12-biology

bihar board 12 biology | पारितंत्र

bihar board 12 biology | पारितंत्र

पारितंत्र 

[ EcoSYSTEM ]
   महत्त्वपूर्ण तथ्य
• पारितंत्र – पारितंत्र को प्रकृति की एक क्रियाशील इकाई के रूप में देखा जाता है , जहाँ पर जीवधारी आपस में तथा आस – पास के भौतिक पर्यावरण के साथ परस्पर क्रिया करते हैं । पारितंत्र का आकार एक छोटे से तालाब से लेकर एक विशाल जंगल या महासागर तक हो सकता है । अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इसे दो आधारभूत श्रेणियों – स्थलीय एवं जलीय में बाँटा गया है ।
• स्तर विन्यास – विभिन्न स्तरों पर विभिन्न प्रजातियों के ऊधिर वितरण को स्तर विन्यास कहते हैं । •उत्पादकता – जैव मात्रा के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं ।
•सकल प्राथमिक उत्पादकता – एक पारिस्थितिक तंत्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता प्रकाश – संश्लेषण के दौरान कार्बनिक तत्त्व की उत्पादन दर होती है । .
•नेट प्राथमिक उत्पादकता – यदि हम सकल प्राथमिक उत्पादकता से श्वसन के दौरान हुई क्षति को घटा देते हैं तो हमें नेट प्राथमिक उत्पादकता प्राप्त होती है । जी . पी . पी.-आर. = एन . पी . पी .।
•अपघटन – जटिल कार्बनिक सामग्री को अकार्बनिक तत्त्वों ( कार्बन डाईऑक्साइड , जल एवं पोषकों ) में खंडित करने में सहायता करते हैं , इस प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं ।
•उत्पादक – हरे पादप को उत्पादक कहा जाता है । •पारिस्थितिक अनुक्रमण – एक सुनिश्चित क्षेत्र की प्रजाति संरचना में उचित रूप से आंकलित परिवर्तन को पारिस्थितिक अनुक्रमण कहते हैं ।
•पारितंत्र सेवाएँ – पारितंत्र प्रक्रिया के उत्पादों को पारितंत्र सेवाएँ कहते हैं । जैसे – एक स्वस्थ वन पारितंत्र की भूमिका वायु एवं जल को शुद्ध बनाना , सूखा एवं बाढ़ों को घटाना , पोषकों को चक्रित करना , भूमि को उर्वर बनाना , जंगली जीवों को उपलब्ध कराना , जैव विविधता को बनाए रखना , फसलों का परागण करने में सहायता करना , कार्बन के लिए भंडारण स्थल उपलब्ध कराना और साथ ही सौंदर्यात्मक , सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य प्रदान करना आदि है ।
NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
अभ्यास ( Exercises )
1. रिक्त स्थानों को भरो ।
( क ) पादपों को……………… कहते हैं , क्योंकि कार्बन – डाईऑक्साइड का स्थिरीकरण करते हैं । उत्तर – उत्पादका
( ख ) पादप द्वारा प्रमुख पारितंत्र का पिरमिड ( सं.का )………………….. प्रकार का है । .
उत्तर – उल्टा पिरैमिडा
( ग ) एक जलीय पारितंत्र में , उत्पादकता का सीमा कारक ………. है ।
उत्तर – नाईट्रोजन , आयरन ।
( घ ) हमारे पारितंत्र में सामान्य अपरदन …………हैं।
उत्तर – केंचुआ ।
( च ) पृथ्वी पर कार्बन का प्रमुख भंडार………. है । उत्तर – वायुमंडल , महासागर , जीवाश्म ईंधन ।
2. एक खाद्य श्रृंखला में निम्नलिखित में सर्वाधिक संख्या किसकी होती है-
( क ) उत्पादक
( ख ) प्राथमिक
( ग ) द्वितीयक उपभोक्ता
( घ ) अपघटक।
उत्तर- ( क ) उत्पादक
3. एक झील में द्वितीय ( दूसरी ) पोषण स्तर होता है-
( क ) पादपप्लवक
( ख ) प्राणिप्लवक
( ग ) नितलक ( बैनथॉस )
( घ ) मछलियाँ ।
उत्तर- ( ख ) प्राणिप्लवक
4. द्वितीयक उत्पादक है-
( क ) शाकाहारी ( शाकभक्षी )
( ख ) उत्पादक
( ग ) मांसाहारी ( मांसमक्षी )
( घ ) उपरोक्त कोई भी नहीं
उत्तर- ( घ ) उपरोक्त कोई भी नहीं ।
5. प्रासंगिक और विकिरण में प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का क्या प्रतिशत होता है ?
( क ) 100 %
( ख ) 50 %
( ग ) 1-5 %
( घ ) 2-10 %
उत्तर- ( ख ) 50 %
6. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें-
( क ) चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला।
( ख ) उत्पादन एवं अपघटन ।
( ग ) ऊर्ध्ववर्ती ( शिखरांश ) व अधोवती पिरामिड । उत्तर- ( क ) चारण खाद्य श्रृंखला एवं अपरद खाद्य श्रृंखला – अपरद खाद्य श्रृंखला मृत कार्बनिक सामग्री से प्रारंभ होती है । यह अपघटकों से बनी होती है जोकि मुख्यतः कवक एवं बैक्टीरिया के रूप में परपोषित जीव होते हैं । ये मृत कार्बनिक सामग्री या अपरदों के खंडन द्वारा अपेक्षित ऊर्जा एवं पोषण प्राप्त करते हैं । इन्हें मृतपोषी या पूर्तिजीवी कहते हैं। अपघरक पाचक इंजाइम स्रावित करते हैं , जो मृत जीवों तथा व्यर्थ सामग्री को साधारण , अकार्बनिक पदार्थों में तोड़ डालते हैं , जो बाद में उन्हीं के द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं ।
     कुछ स्तरों पर अपरद खाद्य श्रृंखला को चारण ( चराई ) खाद्य श्रृंखला से जोड़ा जा सकता है । अपरद खाद्य श्रृंखला के कुछ जीव , चारण खाद्य शृंखला – पशुओं के शिकार बन जाते हैं और एक प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में कुछ जीव जन्तु जैसे काकरोच एवं कौवे आदि सर्वभक्षी होते हैं । खाद्य श्रृंखलाओं का एक प्राकृतिक अंतरसंबंध एक आहार जाल ( फूडवेब ) का निर्माण करता है ।
( ख ) उत्पादन एवं अपघटन में अंतर – प्राथमिक उत्पादन प्रकाश संश्लेषण के दौरान पादपों द्वारा एक निश्चित समयावधि में प्रति ईकाई क्षेत्र द्वारा उत्पन्न किए गए जैव मात्रा या कार्बनिक सामग्री की मात्रा है । इसे भार ( g² ) या ऊर्जा ( Kcalm–² ) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है । अकार्बनिक तत्त्वों जैसे कार्बन डाईऑक्साइड , जल एवं पोषकों में खंडित करने में सहायता करते हैं और इस प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं ।
( ग ) ऊर्ववर्ती ( शिखरांग ) व अधोवर्ती पिरामिड में अंतर – ऊर्ध्ववर्ती ( शिखरांग ) ( Upright ) पिरामिड ऊर्जा पिरामिड होते हैं जो सदेव खड़ी अवस्था में होते हैं । ये कभी उल्टी अवस्था में नहीं हो सकते क्योंकि जब ऊर्जा किसी विशेष पोषण स्तर से उग्र पोषण स्तर में पहुंचती है , तो हर स्तर पर ऊष्मा के रूप में ऊर्जा का ह्रास होता है ।
  अघोवर्ती पिरामिड ( उल्टे पिरामिड ) ( Inverted ) – ये जैव मात्रा ( भार ) के पिरामिड होते हैं , जो प्राय : उल्टे होते हैं । समुद्र में जैव मात्रा ( भार ) के पिरामिड भी प्रायः उल्टे होते हैं , क्योकि मछलियों की जैव मात्रा पादप प्लवकों की जैव मात्रा से बहुत अधिक होती है ।
7. निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें
( क ) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल ( वेब ) । ( ख ) लिटर ( कर्कट ) एवं अपरद ।
( ग ) प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता ।
उत्तर- ( क ) खाद्य श्रृंखला तथा खाद्य जाल ( वेब ) में अंतर – एक पोषण रीति के कारण ऊर्जा का स्थानांतरण , दूसरी पोषण रीति के भोजन के रूप में उपयोग होना खाद्य शृंखला कहलाता है । यह सरल होता है ।
    एक खाद्य श्रृंखला का एक विशेष शाकभक्षी जब कई खाद्य श्रृंखलाओं के मांसाहारियों का भोजन होता है तब इस प्रकार एक – दूसरे से जुड़ी खाद्य श्रृंखलाओं के आव्यूह को आहार या खाद्य जाल ( food web ) कहते हैं । यह जटिल होता है । ( ख ) लिटर ( कर्कट ) एवं अपरद में अंतर – पादपों और प्राणियों के मृत अवशेषों को अपरद कहते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं- ( i ) पृथ्वी की सतह के ऊपर के अपरद , ( ii ) मृदा के नीचे के अपरद । पादपों के मृत अवशेष – जैसे पत्तियाँ , छाल , फूल तथा प्राणियों के मूत्र अवशेष , मलादि सहित लिटर कर्कट कहलाते हैं , जो कि अपघटन के लिए कच्चे पदार्थों का काम करते हैं ।
( ग ) प्राथमिक एवं द्वितीयक उत्पादकता में अंतर – जैव मात्रा के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं इसे g²yr¹ या ( Kcal m² )yr–¹ के रूप में व्यक्त किया जा सकता है । इसे संकल या कुल प्राथमिक उत्पादकता तथा नेट प्राथमिक उत्पादकता में विभाजित किया जा सकता है । एक पारिस्थितिक तंत्र की सकल प्राथमिक उत्पादकता प्रकाश – संश्लेषण के दौरान कार्बनिक तत्त्व की उत्पादन दर होती है । सकल प्राथमिक उत्पादकता की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा पादपों में श्वसन द्वारा उपयोग की जाती है । यदि हम सकल प्राथमिक उत्पादकता से श्वसन के दौरान हुई क्षति को घटा देते हैं तो हमें नेट प्राथमिक उत्पादकता प्राप्त होती है ।
      जी . पी . पी – आर – एन . पी . पी .
द्वितीयक उत्पादकता को उपभोक्ताओं ने नए कार्बनिक तत्त्वों के निर्माण की दर के रूप में पारिभाषित किया है । यह भी दो प्रकार की होती है-
( i ) सकल द्वितीयक उत्पादकता ( GSP ) और
( ii ) नेट द्वितीयक उत्पादकता ( NSP ) NSP = GSP – R
जहाँ पर श्वसन हानि है ।
8. पारिस्थितिक तंत्र के घटकों की व्याख्या करें । उत्तर – पारिस्थितिक तंत्र के घटकों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं- ( i ) जैविक एवं अजैविक घटका जैविक एवं अजैविक घटक व्यक्तिगत रूप से एक – दूसरे को तथा अपने आस – पास के वातावरण को प्रभावित करते हैं । जैविक एवं अजैविक घटकों की परस्पर क्रियाओं के फलस्वरूप एक भौतिक संरचना विकसित होती है , जो प्रत्येक प्रकार के पारितंत्र की विशिष्टता है । एक पारितंत्र की पादप एवं प्राणि प्रजातियों की पहचान एवं गणना इसकी प्रजातियों के संघटन ( कंपोजीशन ) को प्रकट करता है । विभिन्न स्तरों पर विभिन्न प्रजातियों के ऊर्ध्वाधर स्तर , झाड़ियाँ द्वितीयक स्तर तथा जड़ी – बूटियाँ एवं घास निचले ( धरातलीय ) स्तर पर निवास करते हैं ।
  पारिस्थितिक तंत्र में सारे घटक एक इकाई के रूप में तब क्रियाशील दिखते हैं ; जब हम निम्न पहलुओं पर दृष्टि डालते हैं-
( क ) उत्पादकता
( ख ) अपघटन
( ग ) ऊर्जाप्रवाह और
( घ ) पोषण चक्र ।
एक जलीय पारितंत्र के गुण धर्म ( प्रकृति ) को समझने के लिए एक छोटे तालाब को उदाहरण स्वरूप लेते हैं । यह एक औचित्यपूर्ण स्वपोषी और अपेक्षित रूप से सरल उदाहरण है जो हमें एक जलीय पारितंत्र में यहाँ तक की जटिल पारस्परिकता ( अन्योन्यक्रियाओं ) को समझने में सहायक है । एक तालाब उथले पानी वाला एक जल – निकाय है जिसमें एक पारितंत्र के सभी मूलभूत घटक बेहतर ढंग से प्रदर्शित होते हैं । पानी एक अजैविक घटक है जिसमें कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्त्व तथा प्रचुर मृदा निक्षेप तालाब की तली में जमा होते हैं । सौर निवेश , ताप का चक्र , दिन की अवधि ( लंबाई ) तथा अन्य जलवायुवीय पारिस्थितियाँ समूचे तालाब की क्रियाशीलता की दर को नियमित करते हैं । स्वपोषी घटक जैसे पादप लवक , कुछ काई ( शैवाल ) तथा प्लवक एवं निमग्न तथा किनारों पर सीमांत पादप तालाब के किनारों पर पाए जाते हैं । उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व प्राणिप्लवक तथा स्वतंत्र प्लवी एवं तलीय वासी जीव स्वरूपों द्वारा पारितंत्र किया जाता है । अपघटक के उदाहरण कवक एवं जीवाणु हैं जो विशेष रूप से तालाब की तली में प्रचुरता से पाए जाते हैं । यह तंत्र किसी भी पारितंत्र ( और कुल मिलाकर जीवमंडल ) की सभी प्रक्रियाओं को निष्पादित करते हैं अर्थात् स्वपोषियों द्वारा सूर्य की विकिरण ऊर्जा के उपभोग से अकार्बनिक तत्त्वों को कार्बनिक तत्त्वों में बदलना , विभिन्न स्तरों के परपोषितों द्वारा स्वपोषकों का भक्षण , मृत जीवों की सामग्रियों का अपघटन एवं खनिजीकरण कर स्वपोषकों के लिए मुक्त करना इस घटना की पुनरावृत्ति बारंबार होती रहती है । ऊर्जा की एकदिशीय उच्च पोषी स्तरों की ओर तथा पर्यावरण में इसका अपव्यय और ऊष्मा के रूप में हानि होती है ।
9. पारिस्थितिकी पिरामिड को परिभाषित करें तथा जैवमात्रा या जैवभार तथा संख्या के पिरामिडों की उदाहरण सहित व्याख्या करें । .
उत्तर – विभिन्न पोषण रीतियों पर जीवों के बीच चाहे आप एक खाद्य या ऊर्जा संबंध जोड़े तो आपको पिरामिड के समान आकार मिलेगा । इस संबंध को संख्या , जैव मात्रा या ऊर्जा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है । प्रत्येक पिरामिड के आधार का प्रतिनिधित्व उत्पादक या पहली पोषण स्तर करता है जबकि शिखर का प्रतिनिधित्व तृतीयक पोषक स्तर या सर्वोच्च उपभोक्ता करता है ।
तीन प्रकार के परिस्थितिक पिरामिड का आमतौर पर अध्ययन किया जाता है । वे हैं
( क ) संख्या का पिरामिड , ( ख ) जैवमात्रा का पिरामिड और ( ग ) ऊर्जा का पिरामिडा [ देखें चित्र ( अ ) , ( ब ) , ( स ) ]
   ऊर्जा , मात्रा या अंश , जैवमात्रा या संख्याओं की किसी भी गणना में पोषण स्तर के सभी जीवों को शामिल किया जाना चाहिए । यदि हम किसी पोषण स्तर के कुछ व्यष्टियों को ही गणना में लेते हैं तो हमारे द्वारा किया गया कोई भी व्यापारीकरण सत्य नहीं होगा ।
    अधिकतर पारिस्थितिक तंत्रों में संख्याओं , ऊर्जा तथा जैवमात्रा के सभी पिरामिड आधार से ऊपर की ओर होते हैं । अर्थात् उपभोक्ताओं की अपेक्षा उत्पादकों की संख्या एवं जैवमात्रा अधिक होती है और इसी प्रकार के शाकाहारियों की संख्या एवं जैवमात्रा मांसाहारियों की अपेक्षा अधिक होती है । इसी प्रकार से निम्न पोषण स्तर में ऊर्जा की मात्रा ऊपरी पोषण स्तर से अधिक होती है । इस व्यापकीकरण में कुछ अपवाद हैं । यदि हम एक बड़े वृक्ष पर आहार प्राप्त करने वाले कीटों की संख्या की गणना करें तो हमको संख्या का पिरामिड प्राप्त हो सकता है । अब उसमें उन छोटे कीटों पर निर्भर पक्षियों की गणना करें , इसके साथ ही कीटभक्षी पक्षियों पर निर्भर बड़े पक्षियों की गणना करें , तब हमें जैवमात्रा का पिरामिड प्राप्त होगा । समुद्र में जैव मात्रा ( भार ) पिरामिड भी प्राय : उल्टे होते हैं , क्योंकि मछलियों की जव मात्रा पादप प्लवकों की जैव मात्रा से बहुत अधिक होती है ।
चित्र : ( अ ) एक घास के मैदान की पारिस्थितिक तंत्र का पिरामिड का लगभग 6 मिलियन पादपों के उत्पादन पर आधारित पारिस्थितिक तंत्र में समर्थित केवल 3 मांसाहारी जीव है ।
चित्र : ( ब ) एक जैवमात्रा का पिरामिड शीर्ष पोषण स्तर पर एक . तीव्र गिरावट दर्शाता है । एक दलदली पारिस्थितिक तंत्र से संग्रहित आंकड़े ।
चित्र : ( स ) जैव मात्रा का उल्टा पिरामिड प्राणिप्लवक क व्यापक खड़ी फसल को समर्थित करती पादप प्लवक की छोटी खड़ी फसल ।
10. प्राथमिक उत्पादकता क्या है ? उन कारकों की संक्षेप में चर्चा करें जो प्राथमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं ।
उत्तर – जैव मात्रा के उत्पादन की दर को उत्पादकता कहते हैं । इसे g²yr¹ या ( Kcal m–) yr–¹( ऊर्जा ) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है , जिससे विभिन्न पारितंत्रों की उत्पादकता की तुलना की जा सकती है । इसे सकल या कुल प्राथमिक उत्पादकता तथा नेट प्राथमिक उत्पादकता में विभाजित किया जा सकता है । एक पारिस्थितिक तंत्र की संकल प्राथमिक उत्पादकता प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बनिक तत्त्व की उत्पादन दर होती है । सकल प्राथमिक उत्पादकता की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा पादपों में श्वसन द्वारा उपयोग की जाती है । यदि हम सकल प्राथमिक उत्पादकता से श्वसन के दौरान हुई क्षति को घटा देते हैं तो हमें नेट प्राथमिक उत्पादकता प्राप्त होते हैं ।
       जी . पी . पी . – आर – एन . पी . पी . प्राथमिक उत्पादकता एक सुनिश्चित क्षेत्र में पादप प्रजातियों के निवास पर निर्भर करती ये विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय कारकों , पोषकों की उपलब्धता तथा पादपों की प्रकाश संश्लेषण क्षमता , तापमान , वर्षा सूर्य प्रकाश आदि पर निर्भर करती है। इसलिए ये विभिन्न प्रकार के पारितंत्रों में भिन्न – भिन्न होती हैं । संपूर्ण जीवमंडल की वार्षिक कुल प्राथमिक उत्पादकता का भार कार्बनिक तत्त्व के रूप में लगभग 170 बिलियन टन आंका गया है । यद्यपि पृथ्वी के धरातल का लगभग 70 प्रतिशत भाग समुद्रों द्वारा इँका हुआ है , फिर भी बावजूद इनकी उत्पादकता केवल 55 बिलियन टन है । शेष मात्रा भूमि पर उत्पन्न होती है ।
          चित्र : वर्षा ( cm / वर्ष )
11. अपघटन की परिभाषा दें तथा अपघटन की प्रक्रिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या करें ।
उत्तर – केंचुओं को किसान के मित्र के रूप में संबोधित किया जाता है । ऐसा इसलिए है , क्योंकि ये जटिल काबनिक पदार्थों का खंडन करने के साथ – साथ भूमि को भुरभुरा बनाने में मदद करते हैं । उसी प्रकार अपघटक जटिल कार्बनिक सामग्री को अकार्बनिक तत्त्वों जैसे – कार्बन डाईऑक्साइड , जल एवं पोषकों में खंडित करने में सहायता करते हैं और इस प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं । पादपों के मृत अवशेष – जैसे पत्तियाँ , छाल , फूल तथा प्राणियों ( पशुओं ) के मृत अवशेष , ‘ मलादि सहित अपरद ( डेटाइट्स ) बनाते हैं , जो कि अपघटन के लिए कच्चे पदार्थो का काम करते हैं । अपघटन की प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण चरण खंडन , निक्षालन , अपचयन , ह्यूमस भवन ( बनना ) , खनिजी भवन है।
अपरदाहरी ( जैसे कि केंचुए ) अपरद को छोटे – छोटे कणों में खंडित कर देते हैं । इस प्रक्रिया को खंडन कहते हैं । निक्षालन प्रक्रिया के अंतर्गत जल – विलेय अकार्बनिक पोषक भूमि मृदासस्तर में प्रविष्ट कर जाते हैं और अनुपलब्ध लवण के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं । बैक्टीरियल ( जीवाणुवीय ) एवं कवकीय एंजाइम अपरदों को सरल अकार्बनिक तत्त्वों में तोड़ देते हैं । इस प्रक्रिया को अपचय कहते हैं ।
 यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि उपर्युक्त अपघटन की समस्त प्रक्रियाएँ अपरद पर समानांतर रूप से लगातार चलती रहती हैं । ह्यूमीफिकेशन और मिनरेलाइजेशन की प्रक्रिया अपघटन के दौरान मृदा में संपन्न होती है । ह्यूमीफिकेशन के द्वारा एक गहरे रंग के क्रिस्टल रहित तत्त्व का निर्माण होता है जिसे ह्यूमस कहते हैं जोकि सूक्ष्मजैविक क्रिया के लिए उच्च प्रतिरोधी होता है और इसका अपघटन बहुत ही धीमी गति से चलता है । स्वभाव ( प्रकृति ) में कोलाइडल होने के कारण यह पोषक के भंडार का काम करता है । ह्यूमस पुनः कुछ सूक्ष्मजीवों द्वारा खंडित होता है और जो खनिजीकरण नामक प्रक्रिया द्वारा अकार्बनिक पोषक उत्पन्न होते हैं उन्हें मुक्त करता है।
चित्र : एक स्थलीय पारितंत्र में अपघटन चक्र का आरेखीय निरूपण
     अपघटन एक प्रक्रिया है जिसमें ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है । अपघटन की दर जलवायुवीय घटकों तथा अपरद के रासायनिक संघटनों द्वारा निर्धारित होती है । एक विशिष्ट जलवायुवीय परिस्थितियों में , यदि अपरद काइटिन तथा लिग्निन से भरपूर होता है तब अपघटन दर धीमी होती है , यदि अपरद नाइट्रोजन तथा जलविलेय तत्त्वों जैसे चीनी आदि से भरपूर होता है जब वह तेज होती है। ताप एवं मृदा की नमी बहुत ही महत्त्वपूर्ण जलवायुवीय घटक हैं जो मृदा के सूक्ष्मजीवों की क्रियाओं द्वारा अपघटन की गति को नियमित करते हैं । गरम एवं आर्द्र दबंता में अपघटन की गति तेज होती है जबकि निम्न ताप हवं अवायुजीवन अपघटन की गती को रोका करती है जिसके परिणाम स्वरूप कार्बनिक पदार्थों का भंडार जमा हो जाता है ।
12. एक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह का वर्णन करें ।
उत्तर – गहरे समुद्र के जलतापीय पारितंत्र को छोड़कर पृथ्वी पर सभी पारिस्थितिक तंत्रों के लिए एक मात्र ऊर्जा स्रोत सूर्य है । आपतित सौर विकिरण का 50 प्रतिशत से कम भाग प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण में प्रयुक्त होता है । हम जानते हैं कि पादप एवं प्रकाश – संश्लेषण तथा रसायनी संश्लेषण जीवाणु ( स्वपोषी ) सूर्य की विकरित ऊर्जा को सरल अकार्बनिक पदार्थों से आहार तैयार करने में लगाते हैं । पादप केवल 210 प्रतिशत प्रकाश संश्लेषणात्मक सक्रिय विकिरण का प्रग्रहण करते हैं और यही आंशिक मात्रा की ऊर्जा संपूर्ण विश्व का संपोषण करती है । अतः यह जानना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि पादपों द्वारा संग्रहण की गई सौर ऊर्जा एक पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न जीवों के माध्यम से किस प्रकार प्रवाहित होती है । पृथ्वी के सभी जीव आहार के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं । अत : आप पायेंगे कि सूर्य से उत्पादकों की ओर फिर उपभोक्ता की ओर ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है ।
  पारिस्थितिक तंत्र ऊष्मा गतिक के दूसरे सिद्धांत से अवमुक्त नहीं है । उन्हें निरंतर ऊर्जा की आपूर्ति की आवश्यकता होती है ताकि वे अपेक्षित अणुओं को संश्लेषित कर बढ़ती हुई अव्यवस्थापन के प्रति सर्वव्यापी प्रवृत्ति से संघर्ष कर सकें ।
    पारिस्थितिक तंत्र की शब्दावली में हरे पादप को उत्पादक कहा जाता है । स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में शाकी एवं काष्ठीय पादप प्रमुख उत्पादक हैं । इसी प्रकार विभिन्न प्रजातियाँ जैसे – पादपप्लवक , काई और बड़े पादप जलीय पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादक हैं ।
चित्र : विभिन्न पोषक स्तरों में से होता हुआ ऊर्जा का प्रवाह
 आपने खाद्य श्रृंखलाओं तथा जालों ( वेब्स ) के बारे में पढ़ा है जो कि प्रकृति में विद्यमान है । पादप ( या उत्पादक ) से प्रारंभ होकर खाद्य श्रृंखला या जाल इस प्रकार से बने होते हैं कि प्रत्येक प्राणी जो एक पादप से आहार ग्रहण करता है या अन्य प्राणी पर निर्भर करता है और बदले में वह किसी अन्य के लिए आहार बनाता है । इस परस्पर अंतर निर्भरता के कारण श्रृंखला जाल ( वेब ) की रचना होती है । किसी भी जीव द्वारा आबद्ध ( ग्रहण ) की गई ऊर्जा सदैव के लिए संचित नहीं रहती है । उत्पादक द्वारा आबद्ध की गई ऊर्जा या तो उपभोक्ता को भेज दी जाती है या वह जीव मृत हो जाती है । एक जीव की मृत्यु अपरद खाद्य शृंखला / जाल की शुरूआत होती है ।
एक साधारण खाद्य श्रृंखला
घास → ‌ ( उत्पादक )
बकरी → ( प्राथमिक उपभोक्ता )
मनुष्य → ( द्वितीयक उपभोक्ता )
चारण खाद्य श्रृंखला में पोषण स्तरों की संख्या प्रतिबंधित होती है । इस प्रकार से ऊर्जा प्रवाह का स्थानांतरण 10 प्रतिशत कम होता है और प्रत्येक निम्न पोषण स्तर से ऊपर का पोषण स्तर पर केवल 10 प्रतिशत ऊर्जा प्रवाहित होती है । प्रकृति में यह संभव है कि कई स्तर हों जैसे कि चारण खाद्य खला में उत्पादक , शाकभक्षी , प्राथमिक मांसभक्षी , द्वितीयक मांसभक्षी आदि ।
13. एक पारिस्थितिक तंत्र में एक अवसादीय चक्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं का वर्णन करें ।
उत्तर – जीवों को लगातार वृद्धि , प्रजनन एवं विभिन्न कायिक क्रियाओं को संपन करने के लिए लगातार पोषकों के संभरण की आवश्यकता होती है । मृदा में विद्यमान पौषकों की मात्रा जसे कि कार्वन , नाइट्रोजन , फॉस्फोरस , कैल्सियम आदि को स्थायी अवस्था के रूप में संदर्भित किया जाता है । फॉस्फोरस को अवसादीय चक्र ( Imperfect cycles ) कहा जाता है क्योकि यह स्थानीय कारकों से बिगड़ जाते हैं ।
     फॉस्फोरस चक्र की कुछ विशिष्टताएँ
फॉस्फोरस एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अवयव है क्योंकि यह ऊर्जा या करने वाले यौगिकों एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट ( Adenosine Triphosphate ) , न्यूक्लिक अम्ल ( nucleic acids ) तथा कोशिकीय कलाओं के निर्माण में भाग लेता है । जंतुओं के दाँत तथा अस्थि निर्माण में भी फॉस्फोरस का उपयोग होता है । फॉस्फोरस चक्र निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है-
( i ) फॉस्फोरस के मुख्य स्रोत है – चट्टानों में जमे फॉस्फेट्स , खनिज फॉस्फेट्स तथा अस्थियाँ ।
( ii ) जल तथा हवा द्वारा चट्टानों का विघटन होता है और इनमें उपस्थित फॉस्फेट्स जल के साथ बहकर मृदा में पहुँच जाते हैं जहाँ ये जल में घुले रहते हैं ।
( iii ) पृथ्वी की मृदा से जल में घुले हुए फॉस्फोरस को पौधे उपापचयी क्रियाओं के लिए अपने उपयोग में ले लेते हैं । यह फॉस्फोरस पौधे से जंतुओं में भोजन के रूप में पहुंचता है ।
( iv ) फॉस्फोरस की काफी मात्रा नदियों , झरनों , जल धाराओं द्वारा समुद्र में पहुँच जाती है ।
( v ) समुद्री पौधे , समुद्र में उपस्थित फॉस्फेट्स का उपयोग करते हैं ।
( vi ) समुद्री जंतु कार्बनिक फॉस्फेट्स को भोजन के रूप में पौधों से ग्रहण करते हैं तथा अकार्बनिक फॉस्फेट्स को जल से ।
( vii ) वे फॉस्फेट्स जो जंतुओं के अंगों का निर्माण करते हैं , वे प्राकृतिक फॉस्फोरस चक से उस समय तक बाहर रहते हैं जब तक उनकी मृत्यु न हो जाये और अपघटको दाग उनके शरीर से फॉस्फेट्य वातावरण में न छोड़ दिए जायें ।
( viii ) सभी जंतु अपच भोजन का बहिःक्षेपन सदैव करते हैं । इनके मल का सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटा कर दिया जाता है और फॉस्फेटस को वायुमण्डल तथा जलमण्डल में छोड़ दिया जाता है।
( ix ) सही चिड़ियाँ जैसे , पंग्विन ( Penguin ) . समुदी किनारे पर ग्वैनो ( guano ) जमा करती हैं, जिसमें फॉस्फेट्स की मामा बहुत अधिक होती है । इस प्रकार फॉस्फेदार का मात्र वातावरण में मिल जाती है । जब कभी लोहा , तांबा , ऐल्यूमिनियम से संयूक्त होकर फॉस्फेट्स यौगिक बनाने है तब इन्हें पौधा प्रयोग में नहीं ले सकते और इस प्रकार ये चक्र के बाहर ही रहते हैं ।
इसी प्रकार जंतुओं के दाँत तथा अस्थियों का बैक्टीरिया द्वारा विघटन नहीं हो पाता , इसलिए इनमें उपस्थित फॉस्फेट्स भी चक्र के बाहर रहते हैं।
चित्र : एक स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में फॉस्फोरस चक्र का सरलीकृत मॉड
14. एक पारिस्थितिक तंत्र में कार्बन चक्रण की महत्त्वपूर्ण विशिष्टताओं की रूपरेखा प्रस्तुत करें । उत्तर – वातावरण में कार्बन , कार्बन डाईऑक्साइड गैस के रूप में विद्यमान रहता है । ये सभी जीवों के लिए नितान्त आवश्यक तत्त्व हैं , क्योंकि कोई भी जीव बिना कार्बन के नहीं होता । वातावरण में कार्वन की अनुकूलतम मात्रा लगभग 0.03-0.04 % होती है । कार्बन डाईऑक्साइड जलाशयों ( तालाब , झील , समुद्र आदि ) में भी विद्यमान रहती है । जब तक इनकी मात्रा अनुकूलतम होती सभी क्रियाएँ सुगमतापूर्वक होती रहती हैं । इनकी मात्रा अनुकूलतम से अधिक होने पर जीवों को श्वसन में कठिनाई होने लगती है ।
यदि वातावरण में इनकी मात्रा अनूकूलतम से कम हो जाती है , तो पौधों की प्रकाश – संश्लेषण ( Photosynthesis ) क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । इसीलिए प्रकृति द्वारा कार्बन चक्र से वातावरण में अनुकूलतम कार्बन डाईऑक्साइड चरणों में पूर्ण होता है-
( i ) हरे पौधे , वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर प्रकाश – संश्लेषण क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं । इस प्रकार कार्बन खाद्य में पहुँच जाती है ।
( ii ) सभी जीव ( पौधे तथा जंतु ) श्वसन द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में छोड़ते हैं । ( iii ) जीवों की मृत्यु के पश्चात् उनमें विघटन होता है , और उसके फलस्वरूप कार्बन डाईऑक्साइड फिर से वातावरण में चली जाती है । इसी प्रकार जीवों के उत्सर्जी पदार्थों से भी कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में पहुँचती है ।
( iv ) हमें पौधों से लाखों वर्षों से कोयला , गैस , तेल आदि प्राप्त होते हैं । इन्हें जीवाश्मी ईंधन ( fossil fuel ) कहते हैं । इस ईन से मनुष्य परिवहन गाड़ियाँ चलाता है , भोजन पकाता है और इस प्रकार CO2 को वातावरण में छोड़ता है । जीवाश्मी ईंधन में ऊर्जा होती है जो पौधों द्वारा सूर्य से ग्रहण की जाती है और असंख्य वर्षों में यह जीवाश्मी ईंधन के रूप में उपलब्ध होती है ।
( v ) बड़े – बड़े जलाशयों की ऊपरी सतह के जल में कार्बन डाईऑक्साइड घुली रहती है , जो कार्बोनेट्स का निर्माण करती है ।
( vi ) इन कार्बोनेट्स से , जलीय पौधे प्रकाश – संश्लेषण क्रिया के लिए CO2 प्राप्त करते हैं , क्योंकि वायु की उपलब्धता नहीं होती ।
( vii ) जलीय पौधों से कार्बन डाईऑक्साइड जलीय खाद्य – श्रृंखला में स्थानांतरित हो जाती है । उदाहरण , शाकाहारी मछलियाँ पौधों को खाती हैं और उनको मांसाहारी जीव खाते हैं , आदि । ( viii ) जलीय पौधे तथा जंतु श्वसन क्रिया में CO2 जल में घोल देते हैं , जो प्रायः फिर से जलीय पौधे प्रकाश – संश्लेषण के लिए उपयोग में ले लेते हैं । ( ix ) घोंघे , सीपी तथा अन्य मोलस्क जल से CO2 को अवशोषित करते हैं । CO2 को कैल्शियम से संयुक्त करा कर कैल्शियम कार्बोनेट ( CaCO3 ) का खोल बनाते हैं । मृत मोलस्क के कवच ( shell ) समुद्र की तली में जमा होते रहते हैं ।
   परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
1. पारिस्थितिक तंत्र का महत्त्व है
( a ) पदार्थो का चक्रण
( b ) ऊर्जा का प्रवाह .
( c ) उपरोक्त दोनों
( d ) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर- ( c ) उपरोक्त दोनों ।
2. पारिस्थितिक तंत्र से निर्मित होती है
( a ) खाद्य श्रृंखला
( b ) खाद्य जाल
( c ) उपरोक्त दोनों
( d ) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर- ( c ) उपरोक्तं दोनों ।
3. झील पारिस्थितिक तंत्र में , जैव भार का पिरामिड होता है
( a ) सीधा
( b ) उल्टा
( c ) कोई भी संभव
( d ) कोई भी नहीं ,
उत्तर -( c ) उल्टा ।
4. अगर जैवमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड को हटा लिया जाय तो कौन – से जीव पर सर्वप्रथम युरा असर पड़ेगा ?
( a ) प्राथमिक उत्पादक
( b ) उत्पादक
( c ) द्वितीय उपभोक्ता
( d ) तृतीय उपभोक्ता
उत्तर ( a ) प्राथमिक उत्पादक ।
5. वन – पारितंत्र में शेर का पोषण स्तर है
( a ) टी3
( b ) टी4
( c ) टी3
( d ) टी1 .
उत्तर- ( b ) टी4 ।
6. एक वन पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का पिरामिड कैसा होता है ?
( a ) सदैव उपरिमुखी
( b ) सदैव उल्टा
( c ) उपरिमुखी और उल्टा दोनो
( d ) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर- ( a ) सदैव उपरिमुखी ।
7. एक पारिस्थितिक तंत्र में कर्जा प्रवाह का सही क्रम क्या है ?
( a ) उत्पादक – मांसाहारी → शाकाहारी→ विघटनकारी
( b ) उत्पादक →शाकाहारी- →मांसाहारी विघटनकारी
( c ) शाकाहारी → मांसाहारी →उत्पादक → विघटनकारी
( d ) शाकाहारी →उत्पादक-→ मांसाहारी→ विघटनकारी
उत्तर- ( a ) उत्पादक- मांसाहारी → शाकाहारी → विघटनकारी ।
8. एक क्षेत्र विशेष में प्राथमिक उत्पादकों की संख्या अधिकतम किसमें होगी ?
( a ) चास के मैदान पारिस्थितिक तंत्र में
( b ) जंगल पारिस्थितिक तंत्र में
( c ) जलाशय पारिस्थितिक तंत्र में
( d ) मरुस्थल मेन
उत्तर- ( c ) जलाशय पासिस्थतिक तंत्र में ।
9. एक खाद्य श्रृंखला किससे शुरू होती है ?
( a ) नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीव से ( b ) प्रकाश – संश्लेषण करने वाले जीव से
( c ) श्वसन से
( d ) विघटनकर्ता से
उत्तर- ( b ) प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीव से । 10. नेपेन्धीज एक
( a ) प्राथमिक उत्पादक
( b ) उपभोक्ता है
( c ) प्राथमिक उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों है ।
( d ) उपरोक्त से कोई नहीं
उत्तर -( c ) प्राथमिक उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों है।
11. पारिस्थितिक तंत्र में आहार स्तर को कहा जाता है ( a ) पोषण गति
( b ) उपभोक्ता स्तर
( C ) उत्पादक स्तर
( d ) शाकाहारी स्तर
उत्तर- ( b ) उपभोक्ता स्तर ।
12. एक झील इकोसिस्टम होता है
( a ) कृत्रिम
( b ) अजीवीय
( c ) प्राकृतिक
( d ) जलविज्ञान
उत्तर — ( d ) जलविज्ञान ।
13. ‘ इकोसिस्टम ‘ शब्द प्रस्तावित किया था
( a ) ओडम ने
( b ) टेनाले ने
( c ) विटेकर ने
( d ) गोली ने
उत्तर- ( b ) टेनाले ने ।
II . रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
 1. एक सुनिश्चित क्षेत्र की प्रजाति संरचना में उचित रूप में आंकलित परिवर्तन को…………. कहते हैं । 2 . ………………ऐसे क्षेत्र में शुरू होता है जहाँ प्राकृतिक जीवीय समुदाय निरस्त हो गए हैं ।
3 . ……………….भी कार्बन के एक भंडार का प्रतिनिधित्व करता है ।
4 ………………… जैविक झिल्लियाँ , न्यूक्लिक एसिड तथा कोशिकीय ऊर्जा स्थानांतरण प्रणाली का एक प्रमुख घटक हैं ।
5. पारितंत्र प्रक्रिया के उत्पादों को…………. के नाम से जाना जाता है ।
उत्तर- 1. पारिस्थितिक अनुक्रमण , 2 . द्वितीयक अनुक्रमण , 3. जीवाश्मी ईधन , 4. फॉस्फोरस , 5. पारितंत्र मेवाओं ।
III . निम्नलिखित में से कौन – सा कथन सत्य है और कौन – सा असत्य है :
1. अजीवीय घटकों के अंतर्गत अकार्बनिक सामग्री जैसे हवा , पानी एवं मिट्टी जबकि सजीव घटकों के अंतर्गत उत्पादक , उपभोक्ता एवं अपघटक आते हैं। 2. एक पारितंत्र की दो महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ – प्रजाति संघटन एवं स्तर विन्यास होती हैं ।
3. प्राथमिक उत्पादकता , उत्पादक की जैव मात्रा , उत्पादन या सौर ऊर्जा की ग्रहण की दर होती है । इसके दो प्रकार है – ग्राम प्राथमिक उत्पादकता तथा नेट प्राथमिक उत्पादकता ।
4. ऊजा प्रवाह एक दिशीय होता है ; पहले , पादप सौर ऊर्जा का ग्रहण करते हैं इसके बाद आहार उत्पादक से अपघटक को स्थानांतरित किया जाता है।
5. प्रकृति में भिन्न पोषण स्तर के जीव आहार या ऊर्जा संबंधों हेतु एक दूसरे से परस्पर जुड़कर खाद्य श्रृंखला का गठन करते हैं ।
6. पोषक चक्र दो प्रकार के होते हैं – गैसीय एवं अवसादी । गैसीय प्रकार के चक्र ( कार्बन ) हेतु भंडार वायुमंडल या जलमंडल होता है , जबकि पृथ्वी पटल ( पपड़ी ) अवसादी प्रकार के ( फॉस्फोरस ) पोषक का भंडार होती है ।
उत्तर – 1.सत्य , 2. सत्य , 3. सत्य , 4 , सत्य , 5. सत्य , 6 , सत्य ।
IV . स्तंभ- । में दिए गए पदों का स्तंभ- ।। पदों के साथ सही मिलान करें :
उत्तर- ( a ) -4 . ( b ) – 6 , ( c ) – 7. ( d ) – 2. ( e ) – 1. ( f ) – 9. ( g ) -5 . ( h ) – 3 ( i ) -8 . ( J ) -10 .
     अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पारिस्थितिक तंत्र से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – फिट्जपैट्रक ने 1974 में पारिस्थितिक तंत्र को इस प्रकार परिभाषित किया कि ” जीवों के समूह जो पारस्परिक क्रियाएँ करते हैं तथा वातावरण के साथ भी क्रियाएँ करते हैं , उसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं । “
प्रश्न 2. पारिस्थितिक तंत्र के मुख्य घटक कौन – कौन से हैं ?
उत्तर – पारिस्थितिक तंत्र के मुख्य घटक अजीवीय तथा जीवीय हैं ।
प्रश्न 3. अजीवीय घटक क्या हैं ?
उत्तर – अजीवीय घटक के अंतर्गत वायुवीय कारक हैं , जैसे – तापक्रम , सूर्य की रोशनी , नमी , पवन , पी . एच . मान , लवणता , स्थलाकृति , पृष्ठभूमि , मृदा आदि ।
प्रश्न 4. जीवीय घटक क्या हैं ?
उत्तर – उत्पादक , उपभोक्ता तथा अपघटक जीवीय घटक कहलाते हैं ।
प्रश्न 5. उत्पादक किसे कहते हैं ?
उत्तर – सभी हरे पौधे जो प्रकाश – संश्लेषण क्रिया करने में समर्थ हैं , उत्पादक हैं ।
प्रश्न 6. उपभोक्ता क्या हैं ?
उत्तर – शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों ही उपभोक्ता हैं ।
प्रश्न 7. अपघटक किसे कहते हैं ?
उत्तर – मृत पौधे तथा जंतु सूक्ष्म जीवाणुओं तथा लवक द्वारा विघटित किए जाते हैं । इन्हें अपघटक कहते हैं ।
प्रश्न 8. खाध श्रृंखला से आपका क्या तात्पर्य है ? उत्तर – जीवों का क्रमानुसार एक – दूसरे को खाना खाद्य श्रृंखला कहलाता है ।
जैसे – पौधे → शाकाहारी → मांसाहारी ।
प्रश्न 9. खाद्य जाल किसे कहते हैं ?
उत्तर – विभिन्न खाद्य शंखलाएं आपस में संबंध रखती है । इस प्रकार खाद्य – शृंखलाओं का एक जाल बन जाता है , जिसे खाद्य जाल कहते हैं । प्रश्न 10. संख्या का पिरामिड क्या है ?
उत्तर – खाद्य – जाल के विभिन्न ट्राफिक स्तरों को एक साथ रखने पर एक पिरामिड की आकृति का निर्माण होता है , क्योंकि प्रत्येक ट्राफिक स्तर पर जीवों की संख्या कम होती जाती है । इसको संख्या का पिरामिड कहते हैं ।
प्रश्न 11. मनुष्य द्वारा बनाए गए कुछ पारिस्थितिक तंत्र के नामों की सूची बनाएं ।
उत्तर – तालाब , झील , नहर , बाँध , पार्क , शहर , गाँव , खेत और कृषि क्षेत्र आदि मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र हैं ।
प्रश्न 12. जीवमंडल का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर – पृथ्वी के सभी पारिस्थितिक तंत्र संयुक्त रूप में जीवमंडल का निर्माण करते हैं ।
प्रश्न 13. जीवमंडल के मुख्य भाग कौन – कौन से हैं ? उत्तर- ( i ) जलमंडल , ( ii ) स्थलमंडल तथा ( iii ) वायुमंडल ।
प्रश्न 14. ऊर्जा का मुख्य स्रोत क्या है ?
उत्तर – सूर्य ऊर्जा का मुख्य स्रोत ( सौर ऊर्जा ) है । प्रश्न 15. पोषक चक्र से आपका क्या तात्पर्य है ? उत्तर – पदार्थों के चक्रीकरण को जीव – भू – रसायन चक्र कहते हैं । इन्हें पोषकचक्र ( Nutrient cycles ) भी कहते हैं ।
प्रश्न 16. तीन मुख्य चक्र कौन – कौन से हैं ?
उत्तर- ( i ) कार्वन चक्र , ( ii ) हाइड्रोजन चक्र , ( iii ) ऑक्सीजन चक्र ।
प्रश्न 17. सूर्य से हमें ऊर्जा किस रूप में मिलती है ? उत्तर – सूर्य से हमें ऊर्जा ऊष्मा , प्रकाश , अल्ट्रावायलेट विकिरण , एक्स – किरणों आदि के रूप में प्राप्त होती है ।
प्रश्न 18. द्वितीयक उत्पादकता क्या है ?
उत्तर – विषमपोषी जन्तुओं में जीव मात्रा का बढ़ना द्वितीयक उत्पादकता कहलाता है ।
प्रश्न 19. ऊर्जा ह्रास क्या है ?
उत्तर – उत्पादकों के ऊपर के स्तर में , ऊर्जा ह्रास पिछले स्तर का केवल 10 % होता है ।
प्रश्न 20. दस प्रतिशत ऊर्जा ह्रास का नियम किसने बनाया ?
उत्तर – लिडेमन ने ऊर्जा ह्रास का दस प्रतिशत नियम बनाया ।
        लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. अपघटन की दर को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में लिखें ।
उत्तर – अपघटन की दर को प्रभावित करने वाले मुख्यतः दो कारक हैं-
( i ) जलवायु – अधिक तापमान ( > 25 ° C ) तथा आई जलवायु में अपरद का अपघटन तीव्रता से होता है । किन्तु निम्न तापमान ( < 10 ° C ) में या नमीं की प्रचुरता के बावजूद क्षीण हो जाती है ।
उच्च अक्षांश या ऊँचाई वाले प्रदेशों में अपरद के अपघटन की क्रिया में कई वर्ष लग सकते हैं ।
  ( ii ) अपरद का रासायनिक गुण – अपरद में लिग्नीन , काइटीन जैसे पदार्थों की प्रचुरता ‘ पघटन की दर में कमी लाती है ।
प्रश्न 2. पारिस्थितिकी में ऊर्जा के प्रवाह के बारे में लिखो ।
उत्तर – पारिस्थितिकी तंत्र में खाद्य ऊर्जा का एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में स्थानांतरण के समय , ऊष्मा के रूप में क्षय तथा ह्रास होता है । अनुकूल पारिस्थितिकी अवस्था के अंतर्गत , आपतित सौर विकिरण का सिर्फ 1-5 % या प्रकाश – संश्लेषण हेतु क्रियाशील सौर विकिरण का 2-10 % ही वस्तुत : उत्पादकों द्वारा ग्रहण किया जाता है । श्वसन के दौरान उत्पादन इस ऊर्जा का उपयोग करते हैं जिससे वास्तविक अर्जित ऊर्जा ( वास्तविक उत्पादकता ) घटकर केवल सीधी पूर्ण विकिरण का 0.8-4 % रह जाती है । उत्पादनों के इस वास्तविक उत्पादकता का उपयोग दूसरे पोषण स्तर द्वारा होता है । पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होता है अर्थात् उत्पादक से उपभोक्ता की ओर । प्रत्येक पोषण स्तर में ऊर्जा प्रवाह की मात्रा घटती जाती है । औसतन विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र में एक पोषण स्तर से दूसरे स्तर में ऊर्जा प्रवाह करीब 10 % होता है ।
प्रश्न 3. पारिस्थितिक नाइट्रोजन चक्रण के संदर्भ में प्रमुख तथ्यों को लिखें ।
उत्तर – वायुमंडल में उपस्थित 78 % नाइट्रोजन चक्र में प्रवेश , विभिन्न स्वतंत्र तथा सहजीवी नाइट्रोजन यौगिकीकरण सूक्ष्म जीवाणुओं यथा एजेटोबैक्टर , क्लोस्ट्रीडियम , राइजोबियम द्वारा होता है । सभी नाइट्रोजन यौगिकीकरण सूक्ष्म जीवाणु नाइट्रोजन एंजाइम की सहायता से यौगिकीकरण करते हैं । यह एंजाइम O2 , की अनुपस्थिति में कार्य करता है । नाइट्रोजन चक्र में जीवाणुओं की भूमिका बहुत ही विस्तृत तथा जटिल है ।
प्रश्न 4. पारिस्थितिक पिरामिड क्या है ? उदाहरण दें। उत्तर – एक पारिस्थितिक तंत्र में जीवों की संख्या , जीवभार तथा ऊर्जा के आधार पर विभिन्न संबंधों का आलेखी निरूपण पारिस्थितिक पिरामिड कहलाता है । उदाहरण – घास के मैदान में पारिस्थितिक पिरामिडा ।
      चित्र : घासस्थल में पा पिरामिड प्रश्न
5. फॉस्फोरस चक्र के मुख्य अभिलक्षणों को बताएँ। उत्तर- -शैल तथा प्राकृतिक फॉस्फेट भंडार , फॉस्फोरस के मुख्य स्रोत हैं । सीलीय पारितंत्र में फॉस्फोरस , फॉस्फोरस युक्त खनिजों के अपक्षयन के फलस्वरूप प्रवेश करते हैं । मृदा में यह आर्थोफॉस्फेट के रूप में घुले रहते हैं ।
चित्र : स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र का एक सामान्य फॉस्फोरस चक्र
प्रश्न 6. वन जीवोम के कितने प्रकार हैं
उत्तर – मुख्यतः चार प्रकार के वन जीवोम हैं-
( i ) उष्णकटिबंधीय वर्षा प्रचुर वन जीवोम – जिसमें औसत तापमान 23-27 ° C तथा 2000-3000 मिली . वर्षा होती है ।
( ii ) उष्णकटिबंधीय पतझड़ वन जीवोम – औसत तापमान -22-23 ° C , औसत वार्षिक वर्षा – 900-1600 मिली .।
( iii ) शीतोष्ण चौड़े – पत्ते या पतझड़ वन जीवोम – औसत तापमान 6-20 ° C औसत वार्षिक 1000-2500 वर्षा।
शीतोष्ण नोकदार पर्ण शंकुकार बन जीवोम – औसत तापमान 6-15 ° C , औसत वार्षिक वर्षा 500-1700 मिली ।
प्रश्न 7. ऊर्जा प्रवाह के दो नियम कौन – कौन से हैं ? उत्तर – उष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार सौर – ऊर्जा , भोजन ऊर्जा तथा ऊष्मा के रूप में परिवर्तित हो सकती है तथा द्वितीय नियमानुसार ऊर्जा का स्वतः स्थानांतरण तब तक नहीं होता जब तक कि ऊर्जा का पतन या क्षय किसी ऊर्जा के केन्द्र से विखंडित न हो ।
प्रश्न 8. पारितंत्र में कितने प्रकार के पिरामिडों का निर्माण हो सकता है ? उदाहरण सहित लिखें । उत्तर- ( i ) संख्या का पिरामिड – तालाब पारितंत्र – जिसमें उत्पादक सबसे अधिक तथा उपभोक्ता उत्तरोत्तर कम होते जाते हैं ।
( ii ) जैवभार का पिरामिड – वन पारितंत्र – जिसमें उत्पादकों का भार अधिक तथा उपभोक्ता क्रमशः कम जैवभार वाले होते जाते हैं ।
( iii ) ऊर्जा पिरामिड – हमेशा ऊध्र्वाधर जो क्रमश : अगले पोषण स्तर में कम होता जाता है ।
प्रश्न 9. पारितंत्र में अपघटकों की महत्ता का उल्लेख करें ।
उत्तर – पारितंत्र में अपघटक जटिल कार्बनिक का CO2 , जल तथा अकार्बनिक पोषक तत्त्वों में अपघटन करते हैं । ये अकार्बनिक पदार्थ उत्पादन प्रक्रिया को जारी रखने के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं । यदि पारितंत्र में अपघटक न हो तो उत्पादन प्रक्रिया बंद हो जाएगी और अन्ततः संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा । प्रश्न 10. भारत में उष्णकटिबंधीय पतझड़ वनों का वितरण तथा इनमें पाए जाने वाले प्रमुख वृक्षों का नाम दें ।
उत्तर – भारत के उत्तरी तथा दक्षिणी भागों में समतल एवं निम्न पहाड़ी क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय पतझड़ वन पाए जाते हैं ।
प्रमुख वृक्ष -साल ( शोरिया रोबस्टा )
सागवान – ( टेक्टोना ग्रांडिस )
तेंदु- ( डायोस्पायरोस मेलेनोजायलॉन )
चिरौंजी – ( बुचौनिया लाजार )
खैर – ( एकेसिया केटेचू ) इत्यादि ।
    दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. संक्षेप में अपघटन की प्रक्रिया तथा उत्पाद के बारे में लिखें ।
उत्तर – अपघटन की प्रक्रिया को तीन रूपों में विभाजित किया जा सकता है ( i ) अपरदन की विखंडन , ( ii ) निच्क्षालन तथा ( iii ) अपचयन । ( i ) अपरदन का विखंडन – अपरद पोषी अकशेरुकी जीवों जैसे केंचुआ इन अपरदों को छोटे – छोटे टुकड़ों में विभाजित कर देता है जिसके कारण बाह्य सतह बढ़ जाती है तथा अपधारण क्रिया बढ़ जाती है ।
( ii ) निच्क्षालन – इसके द्वारा जल में घुलनशील पदार्थ जैसे शर्करा , पोषक तत्त्व अपरद से अलग हो जाते हैं ।
( iii ) अपचयन – जीवाणुओं एवं कवकों द्वारा उत्सर्जित बाह्य कोशिकीय एंजाइम द्वारा अकार्बनिक पदार्थों में अपरदों का अपघटन होता है ।
 तीनों अपघटन प्रक्रिया अपरद पर साथ साथ चलती रहती हैं । इन तीनों प्रक्रियाओं के पश्चात् ह्यूमस निर्माण तथा खनिजीकरण की प्रक्रिया मिट्टी में चलती है ।
ह्युमस निर्माण से सूक्ष्म जीवों के जीवभार में वृद्धि होती है । खनिजीकरण के फलस्वरूप मृदा में अकार्बनिक तत्वों की वृद्धि होती है ।
    चित्र : अपरद के अपघटन में संलग्न प्रक्रियाएँ प्रश्न 2. संक्षेप में सवाना जीवोम की व्याख्या करें । उत्तर – एक पूर्ण विकसित घास आवरण जिसमें झाड़ी या छोटे वृक्ष बिखरे हों सवाना कहलाता है । वितरण – मध्य तथा दक्षिण अफ्रीका , भारत , उ° तथा पू° मध्य अफ्रीका एवं उ° ऑस्ट्रेलिया के गर्म भाग ।
विशेषताएँ-
( i ) स्पष्ट आर्द्र तथा शुष्क अवधि वाले वातावरण में पाया जाता है ।
( ii ) मृदा , नमी की उपलब्धता द्वारा सवाना की जाति , संरचना एवं उत्पादकता निर्धारित होती है । ( iii ) उष्णकटिबंधीय सवाना का मुख्य लक्षण है , प्रकाश संश्लेषी क्षमता वाले घास की प्रजातियों की बहुलता ।
( iv ) जड़ प्रणाली , मृदा क्षितिज के ऊपरी 30 सेमी. क्षेत्र से ज्यादा विकसित रहती है ।
( v ) वनस्पति जातियों की संख्या कम होती है । काष्ठीय प्रजातियों की ऊँचाई 1-8 मीटर तक होती है।
   भारतीय सवाना की उत्पत्ति – भारतीय सवाना मालिक उष्णकटिबंधीय वनों के अपघटन द्वारा निर्मित है । वर्तमान स्थिति में उसका बने रहना , लगातार चरण सदियों से आग द्वारा संभव हुआ है । भारतीय सवाना के प्रमुख घास – डाईकैथियम , सेहिमा , फ्रेंमाइट्स , सैकेरम आदि । प्रमुख वृक्ष एवं झाड़ी – प्रोसोपिस , जिजिफस , कैपिरस , एकेसिया , व्युटिया आदि ।
प्रश्न 3. निम्नलिखित के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ( क ) नम निक्षेपण तथा शुष्क निक्षेपण ।
( ख ) अजैविक तथा जैविक अवयव ।
( ग ) सकल प्राथमिक उत्पादकता तथा वास्तविक प्राथमिक उत्पादकता ।
( घ ) आहार श्रृंखला तथा आहार जाला
उत्तर- ( क ) नम निषेपण तथा शुष्क निक्षेपण-
( ख ) अजैविक तथा जैविक अवयव –
( ग ) सकल प्राथमिक उत्पादकता तथा वास्तविक प्राथमिक उत्पादकता-
( घ ) आहार श्रृंखला तथा आहार जाल-

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