Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 1
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 1
BSEB 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 1
प्रश्न 1. व्यापारिक बागानी कृषि की विस्तृत व्याख्या करें।
उत्तर: व्यापारिक बागानी कृषि के रोपण कृषि एक विकसित कृषि-प्रणाली है, जिसमें कृषि की नवीन पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। औद्योगिक प्रबंध के नियमों पर आधारित इस कृषि के सभी फसल निर्यात आधारित होते हैं। उष्ण कटिबंधीय विकासशील देशों में होने वाले इस कृषि में विकासशील देशों के श्रमिक किंतु विकसित देशों की पूँजी लगी है। विस्तृत कृषि भूमि उपलब्ध होने के कारण विश्व के विभिन्न भागों में इस कृषि प्रकार में विविध किंतु किसी एक ही फसल की खेती की जाती है। फलतः इसे ‘एकल कृषि’ प्रकार भी कहा जाता है।
इस कृषि के अंतर्गत थाईलैंड, इंडोनेशिया, भारत, मलेशिया, विषुवतीय अफ्रीकी क्षेत्र, ब्राजील तथा मध्य अमेरिकी देशों में रबड़; ब्राजील, कोलंबिया, जमैका, दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका, दक्षिण-पश्चिम एशिया और भारत में कहवा; विषुवतीय अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका में कोक; दक्षिण एशिया, चीन दक्षिण-पश्चिम एशिया और पूर्वी अफ्रीकी देशों में चाय मुख्य फसल है। भारत, श्रीलंका, मोजांबिक, केन्या और हिंद महासागर के द्वीपीय देशों में मसाले; उष्ण कटिबंधीय तटवर्ती देशों भारत, श्रीलंका और फिलीपींस में नारियल तथा मध्य अमेरिका, केनारी द्वीप तथा दक्षिण एशियाई देशों में केला का प्रमुखता से उत्पादन किया जाता है।
प्रश्न 2. दक्षिण-पश्चिमी एशिया में पेट्रोलियम के वितरण एवं उत्पादन का वर्णन कीजिए।
उत्तर: एशिया महाद्वीप के दक्षिण-पश्चिम में खनिज तेल के विस्तृत भंडार उपलब्ध हैं। विश्व के समस्त खनिज तेल के उत्पादन का 15 प्रतिशत, एशिया के इस भाग से प्राप्त होता है। इस क्षेत्र में इराक, ईरान, कुवैत, बहरीन, सऊदी अरब प्रमुख तेल उत्पादक देश हैं।
- इराक में विश्व का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र (112 किलोमीटर की लम्बाई में) किरकुक से उत्तर में बाबागुरगुर तक फैला है। इस देश से तेल 1,000 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन के द्वारा टर्की होकर भूमध्य सागर के तटवर्ती भागों को भेजा जाता है।
- ईरान के प्रमुख तेल क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम में स्थित है जहाँ मस्जिदे, सुलेमान (28 वर्ग किलोमीटर) तथा दूसरा क्षेत्र 64 किलोमीटर दक्षिण में 88 वर्ग किलोमीटर में फैला है। ईरान के अन्य तेल उत्पादक केन्द्र गचसारन, करमनशाह, आगाजमी, नफ्थसफेद और लाली है।
- सऊदी अरब में खनिज तेल का उत्पादन पश्चिम में दम्माम क्षेत्र में किया जाता है जहाँ से खनिज तेल 40 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन द्वारा बहरीन भेज दिया जाता है। प्रमुख तेल उत्पादन केन्द्र दम्माम, कातिफ, अबाक्वेक, बुक्का मुख्य है।
- कुबैत में बुर्गन की पहाड़ियों में लगभग 1.067 मीटर की गहराई से खनिज तेल निकाला जाता है।
- कतार में दुरबान के क्षेत्र से तेल निकाला जाता है। पाईप लाईन द्वारा तेल उम्मसईद के शोध संस्थान को भेजा जाता है।
- बहरीन-फारस की खाड़ी में स्थित बहरीन द्वीप में खनिज तेल निकाला जाता है।
- संयुक्त अरब अमीरात, आबुधाबी, दुबई, शारजाह में तेल मिलता है।
पाकिस्तान – पंजाब के खौर तथा धुलियन क्षेत्रों से तेल प्राप्त होता है। रावलपिण्डी से 65 किलोमोटर दक्षिण में जोयामेल में भी तेल निकाला जाता है।
भारत – भारत में गुजरात तथा असाम राज्य प्रमुख तेल उत्पादक राज्य हैं। मुम्बई के निकट हाई से भी तेल प्राप्त किया जाता है। अभी हाल में आन्ध्र के गोदावरी डेल्टा में तेल प्राप्त हुआ है। यहाँ 2003-04 में देश में 331 लाख टन तेल का उत्पादन हुआ।
म्यांमार – विश्व के उत्पादन का 1 प्रतिशत खनिज तेल म्यांमार से प्राप्त होता है। इराददी घाटी में तेल कूप खोदे गये हैं।
इण्डोनेशिया – सुमात्रा, कालीमण्टन, जावा आदि द्वीपों से तेल प्राप्त होता है। सुमात्रा के पूर्वी तट पर जम्बी और पैलेमबाग में तेल कूप खोदे गये हैं।
प्रश्न 3. मानव भूगोल की परिभाषा दीजिये तथा उसके अध्ययन के उद्देश्य एवं विषय-क्षेत्र को बताइये।
उत्तर: मानव भूगोल : परिभाषा तथा उद्देश्य :
फ्रांसीसी विद्वान वीडाल-डी-ला-ब्लाश (Vidal-de-la-Blache) के अनुसार, मानव भूगोल पृथ्वी और मानव के पारस्परिक सम्बन्धों को एक नया विचार देता है, जिसमें पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों का तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक सम्बन्धों का अधिक संयुक्त ज्ञान प्राप्त होता है।
जीन ब्रून्श (Jean Brunches) के अनुसार, मानव भूगोल उन सभी तथ्यों का अध्ययन है जो मानव के क्रिया-कलापों से प्रभावित है और जो हमारी पृथ्वी के धरातल पर घटित होने वाली घटनाओं में से छाँटकर एक विशेष श्रेणी में रखे जा सकते हैं।
अमेरिकन भूगोलवेत्ता एल्सवर्थ हंटिंगटन (Ellsworth Huntington) ने मानव भूगोल की परिभाषा इस प्रकार दी है-‘मानव भूगोल भौगोलिक वातावरण और मानव के कार्यकलाप एवं गुणों के पारस्परिक सम्बन्ध के स्वरूप और वितरण का अध्ययन है।’
कुमारी सेम्पुल के अनुसार, ‘मानव भूगोल क्रियाशील मानव व अस्थायी पृथ्वी के परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन है।’
जर्मन विद्वान रेटजेल (Ratzel) के अनुसार, “मानव भूगोल के दृश्य सर्वत्र वातावरण से सम्बन्धित होते हैं, जो स्वयं भौतिक दशाओं का एक योग होता है।”
फ्रांसीसी विद्वान डीमाजियां (Demageon) के अनुसार, मानव भूगोल मानव समुदायों और समाजों के भौतिक वातावरण से सम्बन्धों का अध्ययन है।”
लेबान (Leban) के अनुसार ‘मानव भूगोल एक समष्टि भूगोल है जिसके अन्तर्गत मानव और उसके वातावरण के मध्य के सम्बन्धों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली सामान्य समस्या का स्पष्टीकरण किया जाता है।’
जर्मन विद्वान रेटजेल (Ratzel) को मानव भूगोल का जनक कहा जाता है। उन्होंने सर्वप्रथम 1882 में एन्थ्रोपोज्योग्राफी (Anthropogeography) नामक ग्रन्थ का प्रथम खण्ड प्रकाशित कराया जिसमें उन्होंने मानव और वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन कर भूगोल को एक नया रूप दिया जो आगे चलकर भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा ‘मानव भूगोल’ के रूप में विकसित हुआ। रेटजेल के मतानुसार मानव अपने वातावरण की उपज है और वातावरण की प्राकृतिक शक्तियाँ ही मानव जीवन को ढालती है। दूसरे शब्दों में मानव अपने वातावरण का जीव (Creature of his environment) हैं।
विभिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट है कि मनुष्य के ऊपर वातावरण का प्रभाव पड़ता है। यह मात्र भौगोलिक वातावरण ही नहीं सांस्कृतिक वातावरण भी होता है जिसका समग्र प्रभाव मानव पर पड़ता है।
हार्लन बैरोज (H. H. Barrows) ने बताया है कि मानव पारिस्थितिकी (Human Ecology) में केवल प्राकृतिक वातावरण और मानव के सम्बन्धों का ही अध्ययन नहीं होता क्योंकि पारिस्थितिकी में केवल प्राकृतिक वातावरण और मानव के सम्बन्धों का अध्ययन ही किया जाता है जबकि मानव भूगोल में मनुष्य का भौगोलिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही वातावरण के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है। यद्यपि मनुष्य अपने वातावरण से अत्यधिक प्रभावित होता है फिर भी वह अपने वातावरण का दास नहीं है। जहाँ एक ओर वह वातावरण के अनुकूलन संशोधित . (adaptation) का प्रयास करता है। वहीं दूसरी ओर वह वातावरण को भी अपने अनुकूल संशोधित (modification) करता है। फेब्रे का मत है कि ‘मनुष्य एक भौगोलिक-दूत है, पशु नहीं’ (Man is a geographic agent and not a beast.)।
मनुष्य व वातावरण को अलग-अलग करके मानव पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी नहीं की जा सकती। अत: यह स्पष्ट होता है कि मानव भूगोल में मनुष्य और उसके वातावरण के अन्तर्सम्बन्धों से उत्पन्न समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। मनुष्य वातावरण से हर समय घिरा रहता है। इसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव मानव पर अवश्य पड़ता है। मनुष्य व वातावरण के मध्य कार्यात्मक सम्बन्ध (functional relation) पाया जाता है।
प्रश्न 4. संभववाद की संकल्पना का परीक्षण करें।
उत्तर: संभववाद को सर्वप्रथम फ्रांसीसी विद्वान फेब्बरे ने नाम दिया। इस विचारधारा के विद्वानों का मत है कि मानव प्रकृति के तत्वों को चुनने के लिए स्वतंत्र होता है। सर्वत्र संभावनाएँ हैं और मनुष्य इन संभावनाओं का स्वामी है। फेब्बरे (Febvre) का विचार है, “कहीं अनिवार्यता नहीं है, सब जगह संभावनाएं हैं।” मानव उसके स्वामी के रूप में उनका निर्णायक है। संभावनाओं के उपयोग से स्थिति में जो परिवर्तन होता है, उससे मानव को, मात्र मानव को ही प्रथम स्थान प्राप्त होता है। पृथ्वी, जलवायु या विभिन्न स्थानों की नियतिवादी परिस्थितियों को वह कदापि नहीं मिल सकता। ब्लांश का मानना है कि मानव को अपने वातावरण में रहकर कार्य करना पड़ता है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह वातावरण का दास है।
मानव एक क्रियाशील प्राणी है जिसमें वातावरण में परिवर्तन लाने की असीम क्षमता है अर्थात् वह अकर्मण्य तभी होता है जब भौतिक विश्व उसे निष्प्राणित कर देता है। वास्तव में जब तक वह जीवित रहता है, तब तक क्रिया-प्रतिक्रिया करता रहता है। ब्लांश ने उदाहरण प्रस्तुत किया कि गेहूँ प्रारम्भ में भूमध्य सागरीय क्षेत्रों की उपज थी, परंतु मानव के प्रयत्नों के फलस्वरूप पश्चिमी यूरोप में गेहूँ की उपज क्षेत्रों की उपज भूमध्य सागरीय क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है। उन्होंने कहा कि “प्रकृति एक सलाहकार के अधिक नहीं है।” (Nature is never more than an advisor.) साम्यवाद के समर्थकों में ब्रून्श, ईसा बोमेन, कार्ल सॉवर, रसल स्मिथ आदि थे। इन सभी विद्वानों ने मानव.को प्रकृति से अधिक सक्रिय एवं बुद्धिमान माना।
प्रश्न 5. नव निश्चयवाद की विचारधारा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर: वर्तमान में अनेक विद्वान इस विचारधारा के समर्थक हैं। इस सिद्धान्त के समर्थकों ने इस विवाद में न पड़कर कि प्रकृति अधिक शक्तिशाली है, अथवा मनुष्य, प्रकृति व मनुष्य के मध्य आपसी तालमेल को महत्त्व दिया है। नव निश्चयवादी विद्वान भी मनुष्य पर प्रकृति का पूर्ण नियंत्रण न बताकर केवल प्रभाव बताते हैं।
इस विचारधारा के समर्थकों का मत है, कि प्रकृति मनुष्य को अवसर प्रदान करती है परन्तु साथ ही कुछ सीमायें निर्धारित करती है। इन सीमाओं में रहकर ही मनुष्य को अपना कार्य करना चाहिए।
ग्रिफिथ टेलर इस विचारधारा के जनक माने जाते हैं। इन्होंने इस विचारधारा को वैज्ञानिक निश्चयवाद व ‘रुको और जाओ निश्चयवाद’ भी कहा है। जॉर्ज टॉथम ने इसे क्रियात्मक संभववाद का नाम दिया है। इसमें मनुष्य द्वारा छाँट का विचार भी सम्मिलित है।
इस विचारधारा के जन्म व विकास में अमरीकी भूगोलवादियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इस विचारधारा को अमरीकी विचारधारा भी कहते हैं। इस विचारधारा के समर्थकों ग्रिफ्फिथ टेलर के अलावा जॉर्ज टॉथम, एल्सबर्थ हटिंगटम, रॉक्सवी, कार्ल सॉवर, एच० जे० फ्ल्यूर आदि प्रमुख हैं। इस सिद्धान्त में मानव व प्रकृति के मध्य समझौते पर विशेष बल दिया गया है। इस विचारधारा के विचारकों का मत है कि यदि मानव सांस्कृतिक विकास करना चाहता है तो उसे प्रकृति की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। प्रकृति मौन रहती है, निर्णय मानव करता है। यह मानव पर ही निर्भर है, कि उसका निर्णय किस प्रकार का है। यदि मानव बुद्धिमत्तापूर्ण है, तो मनुष्य भव्य सांस्कृतिक भू-दृश्य का निर्माता बनता है और यदि मूर्खतापूर्ण है, तो मानव कुछ नहीं कर पाता।
टेलर ने अपनी पुस्तक ‘ज्योग्राफी इन दी ट्वंटीयेथ सेंचुरी’ में स्पष्टतः बताया है कि मानव पर प्रकृति के नियंत्रण को नकारा नहीं जा सकता। उदाहरणार्थ साइबेरिया व कनाडा के विस्तृत क्षेत्र में, सहारा व आस्ट्रेलिया के मरुस्थलों में व अंटार्कटिका के हिम क्षेत्र में मानव को प्रकृति का आदेश मानना पड़ता है। ये क्षेत्र अभी बहुत समय तक यों ही पिछड़े पड़े रहेंगे। फिलहाल इन पर इन विकसित राष्ट्र बनाना संभव नहीं है। परन्तु इतना अवश्य है कि प्रकृति में सांस्कृतिक प्रगति मनुष्य द्वारा ही की जाती है। साथ-साथ यह भी सत्य है कि प्रगति, प्रकृति की सीमाओं में रहकर ही करनी चाहिए। उसे प्रकृति पर नियंत्रण उसी प्रकार करना चाहिए, जिस प्रकार एक चौराहे पर यातायात नियंत्रक यातायात को नियंत्रित करता है। वह वाहनों की गति परिवर्तित करता है, दिशा नहीं।
इस विवारधारा के समर्थकों के अनुसार मानव प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है, परन्तु कुछ सीमा तक ही। मध्य अकृीका में कांगों व नाइजर नदियों के बेसिनों में पिग्मी व नीग्रो लोग रहते हैं। उन्होंने वातावरण के साथ समायोजन किया है। पहले ये लोग अधिक गर्मी के कारण निर्वस्त्र रहते थे। समय के साथ-साथ उनकी त्वचा उस गर्मी को सहन करने योग्य हो गई। आर्थिक व सामाजिक विकास होने पर उन्होंने वस्त्र पहनने आरम्भ कर दिये। परन्तु आज भी कांगों व नाइजर बेसिनों में ऐसे लोग निवास करते हैं, जो वस्त्र धारण नहीं करते हैं। निश्चय ही वे अपने चारों ओर के वातावरण से प्रभावित हैं।
संघर्ष मनुष्य की प्रकृति की प्रवृत्ति रही है। यदि प्रकृति उसे एक सुविधा प्रदान करती है, तो मनुष्य संघर्ष के माध्यम से अनेक सुविधायें प्राप्त करना चाहता है। प्रकृति ने मानव को कृषि के लिए समतल मैदान प्रदान किये हैं, परन्तु मानव ने सीढ़ीदार खेत बनाकर पर्वतों पर कृषि प्रारम्भ कर दी। प्रतिदिन कोई-न-कोई व्यक्ति एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास करता है, चाहे जीवन ही क्यों न समाप्त हो जाये। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि संघर्ष की प्रवृत्ति मानव के रोम-रोम में बसी है। परन्तु मानव को संघर्ष नहीं करना चाहिए जहाँ उसे सफलता की आशा हो।
साइबेरिया में मानव ने कृषि करनी चाही पर्याप्त मात्रा में श्रम व धन व्यय किया। परन्तु अंततः उसे हार माननी ही पड़ी। इसी प्रकार यदि टुण्डा क्षेत्र या ध्रुवीय क्षेत्रों में सांस्कृतिक भू-दृश्य का निर्माण किया जाए तो कोई लाभ न होगा क्योंकि वहाँ उसका कोई दर्शक नहीं होगा। अतः मनुष्य को प्रयल वहीं तक करना चाहिए जहाँ तक प्रकृति उसे अनुमति दे। मानव को प्रकृति की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
क्लब ऑफ रोम की एक पुस्तक ‘लिमिट्स टु गोथ’ में मानव प्रकृति के सम्बन्धों पर प्रकाश डाला गया था। इस पुस्तक में इस तथ्य को एक चित्र के माध्यम से समझाया गया है कि मानव द्वारा प्रकृति में हस्तक्षेप बढ़ता ही गया, तो एक दिन मानव व प्रकृति के बीच का संतुलन टूट जायेगा क्योकि मानव की सारी प्रगति व्यर्थ हो जायेगी। इस तथ्य से हमें स्पष्ट झलक मिलती है कि मानव ने प्रकृति की सीमाओं में अंधाधुन्ध हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उसे अपना विकास प्रकृति की सीमाओं में रहकर ही करना चाहिए।
ईसा बोमैन के अनुसार, “मानव शक्तिशाली है। वह बुद्धिमान है। वह विषम परिस्थितियों में भी लाभदायक परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है।” परन्तु ऐसा कब तक होगा?
प्रकृति व मानव के मध्य से संघर्ष हटाकर सहयोग का भाव स्थापित करना ही इस विचारधारा का मुख्य उद्देश्य है।
प्रश्न 6. निश्चयवाद के विषय में विभिन्न लेखकों की विचारधारा का वर्णन कीजिये।
अथवा, निश्चयवाद की विचारधारा को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर: निश्चयवाद की संकल्पना – निश्चयवाद की संकल्पना का विकास जर्मनी में हुआ। रैटजेल इसके प्रमुख सूत्रधार थे। वैसे मानव पर पर्यावरण के प्रभाव को बहुत पहले से ही अनुभव किया जाने लगा था। इस विचारधाराओं के मानने वालों का मत है कि मानव के समस्त क्रिया कलाप प्रकृति द्वारा नियंत्रित होते हैं। प्रकृति के अनुसार उसे अपनी आवश्यकतायें व इच्छायें नियंत्रित करनी पड़ती है। बिना प्रकृति से सहयोग करे मानव उन्नति नहीं कर सकता। इस विचारधारा के समर्थनों में रैटजेल, हम्बोल्ट, सैंपुल कांट, डिमोलींस, अरस्तु, हिप्पोक्रेटस आदि है।
अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मानव और प्रकृति के निकट के सम्बन्धों पर प्रकाश डाला गया है। अनेक यूनानी विचारकों ने भी इस विषय में अपने विचार प्रकट किये हैं। ईसा छठी सदी पूर्व थेल्स व अनैग्जीमैंडर ने जलवायु, वनस्पति पर लिखी एक पुस्तक में-पवन, जल व स्थानों तथा मानव समाज का वर्णन किया है। यह पुस्तक लगभग 420 वर्ष पहले लिखी गई थी। ईसा पूर्व हिप्पोक्रेट्स नामक विद्वान ने भी एशिया व यूरोप के मनुष्यों की तुलना प्रकृति के प्रभावों से की थी।
हिप्पोक्रेट्स ने वातावरण के प्रभाव को न केवल मानव स्वभाव पर स्पष्ट किया वरन् मनुष्य की शारीरिक बनावट से भी वातावरण का गहन सम्बन्ध बताया। एशिया व यूरोप के निवासियों की शारीरिक बनावट का अध्ययन करने के पश्चात् उसने निष्कर्ष निकाला कि इन दोनों क्षेत्रों के निवासियों की शारीरिक बनावट में बहुत अन्तर है।
राजनीतिशास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान बोदिन ने मनुष्य पर वातावरण के प्रभाव को वहाँ की सरकार से सम्बन्धित किया है। उन्होंने बताया है कि किस प्रकार की जलवायु में किस प्रकार की सरकार बनने की संभावना रहती है। अरस्तु ने एशिया व यूरोप के निवासियों की तुलना की व उनमें पाये जानेवाले अन्तर का कारण वातावरण ही पाया। ईसा पूर्व प्लिनी ने जलवायु का प्रभाव मानव पर स्पष्ट करते हुए बताया या कि गर्म जलवायु के निवासी आलसी होते हैं।
रेटजैल के मानव भूगोल का जनक माना जाता है। उनका दृढ़ विश्वास था कि मानव सर्वथा प्रकृति पर ही आश्रित रहता है। रेटजैल ने प्रकृति को पेड़ माना है व मानव को एक पक्षी। उन्होंने कहा कि पक्षी चाहे कितनी ही ऊँची उड़ान क्यों न भरे अन्त में आश्रय वृक्ष पर ही लेता है। इसी प्रकार मानव भी प्रकृति की शरण में रहता है।
मिस एलेन चर्चिल सैंपुल रेटजैल की शिष्या थीं। वे भी निश्चयवाद की समर्थक थीं। उन्होंने अपने विचारों की पुष्टि हेतु अनेक उदाहरण दिये। उन्होंने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों को प्रकृति ने ही लोहे जैसे कठोर पैर प्रदान किये हैं। दूसरी ओर समुद्र के पास रहने वाले लोगों के शरीर का ऊपरी हिस्सा अधिक शक्तिशाली होता है जिससे वे सुगमता से सागर में नौकायन कर सकें। एलेन चर्चिल का विचार है कि मानव भूतल की उपज है और पृथ्वी उसके रोम-रोम में व्याप्त है।
प्रसिद्ध भूगोलविद् कांट ने भी इस संकल्पना का समर्थन किया है। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर मनुष्य पर प्रकृति का भिन्न-भिन्न प्रभाव देखा। नीदरलैंड, हालैंड का धरातल समुद्र तल से बहुत नीचा है। वहाँ प्रायः दलदल बन जाते हैं। दलदल में मच्छर व मक्खियों की उत्पत्ति होती है। मच्छर व मक्खियाँ प्रायः नाक व आँख पर प्रहार करते हैं। अतः ये लोग इन अंगों का विशेष ध्यान रखने लगे। आँख की रक्षा के लिये बार-बार पलक झपकते थे। परिणामस्वरूप उन्हें जल्दी-जल्दी पलक झपकाने की आदतें पड़ गईं। कालांतर में इनकी आँखों का आकार काफी छोटा हो गया। अतः डच लोगों के आँखों के छोटे आकार के लिये वातावरण ही उत्तरदायी है।
डीमोलीस के अनुसार समाज का निर्माण हमेशा प्रकृति से प्रभावित रहता है।
इस्लाम धर्म का उदय मक्का मदीना में हुआ था। यह क्षेत्र मरुस्थलीय है। वहाँ पानी सीमित मात्रा में ही प्राप्त होता है। अतः पानी का प्रयोग बड़ी सावधानीपूर्वक करना पड़ता है। उसके संरक्षण के लिये विभिन्न उपाय करने पड़ते हैं। पानी का संरक्षण करने के दृष्टिकोण से ही मुसलमान सप्ताह में केवल एक बार स्नान किया करते थे। कालांतर में जब इस्लाम धर्म का प्रसार अन्य स्थानों पर हुआ तो अन्य स्थानों से व्यक्ति भी सप्ताह में एक बार ही नहाने लगे। यह तथ्य उनके लिये धर्म का प्रतीक बन गया।
इसी प्रकार रेगिस्तान में धूल व रेत भरी आँधियों से बचने के लिये लोग घर के दरवाजे पर टाट के पर्दे डाल लेते थे। घर से बाहर निकलते समय लबादा व बुर्का आदि का प्रयोग करते थे। ये तथ्य आज रीति-रिवाज बन गये हैं।
आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में बहुपति प्रथा पाई जाती है। इसका कारण भी वहाँ का वातावरण ही है। पर्वतों की जलवायु कठोर होती है। कृषि करने लायक क्षेत्र कम होता है। परिणामस्वरूप खाद्यान्न की कमी रहती है। यदि परिवार में सभी विवाह करेंगे तो उनके बच्चे अधिक होंगे। यदि बच्चे अधिक होंगे तो उन्हें भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। अतः प्रत्येक परिवार में केवल बड़े भाई का विवाह होता है। उसकी पत्नी ही सब भाइयों की पत्नी होती है। इस प्रकार की विचारधारा के समर्थकों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मानव प्रतिपल प्रकृति के बन्धनों में बंधा रहता है। वह प्रकृति की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं कर सकता।
प्रश्न 7. विश्व में जनसंख्या वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर: लोग ऐसे स्थानों पर बसना चाहते हैं जहाँ उन्हें भोजन, पानी, घर बसाने के लिए उपयुक्त स्थान मिल जाए। जनसंख्या के वितरण को निम्न कारक सम्मिलित रूप से प्रभावित करते हैं। इनको निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. प्रक्रुतिक कारक (Physiological factors)-
(i) उच्चावच (Relief) – पर्वतीय, पठारी अथवा उबड़-खाबड़ प्रदेशों में कम लोग रहते हैं जबकि मैदानी क्षेत्रों में लोगों का निवास अधिक होता है क्योंकि इन क्षेत्रों में भूमि उर्वरा होती है और कृषि की जा सकती है। यही कारण है कि नदी घाटियाँ जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, ह्वांग-हो आदि की घाटियाँ अधिक घनी बसी हैं।
(ii) जलवायु (Climate) – अत्यधिक गर्म या अत्यधिक ठंडे भागों में कम जनसंख्या निवास करती है। ये विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। इसके विपरीत शीतोष्ण जलवायु तथा मानसूनी प्रदेशों में अधिक जनसंख्या निवास करती है।
(iii) मृदा (Soil) – जनसंख्या के वितरण पर मृदा की उर्वरा शक्ति का बहुत प्रभाव पड़ता है। उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में खाद्यान्न तथा अन्य फसलें अधिक पैदा की जाती हैं तथा प्रति हेक्टेयर उपज अधिक होती है। इसलिए नदी घाटियों को उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्र अधिक घने बसे हैं।
(iv) खनिज पदार्थ (Minerals) – विषम जलवायु होने पर भी उपयोगी खनिजों की उपलब्धि से लोग वहाँ बसने लगते हैं। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब के भीषण गर्मी वाले क्षेत्र में खनिज तेल के मिल जाने से अधिक घने बसे हैं। कालगूर्डी और कूलगर्डी की गर्म जलवायु में सोने की प्राप्ति तथा अलास्का में तेल कुओं की उपलब्धता के कारण वहाँ अधिक लोग रहते हैं।
(v) वनस्पति (Vegetation) – अधिक घने वनों के कारण भी जनसंख्या अधिक नहीं पाई जाती है। लेकिन कोणधारी वनों की आर्थिक उपयोगिता अधिक है। इसलिए लोग उन्हें काटने के लिए वहाँ बसते हैं।
2. आर्थिक कारक (Economic factors)-
(i) परिवहन का विकास (Development of means of transport) – परिवहन के साधनों के विकास से लोग दूर के क्षेत्रों में भी जाकर बस गए हैं। परिवहन केन्द्रों पर आर्थिक क्रियायें बढ़ने से रोजगार के अवसर बढ़ जाते हैं। अतः लोग वहाँ बसने लगते हैं।
(ii) अत्यधिक नगरीकरण (Urbanisation) – नगरों में रोजगार के अवसर बढ़ जाने से ग्रामीण क्षेत्रों के लोग उद्योगों में रोजगार तथा शिक्षा के लिए आकर बस जाते हैं। शंघाई, मुम्बई, न्यूयॉर्क आदि महानगर इनके उदाहरण हैं। नगरों में जनसंख्या का संकेन्द्रण उनकी सुविधाओं के कारण अधिक होता है।
3. सांस्कृतिक कारक (Cultural factors)-
(i) प्रौद्योगिकी में विकास (Development in technology)-यह सांस्कृतिक कारक है। कुछ देशों में प्रौद्योगिकी के विकास के आधार पर आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा लिया है। अतः ऐसे देशों में अधिक जनसंख्या के पोषण की क्षमता होती है।
(ii) धार्मिक कारक (Religious factors)-धार्मिक कारणों से लोग अपना देश छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों को यूरोप छोड़कर रेगिस्तानी क्षेत्र में नया देश इजरायल बसाना पड़ा था। इसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के कारण जनसंख्या का वितरण प्रभावित हुआ है।
4. राजनैतिक कारक (Political factors)-किसी देश में गृह युद्ध, अशान्ति आदि के कारण भी जनसंख्या वितरण पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, फारस की खाड़ी का युद्ध, श्रीलंका में जातीय संघर्ष आदि के कारण जनसंख्या का पलायन हुआ।
प्रश्न 8. विश्व में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति की वर्णन करें।
उत्तर: वर्तमान समय में विश्व की जनसंख्या 600 करोड़ से अधिक है। ईसा की पहली सदी में जनसंख्या 30 करोड़ से कम थी जो 1750 ई० के आस-पास बढ़कर 55 करोड़ हो गयी। औद्योगिक क्रांति के बाद विश्व की जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि दर्ज की गयी। 1830-1930 ई० के 100 वर्षों के दौरान जनसंख्या एक अरब से बढ़कर 2 अरब हो गयी। 1960-75 के 15 वर्षों के दौरान यह 3 अरब से 4 अरब हो गयी, जबकि 1975-1987 ई० के 12 वर्षों की अवधि में यह 5 अरब तथा अगले 12 वर्षों के दौरान 1999 ई० में 6 अरब हो गयी है।
इसी प्रकार, विश्व जनसंख्या को दो गुना होने की अवधि प्रवृत्ति भी उल्लेखनीय है। इसे 50 से 100 करोड़ होने में 200 वर्ष लगे। 100-200 करोड़ होने में 80 वर्ष तथा 200-400 करोड़ होने में 45 वर्ष लगे हैं। जबकि 400-600 करोड़ होने में मात्र 24 वर्ष लगे।
इस प्रकार विश्व की जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति से यह स्पष्ट है कि यह घटते हुए समयावधि के दौरान एक अरब बढ़ जाती है।
प्रश्न 9. जनसंख्या और विकास के बीच अर्न्तसम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि वहां के आर्थिक विकास पर धनात्मक एवं ऋणात्मक प्रभाव डालती है। यह प्रभाव धनात्मक होगा या ऋणात्मक इस पर निर्भर करता है कि वह अमुक देश जनसांख्यिकीय संक्रमण की किस अवस्था में है। संसाधनों के दोहन के लिए उत्पादन के एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में श्रम शक्ति की क्षमता व उसकी गुणवत्ता अधिक महत्त्वपूर्ण है।
किसी देश के आर्थिक विकास का स्तर उस देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग तथा प्रयोग करने की विधि द्वारा निर्धारित होता है। उत्पादन अथवा खाद्य आपूर्ति तथा जनसंख्या वृद्धि में एक संतुलन बनाये रखना आवश्यक है। इस सन्तुलन को बनाये रखने के लिए संसाधनों के विकास, उनका दोहन व रोजगार उत्पन्न होने की प्रक्रिया का जनसंख्या वद्धि के साथ सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है।
इस प्रकार जनसंख्या और विकास में एक अतसंबंध है। एक ओर जनसंख्या की गुणवत्ता विकास के स्तर को बढ़ाने में सहायक है वहीं लगातार जनसंख्या वृद्धि के स्तर को प्रभावित करती है। अतः जनसंख्या एवं विकास के संदर्भ में जनसंख्या वृद्धि एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
प्रश्न 10. आयु-लिंग पिरामिड का वर्णन करें।
उत्तर: जनसंख्या की आयु-लिंग पिरामिड का तात्पर्य विभिन्न आयु वर्ग के पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या से है। किसी भी पिरामिड के प्रत्येक आयु वर्ग में बायीं तरफ पुरुषों तथा दायीं तरफ स्त्रियों के प्रतिशत जनसंख्या का निरूपण किया जा सकता है। पिरामिड का आकार होने के कारण ही आयु-लिंग आरेख को पिरामिड आरेख भी कहा जाता है। पिरामिडनुमा आकार वहाँ का छोटा है जहाँ उच्च जन्म-दर के कारण निम्न आयु-वर्ग की जनसंख्या अधिक तथा उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण उच्च वर्ग की संख्या कम होती है।
यह अल्पविकसित देशों का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे-मैक्सिको या बंगलादेश का पिरामिड। विकसित देशों का आयु-लिंग पिरामिड का आधार तुलनात्मक संकीर्ण एवं शीर्ष शुंडाकार होता है। ऑस्ट्रेलिया का आयु-लिंग पिरामिड घंटी के आकार का है जो समान जन्म-दर और मृत्यु-दर को इंगित करता है, जबकि जापान जैसे विकसित देशों का पिरामिड संकीर्ण आधार एवं शुंडाकार शीर्ष वाला होता है, जो निम्न जन्म-दर तथा निम्न मृत्यु को प्रदर्शित करता है। इन देशों में जनसंख्या वृद्धि शून्य या ऋणात्मक होती है।
इस प्रकार आयु-लिंग संरचना पिरामिड के द्वारा किसी देश की आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 11. मानव विकास अवधारणा के अंतर्गत समता और सतत पोषणीयता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: न्याय का अर्थ है सबके लिए समान अवसर प्रदान करना। समान अवसर सबके लिये बिना लिंग भेद, रंग, जाति, धर्म आदि ध्यान रखते हुए मिलने चाहिए। प्रायः सभी वर्ग प्रसन्न नहीं होते। उदाहरण के लिए किसी देश में कौन-से वर्ग के लोग विद्यालय छोड़ देते हैं। यह महिलाओं तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में अधिक होता है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि इन लोगों में ज्ञान कम है।
सतत् पोषणीयता का अर्थ होता है कि अवसरों का सतत् प्राप्यता। सतत् मानव विकास रखने के लिए प्रत्येक पीढ़ी को उन अवसरों को बनाये रखना चाहिए। सभी पर्यावरणीय वित्तीय और मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इन संसाधनों का दुरुपयोग भविष्य में आने वाली पीढ़ी को कम अवसर प्रदान होगा।
लड़कियों के स्कूल भेजने का महत्त्व का उदाहरण है कि यदि कोई समुदाय लड़कियों को स्कूल भेजने पर जोर नहीं देता तो युवा स्त्रियों के कई अवसर समाप्त हो जायेंगे। उनके जीवन का लक्ष्य पर प्रभाव पड़ेगा तथा इससे अन्य बातों पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसलिये प्रत्येक पीढ़ी को अवसरों की उपलब्धि भविष्य के लिए होनी आवश्यक है।
प्रश्न 12. मानव विकास की संकल्पना की विवेचना कीजिए।
उत्तर: यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि विकास का लक्ष्य लोगों का कल्याण होना चाहिए। यदि समग्र दृष्टि से विचार करें तो केवल धन के द्वारा जनकल्याण संभव नहीं है। आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास जनकल्याण के प्रमुख पक्ष हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों के सामने मानव विकास का लक्ष्य रखा। दीर्घ तथा स्वस्थ जीवन, शिक्षा और उच्च जीवन स्तर मानव विकास के प्रमुख तत्त्व हैं। मानव विकस की संकल्पना में मानवीय विकल्पों को पूरा करने पर बल दिया जाता है। मानव विकास के कतिपय निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- राजनीतिक स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता तथा स्वाभिमान प्रत्येक मानव की प्रमुख चाहत हैं।
- मानव विकास की प्रक्रिया में स्त्री-पुरुष, बच्चे सभी को शामिल किया जाना चाहिए।
- विकास लोगों के हित और कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि लोग विकास के लिए ।
- विकास सहभागीय होना चाहिए। सभी लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रशिक्षण की क्षमताओं को विकसित करने के लिए विनिवेश के अवसर मिलने चाहिए।
- मानव विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लोगों के सामुदायिक निर्णयों को शामिल करके तथा मानवीय आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता प्रदान करके पूरा किया जा सकता है।
प्रश्न 13. सतत् विकास की अवधारणा का वर्णन करें।
उत्तर: साधारणतया विकास शब्द से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति और उसके द्वारा अनुभव किये गये परिवर्तन की प्रक्रिया से होता है। मानव इतिहास के लम्बे अंतराल में समाज और उसके जैव-भौतिकी पर्यावरण की निरंतर अंतरक्रियाएँ समाज की स्थिति का निर्धारण करती है।
विकास की संकल्पना गतिक है और इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ है। द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोत्तरी के रूप में मापा जाता था।
1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत् पोषणीय धारणा का विकास हुआ। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषयों में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिव की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम’ और 1972 में मीकोस और अन्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता और भी गहरी कर दी। उस घटना के परिप्रेक्ष्य में विकास के एक नए मॉडल जिसे सतत् पोषणीय विकास कहे जाने की शुरूआत हुई।
पर्यावरणीय मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग (WECD)’ की स्थापना की जिसके प्रमुख नार्वे की प्रधानमंत्री गरो हरलेम ब्रटलैंड थीं। उस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर’ 1987 में प्रस्तुत की (जिसे ब्रटलैण्ड रिपोर्ट भी कहा जाता है)। WECD ने सतत् पोषणीय विकास की सीधी सरल और वृहत् स्तर पर प्रयुक्त परिभाषा प्रस्तुत की। उस रिपोर्ट के अनुसार सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है-‘एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किये बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना।’
प्रश्न 14. मानव विकास सूचकांक क्या है ? इसके आधार पर देशों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर: मानव विकास सूचकांक-किसी देश में बुनियादी मानवीय योजना की औसत प्राप्ति की मान मानव विकास सूचकांक कहलाता हैं। इसका आकलन संबंधित देश में जीवन प्रत्याशा, शिक्षा स्तर और वास्तविक आय के आधार पर किया जाता है। इसका मान 0 से 1 के बीच होता है।
मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों का वर्गीकरण निम्नलिखित तीन स्तरों में किया जाता है-
- उच्च सूचकांक मूल्य वाले देश – इसके अंतर्गत वैसे देश को शामिल करते हैं, जिसका सूचकांक 0.8 से ऊपर है। 2005 के अनुसार इस वर्ग में 57 देश सम्मिलित थे जिसमें नार्वे, आइसलैण्ड, कनाडा, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका आदि प्रमुख हैं।
- मध्यम सूचकांक मूल्य वाले देश – इसके अंतर्गत वैसे देशों को सम्मिलित करते हैं, जिसका सूचकांक 0.5 से 0.799 है। इसके अंतर्गत कुल 88 देश सम्मिलित हैं, जिसमें श्रीलंका, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया आदि देश है।
- निम्न सूचकांक मूल्य वाले देश – इसके अन्तर्गत 0.5 सूचकांक से नीचे वाले देशों को सम्मिलित करते हैं। इसके अंतर्गत कुल 32 देशों को शामिल किया गया है। जिसमें प्रमुख देशसोमालिया, बुरूंडी, इथियोपिया आदि हैं।
प्रश्न 15. औद्योगिक क्रांति के धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर: औद्योगिक क्रांति से तात्पर्य उन तीव्र परिवर्तनों से है जो इंगलैंड में लगभग 1750 ई. में आरंभ हुए ये परिवर्तन इतने प्रभावशाली थे कि उन्हें क्रांति का नाम दिया गया। अब हाथ के स्थान पर कार्य मशीनों से होने लगा। बड़े-बड़े कारखानों में मशीनों का प्रयोग होने लगा, जिसके फलस्वरूप उत्पादन की दर और मात्रा दोनों में वृद्धि होने लगी। औद्यागिक क्रांति के परिणाम वास्तव में धनात्मक व ऋणात्मक दोनों प्रकार के थे।
औद्योगिक क्रांति के धनात्मक प्रभाव (Positive Impacts of Industrial Revoluation)-
1. कृषि पर प्रभाव (Effects on Farming) – औद्योगिक क्रांति के कारण कच्चे माल के रूप में कपास, पटसन और गन्ने आदि की माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गई। इस मांग को पूरा करने के लिए कृषि की उपज बढ़ाना जरूरी हो गया। अतः किसानों और जमींदारों ने कृषि करने के नये तरीके अपनाने शुरू किए। जमीन जोतने, फसल बोने, फसल काटने तथा अनाज से भूसा अलग करने के लिए मशीनों का प्रयोग होने लगा। नई-नई फसलें बोई जाने लगीं। सिंचाई के साधनों का विकास हुआ।
2. यातायात पर प्रभाव (Effects on Transport) – औद्योगिक क्रांति के कारण कच्चे माल तथा तैयार माल को लाने-ले जाने के लिए यातायात के साधनों की बड़ी आवश्यकता थी। ऐसी स्थिति में यातायात के क्षेत्र में नए-नए आविष्कारों का होना स्वाभाविक था। नए आविष्कारों के कारण ही पत्थर की रोड़ी से पक्की सड़कें बनवायी गई। जल मार्गों के लिए अनेक नई-नई नहरें खुदवाई गयीं जिनमें छोटे-छोटे जहाज संभव हो गया, बाद में भाप इंजन के आविष्कार से लौह उद्योगों की स्थापना हुई तथा समुद्री जहाज भी काफी मात्रा में बनाए गए। इस प्रकार यातायात तथा परिवहन के साधन में बड़ी उन्नति हुई।
3. संचार पर प्रभाव (Effects on Communication) – औद्यागीकरण के कारण संचार के साधनों में काफी सुधार हुआ है। व्यापार, वाणिज्य और उद्योगों में वृद्धि हो जाने के कारण मनुष्य का जीवन व्यस्त हो गया। वह अब अपने समाचारों को शीघ्र भेजना चाहता था और शीघ्र ही प्राप्त करना चाहता था। इसी कारण आगे चलकर तार, टेलिफोन और वायरलेस का अविष्कार हुआ।
4. व्यापार पर प्रभाव (Effects on Trade) – औद्योगीकरण के कारण चीजों का उत्पादन बढ़ गया। यातायात तथा संचार के साधनों में भी बहुत उन्नति हुई। इसलिए व्यापार का विस्तार हुआ।
5. औद्योगीकरण के कारण शिक्षा की आवश्यकता (Need of Education) – औद्योगीकरण के कारण शिक्षा की बड़ी आवश्यकता अनुभव हुई। मशीनों का ठीक-ठाक प्रयोग व उनकी मरम्मत बिना तकनीकी (ज्ञान) के संभव नहीं थी। विदेशों से वस्तुओं का क्रय-विक्रय विदेशी भाषा सीखे बिना नहीं हो सकता था। कृषि, यातायात तथा संचार के साधनों में नए-नए आविष्कार अच्छी शिक्षा के बिना असंभव थे।
औद्योगिक क्रांति का नकारात्मक प्रभाव (Negative Impact of Industrial Revolution)-
1. औद्योगिक क्रांति का एशिया के देशों पर प्रभाव (Effects of Industrial Revolution on Asian Countries) – औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप उत्पादन की दर और मात्रा दोनों में वृद्धि हुई। तैयार माल की बढ़ती हुई माँग को सीमित कच्चे माल द्वारा पूरा करना असंभव था। अतः यूरोप के देशों ने एशिया के देशों को अपना उपनिवेश बनाया, जहाँ औद्योगिक क्रांति नहीं हुई थी। इन देशों को उपनिवेशों से दो लाभ हुए-एक तो इन उपनिवेशों में तैयार माल बड़ी सरलता से बिक जाता था। दूसरा उद्योगों के लिए कच्चा माल बड़ी मात्रा में मिल सकता था।
2. विभिन्न औद्योगिक देशों के बीच संघर्ष (Conflict Among Different Industrial Countries of World) – वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए अधिक से अधिक कच्चा माल प्राप्त करने की होड़ ने विभिन्न यूरोपीय तथा औद्योगिक देशों में आपसी प्रतिस्पर्धा तथा संघर्ष को जन्म दिया।
3. सैन्यवाद और शस्त्रीकरण (Militarisation and Armament) – साम्राज्यवादी देशों की आपसी प्रतिस्पर्धा के धातक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सैन्यवाद व शस्त्रकरण के फलस्वरूप, प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई।
प्रश्न 16. उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करनेवाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर: उद्योगों की परम्परागत अवस्थिति को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक निम्न हैं-
(i) कच्चा माल – भार-हास वाले कच्चे माल का उपयोग करने वाले उद्योग उन प्रदेशों में स्थापित किये जाते हैं जहाँ ये उपलब्ध होते हैं। भारत में गन्न उद्योग इसका प्रमुख उदाहरण है। कुछ उद्योग कच्चे माल स्रोत में ही स्थापित किये जाते हैं। जैसे-लौह-इस्पात उद्योग, तांबा उद्योग आदि।
(ii) शक्ति – उद्योगों को संचालित करने हेतु शक्ति (ऊर्जा) की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत कोयला, पेट्रोलियम, आण्विक ऊर्जा इत्यादि आते हैं। एल्युमिनियम एवं कृत्रिम नाइट्रोजन उद्योग की स्थापना शक्ति-स्रोत के निकट किये जाते हैं।
(iii) बाजार – बाजार निर्मित उत्पादों के लिए निर्गम उपलब्ध कराती है। भारी मशीन, औजार, रसायन इत्यादि की उपलब्धता तथा उद्योगों से निर्मित वस्तुओं को बेचने के लिए बाजार की आवश्यकता पड़ती है। कुछ उद्योग जैसे-सूती वस्त्र उद्योग, पेट्रो-रसायन उद्योग, बाजारों के समीप स्थापित किये जाते हैं।
(iv) परिवहन – उद्योगों की स्थापना परिवहन मार्गों के समीप होते हैं जिसके अंतर्गत सड़क मार्ग, रेलमार्ग एवं वायुमार्ग प्रमुख हैं। कच्चे मालों को उद्योगों तक पहुंचाना तथा निर्मित वस्तुओं को बाजारों तक ले जाने में परिवहन साधनों का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
(v) श्रम – उद्योगों को संचालित करने हेतु दक्ष, तकनीकी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है। भारत जैसे जनसंख्या वाले देश में श्रमिक सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाते हैं।
प्रश्न 17. कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
उत्तर: कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से है-
(i) बड़े पैमाने के उद्योग (Large Scale Industries) – ऐसे उद्योग जिनमें कच्चे माल की अधिकता होती है, बड़े पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग तथा सूती वस्त्र उद्योग।
(ii) मध्यम पैमाने के उद्योग (Medium Scale Industries) – वे उद्योग जिनमें बड़े उद्योगों की अपेक्षा कम कच्चे माल की सहायता से उत्पादन कार्य किया जाता है, मध्यम पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। इनमें प्रायः 50 लाख रुपये तक पूँजी लगी होती है। रेडियो, टी० वी० आदि मध्यम पैमाने के उद्योग माने जाते हैं।
(iii) छोटे पैमाने के उद्योग (Small scale industries) – उद्योग जो स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, जिनमें थोड़ी पूँजी की आवश्यकता होती है, वे छोटे पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। जैसे-साबुन बनाना, बीड़ी बनाना, माचिस बनाना आदि छोटे पैमाने के उद्योग हैं।
प्रश्न 18. संसार के लौह अयस्क तथा उत्पादक देशों के नाम बताइए।
उत्तर: विश्व में लौह अयस्क के अनुमानित भंडार 6464.8 करोड़ मीट्रिक टन हैं। विश्व में रूस में सबसे अधिक लौह भंडार हैं। भारत में विश्व का केवल 20% लौह भंडार है।
प्रमुख उत्पादक देश – यूक्रेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इंग्लैंड, साइबेरिया तथा दक्षिण अफ्रीका प्रमुख देश हैं। इसके अतिरिक्त चीन, ब्राजील, आस्ट्रेलिया, भारत तथा रूस हैं।
प्रश्न 19. विश्व के विकसित देशों के उद्योगों के संदर्भ में आधुनिक औद्योगिक क्रियाओं की मुख्य प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: विकसित औद्योगिक देशों में आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलापों में परिवर्तनशील प्रवृत्तियाँ देखी गई हैं। ये परिवर्तनशील प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-
- उद्योगों की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारकों के महत्त्व में निरंतर कमी आती जा रही है।
- विकसित अर्थव्यवस्था में विकास तथा वैज्ञानिक तकनीक की उन्नति के परिणामस्वरूप उद्योगों की संरचना एवं स्वरूप में परिवर्तन आया है। निरुद्योगीकरण की प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
- आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलापों में भी कई प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। उद्योगों में उत्पादन के लिए उच्च तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है।
- कारखानों के स्थान पर छोटी इकाइयों का बिखराव बहुत बड़े क्षेत्रों में देखा जा रहा है।
विकास की प्रक्रिया में हुए परिवर्तनों की डब्ल्यू. ओलों सो नामक अर्थशास्त्री ने 1980 में विकास के संदर्भ में पाँच घंटी आकृतियों (Five Bell Shapes) की बात की है। ये पाँच आकृतियाँ हैं-
- आर्थिक विकास दर,
- सामाजिक असमानता का स्तर,
- क्षेत्रीय असमानता,
- स्थानीय संक्रेन्द्रण का स्तर,
- जनांकिकीय संक्रमण।
ओलोंसो के मतानुसार विकास की प्रक्रिया में पहले भौगोलिक संकेन्द्रण की प्रक्रिया थी। इसके बाद आर्थिक विकास तथा उसके बाद सामाजिक तथा प्रादेशिक असमानता की प्रक्रिया में उतार-चढ़ाव आये।
उद्योगों की संरचना तथा स्वरूप में परिवर्तन-
(i) अर्थव्यवस्था में विकास व प्रौद्योगिक उन्नति के फलस्वरूप उद्योगों की संरचना में परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए विकासशील देशों जैसे भारत में सस्ता श्रम होने के कारण उद्योगों का विस्तार हुआ है।
(ii) 1980 के बाद निम्न प्रौद्योगिकी युक्त श्रमिक प्रधान औद्योगिक इकाइयों को अल्पविकसित देशों की ओर निर्यात किया गया तथा विकसित देशों में उन्नत प्रौद्योगिक युक्त पूर्जे वाले उद्योगों का विकास हो रहा है। इस प्रकार के औद्योगिक परिवर्तन को नवीन अन्तर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन कहा गया है।
प्रारम्भ में ब्राजील जर्मनी के लिए लौह अयस्क निर्यात करता था किन्तु अब ब्राजील में ही वह उद्योग विकसित हो रहा है और जर्मनी उसके आधार पर कार जैसे उद्योग विकसित कर रहा है।
(iii) आधुनिक औद्योगिक उत्पादनों में एक नई प्रवृत्ति लोचपूर्ण उत्पादन तथा लोचपूर्ण विशिष्टीकरण की है।
प्रश्न 20. प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों में क्या अंतर है ?
उत्तर:
प्राथमिक गतिविधियाँ (Primary Activities)-
- प्राथमिक क्रियाकलाप प्राकृतिक पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों के विकास से सम्बन्धित हैं।
- मानव प्राथमिक क्रियाकलापों के द्वारा प्रत्येक रूप में वस्तुएँ प्राप्त करता है।
- धरातल से प्राप्त ये पदार्थ कच्चे माल के रूप में भोजन सामग्री बनाने, वस्त्र बनाने तथा अन्य उपयोगी सामान बनाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
- आखेट, संग्रहण, पशुचारण, खनन, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, कृषि आदि प्राथमिक क्रियाकलाप हैं।
द्वितीयक गतिविधियाँ (Secondary Activities)-
- द्वितीयक क्रियाकलापों से तात्पर्य मनुष्य द्वारा कच्चे माल को संशोधित करके उसे नई वस्तुओं में परिवर्तन करने से है।
- इस प्रकार के क्रियाकलापों में उद्योगों को सम्मिलित किया जाता है जो विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
- इस प्रकार के क्रियाकलापों के द्वारा उत्पादों की उपयोगिता में वृद्धि होने के साथ-साथ उनके मूल्य में भी वृद्धि होती है।
- विनिर्माण उद्योग, डेयरी उद्योग, कुटीर उद्योग आदि सभी द्वितीयक क्रियाकलाप हैं।
प्रश्न 21. भारत में निर्यात और आयात व्यापार के संयोजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर: भारत का निर्यात संघटन – भारत के निर्यात संघटन में प्रमुख वस्तुयें सम्मिलित हैं।
इनमें सबसे अधिक निर्यात रत्न और आभूषण तथा परिधानों का हुआ। कुल निर्यात में इनकी भागीदारी 17.2 तथा 10.7% थी। अन्य प्रमुख वस्तुयें सूती वस्त्र, धागे, मशीनें, दवाइयाँ, सूक्ष्म रसायन और उपकरण आदि हैं। निम्न तालिका निर्यात संघटन को दर्शाती हैं।
आयात संघटन (Import Composition) – भारत आयात में निम्नलिखित वस्तुएँ आयातं करता है।
- ईंधन
- कच्चा माल और खनिज।
ईंधन – भारत का सबसे अधिक विदेशी मुद्रा का व्यय ईंधन के आयात पर होता है। 2002-03 में ईंधन के आयात की भागीदारी 31% थी।
कच्चा माल और खनिज – इस वर्ग में सोना, रत्न, चाँदी और रसायन प्रमुख हैं। 2002-03 में मोती बहुमूल्य रत्न की भागीदारी 9.9% थी। सोना, चाँदी 7% थी। रसायन 6.9% भागीदारी थी। निम्न तालिका आयात संघटन को दिखाती है-
अब आयात की वस्तुओं में परिवर्तन आ गया है।
प्रश्न 22. परिवहन और संचार सेवा की सार्थकता को विस्तार पूर्वक स्पष्ट कीजिए। अथवा, परिवहन एवं संचार सेवाओं के महत्त्व का सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर: परिवहन एक ऐसी साधन सुविधा है जिसके द्वारा यात्री तथा माल की ढुलाई एक स्थान से दूसरे स्थान तक की जाती है। यह एक संघटित उद्योग है। आधुनिक समाज को उत्पादन, वितरण और वस्तुओं के उपभोग में सहायता करने के लिए शीघ्र और सक्षम परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता है। परिवहन से वस्तुओं के मूल्य में कुछ वृद्धि हो जाती है।
परिवहन दूरी को किमी० में नापते हैं। समय दूरी का अर्थ है कि किसी विशेष मार्ग पर गन्तव्य स्थान तक पहुँचने में लगा समय तथा लागत दूरी यात्रा में आय खर्च कहलाती है।
परिवहन सेवा को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
परिवहन की माँग-यह जनसंख्या के आकार पर निर्भर करती है। जितनी अधिक जनसंख्या होगी उतनी ही अधिक परिवहन की माँग होगी।
मार्ग – यह नगरों, गाँवों, औद्योगिक केन्द्रों तथा कच्चा माल क्षेत्र की स्थिति पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त किस प्रकार की उच्चावच, जलवायु तथा बाधाओं को दूर करने के लिए उपलब्ध साधन पर भी निर्भर करता है।
संचार सेवाएँ सूचना भेजने और तथ्यों का आदान-प्रदान है। लिखाई के आविष्कार ने सूचनाओं को सुरक्षित रखने में सहायता की है जो परिवहन साधनों पर निर्भर करती है। ये सूचनाएँ मनुष्य, जानवर, सड़क अथवा रेलमार्ग द्वारा ले जाई जाती हैं। यहाँ परिवहन साधन कुशल हैं संचार का प्रसारण आसान हो जाता है। कुछ विकास कार्य जैसे मोबाइल टेलिफोन तथा उपग्रह ने संचार को परिवहन से संयुक्त कर दिया है। अभी सभी प्रकार के कार्य से मुक्त नहीं हुए हैं। बड़ी मात्रा में डाक को अभी भी डाकघरों द्वारा वितरित किया जाता है।
प्रश्न 23. “परिवहन के सभी साधन एक-दूसरे के पूरक होते हैं।” विवेचना करें।
उत्तर: देश के निरन्तर आर्थिक विकास में सुचारू और समन्वित परिवहन प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। परिवहन के साधन किसी देश में उतना ही महत्व रखते हैं जितना मानव शरीर में रक्त धमनियाँ। परिवहन के साधनों के प्रसार से देश में उद्योग एवं व्यवसाय की भी उन्नति होती है और आर्थिक विकास का स्तर ऊँचा होता है।
भारत में विकसित देशों की तुलना में परिवहन के साधनों की कमी है फिर भी इनके साधन एक-दूसरे के पूरक होते हैं।
स्थल परिवहन (Land Transport) – स्थल परिवहन के अंतर्गत तीन परिवहन प्रणालियों को सम्मिलित किया जाता है-सड़क परिवहन, रेल परिवहन और पाइप लाइन।
जल परिवहन के अंतर्गत आंतरिक जल परिवहन तथा सामुद्रिक जल परिवहन का अपना विशेष महत्त्व होता है।
वायु परिवहन सबसे तेज एवं महँगा परिवहन का साधन है, किंतु भारत में यह बहुत महत्त्वपूर्ण साधन है।।
प्रश्न 24. पाइपलाइन परिवहन की उपयोगिता पर उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर: पाईप लाईनें परिवहन का नवीनतम साधन है। इनकी सहायता से खनिज तेल का परिवहन किया जाता है। इस प्रकार की तेल ढोने वाली पाईप लाईने सभी तेल उत्पादक देशों में बनायी गयी है। इन पाईप लाईनों की सहायता से खनिज तेल, तेल क्षेत्रों से तेल शोधक क्षेत्रों अथवा बन्दरगाहों तक पहुँचाया जाता है। इसी प्रकार खनिज तेल, शोधनशालाओं से बड़े-बड़े नगरों को भेजा जाता है जहाँ इसका उपयोग किया जाता है। यद्यपि इन पाईप लाईनों का निर्माण बहुत महँगा पड़ता है परन्तु बाद में इन पाईप लाईनों की सहायता से तेल को बन्दरगाहों तक ले जाना सस्ता पड़ता है।
खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए पाईप लाईनों का उपयोग किया जाता है। खनिज तेल और प्राकृतिक गैस प्रायः ऐसे स्थानों पर निकलते हैं जहाँ उनका उपयोग नहीं हो सकता। अत: उन्हें पाईप लाईनों की सहायता से उत्पादन के स्थान से उनके उपयोग के स्थान अथवा तेल शोधनशालाओं तक पहुँचाया जाता है।
पाईप लाईनों से तेल और गैस ले जाने में सुविधा रहती है तथा व्यय भी कम होता है। विश्व में अनेक तेल उत्पादक देशों ने इन पाईप लाईनों का निर्माण किया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में 1,60,000 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईनें हैं जो विश्व में सबसे लम्बी है।
यहाँ तेल पाईप लाईन एडमोण्टन से सुपीरियर झील के तट तक बिछाई गयी है। यहाँ से यह पाईप लाईन ओण्टेरियो में सरनिया तक है। यह पाईप लाईन 1,840 किलोमीटर लम्बी है।
इसी प्रकार की पाईप लाईन एडमोण्टन से बैंकूवर तक है। यह लगभग 1,150 किलोमीटर लम्बी पाईप लाईन है।
दक्षिणी-पश्चिमी एशिया में बहरीन से सिदोन तक, किरकुक से हैफा तक तथा किरकुक से बनियास तक तथा ईरान में तेल क्षेत्र से अबादान तक इराक में किरकुक तेल क्षेत्र से हैफा तक पाईप लाईन बिछाई गई है।
सऊदी अरब के अबक्वेक व निकट के तेल क्षेत्रों से दोहरी पाईप लाईन एवं जल की पाईप लाईन हैफा बन्दरगाह तक चली गयी है। ट्रान्स अरेबियन पाईप लाईन (टैपलाईन) बहुत महत्त्वपूर्ण एवं 1,600 किलोमीटर लम्बी है तथा इसका व्यास 75 सेमी है। यह रासतनूरा से साइस तक बिछाई गई है। रूप में कॉमकॉन नामक पाईप लाईन प्रमुख है जो यूराल तथा वोल्गा क्षेत्रों से पूर्वी यूरोपीय देशों को खनिज तेल पहुँचाती है।
भारत में असोम तेल क्षेत्र (नूनामती) से बरौनी तक, नहीकटिया से नूनामती तक, काण्डला के निकट साला से मथुरा तक, गुवाहाटी से सिलीगुड़ी तक, बरौनी से कानपुर तक पाईप लाईनों का निर्माण किया गया है। मथुरा से दिल्ली होकर लुधियाना तक एवं अंकलेश्वर से कोयली तक पाईप लाईनें बिछाई गई है।
ग्रेट ब्रिटेन में समुद्री भाग से तेल और प्राकृतिक गैस प्राप्त होती है। रफ, वेस्टपोल, वाइकिंग, इंडीफेटीगेवन, लेमन और हेवेट इसके मुख्य केन्द्र हैं। यहाँ से पाईप लाईनों की सहायता से गैस तथा तेल इंजिगटन, ब्रेकटन और तटवर्ती नगरों को भेजे जाते हैं जहाँ से पुनः लाईप लाईनों की सहायता से गैस और तेल भीतरी भागों को भेजे जाते हैं।
रूस परिसंघ में खनिज तेल और गैस पाईप लाईनों की सहायता से भेजी जाती है। रूस परिसंघ में लगभग 900 किलोमीटर लम्बी इन पाईप लाईनों द्वारा प्राकृतिक गैस भी ले जायी जाती है। सबसे अधिक गैस पाईप लाईन संयुक्त राज्य अमेरिका में है। भारत में प्राकृतिक गैस के परिवहन, संसाधन प्रक्रिया और बाजार में आपूर्ति का दायित्व भारत गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) का है।
यह भारत की गैस आपूर्ति की सबसे बड़ी कम्पनी है। यह 4,200 किलोमीटर से अधिक पाईप लाईनों द्वारा परिसंचालन करती है। भारत में एच० वी० जे० (हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर) पाईप लाईन बिछाई गई है जो 1,730 किलोमीटर लम्बी है।
प्रश्न 25. चतुर्थक क्रियाकलापों का विवरण दें।
उत्तर: वर्तमान समय में मानव के आर्थिक क्रियाकलाप दिनोंदिन बहुत ही विशिष्ट एवं जटिल होते जा रहे हैं जिनमें क्रियाकलापों का एक नवीन रूप चतुर्थक क्रियाकलापों के रूप में सामने आया है। मानव की कानून, वित्त, शिक्षा, शोध और संचार से जुड़ी उन आर्थिक गतिविधियों को, जो सूचना के संसाधन और सूचना के प्रसारण से सम्बन्धित हैं, चतुर्थक क्रियाकलाप के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में और विशेषकर विकसित देशों में चतुर्थक क्रियाकलापों में लगे लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। इस व्यवसाय के लोगों में उच्च वेतनमान तथा पदोन्नति की चाह में गतिशीलता अधिक पायी जाती है।
कम्प्यूटर के बढ़ते प्रयोग तथा सूचना प्रौद्योगिकी ने इस व्यवसाय के महत्त्व को और बढ़ा दिया है। सूचना प्रौद्योगिकी की उपयोग से प्रौद्योगिकी में नये आविष्कार हुए हैं जिससे अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। वर्तमान प्रौद्योगिकी क्रांति की मुख्य विशेषता ज्ञान उत्पादन तथा सूचना प्रौद्योगिकी के कारण औद्योगिक समाज के तकनीकी तत्त्वों में परिवर्तन आ गया है और वर्तमान आर्थिक क्रियाकलाप मुख्य रूप से उन अप्रत्यक्ष उत्पादों से प्रभावित हो गये हैं जिनके उत्पादन में ज्ञान, सूचना तथा संचार अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। कम्प्यूटर के बढ़ते उपयोग तथा इंटरनेट के विस्तार होने से आर्थिक क्रियाकलापों का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है।
अब लोग अपने कार्यालय या घर में बैठे-बैठे ही दूसरे लोगों से प्रत्यक्ष सम्पर्क करके अपना व्यापार चलाते हैं। वित्तीय साधनों के इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लेन-देन अब अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु बन गया है। इससे पूँजी का स्थ गन्तरण क्षण भर में विश्व के किसी भी कोने में किया जा सकता है। इससे वित्तीय बाजार का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो रहा है। इस अंतर्राष्ट्रीयकरण का प्रभाव वैश्विक नगरों के विकास के रूप में पड़ा है। लंदन, न्यूयार्क तथा टोकियो ऐसे ही वैश्विक नगर (Global Cities) हैं।
ऊपर बताया गया है कि इंटरनेट के प्रयोग से बहुत सुविधा हो गयी है किन्तु यह सुविधा भी पदानुक्रम रूप में मिलता है अर्थात् कहीं यह सुविधा बहुत उच्च स्तर की है, जबकि अन्य जगहों पर इसका विस्तार नहीं हो पाया है। विश्व में सकैण्डिनेविया के देश, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया आदि इंटरनेट के द्वारा अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। इसके बाद यू० के०, जर्मनी तथा जापान का स्थान आता है।
प्रश्न 26. विश्व के वे कौन-से प्रमुख प्रदेश हैं जहाँ वायुमार्ग का सघन तंत्र पाया जाता है ?
उत्तर: संसार में सघन वायु मार्ग वाले क्षेत्र हैं-
- पश्चिमी यूरोपा
- पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका।
- दक्षिणी-पूर्वी एशिया।
अमेरिका अकेला ही विश्व के 60% वायु परिवहन का प्रयोग करता है। न्यूयार्क, लन्दन, पेरिस, अर्सटरडम, फ्रेन्क फर्ट रोम, बैंकॉक, मुम्बई, करांची, नई दिल्ली, लांस ऐंजल्स आदि ऐसे केन्द्र हैं जहाँ से वायु परिवहन भिन्न देशों को जाता है अथवा इन केन्द्रों पर आता है।
अफ्रीका, रूस का एशियाई भाग तथा दक्षिणी अमेरिका में वायु सेवा कम है।
प्रश्न 27. वे कौन-सी विधाएँ हैं जिनके द्वारा साइबर स्पेस मनुष्यों के समकालीन आर्थिक और सामाजिक स्पेस की वृद्धि करेगा ?
उत्तर: साइबर स्पेस इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटराइज्ड स्पेस की दुनिया है। यह इन्टरनेट जैसे W.W.W. द्वारा घेरा हुआ है। यह इलेक्ट्रॉनिक डिजीटल है जो कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा सूचना भेजने के लिए होता है जिसमें प्रेषक और प्राप्तकर्ता को कोई भौतिक गति नहीं करनी होती। साइबर स्पेस सभी स्थानों पर होता है। यह कार्यालय नाव, वायुयान तथा अन्य सभी स्थानों पर होता है।
इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क की गति जिस पर यह कार्य करता है, असामान्य होती है जो मानव इतिहास में अद्वितीय है। 1955 में इण्टरनेट के उपयोगकर्ता की संख्या-50 मिलियन थी जो 2000 में बढ़कर 400 मिलियन हो गई और 2005 में बढ़कर एक बिलियन से भी अधिक है। 2010 तक इसमें अन्य बिलियन और मिल जायेंगे। पिछले पांच सालों में सं० रा० अमेरिका के उपभोग में परिवर्तन आ गया है। यू० एस० ए० का प्रतिशत 66 से घटकर 1995 से 2005 तक 25 रह गया है। विश्व के उपभोगकर्ताओं में यू० एस० ए० के बाद जर्मनी, जापान, चीन और भारत की संख्या अधिक है।
साइबर स्पेस समकालीन आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में ईमेल, ई-कॉमर्स-लर्निंग आदि द्वारा परिवर्तन लायेगा। फैक्स, टी० वी०, रेडियो के साथ इण्टरनेट प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच में हो जायेगा। यह आधुनिक संचार प्रणाली है।
प्रश्न 28. परिवहन के रूप में रेलमार्गों के महत्त्व और उनके वितरण प्रारूप की विवेचना कीजिए।
उत्तर: रेलमार्गों का महत्त्व (Importance of Railways) – रेल स्थल पर तीव्र गति से चलने वाला परिवहन साधन है।
इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- रेलमार्गों द्वारा मोटरों एवं ट्रकों की अपेक्षा अधिक माल एवं यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है।
- रेलमार्गों द्वारा अधिक भार वाले माल को ढोना आसान होता है।
- रेलमार्ग लम्बी दूरी के लिए उत्तम परिवहन का साधन है।
- यात्री रेलगाड़ियों में यात्रियों को सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
- औद्योगिकी विकास के साथ-साथ रेलें किसी देश का राजनैतिक स्थिरता बनाये रखने में भी सहायक होती है।
- शीघ्रनाशी वस्तुओं के परिवहन के लिए प्रशीतित डब्बों का प्रयोग किया जाता है।
- रेलों द्वारा देश के आर्थिक विकास में बहुत मदद मिलती है।
वितरण प्रारूप (Distribution Pattern) – संसार के आर्थिक रूप से विकसित देशों में रेलों का जाल बिछा हुआ है।
- दक्षिणी अमेरिकी इस महाद्वीप में अर्जेन्टाइना और ब्राजील के आन्तरिक भाग, बंदरगाहों से रेलमार्ग द्वारा जुड़े हैं। इस क्षेत्र में रेलों का सघन जाल है। पंपास का गेहूँ, रेलों द्वारा बंदरगाहों तक लाया जाता है।
- पश्चिम यूरोप में रेलमार्गों का सघन जाल है। बेल्जियम में रेलों का संसार में सघनतम जाल है। यहाँ रेलों का घनत्व 6.5 वर्ग कि० मी० क्षेत्र में 1 किमी० है।
- उत्तरी अमेरिका में रेलों का सघन जाल है। संसार के 40% रेल मार्ग इसी महाद्वीप में हैं। यहाँ खनिज, अनाज, इमारती लकड़ी की ढुलाई रेलों द्वारा होती है।
- उपनिवेशों में रेलमार्ग : यूरोप के उपनिवेशवादी देशों ने एशिया और अफ्रीका के आन्तरिक भागों को बंदरगाहों से जोड़ा था जिनसे कच्चा माल बंदरगाहों तक आता था।
इनके अतिरिक्त विश्व में अन्तरमहाद्वीपीय रेलमार्गों का भी निर्माण हुआ है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं
1. ट्रांस-साइबेरियन रेलवे (Trans-siberian Railways) – यह रेलमार्ग विश्व का सबसे लम्बा रेलमार्ग है। इसकी लम्बाई 933 कि० मी० है। यह पश्चिम में लेनिनग्राड को पूर्व में ब्लाडीवोस्टक से जोड़ता है। इस रेलमार्ग के प्रमुख स्टेशन खवारोवस्क, इर्कुटस्क, तामशेट, ओमस्क, टोमस्क, पर्म तथा मास्को हैं।
आर्थिक महत्त्व – मास्को क्षेत्र से मशीनरी और औद्योगिक उत्पाद पूर्व की ओर जाता है। यूराल क्षेत्र के धातु खनिज और मशीनें पश्चिम की ओर जाते हैं। कोयला, लकड़ी, खनिज तेल, कृषि और औद्योगिक उत्पादों का पूर्व से पश्चिम के बीच परिवहन होता है।
कई नाव्य नदियों जैसे वोल्गा, ओबे, यनीशी, आमूर को रेलमार्ग पार करता है। नदी मार्गों द्वारा दक्षिण की ओर माल भेजता है।
2. कनाडियन पैसिफिक रेलमार्ग (Canadian Pacific Railways) – यह रेलमार्ग पूर्व में हैलीफेक्स से पश्चिम में बैंकूवर तक जाता है। यह रेलमार्ग 7050 किमी० लम्बा है। इस रेलमार्ग के प्रमुख स्टेशन हैं : मान्ट्रियल, ओटावा, एडनबरी, विनिपेग आदि।
इस रेलमार्ग का कनाडा के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसकी एक शाखा व्यबेक से हर्ट होती हुई विनिपेग तक जाती है। यह रेलमार्ग क्यूबेक माण्ट्रियल के औद्योगिक प्रदेशों को मुलायम लकड़ी के क्षेत्र तथा प्रेयरी के गेहूँ प्रदेश से जोड़ता है। प्रेयरी के गेहँ को सेंट लारेंस जल मार्ग तक पहुँचाता है।
आस्ट्रेलियन अन्तरमहाद्वीपीय रेलमार्ग (Australian Transcontinental Railways) – यह रेलमार्ग पूर्व में सिडनी से पश्चिम में पर्थ तक चला जाता है। पूर्व से पश्चिम की ओर प्रमुख स्टेशन हैं-ब्रोकनहिल, टारकूला डीकिन, कालगूब और नार्थन। इस रेलमार्ग से लौह अयस्क की ढुलाई की जाती है।
प्रश्न 29. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उत्तरी अटलांटिक समुद्री मार्ग के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सर्वाधिक प्रचलित एवं व्यस्त जलमार्ग उत्तरी अलटलांटिक जलमार्ग है। यह मार्ग भूमध्यसागर और पश्चिमी यूरोप के सागरों से होते हुए उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट तक फैला है। यह मार्ग अमेरिका एवं कनाडा के उपजाऊ तथा पश्चिमी यूरोपीय औद्योगिक देशों को जोड़ने का काम करता है। प्राकृतिक दृष्टि से यह जलमार्ग बहुत ही उपयुक्त एवं सुरक्षित है।
सही अर्थों में इस जलमार्ग के दोनों ओर कई बड़े एवं विख्यात बंदरगाह विकसित हैं। इन बंदरगाहों की पृष्ठभूमियों में उपजाऊ मैदान, विशाल औद्योगिक पृष्ठभूमि में सड़कों एवं रेलमार्गों । का जाल होने से वस्तुओं के अतिरिक्त उत्पाद का व्यापार अधिक होता है। संपूर्ण विश्व के मालवाहक जहाजों द्वारा ढोए जानेवाले माल का 25% इसी मार्ग द्वारा ढोया जाता है तथा सभी जलमार्गों पर चलनेवाले यात्री का 50% इसी जलमार्ग पर यात्रा करते हैं।
इस जलमार्ग की विशेषता है कि इनमें पूरब की ..र जानेवाले माल का आयतन, पश्चिम को ओर जानेवाले माल के आयतन के करीब 5 गुणा अधिक होता है।
प्रश्न 30. विश्व में सड़कों और महामार्गों के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर: विश्व में सड़कों का विकास मुख्यतः उन देशों में हुआ है जो आर्थिक दृष्टि से अधिक विकसित हैं। विश्व में सड़कों की लम्बाई रेलमार्गों की लम्बाई से 13 गुना अधिक है।
महामागों का वितरण (Distribution of Highways)-
- संयुक्त राज्य अमेरिका में लम्बी दू। के महामार्गों का घना जाल है। यहाँ महामार्गों द्वारा देश के पूर्वी तट पर स्थित नगरों को पश्चिमी तट के नगरों से मिलाते हैं। यहाँ इन महामार्गों को मोटर वेज कहते हैं।
- कनाडा के उत्तर में स्थित नगर भी महामार्गों द्वारा दक्षिण में मेक्सिको के नगरों से जुड़े हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका से होकर गुजरते हैं।
- कनाडा पारीय महामार्ग पश्चिमी तट के वैंकूवर को पूर्वी तट के न्यूफाउंडलैंड से जोड़ता है।
- अलास्का महामार्ग दक्षिणी कनाडा के एडमांटन नगर को अलास्का के अंकरेज नगर से जोड़ता है।
- भारत में भी अनेक राष्ट्रीय महामार्ग हैं। ये महामार्ग देश के बड़े नगरों को आपस में जोड़ते हैं।
- प्रस्तावित पैन अमेरिकन महामार्ग विश्व का सबसे लम्बा महामार्ग है जो दक्षिण अमेरिका में चिली के नगर को उत्तर अमेरिका में अलास्का के नगरों से जोड़ेगा। इसका अधिकांश भाग बनकर तैयार है।
- चीन में उत्तर-दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम के नगरों को महामार्गों द्वारा जोड़ा गया है।
- अफ्रीका में एक महामार्ग अल्जीयर्स को एटलस पर्वत तथा सहारा मरुस्थल के पास गिनी में स्थित कोनाक्री से जोड़ता है।
प्रश्न 31. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देश कैसे लाभ प्राप्त करते हैं ?
उत्तर: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विश्व के अन्य देशों के साथ वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से देशों को निम्न लाभ पहुँचता है-
- राष्ट्र उन वस्तुओं का आयात कर सकते हैं जिनका उनके यहाँ उत्पादन नहीं होता तथा सस्ते मूल्य पर खरीद सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से देशों में आपसी सहयोग और भाईचारा बढ़ता है।
- देश अपने यहाँ अतिरिक्त उत्पादन को उचित मूल्य पर अन्य देशों को बेच सकते हैं जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी।
- देश अपने विशिष्ट उत्पादन का निर्यात कर सकते हैं। इससे विश्व अर्थव्यवस्था में सुधार आता है।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्तों और वस्तुओं के स्थानान्तरण के सिद्धान्त पर निर्भर करता है जिससे व्यापार करने वाले देशों को लाभ ही पहँचता है।
- आधुनिक युग में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत प्रौद्योगिक ज्ञान तथा अन्य बौद्धिक सेवाओं का भी आदान-प्रदान किया जाता है जिससे दोनों देशों को लाभ पहुँचता है।
प्रश्न 32. पत्तन कितने प्रकार के होते हैं ? प्रत्येक का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर: समुद्री तट का वह स्थान जहाँ से भारी मात्रा में माल समुद्री मार्गों से स्थल मार्गों द्वारा और स्थल मार्गों से समुद्री मार्ग द्वारा भेजा जाता है, पत्तन कहलाता है। पत्तन नौ प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1. सवारी पत्तन (Passenger Ports) – वे पत्तन जहाँ से दूसरे देशों के लिए यात्रियों को ले जाया जाता है अथवा दूसरे देशों से यात्रियों को लाया जाता है।
2. वाणिज्यिक पत्तन (Commercial Ports) – ये मुख्यतः सामान के आयात एवं निर्यात के कार्य संपन्न करते हैं।
3. आंत्रेपो पत्तन (Entrepat Ports) – ऐसे पत्तनों पर जो माल आता है उसका गन्तव्य अन्य देश होते हैं, अतः उस माल का संचय बड़े गोदामों में किया जाता है तथा दूसरे देशों को भेजा जाता है। उदाहरण के लिए एशिया में सिंगापुर तथा यूरोप में रॉटरडम एवं कोपेनहेगेन बाल्टिक क्षेत्रों के लिए आंत्रेपो पत्तन हैं।
4. बाह्य पत्तन (Out Ports) – ये गहरे पानी के पत्तन हैं। ये वास्तविक पत्तनों से दूर गहरे समुद्र में बनाये जाते हैं, क्योंकि जलपोत या तो अपने बड़े आकार के कारण या अधिक मात्रा में अवसाद एकत्रित हो जाने के कारण वास्तविक पत्तन तक नहीं पहुंच पाते। बास्टिल ऐसा ही पत्तन है।
5. पैकेट स्टेशन (Packet Stations) – इनको ‘फैरीपोर्ट’ (Ferry port) भी कहा जाता है। इनका प्रयोग छोटी समुद्री मार्ग से आने वाले यात्रियों को उतारने-चढ़ाने तथा डाक लेने तथा देने के लिए किया जाता है। इसमें प्रायः दो स्टेशन आमने-सामने होते हैं। उदाहरण के लिए इंग्लिश चैनल के एक ओर डोवर और दूसरी ओर कैले हैं।
6. आंतरिक पत्तन (Inland Ports) – ये पत्तन समुद्र से दूर स्थल खंड के भीतर स्थित होते हैं परंतु नदी या नहर द्वारा समुद्र से जुड़े होते हैं, जिससे विशेष प्रकार के पोत बजरों की सहायता से इन तक पहुँचते हैं। जैसे मैनचेस्टर, मैन्फिस, कोलकाता, हानकाऊ।
7. नेवी पत्तन (Naval Ports) – यहाँ नौ-सेना के लड़ाकू जहाज खड़े रहते हैं। भारत में कोचीन तथा कारवार इसके उदाहरण हैं।
8. पोर्ट ऑफ कॉल (Port of Call) – बहुत-से ऐसे पत्तन समुद्री मार्ग के साथ विकसित हुए हैं जहाँ जलपोत ईंधन, पानी तथा खाना लेने के लिए रुकते हैं। इस प्रकार के पत्तनों में अदन, होनोलूलू तथा सिंगापुर हैं।
9. तेल पत्तन (Oil Ports) – इस प्रकार के पत्तन वर्तमान शताब्दी की देन हैं तथा इनका विकास हाल ही में हुआ है। तेल का महत्त्व आधुनिक अर्थव्यवस्था में बढ़ता ही गया। फलस्वरूप ऐसे पत्तनों का आविर्भाव हुआ, जो तेल के निर्यात एवं आयात में विशिष्टता प्राप्त कर चुके हैं। इनमें टैंकर पत्तन हैं, जहाँ तेल के टैंकर आकर खड़े होते हैं। कुछ परिष्करणशाला के पत्तन हैं जहाँ परिष्करणशालाएँ स्थापित हो गईं। जैसे-बेनेजुएला में माराकायबो, ट्यूनीशिया का अत्सखीरा तथा लेबनान का त्रिपोलो टैंकर पत्तन तथा अबादान परिष्करणशाला का पत्तन है।
प्रश्न 33. ऊर्ध्वाधर व्यापार और क्षैतिज व्यापार में अंतर बताएँ।
उत्तर: ऊर्ध्वाधर व्यापार और क्षैतिज व्यापार में निम्नलिखित अंतर है-
प्रश्न 34. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रादेशिक व्यापार संघों के बढ़ते महत्त्व का युरोपीय संघ, ओपेक तथा आसियान के विशेष संदर्भ में व्याख्या करें।
उत्तर: अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की आधारभूत संरचना कुछ व्यापार संघों के ऊपर आश्रित होती है। व्यापार संघ ऐसे देशों का समूह है जिनके भीतर व्यापारिक अनुबंधों की सामान्यीकृत प्रणाली कार्य करती है।
विश्व के प्रमुख व्यापारिक संघों में यूरोपियन संघ, ओपेक तथा आसियान आदि हैं। इन संघों की सदस्यता पर निम्न तीन बातों का प्रभाव पड़ता है-
- दूरी,
- उपनिवेशी संबंधी परम्परा,
- भू-राजनैतिक सहयोग।
1. यरोपीय संघ (E.U.) – यूरोपीय संघ का गठन 1957 में रोम संधि के फलस्वरूप छः देशों ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड द्वारा किया गया। इसे पहले यूरोपीय आर्थिक समुदाय कहा गया, बाद में इसमें पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देशों को सम्मिलित किया गया। इसने यूरोप को 1970 के पेट्रोल संकट और धीमी आर्थिक वृद्धि के दुष्प्रभाव से उबरने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। इसने 1972 में अनेक व्यापार निषेधों के उन्मूलन की एक महत्त्वाकांक्षी योजना आरंभ की।
2. पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) (OPEC) – ओपेक में 13 देश हैं। अल्जीरिया, इक्वेडोर, गैबन, इंडोनेशिया, ईरान, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेजुएला। यह संगठन 1960 में पेट्रोल उत्पादक देशों द्वारा बनाया गया।
3. आसियान (ASEAN) – दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन का गठन 1967 में हुआ था। इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, फिलीपींस और सिंगापुर जैसे देश इसके सदस्य हैं। एशियाई तथा शेष संसार के देशों के बीच व्यापार शुल्क पर प्रदेश के भीतर के देशों की तुलना में अधिक तीव्र गति से बढ़ रहा है। जापान, यूरोपीय संघ तथा आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से व्यापारिक बातचीत करते समय आसियान अपने सदस्य देशों को एक संयुक्त मसौदा का उदाहरण प्रस्तुत करके उनकी मदद करता है। आजकल भारत भी इसका एक सह-सदस्य बन गया है।
प्रश्न 35. ग्रामीण तथा नगरीय बस्ती किसे कहते हैं ? उनकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर: ग्रामीण बस्तियाँ (Rural Settlement) – ये बस्तियाँ जो भूमि से सीधी तथा काफी नजदीकी से जुड़ी हुई होती हैं ग्रामीण बस्तियाँ कहलाती हैं। इन बस्तियों में मुख्यतः लोग प्राथमिक व्यवसाय में लगे होते हैं।
विशेषताएँ (Characteristics)-
- ग्रामीण बस्ती का भूमि से गहरा सम्बन्ध तथा प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।
- ग्रामीण बस्ती में लोगों का प्रमुख कार्य कृषि, पशुपालन, मत्स्य जैसे प्राथमिक कार्य होते हैं।
- उनके आकार अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और लोग सामाजिक रूप में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
नगरीय बस्ती (Urban Settlements) – वे बस्तियाँ जहाँ अधिक क्रिया में संकेन्द्रित होती हैं और जहाँ अधिकतर लोग द्वितीयक और तृतीयक व्यवसायों में लगे होते हैं।
विशेषतायें (Characteristics)-
- अधिकतर लोग गौण एवं तृतीयक व्यवसाय करते हैं।
- आवासीय स्थलों की कमी के कारण कई मंजिल वाली इमारतें होती हैं।
- नगरों में ग्रामों से अधिक सुविधायें पाई जाती हैं।
- नगरों में प्रदूषण की भी समस्या होती है।
प्रश्न 36. भारत की जनसंख्या के लिंग संघटन के प्राथमिक प्रतिरूपों की विवेचना कीजिए तथा उच्च लिंग अनुपात संकुलों के नाम लिखें।
उत्तर: लिंग अनुपात प्रत्येक प्रदेश में भिन्न होता है। भारत का लिंगानुपात राष्ट्रीय स्तर पर 933 है।
- दक्षिण भारत के राज्यों में लिंग अनुपात अधिक है। केरल में लिंगानुपात सबसे अधिक है। यह 1058 है।
- दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में लिंग अनुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है। यह तमिलनाडु में 286, आंध्र प्रदेश में 978 और कर्नाटक में 973 है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों में लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
- उत्तरी गरत में हिमाचल प्रदेश में 970 तथा उत्तरांचल में 964 है।
- भारत में 18 राज्यों में लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से कम है। उच्च लिंगानुपात वाले संकुल हैं : (i) केरल (1058), (ii) छत्तीसगढ़ (990), (iii) तमिलनाडु (986)।
प्रश्न 37. भारत में जनसंख्या के घनत्व के स्थानिक वितरण की विवेचना कीजिए।
उत्तर: जनसंख्या के घनत्व को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर व्यक्तियों की संख्या द्वारा व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली का जलघनत्व 9294 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है।
राज्य स्तर पर जनसंख्या घनत्व भिन्न-भिन्न है। यह अरुणाचल राज्य में 13 व्यक्ति तथा पश्चिम बंगाल में 904 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। बिहार का दूसरा स्थान (880) तथा केरल का तीसरा स्थान (819) है।
केरल और तमिलनाडु को छोड़कर अन्य दक्षिणी राज्य मध्य जनघनत्व वाले हैं। 100 से 300 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० जनघनत्व वाले राज्य हैं-मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़ तथा नागालैंड, हिमाचल, मणिपुर, मेघालय आदि सबसे कम घनत्व वाले राज्य हैं। जम्मू तथा कश्मीर (99), सिक्किम (76), मिजोरम (42) तथा अरुणाचल प्रदेश, (13) जिला स्तर पर जनघनत्व का प्रारूप निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जाता है-
- बहुत कम घनत्व के क्षेत्र (Very low density regions) – इस वर्ग में 32 जिले आते हैं। इनमें 50 मनुष्य प्रति वर्ग किमी. से भी कम हैं। ये जिले उत्तर, उत्तर-पूर्वी भारत और राजस्थान तथा गुजरात के जिले हैं।
- कम घनत्व के क्षेत्र (Low density regions) – इस वर्ग में 51 में 100 मनुष्य प्रति वर्ग किमी घनत्व वाले जिले हैं। ये भारत के 23 जिले हैं जो पहाड़ी तथा शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं।
- मध्यम घनत्व के क्षेत्र (Average density regions) – इनमें घनत्व 101 से 200 मनुष्य प्रति वर्ग किमी. पाया जाता है। इन जिलों की संख्या 172 है। ये जिले राजस्थान, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि के हैं।
- उच्च घनत्व के क्षेत्र (High density regions) – यहाँ घनत्व 201 से 400 मनुष्य प्रति वर्ग किमी. है। इस वर्ग में 123 जिले हैं। ये मुख्यतः तमिलनाडु, तटीय उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा आदि में हैं।
- अत्यधिक घनत्व के क्षेत्र (Highest density regions) – इनमें 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी०, जन घनत्व होता है। इन जिलों में नगरीकरण अधिक हुआ है। इनमें कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद जैसे बड़े नगर आते हैं।
इनमें पंजाब, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के जिले शामिल हैं। इनकी संख्या 162 है।
प्रश्न 38. जनसंख्या का अंकगणितीय घनत्व तथा कायिक घनत्व में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर: जनसंख्या का अंकगणितीय घनत्व तथा कायिक घनत्व में निम्नलिखित अन्तर है-
प्रश्न 39. भारत में जनसंख्या के असमान वितरण के कारकों की विवेचना करें।
उत्तर: संपूर्ण संसार में जनसंख्या का असमान वितरण पाया जाता है। कहीं अत्यधिक सघन जनसंख्या पाई जाती है, तो कहीं जनविहीन क्षेत्र पाए जाते हैं। कई ऐसे प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्व हैं, जो जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक तत्व निम्नलिखित हैं-
- स्थलाकृति – उपजाऊ मैदानी क्षेत्र जनसंख्या वृद्धि में सहायक है, तो अनुपजाऊ पहाड़ी पठारी क्षेत्र जनसंख्या को बिखेरता है।
- जलवायु – अनुकूल शीतोष्ण जलवायु जनसंख्या को आकर्षित करती है, तो अत्यधिक शीतप्रधान या गर्म गमरुस्थलीय क्षेत्र जनविहीन रहते हैं।
- वनस्पति – खनिज एवं जल की उपलब्धता जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करती है।
- सांस्कृतिक कारक – उद्योग धंधों का विकास, परिवहन के साधनों का विकास, नगरीकरण की सुविधाएँ, चिकित्सा केन्द्र, शिक्षा केन्द्र तथा धार्मिक स्थल जनसंख्या के वितरण पर प्रभाव डालते हैं।
- आपदा – सूखा, महामारी, अकाल, बाढ़, भूकम्प आदि क्रियाएँ जनसंख्या को कम करने तथा उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने को मजबूर करती हैं, जिससे जनसंख्या का वितरण प्रभावित होता है।
प्रश्न 40. भारत में जनसंख्या वृद्धि से हुए परिणामों पर प्रकाश डालें।
उत्तर: भारत की जनसंख्या पिछली शताब्दी में विस्फोटक रूप से बढ़ी है। इस वृद्धि के कारण सर्वप्रथम जनघनत्व में भी जबरदस्त वृद्धि आयी है। 1901 ई० में यह घनत्व 97 व्यक्ति/वर्ग कि०मी० से बढ़कर 2001 ई० में 324 व्यक्ति/वर्ग कि० मी० हो गया है। पिछले 100 वर्षों के दौरान जनघनत्व में हुए इस आशातीत वृद्धि का प्रभाव सर्वप्रथम कृषि भूमि पर पड़ा है। 1921 ई० में देश में प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि एक एकड़ थी जो आज 0.5 एकड़ से भी कम है। प्रति व्यक्ति कृषि भूमि में भारी कमी का एकमात्र कारण ग्रामीण जनसंख्या का दबाव है। परिणामस्वरूप, खाद्य उपलब्धता भी संतोषजनक नहीं है। खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के बावजूद प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता 500 ग्राम के निकट है। जबकि इसे 650-700 ग्राम होनी चाहिए।
इसी तरह भारत का एक बड़ा समूह अधिवास की सुविधा से वंचित है। साथ ही गरीबी रेखा के नीचे रहनेवालों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। इसके बावजूद नगरीय जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि आयी है। 1901 ई० में देश में एक महानगर था जिसकी संख्या 2001 ई० में बढ़कर 35 हो गयी है। इसके साथ ही साथ अनुत्पादक और बेरोजगारी की संख्या तथा पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ भी जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ी है।
प्रश्न 41. भारत में जनसंख्या वृद्धि की किन्हीं तीन अवस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: भारत में जनसंख्या वृद्धि की तीन अवस्थायें निम्नलिखित हैं-
- धीमी वृद्धि की अवधि (1901-1921) – 1921 से पूर्व जनसंख्या की वृद्धि धीमी थी क्योंकि इस अवधि में जन्मदर और मृत्युदर दोनों ही उच्च थी। मृत्यु दर ऊँची होने का मुख्य कारण चिकित्सा सविधाओं का अभाव था।
- निरंतर वृद्धि की अवधि (1921-51) – इस अवधि में जनसंख्या की वृद्धि निरंतर परंतु मंद गति से हुई। चिकित्सा सुविधाओं ने मृत्युदर को कम किया।
- तीव्र वृद्धि की अवधि (1951-81) – इस अवधि में भारत की जनसंख्या लगभग दो गुनी हो गई। चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के कारण मृत्यु दर तेजी से गिरी।
- घटी वृद्धि की अवधि – 1981 के बाद जनसंख्या में वृद्धि तो हुई लेकिन वृद्धि दर में पहले की अपेक्षा क्रमिक ह्रास हुआ।
प्रश्न 42. आंतरिक प्रवास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: जनसंख्या के आवास-प्रवास, गमनागमन या प्रवसन से तात्पर्य मानव समूह अथवा व्यक्ति के भौगोलिक स्थान के संबंधों के परिवर्तन से है।संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार ‘प्रवसन एक प्रकार से भौगोलिक परिवर्तन जिसमें रहने और पहुँचने का स्थान बदल जाता है। इसमें आवास-प्रवास स्थायी होता है।डेविड हीर के अनुसार, “अपने सामान्य निवास स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाकर बसना स्थानान्तरण कहा जाता है।” जे० बोग के अनुसार, “प्रवास शब्द आवास के उन परिवर्तनों के लिए आरक्षित होता है जो किसी व्यक्ति के सामुदायिक संबंधों को पूर्णरूपेण परिवर्तन एवं पुनर्सामंजस्य से संबंधित होते हैं।” ई० एस० ली के अनुसार, “स्थानान्तरण अस्थायी आवास परिवर्तन है। इसमें दूरी का अधिक महत्त्व नहीं है।”
जब मनुष्य अपने प्रदेश या देश से अन्य स्थान या देशों में जाता है तो वह प्रवासी कहलाता है। जैसे-जैसे व्यक्ति बिहार से मुम्बई या चेन्नई जाकर बसता है तो लोग मुम्बई के लिए अप्रवासी होंगे लेकिन बिहार के लिए प्रवासी माने जायेंगे। लेकिन जो व्यक्ति प्रतिदिन एक गाँव या नगर से दूसरे गाँव या नगर काम करने के लिए जायेंगे तो उन्हें दैनिक प्रवासी कहेंगे।
प्रवास के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(i) भौतिक कारण – भौतिक कारणों के अंतर्गत जलवायु संबंधी परिवर्तन, भूकम्प, ज्वालामुखी, हिमराशियों का घटना-बढ़ना, मिट्टी का उपजाऊ होना, समुद्र तटों का जन्मज्जन तथा निमज्जन होना सम्मिलित किया जाता है। हमारे देश में लोग अधिक गर्मी से बचने के लिए दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास करते हैं तथा गर्मी समाप्त होते ही पुनः अपने-अपने स्थानों पर वापस आ जाते हैं। बाढ़ भी अधिक संख्या में प्रवास के लिए उत्तरदायी होते हैं।
(ii) आर्थिक कारण – इसमें रोजगार, कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि शामिल किया गया है। लोग कमाने के लिए बड़ी संख्या में गाँवों से शहरों में जाते हैं। व्यापारी भी व्यापार के लिए एक-दूसरे स्थान पर जाते हैं।
(iii) सामाजिक-सांस्कृतिक कारण – धार्मिक कारणों से भी बड़ी संख्या में प्रवास होता है। 1947 में भारत विभाजन के समय उत्पन्न स्थिति के कारण हिन्दू भारत आये तथा मुस्लिम भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गये।
(iv) राजनीतिक कारण – राजनीतिक तथा जातीय दंगों के कारण लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों को प्रवास कर जाते हैं।
प्रश्न 43. भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के परिणामों की चर्चा कीजिए।
उत्तर: सामान्यतः प्रवासी अपने साथ अपने मूल देश की तकनीक, धर्म, संस्कृति, परम्परा, रीति-रिवाज, भाषा आदि को भी ले जाते हैं और जहाँ वह बसता है, अपनी सामाजिक परम्पराओं, मूल्यों तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने के यथा संभव प्रयास करता है। प्रवासी नये परिवेश से प्रभावित हुए बिना भी नहीं रह पाता है। अतः अप्रवासी क्षेत्र में नवीन संस्कृति विकसित होती है। भारत के भी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में यह गुण परिलक्षित होते हैं।
भारत से अंतर्राष्ट्रीय प्रवास होने के कारण यहाँ के जनसंख्या का दबाव अपेक्षाकृत कुछ कम है जो भारत जैसे देशों के लिए सकारात्मक पहलू है। भारत के लोग विश्व के लगभग सभी महादेशों में फैले हुए हैं। प्रवासी समुदाय का संबंध सामान्यतः अपने मूल देश से ही बना रहता है जो दोनों देशों के व्यापारिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संबंध को प्रगाढ़ करने में सहायक होता है।
भारत के अधिकतर कार्यशील जनसंख्या, अंतर्राष्ट्रीय प्रवास करते हैं, जिससे भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसका अंततः प्रभाव राष्ट्रीय आय पर पड़ता है। साथ ही देश में स्त्रियों, बच्चों और वृद्धों का अनुपात बढ़ जाता है, जो निर्भर जनसंख्या है।
प्रश्न 44. प्रवास के सामाजिक जनांकिकीय परिणाम क्या-क्या हैं ?
उत्तर: ग्रामीण से नगरीय प्रवास नगरों में जनसंख्या की वृद्धि में योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में होन वाले आयु एवं कुशलता चरणात्मक बाह्य प्रवास ग्रामीण जनांकिकीय संघटन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और पूर्वी महाराष्ट्र में होने वाले बाह्य प्रवास इन राज्यों की आयु लिंग संरचना में गंभीर असन्तुलन पैदा कर दिए हैं। ऐसे ही असन्तुलन आदाता राज्यों में हुए।
प्रवास में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का अति मिश्रण होता है। इससे संस्कृति के उद्विकास में सकारात्मक योगदान होता है और यह अधिकतर लोगों के मानचित्र क्षितिज को विस्तृत करता है। इससे नकारात्मक परिणाम भी होते हैं। जो लोगों में सामाजिक निर्वात और खिन्नता की भावना भर देते हैं।
प्रश्न 45. भारत में सम्पूर्ण साक्षरता में प्रादेशिक परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: भारत में प्रादेशिक स्तर पर साक्षरता दर में भिन्नताएँ पाई जाती हैं। बिहार में साक्षरता दर 43.53 है जबकि केरल में यह 90.92% है। साक्षरता में केरल का प्रथम स्थान है।
केरल के अलावा 80% से अधिक साक्षरता दर वाले राज्यों में पहले स्थान पर मिजोरम (88.49%) है। गोवा को छोड़कर (82.32%) किसी अन्य राज्य में 80% से अधिक साक्षरता नहीं है।
मेघालय, उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से थोड़ा कम है।
कारण –
- अधिकतर जनसंख्या गाँवों में रहती है।
- गरीबी तथा अज्ञानता के कारण साक्षरता दर कम है।
- जम्मू-कश्मीर तथा अरुणाचल प्रदेश पर्वतीय राज्य हैं। यहाँ परिवहन के साधनों का अभाव है।
केन्द्रशासित प्रदेशों में क्रमशः लक्षद्वीप (87.52%), दिल्ली (81.82%), चण्डीगढ़ (81.72%), पांडिचेरी (81.49%), अंडमान व निकोबार (81.18%) तथा दमन व दीव (81.9%) हैं।
चित्र : साक्षरता दर
भारत के 22 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है जबकि 13 राज्यों और संघशासित प्रदेशों में औसत से कम है। इसके कारण निम्नलिखित हैं-
- उच्च नगरीकरण का कारण उच्च साक्षरता दर है।
- उत्तरी-पूर्वी राज्यों में उच्च साक्षरता दर का कारण मिशनरियों का प्रभाव है।
- कई राज्यों में साक्षरता के विकास में सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
निम्न साक्षरता दर वाले राज्यों में बिहार, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दादरा व नगर हवेली, राजस्थान व आन्ध्र प्रदेश है। इन सभी राज्यों में साक्षरता दर 54 प्रतिशत से 62 प्रतिशत के बीच है।
प्रश्न 46. भारत के 15 प्रमुख राज्यों में मानव विकास के स्तरों में किन कारकों ने स्थानिक भिन्नता उत्पन्न की है ?
उत्तर: मानव विकास को प्रभावित करने वाले सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक कारक उत्तरदायी हैं। इनमें शिक्षा महत्त्वपूर्ण है। केरल के मानव विकास सूचकांक का उच्चतम मूल्य इसके द्वारा 2001 में साक्षरता दर शत प्रतिशत (90.92) प्राप्त करने के कारण हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों में निम्न साक्षरता दर है।
आर्थिक कारक (Economic factor) – आर्थिक दृष्टि से विकसित महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्य के विकास सूचकांक अन्य राज्यों से ऊँचे हैं।
उपनिवेश काल में विकसित प्रादेशिक विकृतियाँ और सामाजिक विषमताएँ अब भी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल रही है।
निम्न सारणी भारत के राज्यों का मानव विकास दर्शाती है जो 2001 के सूचकांक के आधार पर है।
प्रश्न 47. प्रतिरूप के आधार पर ग्रामीण अधिवासों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
अथवा, ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रतिरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: भारत में ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप यह दर्शाता है कि मकानों की स्थिति किस प्रकार एक-दूसरे से संबंधित हैं। गांव की आकृति एवं प्रसार को प्रभावित करने वाले कारकों में गाँव की स्थिति, स्थलाकृति एवं भू-भाग प्रमुख स्थान रखते हैं। भारत में ग्रामीण बस्तियों के प्रमुख प्रतिरूप निम्न हैं-
- रैखिक प्रतिरूप – इस प्रकार के प्रतिरूप के अंतर्गत मकान, सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, घाटी के किनारे अथवा तटबंधों पर स्थित होते हैं। जैसे-गंगा नदी के किनारे स्थित गाँव।।
- आयताकार प्रतिरूप – ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अंतरापर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इनमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती है।
- वृत्ताकार प्रतिरूप – इस प्रकार के ग्रामीण बस्ती झील व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों ओर बस जाने से विकसित होती है।
- तारे के आकार का प्रतिरूप-जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उस मार्ग के सहारे मकान का निर्माण हो जाता है। वहाँ इस प्रकार के प्रतिरूप से संबंधित बस्तियाँ विकसित हो जाती है।
- ‘टी’ आकार, ‘वाई’ आकार एवं ‘क्रॉस’ आकार-‘टी’ के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती है। जबकि ‘वाई’ आकार की बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ पर दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलती है। क्रॉस आकार की बस्तियाँ चौराहे पर विकसित होती है।
प्रश्न 48. अन्तर स्पष्ट करें – (i) ग्रामीण और नगरीय बस्तियाँ (ii) गुच्छित और अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (iii) रैखिक और वृत्ताकार बस्तियाँ।
उत्तर:
(i) ग्रामीण बस्तियाँ (Rural Settlements)-
- ग्रामीण बस्तियों के निवासी अधिकतर प्राथमिक कार्यों में संलग्न होते हैं।
- ग्रामीण बस्तियों के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि होता है। गाँव के चारों ओर खेत होते हैं।
- गाँव के लोग अपने कृषि उत्पादन का अवशेष भाग नगरों में बिक्री को भेजते हैं।
- ग्रामीण बस्तियाँ छोटे आकार की होती हैं।
- इनकी जनसंख्या कम होती है। प्राय: 10-20 से 1000 व्यक्ति तक रहते हैं।
- इनमें आधुनिक सुविधाएँ नहीं होती।
नगरीय बस्तियाँ (Urban Settlements)-
- नगरीय बस्तियों के निवासी द्वितीयक और तृतीयक कार्यों में लगे होते हैं।
- नगरों में निर्माण उद्योगों द्वारा अनेक वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा अधिशेष उत्पादन को गाँव में भी भेजते हैं।
- नगरीय बस्तियों का आकार बड़ा होता है। ये सुव्यवस्थित होती हैं।
- कोई भी बस्ती तब तक नगर नहीं कहलाती जबतक उसमें 5000 व्यक्ति न हों।
- नगरों में घर और गलियाँ पास-पास होती हैं। यहाँ खुले क्षेत्र कम होते हैं।
- इनमें आधुनिक सुविधाएँ होती हैं।
(ii) गुच्छित बस्तियाँ (Clustered Settlements)-
- इन बस्तियों में ग्रामीण घरों के संहत खंड पाए जाते हैं।
- घरों की दो कतारों को संकरी तथा टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ पृथक् करती हैं।
- इन बस्तियों का एक अभिन्यास होता है जो रैखिक, आयताकार, आकृति अथवा कभी-कभी आकृतिविहीन होता है।
- इस प्रकार की बस्तियाँ भारत के सघन प्रदेशों में पाई जाती हैं।
अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (Semi-clustered Settlement)-
- सामान्यतया ये बस्तियाँ किसी बड़ी बस्ती के विखण्डन के परिणामस्वरूप बनती हैं।
- किसी बड़े संहत गाँव के एक या दो वर्ग स्वेच्छा या मजबूरी से गाँव से अलग बस्ती बनाकर रहते हैं। ये मुख्य गाँव के समीप होती है।
- इन बस्तियों में लोग निम्न वर्ग के होते हैं जो प्रायः छोटे महत्त्वहीन कार्यों में लगे होते हैं।
- इस प्रकार की बस्तियाँ गुजरात राज्य के मैदानी भागों में पाई जाती हैं।
(iii) रैखिक बस्तियाँ (Linear Settlement)-
- इस प्रकार की बस्तियों में मकानों की दो समांतर कतारें होती हैं।
- मकान एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं।
- इस प्रकार की बस्तियाँ मणिपुर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्यों में पाई जाती हैं।
- इस प्रकार की बस्तियों में प्रमुखतः जनजातियों के लोग पाये जाते हैं।
वृत्ताकार बस्तियाँ (Circular Settlements)-
- किसी झील पर तालाब के किनारे इस प्रकार की बस्ती बन जाती है।
- इस प्रकार की बस्तियों में प्रायः जुलाहे, धोबी, मछुआरे आदि रहते हैं।
- इस प्रकार के गाँव गंगा-यमुना दोआब, मध्य प्रदेश, पंजाब आदि में पाए जाते हैं।
प्रश्न 49. नगर बहुप्रकार्यात्मक होते हैं। क्यों ?
अथवा, कार्यों के आधार पर नगरों का विस्तृत कार्यात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर: नगरों में अनेक प्रकार के व्यवसाय मिलते हैं। कुछ नगरों में सामाजिक तथा आर्थिक महत्त्व के कार्य किए जाते हैं तो कुछ नगर उद्योग या सैनिक महत्त्व के होते हैं। फिर भी किसी एक कार्य के लिए किसी नगर को विशेष वर्ग में रखा जाता है। इस प्रकार कार्य व्यवस्था के आधार पर नगरों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जाता है-
- प्रशासनिक नगर – राष्ट्र की राजधानियाँ जहाँ पर केन्द्रीय सरकार के प्रशासनिक कार्यालय होते हैं, उन्हें प्रशासनिक नगर कहा जाता है। जैसे-नई दिल्ली, कैनबेरा, लंदन, वाशिंगटन डी. सी.।
- व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर – व्यापार और वाणिज्य से संबंधित कार्यों की प्रधानता वाले क्षेत्र व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर कहे जाते हैं। जैसे-मुम्बई, कोलकाता, न्यूयार्क, साउपोलो।
- औद्योगिक नगर – उद्योगों से संचालित होने वाले कार्यों से संबंधित क्षेत्र को औद्योगिक नगर कहते हैं। जैसे-मॉट्रिक, बोस्टन, मैनचेस्टर, अहमदाबाद।
- परिवहन नगर – वैसे क्षेत्र जहाँ सड़क एवं रेलमार्ग जैसे कार्यों के कारण नगर का विकास होता है, उसे परिवहन नगर कहते हैं। जैसे-भारत के मुगलसराय, शिकांगो, पर्थ, कोलम्बे आदि।
- खनन नगर – जिन क्षेत्रों में खनिजों को निकालने से संबंधित कार्य किये जाते हैं। वैसे नगर को खनन नगर कहते हैं। जैसे-धनबाद, मेसाबी, हुनान, बोकारो।
- शैक्षिक नगर – वैसे नगर क्षेत्र जहाँ शिक्षा एवं प्रशिक्षण से संबंधित कार्य किये जाते हैं, उस नगर को शैक्षिक नगर कहते हैं। जैसे-दिल्ली, कैम्ब्रिज, पेरिस, इलाहाबाद, रूड़की।
- सांस्कृतिक नगर – वैसे नगर क्षेत्र जहाँ धार्मिक क्रियाकलापों की प्रधानता होती है, उस नगर क्षेत्र को सांस्कृतिक नगर कहते हैं। जैसे-वाराणसी, मथुरा, प्रयाग, रामेश्वरम्, गया, येरूसलम, मक्का, मदीना आदि।
विशिष्टीकृत नगर भी महानगरों के रूप में विकसित होने के बाद बहुप्रकार्यात्मक बन जाते हैं। तब इनमें उद्योग, व्यापार, प्रशासन और परिवहन आदि प्रकार्य प्रमुख हो जाते हैं।
प्रश्न 50. उल्लेखनीय विकास के बावजूद भारतीय कृषि अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर: यद्यपि कृषि के विकास के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। कृषि का आधुनिकीकरण तथा पैकेज टेक्नोलॉजी के फलस्वरूप देश में हरित क्रान्ति आई। लेकिन हमारी कृषि अनेक समस्याओं से जूझ रही है। इनको चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
- पर्यावरणीय,
- आर्थिक,
- संस्थागत,
- प्रौद्योगिकीय।
1. पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors) – पर्यावरण कारकों में मानसून का अनिश्चित स्वरूप है। वर्षा की नियमित और पर्याप्त आपूर्ति नहीं होती। मानसून की अवधि में भी वर्षा का वितरण असमान है जिससे इस अवधि में भी फसलों को पर्याप्त जल नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त कृषि योग्य उपजाऊ मृदा के क्षेत्र अर्धशुष्क और उप-आर्द्र हैं जिनमें फसलें सिंचाई के बिना नष्ट हो जाती हैं। इसलिए सिंचाई की सुविधाओं का विकास आवश्यक है।
2. आर्थिक कारक (Economic Factors) – आर्थिक कारकों में कृषि में निवेश है। किसान अच्छे बीज तथा उर्वरक नहीं खरीद सकते। विभिन्न प्रकार की कृषि मशीनों तथा नलकूप आदि का प्रबन्ध नहीं कर सकते। विपणन असुविधाओं के कारण तथा उचित ब्याज दर पर बैंकों से ऋण न मिलने के कारण किसान कृषि में अधिक निवेश नहीं कर सकते। इसका प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है।
3. संस्थागत कारक (Institutional Factors) – जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण खेतों का छोटा तथा बिखरा होना एक समस्या है। इस प्रकार से जोत अनार्थिक हो जाती है। इन कारणों से किसान अपने खेतों की देखभाल पूर्ण रूप से नहीं कर सकता। न ही वह प्रत्येक खेत पर नलकूप या अन्य मशीन लगा सकता है।
इसके अतिरिक्त जमींदारी व्यवस्था भी इसमें बाधक है। किसान को भू-स्वामित्व नहीं मिलता। इसलिए वह उन खेतों पर निवेश नहीं करता है।
4. प्रौद्योगिकीय कारक (Technological Factors) – कृषि के पुराने तरीके अक्षम हैं। उनसे उत्पादन को बढ़ाया नहीं जा सकता। अभी तक प्रौद्योगिकी का उपयोग सीमित क्षेत्रों में हुआ है। जैसे-पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। अधिकतर भागों में किसान आज परम्परागत साधनों का उपयोग कर रहा है जिससे उत्पादन कम होता है। अभी भी देश में दो-तिहाई भाग पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है और केवल एक ही फसल उत्पन्न की जाती है।
ये सब समस्यायें कृषि की उत्पादकता और इसका गहनता को निम्न बनाए हुए हैं।
प्रश्न 51. रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ बताइए एवं कुछ प्रमुख रोपण फसलों के नाम लिखें।
उत्तर: रोपण कृषि दो शताब्दी पुरानी कृषि पद्धति है। इसका प्रादुर्भाव ब्रिटिश जनजातियों के साथ हुआ। इस कृषि पद्धति के विकास में यूरोप तथा अमरीका पूँजी निवेश करता था। इसमें चाय, कहवा, नारियल, केला, मसाले, रबड़, कोको आदि मुख्य फसलें हैं।
रोपण कृषि एक व्यावसायिक कृषि पद्धति है जिसमें मानवीय श्रम की प्रधानता होती है। इसमें मशीनों का प्रयोग भी होता है। समशीतोष्ण देशों से ही प्रशासनिक एवं कुशल तकनीकी, श्रमिक कृषि उपकरण, खाद, दवाइयाँ, श्रमिकों के भोजन, वस्त्र, परिवहन सामग्री, औद्योगिक मशीनें मँगाई जाती हैं। श्रमिक भी स्थानीय होते हैं। पौधा रोपण कृषि के अधि कांश क्षेत्र समतलीय होते हैं। ऐसे क्षेत्र उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बिखरे मिलते हैं। विश्व में रोपण कृषि दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में मिलती है।
प्रमुख फसलें व उनके उत्पादक क्षेत्र : इस पद्धति में रबड़, चाय, गन्ना, कहवा. नारियल, मसाले, कोको, केला आदि प्रमुख फसलें हैं। इन फसलों का विशेष क्षेत्रीय प्रतिरूप भी दृष्टिगोचर होता है। जैसे- रबड़-मलेशिया, इण्डोनेशिया व थाईलैण्ड; गन्ना क्यूबा, पेरू, वेनेजुएला, ब्राजील, पूर्वी अफ्रीका एवं मेगागास्कर; चाय-भारत, चीन, श्रीलंका; कहवा-ब्राजील, कोलम्बिया, दक्षिण भारत; मसाले दक्षिण भारत, फिलीपीन्स; कोको-ब्राजील, पश्चिमी अफ्रीका; नारियल-दक्षिण भारत, फिलीपीन्स; केला-मध्य अमरीका, भारत तथा पश्चिमी द्वीपसमूह आदि।