12-biology

bihar board 12 biology | जैव प्रौद्योगिकी – सिद्धांत व प्रक्रम

bihar board 12 biology | जैव प्रौद्योगिकी – सिद्धांत व प्रक्रम

[ BIOTECHNOLOGY : PRINCIPLES AND PROCESSES ]
          महत्त्वपूर्ण तथ्य
• अनुप्रवाह संसाधन – जैव संश्लेषित अवस्था के पूर्ण होने के बाद परिष्कृत तैयार होने व विपणन के लिए भेजे जाने से पहले कई प्रक्रमों से होकर गुजरता है । इन प्रक्रमों में पृथक्करण व शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं ।
•बायोरिएक्टर – बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान है , जिसमें सूक्ष्म जीवों , पौधों , जंतुओं व मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों , व्यष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है ।
•पुनर्योगज प्रोटीन – यदि कोई प्रोटीन कूटलेखन जीन किसी विषमजात परपोषी में अभिव्यक्त होता है तो इसे पुनर्योगज प्रोटीन कहते हैं । .
•वरणयोग्य चिह्नक – प्रतिरोधी जीन के कारण कोई भी एंपिसिलिन की उपस्थिति में रूपांतरित कोशिका का चयन कर सकता है । इस मामले में प्रतिरोधी जीन को वरणयोग्य चिह्नक कहते हैं ।
•जीन गन – परपोषी कोशिकाओं में विजातीय डीएनए को प्रवेश कराने हेतु कोशिकाओं पर डीएनए से विलेपित , स्वर्ण या टंगस्टन के उच्च वेग सूक्ष्मकणों से बमबारी करते हैं जिसे बायोलिस्टीक या जीन गन कहते हैं ।
• जेल वैद्युत का संचलन( इलेक्ट्रोफोरेसिस )-डीएनए खंड का पृथक्करण एवं विलगन प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज द्वारा डीएनए को काटने के परिणामस्वरूप डीएनए का खंडन हो जाता है । इन खंडों को एक तकनीक द्वारा अलग कर सकते हैं जिसे जेल वैद्युत का संचलन ( इलेक्ट्रोफोरेसिस ) कहते हैं ।
•क्लोनिंग – प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन की प्रति का ई . कोलाई का गुणन , ई . कोलाई में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन की क्लोनिंग कहलाता है । •प्रतिकृतियन की उत्पत्ति – एक गुणसूत्र में एक विशिष्ट डीएनए अनुक्रम होता है जिसे प्रतिकृतियन की उत्पत्ति कहते हैं ।
• जैव प्रौद्योगिकी – बायोटेक्नॉलाजी में उन तकनीकों का वर्णन मिलता है जिसमें जीवधारियों या उनसे प्राप्त एंजाइमों का उपयोग करते हुए मनुष्य के लिए उपयोगी उत्पाद या प्रक्रमों का विकास किया जाता है ।
    NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
अभ्यास ( Exercises )
1. क्या आप दस पुनर्योगज प्रोटीन के बारे में बता सकते हैं जो चिकित्सीय व्यवहार लाए जाते हैं ? पता लगाइये कि वे चिकित्सीय औषधि के रूप में कहाँ प्रयोग किए जाते हैं । ( इंटरनेट की साायता लें ) ।
 उत्तर- पुनर्योगज प्रोटीन उपचार के प्रयोग 1. मानव इंसुलिन →. मधुमेह ( Diabetes )
2. इंसुलिन → जैसे वृद्धि कारक के व्यस्कों में
                   बचपन की वृद्धि का एनाबोलिक
3. इंटरफेरॉन →संक्रमण रोगों के उपचार में प्रयोग 4. ग्लूकोसैरेबरोसाईड्स ____
5. डीएनए से →. मुकीविस्सिडोसिस
6. टिशु प्लाज्मिनोजेन एक्टिवेटर→ माइयोकारडीयल
                                      इन्फैक्शन ( हृदयपेशी रोग )
7. एन – ऐसिटीगलक्टोसाइमिन -4 सल्फेट ___
8. एल्फा – ग्लैकटोसाइड्स→ एंजाइम रिप्लेशमेन्ट
                                   थैरेपी
9 . इंटरल्यूकिन→. कैंसर
10. मानव वृद्धि हॉर्मोन ( HGH )→ बौनापन
2. एक सचित्र ( चार्ट ) ( आरेखित निरूपण के साथ ) बनाइए जो प्रतिबंधन एंजाइम को , ( जो क्रियाधार डीएनए पर यह कार्य करता है उसे ) , उन स्थलों को जहाँ यह डीएनए को काटता है व इनसे उत्पन्न उत्पाद को दर्शाता है ।
उत्तर- प्रतिबंधन एंजाइम की क्रिया
3. कक्षा ग्यारहवीं में जो आप पढ़ चुके हैं उसके आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि आणविक आकार के आधार पर एंजाइम बड़े है या डीएनए । आप इसके बारे में कैसे पता लगायेंगे ?
उत्तर – प्रोटीन अमीनो अम्लो से बनी है । प्रोटीन 20 प्रकार के अमीलो अग्लो से बनी हैं जो पेप्टाइड आबंधों के द्वारा जुड़ी होती है । प्रोटीन में कुल अमीनो अम्लों की संख्या , उनके प्रकार , उनके लगने के क्रम आदि के कारण अनन्त प्रकार की प्रोटीन संभव हैं । प्रोटीन की औसत लंबाई चारों ओर 300 है जो कि अमीने अम्ल का बचा – खुचा पदार्थ है । इनमें से कुछ एक्टिन फिलामेट हैं जो कि हजारों एक्टिन अणुओं से बने हैं ।
  डीएनए पॉलीमरेज न्यूक्लियोटाइडों से बने होते हैं। वे चार न्यूक्लियोटाइड होते हैं जो कि एक – दूसरे के साथ फोस्फोडायस्टेर आबंधों से जुड़े हुए होते हैं । DNA पॉलीमरेज न्यूक्लियोटाइडों के लाखों बड़े अणुओं को अपने अंदर रख सकते हैं । उदाहरण के लिए सबसे बड़ा मानव गुणसूत्र 220 मिलियन बैस पेपर लंबा है । इस प्रकार DNA एंजाइम से बड़े हैं । 4. मानव की एक कोशिका में डीएनए की मोलर सांद्रता क्या होगी ? अपने अध्यापक से परामर्श लीजिए ।
उत्तर – किसी पदार्थ की सांद्रता प्रति इकाई आयतन में उसकी मात्रा की माप होती है । इसे आमतौर पर मोलरता ( molarity ) के पदों में व्यक्त किया जाता है । किसी पदार्थ की मोलरता एक लीटर आयतन में उपस्थित उसके मोलों की संख्या होती है । इसका मात्रक moIL होता है ।
[ नोट – कोशिका की डीएनए की मोलर सांदता अपने स्कूल के अध्यापक की सहायता से ज्ञात कर सकते हैं ।]
5. क्या सुकेंद्रकी कोशिकाओं में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज मिलते हैं ? अपने उत्तर सही सिद्ध कीजिए ।
उत्तर – नहीं , सुकेंद्री कोशिकाओं में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज नहीं मिलते हैं । वर्ष 1963 में दो एंजाइम पृथक् किए गए जो ई कोलाई में जीवाणु भोजी ( बैक्टीरियोफेज ) की वृद्धि को रोक देते हैं । इनमें एक डीएनए से मेथिल समूह को जोड़ता है जबकि दूसरा डीएनए को काटता है । बाद वाले एंजाइम को प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज कहा गया । ये कुछ बैक्टीरिया में उपस्थित रहते हैं । इनका कार्य डीएनए न्यूक्लियोटाइड विशिष्ट क्रम पर निर्भर है । 6. अच्छी हवा व मिश्रण विशेषता के अतिरिक्त की तुलना में कौन – सी अन्य कंपन्न फ्लास्क सुविधाएँ हैं ?
उत्तर – बायोरिएक्टर , वांछित उत्पाद पाने के लिए , अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है । वृद्धि के लिए ये अनुकूलतम परिस्थितियाँ हैं तापमान pH , क्रियाधार , लवण , विटामिन , ऑक्सीजन । विलोडन प्रकार का वायोरिएक्टर सामान्यतया सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है ।
7. शिक्षक से परामर्श कर पांच पैलिडोमिक अनुप्रयास करना होगा कि क्षारक – युग्म नियमों का पालन करते हुए पैलिंड्रोमिक अनुक्रम बनाने के उदाहरण का पता लगाइए ।
उत्तर – पलिंड्रोमिक वर्गों के समूह हैं जिन्हें आगे व पीछे दोनों तरफ से पढ़ने पर एक ही शब्द बनता है जैसे मलयालम ‘। शब्द पैलिंड्रोम और डीएनए पैलिंड्रोम में अंतर है । डीएनए में पैलिंड्रोम क्षारक युग्मों का एक ऐसा अनुक्रम होता है जो पढ़ने के अभिविन्यास को समान रखने पर दोनों लड़ियों में एक जैसे पढ़ा जाता है । उदाहरणार्थ – निम्न अनुक्रमों को 5→3 दिशा में पढ़ने पर दोनों बैठती है लड़ियों में एक जैसा पढ़ा जाएगा । अगर इसे 3→5 दिशा में पढ़ा जाए तब भी यह बात सही बैठती है-
 5′- जी ए ए टी टी सी -3 ‘
                   ( GAATTC ) ,
3 ‘ – सी टी टी ए ए जी -5 ‘ ,
                     ( GAATIC )
नोट – अन्य उदाहरणों के लिए अपने स्कूल के अध्यापक से सहायता लें ।
8. अर्घसूत्री विभाजन को ध्यान में रखते हुए क्या बता सकते हैं , कि पुनर्योगज डीएनए किस अवस्था में बनते हैं ?
उत्तर – प्रथम पुनर्योगज डीएनए का निर्माण सालमोनेला टाइफीमूरियम के सहज प्लास्पिड में प्रतिजैविक प्रतिरोधी कूटलेखन जीन के जुड़ने से हो सका था । डीएनए को विशिष्ट जगहों से काटा जाता है । कटे हुए डीएनए का भाग एलाज्मिड डीएनए से जोड़ा जाता है । यह प्लाज्मिड डीएनए संवाहक की तरह कार्य करता है जो इससे जुड़े डीएनए को स्थानांतरित करता है । प्लास्पिड को संवाहक के रूप में प्रयोग विजातीय डीएनए के खंड को परपोषी जीवों में पहुँचाया जाता है । प्रतिजैविक जीन को संवाहक के साथ जोड़ने का काम एंजाइम डीएनए लाइगेज के द्वारा होता है जो डीएनए अणु के कटे हुए भाग पर कार्य कर उसके किनारों को जोड़ने का काम करता है । इस संयोजन से पात्रे ( इन विट्रो ) नये गोलाकार स्वतः प्रतिकृति बनाने वाले डीएनए का निर्माण होता है जिसे पुनर्योगज डीएनए कहते हैं।
9. क्या आप बता सकते हैं कि प्रतिवेदक ( रिपोटर ) एंजाइम को वरणयोग्य चिह्न की उपस्थिति में बाहरी डीएनए को परपोषी कोशिकाओं में स्थानांतरण के लिए मॉनिटर करने के लिए किस प्रकार उपयोग में लाया जा सकता है ?
उत्तर – बंधे हुए डीएनए को आदाता कोशिका में प्रवेश कराने की अनेक विधियाँ हैं । यह कार्य जब आदाता कोशिका अपने चारों तरफ स्थित डीएनए को धारण करने में सक्षम हो जाए तब किया जा सकता है । यदि पुनर्योगज डीएनए को जिसमें प्रतिजैविक ( उदाहरण – एपिसिलिन ) के प्रति प्रतिरोधी जीन स्थित होता है , ई . कोलाई कोशिकाओं में स्थानांतरित किया जाए तो परपोषी कोशिकाएँ प्रतिरोधी कोशिकाओं में रूपांतरित हो जाती हैं । यदि रूपांतरित कोशिकाओं को युक्त ऐगार प्लेट पर फैलाया जाता है तो केवल कोशिकाएँ ही विकसित हो पाती हैं जबकि अरूपांतरित आदाता कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है । प्रतिरोधी जीन के कारण कोई भी एंपिसिलिन की उपस्थिति में रूपांतरित कोशिका का चयन कर सकता है । इस मामले में प्रतिरोधी जीन को वरणयोग्य चिह्नक कहते हैं ।
    जब हम विजातीय डीएनए खंड का क्लोनिंग संवाहक में निवेश कराकर किसी भी जीवाणु , पौधा या जंतु कोशिका में स्थानांतरित करते हैं तो विजातीय डीएनए इनमें गुणित होने लगता है । लगभग सभी पुनर्योगज प्रौद्योगिकियों का अंतिम उद्देश्य वांछित प्रोटीन का उत्पादन करना ही होता है। इसके लिए पुनर्योगज डीएनए के अभिव्यक्त होने की आवश्यकता होती है । बाहरी जीन उपयुक्त परिस्थितियों में अभिव्यक्त होते हैं । बाहरी जीन की परपोषी कोशिकाओं में अभिव्यक्ति को समझने के लिए कई तकनीकी बातों को विस्तारपूर्वक जानना जरूरी है ।
10. निम्नलिखित का संक्षिप्त वर्णन कीजिए-
( क ) प्रतिकृतियन का उद्भव ।
( ख ) बायोरिएक्टर ।
( ग ) अनुप्रवाह संसाधन ।
उत्तर- ( क ) प्रतिकृतियन का उद्भव – यह वह अनुक्रम है जहाँ से प्रतिकृतियन की शुरूआत होती है और जब कोई डीएनए को कोई खंड इए अनुक्रम से जुड़ जाता है तव परपोषी कोशिकाओं के अंदर प्रतिकृति कर सकता है । यह अनुक्रम जोड़े गए डीएनए के प्रतिरूपों की संख्या के नियंत्रण के लिए भी उत्तरदायी है । इसलिए यदि कोई लक्ष्य डीएनए की काफी संख्या प्राप्त करना चाहता है तो इसे ऐसे संवाहक में क्लोन करना चाहिए जिसका मूल ( Ori ) अत्यधिक प्रतिरूप बनाने में सहयोग करता है ।
( ख ) बायोरिएक्टर – बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान है , जिसमें सूक्ष्मजीवों , पौधों , जंतुओं व मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है । बायोरिएक्टर वांछित उत्पाद पाने के लिए , अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है । वृद्धि के लिए ये अनुकूलतम परिस्थितियाँ हैं – तापमान , pH क्रियाधार , लवण , विटामिन , ऑक्सीजन । जो बायोरिएक्टर सामान्यतया सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है वह विलोडन ( स्टिरिंग ) प्रकार का है जिसे चित्र में दर्शाया गया है । विलोडित हौज रिएक्टर सामान्यतया बेलनाकार होते हैं या जिनके आधार घुमावदार होने से रिएक्टर के अंदर अंतर्वस्तु के मिश्रण में सहायता मिलती है । विलोडक बायोरिएक्टर में ऑक्सीजन उपलब्धता व उसके मिश्रण का काम करते हैं । विकल्पतः हवा बुलबुले के रूप में बायोरिएक्टर में भेजी जा सकती है । रिएक्टर में एक प्रक्षोभक यंत्र ( एजिटेटर सिस्टम ) , ऑक्सीजन प्रदाय तंत्र , झाग नियंत्रण तंत्र , तापक्रम नियंत्रण तंत्र , पीएच नियंत्रण तंत्र व प्रति चयन प्रद्धार लगा होता है जिससे संवर्धन की थोड़ी मात्रा समय – समय पर निकाली जा सकती है ।
( ब ) दंड विलोडक हौज बायोरिएक्टर जिसके द्वारा जीवाणु विहीन हवा के बुलबुलों का प्रवेश
( ग ) अनुप्रवाह संसाधन – जैव संश्लेषित अवस्था के पूर्ण होने के बाद परिष्कृत तैयार होने व विपणन के लिए भेजे जाने से पहले कई प्रक्रमों से होकर गुजरता है । इन प्रक्रमों में पृथक्करण व शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं । उत्पाद को उचित परिरक्षक के साथ संरूपित करते हैं । औषधि के मामले में ऐसे संरूपण ( फार्मुलेशन ) की चिकित्सीय परीक्षण से गुजारते हैं । प्रत्येक उत्पाद के लिए सुनिश्चित गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण की भी आवश्यकता होती है । अनुप्रवाह संसाधन व गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण प्रत्येक उत्पाद के लिए भिन्न – भिन्न होती है ।
11. संक्षेप में बताइए-
( क ) पी सी आरा
( ख ) प्रतिबंधन एंजाइम और डीएनए ।
( ग ) काइटिनेजा
उत्तर- ( क ) पी सी आर – पी सी आर का अर्थ पॉलिमरेज चेन रिऐक्शन ( पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया ) है । इस अभिक्रिया में उपक्रमकों ( प्राइमर्स – छोटे रासायनिक संश्लेषित अल्पम्यूक्लियोटाइड जो डीएनए क्षेत्र के पूरक होते हैं ) के दो समुच्चयों ( सेट्स ) व डीएनए पॉलिमरेज एंजाइम का उपयोग करते हुए पात्रे ( इन विट्रो ) विधि द्वारा उपयोगी जीन के कई प्रतिकृतियों का संश्लेषण होता है । यह एंजाइम जिनोमिक डीएनए को टेंपलेंट के रूप में काम में लेकर अभिक्रिया से मिलने वाले न्यूक्लियोटाइडों का उपयोग करते हुए उपक्रमकों को विस्तृत कर देता है । यदि डीएनए प्रतिकृतयेन प्रक्रम कई बार दोहराया जाता है तब डीएनए खंड को लगभग एक अरब गुना प्रवर्धित किया जा सकता है ।
 ( ख ) प्रतिबंधन एंजाइम और डीएनए – आणविक कैंची कहे जाने वाले प्रतिबंधन एंजाइम ( रिस्ट्रिक्सन एंजाइम ) की खोज से डीएनए को विशिष्ट जगहों पर काटना संभव हो सका । कटे हुए डीएनए का भाग प्लामिड डीएनए से जोड़ा जाता है । यह प्लामिड डीएनए संवाहक ( वेक्टर ) की तरह कार्य करता है जो इससे जुड़े डीएनए को स्थानांतरित करता है । प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन को संवाहक के साथ जोड़ने का काम एंजाइम डीएनए लाइपेज के द्वारा होता है जो डीएनए अणु के कटे हुए भाग पर कार्य कर उसके किनारों को जोड़ने का काम करता है । इस संयोजन से पात्रे ( इन विट्रो ) नवे गोलाकार स्वतः प्रतिकृति बनाने वाले डीएनए का निर्माण होता है जिसे पुनर्योगज डीएनए कहते हैं । जब यह डीएनए एशरिकोआ कोलाई में स्थानांतरित किया जाता है तो यह नए परपोषी के डीएनए पॉलिमरेज एंजाइम का उपयोग कर अनेक प्रतिकृतियाँ बना लेता है । प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन की प्रति का ई . कोलाई का गुणन , ई . कोलाई में प्रतिजैविक प्रतिरोधी जीन की क्लोनिंग कहलाती है। ( ग ) काइटिनेज – काइटिनेज एक प्रकार का एंजाइम है ।
12. अपने अध्यापक से चर्चा करके पता लगाइए कि निम्नलिखित के बीच कैसे भेद करेंगे-
( क ) प्लामिड डीएनए और गुणसूत्रीय डीएनए । ( ख ) आरएनए और डीएनए ।
( ग ) एक्सोन्यूक्लिएज और एंडोन्यूक्लिएज ।
उत्तर- ( क ) प्लामिड डीएनए और गुणसूत्रीय डीएनए में अंतर – अनेक जीवाणुओं में मुख्य गुणसूत्र के अतिरिक्त कुछ डीएनए के अतिरिक्त गुण होते हैं जिनमें आनुवंशिक सूचना निहित होती है । डीएनए के अणु प्लामिड कहलाते हैं । इनमें स्वतंत्र रूप से प्रतिकृतिकरण ( replication ) की क्षमता होती है । आनुवंशिक प्रौद्योगिकी में प्लास्पिड़ का महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
गुणसूत्रों के डीएनए में ही आनुवंशिक लक्षणों की रूपरेखा संकेतों के रूप में निहित होती है । इन्हीं संकेतों के आधार पर दूत आरएनए का संश्लेषण होता है , जिससे प्रोटीन अणुओं का निर्माण होता है। यही प्रोटीन शरीर की संरचना एवं क्रियाशीलता में ( एंजाइम के रूप में ) महत्त्वपूर्ण भाग लेते हैं । ( ख ) आरएनए और डीएनए में अंतर – डीएनए में डीऑक्सीराइबोज शुगर होती है । इसमें एंडेनिन तथा थाइमिन होता है । इसमें दो रज्जुक होते हैं जो समान प्रकार के ही रहते हैं । आरएनए में राइबोज शुगर होती है । इसमें एडेनिन तथा यूरेसिल होता है। इसमें DNA का एक रज्जुक की ट्रांसक्रिप्शन के काम में प्रयोग किया जाता है । ट्रांसक्रिप्शन कार्य के पूरा हो जाने पर DNA के दोनों रज्जुक फिर कुंडलिनी बना लेते हैं । RNA पॉलिमरेज को किसी प्राइमर की आवश्यकता नहीं होती ।
( ग ) एंडोन्यूक्लिएज और एक्सोन्यूक्लिएज में अंतर – एंडोन्यूक्लिएज एक्सोन्यूक्लिएज डीएनए के सिरे में न्यूक्लियोटाइड को अलग करते हैं , जबकि एंडोन्यूक्लिएज डीएनए को भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं ।
    परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
1. न्यूक्लिक अम्ल का बहुलक है
( a ) न्यूक्लिओटाइड
( b ) न्यूक्लिओसाइड
( c ) जेनेटिक कोड
( d ) जीन
उत्तर- ( c ) जेनेटिक कोड ।
2. कुछ एंजाइम अपनी क्रियाशीलता को बढ़ाने के लिए किस नॉन – प्रोटीन पदार्थ का प्रयोग करते हैं ? ( a ) उत्प्रेरक
( b ) प्रतिरोधक
( c ) सह एंजाइम
( d ) एपिमर
उत्तर- ( c ) सह एंजाइमा
3. निम्नलिखित में से कौन – सा गोलाकार प्रोटीन का उदाहरण है ?
( a ) मायोसीन
( b ) कौलेजम
( c ) कीरेटीन
( d ) हीमोग्लोबिन
उत्तर- ( d ) हीमोग्लोबिना
4. निम्नलिखित में से कौन – सा रेशेदार प्रोटीन का उदाहरण है ?
( a ) इंसुलिन
( b ) हीमोग्लोबिन
( c ) फाइब्रोइन
( d ) ग्लूकोजन
उत्तर- ( c ) फाइब्रोइन ।
5. जीवों में एंजाइम का कार्य है
( a ) ऑक्सीजन पहुँचाना
( b ) रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करना
( c ) जैविक अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करना
( d ) जैविक प्रदान करना
उत्तर- ( c ) जैविक अभिक्रियाओं को उत्प्रेरित करना।
6. न्यूक्लिक अम्ल में कौन – सा पदार्थ उपस्थित नहीं है ?
( a ) साइटोसीन
( b ) एडोनीन
( c ) थाइमीन
( d ) गुआनीडिन
उत्तर- ( d ) गुआनीडिना
7. निम्नलिखित में से कौन – सा क्षार RNA में उपस्थित नहीं है ?
( a ) थाइमीन
( b ) यूरेसिल
( c ) एडीनीन
( d ) गुआनीन
उत्तर- ( d ) गुआनीन ।
8. एमीनो अम्ल जल में सबसे कम विलय है
( a ) pH = 7 पर
( b ) ph > 7 पर
( c ) pH < पर
( d ) आइसोइलेक्ट्रिक बिंदु
उत्तर- ( d ) आइसोइलेक्ट्रिक बिंदु
9. कौन – सा क्षार RNA में उपस्थित होता है लेकिन DNA में नहीं ?
( a ) यूरेसील
( b ) थाइमीन
( c ) गुआनीन
( d ) साइटोसीन
उत्तर- ( a ) यूरेसीला
10. DNA की डबल हैलिक्स संरचना किस कारण है ? ( a ) इलेवोस्टेटिक आकर्षण
( b ) वांडर वाल्स बल
( c ) द्विध्रुव – द्विध्रुव अंत : कर्षण
( d ) हाइड्रोजन बंध के कारण
उत्तर- ( d ) हाइड्रोजन बंध के कारण ।
11. कितने न्यूक्लियोटाइड का क्रम संदेहवाहन RNA में एमीनो अम्ल के लिए एक कोडोन बनाता है ? ( a ) एक
( b ) दो
 ( c ) तीना
( d ) चार
उत्तर- ( c ) तीना
II . रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. प्रतिरोधी जीन को ……….. कहते हैं ।
2 . ……. वांछित उत्पाद पाने के लिए , अनुकूलतम परिस्थितियाँ उपलब्ध करता है ।
3. अनुप्रवाह संसाधन व ……….. प्रत्येक उत्पाद के लिए भिन्न – भिन्न होता है ।
4 . ……………..विधि में पुनर्योगज डीएनए को सीधे जंतु कोशिका के केंद्रक के भीतर अंत क्षेपित किया जाता है ।
5. कुछ प्लास्पिड की प्रतिकोशिका केवल एक या दो जबकि दूसरी की………. प्रतिकृति मिलती है ।
उत्तर -1 बायोरिएक्टर , 2 . वृद्धि , 3 . गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण , 4. सूक्ष्म अंतःक्षेपण 5. 15 से 100 III . निम्नलिखित में से कौन – सा कथन सत्य है और कौन – सा असत्य
1. डबल रोटी , शराब इत्यादि सभी सूक्ष्मजीवों द्वारा संपन्न , एक प्रकार से जैव प्रौद्योगिकी का परिणाम है।
2. लैंगिक जनन से विभिन्नताएं उत्पन्न होती हैं ।
3. प्लामिड डीएनए संवाहक की तरह कार्य करता है जो इससे जुड़े डीएनए को स्थानांतरित करता है ।
4. स्थानांतरित डीएनए को परपोषी में सुरक्षित रखना तथा उसकी संतति में स्थानांतरित करना । आनुवंशिक रूपांतरण का एक महत्त्वपूर्ण चरण है । 5. हिंड II , डीएनए अणु को उस विशेष बिन्दु पर काटते हैं जहाँ पर छह क्षारक युग्मों का एक विशेष अनुक्रम होता है ।
उत्तर – 1.सत्य , 2. सत्य , 3. सत्य , 4 , सत्य , 5 , सत्य ।
IV . स्तंभ -1 में दिए गए पदों का स्तंभ- ।। पदों के साथ सही मिलान करें :
              स्तम्भ- I
( a ) रासायनिक इंजीनियरिंग प्रक्रमों में रोगाणुरहित ( b ) जीन क्लोनिंग एवं जीन स्थानांतरण का उपयोग कर
( c ) एक गुणसूत्र में एक विशिष्ट डीएनए अनुक्रम ( d ) डीएनए का विजातीय खंड परपोषी जीव में स्वयं प्रतिकृति व गुणित हो सके
( e ) प्रथम पुनर्योगज डीएनए अणु का निर्माण सालमोनेला टाइफीमूरियम के सहज प्लाज्मिड में ( f ) आणविक कैंची
        स्तम्भ- I1
( 1 ) पुनर्योगज डीएनए का निर्माण किया जाता है । ( 2 ) प्रतिबंधन एंजाइम्स ।
( 3 ) वर्गों का समूह ।
( 4 ) इसे क्लोनिंग भी कह सकते हैं ।
( 5 )प्रतिजैविकों , टीकों , एंजाइमों आदि का निर्माण किया जाता है ।
( 6 ) प्रतिकृतियन की उत्पत्ति कहते हैं ।
उत्तर- ( a ) -5 , ( b ) – 1 , ( c ) -d , ( d ) -4 , ( e ) -3 , ( f ) -2 .
           अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जैव प्रौद्योगिकी से आप क्या अभिप्राय रखते हैं ?
उत्तर – जैव प्रौद्योगिकी में उन तकनीकों का वर्णन मिलता है जिसमें जीवधारियों या उनसे प्राप्त एंजाइमों का उपयोग करते हुए मनुष्य के लिए उपयोगी उत्पाद या प्रक्रमों का विकास किया जाता है ।
प्रश्न 2. क्या आप जैव प्रौद्योगिकी के कुछ उदाहरण दे सकते हैं ?
उत्तर – पात्रे ( इन विट्रो ) निषेचन द्वारा परखनली शिशु का निर्माण , दोषयुक्त जीन का सुधार , जीन का संश्लेषण तथा उपयोग , डीएनए टीका का निर्माण आदि ये सभी जैव प्रौद्योगिकी के ही भाग हैं। प्रश्न 3. आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के विकास में किन दो प्रमुख तकनीकों का योगदान है ?
उत्तर- ( i ) आनुवंशिक इंजीनियरिंग ,
( ii ) रासायनिक इंजीनियरिंग प्रक्रम ।
प्रश्न 4. आनुवंशिक इंजीनियरिंग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – इस विधि द्वारा आनुवंशिक पदार्थों को रसायन में परिवर्तित करके इसे परपोषी जीवों में प्रवेश कराकर इसके फीनोटाइप ( समलक्षणी ) में परिवर्तन किया जाता है ।
प्रश्न 5. रासायनिक इंजीनियरिंग प्रक्रम क्या है ? उत्तर – रासायनिक इंजीनियरिंग प्रक्रमों के अंतर्गत रोगरहित वातावरण बनाकर केवल वांछित सूक्ष्मजीवों /सुकेंद्रीकी कोशिकाओं में वृद्धि कर अधिक मात्रा में जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों जैसे – प्रतिजैविकों , टीके , एंजाइमों आदि का निर्माण किया जाता है ।
प्रश्न 6. क्लोनिंग से आप क्या तात्पर्य रखते हैं ? उत्तर – एक विजातीय डीएनए प्रतिकृति के मूल से जुड़ जाता है , ताकि डीएनए का विजातीय खंड परपोषी जीव में स्वयंः प्रतिकृति व गुणित हो सके । इसे क्लोनिंग या किसी टेम्पलेट डीएनए की समान गुणित संरचना का निर्माण भी कह सकते हैं ।
प्रश्न 7. प्रथम पुनर्योगज डीएनए का निर्माण कैसे हुआ था ?
उत्तर – प्रथम पुनर्योगज डीएनए का निर्माण सालमोनेला टाइफीमरियम के सहज प्लामिड में प्रतिजैविक प्रतिरोधी कूटलेखन जीन के जुड़ने से हो सका था ।
प्रश्न 8. प्लामिड से डीएनए का टुकड़ा सर्वप्रथम किसने काटने में सफलता पाई ?
उत्तर – स्टेनले कोहेन व हरबर्ट बोयर ने 1972 में प्लाज्पिड से डीएनए का टुकड़ा काटकर सर्वप्रथम सफलता पाई ।
प्रश्न 9. आनुवंशिक इंजीनियरिंग या पुनर्योगज डीएनए तकनीक को संपादित करने के लिए कौन – कौन से तकनीकी साधन हमारे पास होने चाहिए ? उत्तर – प्रतिबंधन एंजाइम , पॉलिमरेज एंजाइम , लाइपेज , संवाहक व परपोषी जीव आदि तकनीकी साधनों के द्वारा ही आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीक संपादित की जा सकती है ।
प्रश्न 10. पृथक्कृत डीएनए खंडों को हम कैसे देख सकते हैं ?
उत्तर – पृथक्कृत डीएनए खंडों को हम तभी देख सकते हैं जब डीएनए को इथीडियम ब्रोमाइड नामक यौगिक से अभिरंजित कर पराबैंगनी विकिरणों से अनावृत्त करते हैं ।
प्रश्न 11. बायोरिएक्टर से आपका क्या अभिप्राय है ? उत्तर – जिसमें सूक्ष्मजीवों , पौधों , जंतुओं व मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुए कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों वयष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है ।
            लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव तकनीक से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – न्यूक्लिक अम्लों और प्रोटीनों के रसायन के ज्ञान से , प्रोटीन के संश्लेषण को नियमित करना संभव हो सका है । हम पढ़ चुके हैं कि न्यूक्लिक अम्लों में प्रोटीन विशिष्ट क्षार द्वारा कोडिड ( coded ) होती है । DNA क्रम जो विशिष्ट प्रोटीन के लिए कोड का कार्य करता है उसे जीन ( gene ) कहते हैं । एक जीव के DNA अणु के एक भाग को यदि दूसरे जीव के DNA अणु के एक भाग के साथ जोड़ दिया जाए तो इस नए नए बने हुए DNA अणु को पुनर्योजित DNA ( recombinant DNA ) कहा जाता है । इन विशिष्ट एंजाइमों को नियंत्रण एंजाइम ‘ ( restriction enzymes ) कहा जाता है । पुनर्योजित DNA की संरचना में परिवर्तन के साथ प्रोटीनों या एंजाइमों के संश्लेषण के लिए प्रयोग किया जाता है ।
  जीवों के जीन्स ( genes ) की संरचना में परिवर्तन करके मनुष्य में लाभदायक प्रभाव उत्पन्न करने की कृत्रिम विधि को जेनेटिक इंजीनियरिंग अथवा जैव तकनीक कहा जाता है । जैव तकनीक हमारी सहायता करती है
( i ) प्रोटीन में एमीनो अम्ल का क्रम बदलने में , जिससे परिवर्तित और ऐच्छिक गुणों के प्रोटीन उत्पन्न किए जा सकें ।
( ii ) लाभदायक प्रोटीन और एंजाइम , व्यापारिक अनुप्रयोग के लिए कोशिकाओं का अधिक मात्रा में उत्पन्न करने के लिए । जैव तकनीक , जेनेटिक इंजीनियरिंग के क्षेत्र को बढ़ाती है ।
अत्यंत सावधानीपूर्वक व नियंत्रित परिस्थितियों में वैज्ञानिकों द्वारा DNA अणुओं के क्षारों के क्रम को बदलने की तनकीकी को जैव तकनीकी ( biotechnology ) कहते हैं ।
प्रश्न 2. जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव तकनीक के क्या – क्या अनुप्रयोग है ?
उत्तर – यद्यपि विकास के प्रारंभिक स्तर पर जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव तकनीकी का क्षेत्र विकसित है , फिर भी मनुष्य के स्वास्थ्य के क्षेत्र में और दवाइयाँ , कृषि और उद्योग में इनका योगदान महत्त्वपूर्ण है
( i ) जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से अनेक जेनेटिक व्यतिक्रम ( disorder ) का आरंभिक अवस्था में पहचानना और इलाज करना संभव हुआ है ।
( ii ) बहुत से जैव तकनीकी उत्पाद दवाइयों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं । उनमें से कुछ नीचे दिए गए हैं
( iii ) मानव इंसुलितन हॉर्मोन – मधुमेह के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है ।
( a ) इंटरफेरॉन ( Interferon ) – वायरसरोधी के रूप में ।
( b ) रक्त थक्का कारक ( Blood clotting factor VIII ) हीमोफिलिआ के उपचार में
( c ) टीके ( Vaccines ) – कई संक्रामक रोगों के निदान में ।
( iv ) कई बैक्टीरिया तथा सूक्ष्म जीवाणुओं में भी जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से जीन परिवर्तन किया जा चुका है , जिससे ये कई उपयोगी प्रक्रियाएं संपन्न करते हैं ।
( v ) इनकी सहायता से कच्चे पदार्थों को प्राप्त किया जा सकता है । प्रदूषण को रोका जा सकता है।
   स्वास्थ्य और रासायनिक उद्योग में भी जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से सूक्ष्म जीव विशिष्ट कार्य कर सकते हैं ।
प्रश्न 3. एंजाइम क्या हैं ?
उत्तर – ग्लोबूलर प्रोटीन ( Globular proteins ) का महत्त्वपूर्ण समूह जो जैव उत्प्रेरक का कार्य करते हैं , एंजाइम ( Enzymes ) कहलाते हैं । इन एंजाइमों का हमारे जीवन में अधिक महत्त्व है । इनकी अनुपस्थिति में हमारे जीवन की क्रियाएँ इतनी मंद गति से संपन्न होती है कि हमारे लिए जीवित रहना कठिन ही नहीं असंभव हो जाता । उदाहरण के लिए , यदि हमारे शरीर में विभिन्न एंजाइम न होते तो हमारे पाचन तंत्र को एक समय का भोजन पचाने में 50 वर्ष लग जाते । इससे हम आसानी से कल्पना कर सकते हैं कि इनकी अनुपस्थिति में हमारा जीवन कैसा होता । आज लगभग 3000 ऐसे एंजाइमों को ज्ञात कर लिया जाता है , जो प्रोटीनों के एक विशिष्ट वर्ग में आते हैं ।
प्रश्न 4. कुछ सामान्य एंजाइमों के नाम एवं अभिक्रिया बताइए ।
उत्तर – कुछ सामान्य एंजाइम ( Common Enzymes )
प्रश्न 5. एंजाइमों की कुछ विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – एंजाइम की विशेषताएँ ( Characteristics of Enzymes ) एंजाइम की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं-
( i ) यह उच्चतम विशिष्ट है । इनकी अभिक्रियाएँ इतनी तेज होती है कि कोई एक एंजाइम एक मिनट में 10 बार अभिक्रिया में भाग लेकर वापस मुक्त हो सकता है । उदाहरण के लिए माल्टेज ( maltase ) , माल्टोज के जलीय अपघटन को उत्प्रेरित करता है । कोई अन्य ऐसा एंजाइम नहीं है , जो माल्टोज को उत्प्रेरित कर सके ।
( ii ) ये अभिक्रिया की गति को बढ़ा देते हैं ।
( iii ) ये शरीर के सामान्य ताप व pH ( 6-8 ) पर सक्रिय होते हैं ।
( iv ) एंजाइमों का कार्य कई विधियों से नियंत्रित होता है और कई कार्बनिक तथा अकार्बनिक अणु इनकी संक्रियता को रोकते हैं ।
( v ) अभिक्रिया संपन्न होने के बाद उत्प्रेरकों की भाँति ये अपनी मूल अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं । अत : इनकी अत्यंत अल्प मात्रा भी जैव रासायनिक अभिक्रियाओं की गति को तेज कर देती है ।
प्रश्न 6. एंजाइमों के अनुप्रयोगों पर प्रकाश डालिए । उत्तर – एंजाइमों के अनुप्रयोगों ( Applications of Enzymes )
( i ) रोगों से बचाव ( Prevention of Diseseses ) – शरीर में एंजाइमों की कमी से कई प्रकार के रोग हो जाते हैं । उदाहरण के लिए , फेनिल कीटोयूरिया ( phenyl ketone urea ) बच्चों में एंजाइम फीनेल एलानीन ( phenyl ananine ) हाइड्रोक्सिलेस की कमी से होता है । इसी प्रकार एंजाइम टायरोसिनेस ( tyrosinase ) की कमी से एल्बिनिज्म ( Albinism ) नामक रोग हो जाता है । भोजन के द्वारा इन एंजाइमों के लेने से इन रोगों का निवारण हो सकता है ।
( ii ) रोगों का इलाज ( Curing of Diseases ) – एंजाइमों के उपयोग से कुछ रोगों का उपचार भी किया जा सकता है । अतः कोरोनरी धमनी में रक्त का थक्का ( blood clot ) बनने से मनुष्य को हृदयाघात ( Heart attack ) हो जाता है । ऐसे रोगी को यदि एंजाइम स्ट्रेप्टोकाइनेस ( streptokinase ) दिया जाए तो वह थक्के को घोल लेता है , इस प्रकार रोग का उपचार किया जा सकता है ।
( iii ) औद्योगिक अनुप्रयोग ( Industrial Applications ) – उद्योगों में भी एंजाइमों के कई महत्त्वपूर्ण उपयोग हैं , इनमें से प्रमुख है , मदिरा व पनीर उद्योग । कई कार्वोहाइड्रेट्स ( Carbohydrates ) ऐसे हैं जो कि किण्वन ( fermentation ) प्रक्रियाओं द्वारा अनाज की स्टार्च को बीयर , शराब तथा मीठे सिरप में बदल देते हैं । एंजाइम ऐनिन पनीर उद्योग में दूध से पनीर बनाने में प्रयुक्त होता है ।
प्रश्न 7. पुनर्योगज डीएनए क्या हैं ?
उत्तर – पुनर्योगज डीएनए ( Recombinant DNA ) – सन् 1972 में यह पता चला कि किसी एक जीव से DNA का खंड लेकर , दूसरे जीव के DNA के साथ शरीर के बाहर ( परखनली ) में संकरण कराना संभव है । इस संकरण से प्राप्त DNA को पुनर्योगज DNA ( Recombinant DNA ) कहा गया ।
             दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. न्यूक्लिक अम्लों के कार्यों का वर्णन कीजिए । उत्तर – न्यूक्लिक अम्लों के कार्य ( Functions of Nucleic Acids ) – न्यूक्लिक अम्लों के दो मुख्य कार्य हैं-
( i ) प्रतिकृतित्व ( Replication )
( ii ) प्रोटीन संश्लेषण ( Protein synthesis )
जैव अणु ( Biomolecule ) का यह गुण है , अपने जैसे अणु को संश्लेषित करना । अणुओं में यह प्रतिकृतित्व का गुण होता है । DNA अणुओं में यह प्रतिकृतित्व का गुण होता है । DNA अणुओं में विद्यमान क्षारकों का क्रम ही जेनेटिक सूचनाओं का आधार है , जिससे पैतृक गुण अपनी संतति में आते हैं । कोशिका विभाजन के साथ नाभिक और DNA का विभाजन होता है और दोनों नई पुत्री कोशिका में पैतृक गुणों की पुनरावृत्ति हो इसके लिए आवश्यक है कि अणुओं का विभाजन इस प्रकार हो कि दोनों पुत्री नाभिकों में DNA के क्षारों का क्रम बिल्कुल समान हो । DNA अणुओं में यह गुण ही उनका प्रतिकृतित्व कहलाता है । इस प्रक्रिया में DNA की डबल हेलिक्स पहले धीरे – धीरे खुलती है और इस प्रकार पृथक् हुई दो इकाइयाँ , दो नई इकाइयों को संश्लेषित करने के लिए प्रेरित करती है । एक इकाई के प्रत्येक क्षार के सामने उसके पूरक क्षारक के निर्माण के साथ न्यूक्लिओटाइडों का निर्माण होता जाता है तथा प्रत्येक इकाई डबल हेलिक्स बनाती जाती है । इस प्रकार एक DNA अणु से उसके दो प्रतिरूप दो प्रतिकृतियाँ तैयार हो जाती हैं ।
( ii ) प्रोटीन संश्लेषण ( Protein Synthesis ) -DNA अणुओं में क्षारक क्रम के रूप में समस्त जेनेटिक सूचनाएं इकट्ठी रहती हैं और उन्हीं के निर्देशानुसार प्रोटीनों का संश्लेषण होता है । प्रोटीनों का संश्लेषण दो पदों में संपन्न होता है- ( a ) अनुलेखन ( Transcription ) , ( b ) अनुवाद या स्थानांतरण ( Translation ) अनुलेखन ( Transcription ) में DNA अणु के क्रम की नकल में पूरक RNA अणु बनता है जिसे संदेशवाहक RNA m ( RNA ) कहा जाता है । यह प्रक्रिया उसी प्रकार संपन्न होती है जैसी प्रतिकृतित्व के दौरान DNA के निर्माण में हुई , बस एक अंतर यह है कि DNA में ऐडिनीन ( A ) का पूरक थाइमीन था जबकि RNA में थाइमीन ( T ) के स्थान पर यूरेसिल ( U ) होता है ।
 पूरक क्षार जोड़े निम्न प्रकार से होते हैं-
अनुलेखन के बाद m – RNA कोशिका नाभिका से कोशिकाद्रव्य में राइबोसोम पर चला जाता है , वहाँ ये प्रोटीन संश्लेषण के लिए सांचे ( template ) का काम करता है । m – RNA के अणुओं के न्यूक्लिओटाइडों को तीन के क्रम में पढ़ते हैं और इस प्रकार के प्रत्येक त्रियक ( Triplet ) को एक कोडोन ( coden ) कहते हैं । प्रत्येक कोडोन एक एमीनो अम्ल से संबद्ध होता है । ये m – RNA अणु t- RNA व राबोसोमल कणों के माध्यम से प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करते हैं । जिस t – RNA के न्यूक्लिओटाइड m – RNA से मेल खाते जाएँगे वही एमीनो अम्ल : -RNA द्वारा प्रोटीन श्रृंखला से पेप्टाइड बंध द्वारा जुड़ते जाएंगे और इस प्रकार पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला बढ़ती जाएगी । प्रत्येक एमीनो अम्ल में कम से कम एक सुसंगत r – RNA होता है । t – RNA अणु के एक सिरे एक ट्राइन्यूक्लिओटाइड क्षार क्रम होता है अर्थात् m – RNA ( एन्टिकोडोन ) पर किसी ट्राइन्यूक्लिओटाइड क्षार क्रम का पूरका t – RNA अणु का दूसरे सिरे पर तीन न्यूक्लिओटाइड का एक विशिष्ट क्षार क्रम होता है- CCA , सिरे पर एंडीनीन न्यूक्लिओटाइड पर प्रदर्शित शर्करा पर –OH समूह के साथ ( एमीनो अम्ल के जुड़ने का स्थान ) ।
 यह –OH समूह विशिष्ट एमीनो अम्ल के साथ संयुक्त होता है और इसे m – RNA तक ले जाता है । m – RNA और t – RNA के बीच जटिल को एक अन्य प्रकार के RNA जिसे राइबोसोम ( Ribosome ) RNA कहते हैं द्वारा स्थिर किया जाता है । एमीनो अम्ल को स्थानांतरण करने के बाद , t – RNA वापस जाने के लिए मुक्त हो जाता है और क्रिया दोहराई जाती है । इस प्रकार , एमीनो अम्ल में विशिष्ट क्रम के साथ प्रोटीन उत्पन्न हो जाती हैं । किसी विशिष्ट प्रोटीन के संश्लेषण का संकेत DNA में निहित है । DNA के न्यूक्लिओटाइडों के क्रम से ही प्रोटीनों के एमीनो अम्लों के क्रम का निर्धारण हुआ । DNA के इस क्रम को जीन ( gene ) कहते हैं और जीव कोशिकाओं में प्रत्येक प्रोटीन का अपना एक विशिष्ट जीन होता है । न्यूक्लिओटाइड त्रियक व एमीनो अम्लों के संबंध को जैव उत्पत्ति संकेत या जेनेटिक कोड ( genetic code ) कहते हैं ।
जेनेटिक कोड की चार मान्य विशेषताएँ हैं-
( i ) यह सार्वत्रिक है ।
( ii ) यह विकृत है । इसका अर्थ है कि एक से अधिक कोडोन एमीनो अम्ल के लिए कोड का कार्य कर सकते हैं ।
( iii ) यह अल्प विराम सहित है ।
.( iv ) कोडोन का तीसरा क्षार कम विशिष्ट है । कोडोन के प्रथम दो क्षार अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
कोशिकाओं में प्रोटीनों के संश्लेषण की प्रक्रिया अत्यंत दुत गति से संपन्न होती है और एक सेकेण्ड में लगभग 20 एमीनों अम्ल जुड़ जाते हैं । जंतुओं के शरीर में रेडियोएक्टिव जमीन इंजैक्ट ( inject ) करने के 1 मिनट बाद , रेडियोएक्टिव प्रोटीन पाई जा सकती है ।
प्रश्न 2. प्रतिबंधन एंजाइम क्या हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं ? इनके क्या कार्य हैं ? वर्णन कीजिए । उत्तर – वर्ष 1963 में दो एंजाइम पृथक् किए गए जो ई . कोलाई में जीवाणु भोजी ( बैक्टीरियोफेज ) की वृद्धि को रोक देते हैं । इनमें एक डीएनए से मिथिल समूह को जोड़ता है , जबकि दूसरा डीएनए को काटता है । बाद वाले एंजाइम को प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज कहा गया ।
  प्रथम प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लियेज – हिंड II , जिसका कार्य डीएनए न्यूक्लियोटाइड विशिष्ट क्रम पर निर्भर है । यह पांच वर्ष बाद पृथक् किया और पहचाना गया । ऐसा पाया गया कि हिंड II , डीएनए अणु को उस विशेष बिन्दु पर काटते हैं जहाँ पर छह क्षारक युग्मों ( बेस पेयर ) का एक विशेष अनुक्रम होता है। इस विशिष्ट क्षारक अनुक्रम को हिंड II , की पहचान अनुक्रम कहते हैं । हिंड II , के अलावा आज 900 से अधिक प्रतिबंधन एंजाइमों के बारे में जानकारी है जो जीवाणुओं के 230 से अधिक प्रभेदों ( स्टेंस ) से पृथक् किए गए हैं , जिनमें से प्रत्येक विभिन्न पहचान अनुक्रमों को पहचानते हैं ।
  इन एंजाइमों के नामकरण में परंपरानुसार नाम का पहला शब्द वंश व दूसरा एवं तीसरा शब्द प्राकेंद्रकी कोशिकाओं की जाति से लिया गया है , जिनसे ये पृथक् किए गए थे । जैसे – ईको आर 1 ( Eco R 1 )
। एशरिशिया कोलाई आर वाई A 13 , ईको आर 1 के वर्ण आर ( R ) प्रभेद के नाम से लिया गया है । नाम के बाद रोमन अंक उस क्रम को दर्शाते हैं जिसको जीवाणु के प्रभेद से एंजाइम पृथक् किए गए थे ।
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प्रतिबंधन एंजाइम , न्यूक्लिएज कहलाने वाले एंजाइमों के बड़े वर्ग में आते हैं । एक्सोन्यूक्लिएज दो प्रकार के होते हैं एवं एंडोन्यूक्लिएज एक्सोन्यूक्लिएज डीएनए के सिरे से न्यूक्लियोटाइड को अलग करते हैं , जबकि एंडोन्यूक्लिएज डीएनए को भीतर विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं । प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज डीएनए अनुक्रम लंबाई के निरीक्षण के बाद कार्य करता है । जब यह अपनी विशिष्ट पहचान अनुक्रम पा जाता है तब यह डीएनए से जुड़ता है तथा द्विकुंडलिनी की दोनों लड़ियों को शर्करा – फॉस्फेट आधार स्तंभों में विशिष्ट केंद्रों पर काटता है । प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज डीएनए में विशिष्ट पैलीन्डोमिक न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों को पहचानता है ।

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