कादर ख़ान की बायोग्राफी – kadar khan biography In Hindi
कादर खान एक ऐसी शख्सियत जिसने अपने करियर की शुरुआत कब्रिस्तान से की थी जिया कादर खान जिनको पूरी दुनिया जानती है शायद ही आप जानते हो कि इन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत यानी ने अपने कैरियर का पहला काम कब्रिस्तान से मिला था जब यह 8 साल के थे तब यह घंटों कब्रिस्तान में बैठ कर चिल्लाया करते थे और वहीं से इन्हें का पहला काम मिला था तो आइए जानते हैं कादर खान की बायोग्राफी और उनके जीवन के बारे में कुछ ऐसे तथ्य जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं
बचपन
कादर खान का जन्म 22 अक्टूबर 1937 में अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था इनके पिता का नाम अब्दुल रहमान खान जो कंधार के रहने वाले थे और उनकी मां का नाम इकबाल बेगम था कादर खान से पहले इनके तीन भाई और थे जो कम उम्र में मर चुके थे इसी वजह से इनकी इनको बचाने के लिए इनकी माँ इन्हे मुंबई लेकर आ गई थी लेकिन कादर खान का बचपन बहुत ही गरीबी में बीता है कई बार तो खाने को खाना भी नहीं नसीब होता था
कैरियर की शुरुआत
दिलीप कुमार ने एक बार कादर खान को कॉलेज में ट्रामा करते हुए देखा था जैसे प्रभावित होकर उन्होंने अपनी दो फिल्मों में काम दिया था जिनका नाम था संगीना और बैराग कादर खान अच्छे एक्टर के साथ साथ अच्छे संवाद लेखक भी थे उनकी कई फिल्मों में बहुत अच्छे संवाद लिखे थे जिसके लिए उन्हें 10 बार सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन में नामकित किया था 1992 में मेरी आवाज सुनो और1993 अंगार के लिए फिल्म फेयर अवार्ड के सम्मान से नवाजा गया था 1991 में बाप नंबरी बेटा दस नंबरीके लिए सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन का फिल्म फेयर अवार्ड कादर खान को मिला था
दमदार डायलॉग्स
- बचपन से सर पर अल्लाह का हाथ और अल्लाह रखा है अपने साथ बाजू पर 786 का है बिल्ला 20 नंबर की बीड़ी पीता हूं और नाम है एक बार यह संवाद 1983 में कुली फिल्म के लिए कादर खान ने लिखा था
- तुम्हें बक्शीश कहां से दूं मेरी गरीबी का तो यह हाल है कि किसी फकीर की अर्थी को कंधा दूं तो वह उसे अपनी इंसल्ट मानकर अर्थी से खुद जाता है यह संवाद 1990 में बाप नंबरी बेटा दस नंबरी के लिए ही कादर खान ने लिखा था
- हराम की दौलत इंसान कि वह शुरू में सुख जरूर देती है मगर बाद में ले जाकर एक ऐसे दुख के सागर में धकेल देती है जहां मरते दम तक का किनारा नजर नहीं आता है यह सन 1989 में जैसी करनी वैसी भरनी फिल्म के लिये कादर खान ने लिखा था
- कहते हैं किसी आदमी की सीरत अगर जाननी है तो उसकी सूरत नहीं उसके पैरों की तरफ देखना चाहिए उसके कपड़ों की नहीं उसके जूतों की तरफ देखना चाहिए फिल्म हम 1991 के लिये कादर खान ने लिखा था
- विजय दीनानाथ चौहान पूरा नाम बाप का नाम दीनानाथ चौहान मां का नाम सुहासिनी चौहान गांव मांडवा उम्र 36 साल 9 महीना 8 दिन और यह 16 घंटा चालू है अग्निपथ 1990 के लिये कादर खान ने लिखा था
- ऐसे तोहफे (बंदूक ) देने वाला दोस्त नहीं होता है तेरे बाप ने 40 साल मुंबई पर हुकूमत की है इन खिलौनों के बल पर नहीं अपने दम पर अंगार 1992 के लिये कादर खान ने लिखा था