12th Geography

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2

BSEB 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 2

प्रश्न 1. भारत के संभावित जल संसाधनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ भूमि और जल संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। भारत में जल के तीन स्रोत हैं वर्षा, पृष्ठीय जल तथा भूमिगत जल।

वर्षा (Rainfall) – वर्षा जल का मूल स्रोत है। भारत में औसतन 118 सेमी. वर्षा होती है। वर्षा का कुछ जल तो धरातल पर बहता हुआ नदियों का रूप ले लेता है तथा कुछ भूमि सोख लेती है जो भूमिगत जल कहलाता है।

पृष्ठीय जल (Surface Water) – जल का यह महत्त्वपूर्ण स्रोत बहने वाली नदियों, झीलों, तालाबों और दूसरे जलाशयों के रूप में मिलता है। भारत में नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह 1869 अरब घन मीटर है। कुल पृष्ठीय जल का लगभग 60% भाग सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों से होकर बहता है। भारत की सभी नदियों में बहने वाली जल की मात्रा संसार की सभी नदियों में बहने वाली जल की मात्रा का 6% है।

भूमिगत जल (Ground Water) – एक अनुमान के अनुसार भारत में कुल भौम जल क्षमता 433.9 अरब घन मीटर है। भारत के उत्तरी मैदान में भौम जल के विकास की संभावनायें अधिक उपलब्ध हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही भौमगत जल की क्षमता 19% है। प्रायद्वीपीय भारत में कम है। जम्मू-कश्मीर में 1.07% तथा पंजाब में 98.34% है। भारत में जिन राज्यों में घट-बढ़ अधिक होती है तथा पृष्ठीय जल की कमी है उन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भौम जल विकास किया गया है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गुजरात इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 2. भारत में सिंचाई की आवश्यकता है। क्यों ?
उत्तर:
जल का प्रमुख उपयोग सिंचाई के लिए होता है। भारत एक उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश है इसलिए यहाँ सिंचाई की अधिक माँग है। सिंचाई की बढ़ती माँग के कारण निम्नलिखित हैं-
(i) वर्षा का असमान वितरण (Uneven Distribution of Rainfall) – देश में संपूर्ण वर्ष वर्षा का अभाव बना रहता है। अधिकांश वर्षा, वर्षा ऋतु में होती है। इसलिए शुष्क अवधि में सुनिश्चित सिंचाई सुविधा के बिना कृषि कार्य संभव नहीं है।

(ii) मानसून जलवायु (Monsoon Climate) – भारत की जलवायु मानसूनी है। यहाँ वर्षा केवल तीन से चार महीने तक होती है, शेष समय शुष्क रहता है। इसलिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।

(iii) वर्षा बहुत परिवर्तनशील है (Variable Rainfall) – वर्षा ऋतु में पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सिंचाई की आवश्यकता होती है क्योंकि वर्षा की मात्रा प्रति वर्ष निश्चित नहीं है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की भिन्नता बहुत अधिक है। इसलिए वर्षा के दिनों में कभी कहीं सूखा होता है तो कभी कहीं। सिंचाई के बिना भारतीय कृषि मानसून का जुआ बनकर रह जाता है।

(iv) वर्षा की अनिश्चितता (Uncertainty of rainfall) – कंवल वर्षा का आगमन और पश्चगमन ही अनिश्चित नहीं है अपितु इसकी निरन्तरता और गहनता भी अनिश्चित है। इस उतार-चढ़ाव में कृषि को केवल सिंचाई से ही सुरक्षा मिलती है।

(v) कुछ फसलों के लिए जल की अधिक आवश्यकता (Water is More Needed for Few Crops) – चावल, गन्ना, जुट आदि फसलों को अपेक्षाकृत अधिक पानी की आवश्यकता होती है जो सिंचाई द्वारा ही पूरी की जाती है।

(vi) अधिक उपज देने वाले फसलें (Crops Giving More Yield) – ऐसी फसलें जो अधिक उपज देती हैं उनसे उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए निरन्तर पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए विकसित सिंचाई वाले क्षेत्र में हरित क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव रहा।

(vii) लम्बा वर्धनकाल (Long Growing Season) – भारत में वर्धन काल पूरे वर्ष रहता है। अतः सिंचाई की सुविधा मिलने पर बहुफसली खेती संभव है।

(viii) खाद्यान्न तथा कृषि कच्चे माल की बढ़ती माँग (Increasing Demand of Food Grains and Raw Material) – सिंचित क्षेत्र में असिंचित क्षेत्र की तुलना में उत्पादन तथा उत्पादकता अधिक होती है। देश में बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है तथा उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है।

प्रश्न 3. जल-संभर प्रबन्धन क्या है ? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है ?
उत्तर:
जल विभाजक प्रबन्धन से तात्पर्य मुख्य रूप से सतह और भूमिगत जल संसाधनों की सफल व्यवस्था से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों जैसे पुनर्भरण कुओं आदि के द्वारा भूमिगत जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल है। जल विभाजक व्यवस्था का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच सन्तुलन लाना है। जल विभाजक व्यवस्था की सफलता मुख्य रूप से सम्प्रदाय के सहयोग पर निर्भर करती है।

यह व्यवस्था सतत पोषणीय विकास में सहयोग कर सकता है। जल प्रबन्धन के कार्यक्रम कई राज्यों में चल रहे हैं। जैसे-नीरू नीरू-कार्यक्रम आंध्र प्रदेश में तथा राजस्थान में अलवर में लोगों के सहयोग से यह व्यवस्था चल रही है। तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना को बनाना आवश्यक है।

प्रश्न 4. अन्तर स्पष्ट करें – (i) पृष्ठीय जल तथा भौम जल (ii) हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ (iii) निर्मित सिंचाई क्षमता तथा उपयोग में लाई गई क्षमता (iv) प्रमुख तथा लघु सिंचाई परियोजना।
उत्तर:

(i) पृष्ठीय जल (Surface Water)-

  • यह जल ताल-तलैया, नदियों-सरिताओं और जलाशयों में पाया जाता है।
  • नदियाँ पृष्ठीय जल का प्रमुख स्रोत हैं।
  • नदियों में प्रवाहित औसत वार्षिक प्रवाह 1869 अरब घन मीटर है।
  • कुल पृष्ठीय जल का 60% भाग सिंधु-गंगा, ब्रह्मपुत्र नदियों में से होकर बहता है।
  • भारत में हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी तंत्रों में भरपूर पृष्ठीय जल संसाधन उपलब्ध है।

भौम जल (Ground Water)-

  • वर्षा के जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है जिसे भौम जल कहते हैं। भारत में भौम जल क्षमता लगभग़ 433.9 अरब घन मीटर है।
  • भारत के उत्तरी विशाल मैदान में भौम जल के विकास की संभावनाएँ अधिक हैं।
  • प्रायद्वीपीय भारत में भौम जल की संभावनाएँ कम हैं।
  • देश में भौम जल का वितरण असमान है।
  • भारत के उत्तरी मैदान में पंजाब से लेकर ब्रह्मपुत्र घाटी तक भौम जल के विशाल भंडार हैं।

(ii) हिमालय की नदियाँ (Himalayan Rivers)-

  • हिमालय की नदियों का बेसिन तथा जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़ा है।
  • हिमालय की नदियाँ विशाल गार्ज से होकर बहती हैं।
  • हिमालय की नदियों के दो जल स्रोत हैं-वर्षा तथा हिम।
  • इन नदियों के मार्ग में कम बाधायें आती हैं।
  • इन नदियों में बाढ़ अधिक आती है।

प्रायद्वीपीय नदियाँ (Peninsular Rivers)-

  • प्रायद्वीपीय नदियों का बेसिन तथा जल ग्रहण क्षेत्र काफी छोटा है।
  • प्रायद्वीपीय नदियाँ उथली घाटियों से होकर बहती हैं।
  • इन नदियों का जल स्रोत केवल वर्षा है। इसलिए शुष्क ऋतुओं में प्रायः ये सूख जाती हैं।
  • प्रायद्वीपीय नदियों के मार्ग में बाधायें अधिक हैं। ये पथरीली चट्टानों से होकर बहती हैं।
  • इन नदियों में बाढ़ की संभावनाएँ कम होती हैं।

(iii) निर्मित सिंचाई क्षमता (Irrigation Potential Created) – स्वतंत्रता के पश्चात् सिंचाई की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। 1999-2000 में कुल सिंचित क्षेत्र 8.47 करोड़ हेक्टेयर था।

उपयोग में लाई गई क्षमता (Irrigation Potential Utilised) – देश में सिंचाई की कुल उपयोग में लाई गई क्षमता 2.26 करोड़ हेक्टेयर थी।

(iv) प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ (Major Irrigation Projects) – उत्तरी विशाल मैदानों में प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ हैं, ऊपरी वारी दोआब नहर, दोआब सरहिन्द, इन्दिरा गाँधी तथा पश्चिमी यमुना नहर।

उत्तर प्रदेश में गंगा की ऊपरी, मध्य तथा निचली नहरें। दक्षिणी भारत की नागार्जुन सागर, तुंगभद्रा परियोजना तथा कृष्णा-गोदावरी डेल्टा प्रदेश की नहरें।

लघु सिंचाई परियोजनाएँ(Minor Irrigation Projects) – उत्तर भारत की लघु परियोजनाओं में पूर्वी यमुना नहर, शारदा नहर, राम गंगा नहर, मयूराक्षी आदि दक्षिण भारत में मैटूर बाँध, पालार, वोगाई आदि परियोजनाएँ हैं।

प्रश्न 5. भारत में जल विद्युत पर एक निबन्ध लिखें।
उत्तर:
विद्युत मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और अनूठे आविष्कार का नाम है। विद्युत कोयला और बहते जल से बनाई जाती हैं जल विद्युत ही सबसे सस्ती है। इसके निर्माण के लिये प्राकृतिक जल प्रपात सुविधाजनक ही है। जल प्रपात के लिये निरन्तर जल प्रवाह आवश्यक है।

जल विद्युत निगम की स्थापना जल विद्युत उत्पादन के लिये की गई। इसके द्वारा अब तक आठ परियोजना पूर्ण कर ली हैं। ये परियोजनायें हैं-चमेरा और वैरा सिडल (हिमाचल प्रदेश), लोकतक (मणीपुर), उडी आर सलाल (जम्मू कश्मीर), टनकपुर (उत्तरांचल) आदि। दसवीं पंचवर्षीय योजनाओं में निगम का लक्ष्य 4357 मैगावाट विद्युत उत्पादन का है। भारत में जल विद्युत का उत्पादन दक्षिणी पठार पर अधिक है।

प्रमुख केन्द्र हैं-

  • कर्नाटक – शिव समुद्रम, महात्मा गाँधी जल विद्युत केन्द्र। यहाँ 72000 किलोवाट क्षमता वाला बिजली घर स्थित है। शरावती जल विद्युत केन्द्र और शिमशा परियोजना है।
  • तमिलनाडु – मैटूर योजना, पापकारा, पापानासम तथा कुन्डा परियोजना है। महाराष्ट्र-राटा जल विद्युत केन्द्र, कोयना योजना, कवर दरा।
  • उत्तर प्रदेश – गंगा नहर पर 12 स्थानों पर जल विद्युत केन्द्र बनाये गये हैं- इनमें 23800 कि.वा. विद्युत तैयार की जाती है।
  • पंजाब – भाखड़ा नांगल परियोजना में 1050 मैगावाट जल विद्युत तैयार की जाती है। व्यास परियोजना में विद्युत तैयार की जाती है।

इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में विद्युत उत्पन्न की जाती है।

प्रश्न 6. भारत के लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन है, यहां एशिया के विशालतम लौह अयस्क आरक्षित है। हमारे देश में लौह अयस्क के दो प्रमुख प्रकार हेमेटाइट एवं मैग्नेटाइट पाये जाते हैं।

भारत में लोहा पिघलाने और ढालने तथा इस्पात तैयार करने का कार्य अत्यंत प्राचीन काल से किया जा रहा है। बिहार एवं मध्य प्रदेश में अगरिया एवं गाडी लोहारिया जाति यह कार्य करती थी किन्तु पश्चिमी देशों में आधुनिक ढंग के कारखाने स्थापित हो जाने के कारण भारतीय कुटीर उद्योग को बड़ा धक्का पहुँचा और भारत निर्यातक से आयातक देश बन गया। सर्वप्रथम भारत में लौह-इस्पात की स्थापना सन् 1874 में पश्चिम बंगाल के कुल्टी में बाराकर लौह कम्पनी की हुई थी। इसके बाद कालांतर में 1907 में झारखण्ड में सांकची नामक स्थान पर भारत के प्रसिद्ध व्यवसायी श्री जमशेदजी टाटा द्वारा टाटा लौह-इस्पात कंपनी की स्थापना की गयी।

हमारे देश में 2004 – 05 में लौह अयस्क के आरक्षित भंडार लगभग 200 करोड़ टन थे, जिसका 95 प्रतिशत भाग उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोवा तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित है। उड़ीसा में लौह अयस्क सुन्दरगढ़, मयूरगंज की पहाड़ियों में पाया जाता है। झारखण्ड के सिंहभूम जिला तथा छत्तीसगढ़ के दुर्ग, दान्तेवाड़ा एवं वैलाडिला लौह अयस्क का मुख्य क्षेत्र है। कर्नाटक के बेलारी जिले में महाराष्ट्र के चन्द्रपुर एवं तमिलनाडु के सलेम क्षेत्रों में लौह अयस्क की प्राप्ति होती है।

भारत के विभिन्न राज्यों में लौह-अयस्क का उत्पादन निम्न है-
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प्रश्न 7. भारत में मैंगनीज, अयस्क और बॉक्साइट के उपयोग और वितरण का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
बॉक्साइट (Bauxite) उपयोग (Uses) – बॉक्साइट का ऐलुमिनियम धातु बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। वायुयान निर्माण, बिजली के उपकरण तथा तार एवं भवन निर्माण में भी उपयोग में आता है।

वितरण (Distribution) – उड़ीसा के कालाहांडी, संबलपुर, रायगढ़ और कोरापुट में बॉकसाइट के भंडार पाये जाते हैं।

आन्ध्र प्रदेश में – विशाखापटनम, विजयनगर तथा श्रीकाकुलम जिले में बॉक्साइट के निक्षेप हैं। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ का बस्तर और बिलासपुर जिला, मध्य प्रदेश में मैकाल पहाड़ियाँ।

गुजरात – जामनगर, साबरकांठा, खेड़ा, कच्छ और सूरत तथा महाराष्ट्र में थाणे, कोलाबा, कोल्हापुर आदि जिले।

मैगनीज (Manganese)-उपयोग (Uses) – मैंगनीज का सबसे अधिक उपयोग इस्पात की चादर बनाने के लिये किया जाता है जो युद्ध के टैंक निर्माण में प्रयोग की जाती है। इसके अतिरिक्त चीनी मिट्टी के बर्तन, बिजली का सामान, कांच ब्लीचिंग पाउडर, दवायें, शुष्क बैटरी, सोने के आभूषणों पर मीना करने के लिये, वार्निश तथा रसायन उद्योगों में मैंगनीज का उपयोग होता है। इसे बहुउपयोगी खनिज भी कहते हैं।

वितरण (Distribution) – मैंगनीज सबसे अधिक उड़ीसा में मिलता है। इसके बाद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और गोआ का स्थान है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी मैंगनीज पाया जाता है।
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प्रश्न 8. भारत में पेट्रोलियम के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
पेट्रोलियम एक ऐसा अकार्बनिक तरल पदार्थ है, जो अवसादी चट्टानों की विशेष संरचनाओं में पाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत के लगभग 14 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में तेल भंडार हैं, जिसमें सबसे विशाल असम तेल क्षेत्र है। भारत के इयोसीन एवं मायोसीन काल की अवसादी चट्टानों में पेट्रोलियम के भंडार है। सर्वप्रथम असम के डिगबोई में इसका पता चला था। उसके बाद द्वितीय और तृतीय पंचवर्षीय योजनाकालों में भारत के विभिन्न भागों में तेल की खोज तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोजन द्वारा की गयी। रूस विशेषज्ञों के अनुसार भारत में लगभग 6 अरब टन के बड़े-बड़े तेल भंडार हैं। अनुमान है कि महाद्वीपीय मग्नतट के लगभग 3 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में परतदार चट्टानें पेट्रोलियम से भरी हैं।

1951 ई में देश में पेट्रोलियम का कुल उत्पादन 205 लाख टन था जो 2001 ई० में बढ़कर 320 लाख टन हो गया।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद पेट्रोलियम के उत्पादन में 50 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है।
भारत में पेट्रोलियम के तीन मुख्य उत्पादन क्षेत्र हैं –

  • असम तेल क्षेत्र।
  • गुजरात तेल क्षेत्र।
  • मुम्बई हाई तेल क्षेत्र।

इसके अलावा गोदावरी और काबेरी नदी के बेसिनों में तथा बंगाल की खाड़ी के मग्नतट पर भी तेल मिले हैं। बिहार के उत्तरी मैदान भाग में भी तेल की खोज का कार्य जारी है। इन क्षेत्रों से प्राप्त कच्चे तेल का परिष्करण तटीय भागों, बाजार क्षेत्र तथा उत्पादन केन्द्रों के निकट स्थापित कुल 14 तेल शोधनशालाओं में किया जाता है।

प्रश्न 9. भारत में चीनी मिलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थापित किये जाने के लिए उत्तरदायी तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
चीनी मिलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में स्थापित होने के लिये अग्रलिखित तीन कारक उत्तरदायी हैं-
1. कच्चा माल (Raw Material) – गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में मिलों के स्थापित होने का प्रमुख कारण गन्ने की निरन्तर आपूर्ति है। आपूर्ति टूट जाने से मिल को पुनः आरम्भ करने में बहुत व्यय तथा समय लगता है। इसलिये निरन्तर आपूर्ति आवश्यक है।

2. यातायात के साधन (Means of Transport) – गन्ना मैदानी क्षेत्रों में उत्पन्न किया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में परिवहन के साधन रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग उपलब्ध हैं। लेकिन अधिकतर गन्ने की दुलाई बैलगाड़ी अथवा ट्रैक्टर द्वारा की जाती है और ये साधन अधिक से अधिक 10 या 15 किलोमीटर तक ही सीमित होते हैं। इसलिये चीनी मिलों का गन्ना क्षेत्रों में स्थापित होना आवश्यक है।

3. बाजार की समीपता (Nearness of Market) – चीनी की खपत के लिए बाजार की समीपता आवश्यक है जो इन क्षेत्रों में जनसंख्या से अधिक होने से मिल जाती है। इसके अतिरिक्त चीनी को रेल मार्ग अथवा सड़क मार्ग द्वारा समीप वाले बाजारों को भेज दिया जाता है।

प्रश्न 10. आप उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से क्या समझते हैं ? उन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार से सहायता की है ?
उत्तर:
उदारीकरण (Liberalisation) – उदारीकरण आर्थिक विकास की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र में उद्योगों को चलाने पर बल दिया जाता है तथा उन सब नियमों और प्रतिबन्धों से छूट दी जाती है जिससे पहले निजी क्षेत्र के विकास में रुकावट आती है।

निजीकरण (Privatisation) – निजीकरण से अभिप्राय है कि सरकार द्वारा लगाये गये उद्योगों को निजी क्षेत्र में स्थापित किया जाये। इससे सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व कम होगा।

वैश्वीकरण (Globalisation) – वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने की प्रक्रिया से है। इसके अधीन आयात पर प्रतिबन्ध तथा आयात शुल्क में कमी की गई। इस प्रक्रिया में एक देश के पूँजी संसाधनों के साथ-साथ वस्तुएँ और सेवायें, श्रमिक तथा अन्य संसाधन दूसरे में स्वतंत्रतापूर्वक आ जा सकते हैं।

इन प्रक्रियाओं ने देश के औद्योगिक विकास में बड़ी सहायता की है-

  • विदेशी पूँजी का सीधा निवेश किया जा सकता है।
  • व्यापारिक प्रतिबन्ध समाप्त हो जाते हैं जिससे देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने में सुविधा होती है।
  • भारतीय कम्पनियों को विदेशी कम्पनी के साथ प्रवेश करने का अवसर मिलता है।
  • उदारीकरण कार्य से आयात किया जा सकता है आदि।

प्रश्न 11. उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ? भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर:
उदारीकरण का अभिप्राय अर्थव्यवस्था के नियंत्रणवाले प्रावधानों को शिथिल करना है। इसे अनियंत्रण की नीति भी कहा जाता है। उदारीकरण के अंतर्गत सरकारी नियंत्रण को कम करना, लाइसेंस की समाप्ति, उद्योगपत्तियों को अधिक स्वतंत्रता देना, बाजार की शक्तियों के स्वतंत्र क्रियाकलाप को प्रश्रय देना शामिल है।

जबकि निजीकरण का अर्थ बाजार की शक्तियों को मजबूत करते हुए निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व प्रदान करना है तथा वैश्वीकरण का तात्पर्य देश की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।

वैश्वीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी का प्रवाह बढ़ा है। साथ ही तकनीकी प्रवाह के कारण उत्पादन बढ़ने से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आयी है, जिसका सीधा असर लोगों के रहन-सहन पर पड़ा है। मक्त आकाश नीति की घोषणा से भारतीय निर्यातकों को प्रतियोगितापूर्ण बनाया गया है।

वैश्वीकरण के प्रभाव से उपभोक्ताओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वस्तुएँ उपलब्ध हैं किन्तु भारत के छोटे एवं कुटीर उद्योग प्रतिस्पर्धा में पीछे रहने के कारण दिनोंदिन खत्म होते जा रहे हैं। औसत रूप में वैश्वीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति तीव्र हुई है।

प्रश्न 12. सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम और कृषि-जलवायु नियोजन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें। ये कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायता करते हैं ?
उत्तर:
प्रादेशिक विषमताओं को घटाने के लिये तैयार कार्यक्रमों में सुखाप्रवण क्षेत्रों के लिये भी ऐसे कार्यक्रम तैयार किये जिनके द्वारा उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय में वृद्धि हो और रोजगार के अवसर प्राप्त हों। यह कार्यक्रम शुष्क भूमि कृषि में निम्न प्रकार से सहायक हो सकता है।

  • जिन सूखाप्रवण क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन अपर्याप्त है वहाँ गरीबी को कम करने में रोजगार देकर ये सहायक हो सकते हैं।
  • अभावग्रस्त लोगों के लिये काम के अवसर निकाले जा सकते हैं।

कृषि जलवायुविक नियोजन(Agro-climate Planning) – भारत के योजना आयोग में कृषि सम्बन्धित विकास के लिये कृषि क्षेत्र के कार्यक्रम बनाये गये। सातवीं योजना के मध्यवर्ती मूल्यांकन ने कृषि प्रबन्धन और जल नियोजन की सक्षमता पर बल दिया तथा बीज की नई नीति पर बल दिया। इसने सुझाव दिया कि किसी प्रदेश की कृषि सम्भाव्यता उसके प्रादेशिक कृषि जलवायुविक दशाओं के अनुसार हो सकता है। इस सम्बन्ध में 1988 में विशेष खाद्यान्न उत्पादन कार्यक्रम आरम्भ किया गया। यह देश के 169 जिलों में लागू किया गया। इसके पश्चात् कृषि के विकास के लिए अन्य कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये इन्हें कृषि जलवायुविक कार्यक्रम कहते हैं।

इस कार्यक्रम से भी शुष्क भूमि कृषि में सहायता मिली। विभिन्न प्रदेशों में फसल और गैर फसल आधारित विकास हुआ। टिकाऊ कृषि विकास के लिये जल उपयोग और भूमि विकास तैयार किये गये।

प्रश्न 13. भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के निम्नलिखित उद्देश्य थे-
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि तथा आर्थिक विकास (Increase in national income and economic development) – भारत की प्रत्येक योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि और आर्थिक विकास में वृद्धि करना है। ये वृद्धि देश के आर्थिक विकास में सहायक होती है।

2. जीवन स्तर में वृद्धि(Increase in standard of living) – पंचवर्षीय योजनाओं का दूसरा उद्देश्य लोगों की आर्थिक संपन्नता में वृद्धि करके जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है। जीवन स्तर में वृद्धि अनेक बातों पर निर्भर करती है। जैसे प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय, कीमत स्थिरता, आय का समान वितरण आदि।

3. आर्थिक असमानताओं को घटाना (To reduce economic inequalities) – प्रत्येक पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रदेशों और समाज के विभिन्न वर्गों में असमानताओं को कम करना है। आर्थिक असमानताएँ देश में अन्याय व शोषण को बढ़ाती हैं जिससे धनी अधिक धनी व निर्धन अधिक निर्धन होता जाता है। इस असमानता को समाप्त करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में बहुत से कार्य किए गए हैं।

4. सर्वांगीण विकास (Comprehensive development) – पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य देश का सर्वांगीण विकास करना है परन्तु प्रत्येक योजना में इन क्षेत्रों के विकास को एक समान महत्त्व नहीं दिया है। पहली योजना में कृषि को, दूसरी में उद्योग को तथा पाँचवीं में दोनों को महत्त्व दिया गया है। छठी, सातवीं, आठवीं योजना में बिजली व ऊर्जा के विकास को अधिक महत्व दिया गया।

5. क्षेत्रीय विकास (Regional development) – भारत के विभिन्न भाग आर्थिक दृष्टि से समान रूप से विकसित नहीं हैं। पंजाब, गोआ, हरियाणा आदि कुछ राज्य अपेक्षाकृत विकसित हैं लेकिन बिहार, उड़ीसा, मेघालय जैसे राज्य अविकसित रह गए हैं।

6. आर्थिक स्थिरता (Economic stability) – आर्थिक विकास की गति को बनाए रखने के लिए आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य प्राप्त करना आवश्यक होता है। भारत की प्रत्येक पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य देश में आर्थिक स्थिरता को कायम रखना रहा है।

7. आत्मनिर्भरता तथा स्वपोषित सतत् विकास (Self sufficiency and self sustained growth) – पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य देश के कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों को उत्पादन के सम्बन्ध में उपलब्ध साधनों के अनुसार आत्मनिर्भर बनाना है। योजनाओं का उद्देश्य बचत व निवेश की दर को बढ़ाकर स्वयं स्फूर्ति की अवस्था प्राप्त करना है।

8. सार्वजनिक न्याय (Social justice) – भारत की प्रत्येक योजना का उद्देश्य सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है। आठवीं योजना का मुख्य उद्देश्य ‘गरीबी हटाओ’ था। इसके लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम को अपनाया गया था। देश में 26% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है।

9. रोजगार में वृद्धि (Increase in Employment) – योजनाओं का मुख्य उद्देश्य मानव शक्ति का उचित उपयोग तथा रोजगार में वृद्धि करना है। नौवीं-दसवीं, योजनाओं में रोजगार के अवसर जुटाने पर बल दिया गया है।

10. निवेश व बचत में वृद्धि (Increasing saving and investment) – योजनाओं का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में बचत व निवेश के अनुपात को बढ़ावा देना है। इसके फलस्वरूप देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 14. भारत में परिवहन के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं ? इनके विकास को प्रभावित करनेवाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन रेलमार्ग सड़क मार्ग, जलमार्ग और वायुमार्ग हैं। इनमें रेलमार्ग तथा सड़क मार्ग प्रमुख साधन हैं। इनके विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. आर्थिक कारक (Economic Factors) – परिवहन साधनों के विकास में आर्थिक स्थिति को देखा जाता है। उन्हीं क्षेत्रों में इनका विकास किया जाता है जहाँ आर्थिक क्रियाएँ विकसित रही हैं और वह क्षेत्र समृद्ध है।

2. भौगोलिक कारक (Geographical Factors) – भारत के उत्तरी मैदानों में रेल तथा सड़क मार्गों का जाल बिछा हुआ है। इस प्रदेश में समतल भूमि, सघन जनसंख्या, समृद्ध कृषि और विकसित उद्योग तथा बड़े-बड़े नगर हैं।

3. राजनैतिक कारक (Political Factors) – अंग्रेजी शासन में रेलों को प्रमुख नगरों से ही जोड़ा गया था लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् देश में रेलों और सड़कों का विकास हुआ।

प्रश्न 15. भारत में रेलमार्ग के विकास का विस्तृत वर्णन करें तथा उनका महत्त्व बताएँ।
उत्तर:
भारतीय रेल 1853 में आरम्भ की गई जो मुम्बई से थाणे तक चली। यह भारत सरकार का सबसे बड़ा प्रक्रम है। भारतीय रेल जाल की कुल लम्बाई 63221 किलोमीटर है। भारतीय रेलवे प्रबन्धन 16 क्षेत्रों में विभाजित है। भारतीय रेल द्वारा ढोई जानेवाली मुख्य वस्तुयें हैं जो निम्न तालिका से प्रदर्शित की गई है-

वस्तुयें 1970 – 71 2004 – 05
कोयला 47.9 251-75
इस्पात का कच्चा माल 16.1 43.65
लौह अयस्क 9.8 26.6
सीमेन्ट 11 49.3
खाद्यान्न 15.1 44.3
रासायनिक खाद 4.7 23.7
पेट्रोल 8.9 32
अन्य 48.2 71.4

रेल मार्गों में 16272 किलोमीटर का विद्युतीकरण कर दिया गया है। भारतीय रेलमार्ग पर प्रतिदिन 12670 रेलगाड़ियाँ दौड़ती हैं।

भाप के इंजनों के स्थान पर विद्युत इंजन दौड़ने लगे हैं जिससे प्रदूषण नहीं होता। पर्यावरण स्वच्छ रहता है।

मैट्रो रेल का प्रारम्भ हो गया है जो कोलकाता दिल्ली में चलाई जा रही है। मैट्रो के द्वारा सी.एन.जी. बसें चलाई जा रही हैं जो पर्यावरण हितैषी परिवहन है।

प्रश्न 16. भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों, का बड़ा योगदान है। लगभग 85% यात्री तथा 70% माल सड़कों द्वारा ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता है।

सड़क परिवहन का ग्रामीण क्षेत्र में छोटे स्थानों को जोड़ने में बहुत महत्त्व है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार आ गया है। गाँव बड़े नगरों से जुड़ गये हैं। सड़कों के प्रबन्धन के अनुसार उनको राष्ट्रीय महामार्ग तथा राज्य महामार्ग में प्रमुख रूप से विभाजित किया है।

कुल परिवहन के क्षेत्र में सड़क मार्गों की भागीदारी में निरन्तर प्रगति हो रही है। इसका मुख्य चरण सड़क परिवहन का लचीला होना तथा दुर्गम क्षेत्रों में भी निर्माण संभव होता है। सड़कों की भागीदारी 1993-94 तक 1500 अरब यात्री किलोमीटर थी जो रेलों के अनुपात में चार गुणा अधिक था। अब यात्रियों की संख्या तथा माल ढुलाई भी कई गुना बढ़ गई है।

प्रश्न 17. भारत में सड़कों का घनत्व में प्रादेशिक भिन्नता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रति 100 वर्ग किमी. क्षेत्र के अनुपात में सड़क मार्ग की लम्बाई को सड़क मार्ग का घनत्व कहते हैं। सड़कों के प्रादेशिक घनत्व में बहुत अन्तर है। सड़कों का सबसे अधिक घनत्व केरल, गोआ, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उड़ीसा और पंजाब में पाया जाता है। 60 से 100 किमी. सड़क मार्ग के औसत घनत्व वाले राज्य असम, नागालैण्ड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और हरियाणा हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मणिपुर में सड़कों का घनत्व 40 से 60 किमी. प्रति 100 वर्ग किमी. है। राजस्थान, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम में सड़कों का घनत्व 20 से 40 किमी. तक है। सबसे कम घनत्व वाले राज्य अरुणाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर हैं।

प्रश्न 18. जनसंचार में रेडियो और टेलीविजन के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंचार के साधनों में रेडियो और टेलीविजन का महत्त्व अधिक है। ये जनसंचार के प्रमुख साधन हैं-
रेडियो (Radio) – भारत में आकाशवाणी से प्रसारण 1927 में मुम्बई और कोलकाता से शुरू हुआ। रेडियो का मुख्य उपयोग जनता का मनोरंजन, शिक्षा और उन तक महत्त्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है। मनोरंजन के अतिरिक्त खेती-बाड़ी, स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया जाता है। आकाशवाणी का विदेश सेवा विभाग अपने विविध प्रकार के कार्यक्रमों के द्वारा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर भारतीय दृष्टिकोण को विशेष महत्त्व देकर प्रसारित करता है।

टेलीविजन (Television) – दूरदर्शन भारत का राष्ट्रीय टेलीविजन है। दूरदर्शन का पहला कार्यक्रम 15 सितम्बर, 1959 को प्रसारित किया गया था। दूरदर्शन तीन स्तरों वाली राष्ट्रीय, प्रादेशिक, स्थानीय-बुनियादी कार्यक्रम प्रसारण सेवा है। दूरदर्शन अपने दर्शकों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के अनेक कार्यक्रम सीधे प्रसारण द्वारा दिखाता है।

प्रश्न 19. आधुनिक जीवन में उपग्रह और कम्प्यूटर के उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपग्रह (Satellites) – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तंत्र में एक क्रांति आ गई है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणाली को दो वर्गों में रखा गया है-

  1. भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली,
  2. भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली।

इन्सेट दूरसंचार, मौसम विज्ञान संबंधी प्रेक्षण और उसके विविध आँकड़ों के एकत्रीकरण तथा कार्यान्वयन के लिए एक बहुउद्देशीय प्रणाली है। ये उपग्रह अनेक आँकड़े एकत्र करते हैं तथा विभिन्न उपयोगों के स्थलीय स्टेशनों को उनका प्रसारण करते हैं।

कम्प्यूटर (Computer) – कम्प्यूटर का अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। यह चार प्रकार के कार्य करता है-

  1. निवेश के रूप में आँकड़ों को स्वीकार करता है।
  2. यह आँकड़ों का भंडारण करता है। स्मृति में संरक्षित रखता है।
  3. यह अभीष्ट सूचना के लिए निर्देशानुसार आँकड़ों का प्रसंस्करण करता है।
  4. यह सूचना को निर्गम के रूप में संचालित करता है। अपनी विभिन्न क्षमताओं के कारण कम्प्यूटर का विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक उपयोग किया जाता है। शिक्षा के ज्ञान के प्रसार में कम्प्यूटर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 20. भारत में रेलों के वितरण प्रतिरूप का विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारतीय रेलों के वितरण प्रतिरूप में भिन्नताएँ पाई जाती हैं। किन्हीं प्रदेशों में रेल जाल अधिक घना है तो कहीं कम। पर्वतीय, पठारी, मैदानी भागों में भिन्न-भिन्न है।

  1. मैदानी भाग (Plains) – समतल भूमि होने के कारण मैदानों में रेल पटरियाँ बिछाना सरल है तथा कृषि और औद्योगिक विकास के कारण रेल जाल सघन है।
  2. उत्तरी-पूर्वी भाग (Northern-Eastern Region) – भारत के इस भाग में रेल जाल विरल है। इस क्षेत्र में अधिक वर्षा के कारण घने वन हैं। इसके अतिरिक्त यह भाग पहाड़ी है इसलिए रेल पटरियाँ बिछाना कठिन है।
  3. पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान (East CoastalPlain and West Coastal Plain) – इन भागों में भी रेलजाल अधिक सघन नहीं है क्योंकि समतल भूमि और कृषि तथा उद्योगों के लिए अनुकूल आर्थिक परिस्थितियाँ नहीं हैं।
  4. राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र (Desert Regions of Rajasthan) – यहाँ रेल जाल अत्यधिक विरल है। पश्चिमी राजस्थान की मरुभूमि रेल जाल बिछाने के लिए अनुकूल नहीं है।
  5. हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में भी रेल जाल विरल है। यह पहाड़ी उच्चावच तथा ऊबड़खाबड़ भूमि रेल पटरियाँ बिछाने के अनुकूल नहीं है। इन क्षेत्रों में आर्थिक विकास भी भिन्न स्तर का है।

प्रश्न 21. हरित क्रांति की व्याख्या करें।
उत्तर:
हरित क्रांति खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रयुक्त की गई नई तकनीक थी। जिसके अंतर्गत अपने देश की कृषि में आधुनिक विकास के लिए मुख्यतः नए बीज कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक का प्रयोग तथा सुनिश्चित जलापूर्ति की अवस्थाओं एवं उपकरणों के प्रयोग के परिणामस्वरूप अनाजों के उत्पादन में वृद्धि हुई, जिसे हरित क्रांति की संज्ञा दी गई।

हरित क्रान्ति के कारण विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ। इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को प्रभावित किया।

भारत में हरित क्रांति की सफलता के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम उत्तरदायी रहे हैं-

  • खाद्यान्न फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों का अधिकाधिक प्रचलन।
  • रासायनिक उर्वरकों की खपत में तेजी से होने वाली वृद्धि।
  • कीटनाशक रसायनों के उपयोग में वृद्धि।
  • भूमि संरक्षण कार्यक्रम।
  • गहन कृषि जिला कार्यक्रम तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम।
  • बहुफसली कृषि कार्यक्रम।
  • आधुनिक कृषि उपकरण एवं संयंत्रों का अधिक प्रयोग।

प्रश्न 22. भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भू-मंडलीय का अर्थ है-‘आर्थिक क्रियाओं का देश की सीमाओं से आगे विस्तार करना अर्थात् देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ देना। भूमंडलीकरण का प्रभाव भारतीय कृषि पर पड़ा है।

  • विदेशी कृषि उत्पादनों का आयात किया जा सकता है भले ही वे देश में पैदा किए जा रहे हों। उदाहरण के लिए आस्ट्रेलिया से सेबों का आयात किया गया है जबकि हमारे देश की मांग देश के उत्पादन से पूरी की जा सकती है लेकिन हम आस्ट्रेलिया से आयात को नहीं रोक सकते।
  • भारतीय किसान को विदेशी उत्पादों के मूल्य तथा गुणवत्ता से मुकाबला करना होगा। यदि हमारे देश का चावल महँगा होगा तो लोग विदेशी चावल खरीदेंगे।
  • अनेक देशों की सरकारें किसानों को उत्पादन में छूट देती हैं जिससे उनके उत्पादन सस्ते होते हैं जबकि भारत में ऐसा कुछ नहीं है।
  • विदेशी किसान जैव प्रौद्योगिकी तथा उन्नत तकनीक का प्रयोग करके अपना उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ा लेता है तथा लागत घटा देता है लेकिन भारत में इस प्रकार की सुविधा नहीं है।
  • भारतीय किसान अपने खेती के पुराने तौर-तरीकों से विदेशी किसान के सामने कैसे टिक पायेगा। उसे भी नई तकनीक अपनाकर अपने उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ानी होगी तथा लागत घटानी होगी।
  • भूमंडलीकरण के नियमों के अनुसार किसानों को अनुदान नहीं दिये जा सकते। आयात-निर्यात पर लगे सीमा शुल्क जैसे बंधनों को भी हटाना होगा।
  • हमारे देश में कृषि के विकास की बहुत संभावनाएँ हैं। नियोजन के द्वारा उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ानी होगी। व्यापारी और किसानों को संगठन बनाना होगा। सड़कें, बिजली, सिंचाई और ऋण सम्बन्धी सुविधाएँ बढ़ानी होंगी।

प्रश्न 23. खरीफ की फसल तथा रबी की फसल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

खरीफ फसलें (Kharif Crops)-

  1. यह वर्षा के प्रारंभ में बोई जाती है और शरद ऋतु के आरंभ में काट ली जाती है। (मइ-जून से सितम्बर-अक्टूबर)
  2. भारत में खरीफ फसलों के अंतर्गत अपेक्षाकृत अधिक क्षेत्र है।
  3. चावल, मक्का, मूंगफली, ज्वार-बाजरा तथा मूंग-उर्द इस कृषि मौसम में होती है।

रबी फसलें (Rabi Crops)-

  1. यह फसल अक्टूबर-नवम्बर में जाड़ों के प्रारम्भ में बोई जाती है तथा अप्रैल-मई में गर्मियों में काट ली जाती है।
  2. भारत में रबी फसलों के अंतर्गत कृषि क्षेत्र खरीफ की अपेक्षा कम है। 3. गेहूँ, जौ, चना, अलसी, तोरिया, सरसों इस कृषि ऋतु में पैदा की जाती हैं।

प्रश्न 24. भारत में गन्ने की खेती का वितरण मिट्टी और जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताओं, क्षेत्रफल और उत्पादन के संदर्भ में दीजिए।
उत्तर:

  1. भारत विश्व में गन्ना उत्पादन में सबसे अग्रणी देश है। यह चीनी निर्माण का आधार है। इसके लिए लम्बे वर्धनकाल की आवश्यकता है। यह उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है।
  2. इसके लिए 25-27°C तापमान की आवश्यकता होती है।
  3. 100 सेमी. से अधिक वर्षा होनी चाहिए। अच्छी जल आपूर्ति के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  4. अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ मिट्टी में इसकी उपज अधिक होती है।

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पंजाब से कन्याकुमारी तक गन्ने की पैदावार की जा रही है। गन्ने की कृषि 33 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जा रही है (1998 ई०)। भारत में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में भी गन्ने का उत्पादन होता है।

प्रश्न 25. भारत में चावल के उत्पादन एवं वितरण का विवरण दीजिए।
उत्तर:
चावल भारत का प्रमुख खाद्यान्न है। उपज की दृष्टि से चावल उत्पादन में भारत का सातवाँ स्थान है। चावल देश के 23% भाग पर पैदा किया जाता है। 2001 ई० में भारत की 44 लाख हेक्टेयर भूमि पर चावल का उत्पादन किया गया तथा इसी वर्ष देश में 8.49 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ। भारत में चावल का उत्पादन 2001 ई० के अनुसार 1913 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया है, फिर भी जापान और कोरिया की तुलना में हमारी प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम है।

भारत में चावल उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं-पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार तथा उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा आदि। निम्न सारणी में चावल का क्षेत्र तथा उत्पादन दिखाया गया है-
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सारणी-भारत : प्रमुख राज्यों में चावल का क्षेत्र और उत्पादन (2000-01)
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प्रश्न 26. भारत में कपास की खेती का विवरण मिट्टी तथा जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताओं, क्षेत्रफल, उत्पादन क्षेत्रों और उत्पादन के संदर्भ में दीजिए।
उत्तर:
भारत में कपास की खेती प्राचीन समय से हो रही है। भारत कपास की मूल भूमि है।
उत्पादन दशाएँ : मिट्टी-कपास के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी तथा दक्षिण भारत की काली. मृदा सबसे अच्छी रहती है। सुप्रवाहित भूमि इसके लिए अच्छी मानी जाती है।

जलवाय (Climate) – इसकी उपज के लिए 20° से 35° से. तक उच्च तापमान होना चाहिए। पाला कपास की पैदावार कम कर देता है। इसके लिए 50 सेमी. से लेकर 100 सेमी. वर्षा होनी चाहिए। कपास के गोले को पकते समय तेज धूप आवश्यक है।

क्षेत्रफल – 1950-51 में 59 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास की खेती की गई थी। 1986-87 में 70 लाख हेक्टेयर तथा 2002-03 में बढ़कर 86 लाख हेक्टेयर हो गया।

उत्पादन (Production) – 1950-51 में कपास का उत्पादन 31 लाख गाँठे (एक गाँठ – 170 किलोग्राम) था जो 2003-04 में बढ़कर 1.35 करोड़ गाँठे हो गया। 1996-97 में कपास का रिकॉर्ड उत्पादन हआ था जो 1.42 करोड गाँठे थीं।

कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1950-51 में 88 किलोग्राम था जो 2002-03 में बड़कर 193 किलोग्राम हो गई।

भारत में कपास का उत्पादन महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु में होता है। इनके अतिरिक्त दक्षिणी कर्नाटक, पश्चिम आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी इसका उत्पादन होता है।

प्रश्न 27. जल संसाधनों की ह्रास सामाजिक द्वंद्वों और विवादों को जन्म देते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
जल संसाधनों की कमी सामाजिक विवादों और द्वन्द्व को जन्म देती है। यह कथन सही है। यह एक समस्या बन गई है। यह समस्या कई प्रदेशों में विवाद का मूल कारण बन गया है। इसका एक उदाहरण पंजाब और हरियाणा का विवाद है। हरियाणा अपने राज्य की कृषि सिंचाई क्षेत्रों में जल की माँग कर रहा था जो सतलुज से यमुना तक लिंक नहर द्वारा पूर्ण की जानी थी लेकिन उच्चतम न्यायालय का निर्णय हरियाणा के पक्ष में आने पर भी पंजाब अतिरिक्त जल देने को तैयार नहीं हुआ।

कभी-कभी इस प्रकार की समस्याएँ राजनैतिक लाभ भी देती हैं। कनार्टक और तमिलनाडु के मध्य भी इसी प्रकार का जल विवाद है और इस विवाद के कारण तमिलनाडु चुनाव में राजनैतिक दल लाभ उठाते हैं। इस प्रकार के विवाद पीने के पानी के लिये भी उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे-उत्तर प्रदेश की सरकार ने दिल्ली राज्य को निर्धारित मात्रा में भी कम पानी दिया है। इस प्रकार के विवाद अन्य राज्यों में समय-समय पर उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 28. भारत में गेहूँ के उत्पादन एवं वितरण का विवरण दें।
उत्तर:
भारत में चावल के बाद गेहूँ दूसरा प्रमुख अनाज है। भारत विश्व का 12 प्रतिशत गेहूँ उत्पादन करता है। यह मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है। कुल गेहूँ उत्पादन का 85 प्रतिशत क्षेत्र भारत के उत्तरी भाग में केन्द्रित है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र में लगभग 14 प्रतिशत भू-भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। गेहूँ का प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश है। पंजाब तथा हरियाणा में प्रति हेक्टेयर गेहूँ की उत्पादकता 4000 किलोग्राम है जबकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार में प्रति हेक्टेयर पैदावार मध्यम एवं मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-काश्मीर में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है।

भारत में गेहूँ का उत्पादन विभिन्न राज्यों में निम्न हैं-
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प्रश्न 29. देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
देश में संसार की सतह क्षेत्र का लगभग 2.45% संसार के जल संसाधनों का 4% भाग आता है। देश में वर्षा से प्राप्त कुल जल लगभग 4000 क्यूसेक किमी. है। सतह जल और पुनः प्राप्त योग्य भूमिगत जल से 1.869 क्यूबिक किमी. जल प्राप्त है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1.22 क्यूबिक किमी. है।

सतह जल की उपलब्धि नदियों, झील और तालाब से होती है। ये ही मुख्य स्रोत हैं। भारत में सभी नदियों में औसत वार्षिक प्रवाह 1.869 क्यूबिक किमी० आँका गया है।

भूमिगत जल संसाधन – देश में कुल पुनः प्रतियोग्य भूमिगत जल संसाधन लगभग 432 क्यूबिक किमी. है। इसका 46% गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में है।

झीलें – झीलें भी जल संसाधन हैं। इन जलाशयों में जो समुद्र तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है खारा जल होता है जिसका उपयोग मछली पालने के लिये किया जाता है।

इस जल संसाधन का वितरण असमान है। देश में उत्तरी भारत की नदियाँ सदा नीरा हैं जबकि दक्षिण भारत की नदियाँ मानसून पर निर्भर करती हैं। गंगा ब्रह्मपुत्र सिंधु नदी के जल ग्रहण क्षेत्र विशाल हैं। दक्षिण भारत की नदियों जैसे गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में वार्षिक जल प्रवाह का अधिकतर भाग, काम में लाया जाता है।

संभावित भूमिगत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तामिलनाडु राज्यों में भूमिगत जल का उपयोग बहुत अधिक है। गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और महाराष्ट्र अपने संसाधन का मध्यम दर से उपयोग कर रहे हैं।

प्रश्न 30. राष्ट्रीय महामार्ग और राज्य महामार्ग में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग और राज्य महामार्ग में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 1

प्रश्न 31. भारत में सड़कों के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में सड़कों के असमान वितरण के तीन कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भौतिक बनावट (Physiography) – सड़क घनत्व भौतिक बनावट से प्रभावित होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व कम है, जबकि मैदानी भागों में घनत्व अधिक है।
  2. जलवायु (Climate) – जलवायु के प्रभाव से भी सड़क वितरण प्रभावित होता है। उत्तरी पूर्वी राज्यों में घनत्व इसलिये कम है कि यहाँ अधिक वर्षा होती है।
  3. आर्थिक विकास (Economic Development) – आर्थिक रूप से विकसित प्रदेशों में सड़कों का घनत्व अधिक है जबकि निम्न आर्थिक विकास स्तर के प्रदेशों में सड़कों का घनत्व कम है। केरल में सबसे अधिक सड़क घनत्व 37.5 किमी. है जबकि अरुणाचल में यह सबसे कम केवल 10 किमी. है।

प्रश्न 32. परिवहन तथा संचार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
परिवहन तथा संचार में निम्नलिखित अंतर हैं-
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प्रश्न 33. व्यक्तिगत संचार तथा जन संचार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
व्यक्तिगत संचार तथा जन संचार में निम्नलिखित अंतर हैं-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 3

प्रश्न 34. भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत दूरभाष, तार, फैक्स, इंटरनेट, रेडियो, टेलीविजन उपग्रह को सम्मिलित करते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग विकास में क्रांति लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने संचार को बहुत त्वरित एवं आसान बना दिया है। संचार के विभिन्न साधनों में रेडियो, टेलीविजन, उपग्रह संचार प्रमुख हैं।

रेडियो : यह संचार का सबसे सस्ता एवं लोकप्रिय साधन है। भारत में रेडियो का प्रसारण सन् 1923 ई० में रेडियो क्लब ऑफ बाम्बे द्वारा प्रारंभ किया गया था। सरकार ने 1930 ई० में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के अंतर्गत इस लोकप्रिय संचार माध्यम को अपने नियंत्रण में ले लिया। 1936 ई० में इसे ऑल इंडिया रेडियो और 1957 ई० में आकाशवाणी में बदल दिया गया। यह सूचना, शिक्षा, मनोरंजन से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों को प्रस्तुत करता है।

टेलीविजन : इसकी महत्वपूर्ण विशेषता है कि इसके जरिये हम किसी भी घटना को सुनने के साथ-साथ देख भी सकते हैं। टेलीविजन एक अत्यधिक प्रभावी दृश्य-श्रव्य माध्यम है। इसे शुरू में 1959 ई० में सिर्फ महानगरों में प्रारंभ किया गया। 1976 ई० में टी. वी. को ऑल इंडिया रेडियो से विलगित कर दिया गया और दूरदर्शन (डी. डी.) के रूप में एक अलग पहचान दी गइ

उपग्रह संचार : उपग्रह संचार की स्वयं में एक विधा है और ये संचार के अन्य साधनों का भी नियमन करते हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्रों का मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, सीमा क्षेत्रों की चौकसी आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।

भारत की उपग्रह प्रणाली को समाकृति तथा उद्देश्यों के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. इंडियन नेशनल सेटेलाइट सिस्टम (INSAT)
  2. इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट सिस्टम (IRS)

इनसैट की स्थापना 1983 ई० में हुई थी। यह एक बहुद्देशीय उपग्रह प्रणाली है जो दूर संचार, मौसम विज्ञान संबंधी अवलोकनों तथा विभिन्न अन्य आंकड़ों एवं कार्यक्रमों के लिए उपयोगी है।

इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट उपग्रह प्रणाली मार्च 1988 ई० में रूस के वैकानूर से IRS-IA के प्रक्षेपण के साथ प्रारंभ हुई। प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए यह बहुत उपयोगी है। हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी आंकड़ों का अधिग्रहण एवं प्रक्रमण की सुविधा उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 35. देश के आर्थिक विकास में रेलों का योगदान लिखिए। कोई चार बिन्दु दीजिए।
उत्तर:
भारतीय रेल मार्ग एशिया में प्रथम स्थान रखता है। इसका देश के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है। रेलवे ने कृषि और उद्योगों के विकास की गति को तेज करने में योगदान दिया है। रेल यात्रियों की भारी संख्या को दूरदराज के स्थानों तक ले जाती है तथा रेलें भारी मात्रा में माल की ढुलाई करती हैं। औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों के विकास में रेल परिवहन की मांग में अधिक वृद्धि हुई है।

यह निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट है-

  1. कोयला रेलों द्वारा सबसे अधिक ढोया जाता है। 2001-02 में रेल द्वारा 230 करोड़ टन कोयला ढोया गया।
  2. लौह अयस्क, मैगनीज, चूना पत्थर आदि की ढुलाई औद्योगिक इकाइयों के लिए की गई है।
  3. रेलें, उर्वरक, मशीन आदि को कृषि कार्य के लिए पहुँचाती रहती हैं।
  4. रेलें तैयार माल को बाजारों तक पहुँचाती हैं।
  5. विदेशों से आयात किये गये माल को देश के आन्तरिक भागों तक पहुँचाती हैं।
  6. रेलों द्वारा श्रमिक एक स्थान से दूसरे स्थान को रोजगार के लिये जाते हैं।

निम्न सारणी रेलों द्वारा ढोये गये माल की प्रकृति दर्शाती है-
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प्रश्न 36. भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की भागीदारी (Share of India in International Trade) – भारत की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में केवल 0.5% की भागीदारी है। यूरोप के छोटे से देश स्विट्जरलैंड की भागीदारी 1.8% से भी कम है।

2. समुद्री मार्गों की प्रमुखता (Priority of Sea Routes) – भारत का विदेशी व्यापार मुख्य रूप से समुद्री मार्गों से होता है।

3. प्रति व्यक्ति व्यापार कम (Per Capita Trade is Less) – विशाल जनसंख्या और कम व्यापार की मात्रा का परिणाम है कि प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार विकसित और अनेक विकासशील देशों की तुलना में काफी कम है।

4. निर्यात और आयात में भारी वृद्धि (High Increase in Import and Export) – देश का आयात 2000-01 में बढ़कर 227512 करोड़ रुपये मूल्य का था जबकि यह 1950-51 में केवल 608 करोड़ रुपये का था इसी प्रकार निर्यात भी 606 करोड़ रुपये से बढ़कर 201674 करोड़ रुपये का हो गया।

5. विपरीत व्यापार संतुलन (Unfavourable Balance of Trade) – आयात में निरन्तर वृद्धि से व्यापार संतुलन हमारे पक्ष में नहीं रहा। 2000-01 में यह घाटा 25898 करोड़ रुपये का था।

6. व्यापार की दिशा में विविधता (Variation in Trade Items)-स्वतंत्रता से पहले भारत का व्यापार गिने-चुने देशों के साथ था लेकिन अब भारत 200 देशों को निर्यात तथा 180 देशों से आयात करता है।

7. व्यापार की वस्तुओं में विविधता (Variation in Trade Items)-आज भारत 9300 प्रकार की वस्तुओं का निर्यात करता है। 8250 प्रकार की वस्तुओं का आयात करता है।

8. इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर का निर्यात (Export of Electronics, Computer Hardware and Software) – भारत ने हाल ही में इन वस्तुओं के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि की है। दूसरी सबसे बड़ी विशेषता विकसित देशों को इसका निर्यात करना है।

प्रश्न 37. भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय विदेशी व्यापार में पिछले वर्षों में परिवर्तन आया है। यह निम्न तालिका में । स्पष्ट हो जायेगा।
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1950-51 में भारत का विदेशी व्यापार 12140 मिलियन रु० था जो बढ़कर 2004-05 में 8371330 मिलियन रुपये का हो गया। यह वृद्धि आयात-निर्यात में हुई। आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक होता गया। पिछले कुछ वर्षों में व्यापार घाटे में भी वृद्धि हुआ। यह घाटा तेल के मूल्यों में वृद्धि होने के कारण हुआ। निर्यात संघटन की वस्तुओं में परिवर्तन होता जा रहा है। कृषि उत्पाद के भाग में गिरावट आयी है। तेल उत्पाद के आयात में वृद्धि हुई है। परम्परागत वस्तुओं के व्यापार में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण गिरावट आयी है। कृषि उत्पाद जैसे कहवा के निर्यात में कमी आयी है।

विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में 2003-04 में 75.96% व्यापार इंजीनियरिंग वस्तुओं के निर्यात में सुधार हुआ है।

प्रश्न 38. भारत में गंदी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में मलिन बस्तियों की समस्यायें कई प्रकार की होती हैं। मलिन बस्तियों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों से लोग जो रोजगार की तलाश में नगरों में जाते हैं, वे नगर के बाहरी क्षेत्र में पटरियों के साथ रहने लगते हैं। इन लोगों को मजबूर होकर यहाँ बसना होता है। ये लोग पर्यावरणात्मक अधूरी एवं स्तरहीन क्षेत्रों में कब्जा कर लेते हैं। यहाँ जीर्ण शीर्ण मकान, खराब स्वास्थ्य, स्वच्छता परिस्थितियाँ होती हैं। खराब हवा का आवागमन तथा पेय जल, प्रकाश तथा शौच सुविधाओं जैसी आधारभूत आवश्यक चीजों से अभावपूर्ण होते हैं। यहाँ आने-जाने की सुविधा नहीं होती। गलियाँ संकरी और मलिन होती हैं। खराब परिस्थितियों के कारण लोग बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। सुलभ शिक्षा का प्रबन्ध नहीं होता। ये लोग नशीली दवाओं के आदि शराबी, अपराध, गुंडागिरी आदि कुरीतियों के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 39. जल प्रदूषण के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
जल प्रदूषण के अनेक प्रभाव हैं-

  1. रागा का प्रसार (Spreading of Diseases) – प्रदूषित जल के सेवन से मनुष्य को अनेक रोग लग जाते हैं। जैसे-हैजा, चेचक, पीलिया, टाइफाइड, पेचिश आदि।
  2. जलीय पौधों और जीव-जन्तुओं की मौत (Death of Animals and Water Plants) – विषैले जल से जलीय पौधे और जीव-जन्तु मर जाते हैं।
  3. फसला का नाश (Destruction of Crops) – प्रदूषित जल की सिंचाई से फसलें नष्ट हो जाती हैं या उनमें रासायनिक विष घुल जाते हैं।
  4. मिट्टी की उर्वरता का नाश (Destruction of Fertility of Soil) – प्रदूषित जल मिट्टी को प्रदूषित करके उसकी उर्वरता को नष्ट कर देता है। मृदा के जीवाणु और अन्य सूक्ष्म जीव मर जाते हैं।
  5. सुपोषण (Eutrophication) – जलाशयों में जैविक अजैविक पोषक तत्त्वों की भरमार होती है। इससे अवांछित पौधों और जीव-जन्तुओं की संख्या में भारी वृद्धि हो जाती है।
  6. सागरीय जल का प्रदूषण (Pollution of Sea Water) – समुद्र के जल में पेट्रोलियम पदार्थों के मिल जाने से समुद्र में पाये जानेवाले जीव-जन्तु मरने लगते हैं।

प्रश्न 40. देश में भूमि प्रदूषण को कम करने के दो उपाय बताइए।
अथवा, (भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर:

  1. किसानों को रासायनिक पदार्थों का उचित प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षण देना चाहिए। डी. डी. टी. आदि के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
  2. नगरीय तथा औद्योगिक गन्दे पानी को साफ करके सिंचाई के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
  3. सड़ी-गली सब्जियों और फलों तथा पशुओं के मल-मूत्र को उचित प्रौद्योगिकी द्वारा बहुमूल्य खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
  4. मलिन बस्तियों के लोगों को सुलभ शौचालय की सुविधा देकर भूमि प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  5. प्लास्टिक के बने पदार्थों को जल के प्रवाह में न जाने दिया जाए। इससे जल प्रदूषित होता है जो भूमि को भी प्रदूषित करता है।

इन उपर्युक्त उपायों से भूमि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 41. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पनामा नहर की महत्ता का वर्णन करें।
उत्तर:
पनामा नहर का निर्माण अटलांटिक एवं प्रशान्त महासागर के तटीय देशों को जोड़ने के उद्देश्य से 1913 ई० में किया गया था। 70 किलोमीटर लम्बा यह नहर पनामा नहर और कोलोन के बीच फैला है। इस नगर मार्ग के मध्य 6 दरवाजे या जलबन्ध बनाये गये हैं जो यहाँ से समुद्र जहाजों को पार करने में मदद करती हैं। दोनों महासागरों के जलस्तर में 26 मीटर का अंतर होने के कारण इस नहर को पार करने पर जहाजों को 26 मीटर ऊपर-नीचे होकर जाना पड़ता है।

इस नहर के बन जाने के बाद सबसे अधिक लाभ संयुक्त अमेरिका को हुआ है। इसके पूर्वी और पश्चिमी तट के बीच यात्रा की दूरी और समय दोनों में उल्लेखनीय कमी आयी है। न्यूयार्क तथा सेन फ्रांसिस्को के बीच लगभग 1300 किलोमीटर की कमी आयी। इसी तरह अमेरिका के पश्चिमी तथा दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तटों एवं यूरोप तथा एशिया के बीच की यात्रा और समय कम हो गया है। इसी तरह उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट और दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तटीय देशों के बीच समय और दूरी कम हो गयी है। समय और दूरी कम लगने से वस्तुओं के परिवहन पर लगने वाले व्यय या लागत में भी कमी आयी है। पनामा नहर को प्रशान्त महासागर का सिंहद्वार भी कहा जाता है।

इस नगर मार्ग के बन जाने से न्यूयार्क एवं याकोहामा के बीच 5440 किलोमीटर, सेन फ्रांसिस्को से लिवरपुल के मध्य 8000 किलोमीटर तथा न्यूयार्क एंव आर्कलैण्ड के मध्य 4000 किलोमीटर की दूरी घट गयी है।

प्रश्न 42. दिये गये मानचित्र का अध्ययन कीजिए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) उत्तरी भाग के जल-अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश का नाम बताइए। यह प्रदेश किस वर्ग (उष्ण या शीत) में रखा गया है ?
(ii) उत्तरी-पश्चिमी भाग के जल-अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश के नाम बताइए। यह प्रदेश किस वर्ग (उष्ण या शीत) में रखा गया है ?
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 6
उत्तर:
(i) जम्मू-कश्मीर का उत्तरी भाग। यह शीत वर्ग में आता है।
(ii) हरियाणा का पश्चिमी भाग, पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात का पश्चिमी भाग। यह उष्ण वर्ग में आता है।

प्रश्न 43. संसार के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए-
(i) उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया, प्रत्येक से एक-एक वैश्विक नगर
(ii) हाँगकाँग, शेनझेग, गुआंगझाऊ-झुई-मुकाऊ के विकसित गेगालोपोलिस।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 7

प्रश्न 44. भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को इंगित करें :
(क) पटना (ख) दिल्ली (ग) कोंकण तट (घ) अंडमान निकोबार द्वीप (ङ) बंगाल की खाड़ी (च) मुंबई हाई।

उत्तर: 
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 8

प्रश्न 45. ऊर्जा के अपारम्परिक स्रोत कौन-से हैं ? भारत में इसकी संभावनाओं की चर्चा करें।
उत्तर:
ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत के अंतर्गत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा एवं जैव ऊर्जा को सम्मिलित करते हैं। भारत के संदर्भ में इसका विवरण निम्न है-

(i) सौर ऊर्जा – ऊर्जा का वैसा रूप जिसे सौर प्लेटों के सहारे सूर्य की किरणों से प्राप्त किया जाता है, सौर ऊर्जा कहलाता है, इस प्रकार की ऊर्जा कोयला एवं तेल आधारित संयंत्रों की अपेक्षा 7 प्रतिशत अधिक तथा नाभिकीय ऊर्जा से 10 प्रतिशत अधिक प्रभावी है। भारत के पश्चिमी भागों गुजरात व राजस्थान में सौर विकास की संभावनाएँ अधिक हैं।

(ii) पवन ऊर्जा – प्रवाहित पवन के द्वारा प्राप्त ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। यह प्रदूषण मुक्त ऊर्जा होती है। पवन ऊर्जा का हमारे देश में संभावित क्षमता 50,000 मेगावाट की है। एशिया महादेश का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा संयंत्र गुजरात के कच्छ में लाम्बा पवन ऊर्जा संयंत्र है। पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान है।

(iii) ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा – समुद्री जल के ज्वारीय तरंगों से प्राप्त ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं। महासागरीय धाराएँ ऊर्जा का अपरिमित भंडार गृह हैं। भारत के पश्चिमी तट पर वृहत् ज्वारीय तरंग उत्पन्न होती है। भारत में इस प्रकार की ऊर्जा का विकास अभी शैशवावस्था में है।

(iv) भूतापीय ऊर्जा – पृथ्वी के गर्भ से तप्त मैग्मा जो अधिक मात्रा में ऊष्मा निर्मुक्त करती है, इससे प्राप्त ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। भारत में, भूतापीय ऊर्जा संयंत्र हिमाचल प्रदेश के मानीकरण में अधिकृत किया जा चुका है। बिहार राज्य के राजगीर, गया एवं मुंगेर से निकलने वाली सल्फर युक्त गर्म जल से भी ऊर्जा की प्राप्ति हो सकती है।

(v) जैव ऊर्जा – जैविक उत्पादों से प्राप्त ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। जैविक उत्पादों के अंतर्गत गोबर, मल-मूत्र, अपशिष्ट को सम्मिलित करते हैं। भारत के दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश में नगरपालिका कचरे से ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 46. निरुद्योगीकरण एवं पुनरुद्योगीकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निरुद्योगीकरण (Deindustrialisation) – विनिर्माण उद्योगों के ह्रास को निरुद्योगीकरण कहा जाता है। निरुद्योगीकरण की प्रक्रिया विकसित देशों में अनेक कारकों का परिणाम है।

  1. विनिर्माण उद्योगों में मनुष्य के स्थान पर मशीनों का प्रयोग बढ़ना।
  2. विदेशों में अत्यंत सस्ती दरों पर उत्पन्न औद्योगिक उत्पादों की प्रतिस्पर्धा।
  3. नई मशीनों के निवेश में कमी के कारण इन उत्पादों का मूल्य अधिक होना।
  4. उच्च योग्यता प्राप्त लोगों द्वारा तृतीयक तथा चतुर्थक क्षेत्र के कार्यों को वरीयता देना।
  5. उच्च ब्याज दर तथा विदेशों से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का और अत्यधिक महँगा होना।

पुनरुद्योगीकरण (Reindustrialisation) – इससे तात्पर्य नए उद्योगों के कुछ खंडों का विकास करना है। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ उद्योगों का ह्रास हुआ है। अत्यधिक विकसित देशों में पुनरुद्योगीकरण की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. उच्च प्रौद्योगिक फर्मों जैसे इलैक्ट्रोनिक्स के सामान का उत्पादन करने वाली फर्मों की वृद्धि।
  2. ऐसी नई फर्म जो बहुधा उच्च कुशलता वाले कम श्रम के आधार पर विनिर्माण की स्थापना करती है।
  3. नई फर्म जो अपेक्षाकृत अल्प औद्योगिक क्षेत्रों में अथवा महानगरों के सीमांतों पर आधारित हैं।

प्रश्न 47. स्वर्णिम चतुर्भुज परम-राजमार्ग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वर्णिम चतुर्भुज परम राजमार्ग (Golden Quadrilateral Super Highways) – भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने देश में चार महानगरों-दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई एवं चेन्नई को 4 लेन वाले द्रूतगामी सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का शुभारम्भ 2 जनवरी, 1999 को किया। इस योजना में स्वर्णिम चतुर्भुज जो दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता चार महानगरों को जोड़ने वाले 5,846 किलोमीटर और उत्तर-दक्षिण तथा पूरब-पश्चिम गलियारों (7,300 किलोमीटर) जो क्रमशः श्रीनगर से कन्याकुमारी तथा सिल्वर से पोरबन्दर से जोड़ते हैं, 4/6 लेन वाले शामिल हैं। 5,846 किलोमीटर लम्बे इस कुल मार्ग में 5,319 किलोमीटर को 4 लेन वाला किया जा चुका था। 7,300 किलोमीटर में से 822 किलोमीटर लम्बे मार्ग को चार लेन में बदलने का कार्य पूरा हो चुका है और 4,892 किलोमीटर की लम्बाई के मार्ग पर कार्य चल रहा है।

प्रश्न 48. संसार के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को उचित चिह्नों द्वारा दर्शाइए तथा उनके नाम लिखिए-
(i) संसार के पाँच सबसे बड़े व्यापारिक देश।
(ii) यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन (इफ्टा) देशों के नाम।
(iii) ओपेक के सदस्य देश।
(iv) आसियान के सदस्य देश।
उत्तर:
(i)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 9
चित्र : संसार के पाँच व्यापारिक देश

(ii)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 10

(iii)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 11

(iv)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 12

प्रश्न 49. भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को प्रदर्शित करें :
(a) तालचिर (b) कांडला पत्तन (c) राँची (d) शिमला (e) अजमेर (f) पटना।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 13

प्रश्न 50. भारत के रेखा मानचित्र पर सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्रों का वितरण दिखाइए।
उत्तर:

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 14

प्रश्न 51. भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को प्रदर्शित करें :
(क) जमशेदपुर
(ख) आगरा
(ग) दिल्ली
(घ) हैदराबाद
(ङ) पुणे
(च) शिलांग।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 15

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