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Columbus biography in hindi | क्रिस्टोफर कोलंबस की जीवनी

Columbus biography in hindi | क्रिस्टोफर कोलंबस की जीवनी

Columbus biography in hindi

क्रिस्टोफर कोलंबस एक महान समुद्री खोजकर्ता थे। उन्होंने अमेरिकी द्धीपों की खोज की और यूरोपियन लोगों के लिए व्यापार के रास्ते खोले। हालांकि, अमेरिका की जगह वे भारत की खोज करना चाहता थे, और गलती से उन्होंने अमेरिकी द्धीप खोज गए थे।वहीं भारत की खोज के लिए कोलंबस ने अपनी यात्रा की शुरुआत 3 अगस्त 1492 में कर दी थी। 60 दिन से भी ज्यादा की यात्रा के बाद जब कोलंबस का जहाज एक किनारे पर रुका, तब उसे लगा कि वह भारत पहुंच चुका है, जबकि वो अमेरिकी द्धीप में पहुंचा था, तो आइए जानते हैं महान खोजकर्ता कोलबंस के जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प एवं अनसुने तथ्यों के बारे में

अमेरिकी द्धीपों की खोज करने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस की जीवनी:-

पूरा नाम (Name) क्रिस्टोफर कोलम्बस
जन्म (Birthday) 1451, गेनोआ, इटली
पिता (Father Name) डोमेनिको कोलंबो
माता (Mother Name) Susanna Fontanarossa
पेशा खोजकर्ता
मशहूर  अमेरिकी द्धीपों की खोज

क्रिस्टोफर कोलंबर का जन्म और शुरुआती जीवन:-

दुनिया के महान खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस इटली के जिनोओ में एक जुलाहे के परिवार में जन्में थे। उनके पिता का नाम डोमेनिको कोलंबो था, जो कि एक जुलाहे थे, जबकि उनकी माता का नाम सुसाना फोंटानारोसा था। अपने बचपन के शुरुआती दिनों से ही कोलंबस अपने पिता के साथ उनके व्यापार में हाथ बंटाते थे।वहीं बाद में उनकी दिलचस्पी समुद्री यात्राओं की तरफ बढ़ने लगी और उन्होंने काफी मेहनत और लगन से नौकायन का बेहतर ज्ञान हासिल कर लिया। वहीं नौकायन का बेहतर ज्ञान होने के चलते उन्हें उत्तर की तरफ जाने वाली नावों के साथ व्यापार करने का अवसर प्राप्त हुआ इस तरह उन्होंने समुद्रीय यात्राओं को अपना पेशा बना लिया और बाद में अमेरिकी द्धीपों की खोज कर खुद को विश्व के सबसे महान समुद्री खोजकर्ता के रुप में साबित किया।

कोलंबस के समय बंद हो गया था यूरोप से भारत आने वाला रास्ता:-

कोलंबस के वक्त यूरोप के व्यापारी जमीन के रास्तों के माध्यम से भारत समेत अन्य एशियाई देशों में अपना माल बेचते थे और वापस जाते समय वहां के मसालों आदि पदार्थ यूरोप में लाकर बेचकर मुनाफा कमाते थे। यह जमीनी रास्ता तुर्कस्तान, इरान और अफगानिस्तान से होते हुए भारत की तरफ जाता था।हालांकि 1453 में इन सभी इलाकों में मुस्लिम तुर्कानी सम्राज्य ने अपना अधिकार जमा लिया और यह सभी जमीनी रास्ते यूरोपियन व्यापारियों के लिए बंद कर दिए गए, जिसके चलते भारत और एशियाई देशों के साथ यूरोप से व्यापार पूरी तरह ठप हो गया और वहां की अर्थव्यवस्था काफी कमजोर पड़ गई।

व्यापार के लिए काफी जरूरी हो गया था भारत के नए रास्ते की खोज:-

जमीनी रास्ते बंद होने की वजह से जब यूरोप के साथ भारत और अन्य एशियाई देशों का व्यापार पूरी तरह बंद हो गया, उस दौरान यूरोपीय देशों की अर्थव्यव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भारत और ऐशियाई देशों के लिए नए रास्ते की खोज करना बेहद जरूरी हो गया था।वहीं जब कोलंबस इसके बारे में सोच रहे थे, तभी उनके मन में विचार आया कि अगर जमीनी रास्ते से भारत नहीं पहुंचा जा सकता तो इसके लिए समुद्री रास्ता खोजा जा सकता है।कोलंबस ने बचपन में किताबों में पढ़ा था कि पृथ्वी गोल है, और फिर क्या था, उन्होंने सोचा कि अगर समुद्र के रास्ते पश्चिम की तरफ खोज की जाए तो भारत तक पहुंचा जा सकता है, और वह अपनी इस सोच के साथ भारत की खोज के लिए निकल पडे़, हालांकि उनकी यह यकीन तब गलत साबित हुआ जब उन्होंने अमेरिकी द्धीपों को ही भारत समझ लिया। फिलहाल उन्होंने अपनी समुद्री यात्रा की शुरुआत इस तरह की।

3 अगस्त 1492 से कोलंबस ने की अपने समुद्री सफर की शुरुआत:-

क्रिस्टोफर कोलंबस जब भारत की खोज के लिए अपनी समुद्री यात्रा की शुरुआत करने जा रहे थे, तब उन्होंने अपने इस समुद्री यात्रा का खर्च उठाने के लिए पुर्तगाल के राजा के सामने प्रस्ताव रखा, लेकिन वहां के राजा को कोलंबस की इस सोच पर यकीन नहीं हुआ कि समुद्र के रास्ते पश्चिम की तरफ खोज की जाए तो भारत के लिए नया रास्ता मिल जाएगा, इसलिए उन्होंने इस सफर का खर्चा उठाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।फिर क्या था अपने यकीन को हकीकत में बदलने के लिए कोलंबस ने स्पेन के शासकों से मद्द मांगी, जिसके बाद स्पेन के शासक उनकी समुद्री यात्रा का पूरा खर्च उठाने के लिए तैयार हो गए। हालांकि, उन्हें अपनी इस यात्रा की शुरुआत करने के लिए सिर्फ खर्च का इंतजाम करना ही नाकाफी नहीं था, बल्कि उन्हें कई ऐसे नाविकों की तलाश भी थी, जो कि उनकी सोच पर विश्वार करे और उनके साथ इस खोज में मद्द करे।दरअसल उस वक्त लोगों की यह सोच थी कि धरती टेबल की तरफ चपटी है, और अगर वे विशाल समुद्र के लंबे सफर पर निकलेंगे तो एक दिन समुद्र के खत्म होते ही वे कहीं नीचे गिर जाएंगे। ऐसे में इस खोज के लिए अपने साथ कुछ नाविकों को तैयार करना क्रिस्टोफर कोलंबस के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन कोलंबस ने किसी तरह करीब 90 नाविकों को समझा-बुझाकर अपने इस समुद्री यात्रा में चलने के लिए तैयार किया।और इस तरह वे 3 अगस्त, 1492 को उन्होंने स्पेन से भारत के लिए नए समुद्री रास्तों की खोज के लिए निकल पड़े। उनके इस समुद्री यात्रा के दौरान उनके साथ पिंटा, सांता और नीना नाम के तीन जहाज भी थे। वहीं उनके सफर के शुरु होने के कई दिनों बाद भी जमीन का कोई नामोनिशान नहीं दिख रहा था, जिसके चलते उनके साथ इस यात्रा के लिए बेमुश्किल तैयार हुए नाविक काफी घबराने लगे और निराश हो गए, तो कई नाविकों ने तो कोलंबस से वापस यूरोप का रुख करने तक के लिए गुहार लगाई।यही नहीं इस समुद्री यात्रा के दौरान अचानक आए भयंकर तूफान से उनके साथ जहाज में बैठे नाविकों का धैर्य टूटने लगा और उन्होंने इसके चलते कोलबंस को जान से मारने तक की धमकी दे डाली। लेकिन इन सबके बाबजूद भी कोलंबस अपने मार्ग से नहीं भटके और किसी तरह नाविकों को सांत्वना दी और उनके साथ आगे यात्रा करने के लिए प्रार्थना की। इस तरह काफी कठिनाइयों के बाद भी अपने यकीन के साथ कोलंबस शांति के साथ आगे बढ़ता चला गया।

करीब 2 महीने से भी ज्यादा के सफर के बाद कोलंबस को दिखी धरती:-

क्रिस्टोफर कोलंबस को अपनी समुद्री यात्रा को शुरु किए हुए दो महीने से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका था, इसके बाद करीब 9 अक्टूबर, 1492 को क्रिस्टोफर कोलंबस को आकाश में कुछ सुंदर पक्षी दिखाई दिए, जिन्हें देखकर कोलंबस को आगे जमीन होने की उम्मीद जगी और फिर इसी के चलते क्रिस्टोफर कोलंबस ने अपने जहाजों को पक्षियों की दिशा में जहाज मोड़ने का आदेश दिया, और इसके करीब 3 दिन बाद 12 अक्टूबर, 1492 को कोलंबस के जहाज धरती के किनारे आ गए। और कोलंबस ने जमीर पर पैर रखे।हालांकि, कोलंबस उस वक्त यह सोच रहे थे कि उनके जहाज भारत पहुंच चुके हैं, लेकिन वास्तव में वे एक अमेरिकी कैरेबी द्धीप पर पहुंचे थे, जो कि बहामास का आइलैंड सैन सल्वाडोर था। इसके बाद कोलंबस ने अपना खोजी अभियान आगे जारी रखते हुए इसके कुछ हफ्तों के बाद कई अन्य कैरिबियाई द्धीपों की खोज की। इसमें हिस्पानिओला (सैंट डोमिनगो), जुआना (क्यूबा) आदि शामिल थे।इन सभी खोजे हुए द्धीपों को मिलाकर कोलंबस ने उन्हें ”इंडीज” नाम दिया। वहीं इंडीज के प्रदेश में उस वक्त आदिवासी रहते थे, जिन पर आसानी से अपनी हुकूमत की जा सकती थी।इसलिए कोलंबस ने यहां की दौलत को अपने कब्जे में करने के मकसद से और यहां के लोगों को गुलाम बनाने के लिए अपनी चतुराई दिखाई और अपने 90 साथियों में से करीब 40 नाविक साथियों को यहां पर छोड़ दिया और फिर वापस स्पेन चला गया।

कोलंबस को ढूंढे हुए प्रदेशों का बनाया गया गर्वनर:-

महान खोजकर्ता कोलंबस 15 मार्च, 1493 को स्पेन पहुंचा, जहां पर स्पेन के शासक ने उसका जोरदार स्वागत किया और उन्हें खोजे हुए सभी प्रदेशों का गर्वनर नियुक्त किया। वहीं इसके बाद 1506 से अपनी मौत से पहले कोलंबस ने तीन बार अपने साथियों के साथ अमेरिकी द्धीपों की समुद्री यात्रा की और हर बार वह अमेरिकी द्धीपों से काफी धन-दौलत लूट कर ले आता था।वहीं कई दस्तावेजों में कोलबंस को एक अत्याचारी और क्रूर तानाशाह बताया गया है, साथ ही उस पर स्पेन के लिए लाए जाने वाले धन में घोटाला करने समेत कई जघन्य आरोप लगाए गए थे। वहीं उसकी काली करतूतों का पता लगने पर स्पेन के शासन ने उसे गर्वनर के पद से भी हटा दिया था। आपको बता दें कि 13 दिसंबर 1493 में जब वो 42 साल का था तब उसने दूसरी बार अमेरिकी द्धीपों की यात्रा की थी।फिर इसके 5 साल बाद 30 मई 1498 में वह तीसरी बार अमेरिकी द्धीपों की यात्रा पर निकला था। जबकि चौथी बार 11 मई, 1502 ईसवी में उन्होंने अमेरिकी द्धीप की यात्रा की। वहीं कोलंबस के लिए उसकी यह आखिरी समुद्री यात्रा साबित हुई, क्योंकि इसके बाद फिर वो कभी अमेरिकी द्धीपों की तरफ रुख नहीं कर पाय।इस तरह महान खोजकर्ता कोलंबस ने अपने जीवन में करीब 4 बार समुद्री यात्राएं की थी, और अपनी इस समुद्री यात्राओं के दौरान उन्होंने मध्य दक्षिण अमेरिका के कई हिस्सों की खोज की।

कोलंबस की मृत्यु:-

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त में कोलंबस एक भयंकर बीमारी से ग्रसित हो गए थे, जिसके चलते 20 मई, 1506 में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। वहीं महान खोजकर्ता कोलंबस के बारे में यह काफी हैरान कर देने वाला तथ्य यह है कि उसे अपनी आखिरी वक्त तक यह नहीं पता था कि जिन इलाकों की उसके द्घारा खोज की गई है वो भारत नहीं बल्कि अमेरिकी द्धीप हैं। फिलहाल, कोलंबस की जीवन की सच्चाई जो भी हो, लेकिन उनके उनके संकल्प और दृढ़निश्चय से हर किसी को सीख लेने की जरूरत है।यकीनन वे भारत की खोज नहीं कर सके, लेकिन अपने संकल्प पथ पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने कई अमेरिकी द्धीपों की खोज की और यूरोप के लिए व्यापार के नए रास्ते खोले।

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