Happy mother day – शुभ मातृ दिवस
Happy mother day
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माँ
क्या कहूँ इस शब्द के लिए जिसकी कोई परिभाषा नहीं। पर इसकी गहराई हर दिल समझता है यहां तक की एक 3 महीने का मासूम भी। किस तरह बच्चा माँ का स्पर्श पहचानने लगता है। उसके आँचल की छाव कितनी सुकून देती है। यह अहसास सभी को है।
माँ वह फरिश्ता है जो संग न सही पर हमेंशा हमारे साथ -साथ चलती है अपने संस्कार,अपने प्यार और अपने दायित्वों के रूप में।
क्या आप जादू पर यकीन करते हैं ? पर होता है एक जादू सा कुछ एक बच्चे और माँ के रिश्ते में। कैसे वो बिना कहे सब कुछ समझ जाती है ? हमारे दर्द, हमारी दिक्कतें, हमारी लालसा क्यों, कैसे ?? नहीं पता। पर होता है ऐसा।
अपनी सारी इच्छाओं को किसी अज्ञात पोटली में छिपा हमारी ख्वाहिशों को सिर्फ एक माँ ही पूरा कर सकती है।
मैं बीमार होती फिर भी किसी से कुछ नहीं कहती। यदि मैं उदास होकर भरी महफ़िल में हँसती भी रहूँ। पर वो मेरी माँ ही है जो चेहरे पर छिपी मायूसी पकड़ लेती है। कभी-कभी ताज्जुब होता ये क्यों ऐसी हैं ?
चोट हमें लगती है आँसू इनके निकलते। खाते हम नहीं नींद इनकी गायब होती है। खेलते-दौड़ते हम हैं डर इन्हें लगता है। स्कूल हमें जाना होता चिन्ता इन्हें होती।
अपनी सारी तकलीफों को दरकिनार कर हमारी फरमाइशों को सिर्फ माँ ही पूरा कर सकती है। बदन तप रहा शरीर से खड़ा नही हुआ जा रहा उस पल भी रसोई में बच्चे के मन का खाना बनाना को क्या कहेंगे हम ?
कभी मोम सी नर्म ,
कभी पत्थर सी सख्त ,
कभी प्यार का सागर
कभी फ्लाइंग चप्पल से स्वागत
कभी ढ़ेर सा डाँटना
कभी घण्टों समझाना
ना समझने पर कभी दो चार चाटें भी लगाना
कभी अड़ियल सी थोड़ी
कभी बच्चे सा बन जाना
कभी हँसते हुए देखकर खुद यूँ मुस्काना
कभी पढ़ाई के लिए डाँट
कभी मोबाइल के लिए लेक्चर
कभी दोस्तों से घण्टों बात पर
तारीफों की थाली
कभी डाँट कर गुस्साना
कभी डाँट कर मनाना
कभी बिन कुछ कहे बस चुप रह जाना
कभी गलतियों पे हमारे दिनभर चिल्लाना
(ये यहाँ रख दिया वो वहाँ रख दिया)
फिर थक हारकर खुद से ही उसे सवारना
बिन लफ़्जों के ही अपने लाड को जताना
दुनिया का सबसे प्यारा है ये प्यार का फसाना
सब समझते हुए भी अनजान बैठे हैं
माँ तेरे प्यार में नादान बने हुए हैं
तू है तो ही खुशहाल है आज मेरा
तेरे दुआओं के सहारे ही कल के अरमान बुने हैं।
दुनिया मे रिश्ते तो बहुत हैं मगर
तुझ सा ना रिश्ता दूजा हैं कहीं
तू संग है तो सब अपना है।
वरना सारा हकीकत ही एक सपना है।
नहीं है लफ्ज मेरे पास
तुम्हें बतलाने के लिए
आज फिर खामोशी को मेरा प्यार समझ लेना माँ ।
माँ पर कविता
पहली स्वास भरी थी मैंने तेरी ही कोख में
जो तू मुझे छोड़ गई मर जाउंगी शोक में!
कदम कदम पे तूने संभाला जब भी मैं डगमगायी
मेरी हर एक चोट की तेरे आंसुओं ने की भरपाई!
न कोई उम्मीदें,न उमंगें न थे कोई भी सपने
तेरी ममता की छाया ने बतलाया क्या होते हैं अपने!
मुझे खिलाई अपने हिस्से का भूख नहीं है कहकर
अब तू ही बता जाऊं कहाँ तुझसे दूर मैं रहकर!
आ जा माँ ले चल मुझे फिर उसी सुहाने पल में,
तेरे बिना तो अंतर कुछ भी न आज में न कल में!
भर दे मेरी दुनिया फिर उन सुन्दर रातो से
आ-भी-जा बहुत दिन हुए न खाया तेरे हाथों से!
मैं तो एक शब्द हु तू पूरी भाषा हे,
अपने बारे में क्या बतलाऊँ,तू ही मेरी परिभाषा है!!
जब भी डर लगता है जीवन में, याद तेरी ही आती है,
जो महंगी चीज़ें न देती वो सुकून दे जाति है!