Bihar board notes class 11th civics chapter 10
Bihar board notes class 11th civics chapter 10
Bihar board notes class 11th civics chapter 10
विकास
• विकास क्या है?
• क्या विकास का कोई सर्वत्र स्वीकार योग्य प्रतिरूप है?
• किस प्रकार हम वर्तमान पीढ़ी के दावे को भविष्य की पीढ़ियों के दावे के साथ संतुलित
करेंगे।
• विकास (Development)-वर्तमान भौतिवादी युग में विकास से तात्पर्य भौतिक
विकास से लगाया जाता है।
• भारत के परिप्रेक्ष्य में विकास की अवधारणा का चिन्तन करने पर ज्ञात होता है कि यहाँ
विकास से तात्पर्य भौतिक के साथ-साथ आध्यात्मिकता भी है।
•लोक कल्याणकारी राज्य एक ऐसा राज्य है जो अपने नागरिकों के लिए सामाजिक सेवाओं
के एक विस्तृत क्षेत्र की व्यवस्था करता है।
• समाजवाद (Socialism)-राबर्ट के अनुसार, “समाजवाद के कार्यक्रम की मांँग है कि
सम्पत्ति तथा उत्पादन के अन्य साधन जनता की सामूहिक सम्पत्ति हों और उसका प्रयोग
भी जनता के द्वारा जनता के लिए ही किया जाए।”
• लोकतांत्रिक समाजवाद (Democratic socialism)-समाजवाद के उस स्वरूप को
विकासवादी या लोकतांत्रिक समाजवाद कहा जाता है जो जनसहमति से धीरे-धीरे स्थापित
किया जाता है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि समाजवाद की स्थापना क्रांति के माध्यम
से न करके लोकतांत्रिक संवैधानिक विधि से करना चाहता है।
• समाजवाद की ऐतिहासिक परम्परा (Historical Background of
Socialism)-समाजवाद का उदय पूँजीवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया-स्वरूप हुआ। पूंजीवाद
व्यवस्था में खुली प्रतियोगिता तथा स्वतन्त्र व्यापार की नीति के कारण मजदूरों की दशा
अत्यन्त शोचनीय हो गई थी। अतः एक ऐसी व्यवस्था की कल्पना की जाने लगी कि
जिसमें औद्योगिक विकास का लक्ष्य किसी वर्ग विशेष का हित न होकर सम्पूर्ण समाज
का हित बन जाए।
• समाजवाद के प्रमुख सिद्धान्त (Main Principles of socialism)- (i) समाजवाद
व्यक्ति के स्थान पर समाज को अधिक महत्त्व देता है। (ii) पूँजीवाद को समाप्त करना
चाहता है। (iii) समाजवाद व्यक्ति को उन्नति के समान अवसर प्रदान करता है। (iv)
उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर सामाजिक नियन्त्रण आवश्यक है। (v) समाजवाद
खुली आर्थिक प्रतियोगिता का विरोध करता है।
• समाजवाद के विभिन्न रूप (Various forms of Socialism)-समाजवाद का अर्थ
प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने दृष्टिकोण से समझता है। अत: इसके विभिन्न रूप बन गए
हैं। जैसे-अराजकतावादी समाजवाद, श्रमिक संघवाद, श्रेणी समाजवाद, लोकतांत्रिक
समाजवाद तथा मार्क्सवादी अथवा वैज्ञानिक समाजवाद आदि।
•भारत में समाजवाद- भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को समाजवादी राज्य
घोषित किया गया है। भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद है। उद्योग, बैंक और
बीमा कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया है। जमींदार प्रथा उन्मूलन और भूमि सुधार
कानून लागू किया गया है।
प्रश्न 1. आप विकास’ से क्या समझते हैं? क्या ‘विकास’ की प्रचलित परिभाषा से
समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है?
उत्तर-विकास की संकल्पना का एक विस्तृत अर्थ है परन्तु इसका प्रयोग सीमित दृष्टि से
किया जाता है। यह समाज के परिवर्तन, उन्नति, वृद्धि और पर्याप्त अग्रसर होने से है।
विस्तृत दृष्टिकोण में इस शब्द का अर्थ (विकास की संकल्पना) सुधार, उन्नति, सुखी और
अच्छे जीवन के लिए आकांक्षा के विचार से है।
विकास का उद्देश्य समाज के उन सपनों पर आधारित है जो इच्छित और सुनियोजित जीवन
के लिए जरूरी है। इसलिए विकास विभिन्न उपायों की प्रक्रिया है जो समाज के सामाजिक, आर्थिक
और सांस्कृतिक सम्प्रेषण से लिया जाता है। यह इस प्रकार ग्रहण किया जाता है कि विकास का
लाभ और उन्नति प्रत्येक को प्राप्त हो सके।
सुसियन पाये ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द आस्पेकट्स आफ डेवेलापमेंट’ (The Aspects
of development) में विकास को एक आधुनिक समाज के निर्माण में उपलब्ध साधनों के
न्यायपूर्ण सदुपयोग के रूप में परिभाषित किया है। उसने विकास को अनेक पहलुओं जैसे
पर्यावरणीय परिवर्तन राज्य के निर्माण के रूप में विकास, राष्ट्र के निर्माण के रूप में विकास,
आधुनिकीकरण के रूप में विकास, गतिशीलता के रूप में विकास, सांस्कृतिक प्रसार के रूप में
विकास और समाज के आधुनिकीकरण के पशीनीकरण के विकास की व्याख्या की।
इसका अन्तिम उद्देश्य सभी समान्य व्यक्तियों के अंदर वृद्धि और उन्नति को लाना है। इसका
लक्ष्य समाज के सभी वर्गों के सभी व्यक्तियों का सुनिश्चित रूप से जीवन बदलना है।
प्रश्न 2. जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे पड़ने
वाले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-वस्तुतः विश्व के विभिन्न भागों में विकास की अवधारणा को विभिन्न प्रकार से समझा
गया है, इसलिए इसे उसी दंग से लागू किया जाता है। परन्तु इससे इच्छित परिणाम पर्याप्त वित्तीय
लागत के बावजूद नहीं प्राप्त हुए हैं और उन देशों पर पर्याप्त ऋण हो गया है। विकास के
सामाजिक लागत और पर्यायवरणीय लागत दो प्रकारों का विवरण निम्नलिखित है-
(क) विकास की समाजिक लागतें (Social Costs of Development)-विकास की
समाजिक लागत निम्नलिखित कारणों से है-
(i) अनेक लोग अपने घर और स्थानीय आवास से विकास के कार्यों जैसे बाँध के निर्माण
और औद्योगिक इकाई की स्थापना के कारण स्थानान्तरित हो जाते हैं।
(ii) जीविका की हानि।
(iii) परम्परागत व्यवसाय का स्थानान्तरण होना।
(iv) शहरी और ग्रामीण गरीबी में वृद्धि।
(v) जीवन के नये ढंग और नई संस्कृति की ग्राह्यता।
(vi) परम्परागत कौशल की हानि।
(vii) विषमताओं और असमानताओं में वृद्धि।
इसका विशिष्ट उदाहरण ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ है जो सरदार सरोवर बांँध के विरुद्ध
नर्मदा नदी पर चलाया जा रहा है।
(ख) विकास का पर्यावरणीय लागत (Emvieronmenal costs of Development)-
विकास की आज की विधि पर्यावरणीय लागत की है। इसको निम्नलिखित क्षेत्रों में समझा जा
सकता है-
(i) यह एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित कर रहा है। इसने बड़े पैमाने पर प्रदूषण पैदा किया है।
(ii) इससे पारिस्थितिक संतुलन में गड़बड़ी आई है।
(iii) इससे वैश्विक चेतावनी मिली है।
(iv) हरे भरे क्षेत्र कम होते जा रहे हैं।
(v) इसके कारण ऊर्जा संकट उत्पन्न हो गया है।
(vi) प्राकृतिक संकट यथा-बाढ़ और सुनामी का जन्म।
प्रश्न 3. विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है?
उत्तर-लोकतांत्रिक सहभागिता के रूप में नई मांगें-समाज और राजनीति के लोकतांत्रिक
ढांचे में और आधुनिक युग में प्रत्येक व्यक्ति अपना अच्छा जीवन व्यतीत करना चाहता है। इसलिए
प्रत्येक व्यक्ति निर्णय, निर्माण प्रक्रिया, विकास के लक्ष्यों के निर्धारण और इसके कार्यान्वयन की
प्रणाली में शामिल होना पसंद करता ऐसा सहभागिता के उद्देश्य और शक्तिशाली होने के लिए
किया जाता है।
विकास और लोकतंत्र सामान्य हित को अनुभव करने से सम्बन्धित है। लोकतांत्रिक
राजनीतिक उद्देश्य सामान्य हित के लोगों के अधिकार को प्राप्त करने से है। यह संसाधनों के
अधिकतम सदुपयोग द्वारा विकास की प्रक्रिया और सामान्य लोगों को विकास का लाभ लेने से
सम्भव है। लोकतांत्रिक समाजों में लोगों की सहभागिता के अधिकार की प्रशंसा की गई है और
इस पर जोर दिया गया है। इस प्रकार की सहभागिता की एक विधि यह बताई जाती है कि स्थानीय
क्षेत्रों में विकास की परियोजनाओं के विषय में निर्णय निर्माण संस्था को लेना चाहिए। इसीलिए
अधिकतर संसाधन जो स्थानीय निकायों के हैं, बढ़ाये जा रहे हैं। भारतीय संविधान का 73वां और
74वां संशोधन इस दिशा में किए गए प्रयास हैं। इन संशोधनों के द्वारा सभी वर्ग के लोगों की
सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास हो रहे हैं। इसके साथ यह कार्य कमजोर वर्ग जैसे
महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए भी किया जा रहा
है जिससे वे विकासगत परियोजनाओं को प्रेरित कर सकें।
नीतियों का नियोजन और सूत्रीकरण लोगों को अपनी आवश्यकताओं के लिए संसाधनों के
निर्धारण का आदेश देता है। इसलिए विकास के मॉडल को शामिल करने की आवश्यकता है
जो कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लोकतांत्रिक आधुनिक समाज के उद्देश्यों की सेवा कर
सकता है।
प्रश्न 4. विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किए जाएंँ,
यह सुनिश्चित करने में अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतांत्रिक व्यवस्था के क्या
लाभ हैं?
उत्तर-लोकतंत्र ऐसी सरकार है जो लोगों की है, लोगों के लिए है और लोगों द्वारा निर्मित
होती है। इसका तात्पर्य यह है कि लोकतांत्रिक सरकार केवल लोगों से सम्बन्धित है और सभी
अधिकार लोगों के साथ है। यह तानाशाही के विपरीत है जिसमें सम्पूर्ण शक्ति एक व्यक्ति या
व्यक्तियों के समूह के हाथ में होती है और जहाँ लोगों को निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं
होता। इसलिए लोकतांत्रिक सरकार अन्य सरकारों की अपेक्षा अधिक लाभदायक होती है। विशेष
रूप से जनता के हित के मामले में लोकतांत्रिक सरकार मुख्य रूप से लोगों की रुचियों, अधिकारों
और कल्याण से अधिक सम्बन्धित होती हैं।
प्रजातंत्र निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित होता है-
(i) यह समानता पर आधारित होता है।
(ii) यह न्याय पर आधारित होता है।
(iii) यह जनता के अधिकारों को प्रेरित करता है।
(iv) यह लोगों की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।
(v) यह भाई-चारे को बढ़ाता है।
(vi) यह एक विस्तृत संविधान उपलब्ध कराता है।
(vii) यह वाद-विवाद, बातचीत पर आधारित होता है।
(viii) यह अधिकारों के विकेन्द्रीकरण पर आधारित है।
(ix) सर्वाधिक अधिकार लोगों के पास होते हैं।
(x) प्रजातंत्र में लोगों को अभिव्यक्ति का अधिकार होता है।
उपरोक्त सभी विशिष्ट लक्षण किसी अन्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं मिलते। यही कारण
है कि लोगों के हित के लिए लोकतंत्र को अन्य व्यवस्थाओं की अपेक्षा सबसे अच्छी व्यवस्था
माना जाता है। प्रजातात्रिक संस्कृति विकासगत प्रक्रिया के प्रसार को बढ़ावा देता है। इसमें व्यक्ति
और राष्ट्र के सभी पहलुओं का समावेश होता है।
प्रश्न 5. विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को
जवाबदेह बनवाने में लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन कितने सफल रहे हैं?
उत्तर-अनेक राज्यों की सरकारों और यहाँ तक कि केन्द्रीय सरकार ने विकास के नाम पर
विभिन्न क्षेत्रों में अनेक महत्त्वकांक्षी परियोजनाएं शुरू की हैं। परन्तु इन परियोजनाओं का अपना
ही समाजिक और पर्यावरणीय मूल्य है। स्थानीय लोगों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरणीय
कार्यकत्ताओं के नेतृत्व में इन परियोजनाओं के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया है। उदाहरण के लिए
मेधापाटेकर और सुन्दरलाल बहुगुणा के आन्दोलन इन परियोजनाओं के खिलाफ चल रहे हैं,
फलस्वरूप ये मुद्दे राजनीतिक बन गए हैं।
हाल के वर्षों में सरकार की कुछ नई विवादास्पद परियोजनाएं शुरू हुई हैं। इनमें से एक
परियोजना एस.ई.जेड. (Creation of Special Economic Jone) है जो किसानों के आक्रोश
का शिकार है। इसका विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा राजनीतिकरण किया गया है।
स्थानीय लोगों ने इन्हें विकासगत क्रियाओं के रूप में नये भविष्य को स्वीकार नहीं किया
है। उनके प्रभाव को सामाजिक कार्यकत्ताओं ने अपनाया है। इस प्रकार के आन्दोलनों में ‘नर्मदा
बचाओ आन्दोलन’ सरदार सरोवर बांध के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन रहा है। इस बांँध का
निर्माण नर्मदा नदी पर विद्युत उत्पादन के लिये किया गया है। इसके अलावा एक बड़े क्षेत्र की
सिंचाई करने में सहायता मिलेगी और सौराष्ट्र तथा कच्छ क्षेत्र के लोगों को पेय जल मिल सकेगा।
परन्तु इसके विरोधी इस योजना से सहमत नहीं हैं और मेघा पाटेकर के नेतृत्व में अनेक सामाजिक
कार्यकत्ताओं ने आन्दोलन शुरू कर दिया है। इस प्रकार के आन्दोलनों ने निश्चित रूप से सरकार
को सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए विवश कर दिया है।
1. जून 1992 में पर्यावरण और विकास विषय पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया
गया-
(क) जेनेवा
(ख) रियो द जेनेरो
(ग) टोकियो
(घ) न्यूयार्क
2. संयुक्त राष्ट्रसंघ की विश्व जल विकास संबंधी प्रतिवेदन प्रकाशित हुआ- [B.M.2009 A]
(क) मई 2007
(ख) अप्रैल 2006
(ग) मार्च 2006
(घ) फरवरी 2005
3. विकास संबंधी मॉडलों का प्रभाव निम्न में से सबसे ज्यादा किस पर पड़ा? |B.M.2009A]
(क) पर्यावरण एवं समाज पर
(ख) व्यक्ति एवं कृषि पर
(ग) मानव एवं सभ्यता पर
(घ) शिक्षा एवं संस्कृति पर उत्तर-(क)
प्रश्न 1. विकास क्या है?
(What is development ?)
उत्तर-वर्तमान के भौतिकवादी युग में विकास का अर्थ केवल भौतिक विकास से ही लगाया
जाता है जबकि भारत के संदर्भ में यह भौतिक व आध्यात्मिक दोनों ही रहा है।
प्रश्न 2. तृतीय विश्व क्या है
(What is third world?)
उत्तर-भौतिक विकास की दिशा में प्रयत्नशील देशों को अनेक नामों से पुकारा जाता है,
जैसे- विकासशील देश, उभरते हुए राष्ट्र, तृतीय विश्व के देश आदि।
प्रश्न 3. विकास के तीन उद्देश्य लिखिए।
(Write three objectives of development.) )
उत्तर-(i) दरिद्रों के न्यूनतम जीवन को जीवन स्तर तक (Minimum Living standard)
लाना। (ii) बेरोजगारी की समस्या को दूर करना। (iii) विकास प्रक्रिया को लोकतांत्रिक पद्धति
से चलाना।
प्रश्न 4. समाजवाद की परिभाषा दीजिए और इसका अर्थ समझाइए।
( (Define Socialism and discuss its meaning.)
उत्तर-समाजवाद की परिभाषा-समाजवाद की कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी जा सकती।
विभिन्न विचारकों ने इसकी परिभाषा भिन्न-भिन्न प्रकार से दी है-
(i) हम्फ्री के शब्दों में, “समाजवाद एक सामाजिक व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत जीवन के
साधनों पर सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होता है और पूरा समाज सामान्य जन-कल्याण के उद्देश्य
से विकास और प्रयोग करता है।”
(ii) राबर्ट के अनुसार, “समाजवाद के कार्यक्रम की मांग है कि सम्पत्ति तथा उत्पादन के
अन्य साधन जनता की सामूहिक सम्पत्ति हो और उसका प्रयोग भी जनता के द्वारा जनता के लिए
ही किया जाए।”
इस प्रकार समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जो समानता पर आधारित है और जिसका
उद्देश्य सम्पूर्ण समाज का हित है। यह विचारधारा देश की सम्पत्ति तथा उत्पादन के साधनों पर
व्यक्तिगत स्वामित्व को समाप्त करके उस पर सम्पूर्ण समाज का नियंत्रण चाहती है।
प्रश्न 5. समाजवाद के दो मूल सिद्धान्त बताइए।
(Mention two basic principles of Socialism.)
उत्तर-समाजवाद के दो मूल सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(i) पूंजीवाद का विरोध (Opposition of Capitalism)-समाजवाद पूंँजीवाद का
विरोध करता है। समाज के हित को अधिक महत्त्व देता है। उत्पादन तथा वितरण के सभी साधनों
पर समाज का नियंत्रण होता है।
(ii) समाजवाद खुली आर्थिक प्रतियोगिता का विरोध करता है (Opposition to
open competition) समाजवाद की धारणा है कि आर्थिक क्षेत्र में खुली प्रतियोगिता से केवल
पूंजीपति का ही हित होता है। इसमें जनता के हितों की उपेक्षा होती है। समाजवाद खुली आर्थिक
प्रतियोगिता का विरोध करता है।
प्रश्न 6. ‘समतावादी समाज’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(Write short note on ‘Equalized Society’.)
उत्तर– समतावादी समाज (Equalized society)-जी,डी.एच. कोल के अनुसार
समाजवाद भाईचारे की व्यवस्था पर बल देता है जो वर्ग, जाति व वर्ग-विषयक भेदों को नकारती
है, उनका खण्डन करती है । समाजवादी समाज में राजनीतिक शक्ति का उद्देश्य समाज का
कल्याण होता है। समानता और स्वतन्त्रता पर बल दिया जाता है। सबको आजीवका कमाने के
समान अवसर दिए जाते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम जीवन-स्तर की गारंटी दी जाती है।
इसमें यह मान्यता है कि समानता के बिना वास्तविक स्वतंत्रता संभव नहीं हो सकती। बिना
स्वतन्त्रता के सुरक्षा संभव नहीं है।
प्रश्न 7. समाजवादी समाज का क्या अर्थ है? (Imp.)
(What is meant by Socialist Society?)
उत्तर-श्री जयप्रकाश नारायण के अनुसार समाजवादी समाज एक ऐसा वर्गहीन समाज होता
है, जिसमें व्यक्तिगत सम्पत्ति के लिए मजदूरों का शोषण नहीं होता, जिसमें समस्त सम्पत्ति राष्ट्र
की होती है, जिसमें किसी को बिना किए कुछ नहीं मिलता, जहाँ आय की अधिक असमानताएं
नहीं होती, जिसमें मनुष्य जीवन की उन्नति योजनानुसार की जाती है और जिसमें सब सबके लिर
जीवित रहते हैं। इस प्रकार के समाज में आर्थिक शक्ति कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रित नहीं होने
दी जाती।
प्रश्न 8. लोकतांत्रिक समाजवाद से क्या अभिप्राय है?
(What is meant by Democratic Socialism?)
अथवा, लोकतांत्रिक समाजवाद पर टिप्पणी लिखो।
Write a short note on Democratic Socialism.
उत्तर-लोकतंत्रीय समाजवाद उसे कहते हैं जहाँ समाजवाद के उद्देश्यों को प्रापत करने के लिए
हिंसा और क्रांति को छोड़कर लोकतांत्रिक साधनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें राज्य को
व्यक्तिवादी तथा उदारवादियों की भांति आवश्यक बुराई नहीं माना जाता और न ही अराजकतावादियों
की भांँति अनावश्यक बुराई माना जाता है। वे तो राज्य को शुभ मानते हैं और इसका उपयोग
जन-कल्याण में करना चाहते हैं। उनका लोकतंत्र में पूर्ण विश्वास होता है।
प्रश्न 9. विकासवादी समाजवाद किसे कहते हैं?
(What is Evolutionary Socialism?)
उत्तर-लोकतंत्रीय समाजवाद को ही विकासवादी समाजवाद कहते हैं। लोकतंत्रीय देश कार्ल
मार्क्स के विचारों से तो प्रभावित थे किन्तु ये देश अपना लोकतंत्रीय स्वरूप समाप्त नहीं करना
चाहते थे। इनके विचार में पंजीवादी व्यवस्था में भी समानता की अधिक क्षमता विद्यमान है।
सर्वहारा की तानाशाही में विश्वास नहीं करते थे। विकासवादी समाजवाद सभी नागरिकों को
आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक अधिकारों और न्याय की उपलब्धि कराता है। इनके विचार में
राज्य एक कल्याणकारी संस्था है। लोकतांत्रिक समाज का मूलमंत्र क्रमिक विकास है।
प्रश्न 10. समाजवाद के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
(Give any four arguments in favour of Socialism.)
उत्तर-समाजवाद के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Socialims)
(i) समाजवाद न्याय का समर्थक है। व्यापार व उद्योग-धंधों का राष्ट्रीयकरण करके यह
सभी व्यक्तियों को समान उन्नति का अवसर उपलब्ध कराता है।
(ii) बिना समाजवाद के प्रजातंत्र अर्थहीन है। जब तक आर्थिक प्रजातंत्र की स्थापना नहीं
होती, राजनैतिक प्रजातंत्र संभव नहीं हो सकती।
(iii) समाजवादी व्यवस्था अधिक वैज्ञानिक है।
(iv) समाजवादी आर्थिक अपव्यय को रोकता है क्योंकि इसमें उत्पादन के लिए प्रतियोगिता
का नहीं, सहयोग का सिद्धान्त अपनाया जाता है।
प्रश्न 11. ‘समाजवाद का उदय पूंजीवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।’ इस
कथन पर टिप्पणी लिखो।
(“Socialism emerged as a reaction of Capitalism.” Comment.)
उत्तर-समाजवाद वास्तव में “पूंजीवाद व आर्थिक असमानता” के विरोध में विकसित हुआ।
न्यूरोप में आद्योगिक विकास ने श्रमिकों के जीवन को नरक बना दिया था। पूँजीवादी उनका शोषण
कर रहे थे। अहस्तक्षेप की नीति के कारण श्रमिकों की दशा बिगड़ने लगी। कुछ विचारशील लोगों
का.ध्यान उनकी दुर्दशा की ओर गया और पूंजीवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई। व्यक्ति के स्थान
पर समाज को महत्त्व दिया जाने लगा।
प्रश्न-12. मुक्त उद्यम से आप क्या समझते हैं?
(What does mean by free enterprise?)
उत्तर-मुक्त उद्यम (Free enterprise)-बाजार अर्थव्यवस्था मुक्त उद्यम पर आधारित है।
इसमें उद्योगपति को उद्योग प्रारम्भ करने, उनकी वृद्धि करने, उनमें पूंजी निवेश करने आदि की
पूरी छूट हागी। इस कार्य के लिए उन्हें सरकार से किसी प्रकार के लाइसेंस लेने की आवश्यकता
नहीं होगी। सरकार केवल कुछ उद्योगों को अपने पास रखती है। इनमें भी वह निजी उद्यमियों से
सहयोग प्राप्त कर सकती है।
प्रश्न 13. मुक्त व्यापार से क्या आशय है?
(What di you mean by free trade?)
उत्तर-मुक्त व्यापार (Free Trade)-बाजार अर्थव्यवस्था मुक्त व्यापार पर आधारित होती
है। इसकी मान्यता है कि विश्व को एक बाजार समझा जाए और उसमें सभी देशों को मुक्त रूप
से व्यापार करने की सुविधा हो अर्थात् विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले आयात
व निर्यात करों से व्यापार प्रतिबन्धित न हो। सामान्यतः सभी देशों में सरकारें अपने उद्योगों को
संरक्षण देने के लिए तथा अपने आय के स्रोत के रूप में करों का प्रावधान करती है। बाजार
अर्थव्यवस्था ऐसे करों को उदारीकरण के विरुद्ध मानती है क्योंकि इनसे कीमतों में मांग व पूर्ति
द्वारा अवरोध उत्पन होता है।
प्रश्न 1. स्थायी या सतत् विकास किसे कहते हैं?
What is sustainable development?
उत्तर-स्थायी विकास के लिए पर्यावरण तंत्र और औद्योगिक तंत्र के मध्य सही संबंध तथा
संयोजन की आवश्यकता है। विकास के नाम पर औद्योगीकरण ने पर्यावरण को दूषित किया है।
विकास के लिए आर्थिक रूप और नीतियों का निर्धारण होना चाहिए। मनुष्य के लिए पर्यावरण
प्रदूषण को रोकते हुए विकास के कार्यक्रम किए जाने चाहिए। अधिक प्रभावी देशों में जीवन शैली
के साथ-साथ जीव-जन्तु और मानव को पर्यावरण प्रदूषण से बचाए रखने का प्रयास होना
चाहिए। पर्यावरण को विकास नीतियों के साथ प्रबन्ध के स्तर पर जोड़ दिया जाना चाहिए। वास्तव
में पर्यावरण और विकास नीति एक दूसरे के पूरक हैं। स्थायी विकास तभी संभव है।
प्रश्न 2. “विकास का आधार प्राकृतिक दोहन होना चाहिए न कि शोषण”।
(The base of development is natural utilisation not the exploitation.Explain.)
उत्तर-भौतिकवादी जगत की मान्यता है कि विश्व में जो भी कुछ है वह उसके उपयोग के
लिए है और जितना अधिक उपयोग किया जा सकता है उतना ही भौतिक सुख प्राप्त किया जा
सकता है। इसी कारण पश्चिम के लोग प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर शोषण कर रहे हैं। वह
भूल जाते हैं कि ईश्वर ने विश्व में मानव, पशुओं, कीट, पतंग, प्रकृति की प्रत्येक वस्तु आदि सभी
का संतुलन स्थापित किया है। मानव जाति से प्रकृति का उतना ही उपयोग करने की आशा की
जाती है जितनी उसकी आवश्यकता है। अधिकतम उपभोग की प्रकृति देने की शक्ति को कम कर
देता है। अधिकतम उपयोग से प्रकृति का विनाश होता है और उसके कारण मानव को अनेक
प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। वर्तमान में हम इसका अनुभव कर रहे हैं। एक ओर प्रकृति की
सम्पदा समाप्त हो रही है और दूसरी ओर प्राकृतिक प्रकोपों से मानव भयभीत है। अतः आवश्यकता
इस बात की है कि प्रकृति की देन को शक्ति बनाए रखने तथा प्राकृतिक प्रकोपों से बचने के लिए
प्रकृति का शोषण न करके उसका मात्र दोहन किया जाए। विकास के लक्ष्य निर्धारण का यह
महत्त्वपूर्ण आधार है।
प्रश्न 3. कल्याणकारी राज्य की कोई विशेषताएंँ बताइए।
(Mention two features of a welfare state.)
उत्तर-कल्याणयकारी राज्य की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
(i) कल्याणकारी राज्य का तात्पर्य उस राज्य से है जो जन-कल्याण को ध्यान में रखकर
अपनी योजनाओं एवं कार्यक्रमों का निर्धारण करता है। यह समाज के कमजोर वर्गों को सेवाएंँ
तथा वस्तुएँ सुलभ कराने का सामाजिक दायित्व स्वयं वहन करता है। इसका कार्यक्रम काफी
विकसित होता है।
(ii) कल्याणकारी राज्य की संरचना स्वायत्तता पर आधारित होती है। यह सामाजिक न्याय
तथा समानता के प्रति समर्पित होता है।
(iii) कल्याणकारी राज्य सामान्य इच्छा का समर्थक है। यह जाति, वर्ण, साम्प्रदायिक विचारों
तथा मान्यताओं से ऊपर उठने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 4. श्रेणी समाजवाद पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-श्रेणी समाजवाद, समाजवाद का अंग्रेजी संस्करण है। इस विचारधारा का जन्म इंग्लैंड
में हुआ। श्रेणी समाजवाद का उद्देश्य एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना है जिसमें वेतन प्रणाली
का उन्मूलन कर उद्योगों में मजदूरों को स्वायत्त सरकार की स्थापना की जाएगी, जो राष्ट्रीय श्रेणी
संघों द्वारा एक प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली पर चलती हुई समाज के अन्य व्यावहारिक संघों के साथ
मिलकर कार्य करेगी। श्रेणी समाजवादी की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) उत्पादन के साधनों पर मजदूरों का नियन्त्रण होना चाहिए।
(ii) यह एक मध्यममार्गी विचारधारा है,न तो यह पूरी सत्ता मजदूरों के हाथ में देना चाहता
है और न ही सम्पूर्ण सत्ता उत्पादकों को देने के पक्ष में है।
(iii) श्रेणी समाजवाद पूंजीवादी व्यवस्था का घोर विरोध करता है।
(iv) श्रेणी समाजवाद प्रजातंत्र और प्रादेशिक प्रतिनिधित्व की निंदा करता है।
(v) श्रेणी समाजवाद व्यावसायिक प्रतिनिधित्व चाहता है।
(vi) श्रेणी समाजवाद सत्ता के विकेन्द्रीकरण का समर्थक है।
वास्तव में समाज में किसी कार्य विशेष को उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से सम्पन्न करने के लिए
संगठित और परस्पर निर्भर व्यक्तियों का एक स्वायत्त समुदाय ही श्रेणी है। इन श्रेणियों का उद्देश्य
समस्त राज्य की सेवा करना है। प्रत्येक स्तर पर श्रेणी के सदस्य अपनी श्रेणी के संचालन के लिए
अधिकारियों और समितियों आदि का चुनाव करेंगे और ऊपर की श्रेणियों के सदस्य नीचे की
श्रेणियों द्वारा निर्वाचित और उनके प्रति उत्तरदायी होंगे।
प्रश्न 5. समाजवाद के किन्हीं दो गुणों का उल्लेख कीजिए।
( (Mention any two merits of Socialism.)
उत्तर-समाजवाद के गुण (Merits of Socialism)-
(i) समाजवाद आर्थिक समानता पर बल देता है (Socialism consists on Eco-
nomic Equality)-समाजवादी चाहते हैं कि सभी को रोजगार के अवसर सुलभ हो, राष्ट्रीय
सम्पत्ति का उचित बंटवारा हो और सभी को विकास का उचित अवसर मिले। समाजवाद में प्रत्येक
व्यक्ति को श्रम करना आवश्यक है। उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व रहता है और इन
साधनों का सार्वजनिक हित के लिए उपयोग किया जाता है।
(ii) समाजवाद अधिक प्रजातंत्रीय है (Socialismismore democratic)-विद्वानों का
कहना है कि बिना समाजवाद के प्रजातंत्र अस्वाभाविक और अर्थहीन है। वास्तव में समाजवाद
प्रजातंत्र का पूरक है। यह राज्य के लोकतांत्रिक स्वरूप में विश्वास रखता है। यह मताधिकार का
विस्तार करके संसद में बहुमत प्राप्त दल को सरकार बनाने का अधिकार देने के पक्ष में है। अतः
जनता का हित साधन होता रहता है।
प्रश्न 6. समाजवाद के दो प्रमुख दोष बताइए।
(What are the two main shortcomings of Socialism?)
उत्तर-समाजवाद के दोष (Shorncomings of Socialism)-
(i) कार्य करने की प्रेरणा का अंत हो जाता है (No incentives to work)-
समाजवाद में क्योंकि सभी कार्य सरकार की इच्छा पर निर्भर होते हैं, अत: व्यक्ति को उनके बारे
में सोचने, उनकी योजना बनाने, उनमें पहल करने आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती। व्यक्ति एक
मशीन बनकर रह जाता है और उसकी कार्य करने की प्रेरणा का अन्त हो जाता है।
(ii) सरकार सभी उद्योग-धंधों का भली प्रकार प्रबन्ध नहीं कर सकती है (All that
is managed by the State is not well managed)-समाजवादी व्यवस्था में राज्य का
कार्यक्षेत्र बहुत बढ़ जाता है। बहुत अधिक कार्यों के भार से कई बुराईयां पैदा हो जाती हैं। सरकार
के लिए सभी उद्योग-धंधों का संचालन करना आसान नहीं है। प्रबन्धन में व्याप्त भ्रष्टाचार और
अक्षमता के कारण भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में उपक्रमों की हालत खराब हुई है।
प्रश्न 7. विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के क्या लाभ होते हैं?
(What are the advantages of decentralised economy.)
उत्तर-जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया तथा रॉजर गॉरोड़ी जे अर्थव्यवस्था के
विकेन्द्रीकरण पर अत्यधिक बल दिया है। केन्द्रीयकृत नियोजन आर्थिक विकास की एक ऐसी
एकरूपी व्यवस्था निर्मित करता है जो वैयक्तिक आकांक्षाओं की स्थानीय विविधता पर पूरा ध्यान
केन्द्रित नहीं कर पाती। उत्पादन के बारे में निर्णय का अधिकार एक स्थान पर केन्द्रित न करके
यह अधिक लाभदायक होगा, यदि उसे कई केन्द्रों में विभाजित कर दिया जाए और प्रत्येक केन्द्र
अपने क्षेत्र के लोगों की आवश्यकताओं तथा उपलव्य साधनों को सामने रखकर निर्णय करे।
केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में वास्तविक शक्ति नौकरशाही के हाथों में चली जाती है, जनता के हाथों
में नहीं। आज लोकतंत्र का युग है और अर्थव्यवस्था का विकेन्द्रीकरण उसका आधार है।
प्रश्न 8. पूंजीवाद के उदय और विकास के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में समाजवाद
का उदय हुआ था। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
(Socialism emerged as a reaction to the rise and development of capitalism.
Discuss.)
उत्तर-समाजवाद वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध एक आन्दोलन है। यह पूँजीवादी
आर्थिक व्यवस्था को समाप्त करके, उत्पादन तथा विवरण के साधनों पर समाज के नियंत्रण का
समर्थक है, जिसमें आर्थिक समानता की स्थापना हो। समाजवाद का उदय पूंजीवाद के उदय और
विकास के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप प्रकट हुआ था। अहस्तक्षेप (Leisserfaire) के सिद्धांत ने
समाज में गंभीर संकट पैदा कर दिया था। स्वतंत्र प्रतियोगिता के कारण विसंगतियों प्रकट होने
लगी थीं। आर्थिक शक्ति का केन्द्र होने के कारण अमीर और गरीब का भेद बढ़ता जा रहा था।
अधिकांश लोगों को जरूरी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो रहीं थीं। उद्योगपति पूंजी के बल पर
अपने हित साधन में ही लगे हुए थे। इस कारण समाज में अव्यवस्था फेलने लगी और समाज
पर जंगल का कानून लागू होने का डर लोगों को सताने लगा था। इस प्रकार स्वयं पूँजीवाद ने
उद्यमियों की स्वतंत्रता को परिसीमित किया है। धीरे-धीरे समाजवाद् विकसित होने लगा। व्यक्ति
के स्थान पर समाज के कल्याण की बात आई और व्यापार व उद्योग-धंधों के राष्ट्रीयकरण की
आवश्यकता अनुभव की गई। इस प्रकार पूँजीवाद के उदय और विकास के विरुद्ध प्रतिक्रियास्वरूप
समाजवाद का अभ्युदय हुआ।
प्रश्न 9. संसदीय समाजवाद से आप क्या समझते हैं?
(What do you eman by Parliamentary Socialism?)
उत्तर-समाजवाद के विभिन्न रूप हैं। इनमें से कुछ हिंसा के माध्यम से समाजवाद लाना चाहते
हैं जैसे- साम्यवाद, मार्क्सवाद तथा श्रमिक संघवाद दूसरी ओर विकासवादी समाजवादी हिंसा के
माध्यम से समाजवाद स्थापित न करके धीरे-धीरे जन जागरण के माध्यम से समाजवाद स्थापित
करना चाहते हैं। संसदीय समाजवाद इन्हीं में एक है। संसदीय समाजवाद इंग्लैंड के मजदूर दल
(Labour Party) की देन है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि समाजवाद की स्थापना के लिए
संसदीय पद्धति के मार्ग को अपनाता है। इसका संविधान उपायों में अटल विश्वास रखता है।
संसदीय पद्धति के माध्यम से यह न केवल मजदुरों बल्कि अन्य कमजोर वर्गों की मांँगों का पूरा
करने में विश्वास रखता है। यह समाजवादी पुनर्निर्माण के लिए भी आश्वस्त है। यह दृष्टिकोण
मार्क्स के वर्ग-संघर्ष के स्थान पर मानव बन्धुत्व में आस्था प्रकट करता है और सभी वर्गों को
संतुष्ट करने की बात कहता है।
प्रश्न 10. विकास के उदारवादी लोकतांत्रिक मॉडल का क्या अर्थ है ?
उत्तर-विकास के उदारवादी लोकतांत्रिक मॉडल का अर्थ-पश्चिम के विकसित राष्ट्रों
में उदारवादी लोकतंत्र एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शनि दारवादी विचारधारा व्यक्ति को समाज
की तुलना में उच्च नैतिक मूल्य प्रदान करती है। उदारवादी लोकतंत्र में श्रमिकों को पर्याप्त
पारिश्रमिक सम्मानपूर्ण जीवन, निजी संपति के अधिकार अर्थव्यवस्था पर बाजार बाद का प्रभाव
उत्पादन एवं वितरण के साधनों निजी शक्तियों द्वारा नियंत्रण, बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी
असमानता की स्थिति में राज्य द्वारा लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप है।
प्रश्न 11. मानव विकास के चार तत्वों का उल्लेख करें।
उत्तर-मानव विकास का अर्थ है व्यक्ति के विकास के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की
पूर्ति करना। मानव विकास के चार तत्व हैं-साक्षरता, शैक्षिक स्तर, आयु-संभाविता और मातृ
मृत्युदर। मानव विकास के इन चार तत्वों के अलावे भी अनेक तत्व हैं जैसे-भोजन, वस्त्र एवं
आवास जिसको प्राप्त करने का प्रयास प्रत्येक राज्य करता है।
प्रश्न 1. विकास के प्रमुख उद्देश्यों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। [B.M.2009A]
(Explain in brief the main objectives of development.)
उत्तर-विकास के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते समय सामान्यत: विकासशील देशों का गरीब
वर्ग ही दृष्टि में आता है किन्तु वास्तव में पश्चिम के धनी देशों की स्थिति भी इस दृष्टि से कुछ
अच्छी नहीं है। वर्ष भी व्यक्तिवादी पूंँजीवादी व्यवस्था ने एक बड़े वर्ग को आर्थिक दृष्टि से निर्धन
बनाया है। वहाँ के प्रत्येक देश में एक अथवा अधिक उपेक्षित वर्ग देखने को मिल जाएंँगे जिनके
पास देश की समृद्धि कुछ भी का अंश नहीं पहुंच पाता है और वहां की समृद्धि की तुलना में
ये वर्ग स्वयं को गरीब पाते हैं। अतः विकास के उद्देश्यों पर विचार करते समय विकसित देशों
के इन वर्गों का भी अध्ययन करना समीचीन होगा।
पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि में विश्व के सभी देशों के सामान्य लोग अब आवश्यक वस्तुओं
के साथ-साथ विलास की वस्तुओं का भी उपयोग करने लगे हैं। अर्थात् वर्तमान में आर्थिक दृष्टि
से दुर्बल व सबल वर्गों की अवधारणा अब अदृश्य होती जा रही है। वास्तव में इन पाश्चात्य
विचारकों की दृष्टि पश्चिम के धनी समाजों तक सीमित है। उन्होंने विकासशील देशों के आर्थिक
दृष्टि से दरिद्र लोगों को अपने अध्ययन का केन्द्र बनाया ही नहीं है। विकास के उद्देश्यों को निर्धारित
करते समय विश्व के निर्धन लोगों को आधार बनाना आवश्यक है। इन उद्देश्यों का निम्नलिखित
प्रकार से वर्णन किया जा सकता है-
(i) अन्त्योदय (Development the last Man)-हम कह सकते हैं कि विकास का
कार्य कहाँ से प्रारम्भ किया जाना उचित है। वास्तव में विकास के महत्त्व को तभी समझा जा सकता
है जबकि समाज का निर्धन व्यक्ति विकास की योजना का लाभ प्राप्त कर सके। अत: विकास
का लक्ष्य अन्त्योदय होना चाहिए। यदि लक्ष्य अन्त्योदय नहीं रखा गया तो समाज का विकास
तो होगा किन्तु विकास का लाभ धनी व सामान्य निर्धन वर्ग को ही प्राप्त होगा। अत्यन्त निर्धन
तथा निर्धन समाज के अन्त के व्यक्ति की विकास में कोई भागीदारी सम्भव नहीं होगी।
(ii) जीवन का न्यूनतम स्तर (Minimum Living Standard)-विकास का पहला
उद्देश्य दरिद्र लोगों को जीवन के ऐसे न्यूनतम स्तर की प्राप्ति करना चाहिए जिसमें न केवल नितान्त
आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हो बल्कि उनके सुखा सुविधा की भी व्यवस्था हो सके। उन्हें
वे सामान्य परिस्थितियां प्राप्त हों जिनमें उनकी प्रतिभा के विकास के अवसर विद्यमान हों तथा
उनकी कार्यकुशलता को बढ़ाया जा सके।
(iii) लोकतांत्रिक पद्धति द्वारा विकास (Development Through Democratic
Method)-यह उचित है कि अधिनायकवादी देशों में विकास की गति तीव्र होती है और
अधिनायक विकास की जो दिशा निश्चित करता है उसी दिशा में विकास होता है। भय व आतंक
के कारण विकास में किसी प्रकार का अवरोध नहीं होता किन्तु ऐसे देशों में जन सहयोग के अभाव
में न विकास के लाभ का सही वितरण हो पाता है और न ही ऐसे विकास में जनता की रुचि
जागृत होती है। साम्यवादी देशों के विकास की स्थिति से विश्व भली-भांति परिचित है कि वहाँ
विकास के प्रतिमानों का कितना बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार हुआ जबकि वास्तविकता इसके सर्वथा विरुद्ध
थी। लोकतंत्र में विकास जनसहयोग से होता है, यह विकास खुला तथा जन हिताय होता है। किसी
विशिष्ट वर्ग के लिए किए जाने वाले विकास का लोकतांत्रिक पद्धति में विरोध होता है।
(iv) बेरोजगारी की समस्या का हल (Solution of the Problem of
Unemloyment)-पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर मशीनों की सहायता से उत्पादन
किया जाता है। इस कारण जिन देशों में जनसंख्या अधिक है वहाँ बेरोजगारी की समस्या का गंभीर
रूप प्रकट हुआ है। अब तो स्थिति यह है कि पूँजीवादी समृद्ध देशों में, जिनमें अमेरिका व इंग्लैण्ड
भी सम्मिलित हैं, बेरोजगारी की समस्या विकट रूप में सामने आ रही है। यद्यपि कुछ देशों ने
अपने बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ते देना प्रारंभ किया है किन्तु यह समस्या का निदान नहीं है।
भारत में भी कुछ राज्य बेरोजगारी भत्ता दे रहे हैं।
विकास के लक्ष्यों का निर्धारण करते समय बेरोजगारी दूर करने के लक्ष्य को महत्त्वपूर्ण स्थान
दिया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक देश अर्थव्यवस्था के स्वरूप का निर्धारण
अपने यहाँ के साधनों की प्राप्ति को ध्यान में रखकर करें।
प्रश्न 2. बाजार अर्थव्यवस्था के गुण-दोष संक्षेप में लिखें।
(Write merits and demerits of market economy.)
उत्तर-I. गुण (Merits)-बाजार अर्थव्यवस्था के गणों को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त
किया जा सकता है-
(i) तकनीक का सुदृढ़ विकास-वस्तु की गुणवत्ता बढ़ाने तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन के
दृष्टिकोण के कारण उद्योगों में नई-नई तकनीकी के अनुसंधानों की व्यवस्था की जाती है जिससे
देश में तकनीकी का विकास होता है।
(ii) उपभोक्ता की पंसद-यह अर्थव्यवस्था ग्राहक या उपभोक्ता की पसन्द पर अधिक
ध्यान देती है। अत: बाजार में ग्राहक को मनपसन्द सन्तुलित कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं।
(iii) उत्तम वस्तु का उत्पादन-इस अर्थव्यवस्था में प्रत्येक उत्पादक दूसरे उत्पादकों की
तुलना में अधिक उत्तम वस्तु का उत्पादन करना चाहता है, जिससे बाजार में उसकी माल की मांग बढ़े।
(iv) लोकतान्त्रिक पद्धति पर आधारित-बाजार अर्थव्यवस्था पूरी तरह लोकतान्त्रिक है।
प्रत्येक व्यापारी व उद्योगपति को बिना बन्धनों के विकास करने के अवसर प्राप्त होते हैं।
(v) कीमतों में सन्तुलन-कीमतों में संतुलन इस व्यवस्था का सर्वोत्तत गुण है। कोई भी
उत्पादक मनचाही कीमत नहीं रख सकता। अन्य उत्पादों की कीमतों में सन्तुलन बनाए रखने योग्य
कीमतें निर्धारित की जाती हैं।
(vi) आय में वृद्धि-बाजार की अर्थव्यवस्था में भाग लेने के कारण व्यापार व उद्योग की
वृद्धि से सरकार को करों के रूप में धन प्राप्त होता है। सरकार यह धन समाज सेवा व समाज
सुरक्षा के कार्यों पर व्यय कर सकती है।
(vii) निजी क्षेत्र का उपयोग-यह व्यवस्था निजी क्षेत्र में विद्यमान प्रतिभा व साधनों को
देश के लिए उपयोग को सम्भव बनाती है। स्वार्थ के जुड़ जाने से समाज का उद्यमी वर्ग देश
की समृद्धि में हाथ बंँटाता है।
II. हानियाँ (Demerits)-बाजार अर्थव्यवस्था का एक रूप यह भी है जो अधिक
भयावह है। इस व्यवस्था की हानिया को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
(i) उदारीकरण का दुष्परिणाम-बाजार अर्थव्यवस्था उदारीकरण की नीति पर आधारित
होती है। इसमें विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने विशाल स्रोतों के माध्यम से नवोदित राष्ट्रों से
अधिक लाभ कमाने के लिए आती हैं। उदारीकरण विकसित देशों के हितों का संवर्धन करता है।
क्योंकि, इन देशों के भारी मात्रा में उत्पाद को नवोदित राष्ट्रों की विशाल जनसंख्या का बाजार
प्राप्त हो जाता है।
(ii) विदेशी मुद्रा भी.प्राप्त नहीं होती-नवोदित राष्ट्र विदेशी मुद्रा के लालच में जिन
कम्पनियों को आमंत्रित करते हैं वे कम्पनियाँ कम से कम मुद्रा का नवोदित राष्टों को लाभ होने
देती हैं। वे अधिकांश अपने उन्हीं देशों में जाकर आकर्षक भाव पर जनता से प्राप्त करके अपना
कारोबार करती हैं।
(iii) निजी लाभ की प्राप्ति-बाजार अर्थव्यवस्था के मूल में निजी लाभ की प्राप्ति करना
पाया जाता है। उद्योगपति ऐसे उद्योगों में रुचि लेते हैं जिनमें लाभ की सम्भावनाएं अधिक हों।
वे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन कभी नहीं करना चाहेंगे जो कम लाभ दे और समाज के दुर्बल वर्ग
की आवश्यकताओं की पूर्ति करे।
(iv) तकनीक का आयात नहीं हो सकता-नवोदित राष्ट्र विदेशी आधुनिक तकनीक के
आयात के लिए तत्पर रहते हैं। इसी कारण वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमन्त्रित भी करते हैं
किन्तु ये कम्पनियाँ पाश्चात्य देशों में पुरानी पड़ गई तकनीक को हस्तान्तरित करती हैं और उसी
पर आधारित मशीनरी का निर्यात करती हैं।