History

Tipu Sultan |टीपू सुल्‍तान

टीपू सुल्‍तान के बारे में महत्‍वपूर्ण जानकारी  – Important Information about Tipu Sultan

  1. टीपू सुल्‍तान (Tipu Sultan) का जन्‍म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली में हुआ था
  2. इनके पिता का नाम हैदर अली (Haider ali) और माता का नाम फातिमा फकरून्निसा था
  3. इनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब (Sultan Fateh Ali Khan Shahahab) था
  4. इनके पिता एक प्रसिद्ध धर्म-गुरु टीपू मस्तान ऑलिया को काफी मानते थे और इन्‍हीं के नाम पर इनका नाम टीपू सुल्‍तान पडा था
  5. टीपू सुल्‍तान को शेर-ए-मैसूर भी कहा जाता है
  6. इन्‍होंने बहुत ही कम उम्र में युद्ध की सभी कलाएं सीख ली थीं
  7. टीपू सुल्‍तान ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेज़ों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था
  8. अपने पिता हैदर अली के बाद टीपू सुल्‍तान 1782 में मैसूर की गद्दी पर बैठा था
  9. सुल्तान एक बादशाह बन कर पूरे देश पर राज करना चाहते थे लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नही हो पाई थी
  10. दुनियॉ का पहला मिसाइल मैन टीपू सुल्‍तान को कहा जाता है लंदन के साइंस म्‍यूजियम में इनके रॉकेट रखे हुऐ हैं
  11. टीपू सुल्‍तान की मृत्‍यु 4 मई सन् 1799 को मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम में युद्ध करते हुए थी
  12. टीपू सुल्तान की तलवार पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ था टीपू की मौत के बाद ये तलवार उसके शव के पास पड़ी मिली थी
  13. उनकी यह तलवार 2003 में 21 करोड में नीलाम हुई थी इस तलवार का वजन 7 किलो 400 ग्राम है                                                                                                                                                                                                                                         टीपू सुलतान का जन्म 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली (यूसुफ़ाबाद) (बंगलौर से लगभग 33 (21 मील) किमी उत्तर)मे हुआ था। उनका पूरा नाम सुल्तान फतेह अली खान शाहाब था। उनके पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फ़क़रुन्निसा था। उनके पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सैनापति थे जो अपनी ताकत से 1761 में मैसूर साम्राज्य के शासक बने। टीपू को मैसूर के शेर के रूप में जाना जाता है। योग्य शासक के अलावा टीपू एक विद्वान, कुशल़॰य़ोग़य सैनापति और कवि भी थे। टीपूसुल्तान को एक तरह से दक्षिण भारत का अंबेडकर भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने शासनकाल में दलितों, पिछड़ों को उनके सामाजिक अधिकार दिलाया तथा अगड़ो द्वारा हो रहे अत्याचार से मुक्त कराया तथा उन्हें जीने का एक मकसद दिया टीपू सुल्तान महिला सशक्तिकरण के पक्षधर थे उनके शासनकाल में महिलाओं का सम्मान था।

जीवनी

18 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में हैदर अली का देहावसान एवं टीपू सुल्तान का राज्यरोहन मैसूर कि एक प्रमुख घटना है टीपू सुल्तान के आगमन के साथ ही अंग्रेजों कि साम्राज्यवादी नीति पर जबरदस्त आधात पहुँचा जहाँ एक ओर कम्पनी सरकार अपने नवजात ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रयत्नशील थी तो दूसरी ओर टीपू अपनी वीरता एवं कुटनीतिज्ञता के बल पर मैसूर कि सुरक्षा के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा था वस्तुत:18 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में टीपू एक ऐसा महान शासक था जिसने अंग्रेजों को भारत से निकालने का प्रयत्न किया। अपने पिता हैदर अली के पश्चात 1782 में टीपू सुल्तान मैसूर की गद्दी पर बैठा।

अपने पिता की तरह ही वह भी अत्याधिक महत्वांकाक्षी कुशल सेनापति और चतुर कूटनीतिज्ञ थे यही कारण था कि वह हमेशा अपने पिता की पराजय का बदला अंग्रेजों से लेना चाहते थे अंग्रेज उनसे काफी भयभीत रहते थे। टीपू सुल्तान की आकृति में अंग्रेजों को नेपोलियन की तस्वीर दिखाई पड़ती थी। वह अनेक भाषाओं का ज्ञाता थे अपने पिता के समय में ही उन्होंने प्रशासनिक सैनिक तथा युद्ध विधा लेनी प्रारंभ कर दी थी परन्तु उनका सबसे बड़ा अवगुण उनके पराजय का कारण बना वह फ्रांसिसियों पर बहुत अधिक भरोसा करते थे, वह अपने पिता के समान ही निरंकुश और स्वंत्रताचारी थे लेकिन फिर भी प्रजा के तकलीफों का उनहे काफी ध्यान रहता था। अत: उनके शासन काल में किसान प्रसन्न थे। वह कट्टर व धर्मान्त मुस्लमान थे वह हिन्दु, मुस्लमानों को एक नजर से देखते थे।

उनके चरित्र के सम्बंध में विद्वानों ने काफी मतभेद है।

मैसूर में एक कहावत है कि हैदर साम्राज्य स्थापित करने के लिए पैदा हुए थे। और टीपू उसे खोने के लिए कुछ ऐसे भी विद्वान है जिन्होंने टीपू सुल्तान के चरित्र की काफी प्रशंसा की है।

वस्तुत: टीपू एक परिश्रमी शासक मौलिक सुधारक और अच्छे योद्धा थे। इन सारी बातों के बावजूद वह अपने पिता के समान कूटनीतिज्ञ एवं दूरदथा यह उनका सबसे बड़ागुण था। टीपू का नाम उर्दू पत्रकारिता के अग्रणी के रूप में भी याद किया जाएगा, क्योंकि उनकी सेना का साप्ताहिक बुलेटिन उर्दू में था, यह सामान्य धारणा है कि जाम-ए-जहाँ नुमा, 1823 में स्थापित पहला उर्दू अखबार था। वह गुलामी को खत्म करने वाला पहला शासक था। कुछ मौलवियों ने इस उपाय को थोड़ा बहुत बोल्ड और अनावश्यक माना। टीपू अपनी बंदूकों से चिपक गया। उन्होंने पूरे जोश के साथ उस लाइन को लागू करने के फैसले को लागू कर दिया जिसमें उनके देश में प्राप्त स्थिति को इस उपाय की आवश्यकता थी। टीपू सुल्तान सामंतवाद के प्रति उनका दृष्टिकोण है। उन्होंने इसे एक बार में समाप्त कर दिया और नतीजा यह है कि आज भी कर्नाटक के किसान – विशेष रूप से पूर्व मैसूर क्षेत्र में – उत्तरी भारत के किसानों से अलग हैं। ज़मीन के टिलर टीपू के दिनों से ही अपनी पकड़ के मालिक थे। इस उपाय के परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र में एक विकसित देश है। कर्नाटक के किसान किसान मालिक हैं और उनके बेटों और बेटियों ने शिक्षा में अच्छा किया है। टीपू सुल्तान भी अपने राज्य के ब्राह्मण पादरियों के प्रति निष्ठावान थे और उनके सहयोग की माँग करते थे – यहाँ तक कि देवताओं के आशीर्वाद के लिए विशेष प्रार्थना करने का भी अनुरोध किया जाता था। 1791 में श्रीगंगातट के जगतगुरु स्वामी को लिखे उनके पत्र हिंदू विषयों के साथ उनके उत्कृष्ट संबंधों के प्रमाण हैं। इस दावे के लिए टीपू के कुछ 30 पत्रों को भारतीय पुरातत्व विभाग में संरक्षित किया गया है। दक्षिण भारत के विल्क्स हिस्टोरिकल स्केच, टीपू सुल्तान की हिंदू-नफरत के रूप में कोई भी न्याय नहीं करते हैं गांधीजी उन सभी इतिहास की पुस्तकों का विमोचन करते हैं, जो टीपू सुल्तान को हिंदुओं पर धर्मांतरण के लिए मजबूर करती हैं। वह सोचते हैं कि कन्नड़ भाषा में टीपू के पत्र हिंदुओं के प्रति उनकी उदारता का जीवंत प्रमाण हैं। गांधीजी ने टीपू को महान वक्फों (ट्रस्टों) के लिए हिंदू मंदिरों के लिए स्थापित किया। उनके महल वेंकटरमन श्रीनिवास और श्री रंगनाथ मंदिरों के करीब खड़े थे। वह विशेष रूप से मैसूर के शासक की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि शेर के जीवन का एक दिन सियार के 100 साल के जीवन से बेहतर होता है। ‘ टीपू का सुसंस्कृत मन था। मोहिबुल हसन के अनुसार, वह बहुमुखी थे और हर तरह के विषयों पर बात कर सकते थे। वह कन्नड़ और हिंदुस्तानी (उर्दू) बोल सकते थे, लेकिन उन्होंने ज्यादातर फ़ारसी में बात की जो उन्होंने आसानी से लिखी थी। उन्हें विज्ञान, चिकित्सा, संगीत, ज्योतिष और इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी, लेकिन धर्मशास्त्र और सूफीवाद उनके पसंदीदा विषय थे। कवियों और विद्वानों ने उसके दरबार को सुशोभित किया, और वह उनके साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करने का शौकीन था। वह सुलेख में बहुत रुचि रखते थे, और उनके द्वारा आविष्कृत सुलेख के नियमों पर “”रिसाला डार खत-ए-तर्ज़-ए-मुहम्मदी”” नामक फारसी में एक ग्रंथ मौजूद है। उन्होंने ज़बरजद नामक ज्योतिष पर एक किताब भी लिखी। उनकी लाइब्रेरी की बाध्य पुस्तकें भगवान, मोहम्मद, उनकी बेटी फातिमा और उनके बेटों, हसन और हुसैन के नाम को कवर के मध्य में और चार कोनों पर चार खलीफाओं के नाम के साथ ले जाती हैं। उनकी निजी लाइब्रेरी में अरबी, फ़ारसी, तुर्की, उर्दू और हिंदी पांडुलिपियों के 2,000 से अधिक संगीत, हदीस, कानून, सूफीवाद, हिंदू धर्म, इतिहास, दर्शन, कविता और गणित से संबंधित हैं।

मृत्यु

4 मई 1799 को 48 वर्ष की आयु में कर्नाटक के श्रीरंगपट्टना में बडी चालाकी से टीपू की अंग्रेजों द्वारा हत्या कर दी गयी। हत्या के बाद उनकी तलवार टीपू के हाथ से छुडाने के लिये बडी मेहमत लगी। उनकी तलवार अंग्रेज अपने साथ ब्रिटेन ले गए। टीपू की मृत्यू के बाद सारा राज्य अंग्रेज़ों के हाथ आ गया।

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