Ahilyabai Holkar Biography in Hindi – अहिल्याबाई होल्कर जीवनी
महारानी अहिल्याबाई होल्कर की जीवनी | Ahilyabai Holkar Biography in Hindi
Ahilyabai Holkar Biography in Hindi
एक स्त्री होकर भी उन्होंने न केवल नारी जाति के उत्थान के लिए कार्य किये, अपितु समस्त पीड़ित मानवता के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया । वह एक उज्जल चरित्र वाली पतिव्रता नारी, ममतामयी मां तथा उदार विचारों वाली महिला थीं ।अहिल्याबाई होल्कर सेवा, सरलता, सादगी, मातृभूमि की सच्ची सेविका थीं । इंदौर घराने की महारानी बनने के बाद भी अभिमान उन्हें छू तक नहीं गया था ।अहिल्याबाई का जन्म 1735 में महाराष्ट्र के ग्राम-पाथडरी में हुआ था । उनके पिता मनकोजी सिंधिया एक सामान्य किसान थे । सादगी और धर्मनिष्ठता से जीवन जीने वाले मनकोजी की अहिल्याबाई एकमात्र सन्तान थीं ।
नाम | महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) |
जन्म दिनांक | 31 मई सन् 1725 ई |
जन्म स्थान | चांऊडी गांव (चांदवड़), अहमदनगर, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 13 अगस्त सन् 1795 ई. |
पिता का नाम | मानकोजी शिंदे |
माता का नाम | सुशीला बाई |
पति | खंडेराव |
संतान | मालेराव (पुत्र) और मुक्ताबाई (पुत्री) |
पद | महारानी |
कर्म भूमि | भारत |
राजघराना | होल्कर |
अहिल्याबाई होल्कर का इतिहास – Ahilyabai Holkar History in Hindi
अहिल्याबाई होल्कर की किस्मत उस समय बदली जब उन्हें मल्हार राव होलकर ने देखा। मल्हार राव होलकर, मराठा पेशवा बाजीराव के कमांडर थे। वे एक बार पुणे जाते समय छौंड़ी रुके, उन्होंने उस समय मंदिर में काम कर रही 8 साल की अहिल्याबाई को देखा। युवा अहिल्याबाई का चरित्र और सरलता ने मल्हार राव होल्कर को प्रभावित किया। उन्हें अहिल्या इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने उनकी शादी अपने बेटे खांडे राव से करवा दी। इस तरह अहिल्या बाई एक दुल्हन के तौर पर मराठा समुदाय के होल्कर राजघराने में पहुंची।
सन् 1745 में अहिल्याबाई के पुत्र हुआ और तीन वर्ष बाद एक कन्या। पुत्र का नाम मालेराव और कन्या का नाम मुक्ताबाई रखा। उनके पति की मौत 1754 में कुंभेर की लड़ाई में हो गई थी। ऐसे में अहिल्यादेवी पर जिम्मेदारी आ गई। उन्होंने अपने ससुर के कहने पर न केवल सैन्य मामलों में बल्कि प्रशासनिक मामलों में भी रुचि दिखाई और प्रभावी तरीके से उन्हें अंजाम दिया।
अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासन-भार सम्भाला था। रानी अहिल्याबाई ने 1795 ई. में अपनी मृत्यु पर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है। वे अपनी उदारता और प्रजावत्सलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके एक ही पुत्र था मालेराव जो 1766 ई. में दिवंगत हो गया। 1767 ई. में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त किया।
उन्हें उनकी राजसी सेना का पूरा सहयोग मिला। अहिल्याबाई ने कई युद्ध का नेतृत्व किया। वे एक साहसी योद्धा थी और बेहतरीन तीरंदाज। हाथी की पीठ पर चढ़कर लड़ती थी। हमेशा आक्रमण करने को तत्पर भील और गोंड्स से उन्होंने कई बरसों तक अपने राज्य को सुरक्षित रखा।
रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर ले गईं, वहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बनाए गए इस महल के ईर्द-गिर्द बनी राजधानी की पहचान बनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री। उस दौरान महेश्वर साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था।
उन्होंने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में बहुत से मंदिरो का निर्माण भी किया था। उन्होंने आम जनता के लिए धर्मशालाए भी बनवायी, ये सभी धर्मशालाए उन्होंने मुख्य तीर्थस्थान जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास ही बनवायी। मुस्लिम आक्रमणकारियो के द्वारा तोड़े हुए मंदिरो को देखकर ही उन्होंने शिवजी का सोमनाथ मंदिर बनवाया। यह मंदिर आज भी हिन्दुओ द्वारा पूजा जाता है। उन्होंने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार किया।
अहिल्याबाई को एक बुद्धिमान, तीक्ष्ण सोच और स्वस्फूर्त शासक के तौर पर याद किया जाता है। हर दिन वह अपनी प्रजा से बात करती थी। उनकी समस्याएं सुनती थी। उनके कालखंड में रानी अहिल्याबाई ने ऐसे कई काम किए कि लोग आज भी उनका नाम लेते हैं। अपने साम्राज्य को उन्होंने समृद्ध बनाया। उन्होंने सरकारी पैसा बेहद बुद्धिमानी से कई किले, विश्राम गृह, कुएं और सड़कें बनवाने पर खर्च किया।
एक महिला होने के नाते उन्होंने विधवा महिलाओं को अपने पति की संपत्ति को हासिल करने और बेटे को गोद लेने में मदद की। वे नारी शक्ति, धर्म, साहस, वीरता, न्याय, प्रशासन, राजतंत्र की मिसाल हैं। उन्होंने होल्कर साम्राज्य की प्रजा का एक पुत्र की भांति लालन-पालन किया तथा उन्हें सदैव अपना असीम स्नेह बांटती रही। इस कारण प्रजा के हृदय में उनका स्थान एक महारानी की बजाय देवी एवं लोक माता का सदैव रहा।
अहिल्याबाई के संबंध में दो प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं। एक में उनको देवी के अवतार की पदवी दी गई है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया है। वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा। अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला। अहिल्या बाई होल्कर ने सदैव आत्मा का जीवन जीया। अहिल्या बाई होल्कर आज शरीर रूप में हमारे बीच नही है किन्तु सद्विचारों एवं आत्मा के रूप में वे हमारे बीच सदैव अमर रहेगी।
अहिल्याबाई होल्कर का निधन 13 अगस्त सन् 1795 ई. को हुआ। उनकी महानता और सम्मान में भारत सरकार ने 25 अगस्त 1996 को उनकी याद में एक डाक टिकट जारी किया। इंदौर के नागरिकों ने 1996 में उनके नाम से एक पुरस्कार स्थापित किया। असाधारण कृतित्व के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है।
अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) के बारे में प्रमुख लोगों के वक्तव्य –
- राव बहादुर कीबे ने उचित ही कहा है-
“Show what a leading part the pious lady Ahilya Bai took in the stirring events of the time”.
- डॉ. उदयभानु शर्मा उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं-“मेरी ही गोद में विश्व का वह अनोखा रत्न खो गया. इस सोच में महेश्वर का किला आज भी नतमस्तक हो आँसू बहा रहा है. नर्मदा भी इसी कारण प्रायश्चितस्वरूप, निस्तब्ध रात्रि में उस घाट पर, जहाँ देवी का भौतिक शरीर पंचत्व को प्राप्त हुआ था, दुःखी होकर विलाप करती हुई दिखाई पड़ती है । उनकी श्रेष्ठता इन्दौर की शासिका होने में नहीं है, क्योंकि उनका त्याग इतना अनुपम, उनका साहस इतना असीम, उनकी प्रतिभा इतनी उत्कट, उनका संयम इतना कठिन और उनकी उदारता इतनी विशाल थी कि उनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका है उनके पवित्र चरित्र और विराट प्रेम ने उन्हें लोकजीवन में लोकमाता का वह उच्चासन दिया, जो संसार में बड़े सम्राटों-साम्राज्ञियों को भी सुलभ नहीं रहा’.
- उनकी एक समकालीन आँग्ल कवयित्री जोना बेली ने कहा –
“For thirty years her reign of peace, The land in blessing did increase, And she was blessed by every tongue, By stern and gentle; old and young.”
- भू. पू. उपराष्ट्रपति डॉ. गोपालस्वरूप पाठक कहते हैं-“अहिल्याबाई भारतीय संस्कृति की मूर्तिमान प्रतीक थीं. कितने आपत्ति के प्रसंग तथा कसौटियों के प्रसंग उस तेजस्विनी पर आए, लेकिन उन सबका बड़े धैर्य से मुकाबला कर धर्म संभालते हुए उन्होंने राज्य का संसार सुरक्षित रखा, यह उनकी विशेषता थी. उन्होंने भारतीय संस्कृति की परम्पराएं सबके सामने रखीं. भारतीय संस्कृति जब तक जाग्रत है, तब तक अहिल्याबाई के चरित्र से ही हमें प्रेरणा मिलती रहेगी।
- पं. जवाहरलाल नेहरू कहते हैं कि-“जिस समय वह गद्दी पर बैठीं, वह 30 वर्ष की नौजवान विधवा थीं और अपने राज्य के प्रशासन में वह बड़ी खूबी से सफल रहीं वह स्वयं राज्य का कारोबार देखती थीं, उन्होंने युद्धों को टाला, शांति कायम रखी और अपने राज्य को ऐसे समय में खुशहाल बनाया, जबकि भारत का ज्यादातर हिस्सा उथल-पुथल की हालत में था इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि आज भी भारत में सती की तरह पूजी जाती हैं |
“अहिल्याबाई वास्तव में न्यायधर्मनिरता थीं, हिन्दुस्तान के इतिहास में यह एक बड़ा प्रयोग था. राज्य कार्य की धुरी एक उपासना परायण, धर्मनिष्ठ स्त्री के हाथ में आई थी. सारे भारत के इतिहास में यह एक विचित्र प्रयोग ही कहा जाएगा जो स्त्रियाँ निवृत्ति निष्ठ होती हैं, वे राज कार्य भी चला सकेंगी, सोची नहीं जा सकती | पर मराठों ने एक ऐसा प्रयोग किया, जो अहिल्याबाई के हाथ में राज्यसूत्र सौंपा. उन्होंने बहुत अच्छी तरह राज्य चलाया शस्त्रबल से दुनिया को जीतने का प्रयास कइयों ने किया, लेकिन प्रेम से, धर्म से जिन्होंने दुनिया को प्रभावित किया, उनमें अहिल्याबाई ही एक ऐसी निकलीं जो भारत के सब प्रांतों को धर्म, बुद्धि, प्रेम से जीत सकी भारत के समूचे ज्ञात इतिहास में अहिल्याबाई होल्कर का स्थान अद्वितीय है”