिलकर बनते हैं।
अंडप के तीन भाग होते हैं-वर्तिका (Style), वर्तिकाग्र (Stigma) एवं अंडाशय
(ovary)। वर्तिकाग्र, वर्तिका के चोटी पर रहती है और परागकग को ग्रहण करती है। प्रत्येक
अंडाशय में एक अथवा अधिक बीजांड होते हैं जो बीजांडासन से जुड़े रहते हैं। जब एक से
अधिक अंडप (Carpel) होते हैं और सभी पृथक रहते हैं तो उसे वियुक्तांडपी (एपोकार्पस)
कहते हैं जैसे-गुलाब और कमल में। जब अंडप जुड़े होते हैं, जैसे-मटर तथा टमाटर
में, तब उन्हें युक्तांडपी (सिनकार्पस) कहते हैं।
6. पत्तियों के विभिन्न रूपांतरण पौधे की कैसे सहायता करते हैं? [N.C.E.R.T. (Q.12)]
उत्तर-पत्ती का मुख्य कार्य होता है, प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन बनाना। परंतु इसमें
अन्य कार्यों के लिए निम्न प्रकार का रूपान्तरण हो जाता है।
(i) पर्ण प्रतान (Leaf tendril)-यह पौधों को ऊपर चढ़ने में सहायता करता है.
जैसे-मटर में।
(ii) पर्णशूल (Leaf Spines) -कुछ पौधों में पत्तियाँ रूपान्तरित होकर काँटों या
शूलों का रूप धारण करती हैं, जैसे-नींबू में। खजूर और घीक्वार इत्यादि में पत्ती का ऊपरी
सिरा शूलमय होता है। ये शूल जानवरों से पौधों की रक्षा करते हैं।
(iii) पर्ण अंकुश (Leaf hooks)
-विगोनिया में शीर्षस्थ पर्णक
रूपान्तरित होकर अंकुश का रूप धारण
करता है। ये पौधों को दूसरे पौधों पर
चढ़ने में सहायता करता है।
(iv) मांसल पत्तियाँ (Fleshy
Leaves)-कुछ पौधों विशेषकर
मरुद्भिद (Xerophyte) में इसकी
पत्तियाँ रूपान्तरित होकर मांसल हो
जाती हैं जो भोजन, जल एवं पोषक
पदार्थों को संचित करती हैं।
(v) घटपर्णी (Pitcher Plant)
-इस पौधे में पर्णवृन्त तथा पत्ती का
कुछ भाग रूपान्तिरत होकर घट (घड़ा)
का रूप धारण करता है, जो कीड़े को
पकड़ने में सहायक होता है।
(vi) ब्लैडरवर्ट (Bladderwort)
-यह भी एक कीटभक्षी पौधा है
 जिसमें पत्ती की पालियाँ रूपान्तरित
होकर थैली के आकार की रचना बनाती
हैं।
7. पुष्पक्रम क्या है? विभिन्न प्रकार के पुष्पक्रम का वर्णन करें। [N.C.ER.T. (Q.13)]
उत्तर-पुष्प पौधे के जिस भाग पर उत्पन्न होते हैं, उसे पुष्पाक्ष (Floralaxis) कहते
हैं। प्राय: ऐसा देखा गया है कि पुष्प पुष्पाक्ष पर एक खास क्रम में विन्यासित रहते हैं। पुष्प
विन्यास के इस क्रम को पुष्पक्रम (Inflorescence) कहते हैं।
“Arrangement of flowers on floral axis is called inflorescence.” “
पुष्पक्रम निम्नलिखित प्रकार का होता है-
(i) असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose inflorescence)- इस प्रकार के पुष्पक्रम में
मुख्य अक्ष लंबा होता है जिसपर सवन्त पुष्प अग्राभिसारी अनुक्रम में लगे रहते हैं अर्थात्
सबसे बड़े और पुराने पुष्प नीचे की तरफ और छोटे और नये पुष्प ऊपर की तरफ उत्पन्न
होती है। इस प्रकार का पुष्पक्रम सेम, सरसों, मूली इत्यादि में पाया जाता है।
(ii) ससीमाक्षी पुष्पक्रम (CymoseInflorescence)-इस प्रकार के पुष्पक्रम में मुख्य
अक्ष कुछ निश्चित लंबाई तक बढ़ता है, क्योंकि इसके शीर्षभाग में स्थित कलिका फूल का
रूप धारण कर लेती है जिससे मुख्य अक्ष की वृद्धि रुक जाती है। इसके पार्श्व भाग से
शाखाएँ निकलती है जिनपर इसी क्रम में पुष्प उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार सबसे बड़े व पुराने
पुष्प बीच में और सबसे छोटे व नए पुष्प परिधि की तरफ होते हैं, इसे तलाभिसारी
(Basipetal) क्रम कहते हैं। यह चमेली, बेला, मदार इत्यादि में पाया जाता है।
(iii) विशेष प्रकार का पुष्पक्र (a) हाइपेन्थोडियम-यह ससीमाक्षी का रूपान्तरण
है। इसमें मुख्य अक्ष संघनित होकर प्यालाकार पात्र बनाता है जिसके ऊपरी सतह पर छिद्र
होता है जो छोटे-छोटे शल्कपत्रों द्वारा घिरा रहता है। इसमें पेंदी पर मादा पुष्पक और शिखर
पर नर पुष्पक लगे रहते हैं, जैसे-अंजीर एवं गुलर में
(b) साइऐथियम-यह भी ससीमाक्षी का ही रूपांतरण है। इसमें सहपत्र संयुक्त होकर
प्यालाकार सहपत्र चक्र बनाता है जिसके अन्दर ऊतल पात्र पर पुष्पक लगे रहते हैं। पात्र के
 केन्द्र में बड़ा स्त्रीपुष्पक होता है जिसका पुष्पवृन्त लंबा होता है। इसके चारों ओर नर पुष्पक
संघनित होकर पुंकेसर का रूप धारण करते हैं। प्रत्येक पुंकेसर एवं वन्त पात्र से जुड़ा रहता
है। इसके आधार पर एक सहपत्रिका होती है, जैसे-यूफोरबिआ में।
(c) कुटचक्रक (Verticillaster)-यह जटिल युग्मशाखी ससीमाक्षी पुष्पक्रम है।
ल्यूकस, लेमियम इत्यादि पौधों में ऐसा होता है। पत्तियों के कक्ष में अर्द्धअवन्त पुष्पक्रम एक
झुंड में लगे होते हैं।
8. पुष्पासन पर स्थिति के अनुसार लगे पुष्पी भागों का वर्णन करो।  [N.CER.T. (Q.15)]
उत्तर-पुष्प के सभी पुष्पपत्र (Floral leaves) एक छोटी चपटी अथवा उभरी हुई
रचना पर लगे रहते हैं, जिसे पुष्पासन (Thalamus) कहते हैं। पुष्पासन वास्तव में दबा
हुआ (Suppressed) तथा परिवर्तित (Modified) पुष्प का अक्ष है। अधिकांश फूलों में
पुष्पासन छोटा होता है किन्तु कुछ पौधों में यह लम्बा होता है एवं इस पर स्पष्ट Nodes
तथा Internodes पाये जाते हैं। इस प्रकार बाहादलपुंज (Calyx) एवं दलपुंज (Corolla)
के बीच के Internode को androphore जैसे-Gynandropis में तथा पुमंग एवं
जायांग के बीच के Internode को Gynophore जैसे- Capparis में, कहते हैं। जब
Androphore तथा Gynophore एक साथ उत्पन्न होते हैं तो यह रचना
Androgynophore या Gynandrophore कहलाता है, जैसे-Gyanandropsis में।
Magnolia और Michelia में पुष्पासनं मांसल तथा लंबा होता है, जिस पर Floral Leaves
Spirally arranged रहते हैं। गुलाब में पुष्पासन Concave तथा नाशपाती के आकार का
होता है। कमल दो सासन स्पंजी तथा Topshaped होता है। कभी-कभी पुष्पासन ऊपर
की ओर पतली अक्ष के रूप में बढ़ता है, जिससे शुरू में अण्डप जुड़े रहते हैं। परन्तु बाद
में अलग हो जाते हैं. इसे carpophore कहते हैं, जैसे-धनिया, जीरा इत्यदि में।
                                             वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. निम्नलिखित में से कौन तना है?
(क) गाजर
(ख) आलू
(ग) शलजम
(प) शकरकंद                              उत्तर-(ख)
2. Phyllode किसका रूपान्तरण है?
(क) जड़
(ख) पुष्प
(ग) पर्णवृन्त
(घ) कली                                    उत्तर-(ग)
3. निम्न में से कौन जड़ का लक्षण नहीं है-
(क) कली की अनुपस्थिति
(ख) क्लोरोफिल की उपस्थिति
(ग) मूलटोप की उपस्थिति
(घ) एककोशीय रोम की उपस्थिति             उत्तर-(ख)
4. वह जड़ जो Radicle (मूलांकुर) के अतिरिक्त पौधे के अन्य भाग से उत्पन्न होता
है―
(क) मूसला जड़
(ख) कली
(ग) रूपान्तरित जड़
(घ) वायवीय जड़                                   उत्तर-(ख)
5. तना या शाखा का वह हिस्सा जहाँ से एक या कई पत्तियाँ उत्पन्न होती हैं-
(ख) अपस्थानिक जड़
(क) शीर्ष
(ख) कली
(ग) इनटरनोड
(घ) गाँठ                                             उत्तर-(घ)
6. गाजर और शलजम में केस प्रकार की जड़ पायी जाती है-
(क) तंतुमय जड़
(ख) मूसला जड़
(ग) एडभेटिसियस जड़
(घ) प्रोप जड़                                      उत्तर-(ख)
7. आलू कंद (Potato Ti vers.) किस भाग पर बनते हैं-
(क) प्राथमिक जड़
(ख) अपस्थानिक जड़
(ग) पेटिऑल
(घ) स्टोलेन्स                                         उत्तर-(घ)
8. नारियल का कौन-सा भाग खाया जाता है?
(क) मेसोकार्प
(ख) फलभित्ति
(ग) पूरा बीज
(घ) भ्रूण                                               उत्तर-(ग)
9. द्विवीजपत्री पौधे (Dicot Plants) की पत्तियों में किस प्रकार का शिरा विन्यास पाया
जाता है?
(क) जालिकावत्
(ख) समानांतर
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं                                        उत्तर-(क)
10. Alternate Phyllotaxy (एकांतर पर्णविन्यास) किस पौधे में पाया जाता है?
(क) सरसों
(ख) अमरूद
(ग) सेव
(घ) सभी                                                    उत्तर-(क)
11. डूप (Drupe) की पहचान है-
(क) Stomy mesocarp
(ख) Fleshy seed coat
(ग) Thin seed coat
(घ) Stony endocarp                                  उत्तर-(क)
12. आवृत्तवीजी पौधे (Angiospermic Plant) की मुख्य विशेषता है-
(क) पुष्प
(ख) बीज
(ग) जड़
(घ) सभी                                                       उत्तर-(घ)
13. स्टेराइल पुंकेसर (Sterile Stamen) को कहा जाता है-
(क) Staminode
(ख) Stigma
(ग) Apocarpous
(घ) Syncarpous                                        उत्तर-(क)
14. कुछ दलहनी पौधों की पत्तियों का आधारीय भाग फूल जाता है, जिसे कहते हैं-
(क) Pulvinus
(ख) Lamina
(ग) Petiole
(घ) Leaf base                                   उत्तर-(क)
15. Epipetalous, किसकी स्थिति को कहा जाता है-
(क) Stamen
(ख) Placentation
(ग) Position of ovary
(घ) Aestivation of Petal                     उत्तर-(क)
16. सरसों में अंडाशय (ovary) होता है-
(क) उर्ध्ववर्ती
(ख) अधोवर्ती
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं                                               उत्तर-(क)
17. एकबीजपत्री भ्रूण (Monocot embryo) में Shoot Apex की स्थिति होती है-
(क) Lateral
(ख) Basal
(ग) Sub terminal
(घ) Terminal                                            उत्तर-(क)
18. प्ररोह का उद्भव बीज के किस भाग से होता है?
(क) Plumule (प्रांकुर)
(ख) Radicle (मूलांकुर)
(ग) Peduncle (पुष्पदंड)
(घ) None                                                  उत्तर-(क)
19. Hibiscus में किस प्रकार का Phylotaxy होता है-
(क) Alternate
(ख) Opposite
(ग) Whorled
(घ) All                                                      उत्तर-(क)
20. घास एवं बरगद में मूलांकुर के अतिरिक्त, पौधे के दूसरे भाग द्वारा निकलने वाला
जड़ क्या कहलाता है-
(क) अपस्थानिक जड़
(ख) मूसला जड़तंत्र
(ग) झकड़ा जड़तंत्र
(घ) तृतीयक जड़तंत्र                                     उत्तर-(क)
21. एक पुष्प को एक खास लंबवत आधार पर काटने पर दो बराबर भागों में बँट जाता
है, ऐसे पुष्प को कहते हैं-
(क) Actinomorphic
(ख) Zygomorphic
(ग) Perigynours
(घ) Epipetalous                                        उत्तर-(ग)
22. एकेसिया (Acacia) की पत्ती का कौन-सा भाग काँटों (Spines) में रूपांतरित हो
जाता है।
(क) Stipule (अनुपर्ण)
(ख) Leaflets (पत्रक)
(ग) Leaf base (पर्णाधार)
(घ) Petiole (पर्णवृन्त)                                उत्तर-(क)
23. रेसीमोस पुष्पक्रम में सबसे छोटा फूल सबसे-
(क) ऊपर होता है।
(ख) नीचे होता है।
(ग) कहीं भी हो सकता है।
(घ) मध्य में होता है।                                    उत्तर-(क)
24. धनिया में पुष्पक्रम होता है-
(क) स्पाइक
(ख) अम्बेल
(ग) स्पेडिक्स
(घ) संयुक्त अम्बे                                      उत्तर-(घ)
25. सीमान्त (Marginal) प्लासेटेसन पाया जाता है-
(क) मटर में
(ख) गुड़हल में
(ग) सरसों में
(घ) सूरजमुखी में                                  उत्तर-(क)
                                                □□□

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