10th hindi

bseb class 10th hindi book solutions – बहादुर

बहादुर

bseb class 10th hindi book solutions

class – 10

subject – hindi

lesson 6 – बहादुर

बहादुर
―――――――――
-अमरकांत
लेखक परिचय:-अमरकांत हिन्दी के सशक्त कहानीकार है। इनका जन्म जुलाई, 1925 ई० में नागरा, बलिया (उ०प्र०) में हुआ था। 1947 ई० में इन्होंने इलाहवाद विवि० से बी० ए० किया और 1948 ई. में आगरा के दै. पत्र ‘सैनीक’ के संपादकीय विभाग में नौकरी कर ली। आगरा के प्रगति लेखक संघ में सम्मिलित हुए और वहीं से कहानी लेखन की ओर अग्रसर हुए। दैनिक अमृत पत्रिका (इलाहाबाद) दैनिक भारत (इलाहाबाद), मासिक ‘कहानी’ (इलाहाबाद), तथा
‘मनोरमा’ इलाहाबाद के संपादकीय विभाग से जुड़े रहे।
अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में उनकी कहानी ‘डिप्टी कलक्टरी’ पुरस्कृत हुई थी।
कथा लेखन के कारण इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था।

रचनाएँ:- अमरकांतवी हिन्दी के चर्चिी कहानीकार हैं और इनकी अनेक कहानी का प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी निम्नलिखित कृनियाँ प्रकाशित है-
(1)जिंदगी और जॉक, (2) देश के लोग, (3) मौत का नगर, (4) मित्र-मिलन, (5) कुताल आदि कहानी संग्रह है।
(1) सूखा पला, (2) भाकाश पक्षी, (3) कालं-उजले दिन, (4) सुखजीयो, (5) बीद चीवार, (6) प्रम सपिका आदि उपन्यान हैं। उनाने ‘वानर-सेना’ नामक एक बाल उपन्यास भी लिखा है।

* विशेषताएं :-अमरकान की कहानियों में मध्यवर्ग, विशेषकर निम्नवर्ग के जीवनानुभव और जौजिविण का बेहद प्रभावशाली इंग मे वित्रण किया गया है।
A का व्यकिसन फक्कड़पन लिए हुए है ठीक उसी प्रकार उनकी लेखनी में कहपन है। इनकी कहानियों में मानवीय सुख दुख का सफल चित्रण हुआ है। लोकजीवन के मुहावरों और देशज शब्दों के प्रयोग से उनको भाग में चमत्कार आ गया है। इनके पाठक माजी भाषा और शब्द प्रयोग के प्रति काफी आत्मीयता रखते हैं।
अमरकांत ने अपनी कहानियों में निर्णन वर्ग को जीवन की विसंगतियों को उकेरा है।
कहानी का सारांश-बार’ अमरकांस को एक सशान कहानी है। इसमें मझोले शहर के नौकर को लाता का बनी बेबाकी से चित्रण हुमा है। वहादुर एक निम्न मध्य वर्ग का नेतृत्व करता है। यह एक परिवार में नैकर है। नेपाली युवक को गे अगोगों के मर, होटलों में खेलन का काम करते हैं उन्हें बिहार उ.प्र. में बहादुर काला संबोधित किया जाता है। नेपालीयुवक के लिए ‘बहादुर’ शब्द अत्यधिक प्रयोग होता है। इस कहानी का पात्र बहादुर भी नेपाली मुल्क का ही युवक है। बहादुर नेपाल का रहनेवाला पुक्क भा। वह एक नेपाली गनई गोरखा था। उसके पिता युद्ध में मारे गए थे। उसके परिवार का भरण पोषण उसको विध माँ ही करती थी। उसकी माँ बड़ी गुल्मैल यो उसकी माँ बहादुर को प्रतिदिन पारनी थी। उसकी माँ की हादिक इच्छा थी।
कि वह (बहादुर) घर के काम-काज में स्थाए। किन वह गैर-जिम्मेवार था। यह प्रतिदिन घर छोड़कर पकड़ पर, जंगलों में निकल जाता था। वहाँ पेड़ों पर चढ़कर निड़ियों के घोसले में हाथ डालकर उसके यर्थं को पकड़ता नहीं तो फल तोबकर खाता कभी कभी वह पशुओं की चराने के लिए जंगल ले जाता था।
यह कहानी बहादुर और साधारण परिवार के लोगों से संबंधित है। इस कहानी के द्वारा अमरकांतजी में निम्न मध्यम वर्ग के परिवार की संस्कृति और मानसिक स्थितियों का चित्रण किया है। इस कहानी में मध्यम वर्ग की मानसिकता रहन-सहन, आचार-विचार, व्यवहार एवं
गैर जिम्मेवारों का चित्र उभरकर माना है। बहादुर के परिज पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने उसको विवशता जीवटता, कर्मठता और ईमानदारी का सफल चित्रण किया है अनेक समस्याओं उसका सही रेखांकन इस कहानी में हुआ है।
वैचारिक मतभेदों, शंकाओं, ठरक और लापरवाही से भरा हुभा जो मध्यम वर्ग की स्थिति है उसका सही रेखांकन इस कहानी में हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण-संबंधी प्रश्न
――――――――――――――――――――――
1. सहसा में काफी गंभीर हो गया था ,जैसा कि उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए, जिस पर एक भारी दायित्व गया हो।वह सामने खड़ा था और आंखों में बुरी तरह मलका रहा था। 12―13 वर्ष के उम्र। ठिगना चकईठ शहीद, गोरा रंग और चपटा मुँह।वह सफेद आंधी बाँह ही सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले में स्काउटो की तरह एक रुमाल बंधा था। उसको घेरकर परिवार के अन्य लोग खड़े थे। निर्मला चमक सी दृष्टि से सभी लड़कों को देखती और कभी मुझको और अपने भाई को निश्चय ही वह पंच-बराबर हो गई थी

(क) यह अवतरण किस पाठ से लिया गया है ?
(क) विष के दाँत
(ख) जित-जित मैं निरखत हूँ
(ग) मछली
(घ) बहादुर

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ख) बिरजू महाराज
(ग) अशोक वाजपेयी
(घ) अमरकांत

(ग) नवागन्तुक कौन था? उसका संक्षिप्त चित्रण करें।

(घ) निर्मला कौन थी? और वह पंच-बराबर कैसे हो गई थी?
उत्तर-(क)-(घ) बहादुर
(ख)-(घ) अमरकांत
(ग) नवागन्तुक एक नेपाली युवक था। वह माँ द्वारा मार खाने के बाद अपने घर से भाग गया था। लेखक के साले साहब उस नौकर को लाये थे। उसकी अवस्था बारह-तेरह वर्ष की थी। उसका कद ठिगना और चकाठ था। गोरा रंग और चपटा मुँह वाला वह नवागन्तुक सफेद नेकर पहने हुआ था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बँधा हुआ था।

(घ) निर्मला लेखक की पत्नी थी। लेखक के सभी भाइयों के पास नौकर थे। अपनी गोतनियों एवं रिश्तेदारों की तरह उसे भी नौकर रखने की दिलीइच्छा थी। नौकर पाकर वह भी उनके बराबर हो गई थी।

2. मेरे सभी भाई और रिश्तेदार अच्छे ओहदों पर थे और उन सभी के यहाँ नौकर थे। जब मैं बहन की शादी में घर गया तो वहाँ नौकरों का सुख देखा। मेरी दोनों भाभियाँ रानी की तरह बैठकर चारपाइयाँ तोड़ती थीं, जबकि निर्मला को सबेरे से लेकर रात तक खटना पड़ता था। मैं ईर्ष्या से जल गया। इसके बाद नौकरी पर वापस आया तो निर्मला दोनों जून ‘नौकर-चाकर’ की माला जपने लगी। उसकी तरह अभागिन और दुखिया और न कोई इस दुनिया में होगा? वे
दूसरे होते हैं जिनके भाग्य में नौकर-सुख होता है।

(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ?
(क) शिक्षा और संस्कृति
(ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) बहादुर
(घ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं?
(क) अमरकांत
(ख) मैक्समूलर
(ग) अशोक वाजपेयी
(घ) यतीन्द्र मिश्र

(ग) इस अवतरण में किस प्रकार की भावना की अभिव्यक्ति है?
(घ) ‘चारपाइयाँ तोड़ने’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-(क)-(ग) बहादुर
(ख)-(क) अमरकांत
(ग) प्रस्तुत अवतरण में निम्न मध्य-वर्ग की हीन भावना की अभिव्यक्ति है, जिससे दिखावे की भावना का उदय होता है।
(घ) ‘चारपाई तोड़ना’ मुहावरा है जिसका अर्थ कोई काम-धाम न कर आराम-मौज करना।
3. उसके स्वर में एक मीठी झनझनाहट थी। मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मैंने उसको कण हिदायतें दीं। शायद यह कि वह शरारतें छोड़कर ढंग से काम करें और घर को अपना घर समझे।
इस घर में नौकर-चाकर को बहुत प्यार और इज्जत से रखा जाता है। जो सब खाते-पहनते हैं, वही नौकर-चाकर खाते-पहनते हैं। अगर वह यहाँ रह गया तो ढंग-शऊर सीख जाएगा, घर के और लड़कों की तरह पढ़-लिख जाएगा और उसकी जिंदगी सुधर जाएगी। निर्मला ने उसी समय कुछ व्यावहारिक उपदेश दे डाले थे। इस मुहल्ले में बहुत तुच्छ लोग रहते हैं, वह न किसी के यहाँ जाए और न किसी का काम करे। कोई बाजार से कुछ लाने को कहे तो वह ‘अभी आत हूँ’ कहकर अन्दर खिसक जाए। उसको घर के सभी लोगों से सम्मान और तमीज से बोलना चाहिए। और भी बहुत-सी बातें। अन्त में निर्मला ने बहुत ही उदारतापूर्वक लड़के के नाम में से ‘दिल’ शब्द उड़ा दिया।

(क) यह अवतरण किस-पाठ से लिया गया है?
(क) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) बहादुर
(घ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) अमरकांत
(ख) विनोद कुमार शुक्ल
(ग) भीमराव अंबेदकर
(घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी

(ग) निर्मला ने दिलबहादुर को कौन-कौन-सी व्यावहारिक शिक्षा दी?
(घ) निर्मला ने दिलबहादुर को बहादुर कैसे बना दिया?
उत्तर-(क)-(ग) बहादुर
(ख)-(क) अमरकांत
(ग) निर्मला संभवतः व्यावहारिक शिक्षा देने में निपुण थी। उसने दिलबहादुर से कहा कि इस मुहल्ले में वह किसी के घर आना-जाना न करे। बाहर का कोई व्यक्ति कोई सामान लाने के लिए कहे तो अभी आया कहकर घर में घुस जाये। घर के सभी सदस्यों के साथ अच्छी तरह से व्यवहार करे।
(घ) निर्मला को दिलबहादुर कहने में अजीबोगरीब लगता था। व्यावहारिक कुशलता एवं अच्छा लगने के उद्देश्य से उसने दिलबहादुर के नाम से दिल को हटाकर बहादुर नाम दे डाला दिलबहादुर से वह बहादुर बन गया।
4. दिन मजे में बीतने लगे। बरसात आ गई थी। पानी रुकता था और बरसता था। मैं अपने को बहुत ऊँचा महसूस करने लगा था। अपने परिवार और सम्बन्धियों के बड़प्पन तथा शान-बान पर मुझे सदा गर्व रहा है। अब मैं मुहल्ले के लोगों को पहले से भी तुच्छ समझने लगा। मैं किसी से सीधे मुँह बात नहीं करता। किसी की ओर ठीक से देखता भी नहीं था। दूसरों के बच्चों को मामूली-सी शरारत पर डाँट-डपट देता। कई बार पड़ोसियों को सुना चुका था जिसके पास कलेजा है, वही आजकल नौकर रख सकता है। घर के सवांग की तरह रहता है। निर्मला भी सारे
मुहल्ले में शुभ सूचना दे आई थी-आधी तनख्वाह तो नौकर पर ही खर्च हो रही है, पर रुपया-पैसा कमाया किसलिए जाता है? वे तो कई बार कह ही चुके थे तुम्हारे लिए दुनिया के किसी कोने से नौकर जरूर लाऊँगा… वही हुआ।

(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ?
(ख) श्रम विभाजन और जाति प्रथा
(ग) विष के दाँत
(घ) परम्परा का मूल्यांकन

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) गुणाकर मूले (ख) रामविलास शर्मा
(ग) नलिन चिलोचन शर्मा (घ) अमरकांत

(ग) लेखक की पत्नी निर्मला ने पड़ोसियों को क्या खबर सुनाई थी?
(घ) घर में नौकर किस तरह होता है?
उत्तर-(क)-(क) बहादुर
(ख)-(घ) अमरकांत
(क) बहादुर
(ग) नारी स्वभाव से आत्मप्रशसंक होती है। निर्मला भी इससे वंचित नहीं रह पाती है। वह पड़ोसियों के समक्ष अपनी बात सर्वोपरि रखना चाहती है। वह कहती है कि आधी कमाई तो नौकर पर ही खर्च हो जाती है।
(घ) घर में नौकर-सवांग की तरह होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
―――――――――――――
1. लेखक को क्यों लगता है कि जैसे उस पर एक भारी दायित्व आ गया है?
उत्तर-पत्नी की ‘नौकर’ की रट के कारण लेखक को लगता है कि उस पर किसी तरह ‘नौकर’ रखने का दायित्व आ गया है।
2. लेखक को क्यों लगता है कि नौकर रखना जरूरी हो गया है?
उत्तर-बहन की शादी में भाभियों को नौकर का सुख उठाते और पत्नी की सबेरे से शाम तक की खटनी देखकर लेखक को लगता है कि नौकर रखना जरूरी हो गया है।
3. किन कारणों से बहादुर ने एक दिन लेखक का घर छोड़ दिया?
उत्तर-दिन-रात लेखक के पुत्र द्वारा पिटाई, मालकिन की तमाचाबाजी और अन्नतः चोरी के झूठे आरोप के कारण बहादुर लेखक का घर छोड़ दिया।
4. बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा क्यों होता है?
उत्तर-बहादुर की तरह कर्मठ, ईमानदार नौकर न मिलने के कारण घर के सब व्यक्ति को पछतावा होता है।
5. निर्मला को बहादुर के चले पर किस बात का अफसोस हुआ?
उत्तर-बहादुर पर चोरी का आरोप लगाने और कभी बेबात की बात पर डाँटने और मारने और उसके ऐसा परिश्रमी नौकर न मिलने का अफसोस हुआ।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
पाठ के साथ
―――――――――
प्रस 1. लेखक को क्यों लगता है कि जैसे उसपर एक भारी दायित्व आ गया हो?
उत्तर-लेखक का कहना है कि किसी उत्तरदायित्व से जब कोई आदमी बँध जाता है, तब उसमें गंभीरता और जिम्मेवारी आ जाती है। नौकर के लिए लेखक की पत्नी निर्मला बार-बार उलाहना के साथ बातें करती थीं। वह-
बार-बार लेखक को भला-बुरा कहती थी। घर में लेखक की भाभियों को जो सुख था वह निर्मला को नहीं था क्योंकि निर्मला सारे घर का काम-काज करती थी और थक जाती थी। इसी कारण निर्मला लेखक को भला-बुरा कहती थी। नौकर के लिए रट लगाया करती थीं। नौकर की व्यवस्था का दायित्व लेखक पर आ गया था इसी कारण लेखक अचानक गंभीर हो गए थे क्योंकि नौकर लेकर उनके साले साहब आ गए थे। परिवार के लोगों के समक्ष एक
नेपाली मूल का लड़का खड़ा था। नौकर रखना अनिवार्य हो गया था। नौकर की तनख्वाह भोजन, वस्त्र सारी जिम्मेवारी लेखक पर आ गयी थी। लेखक के कंधों पर उत्तरदायित्व का बोझ आ गया था जिसके कारण लेखक सहसा गंभीर हो गए थे। सारा जिम्मेवारी तो सँभालती थी।

प्रश्न 2. अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादुर का वर्णन कीजिए।
उत्तर-बहादुर नामक एक नेपाली मूल के एक लड़के को लेकर लेखक के साले उनके घर आए थे। लेखक को एक नौकर की आवश्यकता थी। जब बहादुर पहली बार आया तो वह लेखक के परिवार की सदस्यों के समक्ष खड़ा था। वह आँखें झपका रहा था। उसकी उम्र 12-13 वर्ष की थी। उसका कद ठिगना चकइठ था। रंग गोरा और मुँह चपटा था। वह सफेद नेकर आँधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले में स्काउटों की
तरह एक रूमाल बंधा था। उसे घेरकर सारे परिवार के सदस्य खड़े थे। लेखक की पत्नी निर्मला काफी खुश थी। वह कभी लड़के को तो कभी लेखक और कभी अपने भाई को आश्चर्यचकित होकर निहारती थी।

प्रश्न 3. लेखक को क्यों लगता था कि नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था?
उत्तर-लेखक के सभी भाइयों, रिश्तेदारों के यहाँ नौकर थे किन्तु लेखक के यहाँ नौकर नहीं था। जब बहन की शादी में लेखक घर गया तो वहाँ नौकरों का सुख देखा। लेखक की दोनों भाभियाँ रानी की तरह चारपाई पर बैठकर दिन काटती थी। जबकि निर्मला, लेखक की पत्नी को सुबह-शाम खटना पड़ता था। लेखक घर की स्थिति से ईर्ष्या करने लगे। नौकर के लिए बार-बार निर्मला की डाँट और झिड़की सुननी पड़ती थी। इसी कारण घर में नौकर रखना लेखक को जरूरी हो गया था।
प्रश्न 4. साले साहब से लेखक को कौन-सा किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा?
उत्तर-जब लेखक को नौकर की जरूरत थी तब उनके साले एक गोरखा नेपाली युवक को नौकर के रूप में लेखक के घर लाए थे। उसी वक्त अपने साले द्वारा उस नौकर के बारे
जो लेखक के लिए असाधारण विस्तार था, धैर्य के साथ सुनना पड़ा। लेखक के साले ने नौकर की नख-शिख वर्णन से सबको उकता दिया। नौकर एक नेपाली युवक था। उसके पिता की मृत्यु युद्ध में हो चुकी थी। उसकी माँ गुस्सैल थी। उसकी माँ नेपाली युवक को बहुत मारती थी। वह
घर में काम न करके जंगल में भाग जाता था। वहाँ घोसलों में से पक्षियों के अंडे, बच्चे पकड़ता, भूख लगने पर फल खाता, कभी-कभी पशुओं को लेकर चराने के लिए जंगल भी जाता। उसे एक भैंस थी जिसे उसकी माँ बहुत मानती थी। लेकिन वह छोकरा भैस को प्रतिदिन पीटा करता
था। एक दिन भैंस की इतनी पिटाई कर दी कि वह खेत में काम करती उसकी माँ के पास चली गयी और उसे अपने पास पाकर उसकी माँ क्रोधित हो गयी। इसी शंका के कारण उसने अपने बच्चे की इतनी पिटाई की कि वह घी के घड़े से दो रुपये चुराकर गोरखपुर शहर भाग गया।
यही असाधारण विस्तार लेखक को अपने साले से सुनना पड़ा।

प्रश्न 5. बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था?
उत्तर-कभी-कभी बहादुर पशुओं को लेकर जंगल में चराने जाता था। एक दिन उसने अपनी माँ की प्यारी भैंस को इतना पीटा कि वह भागकर खेत में काम करती हुई उसने माँ के निकट पहुँच गयी। भैंस को खेत में देखकर बहादुर की माँ मम-ही-मन समझ गयी कि इसे बहादुर ने जरूर पीटा है। वह इस बात पर बहुत क्रोधित हो गयी और डंडा से बहादुर की खूब पिटाई कर दी। बहादुर खेत में पड़ा-पड़ा कराहता रहा। बहादुर का मन घर से उचट चुका था। वह रातभर जंगल में ही रहा। जब सबेरा हुआ तो वह घर आया और चोरी-चोरी घर में घुसकर घी की हड़िया से दो रुपये चुराकर शहर को भाग गया।

प्रश्न 6. बहादुर के नाम से ‘दिल’ शब्द क्यों उड़ा दिया गया? विचार करें।
उत्तर-जब लेखक के साले साहब दिलबहादुर को लेकर लेखक के घर आए तो लेखक ने दिलबहादुर से पूछा-तुम्हारा नाम क्या है? उसने दिलबहादुर नाम कहा। उसके स्वर में मिठास थी। लेखक ने उसे घर में रहने, काम करने, बातचीत करने का तौर-तरीका समझाया और जीवन
में पढ़-लिखकर कुछ बन भी जाएगा।-ऐसी ही सीखें देते हुए लेखक ने दिलबहादुर को कुछ हिदायतें भी दीं।
ठीक उसी वक्त लेखक को पत्नी निर्मला ने व्यावहारिक ज्ञान की कुछ बातें दिलबहादुर को बतायी थीं। उसने कहा कि इस मुहल्ले में नीच विचार के लोग रहते हैं। वह किसी दूसरे के यहाँ न जाए न खाए- तुझे मनाही है, दूसरे किसी की बात ने सुने न उनका कहना माने। लोगों के साथ सम्मान और तमीज से बातें करें। ऐसे ही बहुत-सी बातों को सौख देते हुए अंत में निर्मला ने बड़ी ही उदारता के साथ उसके नाम से ‘दिल’ शब्द हटा दिया और केवल ‘बहादुर’ से ही
संबोधन करने लगी। दिल शब्द उड़ाने के पीछे निर्मला का नारी स्वभाव और मनोवैज्ञानिक सोच काम कर रहा
था। दिल से कुछ भिन्न अर्थ गाँव या मुहल्ले के लोग लगाते। वह दिल लगाने में बहादुर भी हो सकता है ऐसा लोग मजाक भी करते। इन्हीं सब मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आचार-विचार में कहीं गंदगी नहीं फैले, मजाक की बात न हो जाए, इन्हीं सब कारणों से निर्मला ने दिल शब्द को
हटाकर बहादुर रहने दिया।

व्याख्या करें:-
प्रश्न 7.(क) उसकी हँसी बड़ी कोमल और मीठी थी, जैसे फूल की पंखुड़ियाँ बिखर गयीं हों।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ शीर्षक कहानी से ली गई है। इन पंक्तियों का संदर्भ बहादुर से जुड़ा हुआ है।
जब लेखक शाम को दफ्तर से घर आते थे तो बहादुर सहज भाव से उनके पास आता था और उन्हें एक बार देखकर सिर झुका लेता था तथा धीरे-धीरे मुस्काराने लगता था। घर की मामूली-सी घटनाओं को लेखक से सुनाया करता था। कभी कहता-बाबूजी, बहिनजी की सहेली
आयीं थी तो कभी कहता बाबूजी, भैया सिनेमा गया था। इसके बाद वह ऐसी हँसी हँसता था कि लगता था-जैसे वह कोई बहुत बड़ा किस्सा कह दिया हो। उसके निश्छल, निष्कलुष हाव-भाव से प्रभावित होकर ही लेखक ने लिखा है-उसकी हरी बड़ी कोमल थी और मीठी थी-लगता
था फूल की पंखुड़ियाँ बिखरी हुई हो।
इस प्रकार उक्त पंक्तियों में लेखक ने बहादुर की निश्छलता निर्मलता ईमानदारी और आत्मीय व्यवहार की यथोचित रेखांकन किया है। बहादुर बच्चा था। उसके होठों पर कोमलता और मिठास थी फूलों के खिलने जैसा उसकी खिलखिलाहट थी।
इस प्रकार उक्त पंक्तियों में लेखक ने बहादुर के कोमल भावों व्यवहारों, ईमानदारी, आत्मीय संबंधों का सटीक वर्णन किया है।
(ख) पर अब बहादुर से भूल-गलतियाँ अधिक होने लगी थीं।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुरी’ कहानी पाठ से ली गयी हैं। इसका संदर्भ बहादुर से जुड़ा हुआ है।
बहादुर को लेखक का पुत्र किशोर बराबर पीटा करता था। कुछ दिन बीतने पर लेखक की पत्नी भी बहादुर को मारने-डाँटने लगी थी। लेखक को ऐसा विश्वास था कि हो सकता है-घर में मार खाने, गाली-सुनने के कारण बहादुर दुखी होकर रहने लगा था और इसी कारण कई उससे
भूलें हो जाती होंगी। ऐसी स्थितियों को लेखक कभी-कभी रोकना चाहते थे। लेकिन बाद में चुप हो जाया करते थे क्योंकि उनके विचार में नौकर-चाकर तो मार-पीट खाते ही रहते हैं, ऐसा ही भाव था।
इस कारण वे भी बहादुर की मदद नहीं कर पाते थे और बहादुर दीन-हीन रूप में, असहाय बनकर लेखक की पत्नी और पुत्र से डाँट-मारपीट खाता था और सहता था।
इन पंक्तियों का मूल आशय यह है कि लेखक की मानसिकता भी दो तरह की थी। वे भी सबल की आलोचना नहीं कर पाते हैं। गरीबों के प्रति नौकर के प्रति उनका भी भाव दोयम दर्जे का था। इसी कारण बहादुर की मानसिक स्थिति संतुलित नहीं रह पाती थी।
(ग) अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो संतोष हो जाता।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी पाठ से ली गयी है। इन पक्तियों का संबंध उस काल से है जब बहादुर चोरी के इल्जाम और मारपीट, गाली-गलौज से तंग आ चुका था। अचानक सिल उठाते वक्त वह गिर गया और दो टुकड़ा हो। अब क्या था―बहादुर घर छोड़कर भाग गया। उसे खोजने के लिए लेखक का लड़का किशोर शहर की कोना-कोना छान डाला लेकिन बहादुर का कहीं अता पता नहीं था। वह बहादुर के लिए बहुत दुःखीं था। वह उसके सुख-दुख को यादकर माँ से कह रहा था-माँ, अगर वह मिल जाता है। मैं उससे माँफी माँग लेता किन्तु अब उसे नहीं मारता पीटता, गालियाँ नहीं देता। उसने हमलोगों को बहुत सुख दिया। बहुत सेवा की। गलती हम लोगों से ही हुई। माँ अगर वह कुछ चुराकर भी ले गया होता तो हमलोगों को संतोष होगा लेकिन वह तो हमलोगों का क्या अपना भी सब सामान छोड़ गया।
इन पत्तियों से यही आशय निकलता है कि आदमी को सद्व्यवहार करना चाहि दुर्व्यवहार के कारण कष्ट भोगना पड़ता है। आज बहादुर के साथ अच्छा व्यवहार किया गया है। तो वह नहीं भागता। उसके भाग जाने से हमलोगों का कष्ट बढ़ गया। परिणाम का ज्ञान कहानी खत्म हो जाने के बाद होता है। बहादुर की ईमानदारी, नेकनियती का पता उसके भाग जाने में बाद हुआ। यह कुछ भी समान लेकर नहीं भागा था। बल्कि अपना भी समान छोड़ दिया था
सचमुच में वह नौकर के रूप में भला आदमी था।
(घ) यदि मैं न मारता, नो शायद वह न जाता।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी पाठ से ली गयी है। यह पंक्ति बहादुर से संबंधित है।
लेखक बहादुर के भाग जाने पर अफसोस करता है और कहता है कि अगर मैं, उसे नई मारता तो वह भागता नहीं, एसा मेरा विश्वास है। लेखक को अपने आप पर, अपने द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार पर खेद होता है।
जब निर्मला बहादुर के लिए रोने लगती है तब ये बाक्य लेखक उसी समय चारपाई के बैठकर सिर झुकाकर कह रहे है। लेखक इस घटना पर रोना चाहता है किन्तु भीतर ही भीतर छटपटा कर रह जाता है। एक छोटी सी भूल जीवन में कितना दुख दे जाती है-अब लेखक को समझ में बात आती है। वह पहले से सचेत रहता तो ऐसी घटना कभी नहीं घटती।
इन पंक्तियों का आशय यह है कि आदमी के साथ सद्व्यवहार होना चाहिए। संदेह के बीज बड़े भयानक होते है। उनका प्रतिफल भी कष्टदायक होता है। आज बहादुर के साथ दुर्व्यव्यबहार मारपीट चाहे गाली-गलौज नहीं किया जाता संदेह के आधार पर चोर नहीं ठहराया जाता तो का
नहीं भागता। अतः, संदेह और दुर्व्यवहार से इन्सान को बचना चाहिए।

प्रश्न 8. काम-धाम के बाद रात को अपने बिस्तर पर गए बहादुर का लेखक किन शब्दों में चित्रण करता है?
उत्तर-रात में काम-धाम कसे के बाद बहादुर भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बंसखट पर अपना बिस्तर बिछाता था। यह बिस्तर पर बैठ जाता और अपनी जेब से कपड़े की गोल- सी नेपाली टोपी पहनकर एक छोटे से आइने में बंदर की तरह अपना मुंह देखता था। वह बहुत खुश नजर आता था। इसके बाद जेब से कुछ चीजों को निकालकर बिस्तर पर सजा देता था जिनमें कुछ गोलियाँ, पुराने ताश की एक गड्डी, कुछ खूबसूरत पत्थर के टुकड़े, लेड, कागज को न
रहती थीं।
वह कुछ देर तक उन चीजों के साथ खेलता था और पहाड़ी गीत गुनगुनाया करता । लेखक उन पहारी गीतों को समझ नहीं पाता था। लेकिन उस गोत से जो उदासी उसके चेहरे पर, कमरे में फैल जाती थी- उससे लेखक को लगता था कि पहाड़ की निर्जनता में खोए हुए बिछुड़े हुए किसी साथी को वह अपने गीतों के माध्यम से बुला रहा है।

प्रश्न 9. बहादुर के आने से लेखक के घर और परिवार के सदस्यों पर कैसा प्रभाव पड़ा?
उत्तर-बहादुर के लेखक के घर आने से उत्साहपूर्ण वातावरण हो गया। सभी सदस्यों को उसकी सेवा से प्रसन्नता हो रही थी। वह अपने हँसमुख स्वभाव और मेहनत के बल पर सबका दिल जीत लिया था। जिस प्रकार किसी तोता मैना-चाहे कुत्ता को पहली बार पालने से जो खुशी
होती है, वहीं खुशी बहादुर के घर में आने से हुई। मुहल्ले के सभी लड़के उससे हँस-हँसकर बातें करते और कई तरह का प्रश्न पूछते।
बहादुर अपनी मेहनत, सेवा, कर्त्तव्यनिष्ठा से लेखक के पूरे परिवार को आकर्षित कर लिया था। बहादुर की सेवा-भावना और दिनचर्या से सभी सदस्य प्रसन्न थे। सबको बहादुर के कारण आराम मिल रहा था। इसी कारण बहादुर की उपस्थिति से घर में खुशियों का माहौल छा गया।

प्रश्न 10. किन कारणों से एक दिन बहादुर ने लेखक का घर छोड़ दिया?
उत्तर-ऐसे तो शुरू-शुरू में बहादुर की सेवा, भक्ति से परिवार के सभी लोग प्रसन्न थे। लेकिन धीरे-धीरे लेखक के पुत्र द्वारा मार-पीट करने गाली-गलौज के कारण बहादुर दुखी रहने लगा था।
आगे चलकर लेखक की पत्नी भी यदा-कदा बहादुर को चपत लगा दिया करती थी। इस बात पर भी बहादुर को पीड़ा होती थी किन्तु लेखक के प्रति बहादुर आस्था रखता था, इसी कारण वह घर छोड़ना नहीं चाहता था। उदासी के बीच तो दिन कट ही रहे थे लेकिन एक दिन लेखक के रिश्तेदार लोग लेखक के घर आए और घर में चहल-पहल हो गया। एक दिन अचानक रिश्तेदार की पत्नी ने बहादुर को ग्यारह रुपये चोरी का आरोप लगा दी। सभी ने बारी-बारी से बहादुर से रुपये के बारे में पूछा किन्तु बहादुर तो निर्दोष था। वह बलात् चोरी का हमेशा प्रतिकार करता रहा। सबने उसे प्रताड़ित, गाली-गलौज, मारपीट किया। अंत में लेखक भी काफी क्रोधित होकर चपत लगा दी। बहादुर बार-बार नहीं नहीं कहता रहा। कुत्ते-सा दुर्व्यवहार से वह काफी दु:खी हो चुका था।
एक दिन वह सिल-लोढ़ा उठा रहा था कि सिल गिरकर खंडित हो गया।
इन्हीं घटनाओं के कारण अंत में दुखी और भयभीत होकर बहादुर घर से भाग गया।

प्रश्न 11. बहादुर पर ही चोरी का आरोप क्यों लगाया जाता है? और उसपर इस आरोप का क्या असर पड़ता है?
उत्तर-बहादुर पर चोरी का इल्जाम इसीलिए लगाया जाता है कि रिश्तेदार की पत्नी ने बहादुर पर ही चोरी का सुबहा किया था। सभी अपने निकट के रिश्तेदार थे। सभी लोग अपना परिवार थे। बहादुर ही गैर था और नौकर था इसी कारण एक स्वर से सबने बहादुर पर ही चोरी का इल्जाम लगाया। इस इल्जाम का प्रतिफल अच्छा नहीं हुआ। सबने बहादुर को मारा-पीटा, गाली-गलौज किया। उसे अधिक प्रताड़ित किया। बहादुर इस अमानवीय दुर्व्यवहारों से तंग आ चुका था। सहसा उससे एक दिन उठाते ही सिल गिर कर टूट गयी। इस भय से भी वह डर गया।
इन्हीं सब कारणों के कारण बहादुर लेखक का घर छोड़ दिया। इस प्रकार चोरी का इल्जाम लगाने से अच्छा प्रतिफल नहीं हुआ।

प्रश्न 12. घर आए रिश्तेदारों ने कैसा प्रपंच रचा और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर-लेखक के घर आए रिश्तेदारों ने बहादुर पर चोरी का इल्जाम लगाया। रिश्तेदार की पत्नी ने ग्यारह रुपये मात्र की चोरी बहादुर पर लगा दी जिससे घर में कुहराम मच गया। सब ने बहादुर को मारा-पीटा, गाली दिया। लेकिन बहादुर तो ईमानदार नौकर था। वह अपने वचन से टस से मस नही हुआ। वह बराबर चोरी के इल्जाम का प्रतिकार करता रहा।किसी ने उसकी बाते नही सुनी। सबने उसे प्रताड़ित किया। डाँटा-फटकाए। लेखक ने भी अंत में बहादुर पर चपत चला दी। बहादुर अंत में टूट गया। एक दिन उससे पत्थर की सील भी हाथ से छूटकर नीचे गिर गया और दो खंड में विभक्त हो गया। यह भय भीड़ से और संदेह में डाल दिया। अंत में काफी दु:खित और प्रताड़ित होने के कारण वह लेखक के घर से भाग गया।
इस प्रकार रिश्तेदारों द्वारा चोरी का इल्जाम लगाने से परिणाम दुःखद रहा। सभी लोग दुखी हो गए। घर की शांति खत्म हो गयी।

प्रश्न 13. बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा क्यों होता है?
उत्तर-बहादुर के चले जाने के बाद सबको पछतावा इसीलिए होता है कि अब घर में सेवा करनेवाला कोई आदमी नहीं है। बहादुर के चले जाने के कारण अब विश्वसनीय नौकर अभाव हो गया। वह हँसमुख, मिलनसार और मेहनती नौकर था । वह सदैव सेवा में सुबह से शाम तक लगा रहता था। इस प्रकार बहादुर के चले जाने के कारण सबको पछतावा होता है।
बहादुर घर का एक भी सामान नहीं आई और न अपना सामान हो ले गया है। इस उसकी ईमानदारी काव्य निष्ठता, त्याग की भावना झलकती हैं। यही कारण है कि सभी लोग को उसके चले जाने का पछतावा है।

प्रश्न 14.) बहादुर. (2) किशोर, (3) निर्यन और (4) कथावाचक का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-(1) बहादुर-बहादुर का चरित्र चित्रण बहादुर एक नेपाली नवयुवक है। यह गोरखा मूल का है। वह हँसमुख और मिलनसार है। वह कर्मठ नौकर है। वह ईमानदार भी है। अपनी गरीबी और माँ द्वारा पीटे जाने के कारण घर से शहर की ओर भागकर आता है। जहाँ वह एक साहब के घर नौकर के रूप में काम करता है।
उनकी दिन-रात की सेना में परिवार के सभी लोग अति प्रसन्न रहते हैं। वह घर की मालकिन के सेवा में सदा तत्पर रहता है।
किशोर द्वारा पीटे जाने पर भी यह घर से नहीं भागता। वह लेखक की सेवा में तत्पर रहता है। वह लेखक शरमाता भी है। वह खुलकर उतनी बातें नहीं करता। लेकिन कभी-कभी शाम को किशोर के सिनेमा जाने की चर्चा लेखक से कर देता है। लेखक को लड़की की सहलियों के आने की भी चर्चा करता है।
रिश्तेदारों द्वारा चोरी का इल्जाम लगाए जाने पर भी वह अपनी दृढ़ता से नहीं करता वह बराबर चोरी नहीं करने पर जोर देता रहा उनकी बातें किसी ने नहीं सुनी। सब ने उसे मारा-पीटा प्रताड़ित किया किंतु वो झूठ नहीं बोला वह लोगों के व्यवहार से भीतर ही भीतर टूटने लगा और कुंठित तथा उदास रहने लगा।
अंत में सील के टूट जाने के कारण वह और भयभीत हो जाता है। अचानक लेखक के घर छोड़कर दूर चला जाता है। वह अपनी निर्भीकता, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश कर सबको पछताने के लिए विवश कर देता है। सबको उसके चरित्र से अंत में ज्ञान होता है कि वह ईमानदार, नेक और सच्चा सेवक था।
(2)किशोर― लेखक का बेटा है वह नए जमाने का युवक है। वह बराबर अपने मित्रों के साथ सिनेमा जाता है घूमने फिरने का उसे शौक है। वह एक अनुशासन-हीन और गैर-जिम्मेवार लड़का है उसे शालीनता भी नहीं आती और छोटी सी बात पर क्रोधित हो जाता है और गाड़ी ठीक से नहीं धोने उसने का बहाना कर बहादुर की पिटाई करता है।वह उसे गालियां भी देता है वह रात-दिन बहादुर को पीटता रहता है। पिता के समझाने पर भी वह बातें नहीं मानता रिश्तेदारों द्वारा चोरी का इल्जाम लगाए जाने पर भी व संयम नहीं रखता और बहादुर की पिटाई कर देता।
जब बहादुर आगे आकर लिखा था घर त्याग देता है तब उसकी कमी का एहसास सब को होता है। उसकी सेवा की याद कर किशोर भी पछताता है। किशोर अपनी मां से उसकी ईमानदारी की चर्चा करता है और कहता है कि मैं वह कुछ चुरा कर भी ले गया होता तो संतोष होता क्योंकि उसने सेवा द्वारा हम लोगों की बहुत आराम दिया था।
वह यानी किशोर बहादुर के लिए शहर का कोना-कोना छान मारता है कि बहादुर कहीं नजर नहीं आता है। वह अपने पूर्व किए गए दुर्व्यवहार पर पछताता है और बहादुर के लिए अफसोस प्रकट करता है।
किशोर अपनी मां से अंत में कहता है कि मां अगर बहादुर भी आ जाता तो मैं उसे पकड़ लेता तथा कभी ना जाने देता। इस प्रकार की सुर का मन भी पश्चाताप से भर जाता है किशोर के भीतर भी प्यार की जगह लेना बहादुर के लिए थी वह खत्म हो जाती है। वह बहादुर की इमानदारी की दाद देता है और झूठे इल्जाम के लिए अफसोस प्रकट करता है।
(3)निर्मला― निर्मला लेखक की पत्नी है वह निश्छल निर्मल मन की नारी है। वह जब घर के कामकाज से थक जाती है तब पति से एक नौकर का आग्रह करती है। लेखक के साले जब नौकर की व्यवस्था कर देते हैं तब वह बहुत खुश होती है। नौकर के द्वारा उसे घरेलू कामकाज में काफी मदद मिलती है।
बहादुर नमक नौकर जो नेपाली मूल का है। निर्मला की सेवा में सदैव तत्पर रहता है वह निर्मला के प्रति आस्थावान है निर्मला एक सुलक्षणा नारी है जो अपने परिवार की सदा चिंता रहती है वह अपने बेटे और बेटियों की सदा ख्याल रखती है। वह बहादुर के व्यवहार से भी खुश रहती है वह अपने पति से बहादुर के काम कार्य की प्रशंसा करती है उसे बहादुर जैसे नौकर के लिए भी हृदय में दर्द है।
कुछ दिनों के बाद वह बहादुर के प्रति विरोध करने लगती है कभी कभी हाथ भी उठा देती है वह बहादुर का को ना चाहते हुए भी चपत लगा देती है। निर्मला बहादुर कुर्ती आने के लिए विवश करती है किंतु और रोटी बनाने से इंकार कर देता है और उदास रहने लगता है।
जब रिश्तेदारों द्वारा बहादुर पर चोरी का इल्जाम लगाया जाता है तब वह भी बहादुर को डांट फटकार लगाती है वह बार-बार बहादुर से चोरी हुए रुपए के बारे में पूछती है ।
एक दिन वह दातुन तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ता है तब निर्मला उसे डराती है और फिर से गिरने के प्रति सचेत करती है।
(4)’बहादुर’ कहानी के कथावाचक स्वयं लेखक हैं। वह पूरी कहानी में अपनी भूमिका के कारण नजर ओझल नहीं होता। जब पत्नी को नौकर की जरूरत होती है तब वह अपने साले की मदद से नौकर की व्यवस्था करता है।
उसके ऊपर परिवार का बोझ है वहीं परिवार का पालन करता है। इस कारण उसमें नैतिकता और जिम्मेवारी है वह परिवार के भरण-पोषण में सदा लगा रहता है। लेखक का व्यक्तित्व सरल सहृदय और शालीन है। वह कभी भी क्रोध नहीं करता वह बहादुर को काफी मानता है। उसके ख्याल रखता है वह अपने बेटी चोर को समझता है और बहादुर को मारने से मना करता है। जब किशोर उस पर झूठा इल्जाम लगाकर मरता पड़ता है तब लेकर उसे समझाता है ऐसा करने से मना करता है इस प्रकार ले करके संवेदनशीलता है वह दयालु आदमी है उसके भीतर मनुष्य जिंदा है रिश्तेदारों द्वारा चोरी का इल्जाम लगाए जाने पर जब वह बहादुर को एक लगा देता है तब बहादुर ने लगता है और वहां के मूल रूप से धरती ओर देखने लगता है।
लेखक द्वारा चपत खाकर बहादुर को बहुत पीड़ा होती है। वह भीतर ही भीतर पीड़ित उठता है।
जब बहादुर लेखक के घर से भाग जाता है तब लेखक अपनी पत्नी से पूछता है कि क्या बहादुर कुछ सामान भी लेकर गया है तब उसकी पत्नी रहती है कि नहीं। वह तो अपना विस्तार जूता, कपड़ा, सारा सामान छोड़कर भाग गया है। इसी का तो मुझे अफसोस है। उस पर बेकार
का इल्जाम लगाया गया। वह तो ईमानदार और नेक इन्सान था। हमलोग गलतफहमी में फंस गए। इस बात पर लेखक काफी पीड़ित हो गए और अपनी अदूरदर्शिता और बहादुर के प्रति किये गए दुर्व्यवहार के लिए पश्चाताप करने लगे और शोकाकुल होकर चारपाई पर बैठ गए।
इस प्रकार लेखक में दया, माया, संवदेनशीलता, करुणा और अपनत्व का भाव झलकता है लेखक में मानवीयता है। करुणा है। ममत्व और अपनत्व का भाव है।

प्रश्न 15. निर्मला को बहादुर के चले जाने पर किस बात का अफसोस हुआ?
उत्तर-जब लेखक के घर से बहादुर भाग गया तब लेखक ने अपनी पत्नी निर्मला से पूछा कि क्या वह कुछ सामान भी लेकर भागा है। निर्मला ने पति से कहा कि नहीं, वह कुछ नहीं लेकर गया। यही तो अफसोस है। कोई सामान लेकर नहीं गया है। उसके कपड़े उसका बिस्तर उसके जूते-सब कुछ तो यूँ ही पड़ा है। पता नहीं उसने हमें क्या समझा? अगर वह कहता कि मैं जाऊँगा तो मैं उसे खुशी के साथ भेजती। उसे अच्छी तरह पहना-ओढ़ाकर भेजती। हाथ में तनख्वाह भी देती। दो-चार रुपये और अधिक दे देती। लेकिन दुःख की बात है कि वह कुछ भी साथ लेकर नहीं गया। वह मेरा तो कुछ नहीं ले गया अपना भी सबकुछ छोड़ गया।
उसपर ग्यारह रुपये की चोरी का इल्जाम लगाकर रिश्तेदारों ने उसे जलील किया। प्रताडित किया। वे लोग बच्चों को कुछ नहीं देने का बहाना बनाकर रुपये चोरी का इल्जाम लगा दिए यही तो अफसोस की बात है।
इस प्रकार निर्मला ने बहादुर के प्रति अपनी संवेदना को पति से व्यक्त करते हुए अफसोस जताती है।

प्रश्न 16. कहानी छोटा मुँह बड़ी बात कहती है। इस दृष्टि से ‘बहादुर’ कहानी पर विचार करें।
उत्तर-बहादुर एक गरीब नेपाली मूल का युवक था। वह घोर गरीबी में पल रहा था। माँ के द्वारा पिटाई हो जाने पर घर से दो रुपये चुराकर वह शहर भाग आया था।
लेखक के साले ने उसे नौकर के रूप में लेखक के यहाँ रखवा दिया था। नेपाली बहादुर गरीब तो था किन्तु वह ईमानदार था। कर्त्तव्यनिष्ठ था। सत्य के प्रति दृढ़ था। वह भीतर-बाहर एक समान था। कहीं भी कलुषित भावना उसमें नहीं थी। वह सच्चरित्र और नेक लड़का था।
वह तो नौकर था किन्तु अपनी तेजस्विता, कर्तव्यनिष्ठता, मेहनत से सबको परास्त कर देता है। वह कभी भी शिकायत का मौका नही देता। छोटी-मोटी भूलों के लिए जब वह प्रताड़ित होता है फिर भी प्रतिकार नहीं करता।
जब रिश्तेदारों द्वारा चोरी के इल्जाम से वह व्यथित होता है और सिल टूट जाने के कारण काफी दु:खी होकर घर से भाग जाता है। उस समय की उसकी मनोव्यथा कैसी रही होगी, व्यक्त नहीं किया जा सकता।
इस प्रकार बहादुर तो सामाजिक और आर्थिक स्थिति में मालिक के आगे बौना था, छोटा था किन्तु अपनी विश्वसनीयता, सच्चाई और मेहनत के बल पर सबको परास्त कर चुका था क्योंकि उसमें नैतिकता और आत्मबल का चमत्कार था। इसी कारण उसी को केन्द्रित कर कहा गया है। कि छोटा मुँह और बड़ी बात यानी बहादुर तो था नौकर किन्तु ईमानदार और स्वाभिमानी।

प्रश्न 17. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इसका शीर्षक नौकर क्यों नहीं रखा?
उत्तर-जहाँ तक शीर्षक की सार्थकता का प्रश्न है वह स्वयं में सटीक है, यथार्थ के साथ है। बहादुर नेपाली मूल का गोरखा जवान है। वह लेखक के यहाँ नौकर है। वह गरीब घर का लड़का है। कहानी बहादुर के ईर्द-गिर्द ही चक्कर काटती है क्योंकि कहानी का केन्द्रबिन्दु बहादुर ही है। इस कारण बहादुर जो कहानी का शीर्षक है, सार्थकता के साथ है। बहादुर जैसा नाम वैसा काम। वह नेपाल का वासी है। नेपाली लोगों का नस्लीय संस्कार है कि चे कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे न चोरी करेंगे। उनमें राष्ट्रभक्ति और सेवा भावना सदा से भरी रहती है। बहादुर नेपाल की संस्कृति को अपन आप में समेटे हुए है। इस प्रकार कहानी का शीर्षक ‘बहादुर’ सही शीर्षक है। इस कहानी में बहादुर के चरित्र का सफल चित्रण हुआ है। और उसके व्यक्तित्व का विशेषताएँ साफ-साफ दृष्टिगत होती है।
दूसरी तरफ इस कहानी का शीर्षक ‘नौकर’ लेखक ने इसलिए नहीं रखा कि ‘नौकर’ से यथार्थता का बोध पूर्णरूपेण नहीं होता। नौकर’ नाम से वह स्निग्धता और यथार्थता नहीं झलकती जो ‘बहादुर’ नाम से चरितार्थ होती है। इस प्रकार ‘नौकर’ शब्द में-विराटता और उदात्तता का
दर्शन नहीं होता। ‘बहादुर’ एक खास कौम का द्योतक है। भारतीय इतिहास ही नहीं नेपाली और विश्व के इतिहास में गोरखा बहादुरों की वीरता, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता का काफी जिक्र है। इस प्रकार ‘नौकर’ नाम से इस कहानी की सार्थकता सिद्ध नहीं होती जो ‘बहादुर’ नाम से
चरितार्थ होती है। अतः, ‘बहादुर’ शीर्षक स्वयं में सार्थक है। यथार्थपरक है।

प्रश्न 19. कहानी का सारांश प्रस्तुत करें:-
उत्तर-सारांश देखें।

भाषा की बात
――――――――――
प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट करें-
(i) मारते-मारते मुँह रंग देना-(लहुलुहान कर देना)-राम ने मारते-मारते मोहन का मुँह रंग दिया।
(i) हुलिया टाइट करना-(हेकड़ी बंद कर देना)-पुलिस अफसर के कड़े रुख ने पाकिटमार की हुलिया टाइट कर दी।
(iii) हाथ खुलना-(मारना)-अचानक पुत्र की गलती पर माँ के हाथ खुल गए।
(iv) मजे में होना-(आनंद में रहना)-बड़े अफसर की गैरहाजिरी के कारण छोटे कर्मचारी मजे में रहते हैं।
(v) बातों की जलेबी छनना-(बातें बनाना)-श्याम इतनी बातें करने लगता मानो कि बातों की जलेबी छान रहा हो।
(vi) कहीं का नहीं रहना-(बेकार हो जाना)-बेरोजगारी के कारण मोहन कहीं का नहीं रहा।
(vii) नौ-दो-ग्यारह होना-(भाग जाना)-पुलिस के आते ही डाकू नौ-दो-ग्यारह हो गए।
(viii) खाली हाथ जाना-(कुछ साथ में नहीं लेना)-गुरु के घर खाली हाथ नहीं जाया जाता है।
(ix) बुरे फंसना-(मुसीबत में फंसना)-बर्फ गिरने के कारण सैनिक बुरी तरह फंस गए।
(x) पेट में लंबी दाढ़ी-(भेद रखना)-राजनेताओं के पेट में लंबी दाढ़ी होती है।
(xi) चहल-पहल मचना-(खुशियाली का होना) (भीड़-भाड़ का होना)-आज तिलकोत्सव का दिन है। इसी कारण रमेश के घर चहल-पहल है।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य में प्रयोग करते हुए लिंग-निर्णय करें-
(i) रुमाल-(पुलिंग):-उसका रुमाल गंदा है।
(ii) ओहदा-(पुलिंग):-सेना में कर्नल का ओहदा बड़ा होता है।
(iii) भरण-पोषण-(पुलिंग):- माता-पिता का भरण-पोषण करना हर पुत्र का कर्तव्य है।
(iv) इज्जत-(स्त्रीलिंग):- घर में चोरी होने से मोहन की इज्जत चली गयी।
(v) झनझनाहट-(स्त्रीलिंग):-उसके स्वर में मीठी झनझनाहट थी।
(vi) फरमाइश-(स्त्रलिंग):-पत्नी की फरमाइश से राहुल तंग आ चुका है।
(vii) छेड़खानी-(स्त्रीलिंग):-यह कैसी छेड़खानी है?
(viii) पुलई. (स्त्रीलिंग):-वह पेड़ की पुलई पर चढ़ गया।
(ix) फिक्र-(स्त्रीलिंग):-बेटे ने माँ से कहा तुम्हारी फिक्र किसे है?
(x) चादर-(स्त्रीलिंग):-बहादुर की चादर मैली थी।

प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्यों की बनावट बदलें-
उत्तर-(क)सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए जिसपर एक भारी दायित्व आ गया हो।
भारी दायित्व बोझ से दबे व्यक्ति की तरह मैं सहसा गंभीर हो गया।
‘ख) माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी।
उसकी माँ गुस्सैल होने के कारण उसे बहुत मारती थी।
(ग) मार खाकर भैंस भागी-भागी उसकी माँ के पास चली आयी, जो कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी।
उसकी माँ कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी, वहीं मार खाने पर भैंस भागी-भागी आ गयी।
(घ) मैं उससे बातचीत करना चाहता था, पर ऐसी इच्छा रहते हुए भी मैं जान-बुझकर गंभीर हो जाता था और दूसरी ओर देखने लगता था। उससे बातचीत करने की इच्छा रहते हुए भी मैं जानबूझकर गंभीर बनकर दूसरी ओर देखने
लगता था।
(ङ) निर्मला कभी-कभी उससे पूछती थी-बहादुर, तुमको अपनी माँ की याद आती है?
निर्मला कभी-कभी बहादुर से उसकी माँ की याद के बारे में पूछती रहती थी।

प्रश्न 4. अर्थ की दृष्टि से वाक्यों के प्रकार बताएँ-
उत्तर-(क) वह मारता क्यों था? -प्रश्नवाचक
(ख) वह कुछ देर तक उनसे खेलता था।-विधिवाचक
(ग) दिन मजे में बीतने लगे।-विस्मय वाचक
(घ) इसी तरह की फरमाइशें।-इच्छा वाचक
(ङ) रास्ते में कोई ढंग की दुकान नहीं मिली थी, नहीं तो उधर से ही लाती-निषेध वाचक।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *