9th hindi

bihar board class 9th hindi notes – अष्टावक्र

bihar board class 9th hindi notes – अष्टावक्र

bihar board class 9th hindi notes

वर्ग – 9

विषय – हिंदी

पाठ 6 – अष्टावक्र

                         अष्टावक्र
                                        -विष्णु प्रभाकर
                                                                                   लेखक – परिचय

विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून , 1912 ई . को उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला के मौरनपुर गाँव में हुआ था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव को पाठशाला में हुई । कुछ पारिवारिक कारणों से उनको शिक्षा के लिए हिसार ( हरियाणा ) जाना पड़ा । वहीं पर एक हाईस्कूल में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की । विष्णु प्रभाकर के जीवन पर आर्य समाज तथा महात्मा गाँधी के जीवन – दर्शन का गहन प्रभाव पड़ा।
साहित्य को विभिन विधाओं में इन्होंने किए हैं – कहानी , उपन्यास , नाटक , एकांकी , स्केच और रिपोर्ताज में इनको विभिन्न रचनाएँ हमें सर्वथा नई भावभूमि से परिचित कराती हैं । निःसंदेह यह भावभूमि यथार्थ , आदर्श और स्वाभाविकता की टकराहट से उपजी हुई लगती है । कहानियाँ में कोमल क्षणों को मार्मिक संवेदनाएँ मिलती है । इनकी कहानियाँ रोचक होने के साथ साथ संवेदनशील भी हैं ।
विष्णु प्रभाकर को रचनाओं में प्रारंभ से है स्वदेश – प्रेम , राष्ट्रीय – चेतना और समाज सुधार का स्वर प्रमुख रहा है । इसके कारण इन्हें ब्रिटिश सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा । स्वतंत्र प्राप्ति के बाद वे आकाशवाणी दिल्ली में रेडियो रूपक लिखने का कार्य करने लगे । रेडियो रूपकों के अतिरिक्त उन्होंने रंगमंचीय नाटक भी लिखे हैं । इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – ढलती रात , स्वर्णमयी ( उपन्यास ) , संघर्ष के बाद ( कहानी संग्रह ) , नव प्रभात , डॉक्टर ( नाटक ) , जाने – अनजाने ( संस्मरण और रेखाचित्र ) , अवारा मसीहा ( शरतचंद्र को जीवनी ) ।
कहानी का सारांश

इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र का नाम अष्टावक्र है । उसका नाम अष्टावक्र इसीलिए है कि वह सामान्य व्यक्ति से अलग एक विचित्र प्राणी है । उसके पैर किसी कवि की नायिका की तरह बल खाते थे और शरीर हिंडोल की तरह झूलता था । बोलने में वह साधारण आदमी के अनुपात से तिगुना समय लेता । वर्ण श्याम , नयन निरीह . शरीर एक शाश्वत खाण से पूर्ण , मुख लंबा और वक्र , वस्त्र कीट से भरे यह था उसका व्यक्तित्व । उसकी केवल माँ ही थी । बाप बचपन में ही चल बसे थे । आज इन बातों को तीस वर्ष बीत गए हैं । तब से अकेली माँ ही उसका लालन – पोषण करती आयी है । अष्टवक्र बुद्धि का मंद और मूर्ख था । परंतु माँ का स्नेह तीव्र था । भोलापन मूर्खता की सीमा पार कर गया था । वह अपना पेट भरने के लिए खोमचा लगाता था । अक्सर कचालू को चाट , मूंगदाल को पकौड़ियाँ , दही के आलू और चीनी के लिए खोमचा लगाता था । अक्सर कचालू की चाट , मूंगदाल की पकौड़ियाँ , दही के आलू और चीनी के बतासे इन सबको एक काले लोहे के थाल में सजाकर बेचा करता था । परंतु वह मूर्ख और भोला था । रोज डेव रुपये के सामान को दस – बारह आने में बेच आता था । फिर भी माँ का स्नेह बहुत था । सोने के लिए जगत के पास जा लेटती । एक समय अध्यावक्र को बुखार चढ़ आया । कुछ दिन के बाद माँ को भी ज्वर चढ़ आया । पैसे के लिए खोमचा लगाना आवश्यक था । माँ ने कहा बेसन उठा ला , वह बेसन उठा लाया , माँ ने लेटे – लेटे उसे पानी में घोला । उसमें आलू डाले । इतने में वह बुरी तरह हाँफ उठी । धुंए ने तन – मन को और भी कड़वा कर दिया । अष्टावक्र ने ऊँचे से मुट्ठी भर आलु- बेसन कड़ाही में छोड़े तो तेल सीधा छाती पर आ गया । तब हाय माँ कहकर वह वहीं लुढ़क गया । तीन दिनों तक दोनों की शरीर में शक्ति नहीं रहने के कारण कुछ छुआ तक नहीं । अष्टावक्र की माँ मर गई । अष्टावक्रा माँ माँ करते छटपटा रहा था । वह अकेला था ।आइसोलेशन वार्ड में डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया । कुलफीवाला जो अष्टावक्र को बगल में रहता उसने ईश्वर को धन्यवाद इसलिए दिया कि अष्टावक्र को अपने पास बुलाकर उन दोनों को सुख की लौंद सोने का अवसर दिया ।

पाठ के साथ

प्रश्न 1. इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र को लेखक ने अष्टावक्र क्यों कहा है ?

उत्तर– इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र को लेखक ने अष्टावक्र इसीलिए कहा है कि आप्टावक्र एक विचित्र व्यक्ति था । उसके पैर किसी कवि की नायिका की तरह बल खाते थे और उसका शरीर हिडोले की तरह झूलता था । बोलने में वह साधारण आदमी के अनुपात से तिगुना समय लेता । वर्ण श्याम , नयन निरीह , शरीर एक शाश्वत खोज से पूर्ण , मुख लंबा और वक्र , वस्त्र कीट से भरे , यह था उसका व्यक्तित्व । इसी कारण इस विचित्र व्यक्ति को संस्कृत के पढ़े – लिखे लोग अष्टावक्र कहा करते थे । इसीलिए लेखक ने भी अष्टावक्र कहा है ।

प्रश्न 2. कोठरियाँ कहाँ बनी हुई थीं ?

उत्तर – खजाँचयों को विशाल अट्टालिका को जानेवाले मार्ग पर चिरसंगी दुर्भाग्य की तरह अनेक छोटे – छोटे अंधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं ।

प्रश्न 3. अष्टावक्र कहाँ रहता था ?

उत्तर – खजांचियों की विशाल अट्टालिका को ले जाने वाले मार्ग पर सौभाग्य के चिरसंगी दुर्भाग्य की तरह अनेक छोटी – छोटी , अंधेरी बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं । उन्हीं में से एक में अष्टावक्र रहा करता था ।
प्रश्न 4. अष्टावक्र के पिता कब चल बसे थे ?

उत्तर – अष्टावक्र के होश आने के पहले या उन्हें याद रखने से पहले ही चल बसे थे ।

प्रश्न 5. चिड़चिड़ापन अष्टावक्र की माँ का चिरसंगी क्यों बन गया था ?

उत्तर – अष्टावक्र की माँ का असमय बुढ़ापे के कारण शरीर शिथिल हो चुका था , वह कुछ लँगड़ाकर चलती थी , साथ ही निरंतर अभावों से जूझते जूझते चिड़चिड़ापन उसका चिरसंगी बन चुका था ।

प्रश्न 6. अष्टावक्र क्या – क्या बेचा करता था ?

उत्तर – वह खोमचा लगाता था । अवसर कचालू की चाट , मूंग की दाल की पकौड़ियाँ , दही के आलू और पानी के वतासे – इन सवको एक काले से लोहे के थाल में सजाकर वह बेचा करता था ।

प्रश्न 7. चार की संख्या अष्टावक्र के स्मृति – पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित क्यों हो गई थी ?

उत्तर – माँ उसे समझाकर भेजती थी , ‘ देख बेटा ‘ पैस के चार बतासे देना , चार पकौड़ी देना और चार चम्मच आलू देना । ऐसी अवस्था में ग्राहकों को कभी – कभी चार पत्ते दे देता था । इसीलिए चार की संख्या उसके स्मृति पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित हो गई थी ।

प्रश्न 8. माँ माथा क्यों ठोका करती थी ?

उत्तर – संध्या को लौटने के पश्चात् अष्टावक्र के आने की बाट जोहती रहती थी । उस पर निगाह पड़ते ही वह ललकारकर उठती । पहले उसका थाल संभालती । फिर पानी भरे लोटे में से पैसे निकालकर गिनती । लगभग डेढ़ रुपर्ण की विक्री का सामान ले जाकर वह सपा दस – बारत आने पैसे लेकर लौटा था । इसीलिए माँ माजा ठोका करती थी ।

प्रश्न 9. गर्मी के दिनों में माँ – बेटे कहाँ सोया करते थे ?

उत्तर – गर्मी के दिनों में मां – बेटे कुआ  के जगत के पास सोपा करते थे ।

प्रश्न 10. अष्टावक्र ‘ हाय माँ ‘ कहकर वहीं क्यों लुढ़ गया ?

उत्तर – अष्टावक्र की माँ जब बीमार हो तो अष्टावक्र पकौड़े बनाने चूल्हे के पास बैठा । माँ के किसी तरा पकौड़ी बनाने की रीति बेटे को समझाकर बाली ले अब धीरे – धीरे तेल में छोड़ना धोरे से छोड़ना नहीं तो जल जाएमा । ‘ अष्टावक्र ने पैर जलने के भय से कुछ ऊँच से जो मुट्ठी पर आलू बेसन कड़ाही में छोड़े तो तेल सौधा छाती पर आ गया । तब ‘ हाय माँ ‘ कहकर वह वहीं सुक गया ।

प्रश्न 11. माँ के शुष्क नयन सजल क्यों हो उठे ?

उत्तर – संध्या को उसके लौटने के समय भी उसकी बाट ओरती बैठी रहती । उस पर निगाह पड़ते ही वह ललक कर उठती । पहले उसका थाल सभालती । फिर पानी भरे लोटे से पैसा निकालकर भाषा ठोकतो । डेढ़ रुपये की बिक्री का सामान बह दस – बारह आने में बेच आता था । | माँ को डॉट – डपट , सिखावन उसके इस अटल नियम को कभी भंग नहीं कर सको । वैरों | कभी – कभी उसकी बुद्धि जाग्रत हो उठत्तो थी । उदाहरण के लिए एक दिन उसने माँ से कहा – माँ । चाट तू बेक्षा कर । मुझे लड़के मारते हैं । सुनकर माँ ने अपने लाल को कुछ इस प्रकार निहारा | कि उसके शुष्क नयन सजल हो उठे ।

प्रश्न 12. अष्टावक्र विमूत्र – सा क्यों बैठा रहा ?

उत्तर – अष्टावक्र की माँ जब बीमार थी । तब एक बार वह चूल्हे के समीप पकौड़ा पनाने बैठा । अष्टावक उसके लिए बेसन ले आया तो मी ने लेटे लेटे उसे पानी में घोला । उसमें आलू डाले । इतने में वे बुरी तरह हाँफ उती । धुएँ ने तन – मन को और भी कड़वा कर दिया । उधर तेल अलग गर्म हो रहा था । किसी तरह पकौड़ी बनाने को रीति बेटे को समझाकर बोली ले अब धीरे – धीरे तेल में छोड़ता जा । धीरे से छोड़ना नहीं तो जल जाएगा । अष्टावक्र ने कुछ ऊंचे से | जो मुट्ठी भर आलू बेसन कड़ाही में छोड़ी तो तेल सीधा छाती पर आ गया तब हाय माँ कहकर | वह वहाँ लुढ़क गया । माँ डॉक्टर के पास पहुंची । जब वह घर लौटा तो माँ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उठकर उसका थाल ले लेती । अष्टावक्र को यह परिवर्तन अच्छा नहीं लगा । थाल | रखकर वह थोड़ी देर विभूद – सा बैठा रहा ।

प्रश्न 13. कुलफीवाले ने ईश्वर को धन्यवाद क्यों दिया ?

उत्तर – अष्टावक्र की माँ जब मर गई तो वहीं बगल में रहनेवाले कुल्फीवाले ने सुना अष्टावक्र | बार – बार माँ – माँ पुकार रहा है । उस पुकार में सदा की तरह सरल विश्वास नहीं है , एक कराह है । धीरे धीरे वह झुंझलाता हुआ आया तो देखा की अष्टावक्र छटपटा रहा था । देखकर जाना की पेट में तीव्र दर्द है । यहाँ देखते – देखते उसे दस्त शुरू हो गए । कुलफीवाले ने अस्पताल फोन | किया । कुछ देर बाद गाड़ी आई और उसे लादकर ले गयौ । दो घंटे बाद उसने देखा कि कराह | बढ़ती जा रही थी । प्राण खींच रहे थे । अष्टावक्र ने अतिम शब्द माँ बोले । लौटते समय | कुलफीवाला परमशांत । यद्यपि उसके मन में करुणा का उद्रेक हुआ था तो भी उसने ईश्वर को | धन्यवाद दिया , जिसने अष्टावक्र को अपने पास बुलाकर दोनों को सुख की नींद सोने का अवसर दिया ।

प्रश्न 14. इस रेखाचित्र का सारांश लिखें ।

उत्तर – इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र का नाम अष्टावक्र है । उसका नाम अष्टावक्र इसीलिए | है कि वह सामान्य व्यक्ति से अलग एक विचित्र प्राणी है । उसके पैर किसी कवि की नायिका की तरह बल खाते थे और शरीर हिंडोले की तरह झूलता था । बोलने में वह साधारण आदमी के अनुपात से तिगुना समय लेता । वर्ण श्याम , नयन , निरीह , शरीर एक शाश्वत खोज से पूर्ण मुख लंबा और वक्र , वस्त्र कोट से भरे यह था उसका व्यक्तित्व । ठसकी केवल मी ही थी । बाप बचपन में ही चल बसे थे । आज इन बातों को तीस वर्ष बीत गए हैं । तब से अकेली मां ही उसका लालन – पोषण करती आयी है । अष्टावक्र बुद्धि का मंद और मूर्ख था । परन्तु माँ का स्नेह तीन था । मौलापन मूर्खता की सीमा पार कर गया था । वह अपना पेट भरने के लिए खोमच लगाता था । अक्सर कचालू की चाट , मूंगदाल की पकौड़ियाँ , दही के आलू और चीनी के बताये इन सबको एक काले लोहे के थाल में सजाकर बेचा करता था । परंतु वह मूर्ख और भोला था । रोज डंद रुपये के सामान को दस – बारह आने में बेच आता था । फिर भी माँ का स्नेह बहुत था सोने के लिए जगत के पास जा लेटती । एक समय अष्टावक्र को बुखार चढ़ आया । कुछ दिन के बाद माँ को भी ज्वर चढ़ आया । पैसे के लिए खोमचा लगाना आवश्यक था । माँ ने का बैसन उठा ला , वह बेसन उठा लाया , माँ ने लेटे – लेटे उसे पानी में घोला । उसमें आलू डाले इतने में वह बुरी तरह हॉफ उठी । धुएँ ने तन – मन को और भी कड़वा कर दिया । अष्टावक्र ऊँचे से मुट्ठी भर आलू – बेसन कड़ाही में छोड़े तो तेल सीधा छाती पर आ गया । तब हाय कहकर वह वहीं लुढ़क गया । तीन दिनों तक दोनों को शरीर में शक्ति नहीं रहने के कारण कुछ छुआ तक नहीं । अष्टावक्र की माँ मर गई । अष्टावक्र माँ – माँ करते छटपटा रहा था । वह अकेला था । आइसोलेशन वार्ड में डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया । कुलफीवाला जो अष्टावक्र बगल में रहता उसने ईश्वर को धन्यवाद इसलिए दिया कि अष्टावक को अपने पास बुलाकर उन दोनों को सुख की नींद सोने का अवसर दिया ।

भाषा की बात

प्रश्न 1 निम्नलिखित शब्दों को विपरीतार्थक रूप लिखें

विशाल- लघु
बदबूदार- खुशबूदार
सौभाग्य -दुर्भाग्य
सास्वत -क्षणभंगुर
मूर्ख -विद्वान
विधवा -सधवा

प्रश्न 2 . निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तित करें।

बेटे -बेटा
माता- माताएं
कपड़े- कपड़ा
बुंदे- बुंद
लता -लताएं
कोठरिया -कोठरी

प्रश्न 3 .निम्नलिखित शब्दों का वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग निर्णय करें।

सौभाग्य-( पुल्लिंग) विनीत का सौभाग्य है कि उसे पुष्पेंदु जैसा मित्र मिला।
बुद्धि- (पुल्लिंग)धर्मेंद्र बुद्धि की बात कहता है ।
उंगली -( स्त्रीलिंग )विनीत का  उंगली टेढी ।
वस्त्र -( पुल्लिंग)नेहा के वस्त्र सुंदर हैं।
कुआं -(पुल्लिंग)ठाकुर का कुआं से पानी पीना मना है ।
दही -(पुल्लिंग) दही खट्टा है।
गोद- (पुल्लिंग)उसके एक पुत्र को गोद लिया। पकौड़ी-(  स्त्रीलिंग )अष्टावक्र ने पकड़ी बनाई।
संध्या- ( स्त्रीलिंग) संध्या हो चली।।

प्रश्न 4. पत्थर की रेखा और माथा ठोकना मुहावरे का वाक्य प्रयोग के द्वारा अर्थ स्पष्ट करें ।

उत्तर- पत्थर की रेखा( ना मिटने वाली रेखा)- चार की संख्या उसकी स्मृति पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित हो गई थी।
माथा ठोकना( भाग्य को कोसना)- खाउस समय माथा ठोक लेना उसका नित्य धर्म बन गया है।

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