12-sociology

bseb class 12th sociology notes | परियोजना

bseb class 12th sociology notes | परियोजना

bseb class 12th sociology notes | परियोजना

परियोजना कार्य के लिए सुझाव

(Suggestion for Project Work)

बस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Questions)

  1. “ज्ञान उपयोगी और व्यावहारिक होना चाहिए।” यह कथन किसका है ?

(क) एडम स्मिथ

(ख) आई० बी० शर्मा

(ग) स्टीबेन्सन

(घ) बेलार्ड

उत्तर-(ख)

  1. प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन पर एक भाग है जिसका प्रयोग विद्यालय में किया जाता

है। यह कथन है

(क) बेलार्ड

(ख) किलपैट्रिक

(ग) स्टीबेन्सन

(घ) रॉबर्ट बीरस्टीक

उत्तर-(क)

  1. प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्णत को

प्राप्त करता है।

(क) आई० बी० वर्मा

(ख) स्टीबेन्सन

(ग) किल पैट्रिक

(घ) बेवार्ड

उत्तर-(ग)

  1. प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्णता को

प्राप्त करता है।

(क) बोगार्डस

(ख) स्टीवेन्सन

(ग) ऑगबर्न तथा निमकॉफ

(घ) किलपैट्रिक

उत्तर-(ख)

  1. यह कथन किसका है कि “प्रोजेक्ट वह उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता में

सामाजिक वातावरण में किया जाता हैं।”

(क) किल मैट्रिक

(ख) सी० एच० कूले

(ग) एस० बी० केतकर

(घ) मजूमदार और मान

उत्तर-(क)

 

(ख) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

(1) प्रोजेक्ट कार्य को शब्दों ………….. + ………….. से मिलकर बना है।

(2) ………….. बालकों को पूर्ण संतुष्टि व उपयोगी प्रशिक्षण देता है।

(3) प्रोजेक्ट कार्य का लक्ष्य ………… …………… होता है।

(4) प्रोजेक्ट कार्य से …………… विकास होता है।

(5) प्रोजेक्ट कार्य से बाजारों को ……………. संतुष्टि प्राप्त होती है।

उत्तर-(1) प्रोजेक्ट कार्य, (2) प्रोजेक्ट कार्य, (3) उपयोगितावादी, रचनात्मक, (4)

. चरित्र, (5) मनोवैज्ञानिक।

 

(ग) निम्नलिखित कथनों में सत्य एवं असत्य बताइये :

(1) प्रोजेक्ट कार्य से आत्म विकास का अवसर प्राप्त होता है।

(2) प्रोजेक्ट कार्य में सर्वेक्षण का आयोजन किया जाता है।

(3) प्रोजेक्ट कार्य में तथ्यों का संकलन नहीं किया जाता है।

(4) प्रोजेक्ट कार्य रो सामाजिक भावना का विकास होता है।

(5) प्रोजेक्ट कार्य में कम धन की आवश्यकता पड़ती है।

उत्तर-(1) सत्य, (2) सत्य, (3) असत्य, (4) सत्य, (5) असत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

(Very Short Answer Type Questions) 

प्रश्न 1. प्रोजेक्ट की परिभाषा लिखिए।

उत्तर-बेलार्ड (Ballard) के अनुसार, “प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक भाग है जिसका प्रयोग विद्यालय में किया जाता है।” (A projects is a bit of real life that has been imparted into shcool)

प्रश्न 2. प्रोजेक्ट कार्य से क्या आशय है?

उत्तर-शाब्दिक दृष्टि से प्रोजेक्ट कार्य दो शब्दों प्रोजेक्ट + कार्य से मिलकर बना है, प्रोजेक्ट का अर्थ योजना से और कार्य का अभिप्राय कार्यप्रणाली या विधि से है। इस प्रकार प्रोजेक्ट कार्य का अभिप्राय योजना की कार्यप्रणाली से है।

प्रश्न 3. प्रोजेक्ट कार्य का क्या लक्ष्य होता है ?

उत्तर-प्रोजेक्ट कार्य का लक्ष्य उपयोगितावादी या रचनात्मक होता है। प्रोजेक्ट कार्य से जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है वह उपयोगी और व्यावहारिक होता है। संभवतः इसी बात को दृष्टिगत

रखते हुए आई.बी. वर्मा ने लिखा है “ज्ञान उपयोगी और व्यावहारिक होना चाहिए।” प्रोजेक्ट कार्य इस उपयोगिता की सुनिश्चित करता है क्योंकि यह बनावटी नहीं होता वरन् स्वाभाविक परस्थितियों के अन्तर्गत क्रियान्वित किया जाता है। यह अच्छे परिणाम देता है इसमें बर्बादी कम से कम होती है। यह बालकों को पूर्ण संतुष्टि व उपयोगी प्रशिक्षण देता है।

प्रश्न 4. प्रोजेक्ट कार्य के आयोजन के तीन चरण लिखिए। [B.M.2009A]

उत्तर-(i) समस्या का चुनाव।

(ii) प्रोजेक्ट बनाने वाले की रुचि का विषय चुनना।

(iii) विषय का साधन सीमा के अंतर्गत होना।

(iv) समस्या की उपयोगिता के बारे में निश्चित होना।

प्रश्न 5. प्रोजेक्ट कार्य कब सफल हो सकता है ?

उत्तर-किसी प्रोजेक्ट कार्य की योजना, संगठन तथा संचालन किसी व्यापार को चलाने के समान है, जिसमें तकनीकी ज्ञान एवं कार्यकुशलता की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 6. प्रोजेक्ट कार्य के गुण लिखिए।

उत्तर-(i) मनोवैज्ञानिक संतुष्टि।

(ii) आत्मविश्वास का अवसर।

(iii) विकास का समान अवसर।

(iv) व्यावहारिकता।

(v) सामाजिक भावना का विकास।

प्रश्न 7. नियोजन किसे कहते हैं ?

उत्तर-नियोजन किसी निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए साधनों की वह व्यवस्था है, जिसके आधार पर एक निश्चित अवधि में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।

प्रश्न 8. प्रोजेक्ट कार्य के दो गुण बताएं।

उत्तर-1. मनोवैज्ञानिक संतुष्टि,

  1. सामाजिक भावना का विकास।

प्रश्न 9. प्रोजेक्ट कार्य के विभिन्न चरणों के नाम बताएँ।

उत्तर-1. प्रोजेक्ट कार्य/सर्वेक्षण का आयोजन।

  1. तथ्यों/सामग्री का संकलन।
  2. तथ्यों का विश्लेषण तथा वर्गीकरण।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

   (Short Answer Type Questions) 

प्रश्न 1. प्रोजेक्ट कार्य की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?

उत्तर-प्रयोजनवादी विचारधारा के समर्थक श्री किलपैट्रिक (W.H. Kilpatrik) को प्रोजेक्ट विधि या प्रोजेक्ट कार्य का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने प्रोजेक्ट कार्य की आवश्यकता को प्रकट करते हुए लिखा है, “आधुनिक समय में विद्यालय और समाज ती एवं विस्तृत तौर पर एक-दूसरे से पृथक हो गए हैं। विचार तथा कार्य दो क्षेत्रों में स्थान, समय और भेद में असंबंधित हो गए हैं। विद्यालय में जो कुछ अध्ययन किया जाता है और संसार में जो कुछ हो रहा है, इन दोनों में बहुत ही कम संबंध पाया जाता है। विद्यालय में बालकों को प्रौढ़ों के साथ सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने का कोई अवसर प्राप्त नहीं हो पाता, इसलिए हम चाहते हैं कि शिक्षा वास्तविक जीवन की गहराई में प्रवेश कर, केवल सामाजिक जीवन में ही नहीं, वरन् उस उत्तम जीवन की जिसकी हम आकांक्षा करते हैं।” इसका आशय है कि स्कूलों में छात्र/छात्राओं को घिसे-पिटे तरीके से ज्ञान नहीं दिया जाना चाहिए वरन् उन्हें रुचियों, प्रवृत्तियों एवं आवश्यकताओं

के अनुसार योजना कार्य (Project Work) में लगाकर ज्ञान देना चाहिए तथा शिक्षा में सामाजिक दृष्टिकोण की उपेक्षा न हो सके।

प्रश्न 2. प्रोजेक्ट की परिभाषा लिखिए। उत्तर-प्रोजेक्ट का योजना की परिभाषा (Meaning and definition of project) :

(i) स्टीवेन्सन (Prof. Stevenson): “प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्णता को प्राप्त करता है।” (A project is a problematic act carried to completion in its natural setting.)

(ii) किलपैट्रिक (Kilpatrick): “प्रोजेक्ट वह सहृदय उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है।” (A project is whole-hearted purposeful activity proceeding in a social environment.)

(iii) बेलार्ड (Ballard) : “प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक भाग है जिसका प्रयोग विद्यालय में किया जाता है।” (A project is abrt of real life that has been imparted into school.)

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रोजेक्ट या योजन वास्तविक सामाजिक परिवेश में ज्ञान व नवीन अनुभव प्राप्त करने का एक समस्यामूलक कार्य है। इसका मूल उद्देश्य व्यावहारिक स्तर पर ज्ञान प्राप्त करना है।

प्रश्न 3. प्रोजेक्ट कार्य हेतु तथ्यों का संकलन किस प्रकार करते हैं ?

उत्तर-तथ्यों का संकलन (Collection of Data): तथ्यों का संकलन प्रोजेक्ट कार्य अथवा सर्वेक्षण में मुख्य कार्य है। सर्वेक्षणकर्ताओं को तथ्यों का संकलन सावधानी, लगन, तत्परता, सत्यनिष्ठा और परिश्रम से करना होता है। तथ्यों के संकलन को भी विभिन्न भागों में बाँटा जा सकता है :

(1) सूचनादाताओं से संपर्क स्थापित करना (To create rapport with the informants): सूचनादाताओं से सीधे जाकर पूछताछ नहीं की जा सकती, क्योंकि सूचनादाताओं में सर्वप्रथम सर्वेक्षण के प्रति स्पष्ट विचार एवं आस्था का निर्माण करना आवश्यक है। सूचनादाताओं की हिचक निकालने के लिए यह स्थिति लाभदायक है। अंग्रेजी में इस स्थिति को “Rapport” कहा जाता है।

(2) तथ्य या सूचना संकलित करना (To collect information) : इस स्तर पर सर्वेक्षणकर्ता अध्ययन यंत्रों की सहायता सूचनादाताओं से तथ्य सूचना संकलित करता है। सर्वेक्षणकर्ता को सूचनादाताओं से प्राथमिक तथ्यों को संकलित करने के अतिरिक्त संबंधित प्रकाशित रिकार्ड, पुस्तक, पत्र, डायरी आदि के माध्यम से द्वितीयक तथ्यों को भी संकलित करना चाहिए।

(3) क्षेत्र कार्यकर्ताओं की निगरानी (Supervision over the field workers): समय-समय पर सूचना संकलित करने वाले प्रगणकों या सर्वेक्षणकर्ताओं (Investigators) की उच्च अधिकारियों द्वारा देख-रेख होती रहनी चाहिए, जिससे क्षेत्र कार्यकर्ता भावनात्मक एवं अन्य प्रभावों से बचे रहे हैं। यथार्थ सूचनाओं के संकलन में यह कदम महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 4. प्रोजेक्ट कार्य के गुण-दोष लिखिए।

[B.M.2009A]

उत्तर-प्रोजेक्ट कार्य के गुण (Merits of Project Work):

(1) मनोवैज्ञानिक संतुष्टि प्राप्त होती है : बालकों को मनोवैज्ञानिक संतुष्टि प्राप्त होती है क्योंकि इसके द्वारा ज्ञान की प्राप्ति आतंक द्वारा न होकर उनकी स्वाभाविक प्रवृत्तियों के अनुसार होती है।

(2) आत्म-विकास का अवसर प्राप्त होता है : इसमें बच्चे स्वयं क्रियाशील होते है, स्वय सोचते-विचारते हैं और आवश्यकतानुसार अध्यापकों से निर्देश लेते हैं। इस प्रकार यह कार्य बच्चों को आत्मनिर्भर बनाता है और उनमें आत्म-विश्वास जागृत करता है।

(3) विकास का समान अवसर प्राप्त होता है : प्रोजेक्ट कार्य तीव्र, साधारण एवं मंद बुद्धि सभी बालकों को विकास के समान अवसर प्रदान करता है।

(4) सामाजिक भावना का विकास : प्रोजेक्ट कार्य सहयोग पर आधारित होता है, परिणामस्वरूप बच्चों में सामाजिक भावना का विकास होता रहता है।

(5) चरित्र का विकास : यह कार्य बालकों को दु:ख-दर्द में एक-दूसरे के अधिक करीब ले आता है, परिणामस्वरूप धीरे-धीरे बालकों में ‘सत्यं शिवम् सुन्दरम्’ की भावना की अनुभूति होने लगती है। वस्तुतः यह भी मानवमात्र के कल्याण का लक्ष्य है और चरित्र के विकास की उच्चतम स्थिति है।

प्रोजेक्ट कार्य के दोष (demerits of Project work): (1) अधिक धन की आवश्यकता, (2) उचित प्रोजेक्ट को ढूंढने में असुविधा, (3) पठन-विधि की अव्यवस्थित होना, (4) सभी प्रकार की ज्ञान-प्राप्ति का अभाव, (5) क्रमबद्ध अध्ययन का अभाव, (6) विद्यालय में विद्यमान वातावरण से अनुकूल करने में कठिनाई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

(Long Answer Type Questions) 

प्रश्न 1. प्रोजेक्ट कार्य से क्या आशय है ? प्रोजेक्ट कार्य के आयोजन के चरण लिखिए।

उत्तर-प्रोजेक्ट कार्य/योजना कार्य का अर्थ (Meaning of project work): शाब्दिक दृष्टि से प्रोजेक्ट कार्य दो शब्दों प्रोजेक्ट कार्य से मिलकर बना है। प्रोजेक्ट का अर्थ योजना से और कार्य से आशय कार्यप्रणाली या विधि से है। इस प्रकार प्रोजेक्ट कार्य का अभिप्राय योजना की कार्यप्रणाली से है। वास्तव में प्रोजेक्ट कार्य की धारणा केवल शाब्दिक अर्थ से स्पष्ट नहीं हो सकती।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से प्रोजेक्ट कार्य की धारणा पर्याप्त और व्यापक है। प्रोजेक्ट कार्य में किसी वास्तविक सामाजिक समस्या के बारे में क्षेत्र में जाकर वैज्ञानिक पद्धति के विभिन्न स्तरों का पालन करते हुए तथ्यों को एकत्रित करना होता है, तथ्यों को एकत्रित करने में क्रमबद्ध रूप से निरीक्षण, वर्गीकरण, परीक्षण, तुलना, निष्कर्षीकरण आदि के कठिन स्तरों से गुजरना होता है। सामान्य रूप से प्रोजेक्ट कार्य के लिए सामाजिक सर्वेक्षण विधि का अनुसरण किया जाता है। सामाजिक सर्वेक्षण (Social Survey) सामाजिक विज्ञानों की एक महत्वपूर्ण अध्ययन पद्धति है। यह सामाजिक समस्याओं के अध्ययन व समाधान का एक वैज्ञानिक साधन है।

सामाजिक सर्वेक्षण के समान प्रोजेक्ट कार्य का भी अंतिम लक्ष्य उपयोगितावादी या रचनात्मक है। प्रोजेक्ट कार्य से जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है। वह उपयोगी व व्यावहारिक होता है। संभवतया इसी बात को स्पष्ट करते हुए श्री आई.बी.वर्मा ने लिखा है, “ज्ञान उपयोगी व व्यावहारिक होना चाहिए। प्रोजेक्ट कार्य इस उपयोगिता को सुनिश्चित करता है क्योंकि यह बनावटी नहीं होता वरन् स्वाभाविक परिस्थितियों के अंतर्गत क्रियान्वित किया जाता है। यह अच्छे परिणाम देता है और इसमें बर्बादी कम-से-कम होती है। यह बालकों को पूर्ण संतुष्टि व उपयोगी प्रशिक्षण देता है।”

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रोजेक्ट कार्य के अंतर्गत किसी वास्तविक सामाजिक समस्या का समाजशास्त्र के विद्यार्थियों अथवा सर्वेक्षणकर्ताओं द्वारा क्षेत्र में जाकर अध्यापक महोदय अथवा विशेषज्ञों के निर्देशन में सर्वेक्षण किया जाता है और इस प्रक्रिया में सर्वेक्षण या प्रोजेक्ट कार्य के आयोजन से लेकर सामग्री, संकलन, विश्लेषण व निर्वचन, तथ्यों के प्रदर्शन और रिपोर्ट की पारी तक के सभी स्तरों से क्रमबद्ध रूप से गुजरना होता है। इस प्रकार अंत में प्रोजेक्ट कार्य की रिप, भी विद्यार्थियों द्वारा अध्यापक महोदय के निर्देशन में तैयारी की जाती है। चूंकि प्रोजेक्ट कार्य के स्वयं के क्षेत्र कार्य (Field Work) का परिणाम है, इसलिए उन्हें व्यावहारिक स्तर पर

समाज के बदलते हुए परिवेश व समस्याओं के आयाम (Dimension of Problems) के बारे में वास्तविक जानकारी प्राप्त होती है।

प्रोजेक्ट कार्य/सामाजिक सर्वेक्षण का आयोजन व संचालन (Planning and Execution of Project): प्रोजेक्ट कार्य अथवा सामाजिक सर्वेक्षण के आयोजन व संचालन की संपूर्ण प्रक्रिया में अनेक स्तरों से गुजरना होता है : (A) प्रोजेक्ट कार्य/सामाजिक सर्वेक्षणका आयोजन, (B) तथ्यों/सामग्री का संकलन, (C) तथ्यों का विश्लेषण व निर्वचन, (D) तथ्यों का प्रदर्शन। .

सर्वेक्षण अथवा प्रोजेक्ट कार्य का आयोजन (Planning the Survey): प्रोजेक्ट कार्य या सर्वेक्षण के आयोजन को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया जा सकता है:

(1) समस्या का चयन (Selection of the Problem): किसी भी सर्वेक्षण के आयोजन में समस्या का चयन या चुनाव करते समय निम्न बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:

  1. सर्वेक्षणकर्ता की रुचि का विषय चयनित किया जाए, जिससे वह अधिक लगन व परिश्रम से कार्य कर सके।
  2. सर्वेक्षण के संबंध में थोड़ा-बहुत पूर्व ज्ञान वाला विषय सर्वेक्षण को निश्चित ढंग से आयोजित करने में सहायक प्रमाणित होता है।
  3. विषय का साधन सीमा के अंतर्गत होना भी आवश्यक है जिससे यथार्थ रूप से सर्वेक्षण संभव हो सके।
  4. विषय या समस्या का चयन करते हुए उसकी उपयोगिता के विषय में भी निश्चित होना आवश्यक है ताकि वांछित सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति हो सके। .

(2) उद्देश्य निश्चित करना (Determination of Purpose or Object): आयोजन में दूसरा चरण उद्देश्य का निर्धारण है। उद्देश्य का निर्धारण हो जाने पर सर्वेक्षण की प्ररचना (Design of Survey) बनाने में सरलता रहती है। वास्तव में उद्देश्य के निश्चित हो जाने पर अध्ययन-उपकरणों, पद्धतियों आदि के विषय में सफलता पूर्वक निर्णय लिया जा सकता है।

(3) सर्वेक्षण का संगठन (Organisation of Survey): समस्या और उद्देश्य के निर्धारण के पश्चात् यह भी आवश्यक है कि सर्वेक्षण योजना के लिए एक उचित संगठन हो। इस दृष्टि से प्राय: यह एक सर्वेक्षण समिति का आयोजन किया जाता है। इस समिति में सर्वेक्षण निर्देशक (Survey Director), प्रमुख सर्वेक्षक (Chief Investigator) आदि प्रतिनिधि होते हैं। वास्तव में, इस संगठन का उद्देश्य क्षेत्र कार्य में सुगमता, एकरूपता एवं सामाजिक सुधारों से संबंधित क्रियाओं को अधिक संभव बनाना है।

(4) अध्ययन-क्षेत्र को परिसीमित करना : सर्वेक्षण के लिए सभी प्रकार के तथ्यों को एकत्रित करने का लालच छोड़कर अध्ययन-क्षेत्र को परिसीमित करना उचित व आवश्यक है क्योंकि सब कुछ का अध्ययन कुछ का भी नहीं है। वैषयिकता के लिए यह चरण महत्वपूर्ण है।

(5) प्रारंभिक तैयारियाँ (Preliminary Preparations): अध्ययन-क्षेत्र के परिसीमित करने के पश्चात् सर्वेक्षणकर्ता के लिए कुछ प्रारंभिक तैयारियाँ करना भी आवश्यक होता है। इन तैयारियों के अंतर्गत विशेषज्ञों से मिलना, क्षेत्र में जाकर लोगों से अनौपचारिक वार्तालाप, आने वाली कठिनाइयों का अनुमान कर लेना आदि भी सम्मिलित रहता है।

(6) प्रतिदर्श का चयन (Selection of Sample) : प्रारंभिक तैयारियों के बाद प्रतिदर्श का चुनाव सर्वेक्षण के आयोजन का एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रोफेसर हैमिल्टन का कहना है कि सर्वेक्षण की बहुत-कुछ सफलता बुद्धिमानीपूर्वक चुने गए प्रतिदर्श (Sample) पर निर्भर करती है, क्योंकि प्रतिदर्श सर्वेक्षण के क्षेत्र को परिसीमित व स्पष्ट करता है, खर्च को घटाता है एवं समय व परिश्रम की बचत करके हमारा ध्यान केवल उचित व आवश्यक पर ही केन्द्रित करता है।

(7) बजट का बनाना (Preparation of Budget): सर्वेक्षण का बजट बनाना उतना ही आवश्यक व महत्वपूर्ण है जितना कि अध्ययन-पद्धतियों का निर्धारण क्योंकि एक संतुलित बजट के द्वारा ही सर्वेक्षण को सफलतापूर्वक संचालित किया जा सकता है। यदि सर्वेक्षण की प्रकृति,

उद्देश्य, साधन आदि को देखते हुए बजट को नहीं बनाया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में सर्वेक्षण कार्य को बीच में ही रोक देना पड़ता है।

(8) समय सूची का बनाना (Preparation of Time Schedule) : सर्वेक्षण को ठीक प्रकार से संचालित करने के लिए सर्वेक्षण की प्रकृति, उद्देश्य, कार्यकर्ताओं की संख्या आदि के अनुसार समय-सूची का निर्माण करना भी आवश्यक होता है।

(9) अध्ययन-पद्धतियों का चयन (Selection of the Methods of Study): . अध्ययन-पद्धतियों का चयन सर्वेक्षण के प्रकार, आकार धन की मात्रा समय, कार्यकर्ताओं की उपलब्धि आदि पर आधारित रहता है। इनका चुनाव अलग-अलग सर्वेक्षण में अलग-अलग हो सकता है।

(10) अध्ययन के यंत्रों का निर्माण (Preparation of the Study-tools): जब तक अध्ययन से संबंधित उपकरणों-अनुसूची, प्रश्नावली, साक्षात्कार निर्देशिका (Interview Guide) आदि को सावधानी पूर्वक व व्यवस्थित ढंग से तैयार न कर लिया जाए, तब तक सर्वेक्षण कार्य को क्रमबद्ध रूप में संचालित करना संभव नहीं होगा।

(11) क्षेत्र कार्यकर्ताओं का चयन व प्रशिक्षण (Selection and Training of Field Workers): अध्ययन के यंत्रों का निर्माण कर लेना ही पर्याप्त नहीं है जब तक कि इन यंत्रों को प्रयोग करने वाले निष्ठावन व ईमानदार न हों। इस दृष्टि से क्षेत्र कार्यकर्ताओं का चयन होना आवश्यक है। साथ ही उन्हें सर्वेक्षण कार्य में उचित प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए, ताकि अध्ययन कार्य में एकरूपता व वैषयिकता बनाई रखी जा सके।

(12) पूर्वपरीक्षण और पूर्वगामी सर्वेक्षण (Pre-testing and PilotStudy): उपयुक्त चरणों को कर लेने के पश्चात् सर्वेक्षण के आयोजन में पूर्व परीक्षण और पूर्वगामी सर्वेक्षण भी महत्वपूर्ण अंग है। पूर्व परीक्षण से इस बात का पता लग जाता है कि जिन अध्ययन यंत्रों का उपयोग किया जा रहा है, वे कितने उपयोगी हैं और पूर्वगामी सर्वेक्षण द्वारा अध्ययन के समय आने वाली कठिनाइयों का पता लग जाता है। इस प्रकार पूर्वगामी सर्वेक्षण होने वाली त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करके उन्हें सुधारने का अवसर प्रदान करते हैं।

(13) अध्ययन यंत्रों को अंतिम रूप देना (Finalization of the study tools) : अध्ययन यंत्रों के पूर्वपरीक्षण से जिन कमियों या दोषों का पता लगता है, उन्हें दूर करके अध्ययन यंत्रों को अंतिम रूप प्रदान कर दिया जाता है।

(14) समुदाय को सर्वेक्षण के लिए तैयार करना (To Prepare Community for the Survey) : सूचना संकलन के वास्तविक कार्य का प्रारंभ करने से पहले संदेशवाहन साधनों-समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, प्रदर्शनी, सार्वजनिक सभा, प्रचार आदि के माध्यम से चुने हुए समुदाय के लोगों में सर्वेक्षण के अनुरूप वातावरण दृष्टि से सर्वेक्षण के लिए तैयार करने के लिए आवश्यक व अपरिहार्य है।

प्रश्न 2. प्रोजेक्ट कार्य में तथ्यों का विश्लेषण, निर्वचन एवं प्रदर्शन की विधि लिखिए।

उत्तर-तथ्यों का विश्लेषण एवं निर्वचन (Analysis and Interpretation of Data): तथ्यों या सामग्री के विश्लेषण व निर्वचन के निम्नलिखित चरण हैं :

(1) तथ्यों की सार्थकता की जाँच (Weighting the Data): इनमें कुछ कसौटियों के आधार पर तथ्यों की सार्थकता की जाँच की जाती है।

(2) तथ्यों का संपादन (Editing of Date): संपादन-कार्य के अंतर्गत निम्नलिखित कार्यों का समावेश रहता है :

(1) तथ्यों को व्यवस्थित रूप में सजाना जिससे यह पता चल सके कि किन स्रोतों से अभी सूचना प्राप्त करनी शेष है।

(ii) उत्तरों की जाँच करना : इसमें उत्तर भरने की गलती एवं अन्य भूलों का पता लगाया जाता है।

(iii) अनावश्यक तथ्यों को हटाने का कार्य : इसके द्वारा अवांछित तथ्यों को हटा दिया जाता है।

(iv) कोड नम्बर का डालना (Codification) : समय की बचत करने के लिए एक जैसे तथ्यों को किसी संख्या द्वारा व्यक्त कर दिया जाता है, ताकि वर्गीकरण में सुविधा हो।

(3) तथ्यों का वर्गीकरणव सारणीयन (Classification and Tabulation of Data) : संपादन-कार्य के पश्चात् तथ्यों को समानताओं व विभिन्नताओं के आधार पर विभिन्न वर्गों या समूहों में बाँट दिया जाता है और इस प्रकार संपूर्ण संकलित सामग्री को संक्षिप्त रूप प्रदान कर दिया जाता है। इस वर्गीकृत सामग्री को अधिक समझने योग्य बनाने के लिए सारणीयन (Tabulation) किया जाता है। वास्तव में, संख्यात्मक तालिकाओं (Tables) के रूप में संक्षिप्त करना ही सारणीयन है।

(4) तथ्यों का विश्लेषण व सामान्यीकरण (Analysis and Generalisation of Data): विभिन्न तथ्यों की तुलना और उनमें पाये जाने वाले परस्पर संबंधों के आधार पर कुछ सामान्य निष्कर्षों को निकाला जाता है। सामान्य निष्कर्षों को निकालना ही सामान्यीकरण कहलाता है।

तथ्यों का प्रदर्शन (Presentation of Data): तथ्यों के प्रदर्शन को भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है : 

(1) तथ्यों का चित्रमय प्रदर्शन (Diagrammatic representation of data): तथ्यों को बोधगम्य व सुगम रूप से प्रकट करने के लिए तथ्यों को चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। वास्तव में चित्रमय प्रदर्शन थोड़े ही समय में प्रमुख बातों को दर्शाने की एक कला है।

(2) fute atat farefut a gohigra (Preparation and publication of report) : सर्वेक्षण की संपूर्ण प्रक्रिया में रिपोर्ट का निर्माण करना और उसे प्रकाशित करना अंतिम चरण है। रिपोर्ट को तैयार करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखा जाना चाहिए:

  1. भाषा व विचारों की सरलता, 2. तार्किक क्रम में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण, 3. तथ्यों की पुनरावृत्ति न हो, 4. तकनीकी शब्दों की स्पष्ट व सरल परिभाषाएँ, 5. आवश्यक शीर्षकों व उपशीर्षकों का प्रयोग, 6. पाद-टिप्पणियाँ, 7. तालिकाएँ, चित्र आदि संबंधित सामग्री के पास होनी चाहिए ।

निर्माण के पश्चात् रिपोर्ट को प्रकाशित कर दिया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *