History

Govind Ballabh Pant Biography In Hindi – गोविन्द बल्लभ पन्त

Govind Ballabh Pant Biography In Hindi – गोविन्द बल्लभ पन्त की जीवनी

Govind Ballabh Pant Biography In Hindi

श्री पन्त ने भारत की मात्र भाषा हिंदी को भारत के राष्ट्रीय भाषा बनाने के लिये काफी जोर दिया था. पन्त को भारत सरकार ने वर्ष 1955 में देश का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत रत्न देकर सम्मानित किया था.

भारत प्रतिभाओ का देश है और समय – समय पर महान लोगो ने यहाँ जन्म लिया है. ऐसे ही एक महानपुरुष हमारे देश में पैदा हुए है जिनका नाम है गोविन्द वल्लभ पन्त. गोविन्द वल्लभ पन्त भारत के पूर्व स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे. यही वे व्यक्ति है जिनको उत्तर प्रदेश का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हैं. मुख्यमंत्री के अलावा श्री पन्त भारत के चौथे होम मिनिस्टर भी रह चुके हैं.

गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितम्बर 1887 को अल्मोड़ा जिले के श्यामली पर्वतीय क्षेत्र स्थित गाँव खूंट में महाराष्ट्रीय मूल के एक कऱ्हाड़े ब्राह्मण कुटुंब में हुआ। इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके दादा बद्री दत्त जोशी ने की।

1897 में गोविन्द को स्थानीय ‘रामजे कॉलेज’ में प्राथमिक पाठशाला में दाखिल कराया गया। 1899 में 12 वर्ष की आयु में उनका विवाह ‘पं. बालादत्त जोशी’ की कन्या ‘गंगा देवी’ से हो गया, उस समय वह कक्षा सात में थे।

1905 में उन्होंने अल्मोड़ा छोड़ दिया और इलाहाबाद चले गये। म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में वे गणित, साहित्य और राजनीति विषयों के अच्छे विद्यार्थियों में सबसे तेज थे। अध्ययन के साथ-साथ वे कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य भी करते थे। 1907 में बी.ए  और 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से “लैम्सडेन अवार्ड” दिया गया।

1910 में उन्होंने अल्मोड़ा आकर वकालत शूरू कर दी। वकालत के सिलसिले में वे पहले रानीखेत गये फिर काशीपुर में जाकर प्रेम सभा नाम से एक संस्था का गठन किया जिसका उद्देश्य शिक्षा और साहित्य के प्रति जनता में जागरुकता उत्पन्न करना था। इस संस्था का कार्य इतना व्यापक था कि ब्रिटिश स्कूलों ने काशीपुर से अपना बोरिया बिस्तर बाँधने में ही खैरियत समझी।

1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे। परिवार के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ। पंत जी काशीपुर में सबसे पहले ‘नजकरी’ में नमक वालों की कोठी में एक साल तक रहे।

पूरा नाम – गोविन्द वल्लभ पन्त
जन्म – 18 सितम्बर 1887, खूंट, अल्मोड़ा, उत्तराखंड, भारत
मृत्यु – 7 मार्च 1961, उत्तराखंड, भारत
राजनैतिक पार्टी – राष्ट्रीय काँग्रेस
पिता का नाम – मनोरथ पन्त
माता का नाम – गोविंदी बाई
दादा जी – बद्री दत्त जोशी
शादी – दो शादियाँ, पहली शादी का एक लड़का, पहली शादी गंगा देवी से हुई
पेशा – वकालत
धर्म – हिन्दू
शिक्षा – बी. ए. और कानून की डिग्री प्राप्त की
वकालत – पहले रानीखेत से फिर काशीपुर से

कैरियर – Govind Ballabh Pant Career

सन 1912-13 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी ‘रेवेन्यू कलक्टर’ थे। श्री ‘कुंजबिहारी लाल’ जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, का मुक़दमा पंत’ जी द्वारा लिये गये सबसे ‘पहले मुक़दमों’ में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें 5 रु० मिली थी।

1916 में पंत जी ‘राजकुमार चौबे’ की बैठक में चले गये। चौबे जी पंत जी के अनन्य मित्र थे। उनके द्वारा दबाव डालने पर पुनःविवाह के लिए राजी होना पडा तथा काशीपुर के ही श्री तारादत्त पाण्डे जी की पुत्री ‘कलादेवी’ से विवाह हुआ। उस समय पन्त जी की आयु 30 वर्ष की थी।

गोविन्द बल्लभ पंत जी का मुक़दमा लड़ने का ढंग निराला था, जो मुवक़्क़िल अपने मुक़दमों के बारे में सही जानकारी नहीं देते थे, पंत जी उनका मुक़दमा नहीं लेते थे। काशीपुर में एक बार गोविन्द बल्लभ पंत जी धोती, कुर्ता तथा गाँधी टोपी पहनकर कोर्ट चले गये। वहां अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट ने आपत्ति की।

दिसम्बर 1921 में वे गान्धी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन के रास्ते खुली राजनीति में उतर आये। 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। उस समय वे नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे। 1927 में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ व उनके तीन अन्य साथियों को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा किन्तु गान्धी जी का समर्थन न मिल पाने से वे उस मिशन में कामयाब न हो सके।

1928 के साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून जेल की हवा भी खायी।

17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त अथवा यू 0 पी 0 के पहले मुख्य मन्त्री बने। इसके बाद दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वे 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त (यू 0 पी 0) के मुख्य मन्त्री रहे।

जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्व सम्मति से उपयुक्त पाया गया। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत के नवनामित राज्य के भी वे 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्य मन्त्री रहे।

सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उन्हें गृह मंत्रालय, भारत सरकार के प्रमुख का दायित्व दिया गया। भारत के रूप में पन्तजी का कार्यकाल: 1955 से लेकर 1961 तक रहा।

आजादी के समय पन्त जी :

गोविन्द वल्लभ पन्त जी भारत की आजादी में 1922 के समय राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में उतर आये और गाँधी जी के साथ आन्दोलन किया. जब अंग्रेजो के समय भारत के काकोरी जगह में काकोरी कांड हुआ था, जिसमें कुछ लोगो ने अंग्रेजो का सरकारी खजाना लुट लिया था उस केस की पैरवी पन्त जी ने की और वकील के तौर पर अपना कर्तव्य निभाया था

गोविन्द वल्लभ पन्त का शुरूआती जीवन :

पन्त जी का जन्म अल्मोड़ा जिले के ग्राम खूंट में हुआ था. पन्त जी एक ब्राह्मण परिवार से आते हैं. इनके पिता मनोरथ पन्त और माता गोविंदी बाई की मृत्यु तब हो गई जब पन्त बहुत छोटे थे. पन्त जी लालन-पालन इनके दादा जी बद्री दत्त ने किया था. फिर बाद में पन्त का परिवार अल्मोड़ा छोड़ कर इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) चला गया. इलाहाबाद से ही पन्त जी ने अपनी शुरूआती शिक्षा प्राप्त की. यही से बी. ए. और कानून की शिक्षा ली.

पन्त जी स्कूल में गणित, राजनीति और साहित्य विषयो में काफी तेज छात्र थें. श्री पन्त जी ने 1907 में बी. ए. और 1909 में कानून की शिक्षा और डिग्री हासिल की. 1910 के समय श्री पन्त जी ने अल्मोड़ा आकर वकालत शुरू कर दी. वकालत के लिये पन्त जी ने पहले रानीखेत और फिर काशीपुर क्षेत्र का दौरा किया. कॉलेज में कानून की डिग्री को टॉप अंको में पास करने के लिये श्री पन्त जी को कॉलेज की तरफ से लैम्स्दन अवार्ड दिया गया. कॉलेज के समय पन्त जी काँग्रेस के स्वंय सेवक के रूप में भी कार्य करते रहे. पन्त जी हिंदी साहित्य के प्रति काफी व्यापक थे.

आजादी के समय पन्त जी :

गोविन्द वल्लभ पन्त जी भारत की आजादी में 1922 के समय राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में उतर आये और गाँधी जी के साथ आन्दोलन किया. जब अंग्रेजो के समय भारत के काकोरी जगह में काकोरी कांड हुआ था, जिसमें कुछ लोगो ने अंग्रेजो का सरकारी खजाना लुट लिया था उस केस की पैरवी पन्त जी ने की और वकील के तौर पर अपना कर्तव्य निभाया था.

सन 1927 के समय भारत के 3 क्रांतिकारीयो को फांसी से बचाने के लिये श्री पन्त ने अपने सहयोगी पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर अंग्रेजो के उस समय के वायसराय को अपना पत्र लिखकर 3 क्रांतिकारी लोगो को बचाने के लिये अपना पूरा जोर लगाया था, लेकिन महात्मा गाँधी का सहयोग नहीं मिल पाने से उनको सफलता नहीं मिल पाई थीं. पन्त जी कई बार जेल भी जा चुके थे.

पन्त जी को साइमन कमीशन और नमक सत्याग्रह आंदोलनों में सरकार के बहिष्कार के जुर्म में जेल जाना पड़ा था. पन्त जी को 1930 में देहरादून की जेल रखा गया.

उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में :

गोविन्द वल्लभ पन्त जी 1937 से 1939 तक उत्तर प्रदेश के समय उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने थें. उसके बाद पन्त जी 1946 से 1947 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर रहें. जिस समय पन्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उस समय इस प्रदेश का नाम सयुंक्त प्रान्त हुआ करता था. भारत के सविंधान बनने के बाद इसका नाम उत्तर प्रदेश रखा गया फिर आगे श्री पन्त जी को प्रदेश की कमान दे दी और पन्त 26 जनवरी 1950 से 1954 तक मुख्यमंत्री रहें.

भारत के होम मिनिस्टर के तौर पर :

गोविन्द वल्लभ पन्त उस समय के Home minister सरदार वल्लभ भाई पटेल की अचानक मौत के बाद भारत के गृह मंत्री बनाये गये. गोविन्द वल्लभ पन्त के ने भारत के Home Minister के पद पर अपना कार्यकाल 1955 से 1961 तक पूरा किया.

गोविन्द वल्लभ पन्त के नाम पर देश में संस्थान :

* गोविन्द वल्लभ पन्त कृषि एवं प्रोद्धयोगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर, जिला उधम सिंह नगर, उतराखंड, भारत
* गोविन्द वल्लभ पन्त सागर सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
* गोविन्द वल्लभ पन्त अभियन्त्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी, उत्तराखंड, भारत

गोविन्द वल्लभ पन्त की मृत्यु :

श्री पन्त जी मृत्यु 7 मई 1961 में दिल का दौरा पड़ने से हुई तब श्री पन्त भारत सरकार के होम मिनिस्टर के पद पर थे. उनकी मृत्यु के बाद श्री लाल बहादुर शास्त्री देश के नये होम मिनिस्टर बने.

एक नजर गोविंद बल्लभ पंत के कार्यो पर – Govind Ballabh Pant Life History

  • पंत जी इलाहाबाद के तत्कालीन ‘म्योर सेण्ट्रल कॉलेज’ से स्नातक एवं वकालत की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
  • सन 1909 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडवोकेट बने और नैनीताल में वकालत प्रारम्भ की।
  • पन्त जी की वकालत की काशीपुर में धाक थी और उनकी आय 500 रुपए मासिक से भी अधिक हो गई। पंत जी के कारण काशीपुर राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टियों से कुमाऊँ के अन्य नगरों की अपेक्षा अधिक जागरुक था। अंग्रेज़ शासकों ने काशीपुर नगर को काली सूची में शामिल कर लिया। पंतजी के नेतृत्व के कारण अंग्रेज़ काशीपुर को ”गोविन्दगढ़“ कहती थी।
  • 1914 में काशीपुर में ‘प्रेमसभा’ की स्थापना पंत जी के प्रयत्नों से ही हुई। ब्रिटिश शासकों ने समझा कि समाज सुधार के नाम पर यहाँ आतंकवादी कार्यो को प्रोत्साहन दिया जाता है। फलस्वरूप इस सभा को हटाने के अनेक प्रयत्न किये गये पर पंत जी के प्रयत्नों से वह सफल नहीं हो पाये।
  • 1914 में पंत जी के प्रयत्नों से ही ‘उदयराज हिन्दू हाईस्कूल’ की स्थापना हुई। राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के आरोप में ब्रिटिश सरकार ने इस स्कूल के विरुद्ध डिग्री दायर कर नीलामी के आदेश पारित कर दिये। जब पंत जी को पता चला तो उन्होंनें चन्दा मांगकर इसको पूरा किया।
  • 1916 में पंत जी काशीपुर की ‘नोटीफाइड ऐरिया कमेटी’ में लिये गये। बाद में कमेटी की ‘शिक्षा समिति’ के अध्यक्ष बने। कुमायूं में सबसे पहले निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा लागू करने का श्रेय पंत जी को ही है।
  • पंतजी ने कुमायूं में ‘राष्ट्रीय आन्दोलन’ को ‘अंहिसा’ के आधार पर संगठित किया। आरम्भ से ही कुमाऊं के राजनीतिक आन्दोलन का नेतृत्व पंत जी के हाथों में रहा। कुमाऊं में राष्ट्रीय आन्दोलन का आरम्भ कुली उतार, जंगलात आंदोलन, स्वदेशी प्रचार तथा विदेशी कपडों की होली व लगान-बंदी आदि से हुआ। बाद में धीरे-धीरे कांग्रेस द्वारा घोषित असहयोग आन्दोलन की लहर कुमायूं में छा गयी। 1926 के बाद यह कांग्रेस में मिल गयी।
  • दिसम्बर 1920 में ‘कुमाऊं परिषद’ का ‘वार्षिक अधिवेशन’ काशीपुर में हुआ। जहां 150 प्रतिनिधियों के ठहरने की व्यवस्था काशीपुर नरेश की कोठी में की गई। पंतजी ने बताया कि परिषद का उद्देश्य कुमाऊं के कष्टों को दूर करना है न कि सरकार से संघर्ष करना।
  • 23 जुलाई, 1928 को पन्त जी ‘नैनीताल ज़िला बोर्ड’ के चैयरमैन चुने गये। 1920-21 में भी चैयरमैन रह चुके थे।
  • पंत जी का राजनीतिक सिद्धान्त था कि अपने क्षेत्र की राजनीति की कभी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। 1929 में गांधी जी कोसानी से रामनगर होते हुए काशीपुर भी गये। काशीपुर में गांधी जी लाला नानकचन्द खत्री के बाग़ में ठहरे थे। पंत जी ने काशीपुर में एक चरखा संघ की विधिवत स्थापना की।
  • नवम्बर, 1934 में गोविन्द बल्लभ पंत ‘रुहेलखण्ड-कुमाऊं’ क्षेत्र से केन्द्रीय विधान सभा के लिए निर्विरोध चुन लिये गये।
  • 17 जुलाई, 1937 को गोविन्द बल्लभ पंत ‘संयुक्त प्रान्त’ के प्रथम मुख्यमंत्री बने जिसमें नारायण दत्त तिवारी संसदीय सचिव नियुक्त किये गये थे।
  • सन 1921, 1930, 1932 और 1934 के स्वतंत्रता संग्रामों में लगभग 7 वर्ष जेलों में रहे।
  • पन्त जी 1946 से दिसम्बर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंत जी को भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि थी। 21 मई, 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी।
  • सन 1937 से 1939 एवं 1954 तक अर्थात मृत्यु पर्यन्त केन्द्रीय सरकार के स्वराष्ट्र मंत्री रहे।
  • पंत जी एक विद्वान क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान नेता व महान अर्थशास्त्री भी थे। कृष्णचन्द्र पंत उनके सुयोग्य पुत्र केन्द्र सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *