Dance art in Bihar | बिहार में नृत्य कला
बिहार में नृत्य कला
Dance art in Bihar
वर्ग – 9
विषय – हिंदी
पाठ 3 – बिहार में नृत्य कला
बिहार में नृत्यकला
सारांश
बिहार में नृत्यकला का विकास बारहवीं सदी के पहल ही विकसित हुआ था । इस तरह का प्रमाण संगीत शास्त्री ज्योतिरीश्वर ठाकुर तथा शुभंकर ठाकुर के उल्लेख से पता चलता है । विहार के लोकनृत्य कथामूलक , सामूहिक और नाटकीयता के साथ गायन तथा वादन की विशेषता रखता है ।
मिथिला के लोकनृत्य में जट – जटिन , झिझिया , करिया झुमर , विदापत और सामाचकेवा प्रमुख है । इसमें मुख्य भूमिका नारियाँ निभाती है । झिझिया नृत्य में नारी घेराबन्दी के बीच एक औरत माथे पर छेदवाली घड़ा में दीपक रखकर लय – ताल के साथ नाचती है । इस नृत्य का अनुष्ठानिक महत्त्व होता है । लड़कियों का नृत्य करिया झुमर है जो साँझ या रात में सम्पन्न होता है । दलित वर्ग के औरतों का नाच ‘ विदापत ‘ नाच है । ‘ सामा – चकेवा ‘ में अभिनय और गायन के समय विभिन्न जीवों की मूर्तियाँ रखी जाती है । झिझिया लोकनृत्य बाढ़ के दिनों में चाँदनी रात में स्त्री – पुरुष नाव पर गायन – नृत्य करते हैं ।
नारी – नृत्यों में डोमकच , जलुआ प्रायः पूरे बिहार में प्रचलन में है । डोमकच नृत्य बारात के दिन रात में नारिया दूल्हे के घर पर करती है ।
खेलड़िन नाच गया जिला की नाच है । इसे विवाह और मांगलिक मौके पर नाचती हुई गालियाँ दी जाती है । यह नाच नवादा जिला के रजौली गाँव का नृत्य है जो लुप्तम प्रायः हो गया ।
भोजपुरी क्षेत्रों का नाच में गोंड , पँवरिया , लौडा नाच प्रसिद्ध है । नट जाती के लोग इस नाच में मुख्य भूमिका निभाते हैं । गाँड़ नाच अश्लीलता प्रतिक होते हुए भी भोजपुरी संस्कृति में विशेष स्थान रखता है । लौंडा नाच पुरुष प्रधान नाच है । भिखाड़ी ठाकुर की मण्डली लौंडा नाच है । विदेसिया भी पुरुष प्रधान नाच है इसमें औरतों की भूमिका पुरुष ही करते हैं । लौंडा नृत्य में बलराम लाल जी का स्थान प्रमुख है ।
पटना सिटी का गुड़िया नाच जिसे मुखौटा नृत्य भी कहा जाता है , प्रसिद्ध है । एक ही पुरुष नारी का भी मुखौटा लगाकर नृत्य करता है । मुखौटा दु { हा होता है । एक तरफ़ नारी का दूसरे तरफ नर का । यह एक कठिन नृत्य है ।
ध्रुपद , ठुमरी गायन तथा वादन की परम्परा बिहार में मिलती है पर शास्त्रीय नर्तकों की कोई परम्परा यहाँ नहीं है । कथक नर्तकों में बिहार की अपने विशेष पहचान है ।
बिहार में शास्त्रीय नृत्य की पहली ज्योति जलाने का काम हरि उप्पल ने किया । ये कथकली नृत्य की शिक्षा के धनी थे । भारतीय नृत्य कला मंदिर के संस्थापक थे हरि उप्पल जी । बिहार में उन्होंने नृत्य का प्रांगण तैयार किया जिसे नलिन गांगुली , नगेन्द्र मोहनी तथा मधुकर आनंद जहाँ बड़े नतर्क प्रांत में उपलब्ध हुए ।
नगेन्द्र मोहनी जैसा नाम वैसा काम मधुर बाली स्नेहिल स्वभाव वाले कथक तथा भारत – नाट्यम में विशेष योगदन देने वालों में एक थे । ये नृत्य शिक्षक थे । नृत्य शास्त्र पर अनेक पुस्तकें लिखी । नृत्य गरुओं में पं . शिवजी मिश्र का नाम आता है ये भारतीय नृत्य कला मंदिर के सम्मानित आचार्य थे ।
मधुकर आनन्द नृत्य अपने पिता बलराम लाल जी से सीखी तथा कथक नृत्य नगेन्द्र मोहनी से । इनकी प्रतिभा देखकर डॉ . शिवनारायण सिंह ने इन्हें विश्व विख्यात नर्तक बिरजू महाराज के पास भेजा । बिरजू महाराज को भी ऐसा शिक्षार्थी पर गर्व करना स्वाभाविक था । शोभना नारायण जो सरकारी पदाधिकारी थे बिरजू महाराज से शिक्षा ग्रहण कर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति पाई ।
अभ्यास
प्रश्न 1. बिहार में प्रचलित किसी एक लोक नृत्य का परिचय दीजिए ।
उत्तर – बिहार में लोक नृत्य की सजीव परंपरा है । यहाँ अनेक प्रकार के लोक नृत्य है इसमें झिझिया एक मोहक तथा अनुष्ठानिक नृत्य है । झिझिया एक नारी नृत्य है । महिलाएँ गोल घेराबन्दी के बीच एक औरत माथे पर छेद वाला घड़ा रखती है घड़े में एक दीपक होता है । लय – ताल के साथ औरतें नृत्य करती है ।
प्रश्न 2. मगह में किस लोक नृत्य का प्रचलन था ? एक संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
उत्तर – मगह में ‘ खेलडिन ‘ लोक नृत्य का प्रचलन था । गया जिले में नाचने – गाने वाली एक पेशेवर जाती थी , वे शादी – विवाह का कोई मांगलिक मौकों पर बुलाई जाती । इसमें 10-15 के पक्तिबद्ध समूह में नाचती हुई गालियाँ भी गाती थी । इस नाच में विभिन्न बाजाओं का प्रयोग करती थी ।
प्रश्न 3. कथक नृत्य में बिहार का क्या योगदान रहा है ?
उत्तर – शास्त्रीय नर्तकों की कोई विशिष्ट परंपरा बिहार में नहीं मिलती जो संगीत के क्षेत्र में मिली । इसके बावजूद भी हरि उत्पल , नगेन्द्र मोहनी , मधुकर आनन्द ने कथक नृत्य में बिहार की प्रतिष्ठा बढ़ाया है ।
प्रश्न 4. बिहार के नृत्य जगत में हरि उत्पल का क्या महत्व रहा है ?
उत्तर – हरि उत्पल ने बिहार में शास्त्रीय नृत्य की पहली ज्योति प्रदान की । उनमें कथकली को कोमलता तथा मणिपुरी के वीर भाव दोनों में अपूर्व दक्षता प्राप्त थी । उन्हीं के प्रयास के फलस्वरूप बिहार में नृत्य कला मंदिर की स्थापना हुई ।
प्रश्न 5. भारतीय नृत्य कला मंदिर कहाँ है ? उसकी स्थापना किसने की ?
उत्तर– भारतीय नृत्य कला मोदर पटना में है । उसकी स्थापना हरि उत्पल ने की ।
प्रश्न 6. कथक और भरतनाट्यम के विशेषज्ञ किसी एक बिहारी नर्तक का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
उत्तर – कथक तथा भरतनाट्यम के विशेषज्ञ के रूप में नगेन्द्र मोहिनी का नाम लिया जाता है । छरहरा वदन मधुर बोली , सहज स्नेहिल स्वभाव वाले दर्शकों को मुग्ध करने वाले थे । वे नृत्य शिक्षक थे । नृत्य शास्त्र पर अनेक पुस्तकों को लिखा । इन्हें नृत्य में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली ।
प्रश्न 7. गुड़िया नृत्य किसे कहते हैं ?
उत्तर — गुडिया नृत्य के लिए एक मुखौटा होता है । उस मुखौटा में एक ओर स्त्री का तथा दूसरी ओर पुरुष का चेहरा होता है । एक ही आदमी मुखौटा लगाकर औरत तथा मर्द की भूमिका निभाता है । यह नृत्य बहुत कठिन है । यह पटना को लोक नृत्य है ।
प्रश्न 8. बिहार के लोक नृत्य में भिखारी ठाकुर का क्या महत्त्व रहा है ?
उत्तर – भिखारी ठाकुर के नाम लेते ही भोजपुरवासी की बाछे खिल जाती है । पेशेवर का विकास भोजपुर में हुआ । भिखारी ठाकुर इस नाच मण्डली को ऊँचाई तक पहुँचाने का काम किया था । यह मण्डली लौंडे नाच की मण्डली थी । भिखारी ठाकुर ने विदेसिया जैसे अनेक मौलिक नाटकों की शैलियाँ विकसित की । इसमें पुरुष नारी के वेश में नाच करते हैं । लौंडा नाच भोजपुर से होते हुए पुरे बिहार में अपना परचम लहराया । इस तरह भिखारी ठाकुर की देन चिस्मरणीय है ।
प्रश्न 9. नगेन्द्र मोहिनी का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
उत्तर – नगेन्द्र मोहिनी ” कथक ” तथा ” भरतनाट्यम ” के प्रेरणा स्रोत है । छरहरा शरीर , मधुर भाषी , स्नेहशील स्वभाव , दर्शकों को मन मुग्ध करने वाले नगेन्द्र मोहिनी को कौन नहीं जानता । ये उच्च कोटि के नृत्य शिक्षक तथा उच्च कोटि के नृत्य शास्त्र के रचनाकार थे । उन्होंने अपनी रचनाओं से बिहार का नाम रोशन किया है ।