History

6174 को मैजिकल नंबर क्यों कहा जाता है?

सार

  • एक भारतीय गणितज्ञ ने खोजा था ये मैजिक नंबर
  • तब सबने उड़ाया था उनका मजाक, आज उसी पर हो रहा रिसर्च
  • स्कूल के पाठ्यक्रम में भी शामिह है ये नंबर

विस्तार

संख्या 6174 को ध्यान से देखिए। पहली नजर में ये कुछ खास नहीं दिखता। लेकिन साल 1949 से यह गणितज्ञों के लिए एक पहेली बना हुआ है।

भारतीय गणितज्ञ दत्तात्रेय रामचंद्र काप्रेकर (1905-1986) को संख्याओं के साथ प्रयोग करना बेहद पसंद था। इसी प्रयोग की प्रक्रिया में उनका परिचय इस रहस्यमयी संख्या 6174 से हुआ।

साल 1949 में मद्रास में हुए एक गणित सम्मेलन में काप्रेकर ने दुनिया को इस संख्या से परिचित कराया। वो कहा करते थे, ‘जिस तरह मदहोश बने रहने के लिए एक शराबी शराब पीता है। संख्याओं के मामले में मेरे साथ भी बिल्कुल ऐसा ही है।’

वो मुंबई विश्विद्यालय से पढ़े थे और मुंबई के देवलाली कस्बे में एक स्कूल में पढ़ाते हुए उन्होंने अपनी जिंदगी गुजारी थी। अक्सर उन्हें स्कूल और कॉलेजों में उनके विशेष तरीके पर बात रखने के लिए बुलाया जाता था।

हालांकि उनकी खोज का मजाक उड़ाया गया और भारतीय गणितज्ञों ने इसे खारिज कर दिया।

लेकिन धीरे-धीरे उनकी खोज को लेकर भारत और विदेशों में चर्चा होने लगी। 1970 के दशक तक अमेरिका के बेस्ट सेलिंग लेखक और गणित में रुचि रखने वाले मार्टिन गार्डर ने उनके बारे में एक लोकप्रिय साइंस मैग्ज़ीन ‘साइंटिफिक अमेरिका’ में लिखा। ओसाका यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर युताका निशियामा का कहना है, ‘संख्या 6174 वाक़ई बहुत रहस्यवादी संख्या है।’

आज काप्रेकर और उनकी खोज को मान्यता मिल रही है और इस पर दुनिया भर के गणितज्ञ काम कर रहे हैं।

इसकी वजह क्या है? ये संख्या क्यों इतनी मैजिकल है? इसे समझने के लिए आगे बताए जा रहे कुछ दिलचस्प तथ्यों को देखिए।

कोई भी चार अंकों की संख्या अपने मन से चुनिए, लेकिन कोई भी अंक दोबारा नहीं आना चाहिए। उदाहरण के लिए 1234 ले लेते हैं।
इन्हें घटते क्रम में लिखें: 4321
अब इन्हें बढ़ते क्रम में लिखें: 1234
अब बड़ी संख्या से छोटी संख्या को घटा दें: 4321 – 1234
अब नतीजे में मिली संख्या के साथ फिर से घटते और बढ़ते क्रम में लिखें।

आईए इसे करके देखते हैं-
4321 – 1234 = 3087
इन अंकों को घटते क्रम में रखें: 8730
अब इन्हें बढ़ते क्रम में रखें: 0378
अब बड़ी संख्या में से छोटी संख्या को घटा दीजिए: 8730 – 0378 = 8352
नतीजे में मिली संख्या के साथ ऊपर की तीनों प्रक्रियाओं को दोहराईए।
आइए, संख्या 8352 के साथ यही करके देखते हैं-

8532 – 2358 = 6174
6174 के साथ इस प्रक्रिया को दोहराते हैं। यानी बढ़ते और घटते क्रम में रखने के बाद घटाएं।

7641 – 1467 = 6174

जैसा कि आप देख सकते हैं, इसके बाद फिर से ये प्रक्रिया दोहराने का कोई मतलब नहीं। क्योंकि वही नतीजे मिलेंगे: 6174

लेकिन हो सकता है कि आप सोचें कि ये महज संयोग है। तो चलिए किसी दूसरे नंबर के साथ ये प्रक्रिया दोहराते हैं। मान लीजिए 2005 को लेते हैं। इसके साथ ऊपर दी गई प्रक्रियाएं दोहराएंगे।

5200 – 0025 = 5175
7551 – 1557 = 5994
9954 – 4599 = 5355
5553 – 3555 = 1998
9981 – 1899 = 8082
8820 – 0288 = 8532
8532 – 2358 = 6174
7641 – 1467 = 6174

आप खुद देख सकते हैं, चाहे कोई भी चार अंक आप चुनें। अंतिम नतीजा 6174 ही मिलता है और इसके बाद उसी प्रक्रिया के साथ यही नतीजा मिलना जारी रहता है।

इस फॉर्मूले को कैप्रेकर्स कॉन्स्टेंट कहते हैं।

एक ऑनलाइन मैग्ज़ीन +प्लस में निशियामा ने लिखा कि कैसे उन्होंने संख्या 6174 को पाने के लिए सभी चार अंकों के साथ प्रयोग करने के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल किया था।

लेकिन हर चार अंकों की संख्या, जिसमें सभी अंक अलग अलग हों, काप्रेकर की प्रक्रिया के तहत सात चरण में संख्या 6174 तक ही पहुंच रही थी।

निशियामा के अनुसार, ‘अगर आप काप्रेकर की प्रक्रिया को सात बार दोहराने के बाद भी 6174 तक नहीं पहुंच पाते हैं, तो आपने जरूर कोई गलती की है और आपको फिर से कोशिश करनी चाहिए।’

स्कूल के पाठ्यक्रम में भी शामिल है 6174 संख्या

मुंबई की सीग्राम टेक्नोलॉजीज फाउंडेशन ने ग्रामीण और आदिवासी स्कूलों के लिए आईटी लर्निंग प्लेटफॉर्म विकसित किया है। इसने 6174 संख्या को अपने विषय में शामिल किया और तय किया कि इसके अंकों को रंगों के साथ प्रदर्शित किया जाए।

फाउंडेशन के संस्थापक गिरीश आराबाले ने बीबीसी को बताया कि बच्चों में वो गणित की रुचि पैदा करने की कोशिश करते हैं। वो कहते हैं, ‘काप्रेकर कॉन्स्टेंट इतना आकर्षक है कि जब आप उसके बताए तरीके अपनाते हैं तो वो आपको अंत में एक ऐसे पल पर ले जाता है जहां आपकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।’

आराबेल की टीम ने 6174 तक पहुंचने में जितने चरण लगते हैं, उन्हें कलर कोड के रूप में प्रदर्शित करने का फैसला किया। वो इस बात को जानते थे कि मैजिक नंबर तक पहुंचने में सात गणना से अधिक नहीं लगता।

ये उस कोड का आधार बना, जिसे रैसपबेरी पाई पर रिक्रिएट किया जा सकता है। असल में ये सस्ता और क्रेडिट कार्ड के आकार का एक कम्प्यूटर होता है, जो साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित की पढ़ाई में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

खेल-खेल में गणित सीखना

काप्रेकर का कॉन्स्टेंट केवल खेल-खेल में गणित सीखने के तरीके में ही योगदान नहीं है। आपने काप्रेकर नंबर के बारे में भी सुना होगा। इसमें एक संख्या होती है जिसका वर्ग किया जाए तो इसके नतीजे को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। इन दोनों हिस्सों का जोड़ मूल संख्या को दर्शाता है।

इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं-
297² = 88,209
88 + 209 = 297
काप्रेकर संख्या का एक और अच्छा उदाहरण हैः 9, 45, 55, 99, 703, 999, 2,223, 17,344, 538,461… इनके साथ साथ आप खुद प्रयोग कर सकते हैं और देख सकते हैं कि क्या नतीजा मिलता है।

अगर नतीजे में मिली संख्या के अंकों को आप बराबर नहीं बांट पाते हैं, जैसा कि 88209 के साथ है जिसमें पांच अंक हैं, तो इसे पहले दो और फिर तीन अंक में विभाजित कर सकते हैं। इसे काप्रेकर ऑपरेशन कहा जाता है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *