9th english

bseb class 9th english solution | THE PHOTOGRAPHER

WITH THE PHOTOGRAPHER

bseb class 9th english solution

class – 9

subject – english

lesson 3 – WITH THE PHOTOGRAPHER

 WITH THE PHOTOGRAPHER
— Step hen Leacock

Introduction : ‘ With the photographer ‘ is describtion of an episode in the life of the writer, Stephen Leecock . The writer narrates about his experience of life when he went to a photographer to have a photograph as his own. The destination is lovely and lucid. There are altogether 52 stanzas in which the whole episode has been described.

                   SUMMARY

One day Stephen decided to have a photograph of his own. He went to a photo studio of the town and said. ” I want my photograph taken.” The writer says that photographer looked at him without any interest or enthusiasm. He gave an unwelcome look to his customer. The photographer said : ‘ sit there and wait’. He waited there for an hour and read out all types of magazines lying over there to pass out time.
After as hour, he was asked to come inside the studio and was asked to sit down. The photographer rolled a machine into the middle of the room which was perhaps the camera to shoot his photo. He went out again trying to arrange light and air in the studio. He drew a black cloth over himself from behind the machine. The writer thought that the photographer was doing some prayer. But  the photographer appeared out of the covering with a grave look on his face and said. ” The face is quite wrong “. The writer answered quietly. I have always known about my face and appearance.
After some time the photographer took his heads in his hand and twisted it sideways and then stood looking at it from different angle. ‘ I do not like the head’ , he said. Then he directed Mr. Stephen to open his mouth a little. As he started to do it he added quickly ‘close it . The ears are bad – drop to them a little more. Now the eyes — roll them under the eye lids. Put the hands on the kness and turn the face just a little upwards. Now expand the lungs and band your meek. That’s better now but you have to just contract the face.”
With so many directions, the another got annoyed and said.
This is my face, not yours and I have lived with it since forty years of my life. I know he said that it is not beautiful. Again it was not for me but the fact remains that this is my face and the only face, I have. And if your machine is unable to accommodate my face, let me go.
Meanwhile the photographer pulled the string and the photograph was taken. The photographer said in a pleasing smile. ‘ I have caught the features at the right moment’. It was quite lively.
The winter asked the photographer to show the picture.
The photographer said— ” Oh! there is nothing to see at present. The negative has to be developed, so come on Saturday and see the proof first.”
I was Saturday and Mr. Stephen went to the photographer to see the proof. He unfolded the proof of a large photograph and both the eyes? It does not look like my eyes. Then he came on the eye brows which was missing from the place. The photographer said he does not like hairs down on the skull. We shall redol it and put it Smartly.
But what about the month, the writer asked the photographer with bitterness.’ Is that mine?’ The photographer said ‘ I adjusted the face a little as yours was too low and ! Could not have used it ‘.
That was enough to annoy Mr. Stephenson. He told tha photographer with bitterness. ‘ Look, I came here for a photograph, a picture, something which bad through it seems would have looked like me. I wanted something that would depicts my face as Heaven gave it to me, humble the gift may have been. I wanted something that my friends would have liked to keep even after my death, to reconcile them to my loss . I think, what I wanted is not done and I am badly  mistaken.
None you keep the negative. Do y
Whatever you like or please you. You can correct my month , adjust the face restore the lips reanimated the necktie and recoansturct the waist coat. Keep it  for your friends. They may value it. For me it is a worthless trifle [एक प्रकार की मिठाई ]
The author was in tears and left the photographer’s shop in agony.

           एक फोटो ग्राफर के साथ
‘ फोटोग्राफर के साथ एक दिन ‘ — लेखक के जीवन में घटित एक रोमांचक घटना का सजीव वर्णन है। लेखक , स्टीफेन लीकाॅक अपना एक फोटो खिंचवाने एक दिन एक फोटोग्राफर की दुकान में जाते हैं। फोटोग्राफर के साथ उसकी बातचीत तथा उसकी प्रतिक्रिया का जीवंत वर्णन इस आलेख में है।
इस विवरण को 52 पाराग्राफ में पिरोया गया है।

                   आलेख का सारांश
एक दिन स्टीफेन ने अपना एक फोटो खिंचवाने का निर्णय किया। वह एक फोटो स्टूडियो में गये और फोटोग्राफर महोदय से कहा — ” मैं अपना एक फोटो खिंचवाने चाहता हूँ ।” लेखक कहता है कि फोटोग्राफर महोदय ने उसकी बातों पर बहुत ध्यान नहीं दिया । ऐसा लगा कि फोटोग्राफर को अपने ग्राहक में कोई रुचि नहीं है फोटोग्राफर ने आदेश के स्वर में कहा — ” आप वहाँ बैठो और प्रतीक्षा करो। ” कोई उपाय नहीं देखकर, स्टीफेन महोदय निर्देशक स्थान पर बैठ गये और वहाँ रखे सारी पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ गये । उन्हें ऊब होने लगी थी लेकिन उनके पास कोई उपाय भी नहीं था ।
एक घंटे के बाद  फोटोग्राफर ने उन्हें अंदर आने को कहा और बैठने के लिये एक स्टूल की ओर संकेत किया । इस बीच फोटोग्राफर स्टूडियो को खिड़कियों को खोलने लगा ताकि रोशनी और प्रकाश अंदर आ सके ।
इस बीच उसने एक मशीन को खिसकाकर स्टूडियो के बीचोबीच रखा और अपना चेहरा एक काले पर्दे के अंदर छुपा लिया जो मशीन के पीछे लटक रहा था। स्टीफेन को लगा कि फोटोग्राफर कोई प्रार्थना कर रहा है। कुछ ही क्षणों में फोटोग्राफर उस काले पर्दे से बाहर आया । उसका चेहरा गम्भीर था। उसने स्टीफेन महोदय के पास जाकर उदास स्वर में कहा — ” आपका चेहरा ठीक है।” स्टीफेन ने उत्तर दिया — ” यह तो मैं बहुत पहले से जानता हूँ — इसमें नयी बात क्या है ? ”
इस बीच फोटोग्राफर ने उसके सर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे घुमाकर पैनी निगाह से देखने लगा । उसने फिर कहा — आपका माथा मुझे एकदम पसंद नहीं है। फिर उसने स्टीफेन महोदय को थोड़ा मुँह खोलने की सलाह दी । जैसे ही स्टीफेन उसके आदेश- पालन की क्रिया सम्मान करने वाले थे उसने जोर से आवाज दी — ‘मूँह बंद कर लें।’ फोटोग्राफर का अगला आदेश था— ” आपके कान ठीक नहीं हैं— इसे थोड़ा झुकाना पड़ेगा। ‌आप अपनी आँखों की पुतलियों को, पपनियों के नीचे कर लें। अपने हाथों को अपने ठेहुने के ऊपर रखें और अपने चेहरे को थोड़ा ऊपर कर लें। अपनी छाती फुलावें और गर्दन झुका लें। अब यह पहले से ठीक है।”
इतने प्रकार के निर्देशों से स्टीफेन को झुंझलाहट होने लगी । मैं जानता हूँ कि मेरा चेहरा सुंदर नहीं है पर मेरा यह चेहरा मेरा ही है और एक ही है। अगर आपकी मशीन मेरे चेहरे को अपने भीतर समाहित नहीं कर सकती तो फिर मुझे जाने दें।
इसी बीच फोटोग्राफर ने शटर दबा दिया और कहा कि मैंने सही समय पर यह शटर दबाया। आपके चेहरे की सारी विशेषतायें फोटो में कैद हो गयीं । फोटो में जीवंतता आ गयी।
लेखक ने फोटोग्राफर महोदय से पिक्चर दिखाने का अनुरोध किया। फोटोग्राफर ने उत्तर दिया — ” अभी तो इसमें देखने को कुछ भी नहीं है। आपको इसका प्रूफ देखने के लिये शनिवार को तशरीफ लाना पड़ेगा ।
आज शनिवार का दिन था — श्रीमान स्टीफेन अत्यंत उत्सुकता लिये फोटोग्राफर की दुकान पर उपस्थित हुये । उन्होंने पूछा “क्या यह मैं हूँ ? ” फोटोग्राफर ने उत्तर दिया —” हाँ यह आपका ही फोटो है। ” पर इस चित्र की आँखों तो मेरी आँखे तो मेरी आँखों की तरह नहीं है। आपने समझा नहीं ” मैंने इन आँखों को फिर से बनाया है। ये कितनी अच्छी आयी हैं।” फिर स्टीफेन ने पूछा — और मेरी भौंहें ? ये तो आँखों के ऊपर नहीं है।” फोटोग्राफर ने कहा —सर के नीचे बालों का इस प्रकार उगना मुझे पसंद नहीं है। मैं इसे ठीक कर दूँगा और इसे संवार दूँगा।”
लेकिन मेरे मुँह के बारे में आपका क्या कहना है ? यह तो मेरा लगता ही नहीं है । श्रीमान स्टीफेन के शब्दों में कठोरता की झलक स्पष्ट थी। उस स्थिति में मैं उसका उपयोग किसी प्रकार नहीं कर सकता था।”
मिस्टर स्टीफेन के लिये इतना सुनना काफी था। उन्होंने कहा— सुनिये ! श्रीमान मैं यहाँ अपने फोटोग्राफ के लिये आया था जो असुंदर होते हुये भी मेरी तरह दिखाई दे। मैं चाहता था कि ईश्वर द्वारा दिये मेरे मुखड़े का सही- सही चित्र दिखाई दे। वह ऐसा फोटो होता जिसे मेरे मित्र , मेरी मृत्यु के बाद भी रखते और और मेरी कमी की क्षतिपूर्ति करते। अब आप इस निगेटिव को अपने पास रखें और जैसा चाहें वैसा करें।
” आप मेरे मुखड़े को दुरुस्त कर दें— मेरे ओठों को अपनी कल्पना के अनुसार बतावें , नेकटाई और वेस्टकोट सुधार कर लें और इसे अपनी कलाकृति के नमूने के रुप में अपने मित्रों को दिखाने के लिये रख लें। वे इसका मूल्य आँकेंगे। मेरे लिये तो यह बेकार है— ” एक मिठाई , जिसे मैं न खा सकता हूँ और न खिला सकता हूँ।”
लेखक की आँखों से आसूंँ बह रहे थे और वे फोटोग्राफर की दुकान से दु:ख और करुणा का भाव लिये चल दिये ।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *