12-psychology

Bihar board chapter 3 class 12th Psychology

Bihar board chapter 3 class 12th Psychology

Bihar board chapter 3 class 12th Psychology
जीवन की चुनौतियों का सामना
               (Meeting Life Challenges)
  पाठ्यक्रम
दबाव की प्रकृति; प्रकार एवं स्रोत; मनोवैज्ञानिक प्रकार्य तथा स्वास्थ्य पर दबाव का प्रभाव;दबाव का सामना करना; सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम का उन्नयन।
      याद रखने योग्य बातें
1. जीवन की सभी चुनौतियाँ, समस्याएँ तथा कठिन परिस्थितियाँ हमें दबाव में डालती है।
2. यदि दबाव का ठीक से प्रबंधन किया जाए तो वे व्यकित की अतिजीविता की संभावना में वृद्धि करते हैं, ऊर्जा प्रदान करते हैं, मानव भाव-प्रबोधन में वृद्धि करते हैं तथा निष्पादन को प्रभावित करते हैं।
3. उच्च दबाव अप्रीतिकर प्रभाव उत्पन्न कर सकता है तथा हमारे खराब निष्पादन का कारण बन जाता है।
4. कम दबाव के कारण व्यक्ति उदासीन तथा निम्न प्रकार की अभिप्रेरणा का अनुभव कर सकता है, जिसके कारण वह कम दक्षतापूर्वक तथा धीमी गति से कार्य निष्पादन कर पाता है।
5. दबाव एक सतत चलनेवाली प्रक्रिया में सन्निहित है जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरणों में कार्य-संपादन करता है, संघर्षों का मूल्यांकन करता है तथा उनसे उत्पन्न होनेवाली समस्याओं का सामना करने का प्रयास करता है।
6. दबाव जीवन का एक अंग है। दबाव न तो एक उद्दीपक और न ही एक अनुक्रिया बल्कि व्यक्ति तथा पर्यावरण के मध्य एक सतत संव्यवहार प्रक्रिया है।
7. प्राथमिक मूल्यांकन का संबंध एक नए या चुनौतीपूर्ण पर्यावरण का उसके सकारात्मक, तटस्थ अथवा नकारात्मक परिणामों के रूप में प्रत्यक्षण से है।
8. द्वितीयक मूल्यांकन किसी घटना का प्रत्यक्षण दबावपूर्ण घटना के रूप में करते हैं, जो व्यक्ति
की अपनी सामना करने की योग्यता तथा संसाधनों का मूल्यांकन होता है कि वे उस घटना द्वारा उत्पन्न नुकसान या चुनौती से निपटने के लिए पर्याप्त हैं।
9. प्राथमिक या द्वितीयक मूल्यांकन न केवल हमारी संज्ञानात्मक तथा व्यवहारपरक अनुक्रियाएँ निर्धारित करता है बल्कि बाह्य घटनाओं के प्रति हमारी सांवेगिक एवं शरीर क्रियात्मक अनुक्रियाओं को भी निर्धारित करता है।
10. हाइपोथैलेमस दो पंथों के माध्यम से क्रिया करता है। प्रथम पथ के अंतर्गत स्वायत्त तंत्रिक तंत्र तथा द्वितीय पथ के अंतर्गत पीयूष या पिट्युइटरी ग्रंथि सम्मिलित हैं।
11. दबाव के प्रति जो संवेगात्मक प्रतिक्रियाएं होती हैं, उनमें नकारात्मक संवेग जैसे- भय दुश्चिता, उलझन, क्रोध, अवसाद. या यहाँ तक कि नकार सम्मिलित हैं।
12. व्यक्ति जिन दबावों का अध्ययन करते हैं, वे तीव्रता, अवधि, जटिलता तथा भविष्यकथनीयत में भी भिन्न हो सकते हैं।
13. किसी व्यक्ति द्वारा दबाव का अनुभव करना उसके शरीर क्रियात्मक बल पर निर्भर करता है अर्थात् खराब शारीरिक स्वास्थ्य और दुर्वल शारीरिक गठन वाले व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य एवं बलिष्ठ शारीरिक गठन वाले व्यक्ति की अपेक्षा दबाव के समक्ष अधिक असुरक्षित होंगे।
14. भौतिक दबाव-वे मांगें हैं जिसके कारण हमारी शारीरिक दशा में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है।
15. पर्यावरणी दबाव-हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होती हैं। जैसे-वायु-प्रदूषण, भीड़, शोर आदि।
16. मनोवैज्ञानिक दबाव-वे दबाव हैं जिन्हें हम अपने मन में उत्पन्न करते हैं। मनोवैज्ञानिक दबाव, दबाव के आंतरिक स्रोत होते हैं।
17. कुंठा उत्पन्न होने के कारण-जब कोई व्यक्ति या परिस्थिति हमारी आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों को अवरुद्ध करती है, जो हमारी इष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती है तो कुंठा उत्पन्न होती है।
18. कुंठा के कारण-सामाजिक भेदभाव, अंतर्वैयक्तिक क्षति, स्कूल में कम अंक प्राप्त करना इत्यादि कुंठा के कारण हैं।
19. द्वंद्व-दो या दो से अधिक असंगत आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों में द्वंद्व हो सकता है।
20. आंतरिक दबाव-आंतरिक दबाव हमारे उन विश्वासों के कारण उत्पन्न होता है जो हमारी ही कुछ प्रत्याशाओं पर आधारित होते हैं तथा जो हम अपने लक्ष्य तथा अवास्तविक अत्यन्त उच्च-स्तर को प्राप्त करने के लिए निर्दयता से स्वयं को प्रेरित करते रहते हैं।
21. सामाजिक दबाव-उन व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं जो हमारे ऊपर अत्यधिक मांगें थोप देते हैं।
22. दबाव के स्रोत-दबाव के स्रोत हैं-जीवन घटनाएं, प्रतिदिन की उलझनें तथा अभिघातज घटनाएँ।
23. मनस्तंत्रित प्रतिरक्षा विज्ञान-यह मन, मस्तिष्क और प्रतिरक्षक तंत्र के बीच संबंधों पर ध्यान
केन्द्रित करता है तथा प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करता है।
24. सामना करना-दबाव के प्रति एक गत्यात्मक स्थिति-विशिष्ट प्रतिक्रिया है। यह दबावपूर्ण स्थितियों के प्रति कुछ निश्चित मूर्त अनुक्रियाओं का समुच्चय होता है जिनका उद्देश्य दबाव को कम करना होता है।
25. विश्रांति की तकनीकें-ये वे सक्रिय कौशल हैं जिनके द्वारा दबाव के लक्षणों तथा बीमारियों जैसे-उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग के प्रभावों में कमी की जा सकती है।
26. ध्यान प्रक्रियाएँ-ध्यान लगाने की प्रक्रिया में कुछ अधिगत प्रवधियाँ एक निश्चित अनुक्रम में उपयोग में लाई जाती हैं जिसमें ध्यान को पुनः केन्द्रित कर चेतना की परिवर्तित स्थिति उत्पन्न कर प्रबंधन किया जाता है।
27. जैव प्राप्ति या बायोफीडबैक-वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दबाव के शरीर क्रियात्मक पक्षो का परिवीक्षण कर उन्हें कम करने के लिए फीडबैक दिया जाता है कि व्यक्ति में वर्तमानकालिक शरीर क्रियाएँ क्या हो रही हैं।
28. संज्ञानात्मक व्यवहारात्मक तकनीकें-इन तकनीकों का उद्देश्य को दबाव के विरुद्ध संचारित करना होता है।
एन. सी. ई. आर. टी. पाठ्यपुस्तक तथा परीक्षोपयोगी अन्य
                  वस्तुनिष्ठ प्रश्न
               (Objective Questions)
1. निम्नलिखित में कौन हमें दबाव में डालती हैं ?
(क) चुनौतियां
(ख) समस्याएँ
(ग) कठिन परिस्थितियां
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर (घ)
2. यदि दबाव का ठीक से प्रबंधन किया जाए तो वह व्यक्ति की अतिजीविता की संभावना में:
(क) कमी करता है
(ख) अत्यधिक कमी करता है
(ग) वृद्धि करता है
(घ) कमी और वृद्धि दोनों करता
उत्तर-(ग)
3. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सत्य है ?
(क) दबाव ऊर्जा प्रदान करते हैं
 (ख) दबाव मानव भाव-प्रबोधन में वृद्धि करते हैं
(ग) दबाव निष्पादन को प्रभावित करते हैं
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
4. बाह्य प्रतिबलक के प्रति प्रतिक्रिया को क्या कहा जाता है ?
(क) दबाव
(ख) तनाव
(ग) उपागम
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(घ)
5. निम्नलिखित में किन्हें आधुनिक दबाव शोध के जनक कहा जाता है ?
(क) हैंस सेल्ये
(ख) लेजारस
(ग) फोकमैन
(घ) एंडलर
उत्तर-(घ)
6. किसी भी मांग के प्रति शरीर की अविशिष्ट अनुक्रिया को कहा जाता है ?
(क) तनाव
(ख) दबाव
(ग) उत्तेजना
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ख)
7. दबाव के संज्ञानात्मक सिद्धांत को किसने प्रतिपादित किया ?
(क) उपर्युक्त सभी
(ख) फोकमैन
(ग) एंडलर
(घ) सेल्ये
उत्तर-(ख)
8. नकारात्मक घटनाओं का मूल्यांकन किसके लिए किया जाता है ?
(क) संभावित नुकसान
(ख) संभावित खतरा
(ग) संभावित चुनौती
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर (घ)
9. हाइपोथैलेमस कितने माध्यम से क्रिया प्रारंभ करता है ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर (ख)
10. निम्नलिखित में कौन-से संवेग नकारात्मक हैं ?
(क) भय
(ख) दुश्चिता
(ग) उलझन
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
11. संज्ञानात्मक अनुक्रिया के अंतर्गत कैसी अनुक्रियाएँ आती हैं ?
(क) ध्यान केन्द्रित न कर पाना
(ख) अंतर्वेधी
(ग) पुनरावर्ती
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ख)
12. व्यक्ति जिन दबावों का अनुभव करते हैं वे निम्नलिखित में किनमें भिन्न हो सकते हैं ?
(क) तीव्रता
(ख) अवधि
(ग) जटिलता
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(ख)
13. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सत्य नहीं है ?
(क) किसी दबाव का परिणाम इस बात पर निर्भर नहीं करता कि विभिन्न आयामों पर किसी विशिष्ट दबावपूर्ण अनुभव का स्थान क्या है।
(ख) दबाव के अनुभव किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध संसाधन द्वारा निर्धारित होते हैं।
(ग) प्रत्येक व्यक्ति के दबाव अनुक्रियाओं के अलग-अलग प्रतिरूप होते हैं।
(घ) पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होता हैं।
उत्तर-(क)
14. वे दबाव जिन्हें हम अपने मन में उत्पन्न करते हैं उन्हें कहा जाता है-
(क) भौतिक दबाव
(ख) पर्यावरणी दबाव
(ग) मनोवैज्ञानिक दबाव
 (घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ग)
15. निम्नलिखित में कौन कुंठा के कारण नहीं हैं ?
(क) सामाजिक भेदभाव
 (ख) स्कूल में अधिक अंक प्राप्त करना
(ग) स्कूल में कम अंक प्राप्त करना
 (घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ख)
16. निम्नलिखित में कौन अभियातज घटना है ?
(क) अग्निकांड
(ख) कोलाहलपूर्ण परिवेश
(ग) बिजली-पानी की कमी
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
17. निम्नलिखित में कौन संवेगात्मक प्रभाव के उदाहरण हैं ?
(क) हृदयगति में वृद्धि
 (ख) मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि
(ग) उच्च रक्तचाप
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(घ)
18. निम्नलिखित में कौन शरीरक्रियात्मक प्रभाव का उदाहरण है ?
(क) पाचकतंत्र की धीमी गति
(ख) हृदयगति में वृद्धि
(ग) रक्त वाहिकाओं का सिकुड़ना
 (घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
19. निम्नलिखित में कौन संज्ञानात्मक प्रभाव हो सकते हैं ?
(क) एकाग्रता में वृद्धि
(ख) न्यूनीकृत अल्पकालिक स्मृति क्षमता
(ग) एलर्जी
(घ) सिरदर्द
उत्तर-(ख)
20. निम्नलिखित में कौन शरीर में बाह्य तत्त्वों को पहचान कर नष्ट कर देता है ?
(क) श्वेताणु
(ख) रक्ताणु
(ग) रोग प्रतिकारक
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
21. विभिन्न शोधों एवं अध्ययनों द्वारा ज्ञात हुआ है कि तकरीबन…………प्रतिशत रोगों का कारण तनाव होता है ?
(क) 25%
(ख) 50%
(ग)75%
(घ) 100%
उत्तर-(ग)
22. प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हंस सेली किस क्षेत्र से संबंधित है ?
(क) अभिप्रेरकों के संघर्ष के क्षेत्र में
(ख) तनाव के अध्ययन के क्षेत्र में
(ग) समाजीकरण के अध्ययन के क्षेत्र में
(घ) इनमें से किसी भी क्षेत्र से संबंधित नहीं
उत्तर (ख)
23. ‘भिड़ो या. भागो अनुक्रिया’ का संबंध है-
(क) डोलार्ड एवं मिलर से
(ख)कैनन से
(ग) कोहेन से
(घ) ग्लास एवं सिंगर से
उत्तर (ख)
24. हंस सेली ने तनाव के बारे में कहा है ?
(क) तनाव एक अविशिष्ट अनुक्रिया है
(ख) तनाव एक सामाजिक सीखना अनुक्रिया है
(ग) तनाव एक अतिविशिष्ट अनुक्रिया है
(घ) तनाव एक समायोजन अनुक्रिया है
उत्तर (क)
25. मानव शरीर में काला पित्त की अधिकता से उत्पन्न होता है-
(क) विषाद
(ख) उत्साह
(ग) विषाद तथा उत्साह दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर (क)
26. अंग्रेजी के शब्द ‘स्ट्रेस’ की उत्पत्ति किस भाषा से हुई है ?
(क) जर्मन
(ख) हिन्दी
(ग) ग्रीक
(घ) लैटिन
उत्तर-(क)
27. लक्ष्य प्राप्ति में बाधा और आवश्यकताओं एवं अभिप्रेरकों के अवरुद्ध होने से क्या उत्पन्न होता है?
(क) आन्तरिक दबाव
(ख) कुंठा
(ग) द्वन्द्व
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख)
28. फ्रायड के अनुसार बच्चे विपरीत लिंग के माता-पिता से सहज जुड़ाव महसूस करते हैं। इसे क्या कहा जाता है?
(क) रक्षा युक्तियाँ
(ख) पराहम्
(ग) इडिपस और इलेक्ट्रा मनोथि
(घ) हीन भावना मनोग्रथि
उत्तर-(ग)
29. पतंजलि का नाम किससे सम्बद्ध है?
(क) मन:चिकित्सा से
(ख) योग से
(ग) स्वज विश्लेषण से
(घ) परामर्श से
उत्तर-(ख)
30. ‘कुंठा-आक्रामकता सिद्धांत’ के प्रतिपादक हैं-
(क) एफ पर्ल्स
(ख) इरिक बनी
(ग) जॉन डोलॉड
(घ) ये सभी
उत्तर-(ग)
                 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
          (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. तनाव किसे कहते हैं ?
उत्तर-बाह्य प्रतिबलक के प्रतिक्रिया को तनाव कहते हैं।
प्रश्न 2. दबाव के संज्ञानात्मक सिद्धांत के किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर-लेजारस एवं उनके सहयोगियों ने दबाव के संज्ञानात्मक सिद्धांत को प्रतिपादित किया।
प्रश्न 3. दबावपूर्ण परिस्थिति के प्रति एक व्यक्ति की अनुक्रिया किन बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर-दवावपूर्ण परिस्थिति के प्रति एक व्यक्ति की अनुक्रिया घटनाओं के प्रत्यक्षण तथा उनको व्याख्या या मूल्यांकन पर निर्भर करती है।
प्रश्न 4. कौन-कौन-सी परिस्थितियां हमें दबाव में डालती हैं ?
उत्तर-सभी चुनौतियां, समस्याएं तथा कठिन परिस्थितियाँ हमें दबाव में डालती हैं।
प्रश्न 5. ‘यूस्ट्रेस’ क्या है ?
उत्तर-दबाव के उस स्तर, जो हमारे लिए लाभकर है तथा चोटी के निष्पादन के स्तर की उपलब्धि एवं छोटे संकटों के प्रबंधन के लिए व्यक्ति के सर्वोत्तम गुणों में एक है, को वर्णित करने के लिए यूस्ट्रेस पद का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 6. दबाव का वर्णन किस रूप में किया जाता है ?
उत्तर-दबाव का वर्णन किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जानेवाली अनुक्रियाओं के प्रतिरूप के रूप में किया जा सकता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है और उसके सामने करने की क्षमता से कहीं अधकि होता है।
प्रश्न 7. प्राथमिक मूल्यांकन क्या है ?
उत्तर-प्राथमिक मूल्यांकन का संबंध एक नए या चुनौतीपूर्ण पर्यावरण का उसके सकारात्मक, तटस्थ तथा नकारात्मक परिणामों के रूप में प्रत्यक्षण से है।
प्रश्न 8. कुछ नकारात्मक संवेगों को लिखिए।
उत्तर-भय, दुश्चिता, उलझन, क्रोध, अवसाद, नकार आदि नकारात्मक संवेग हैं।
प्रश्न 9. व्यवहारात्मक अनुक्रियाओं की दो सामान्य श्रेणियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-दबावकारक का मुकाबला या खतरनाक घटना से पीछे हट जाना (पलायन), व्यवहारात्मक अनुक्रियाओं की दो सामान्य श्रेणियाँ हैं।
प्रश्न 10. संज्ञानात्मक अनुक्रियाओं के अंतर्गत क्या होता है ?
उत्तर-संज्ञानात्मक अनुक्रियाओं के अंतर्गत, कोई घटना कितना नुकसान पहुंचा सकती है या कितनी खतरनाक है तथा उसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, इससे संबंधित विश्वास आते हैं।
 प्रश्न 11. संज्ञानात्मक अनुक्रियाओं के अंतर्गत आनेवाली कुछ अनुक्रियाओं को. लिखिए।
 उत्तर-ध्यान केन्द्रित न कर पाना तथा अंतर्वेधी पुनरावर्ती या दूषित विचार आना आदि संज्ञानात्मक अनुक्रिया के अंतर्गत आते हैं।
 प्रश्न 12. भौतिक दबाव क्या है ?
उत्तर-भौतिक दबाव वे माँगें हैं, जिसके कारण हमारी शारीरिक दशा में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। हम तनाव का अनुभव करते हैं जब हम शारीरिक रूप से अधिक परिश्रम करते हैं, पौष्टिक भोजन की कमी हो जाती है, कोई चोट लग जाती है या निद्रा कम हो जाती है।
 प्रश्न 13. पर्यावरणी दबाव क्या है ?
 उत्तर-पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएं होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होती हैं।
 उदाहरण-वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, ग्रीष्मकाल की गर्मी, शीतकाल की सर्दी आदि।
 प्रश्न 14. तीन ऐसे पर्यावरणी दबावों को लिखिए जो प्राकृतिक विपदाएँ तथा विपाती घटनाएं हैं।
उत्तर-आग, भूकंप और बाढ़ आदि।
प्रश्न 15. मनोवैज्ञानिक दबाव क्या होते हैं ?
उत्तर-मनोवैज्ञानिक दबाव वे दबाव हैं जिन्हें हम अपने मन में उत्पन्न करते हैं। ये दबाव अनुभव करनेवाले व्यक्ति क लिए विशिष्ट होते हैं तथा दबाव के आंतरिक स्रोत होते हैं।
प्रश्न 16. मनोवैज्ञानिक दबाव के कुछ प्रमुख स्रोतों को लिखिए।
उत्तर-मनोवैज्ञानिक दबाव के मुछ प्रमुख स्रोत है-कुंठा, इंद्व, आंतरिक एवं सामाजिक दबाव इत्यादि।
प्रश्न 17. कुंठग किस प्रकार उत्पन्न होती है ?
उत्तर-जब कोई व्यक्ति या परिस्थिति हमारी आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों को अवरूद्ध करती है, जो हमारे इष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती है तो कुंठा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 18. कुंग उत्पन्न होने के किन्हीं तीन कारणों को लिखिए।
उत्तर-कुंठा उत्पन्न होने के निम्नलिखित तीन कारण हो सकते हैं-
1. सामाजिक भेदभाव, 2. अंतवैयक्तिक क्षति, 3. स्कूल में कम अंक प्राप्त होना।
प्रश्न 19. द्वंद्व किनमें हो सकता है?
उत्तर-दो या दो से अधिक असंगत आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों में द्वंद्व हो सकता है, जैसे क्या नृत्य का अध्ययन किया जाय या मनोविज्ञान का।
प्रश्न 20, आंतरिक दबाव क्यों उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर-आंतरिक दबाव हमारे अपने उन विश्वासों के कारण उत्पन्न होते हैं जो हमारी ही कुछ प्रत्याशाओं पर आधारित होते हैं जैसे कि मुझे हर कार्य में सर्वोत्तम होना चाहिए।
प्रश्न 21. सामाजिक दबाव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर-सामाजिक दबाव उन व्यक्तियों द्वारा उत्पन्नं किए जाते हैं जो हमारे ऊपर अत्यधिक
माँगें थोप देते हैं। ये बाह्य जनित होते हैं तथा लोगों के साथ हमारी अंत:क्रियाओं के कारण उत्पन होते हैं।
प्रश्न 22. अभिघातज घटनाओं के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-अग्निकांड, रेलगाड़ी या सड़क दुर्घटना, लूट, भूकंप, सुनामी आदि।
प्रश्न 23. संवेगात्मक प्रभाव के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-दुश्चिता तथा अवसाद की भावनाएँ, शारीरिक तनाव में वृद्धि, मनोवैज्ञानिक तराव में वृद्धि, मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि तथा आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन।
प्रश्न 24. शरीरक्रियात्मक प्रभाव के चार उदाहरणों को लिखिए।
उत्तर-एपिनेफरीन तथा नॉरएपिनेफरीन छोड़ना, पाचनतंत्र की धीमी गति, फेफड़ों में वायुमार्ग का विस्तार तथा हृदयगति में वृद्धि।
प्रश्न 25. बर्नआउट किसे कहते हैं ?
उत्तर-शारीरिक, संवेगात्मक तथा मनोवैज्ञानिक परिश्रांति की विभिन्न अवस्थाओं की बर्नआउट कहते हैं।
प्रश्न 26. जी० ए० एस० के अंतर्गत कौन-से तीन चरण होते हैं?
उत्तर-जी० ए० एस० के अंतर्गत तीन चरण होते हैं-सचेत प्रतिक्रिया, प्रतिरोध तथा परिश्राति।
प्रश्न 27. मनस्तंत्रिका प्रतिरक्षा विज्ञान क्या है ?
उत्तर-मनस्तंत्रिका प्रतिरक्षा विज्ञान मन, मस्तिष्क और प्रतिरक्षक तंत्र के बीच संबंधों पर ध्यान केन्द्रित करता है। यह प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करता है।
प्रश्न 28. दीर्घकालिक दबाव के क्या लक्षण एवं अनुभव हो सकते हैं ?
उत्तर-दीर्घकालिक दबाव के दाब में व्यक्ति, अविवेकी भय, मन:स्थिति में आकस्मिक परिवर्तन एवं दुर्भाति के प्रति अधिक प्रवण होते हैं तथा वे अववाद, क्रोध तथा उत्तेजनशीलता के दौरे का अनुभव कर सकते हैं।
प्रश्न 29. जीवन शैली किसे कहते हैं ?
उत्तर-व्यक्ति के निर्णयों तथा व्यवहारों का वह समग्र प्रतिरूप जीवन शैली कहलाता है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है।
प्रश्न 30. रोगजनक क्या होते हैं ?
उत्तर-रोगजनक शारीरिक रोग उत्पन्न करने के अभिकर्ता होते हैं।
प्रश्न 31. सामना करना क्या होता है ?
उत्तर-सामना करना दबाव के प्रति एक गत्यात्मक स्थिति विशिष्ट प्रतिक्रिया है। यह दबावपूर्ण स्थितियों या घटनाओं के प्रति कुछ निश्चित मूर्त अनुक्रियाओं का समुच्चय होता है, जिनका उद्देश्य समस्या का समाधान करना तथा दबाव को कम करना होता है।
प्रश्न 32. दबाव का प्रबंधन करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर-दबाव का प्रबंधन करने के लिए हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम अपने सोचने
के तरीके का पुनः मूल्यांकन करें तथा दबाव का सामना करने की युक्तियों या कौशलों को सीखें।
प्रश्न 33. परिहार-अभिविन्यस्त युक्ति क्या है ?
उत्तर-परिहार-अभिविन्यस्त युक्ति के अंतर्गत स्थिति को गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं। इसमें दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन तथा उनके स्थान पर आत्म-रक्षित विचारों का प्रतिस्थापना भी सम्मिलित होता है।
प्रश्न 34. सामना करने की समस्या-केन्द्रित अनुक्रिया क्या है ?
उत्तर-समस्या-केन्द्रित युक्तियाँ समस्या पर ही हमला करती हैं जो सूचनाएं एकत्रित करने, घटनाओं को परिवर्तित करने तथा विश्वास और प्रतिबद्धता को परिवर्तित करने के लिए होते हैं।
प्रश्न 35. समस्या-केन्द्रित युक्ति के क्या फायदे हैं ?
उत्तर-समस्या-केन्द्रित युक्तियाँ व्यक्ति की जागरुकता में वृद्धि करती हैं, ज्ञान के स्तर को बढ़ाती हैं तथा दबाव का सामना करने के ज्ञानात्मक तथा व्यवहारात्मक विकल्पों में वृद्धि करती हैं। घटना से उत्पन्न खतरे की अनुभूति को भी घटाने का कार्य वे करती हैं।
प्रश्न 36. संवेग-केन्द्रित युक्तियाँ क्या हैं ?
उत्तर-संवेग-केन्द्रित युक्तियाँ प्रमुखतया मनोवैज्ञानिक परिवर्तन लाने हेतु उपयोग की जाती हैं जिससे घटना में परिवर्तन लाने का अल्पतम प्रयास करते हुए उसके कारण उत्पन्न होनेवाले संवेगात्मक विघटन के प्रभावों को सीमित किया जा सके।
प्रश्न 37. जैवप्रति प्राप्ति प्रशिक्षण में कितनी अवस्थाएं होती हैं ?
उत्तर-जैवप्रति प्राप्ति प्रशिक्षण में तीन अवस्थाएँ होती हैं-

(i) किसी विशिष्ट शरीर क्रियात्मक अनुक्रिया, जैसे-हदय गति के प्रति जागरुकता विकसित करना,

(ii) उस शरीर क्रियात्मक अनुक्रिया को शांत व्यवस्था में नियंत्रित करने के उपाय सीखना,
(iii) उस नियंत्रण को सामान्य दैनिक जीवन में अंतरित करना।
प्रश्न 38. सर्जनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण क्या है ?
उत्तर-दबाव से निपटने के लिए यह एक प्रभावी तकनीक है। सर्जनात्मक मानस-प्रत्ययीकारण एक आत्मनिष्ट अनुभव है जिसमें प्रतिमा तथा कल्पना का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 39. मूल्यांकन के अंतर्गत क्या आते हैं ?
उत्तर-मूल्यांकन के अंतर्गत समस्या की प्रकृति पर परिचय करना तथा उसे व्यक्ति/सेवार्थी के दृष्टिकोण से देखना सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 40. दबाव न्यूनीकरण क्या है ?
उत्तर-दबाव न्यूनीकरण के अंतर्गत दबाव कम करनेवाली तकनीकों जैसे-विश्रोति तथा
प्रश्न 41. नियमित व्यायाम के फायदों को लिखिए।
उत्तर-नियमित व्यायाम के द्वारा हृदय की दक्षता में सुधार होता है, फेफड़ों के प्रकार्यें में वृद्धि होती है, रक्तचाप में कमी होती है, रक्त में वसा की मात्रा घटती है तथा शरीर के प्रतिरक्षक तंत्र में सुधार होता है।
प्रश्न 42. ‘दृढ़ता’ क्या है ?
उत्तर-वे व्यक्ति जिनमें उच्च स्तर के दबाव किन्तु निम्न स्तर के रोग होते हैं, उनमें तीन विशेषताएँ सामान्य रूप से पाई जाती हैं, जिन्हें दृढ़ता नामक तीन व्यक्तित्व विशेषक के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 43. दृढता व्यक्तित्व विशेषक की तीन अवस्थाओं को लिखिए।
उत्तर-प्रतिबद्धता, नियंत्रण तथा चुनौती।
प्रश्न 44. दबाव का सामना करने की योग्यता किस बात पर निर्भर करती है ?
उत्तर-दबाव का सामना करने की हमारी योग्यता इस बात पर निर्भर करती है कि हम दैनिक जीवन की मांग के प्रति संतुलन करने तथा उनके संबंध में व्यवहार करने के लिए कितने तैयार हैं तथा अपने जीवन में साम्यावस्था बनाए रखने के लिए कितने तैयार हैं।
प्रश्न 45. कुछ जीवन कौशल के उदाहरण दीजिए जिनसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।
उत्तर-आग्रहिता, समय प्रबंधन, सविवेक चिंतन, संबंधों में सुधार, स्वयं की देखभाल के साथ-साथ ऐसी असहायक आदतों, जैसे-पूर्णतावादी होना, विलंबन या टालना इत्यादि से मुक्ति, कुछ ऐसे जीवन कौशल हैं जिनसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है।
प्रश्न 46. आग्रहिता क्या है ?
उत्तर-आग्रहिता एक ऐसा व्यवहार या कौशल है जो हमारी भावनाओं, आवश्यकताओं, इच्छाओं तथा विचारों के सुस्पष्ट तथा विश्वासपूर्ण संप्रेषण में सहायक होता है।
प्रश्न 47. समय प्रबंधन का प्रमुख नियम क्या है ?
उत्तर-समय प्रबंधन का प्रमुख नियम यह है कि हम जिन कार्यों महत्त्व देते हैं,उनका परिपालन करने में समय लगाएँ या उन कार्यों को करने में जो हमारे लक्ष्य प्राप्ति में सहायक हों।
प्रश्न 48. सविवेक चिंतन के कुछ नियमों को लिखिए।
उत्तर-सविवेक चिंतन के कुछ नियम इस प्रकार हैं-अपने विकृत चिंतन तथा अविवेकी विश्वासों को चुनौती देना, संभावित अंतर्वेधी नकारात्मक दुश्चिता, उत्तेजक विचारों को मन से निकालना तथा सकारात्मक कथन करना।
प्रश्न 49. संप्रेषण के अंतर्गत तीन आवश्यक निहित कौशल कौन-से हैं ?
उत्तर-संप्रेषण के अंतर्गत तीन अत्यावश्यक कौशल निहित हैं-सुनना कि दूसरा व्यक्ति क्या कर रहा है, अभिव्यक्त करना कि आप कैसा सोचते हैं और महसूस करते हैं तथा दूसरों की भावनाओं और मतों को स्वीकारना चाहे वे स्वयं आपके अपने से भिन्न हों।
प्रश्न 50. सबसे अधिक विश्रांत कहाँ होता है ?
उत्तर-सबसे अधिक विश्रांत श्वसन मंद, मध्यपट या डायाफ्राम अर्थात् सीना और उदर गुहिका के बीच एवं गुंबदाकार पेशी से उदर केन्द्रित श्वसन होता है।
प्रश्न 51. कुछ पर्यावरणी दबावों को लिखिए जो हमारी मनःस्थिति को प्रभावित कर सकता है?
उत्तर-पर्यावरणी दबाव, जैसे-शोर, प्रदूषण, प्रकाश, वर्ण इत्यादि सब हमारी मन:स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
प्रश्न 52. असहायक आदतें क्या हैं ?
उत्तर-असहायक आदतें, जैसे-पूर्णतावाद, परिहार, विलंबन या टालना इत्यादि ऐसी युक्तियाँ हैं जो अल्पकाल तक तो सामना करने में सहायक हो सकती हैं किन्तु वे व्यक्ति को दबाव के समक्ष अधिक असुरक्षित बना देती हैं।
प्रश्न 53. पूर्णतावादी व्यक्ति कौन होते हैं ?
उत्तर-पूर्णतावादी व्यक्ति वे होते हैं जिन्हें सब कुछ बिल्कुल सही चाहिए।
प्रश्न 54. ‘परिहार’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-परिहार का अर्थ है- समस्या को स्वीकार या सामना करने से नकारना।
प्रश्न 55. ‘विलंबन’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-विलंबन का अर्थ है, जो जरूरी कार्य हमें करना है उसमें विलंब करते जाना।
प्रश्न 56. सकारात्मक स्वास्थ्य के अंतर्गत कौन-सी निर्मितिया आती हैं ?
उत्तर-सकारात्मक स्वास्थ्य के अंतर्गत निम्नलिखित निर्मितियाँ आती हैं- “स्वस्थ शरीर; उच्च गुणवत्ता वाले व्यक्तिगत संबंध; जीवन में उद्देश्य का बोध, आत्मसम्मान, जीवन के कृत्यों में प्रवीणता, दबाव, अभिघात एवं परिवर्तन के प्रति स्थिति स्थापना।”
प्रश्न 57. कौन-से कारक सकारात्मक स्वास्थ्य को सुकर बनाते हैं ?
उत्तर-विशेष रूप से जो कारक दबाव के प्रतिरोधक का कार्य करते हैं तथा सकारात्मक स्वास्थ्य को सुकर बनाते हैं, वे हैं आहार, व्यायाम, सकारात्मक अभिवृत्ति, सकारात्मक चिंतन तथा सामाजिक अवलंब।
प्रश्न 58. संतुलित आहार के क्या फायदे हैं ?
उत्तर-संतुलित आहार व्यक्ति की मन:स्थिति को ठीक कर सकता है, ऊर्जा प्रदान कर सकता है, पेशियों का पोषण कर सकता है, परिसंचरण को समुन्नत कर सकता है, रोगों से रक्षा कर सकता है, प्रतिरक्षक तंत्र को सशक्त बना सकता है।
प्रश्न 59. खिंचाव वाले व्यायाम का क्या फायदा है ?
उत्तर-खिंचाव वाले व्यायाम शांतिदायक प्रभाव डालते हैं।
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PSYCHOLOGY-XII
प्रश्न 60. वायुजीवी व्यायाम का क्या फायदा है ?
उत्तर-वायुजीवी व्यायाम शरीर के भाव-प्रबोधन स्तर को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 61. सकारात्मक अभिवृत्ति के क्या फायदे हैं ?
उत्तर-सकारात्मक अभिवृत्ति द्वारा सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 62. आशावाद क्या है?
उत्तर-आशावाद जीवन में अनुकूल परिणामों की प्रत्याशा करने के प्रति झुकाव है।
प्रश्न 63. सामाजिक अवलंब को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-ऐसे व्यक्तियों का अस्तित्व तथा उपलब्धता जिन पर हम विश्वास रख सकते हैं, जो यह स्वीकार करते हैं कि उन्हें हमारी परवाह है, जिनके लिए हम मूल्यवान है तथा जो हमें प्यार करते हैं, यही सामाजिक अवलंब की परिभाषा है।
               लघु उत्तरात्मक प्रश्न
         (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. दबाव के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए। दैनिक जीवन से उदाहरण दीजिए।
उत्तर-दबाव का वर्णन किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जानेवाली अनुक्रियाओं के प्रतिरूप के रूप में किया जा सकता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामने करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है। उदाहरण के लिए, किसी चुनौती के सामने होने पर हम अधिक प्रयास करते हैं तथा चुनौती से निपटने के लिए अपने सारे संसाधनों और अवलंब व्यवस्था को भी संघटित कर देते हैं। सभी चुनौतियां, समस्याएं तथा कठिन
परिस्थितियां हमें दबाव में डालती हैं। दबाव विद्युत की भांति होते हैं। दबाव ऊर्जा प्रदान करते हैं। मानव भाव-प्रबोधन में वृद्धि करते हैं तथा निष्पादन को प्रभावित करते हैं। तथापि, यदि विधुत धारा अत्यन्त तीव्र हो तो वह बल्ब की बत्ती को जला सकती है उपकरणों को खराब कर सकती है। ठीक इस प्रकार यदि दबाव का ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया है तो वह जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
प्रश्न 2. प्राथमिक तथा द्वितीयक मूल्यांकन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-प्राथमिक मूल्यांकन-इसका संबंध एक नए या चुनौतीपूर्ण पर्यावरण का उसके  सकारात्मक, तटस्थ अथवा नकारात्मक परिणामों के रूप में प्रत्यक्षण से है। नकारात्मक घटनाओं का मूल्यांकन उनके द्वारा संभावित नुकसान, खतरा या चुनौती के लिए किया जाता है। किसी घटना के द्वारा अब तक की जा चुकी क्षति का मूल्यांकन ही नुकसान है। भविष्य में उस घटना द्वारा संभावित क्षति का मूल्यांकन ही खतरा है। घटना के चुनौतीपूर्ण होने का मूल्यांकन उस दबावपूर्ण
घटना का सामना करने की योग्यता की प्रत्याशा से संबद्ध है कि उस पर विजय पाना संभव हैं तथा उससे लाभ भी उठाया जा सकता है।
द्वितीयक मूल्यांकन-जब हम किसी घटना का प्रत्यक्षण दबावपूर्ण घटना के रूप में करते
हैं तो प्रायः हम उसका द्वितीयक मूल्यांकन करते हैं, जो व्यक्ति की अपनी सामना करने की मांग
तथा संसाधनों का मूल्यांकन होता है कि क्या वे उस घटना द्वारा उत्पन्न नुकसान, खतरे या चुनौती से निपटने के लिए पर्याप्त हैं। ये संसाधन मानसिक, शारीरिक वैयक्तिक अथवा सामाजिक हो सकते
हैं। यदि कोई व्यक्ति समझता है कि संकट से निपटने के लिए उसके सकारात्मक अभिवृत्ति, स्वास्थ्य, कौशल तथा सामाजिक अवलंब उपलब्ध है तो वह कम दबाव का अनुभव करेगा।
प्रश्न 3. हाइपोथैलेमस किन पथों के माध्यम से क्रिया प्रारंभ करता है ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-हाइपोथैलेमस दो पथों से क्रिया प्रारंभ करता है। प्रथम पथ के अंतर्गत स्वायत्त तंत्रिका तंत्र सम्मिलित हैं। अधिवृक्क (एड्रीनल) ग्रंथि रुधिर में बड़ी मात्रा में केटेकोलामाइन्स (एपिनेफरीन तथा नॉरएपिनेफरीन) छोड़ देती है। इसी के फलस्वरूप वह शरीरक्रियात्मक परिवर्तन होते हैं जो संघर्ष या पलायन जैसी अनुक्रिया में परिलक्षित होते हैं।
 द्वितीय पथ के अंतर्गत पीयूष या पिट्यूइटरी ग्रंथि सम्मिलित हैं, जो कॉटिकोस्टीरायड (कॉर्टिसोल) का स्राव करती है तथा जो ऊर्जा प्रदान करती है।
प्रश्न 4. जी० ए० एस० मॉडल का वर्णन कीजिए तथा इस मॉडल की प्रासंगिकता को एक उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-सेल्ये ने जी० ए० एस० मॉडल को प्रस्तुत किया। उनके अनुसार,जी० ए० एस० के अंतर्गत तीन चरण होते हैं-सचेत प्रतिक्रिया, प्रतिरोध तथा परिश्राति।
(i) सचेत प्रतिक्रिया चरण-किसी हानिकार उद्दीपक या दबावकारक की उपस्थिति के कारण एड्रीनल-पीयूष-कॉर्टेक्स तंत्र का सक्रियण हो जाता है। यह उन अंत:स्रावों को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है जिससे दबाव अनुक्रिया होती है। अब व्यक्ति संघर्ष या पलायन के लिए तैयार हो जाता है।
(ii) प्रतिरोध चरण-यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रारंभ होता है। परानुकंपी तंत्रिका तंत्र, शरीर के संसाधनों का अधिक सावधानीपूर्ण उपयोग करने को उद्धत करता है। जीव खतरे का सामने करने के लिए मुकाबला करने का प्रयास करता है।
(iii) परिश्रांति चरण-एक ही दबावकारक अथवा अन्य दबावकारकों के समक्ष दीर्घकालिक उद्भाषण से शरीर के संसाधन निष्कासित हो जाते हैं, जिसके कारण परिश्रांति का तृतीय चरण आता है। सचेत प्रतिक्रिया तथा प्रतिरोध चरण में कार्यरत शरीर-क्रियात्मक तंत्र अप्रभावी हो जाते हैं तथा दबाव-संबद्ध रोगों, जैसे-उच्च रक्तचाप की संभावना बढ़ जाती है।
 सेल्ये के मॉडल की आलोचना इसलिए की गई है कि  उसमें दबाव में मनोविज्ञानिक कारकों की बहुत सीमित भूमिका बताई गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार, घटनाओं का मनोविज्ञानिक मूल्यांकन दबाव के निर्धारण के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। व्यक्ति दबाव के प्रति क्या अनुक्रिया करेगा, यह बहुत सीमा तक उसके प्रत्यक्षण, व्यक्तित्व तथा जैविक संरचना से प्रभावित होता है।
प्रश्न 5. जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए जीवन कौशल कैसे उपयोगी हो सकते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-जीवन कौशल, अनुकूली तथा सकारात्मक व्यवहार की वे योग्यताएं हैं जो व्यक्तियों को दैनिक जीवन की मांगों और चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए सक्षम बनाती हैं।
दबाव का सामना करने की हमारी योग्यता इस बात पर निर्भर करती है कि हम दैनिक जीवन की मांगों के प्रति संतुलन करने तथा उनके संबंध में व्यवहार करने के लिए कितने तैयार हैं तथा अपने जीवन में साम्यावस्था बनाए रखने के लिए कितने तैयार हैं। ये जीवन कौशल सीखे जा सकते हैं तथा उसमें सुधार, स्वयं की देखभाल के साथ-साथ ऐसी असहायक आदतों, जैसे-पूर्णतावादी होना, विलंबन या टालना इत्यादि से मुक्ति, कुछ ऐसे जीवन कौशल हैं जिनसे जीवन को चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।
प्रश्न 6. आंतरिक और सामाजिक दबाव में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-आंतरिक दबाव-ये दबाव हमारे अपने उन विश्वासों के कारण उत्पन्न होती है। जो हमारी ही कुछ प्रत्याशाओं पर आधारित होते हैं, जैसे कि ‘मुझे हर कार्य में सर्वोत्तम होना चाहिए। इस प्रकार की प्रत्याशाएँ केवल निराश ही करती हैं। हममें से अनेक अपने लक्ष्य तथा अवास्तविक अत्यंत उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिए निर्दयता से स्वयं को प्रेरित करते रहते हैं।
सामाजिक दबाव-यह उन व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न किए जा सकते हैं जो हमारे ऊपर अत्यधिक माँगें थोप देते हैं। यह दबाव तब और बढ़ जाता है जब हमें इस तरह के लोगों के साथ काम करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं जिनके हमें अंतर्वैयक्तिक कठिनाई होती है, एक प्रकार से ‘व्यक्तियों की टकराहट’।
प्रश्न 7. “मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ नकारात्मक संवेग तथा संबद्ध व्यवहार भी अनुषंगी होते हैं।’ इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-मनोवैज्ञानिक दबाव के साथ नकारात्मक संवेग तथा संबद्ध व्यवहार, जैसे-अवसाद, शत्रुता, क्रोध तथा आक्रामकता भी अनुषंगी होते हैं। स्वास्थ्य पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करते समय नकारात्मक सांवेगिक स्थितियां विशेष सरोकार रखती हैं। दीर्घकालिक दबाव में वृद्धि होते रहने से मनोवैज्ञानिक विकारों जैसे-आतंक (पैनिक) दौरे तथा मनोग्रस्त व्यवहार बढ़ जाते हैं। आकुलता से परेशानी इस सीमा तक बढ़ सकती है जो दिल के दौरे तक का भ्रम उत्पन्न कर सकती है। दीर्घकालिक दबाव के दाब में व्यक्ति, अविवेकी भय, मन:स्थिति में आकस्मिक परिवर्तन एवं दुभीति के प्रति प्रवण होते हैं तथा अवसाद, क्रोध तथा उत्तेजनशीलता के दौरे का अनुभव कर सकते हैं। यह नकारात्मक संवेग, प्रतिरक्षक तंत्र के प्रकार्यों से संबद्ध प्रतीत होता है। अपने संसार की व्याख्या करने की योग्यता तथा उस व्याख्या को अपने वैयक्तिक अर्थ तथा संवेगें से जोड़ने का हमारे शरीर पर प्रत्यक्ष एवं प्रबल प्रभाव पड़ता है। नकारात्मक मन:स्थिति दुर्बल स्वास्थ्य परिणामों से संबद्ध पाई गई है। निराशा की भावनाओं का संबंध रोगों के और बिगड़ने से, चोट के जोखिम में वृद्धि तथा विभिन्न कारणों से मृत्यु से संबद्ध होता है।
प्रश्न 8. जैवप्रतिप्राप्ति तकनीक क्या है ?
में अंतरित करना।
उत्तर-जैवप्रतिप्राप्ति या बायोफीडबैक तकनीक वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दवाव के शरीरक्रियात्मक पक्षों का परिवीक्षण कर उन्हें कम करने के लिए फीडबैक दिया जाता है कि व्यक्ति में वर्तमानकालिक शरीर क्रियाएँ क्या हो रही हैं। प्राय: इसके साथ विश्रांत परीक्षण का भी उपयोग किया जाता है। जैवप्रतिप्राप्ति प्रशिक्षण में तीन अवस्थाएँ होती हैं-किसी विशिष्ट शरीरक्रियात्मक अनुक्रिया, जैसे हृदयगति के प्रति जागरुकता विकसित करना, उस शरीर क्रियात्मक
अनुक्रिया को शांत व्यवस्था में नियत्रित करने के उपाय सीखना तथा उस नियंत्रण को सामान्य दैनिक जीवन में अंतरित करना।
प्रश्न 9. सविवेक चिंतन द्वारा जीवन की चुनौतियों का सामना किस प्रकार कारक  हैं ? संक्षेप में वर्णन कीजिए
उत्तर-सविवेक चिंतन-दबाव-संबंधी अनेक समस्याएँ विकृत चिंतन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। हमारे चिंतन और अनुभव करने के तरीकों में घनिष्ठ संबंध होता है। जब हम दबाव का अनुभव करते हैं तो हमें अंत:निर्मित वर्णात्मक अभिनति होती है जिससे हमारा ध्यान भूतकाल के नकारात्मक विचारों तथा प्रतिमाओं पर केन्द्रित हो जाता है, जो हमारे वर्तमान तथा
भविष्य के प्रत्यक्षण को प्रभावित करता है। सविवेक चिंतन के कुछ नियम इस प्रकार हैं-अपने विकृत चिंतन तथा विवेकी विश्वासों को चुनौती देना, संभावित अंतर्वेधी नकारात्मक दुश्चिता-उत्तेजक विचारों को मन से निकालना तथा सकारात्मक कथन करना।
प्रश्न 10. असहायक आदतों पर किस प्रकार विजय पाकर दवाय को कम कर सकते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-असहायक आदतों पर विजयी होना-असहायक आदतें, जैसे-पूर्णतावाद, परिहार, विलंबन या टालना इत्यादि ऐसी युक्तियाँ हैं जो अल्पकाल तक तो सामना करने में सहायक हो सकती हैं किन्तु वे व्यक्ति को दबाव के समक्ष अधिक असुरक्षित बना देती हैं। पूर्णतावाद वे व्यक्ति होते हैं जिन्हें सब कुछ बिल्कुल सही चाहिए। उन्हें इस प्रकार के कारकों जैसे-उपलव्य समय, कार्य बंद न करने के परिणामों तथा प्रयास जो अपेक्षित हैं, के स्तरों को परिवर्तित करने में कठिनाई
होती है। उनके तनावग्रस्त होने की संभावना अधिक होती है तथा वे विश्राम करने में कठिनाई अनुभव करते हैं, स्वयं अपनी तथा दूसरों की आलोचना करते रहते हैं, तथा चुनौतियों का परिहार करने की ओर उनका झुकाव होता है। परिहार का अर्थ है, समस्या को स्वीकार या सामना करने से नकारना तथा उसे जैसे, कालीन के नीचे समेट देना। विलंबन का अर्थ है, जो जरूरी कार्य हमें करना ही है उसमें विलंब करते जाना। हम सभी यह करने के दोषी हैं कि “मैं इसे बाद में करूंगा/करूंगी” वे व्यक्ति जो स्वभावतः कार्यों को टलते हैं, वे जानबूझकर अपने असफलता भय
या अस्वीकृति का सामना करने से परिहार करते हैं।
प्रश्न 11. सकारात्मक चिंतन से आपका क्या तात्पर्य है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-सकारात्मक चिंतन-सकारात्मक चिंतन की शक्ति, दबाव का सामना करने तथा उसे कम करने में अधिकाधिक मानी जा रही है। आशावाद, जो कि जीवन में अनुकूल परिणामों की प्रत्याशा करने के प्रति झुकाव है, को मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक कुशल-क्षेम से संबंधित किया गया है। व्यक्ति जिस प्रकार दबाव का सामना करते हैं, उसमें भिन्नता होती है। उदाहरण के लिए, आशावादी यह मानते हैं कि विपत्ति का सफलतापूर्वक सामना किया जा सकता है जबकि
निराशावादी घोर संकट या अनर्थ की ही प्रत्याशा करते हैं। आशावादी समस्या-केन्द्रित सामना करने की युक्तियों का अधिक उपयोग करते हैं तथा दूसरों से सलाह और सहायता मांगते हैं। निराशावादी समस्या या दवाव के स्रोतों की उपेक्षा करते हैं और इस प्रकार युक्तियों का उपयोग करते हैं; जैसे-उस लक्ष्य को ही त्याग देना जिसमें दबाव के कारण बाधा पड़ रही है या कि दवाव विद्यमान भी है।
प्रश्न 12. सकारात्मक स्वास्थ्य पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-सकारात्मक स्वास्थ्य-ऐसे कारक अनेक हैं जो सकारात्मक स्वास्थ्य के विकास को सुकर या सुसाध्य बनाते हैं। पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक कुशल-क्षेम की अवस्था ही स्वास्थ्य है न कि केवल रोग अथवा अशक्तता का अभाव सकारात्मक स्वास्थ के अंतर्गत निम्नलिखित निर्मितियाँ आती हैं-“स्वस्थ शरीर उच्च गुणवत्ता वाले व्यक्तिगत संबंध जीवन में उद्देश्य का बोध आत्मसम्मान, जीवन के कृत्यों में प्रवीणता दबाव, अभिघात एवं परिवर्तन
के प्रति स्थिति स्थापना।” विशेष रूप से जो कारक दबाव के प्रतिरोध का कार्य करते हैं तथा सकारात्मक स्वास्थ्य को सुकर बनाते हैं, वे हैं आहार, व्यायाम, सकारात्मक अभिवृत्ति, सकारात्मक चिंतन तथा सामाजिक अवलंब।
प्रश्न 13. आहार तथा दबाव के संबंध पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-संतुलित आहार व्यक्ति की मन:स्थिति को ठीक कर सकता है, कर्जा प्रदान कर सकता है, पेशियों का पोषण कर सकता है, परिसंचरण को समुन्नत कर सकता है, रोगों से रक्षा कर सकता है, प्रतिरक्षक तंत्र को सशक्त बना सकता है तथा व्यक्ति को अधिक अच्छा अनुभव करा सकता है जिससे वह जीवन में दबावों का सामना और अच्छी तरह से कर सके स्वास्थ्यकर जीवन की कुंजी है, दिन में तीन बार संतुलित और विविध आहार का सेवन करना। किसी व्यक्ति के कितने पोषण की आवश्यकता है, यह व्यक्ति की सक्रियता स्तर, आनुवंशिक प्रकृति, जलवायु ओर
स्वास्थ्य के इतिहास पर निर्भर करता है। कोई व्यक्ति क्या भोजन करता है तथा उसका वजन कितना
है, जिसमें व्यवहारात्मक प्रक्रियाएं निहित होती हैं। कुछ व्यक्ति पौष्टिक आहार तथा वजन का रख-रखाव सफलतापूर्वक कर पाते हैं किन्तु कुछ अन्य व्यक्ति मोटापे के शिकार हो जाते हैं। जब हम दबावग्रस्त होते हैं तो हम ‘आराम देनेवाले भोजन’ जिसमें प्राय: अधिक वसा, नमक तथा चीनी होती है, का सेवन करना चाहते हैं।
प्रश्न 14. सकारात्मक अभिवृत्ति से आपका क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-सकारात्मक अभिवृत्ति-सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम सकारात्मक अभिवृत्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सकारात्मक अभिवृयत्ति की ओर ले जानेवाले कुछ कारक इस प्रकार हैं-वास्तविकता का सही प्रत्यक्षण; जीवन में उद्देश्य तथा उत्तरदायित्व की भावना का होना; दूसरे व्यक्तियों के भिन्न दृष्टिकोणों के प्रति स्वीकृति एवं सहिष्णुता का होना तथा सफलता के लिए श्रेय एवं असफलता के लिए दोष भी स्वीकार करना। अंत में, नए विचारों के लिए खुलापन तथा विनोदी स्वभाव, जिससे व्यक्ति स्वयं अपने ऊपर भी हंस सके, हमें ध्यान केन्द्रित करने तथा चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देख सकने में सहायता करते हैं।
प्रश्न 15. विभिन्न सामाजिक अवलंब पर संक्षिप्त में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-विभिन्न सामाजिक अवलंब निम्नलिखित हैं-
(i) मूर्त अवलंब-इसके रूप में अर्थात् महत्त्वपूर्ण साधनों, जैसे-धन, वस्तु, सेवा इत्या की सहायता के द्वारा हो सकता है। उदाहरण के लिए, कोई बालक अपने मित्र को अपनी का के नोट्स इसलिए दे देता है क्योंक वह बीमारी के कारण विद्यालय से अनुपस्थित था।
(ii) सूचनात्मक अवलंब-परिवार तथा मित्र दबावपूर्ण घटनाओं के बारे में सूचनात्मा अवलंब प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, एक विद्यार्थी, जिसे बोर्ड की एक कठिन परीक्षा देनी है, जो एक दबावपूर्ण घटना है, को यदि उसका कोई मित्र जो इस प्रकार की परीक्षा दे चुका है
उसे परीक्षा-संबंधी सूचनाएँ देता है, तो वह न केवल उसमें निहित बिल्कुल ठीक प्रक्रिया को जान
लेगा बल्कि वह उसे यह निर्धारित करने में भी सहायता करेगा कि इस परीक्षा में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने के लिए कौन-कौन-से संसाधन एवं सामना करने के लिए कौन-सी युक्तियाँ उपयोगी होंगी।
(iii) सांवेगिक अवलंब-दबाव के समय कोई व्यक्ति दु:ख, दुश्चिता तथा आत्म-सम्मान में क्षति का अनुभव कर सकता है। ऐसे समय में सहायक मित्र तथा परिवार सांवेगिक अवलंब (Emotional support) उपलब्ध करा सकते हैं यदि वे उसे आश्वस्त करा सकें कि वह उनका प्रिय है, उनके लिए मूल्यवान है तथा उसकी उन्हें परवाह है।
प्रश्न 16. उन पर्यावरणी कारकों का वर्णन कीजिए जो (अ) हमारे ऊपर सकारात्मक
प्रभाव तथा (ब) नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
उत्तर-विभिन्न पर्यावरणी कारक हमारे ऊपर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं जबकि ऐसे भी
पर्यावरणी कारक हैं जो हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, ग्रीष्मकाल की गर्मी, शीतकाल की सर्दी इत्यादि आदि पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्राय: अपरिहार्य होती हैं। इनका हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। कुछ पर्यावरणी दबाव प्राकृतिक विपदाएँ तथा विपाती घटनाएँ हैं और उनका हमारे ऊपर लंबे अंतराल तक नकारात्मक प्रभाव रहता है। आग, भूकंप, बाढ़, सूखा, तूफान, सुनामी आदि इनमें शामिल हैं।
प्रश्न 17. तनाव के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-तनाव के कई प्रकार होते हैं, जिससे व्यक्ति को प्रतिदिन सामना करना पड़ता है। इन सभी तनावों को उनके क्षेत्र के आधार पर तीन मुख्य प्रकारों में बाँटा जा सकता है-पर्यावरणीय तनाव, सामाजिक तनाव तथा मनोवैज्ञानिक तनाव। पर्यावरणीय तनाव पर्यावरणीय विसंतुलन से उत्पन्न होता है, जैसे बाढ़, आग, भूकंप आदि से उत्पन्न तनाव। सामाजिक तनाव से तात्पर्य एक-दूसरे के साथ अंत:क्रिया से उत्पन्न तनाव से होता है। जैसे परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु या बीमारी, विवाह-विच्छेद, अलगाव, पड़ोसियों से अनबन आदि से उत्पन्न तनाव। मनोवैज्ञानिक
तनाव से तात्पर्य मन द्वारा उत्पन्न तनाव से होता है, जैसे-कुण्ठा, द्वंद्व तथा दबाव आदि मनोवैज्ञानिक
तनाव के प्रमुख स्रोत हैं।
प्रश्न 18. भौतिक दबाव किसे कहते हैं ?
उत्तर-भौतिक दबाव वे माँगें हैं, जिसके कारण हमारी शारीरिक दशा में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। हम तनाव का अनुभव करते हैं जब हम शारीरिक रूप से अधिक परिश्रम करते हैं, पौष्टिक भोजन की कमी हो जाती है, कोई चोट लग जाती है या निद्रा कम हो जाती है।
प्रश्न 19. प्राथमिक समूह तथा गौण समूह में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर -कूले द्वारा किया गया समूह विभाजन अधिक संतोषप्रद है। दोनों समूहों में निम्नांकित अंतर पाया जाता है-
प्राथमिक समूह का आकार छोटा होता है जैसे-परिवार; जबकि गौण समूह का आकार बड़ा
होता है। जैसे-राजनीतिक दल।
प्राथमिक समूह के सदस्यों में औपचारिकता नहीं होती है या कम होती है; जबकि गौण समूह के सदस्यों में औपचारिकता अधिक होती है।
प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठ पारस्परिक संबंध होता है; जबकि गौण समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठ पारस्परिक संबंध नहीं होता है।
प्राथमिक समूह छोटा होता है, अत: इसके सदस्यों में आमने-सामने का संबंध होता है; जबकि गौण समूह का आकार बड़ा होता है, अत: इसके सदस्यों में आमने-सामने का संबंध नहीं होता है।
                 दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
              (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. दबाव शब्द से आपका क्या तात्पर्य है ? दबाव की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-दबाव के अंग्रेजी भाषा के शब्द स्ट्रेस (Stress) की व्युत्पत्ति, लैटिन शब्द ‘स्ट्रिक्टस’ (Strictus) जिसका अर्थ है तंग या संकीर्ण, तथा ‘स्ट्रिनगर’ (Stringer) जो क्रियापद है, जिसका अर्थ है कसना, से हुई है। यह मूल शब्द अनेक व्यक्तियों द्वारा दबाव अवस्था में वर्णित मांसपेशियों तथा श्वसन की कसावट तथा संकुचन की आंतरिक भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है। प्रायः दबाव को पर्यावरण की उन विशेषताओं के द्वारा भी समझाया जाता है जो व्यक्ति के लिए विघटनकारी होती हैं। दबावकारक वे घटनाएँ हैं जो हमारे शरीर में दबाव उत्पन्न करती हैं। ये शोर, भीड़, खराब संबंध या रोज स्कूल अथवा दफ्तर जाने की घटनाएं हो सकती हैं।
दबाव कारण तथा प्रभाव दोनों से संबद्ध हो गया है तथापि दबाव का यह दृष्टिकोण भ्रांति उत्पन्न कर सकता है। हेंस सेल्ये (Hans Selye), जो आधुनिक दबाव शोध के जनक कहे जाते हैं, ने दबाव को इस प्रकार परिभाषित किया है कि यह “किसी भी मांग के प्रति शरीर की अविशिष्ट अनुक्रिया है’ अर्थात् खतरे का कारण चाहे जो भी हो व्यक्ति प्रतिक्रियाओं के समान
शरीरक्रियात्मक प्रतिरूप से अनुक्रिया करेगा। अनेक शोधकर्ता इस परिभाषा से सहमत नहीं हैं क्योंकि उनका अनुभव है कि दबाव के प्रति अनुक्रिया उतनी सामान्य तथा अविशिष्ट नहीं होती है जितना सेल्ये का मत है। भिन्न-भिन्न दबावकारक दबाव प्रतिक्रिया के भिन्न-भिन्न प्रतिरूप उत्पन्न कर सकते हैं एवं भिन्न व्यक्तियों की अनुक्रियाएं विशिष्ट प्रकार की हो सकती हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति परिस्थिति को अपनी दृष्टि से देखेगा और मांगों तथा उनका सामना करने की
हमारी क्षमता का प्रत्यक्षण ही यह निर्धारित करेगा कि हम दबाव महसूस कर रहे हैं अथवा नहीं।
 दबाव कोई ऐसा घटक नहीं है जो व्यक्ति के भीतर या पर्यावरण में पाया जाता है। इसके बजाय, यह एक सतत चलनेवाली प्रक्रिया में सन्निहित है जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरणों में कार्य संपादन करता है। इन संघर्षों का मूल्यांकन करता है तथा उनसे उत्पन्न होनेवाली विभिन्न समस्याओं का सामना करने का प्रयास करता है। दबाव एक गत्यात्मक मानसिक/संज्ञानात्मक अवस्था है। वह समस्थिति को विघटित करता है या एक ऐसा असंतुलन उत्पन्न करता है जिसके कारण उस असंतुलन के समाधान अथवा समस्थिति को पुन:स्थापित करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
चित्र : दबाव का मनोवैज्ञानिक अर्थ
प्रश्न 2. दबावकारक की प्रक्रिया को एक मॉडल द्वारा समझाइए।
उत्तर-दबाव का प्रत्यक्षण व्यक्ति द्वारा घटनाओं के संज्ञानात्मक मूल्यांकन तथा उनसे निपटने के लिए उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर करता है। दबावपूर्ण परिस्थिति के प्रति एक व्यक्ति की अनुक्रिया बहुत सीमा तक घटनाओं के प्रत्यक्षण तथा उनकी व्याख्या या मूल्यांकन पर निर्भर करती है।
     
चित्र : दबावकारक की प्रक्रिया का एक सामान्य मॉडल
प्रश्न 3. दबाव के लक्षणों तथा स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-दबाव के कारण-हर व्यक्ति की दबाव के प्रति अनुक्रिया उसके व्यक्तित्व पालन-पोषण तथा जीवन के अनुभवों के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। प्रत्येक व्यक्ति के दबाव अनुक्रियाओं के अलग-अलग प्रतिरूप होते हैं। अतः, चेतावनी देनेवाले संकेत तथा उनकी तीव्रता भी भिन्न-भिन्न होती है। हममें कुछ व्यक्ति अपनी दबाव अनुक्रियाओं को पहचानते हैं तथा अपने
लक्षणों की गंभीरता तथा प्रकृति के आधार पर अथवा व्यवहार में परिवर्तन के आधार पर समस्या की गहनता का आकलन कर लेते हैं। दबाव के ये लक्षण शारीरिक, संवेगात्मक तथा व्यवहारात्मक होते हैं। कोई भी लक्षण दबाव की प्रबलता को ज्ञापित कर सकता है, जिसका यदि निराकरण न किया जाए तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
दबाव के स्रोत-दबाव के निम्नलिखित स्रोत हो सकते हैं-
i) जीवन घटनाएं-जब से हम पैदा होते हैं, तभी से बड़े और छोटे, एकाएक उत्पन होनेवाले और धीरे-धीरे घटित होनेवाले परिवर्तन हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। हम छोटे तथा दैनिक होनेवाले परिवर्तनों का सामना करना तो सीख लेते हैं किन्तु जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं दबावपूर्ण हो सकती हैं। क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को बाधित करती हैं और उथल-पुथल मचा देती हैं। यदि इस प्रकार की कई घटनाएँ चाहे वे योजनाबद्ध हो (जैसे-घर बदलकर नए घर में जाना) या पूर्वानुमानित न हों (जैसे-किसी दीर्घकालिक संबंध का टूट जाना) कम समय अवधि में घटित होती हैं, तो हमें उनका सामना करने में कठिनाई होती है तथा हम दवाव के लक्षणों के प्रति अधिक प्रवण होते हैं।
(II) परेशान करनेवाली घटनाएं-इस प्रकार के दबावों की प्रकृति होती है, जो अपने दैनिक जीवन में घटनेवाली घटनाओं के कारण बनी रहती है। कोलाहलपूर्ण परिवेश, प्रतिदिन का आना-जाना, झगड़ालू पड़ोसी, बिजली-पानी की कमी, यातायात की भीड़-भाड़ इत्यादि ऐसी कष्टप्रद घटनाएँ हैं। एक गृहस्वामिनी को भी अनेक ऐसी आकस्मिक कष्टप्रद घटनाओं का अनुभव करना पड़ता है। कुछ व्यवसायों में ऐसी परेशान करनेवाली घटनाओं का सामना बारंबार करना पड़ता है। कभी-कभी ऐसी परेशानियों का बहुत तबाहीपूर्ण परिणाम उस व्यक्ति के लिए होता है जो उन घटनाओं का सामना करता है क्योंकि बाहरी दूसरे व्यक्तियों को इन परेशानियों की जानकारी
भी नहीं होती। जो व्यक्ति इन परेशानियों के कारण जितना ही अधिक दबाव अनुभव करता है उतना ही अधिक उसका मनोवैज्ञानिक कुशल-क्षेम निम्न स्तर का होता है।
(iii) अभिघातज घटनाएं-इनके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की गंभीर घटनाएँ जैसे-अग्निकांड, रेलगाड़ी या सड़क दुर्घटना, लूट, भूकंप, सुनामी इत्यादि सम्मिलित होती हैं। इस प्रकार की घटनाओं का प्रभाव कुछ समय बीत जाने के बाद दिखाई देता है तथा कभी-कभी ये प्रभाव दुश्चिता, अतीतावलोकन, स्वप्न तथा अंतर्वेधी विचार इत्यादि के रूप में सतत रूप से बने रहते हैं। तीव्र
अभिघातों के कारण संबंधों में भी तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। इनका सामना करने के लिए विशेषताज्ञों
की सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है, विशेष रूप से जब वे घटना के पश्चात् महीनों तक सतत रूप से बने रहें।
प्रश्न 4. दबाव का सामना करने के विभिन्न उपायों की गणना कीजिए।
उत्तर-एंडलर तथा पार्कर ने दबाव का सामना करने के निम्नलिखित उपाय बताए हैं-
(1) कृत्य-अभिविन्यस्त युक्ति-दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएं एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं-यह सब इनके अंतर्गत आते हैं। उसके अंतर्गत प्राथमिकताओं तथा क्रियाओं के संबंध में निर्णय करना भी सम्मिलित होता है ताकि दबावपूर्ण स्थिति का प्रत्यक्ष रूप से सामना किया जा सके। उदाहरण के लिए, मैं अपने लिए बेहतर समय-सारणी बनाऊँ या विचार करूं कि इसके समान
समस्याओं का समाधान मैंने कैसे किया था।
(ii) संवेग-अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत मन में आशा बनाए रखने के प्रयास तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं; कुंठा तथा क्रोध की भावनाओं को अभिव्यक्त करना या फिर यह निर्णय करना कि परिस्थिति को बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है, भी इसके अंतर्गत सम्मिलित हो सकते हैं; उदाहरण के लिए, मैं अपने मन को समझाऊं कि
यह सब कुछ मेरे साथ घटित नहीं हो रहा था या फिर मैं यही चिंता करूं कि मुझे क्या करना है।
(iii) परिहार-अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं। इसमें दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन तथा उनके स्थान पर आत्म-दक्षित विचारों का प्रतिस्थापना भी सम्मिलित होता है।
लेजारस तथा फोकसमैन ने दबाव का सामना करने
का संकल्पना-निर्धारण एक गत्यात्मक प्रक्रिया के रूप में किया है, न कि किसी व्यक्तिगत विशेषक के रूप में
उनके अनुसार, सामना करने की अनुक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-समस्या-केन्द्रित तथा संवेग-केन्द्रित।
(i) समस्या-केन्द्रित युक्तियाँ-समस्या-केन्द्रित युक्तियाँ समस्या पर ही हमला करती हैं, ऐसा वे उन व्यवहारों द्वारा करती हैं जो सूचनाएं एकत्रित करने, घटनाओं को परिवर्तित करने तथा विश्वास और प्रतिबद्धता को परिवर्तित करने के लिए होते हैं। वे व्यक्ति की जागरुकता में वृद्धि करती हैं, ज्ञान के स्तर को बढ़ाती हैं तथा दबाव का सामना करने के संज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक विकल्पों में वृद्धि करती हैं। घटना से उत्पन्न खतरे की अनुभूति को भी घटाने का कार्य वे करती हैं। उदाहरण के लिए, “मैं कार्य करने के लिए एक योजना का निर्माण किया तथा उसका
क्रियान्वयन किया।”
(ii) संवेग-केन्द्रित युक्तियाँ-ये युक्तियां प्रमुखतया मनोवैज्ञानिक परिवर्तन लाने हेतु उपयोग
की जाती हैं जिससे घटना में परिवर्तन लाने का अल्पतम प्रयास करते हुए उसके कारण उत्पन्न होनेवाले संवेगात्मक विघटन के प्रभावों को सीमित किया जा सके। उदाहरण के लिए, “मैंने कुछ
कार्य इसलिए किए कि मेरे भीतर से वह निकल जाए।” यद्यपि जब व्यक्ति के समक्ष दबावपूर्ण
स्थिति उत्पन्न होती है तो समस्या-केन्द्रित तथा संवेग-केन्द्रित दोनों ही सामना करने की युक्तियों
का उपयोग आवश्यक होता है। मगर यह साबित हो चुका है कि व्यक्ति प्रथम प्रकार की युक्तियों
का अपेक्षाकृत अधिक बार उपयोग करते हैं।
प्रश्न 5. मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के प्रभाव :
(i) संवेगात्मक प्रभाव-वे व्यक्ति जो दबावग्रस्त होते हैं। प्रायः आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते हैं, जिसके कारण वे परिवार तथा मित्रों से विमुख हो जाते हैं। कुछ स्थितियों में इसके कारण एक दुश्चक्र प्रारंभ होता है जिससे विश्वास में कमी होती है तथा जिसके कारण फिर और भी गंभीर संवेगात्मक समस्याएँ उत्पन्न होती. हैं। उदाहरण के लिए, दुश्चिता तथा अवसाद की भावनाएं, शारीरिक तनाव में वृद्धि,
मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि तथा आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन।
(ii) शरीर-क्रियात्मक प्रभाव-जब शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दबाव मनुष्य के शरीर पर क्रियाशील होते हैं तो शरीर में कुछ हार्मोन, जैसे-एड्रिनलीन तथा कॉर्टिसोल का स्राव बढ़ जाता है। ये हॉर्मोन हृदयगति, रक्तचाप स्तर, चयापचय तथा शारीरिक क्रिया में विशिष्ट परिवर्तन कर देते हैं। जब हम थोड़े समय के लिए दबावग्रस्त हों तो ये शारीरिक प्रतिक्रियाएँ कुशलतापूर्वक कार्य करने में सहायता करती हैं, किन्तु दीर्घकालिक रूप से यह शरीर को अत्यधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। एपिनेफरीन तथा नॉरएपिनेफरीन छोड़ना, पाचक तंत्र की धीमी गति, फेफड़ों में वायुमार्ग
का विस्तार, हृदयगति में वृद्धि तथा रक्त-वाहिकाओं का सिकुड़ना, इस प्रकार के शरीरक्रियात्मक प्रभावों के उदाहरण हैं।
(iii) संज्ञानात्मक प्रभाव-यदि दबाव के कारण दाब (प्रेशर) निरंतर रूप से बना रहता है तो व्यक्ति मानसिक अतिभार से ग्रस्त हो जाता है। उच्च दबाव के कारण उत्पन्न यह पीड़ा, व्यक्ति में ठोस निर्णय लेने की क्षमता को तेजी से घटा सकती है। घर में, जीविका में अथवा कार्य स्थान में लिए गए गलत निर्णयों के द्वारा तर्क-वितर्क,असफलता, वित्तीय घाटा, यहाँ तक कि नौकरी की क्षति भी इसके परिणामस्वरूप हो सकती है। एकाग्रता में कमी तथा न्यूनीकृत अल्कालिक स्मृति क्षमता भी दबाव के संज्ञानात्मक प्रभाव हो सकते हैं।
(iv) व्यवहारात्मक प्रभाव-दबाव का प्रभाव हमारे व्यवहार पर कम पौष्टिक भोजन करने, उत्तेजित करनेवाले पदार्थों, जैसे केफीन को अधिक सेवन करने एवं सिगरेट, मद्य तथा अन्य औषधियों; जैसे-उपशामकों इत्यादि के अत्यधिक सेवन करने में परिलक्षित होता है। उपशामक औषधियां व्यसन बन सकती हैं तथा उनके अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं; जैसे-एकाग्रता में कठिनाई, समन्वय में कभी तथा घूर्णी या चक्कर आ जाना। दबाव के कुछ ठेठ या प्ररूपी व्यवहारात्यक प्रभाव, निद्रा-प्रतिरूपों में व्याघात, अनुपस्थिता में वृद्धि तथा कार्य निष्पादन में हास है।
प्रश्न 6. उन कारकों का विवेचन कीजिए जो सकरात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम की ओर ले जाते हैं।
उत्तर-अनेक ऐसे कारक हैं जो सकारात्मक स्वास्थ्य के विकास को सुकर या सुसाध्य बनाते हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं-
(i) आहार-संतुलित आहार व्यक्ति की मन:स्थिति को ठीक कर सकता है, ऊर्जा प्रदान कर सकता है, पेशियों का पोषण कर सकता है; परिसंचरण को समुन्नत कर सकता है, रोगों से रक्षा कर सकता है, प्रतिरक्षक तंत्र को सशक्त बना सकता है तथा व्यक्ति को अधिक अच्छा अनुभव करा सकता है, जिससे वह जीवन में दबावों का सामना और अच्छी तरह से कर सके। स्वास्थ्यकर जीवन की कुंजी है, दिन में तीन बार संतुलित और विविध आहार का सेवन करना। किसी व्यक्ति को कितने पोषण की आवश्यकता है, यह व्यक्ति की सक्रियता स्तर, आनुवंशिक प्रकृति, जलवायु
तथा स्वास्थ्य के इतिहास पर निर्भर करता है। कोई व्यक्ति क्या भोजन करता है तथा उसका वजन
कितना है, इसमें व्यवहारात्मक प्रक्रियाएं निहित होती हैं। कुछ व्यक्ति पौष्टिक आहार तथा वजन का रख-रखाव सफलतापूर्वक कर पाते हैं किन्तु कुछ व्यक्ति मोटापे के शिकार हो जाते हैं। जब हम दबावग्रस्त होते हैं तो हम आराम देनेवाले भोजन, जिसमें प्राय: अधिक वसा, नमक तथा चीनी
होती है का सेवन करते हैं।
(iii) व्यायाम-बड़ी संख्या में किए गए अध्ययन शारीरिक स्वास्थ्यता एवं स्वास्थ्य के बीच
सुसंगत सकारात्मक संबंधों की पुष्टि करते हैं। इसके अतिरिक्त, कोई व्यक्ति स्वास्थ्य की समुन्नति के लिए जो उपाय कर सकता है उसमें व्यायाम जीवन शैली में वह परिवर्तन है जिसके व्यापक रूप से लोकप्रिय अनुमोदन प्राप्त है। नियमित व्यायाम वजन तथा दबाव के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, तथा तनाव, दुश्चिता एवं अवसाद को घटाने में सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए जो व्यायाम आवश्यक है, उनमें तनन या खिंचाव वाले व्यायाम, जैसे-दौड़ना, तैरना, साइकिल चलाना इत्यादि आते हैं। जहाँ खिंचाव वाले व्यायाम शांतिदायक प्रभाव डालते हैं, वहाँ वायुजीवी व्यायाम शरीर के भाव-प्रबोधन स्तर को बढ़ाते हैं। व्यायाम
स्वास्थ्य-संबंधी फायदे दबाव प्रतिरोधक के रूप में कार्य करते हैं। अध्ययन प्रदर्शित करते हैं कि
शारीरिक स्वस्थता, व्यक्तियों को सामान्य मानसिक तथा शारीरिक कुशल-क्षेम का अनुभव कराती
है उस समय भी जब जीवन में नकारात्मक घटनाएं घट रही हैं।
(iii) सकारात्मक चिंतन-सकारात्मक चिंतन की शक्ति, दबाव का सामना करने तथा उसे कम करने में अधिकाधिक मानी जा रही है। आशावाद, जो कि जीवन में अनुकूल परिणामों की प्रत्याशा करने के प्रति झुकाव है, को मनोवैज्ञानिक तथा शरीरिक कुशल-क्षेम से संबंधित किया गया है। आशावादी व्यक्ति यह मानते हैं कि विपत्ति का सफलतापूर्वक सामना किया जा सकता है। वे समस्या-केन्द्रित सामना करने का अधिक उपयोग करते हैं तथा दूसरों से सलाह और सहायता
माँगते हैं।
(iv) सकारात्मक अभिवृत्ति-सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम सकारात्मक अभिवृत्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सकारात्मक अभिवृत्ति की ओर ले जानेवाले कुछ कारक इस प्रकार हैं-वास्तविकता का सही प्रत्यक्षण, जीवन में उद्देश्य तथा उत्तरदायित्व की भावना का होना, दूसरे व्यक्तियों के विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति स्वीकृति एवं सहिष्णुता का होना तथा सफलता के लिए श्रेय एवं असफलता के लिए दोष भी स्वीकार करना। अंत में नए विचारों के लिए खुलापन
तथा विनोदी स्वभाव, जिससे व्यक्ति स्वयं अपने ऊपर भी हंस सके, हमें ध्यान केन्द्रित करने तथा चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देख सकने में सहायता करते हैं।
(v) सामाजिक अवलंब-ऐसे व्यक्तियों का अस्तित्व तथा उपलब्धता जिन पर हम विश्वास रख सकते हैं, जो यह स्वीकार करते हैं कि हमारी परवाह है, जिनके लिए हम मूल्यवान हैं तथा जो हमें प्यार करते हैं, यही सामाजिक अवलंब की परिभाषा है। कोई व्यक्ति जो यह विश्वास करता/करती है कि वह संप्रेषण और पारस्परिक आभार के एक सामाजिक जालक्रम का भाग है, वह सामाजिक अवलंब का अनुभव करता/करती है। प्रत्यक्षित अवलंब अर्थात् सामाजिक अवलंब
की गुणवत्ता स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम से सकारात्मक रूप से संबद्ध है, जबकि सामाजिक जालक्रम अर्थात् सामाजिक अवलंब की मात्रा कुशल-क्षेम से संबद्ध नहीं है क्योंकि एक बड़े सामाजिक जालक्रम को बनाए रखना अत्यधिक समय लेनेवाला तथा व्यक्ति पर मांगों का दाब डालनेवाला होता है। अध्ययन प्रदर्शित करते हैं कि वे महिलाएं जो दबावपूर्ण जीवन घटनाओं का
अनुभव करती हैं, उनका यदि कोई अंतरंग मित्र था तो गर्भावस्था के दौरान वे कम अवसादग्रस्त थीं तथा उन्हें कम चिकित्सा जटिलताओं का सामना करना पड़ा। सामाजिक अवलंब दबाव के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है। वे व्यक्ति जिन्हें परिवार तथा मित्रों से अधिक सामाजिक उपलब्ध होता है, दबाव का अनुभव होने पर, कम तनाव महसूस करते हैं तथा वे दबाव का सामना अधिक सफलतापूर्वक कर सकते हैं।
प्रश्न 7. विभिन्न जीवन कौशलों का वर्णन कीजिए। इन जीवन कौशलों से जीवन की चुनौतियों का सामना करने में किस प्रकार मदद मिलती है ?
उत्तर-निम्नलिखित जीवन कौशलों द्वारा जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलती है-
(i) आग्रहिता-आग्रहिता एक ऐसा व्यवहार या कौशल है जो हमारी भावनाओं, आवश्यकताओं,
इच्छाओं तथा विचारों के सुस्पष्ट तथा विश्वासपूर्ण संप्रेषण में सहायक होता है। यह ऐसी योग्यता
है कि जिसके द्वारा किसी के निवेदन को अस्वीकार करना, किसी विशेष पर बिना आत्मचेतन के
अपने मत को अभिव्यक्त करना या फिर खुलकर ऐसे संवेगों; जैसे-प्रेम, क्रोध इत्यादि को अभिव्यक्त करना संभव होता है। यदि कोई आग्रही हैं तो उसमें उच्च आत्म-विश्वास एवं आत्म-सम्मान तथा अपनी अस्मिता की एक अटूट भावना होती है।
(ii) समय प्रबंधन-कोई अपना समय जैसे व्यतीत करता है वह उसके जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है। समय का प्रबंधन तथा प्रत्यायोजित करना सीखने से, दबाव मुक्त होने में
सहायता मिल सकती है। समय दबाव कम करने का एक प्रमुख तरीका, समय के प्रत्यक्षण में परिवर्तन लाना है। समय प्रबंधन का प्रमुख नियम यह है कि हम जिन कार्यों को महत्त्व देते। उनका परिपालन करने में समय लगाएं या उन कार्यों को करने में जो हमारे लक्ष्य प्राप्ति में सहायक हों। हमें अपने जानकारियों की वास्तविकता का बोध हो तथा कार्य को निश्चित समयावधि में करें। यह स्पष्ट होना चाहिए कि हम क्या करना चाहते हैं तथा हम अपने जीवन में इन दोनों बातों में सामंजस्य स्थापित कर सकें, इन पर समय प्रबंधन निर्भर करता है।
(iii) सविवेक चिंतन-दबाव-संबंधी अनेक समस्याएँ विकृत चिंतन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। व्यक्ति के चिंतन और अनुभव करने के तरीकों में घनिष्ठ संबंध होता है। जब हम दबाव का अनुभव करते हैं तो हमें अंत:निर्मित वर्णात्मक अभिनति होती है जिससे हमारा ध्यान भूतकाल के नकारात्मक विचारों तथा प्रतिमाओं पर केन्द्रित हो जाता है, जो हमारे वर्तमान तथा भविष्य के प्रत्यक्षण को प्रभावित करता है सविवेक चिंतन के कुछ नियम इस प्रकार हैं-अपने विकृत चिंतन तथा अविवेकी विश्वासों को चुनौती देना, संभावित अंतर्वेधी दुश्चिता उत्तेजक विचार
को मन से निकालना तथा सकारात्मक कथन करना।
(iv) संबंधों में सुधार-संप्रेषण सुदृढ़ और स्थायी संबंधों की कुंजी है। इसके अंतर्गत तीन अत्यावश्यक कौशल निहित हैं-सुनना कि दूसरा व्यक्ति क्या कह रहा है, अभिव्यक्त करना कि कोई कैसा सोचता है और महसूस करता है तथा दूसरों की भावनाओं और मतों को स्वीकारन चाहे वे स्वयं उसके अपने से भिन्न हों। इसमें हमें अनुचित ईर्ष्या और नाराजगीयुक्त व्यवहार से दूर रहने की जरूरत होती है।
(v) स्वयं की देखभाल-यदि हम स्वयं को स्वस्थ, दुरूस्त तथा विश्रांत रखते हैं तो हमें
दैनिक जीवन के दबावों का सामना करने के लिए शारीरिक एवं सांवेगिक रूप से और अच्छी तरह तैयार रहते हैं। हमारे श्वसन का प्रारूप हमारी मानसिक तथा सांवेगिक स्थिति को परिलक्षित करता है जब हम दबावग्रस्त अथवा दुश्चितित होते हैं तो हमारा श्वसन और तेज हो जाता है, जिसके बीच-बीच में अक्सर आहे भी निकलती रहती हैं। सबसे अधिक विश्रांत श्वसन मंद, मध्यपट या डायाफ्रम, अर्थात् सीना और उदर गुहिका के बीच एवं गुंबदकार पेशी से उदर-केन्द्रित श्वसन होता है। पर्यावरणी दबाव, जैसे-शोर, प्रदूषण, दिक् प्रकार, वर्ण इत्यादि सब हमारी क्षमता तथा कुशल-क्षेम पर पड़ता है।
प्रश्न 8. प्रतिरक्षक तंत्र को दबाव कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-दबाव के कारण प्रतिरक्षक तंत्र की कार्यप्रणाली दुर्बल हो जाती है जिसके कारण बीमारी उत्पन्न हो सकती है। प्रतिरक्षक तंत्र शरीर के भीतर तथा बाहर से होनेवाले हमलों से शरीर की रक्षा करता है। मनस्तत्रिका प्रतिरक्षा विज्ञान (Psychoneuroimmunology) मन, मस्तिष्क
और प्रतिरक्षक तंत्र के बीच संबंधों पर ध्यान केन्द्रित करता है। यह प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करता है। प्रतिरक्षक तंत्र में श्वेत रक्त कोशिकाएं या श्वेताणु (Antibodies) बाह्य तत्त्वों (एंटीजेन), जैसे वाइरस को पहचान कर नष्ट करता है। इनके द्वारा रोगप्रतिकारकों (Antibodies) का निर्माण भी होता है। प्रतिरक्षक तंत्र में ही टी-कोशिकाएँ, बी-कोशिकाएँ तथा प्राकृतिक रूप से नष्ट करनेवाली कोशिकाओं सहित कई प्रकार के श्वेताणु होते हैं। टी-कोशिकार हमला करनेवाली को नष्ट करती हैं, तथा टी-सहायक कोशिकाएँ प्रतिरक्षात्मक क्रियाओं में वृद्धि
करती हैं। इन्हीं टी-सहायक कोशिकाओं पर ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वाइरस (एच० आई० वी०)
हमला करते हैं, जो कि एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) के कारक हैं।
बी-कोशिकाएँ रोगप्रतिकारकों का निर्माण करती हैं। प्राकृतिक रूप से नष्ट करनेवाली कोशिकाएँ वाइरस तथा अर्बुद या ट्यूमर दोनों के विरुद्ध लड़ाई करती हैं।
दबाव के कारण प्राकृतिक रूप के नष्ट करनेवाली कोशिकाओं की कोशिका-विषाक्तता प्रभावित हो सकती है, जो प्रमुख संक्रमणों तथा कैंसर से रक्षा में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। अत्यधिक उच्च दबाव से ग्रस्त व्यक्तियों में, प्राकृतिक रूप से नष्ट करनेवाली कोशिकाओं की कोशिका-विषाक्त में भारी कमी पाई गई है। यह उन विद्यार्थियों, जो महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं में बैठने जा रहे हैं, शोकसंतप्त व्यक्तियों तथा जो गंभीर रूप से अवसादग्रस्त हैं, में भी पाई गई हैं। अध्ययन
यह प्रदर्शित करते हैं कि प्रतिरक्षक तंत्र की क्रियाशीलता उन व्यक्तियों में बेहतर पाई जाती है जिन्हें सामाजिक अवलंब उपलब्ध रहती है। इसके अतिरिक्त प्रतिरक्षक तंत्र में परिवर्तन उन व्यक्तियों के
स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करता है जिसका प्रतिरक्षक तंत्र पहले से ही दुर्बल हो चुका है।
नकारात्मक संवेगों सहित, दबाव हॉमोन का स्राव होना जिनके द्वारा प्रतिरक्षक तंत्र दुर्बल होता है,
जिसके परिणामस्वरूप मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं।
चित्र : दवाव का बीमारी से संबंध
प्रश्न 9. किसी ऐसी जीवन घटना का उदाहरण दीजिए जो दबावपूर्ण हो सकती है। उन तथ्यों पर प्रकाश डालिए जिनके कारण वह घटना अनुभव करनेवाले व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा में दबाव उत्पन्न कर सकती है?
उत्तर-अग्निकांड, रेलगाड़ी दुर्घटना आदि जीवन की ऐसी घटनाएं हैं जो दवावपूर्ण हो सकती हैं। व्यक्ति जिन दबावों का अनुभव करते हैं, वे तीव्रता, अवधि, जटिलता तथा भविष्यकथनीयता में भिन्न हो सकती है। किसी दबाव का परिणाम इस पर किसी विशिष्ट दबावपूर्ण अनुभव का स्थान क्या है। प्रायः वे दवाव, जो अधिक तीव दीर्घकालिक या पुराने, जटिल तथा अप्रत्याशित होते हैं, वे अधिक नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करते हैं, बजाय उनके जो कम तीव्र, अल्पकालिक कम जटिल तथा प्रत्याशित होते हैं। किसी व्यक्ति द्वारा दबाव का अनुभव करना उसके
शरीरक्रियात्मक बल पर भी निर्भर करता है। अत:, वे व्यक्ति जिनका शारीरिक स्वास्थ्य खराब है तथा दुर्बल शारीरिक गठन के हैं, उन व्यक्तियों की अपेक्षा, जो अच्छे स्वास्थ्य तथा बलिष्ठ शारीरिक गठनवाले हैं, दबाव के समक्ष अधिक असुरक्षित होंगे।
कुछ मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ; जैसे-मानसिक स्वास्थ्य, स्वभाव तथा स्व-संप्रत्यय भी दबाव के लिए प्रासंगिक हैं। वह सांस्कृतिक संदर्भ जिसमें हम जीवन-यापन करते हैं किसी भी घटना
के अर्थ का निर्धारण करता है तथा यह भी निर्धारित करता है कि विभिन्न परिस्थितियों में किस प्रकार की अनुक्रियाएँ अपेक्षित होती हैं। अंतत: दबाव के अनुभव, किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध संसाधन; जैसे-धन, सामाजिक कौशल, सामना करने की शैली, अवलंब का नेटवर्क इत्यादि द्वारा निर्धारित होते हैं। ये सारे कारक निर्धारित करते हैं कि किसी विशिष्ट दबावपूर्ण परिस्थिति का मूल्यांकन कैसे होगा।
प्रश्न 10. दबाव का सामना करनेवाली युक्तियों की अपनी जानकारी के आधार पर आप अपने मित्रों को दैनिक जीवन में दबाव का परिहार करने के लिए क्यों
देंगे?
उत्तर-मैं अपने मित्र से दबाव के परिहार करने के लिए विभिन्न युक्तियों को अपनाने के लिए कहूंगा। दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएं एकत्रित करके उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएं हो सकती हैं तथा उनके क्या परिणाम हो सकते हैं उसका अध्ययन करना। फिर मन में विश्वास जगाना तथा आशा को बनाए रखना तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण रखना भी आवश्यक होगा। इनके अतिरिक्त दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन तथा उसके स्थान पर आत्म-रक्षित
विचारों के प्रतिस्थापन के लिए कहूँगा। उससे कहूंगा कि किसी कार्य को करने के लिए एक योजना
बनाए तथा उस योजना के मुताबिक काम करके सफलता प्राप्त करें। इन सबके अतिरिक्त मैं उसे
सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम बनाए रखनेवाले विभिन्न कारकों को भी बताऊंगा जैसे-संतुलित आहार लेना, व्यायाम करना, अपनी सोच को सकारात्मक रखना, अपनी अभिवृत्ति को सकारात्मक रखना आदि शामिल है।
प्रश्न 11. दबाव के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-दबाव मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। ये हैं-
(i) भौतिक एवं पर्यावरणीय दबाव-भौतिक दबाव वे माँगें हैं, जिसके कारण हमारी शारीरिक दशा में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है। हम तनाव का अनुभव करते हैं जब हम शारीरिक
रूप से अधिक परिश्रम करते हैं, पौष्टिक भोजन की कमी हो जाती है, कोई चोट लग जाती है,
या निद्रा की कमी हो जाती है। पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएं होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होती है; जैसे-वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, ग्रीष्मकाल की गर्मी, शीतकाल की सर्दी इत्यादि। एक अन्य प्रकार के पर्यावरणी दबाव प्राकृतिक विपदाएँ तथा विपाती घटनाएँ हैं; जैसे-आग, भूकंप, बाढ़ इत्यादि।
(ii) मनोवैज्ञानिक दबाव-यह वे दबाव हैं जिन्हें हम अपने मन से उत्पन्न करते हैं। ये दबाव
अनुभव करनेवाले व्यक्ति के लिए विशिष्ट होते हैं तथा दबाव के आंतरिक स्रोत होते हैं। हम समस्याओं के बारे में परेशान होते हैं, दुश्चिता करते हैं या अवसादग्रस्त हो जाते हैं। ये सभी केवल दबाव के लक्षण ही नहीं हैं बल्कि यह हमारे लिए दबाव को बढ़ाते भी हैं। मनोवैज्ञानिक दबाव के कुछ प्रमुख स्रोत कुंठा, द्वंद, आंतरिक एवं सामाजिक दबाव इत्यादि हैं।
  जब कोई व्यक्ति या परिस्थिति हमारी आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों को अवरुद्ध करती
है, जो हमारे इष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती है तो कुंठा (Frustration) उत्पन्न होती है।
कुंठा के अनेक कारण हो सकते हैं; जैसे-सामाजिक भेदभाव, अंतर्वैयक्तिक क्षति, स्कूल मे
अंक प्राप्त करना इत्यादि। दो या दो से अधिक असंगत आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों में द्वंद
(Conflict) हो सकता है, जैसे-क्या नृत्य का अध्ययन किया जाए या मनोविज्ञान का। हम अध्ययन
को जारी भी रखनी चाह सकते हैं या नौकरी भी करना चाह सकते हैं। हमारे मूल्यों में भी तब द्वंद हो सकता है जब हमारे ऊपर किसी ऐसे कार्य को करने के लिए दबाव डाला जाए जो हमारे अपने जीवन मूल्यों के विपरीत हो।
(iii) सामाजिक दबाव-ये बाह्यजनित होते हैं तथा दूसरे लोगों के साथ हमारी अंत:क्रियाओं के कारण उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार की सामाजिक घटनाएँ; जैसे-परिवार में किसी की मृत्यु या बीमारी, तनावपूर्ण संबंध, पड़ोसियों से परेशानी, सामाजिक दबाव के कुछ उदाहरण हैं। एक सामाजिक दबाव व्यक्ति-व्यक्ति में बहुत भिन्न होते हैं। यह व्यक्ति जो अपने घर में शाम में शांतिपूर्वक बिताना चाहता है उसके लिए उत्सव या पार्टी में जाना दबावपूर्ण हो सकता है, जबकि किसी बहुत मिलनसार व्यक्ति के लिए शाम को घर बैठे रहना दवावपूर्ण हो सकता है।
प्रश्न 12. हम यह जानते हैं कि कुछ जीवन शैली के कारक दबाव उत्पन्न कर सकते हैं तथा कैंसर तथा हृदयरोग जैसी बीमारियों को भी जन्म दे सकते हैं फिर भी हम अपने व्यवहारों में परिवर्तन क्यों नहीं ला पाते ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-दबाव के कारण अस्वास्थ्यकर जीवन शैली या स्वस्थ्य को नुकसान पहुंचानेवाले व्यवहार उत्पन्न हो सकते हैं। व्यक्ति के निर्णयों तथा व्यवहारों का वह समग्र प्रतिरूप जीवन शैली कहलाता है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है। दवाव से ग्रस्त व्यक्ति रोगजनकों (Pathogens), जो कि शारीरिक रोग उत्पन्न करने के अभिकर्ता होते हैं, के समक्ष अधिक आरक्षित रहते हैं। दबाव से ग्रस्त व्यक्तियों की पौष्टिक भोजन की आदत कम होती
है, वे सोते भी कम हैं, तथा वे स्वास्थ्य के लिए जोखिम वाले व्यवहार, जैसे-धूम्रपान तथा मद्य
दुरुपयोग भी अधिक करते हैं। स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाने वाले ये व्यवहार धीरे-धीरे विकसित होते
हैं तथा अस्थायी रूप से आनंददायक अनुभवों से संबद्ध होते हैं। अपितु, हम उनके दीर्घकालिक
नुकसानों की अनदेखी करते हैं तथा उनके कारण हमारे जीवन में उत्पन्न होनेवाले जोखिम को
कम महत्त्व देते हैं।
 स्वास्थ्यवर्धक व्यवहार जैसे-संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पारिवारिक अवलंब आदि अच्छे स्वास्थ्य में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जीवन शैली से जुड़ाव जिसमें सम्मिलित होते हैं, संतुलित निम्न वसायुक्त आहार, नियमित व्यायाम और सकारात्मक चिंतन के साथ क्या करते हैं।
प्रश्न 13. दबाव प्रबंधन की विभिन्न तकनीकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-दबाव प्रबंधन की विभिन्न तकनीक निम्नलिखित हैं-
(i) विश्रांति की तकनीकें- -यह वे सक्रिय कौशल हैं जिनके द्वारा दबाव के लक्षणों तथा बीमारियों, जैसे-उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग के प्रभावों में कमी की जा सकती है। प्रायः विश्रांति शरीर के निचले भाग से प्रारंभ होती है तथा मुख पेशियों तक इस प्रकार लाई जाती है जिससे संपूर्ण शरीर विश्राम अवस्था में आ जाए। मन को शांति तथा शरीर को विश्राम अवस्था में लाने के लिए गहन श्वसन के साथ पेशी-शिथिलन का उपयोग किया जाता है।
(ii) ध्यान प्रक्रियाएं-योग विधि में ध्यान लगाने की प्रक्रिया में कुछ अधिगम प्रविधियाँ एक निश्चित अनुक्रम में उपयोग में लाई जाती हैं जिससे ध्यान को पुन: केन्द्रित कर चेतना की परिवर्तित स्थिति उत्पन्न की जा सके। इसमें एकाग्रता को इतना पूर्णरूप से केन्द्रित किया जाता है कि ध्यानस्थ व्यक्ति किसी बाह्य उद्दीपन के प्रति अनभिज्ञ हो जाता है तथा वह चेतना की एक भिन्न स्थिति में पहुंच जाता है।
(iii) जैवप्रतिप्राप्ति या बायोफीडबैक-यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दबाव के शरीरक्रियात्मक पक्षों का परिवीक्षण कर उन्हें कमकरने के लिए फीडबैक दिया जाता है कि यदि में वर्तमानकालिक शरीरक्रियाएँ क्या हो रही हैं। प्रायः इसके साथ विश्रांति प्रशिक्षण का भी उपयोग किया जाता है। जैव प्रतिप्राप्ति प्रशिक्षण में तीन अवस्थाएँ होती है-किसी विशिष्ट शरीरक्रियात्मक
अनुक्रिया को शांत व्यवस्था में नियंत्रित करने के उपाय सीखना उस नियंत्रण को सामान्य दैनिक जीवन में अंतरित करना।
(iv) सर्जनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण-दबाव से निपटने के लिए यह एक प्रभावी तकनीक है। सर्जनात्मक मानव-प्रत्यक्षीकरण एक आत्मनिष्ठ अनुभव है जिसमें प्रतिमा तथा कल्पना का उपयोग किया जाता है। मानस-प्रत्यक्षीकरण के पूर्व व्यक्ति को वास्तविकता के अनुकूल एक लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए, यह आत्म-विश्वास के निर्माण में सहायक होता है। यदि व्यक्ति का मन शांत हो, शरीर विश्राम अवस्था में हो तथा आँखें बंद हों तो मानस-प्रत्यक्षीकरण सरल होता
है। ऐसा करने से अवांछित विचारों के हस्तक्षेप में कमी आती है तथा व्यक्ति को वह सर्जनात्मान ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे कि काल्पनिक दृश्य को वास्तविकता में परिवर्तित किया जा सके।
(v) संज्ञानात्मक व्यवहारात्मक तकनीकें-इन तकनीकों का उद्देश्य व्यक्ति को दबाव है विरुद्ध संचारित करना होता है। मीचेनबॉम (Meichenbaum) ने दबाव संचारण प्रशिक्षण(Stress inoculation training) की एक प्रभावी विधि विकसित की है। इस उपागमं का सार
यह है कि व्यक्ति के नकारात्मक तथा सविवेकी विचारों के स्थान पर सकारात्मक तथा सविवेक विचार प्रतिस्थापित कर दिए जाएं। इसके तीन प्रमुख चरण हैं-मूल्यांकन, दबाव न्यूनीकरा तकनीकें तथा अनुप्रयोग एवं अनुवर्ती कार्रवाई। मूल्यांकन के अंतर्गत समस्या की प्रकृति पर परिचर्य करना तथा उसे व्यक्ति/सेवार्थी के दृष्टिकोण से देखना सम्मिलित होते हैं। दबाव न्यूनीकरण के अंतर्गत दबाव कम करनेवाली तकनीकों जैसे-विश्राति तथा आत्म-अनुदेशन को सीखना सम्मिलित होते हैं।
(vi) व्यायाम-दबाव के प्रति अनुक्रिया के बाद अनुभव किए गए शरीरक्रियात्म भाव-प्रबोधन के लिए व्यायाम एक सक्रिय निर्गम-मार्ग प्रदान कर सकता है। नियमित व्यायाम के द्वारा हृदय की दक्षता में सुधार होता है, फेफड़ों के प्रकार्यों में वृद्धि होती है, रक्तचाप में कामी
होती है, रक्त में वसा की मात्रा घटती है तथा शरीर के प्रतिरक्षक तंत्र में सुधार होता है। तैरन टहलना, दौड़ना, साइकिल चलाना, रस्सी कूदना इत्यादि दबाव को कम करने में सहायक होते हैं प्रत्येक व्यक्ति को सप्ताह में कम-से-कम चार दिन एक साथ 30 मिनट तक इनमें किसी व्यायाम का अभ्यास करना चाहिए। प्रत्येक सत्र में गरमाना, व्यायाम तथा ठंडा या सामान्य होने के चरण अवश्य होने चाहिए।
प्रश्न 14, स्थिति-स्थापन तथा स्वास्थ्य पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-स्थिति-स्थापन एक गत्यात्मक विकासात्मक प्रक्रिया है, जो चुनौतीपूर्ण जीवन-दशाओं में सकारात्मक समायोजन के अनुरक्षण को संदर्भित करता है। दबाव तथा विपत्ति के होते हुए भी उछलकर पुनः अपने स्थान पर पहले के समान वापस आने को स्थिति-स्थापन कहते है। स्थिति-स्थापन का संकल्पना-निर्धारण, आत्म-अर्ध तथा आत्म-विश्वास, स्वायत्तता तथा आत्मनिर्भीता की भावनाओं को अभिव्यक्त करता है, अपने लिए सकारात्मक भूमिका-प्रतिरूप ढूंढना, किसी अंतरंग मित्र को खोजना ऐसे संज्ञानात्मक कौशल विकसित करना, जैसे-समस्या समाधान सर्जनात्मकता, संसाधन-सम्पन्नता तथा नम्यता और यह विश्वास कि मेरी जीवन अर्थपूर्ण है तथा उसका एक उद्देश्य हैं स्थिति-स्थापक व्यक्ति अभिघात के प्रभावों, दबाव तथा विपत्ति पर वजयी होने में सफल होते हैं, एवं मानसिक रूप से स्वस्थ तथा अर्थपूर्ण जीवन व्यतीत करना सीख लेते हैं।
स्थिति स्थापन को तीन संसाधनों के आधार पर हाल ही में परिभाषित किया गया है-मेरे पास हैं (सामाजिक तथा अंतर्वैयक्तिक बल), अर्थात् “मेरे आस-पास मेरे विश्वास पात्र व्यक्ति हैं तथा चाहे कुछ भी हो जाए तो वे मुझसे प्यार करते हैं।” मैं हूँ (आंतरिक शक्ति), अर्थात् “स्वयं अपना तथा दूसरों का सम्मान करता करती हूँ।” मैं समर्थ हूँ (अंतर्वैयक्तिक तथा समस्या समाधान कौशल), अर्थात् “जो भी समस्याएँ” मेरे सम्मुख आएँ, उनका समाधान ढूंढने में मैं सक्षम हूँ।”
किसी बालक को स्थिति स्थापक होने के लिए उसे उपरोक्त में से एक से अधिक शक्तियों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, बालकों को काफी आत्म-सम्मान हो सकता हैं (मैं हूँ), किन्तु हो सकता है कि उनके पास ऐसे व्यक्ति न हों जिससे वह सहायता प्राप्त कर सकें (मेरे पास हैं), तथा उनमें समस्याओं के समाधान की क्षमता न हो (मैं समर्थ हूँ)। ऐसे बालक स्थिति स्थापक नहीं कहे जाएंगे। बालकों पर किए गए अनुदैर्ध्य अध्ययन इस प्रकार के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि निर्धनता तथा अन्य सामाजिक असुविधाओं से उत्पन्न विकट असुरक्षा के उपरांत भी अनेक व्यक्ति योग्य एवं ध्यान रखनेवाले वयस्कों में विकसित हो जाते हैं।

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