bihar board geography notes | जैव विविधता और संरक्षण
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जैव विविधता और संरक्षण
(BIODIVERSITY AND CONSERVATION)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उसके आदर्श उत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्वपूर्ण है-
(क) जन्तु
(ख) पौधे
(ग) पौधे और प्राणी
(घ) सभी जीवधारी।
उत्तर-(घ)
(ii) असुरक्षित प्रजातियाँ कौन-सी हैं-
(क) जो दूसरों को असुरक्षा दें
(ख) बाघ व शेर
(ग) जिनकी संख्या अत्याधिक हों
(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
उत्तर- -(घ)
(iii) राष्ट्रीय पार्क (National Parks) और अभ्यारण (Sanctuaries) किस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं-
(क) मनोरंजन
(ख) पालतू जीवों के लिए
(ग) शिकार के लिए
(घ) संरक्षण के लिए।
उत्तर-(घ)
(iv) जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं-
(क) उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र
(ख) शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र
(ग) ध्रुवीय क्षेत्र
(घ) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर-(क)
(v) निम्न में से किस देश में अर्थ सम्मेलन (Earth summit) हुआ था-
(क) यू. के. (U.K.)
(ख) ब्राजील
(ग) मैक्सिको
(घ) चीन।
उत्तर-(ख)
(vi) प्रोजेक्ट टाईगर निम्नलिखित में से किस उद्देश्य से शुरू किया गया है।
(क) बाघ मारने के लिये
(ख) बाघ को शिकार से बचाने हेतु
(ग) बाघ को चिड़ियाघर में डालने हेतु
(घ) बाघ पर फिल्म बनाने हेतु
उत्तर-(घ)
(vii) प्रोजेक्ट एलिफेन्ट (Project Elephent) किस वर्ष लागू किया गया?
(क) 1992
(ख) 1993
(ग) 1994
(घ) 1995
उत्तर-(क)
(viii) होमा-सेपियन (Homo-Sepiens) प्रजाति किस से संबंधित है?
(क) पौधे
(ख) शाकाहारी जीव
(ग) मांशाहारी जीव
(घ) मानव
उत्तर-(घ)
(ix) जैव विविधता का समृद्ध क्षेत्र है-
(क) उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र
(ख) ध्रुवीय क्षेत्र
(ग) शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र
(घ) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर-(क)
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) जैव-विविधता क्या है?
उत्तर-किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहते है। इसका संबंध पौधों के प्रकार, प्राणियों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं से है उनकी आनुवंशिकी और उनके द्वारा निर्मित पारितंत्र से है। जैव-विविधता सजीव सम्पदा है। यह विकास के लाखों वर्षों के इतिहास का परिणाम है।
(ii) जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर-जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है-
(a) आनुवांशिक विविधता (Genetic diversity),
(b) प्रजातीय विविधता (Species diversity) तथा
(c) पारितंत्रीय विविधता (Ecosystem diversity)।
(iii) हॉट-स्पॉट (Hot spots) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-ऐसे क्षेत्र जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव-विविधता हॉट-स्पॉट (Hotspots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया गया है। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए है।
(iv) मानव जाति के लिए जंतुओं के महत्त्व का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर-जैव-विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है और इसी प्रकार, मानव समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। जैव-विविधता के चार प्रमुख योगदान हैं-पारिस्थितिक (Ecological), आर्थिक (Economic), नैतिक (Ethical) और वैज्ञानिक
(Scientific)।
(v) विदेशज प्रजातियों (Exotic species) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियाँ’ कहा जाता है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
(i) प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर-पारितंत्र में विभिन्न प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितंत्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती हैं और न ही बनी रह सकती हैं। अर्थात् प्रत्येक जीव अपनी जरूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है।
जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं, कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं और पारितंत्र में जल या पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती है। इसके अतिरिक्त प्रजातियाँ वायुमंडलीय गैस को स्थिर करती हैं और जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं। ये पारितत्री क्रियायें मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजाजियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की सम्भावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। प्रजाजियों की क्षति से तंत्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवंशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितंत्रों में पर्यावरण के बदलावों में सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थाई होगा।
(ii) जैव-विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर-पिछले कुछ दशकों से जनसंख्या वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अधिक होने लगा है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा आवास स्थानों में तेजी से कमी हुई है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र जो विश्व के क्षेत्र का मात्र एक चौथाई (25%) भाग है, यहाँ संसार का तीन चौथाई (75%) जनसंख्या रहती है। अधिक जनसंख्या की जरूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50% प्रजातियाँ पाई जाती है और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमंडल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।
प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी उद्गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणिजात और वनस्पतिजात को हानि पहुंचाते हैं और परिणामस्वरूप संबंधित प्रभावित प्रदेशे की जैव-विविधता में बदलाव आता है। कीटनाशक और अन्य प्रदूषक जैसे-हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) और विषैली भारी धातु संवेदनशील और कमजोर
प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं। विदेशज प्रजातियों के आगमान से भी पारितंत्र को कई बार क्षति पहुंची है। शिकार के कारण भी कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गई है।
विश्व संरक्षण कार्य योजना में जैव-विविधता संरक्षण के निम्न तरीके सुझाए गए हैं-
(i) संकटापन्न प्रजातियो के संरक्षण के लिए प्रयास करना चाहिए।
(ii) प्रजातियों को विलुप्ति से बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
(iii) खाद्यान्नों की किस्में, चारे संबंधी पौधों की किस्में, इमारती पेड़ों, पशुधन, जन्तु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करनी चाहिए।
(iv) प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को रेखांकित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
(v) प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हो।
(vi) वन्य जीवों व पौधों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुरूप हो।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उसके आदर्श उत्तर.
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. मानव को भोजन प्रदान करने वाले दो साधन बताएँ।
उत्तर-पौधे तथा जीव-जंतु।
2. हरित क्रांति में किन तत्त्वों का योगदान है?
उत्तर-बीजों की नयी किस्में, कीटनाशक दवाइयाँ तथा उर्वरक।
3. प्रजातीय विविधता किसे कहते हैं?
उत्तर-किसी प्रजाति के शारीरिक लक्षणों को।
4. कुछ प्रजातियों के सामाप्त होने का क्या कारण है?
उत्तर -बढ़ती जनसंख्या के लिए संसाधनों की अधिक मांग के कारण।
5. प्लीस्टोसिन युग कव था?
उत्तर-लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व।
6. अनाज के भंडार की वृद्धि का क्या कारण है?
उत्तर-कृषि का यंत्रीकरण।
7.पर्यावरण के प्रदूषण का किन तत्त्वों पर प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-वायु, जल, मृदा।
8. इस समय विश्व के कितने प्रतिशत ज्ञात पशु तथा पौधे विलोपन के कागार पर खड़े हैं?
उत्तर-2% पशु तथा 8% पौधे।
9. जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव का क्या कारण है?
उत्तर-अम्लीय वर्षा, सिचाई तथा उर्वरकों का प्रवाह।
10. भारत में धार्मिक अनुष्ठानों में कितने पौधों की प्रजातियां प्रयोग की जाती हैं?
उत्तर-100 (सौ)।
11. ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ कब शुरू किया गया?
उत्तर-1973 ई. में।
12. पृथ्वी शिखर कब और कहां हुआ?
उत्तर-1992 में रायो डी जेनेरो (ब्राजील) में।
13. वाइल्ड लाइफ एक्ट कब बनाया गया?
उत्तर-सन् 1972 में।
14. जैव विविधता का आधार क्या है?
उत्तर-अपक्षयण।
15. अधिक प्रजातीय विविधता वाले क्षेत्रों को क्या कहते हैं?
उत्तर -हॉट-स्पॉट (Hot-Spot)।
16. प्रजातियों की क्षति का क्या प्रभाव है?
उत्तर-पारितन्त्र की क्षमता का कम होना।
17. कृषि जैव विविधता क्या है?
उत्तर-फसलों की विविधता।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जैव विविधता के क्या कारण हैं?
उत्तर-जैव विविधता का आधार अपक्षयण है। सौर ऊर्जा और जल ही अपक्षयण में विविधता और जैव विविधता का मुख्य कारण है। वे क्षेत्र जहां ऊर्जा व जल की उपलब्धता अधिक है, वहीं पर जैव विविधता भी व्यापक स्तर पर है।
2. जैव विविधता सतत् विकास का तन्त्र है? स्पष्ट करें।
उत्तर-जैव विविधता सजीव सम्पदा है। यह विकास के लाखों वर्षों के ऐतिहासिक घटनाओं का परिणाम है। प्रजातियों के दृष्टिकोण से और अकेले जीवधारी के दृष्टिकोण से जैव-विविधता सतत् विकास का तन्त्र है। पृथ्वी पर किसी प्रजाति की औसत आयु 10 से 40 लाख वर्ष होने का अनुमान है। ऐसा भी माना जाता है कि लगभग 99 प्रतिशत प्रजातियाँ जो कभी पृथ्वी पर रहती थीं, आज लुप्त हो चुकी हैं। पृथ्वी पर जैव विविधत एक जैसी नहीं
है। जैव-विविधता उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशे में अधिक होती है। जैसे-जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ बढ़ते हैं, प्रजातियों की विविधता तो कम होती जाती है, लेकिन जीवधारियों की संख्या अधिक होती जाती है।
3. पौधों और जीवों को संरक्षण के आधार पर विभिन्न प्रजातियों में बांटे।
उत्तर- -प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण को अतर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संकटापन्न पौधों व जीवों की प्रजाजियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है.
(i) संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered species)- इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) विश्व की सभी सकटापन्न प्रजातियों के बारे में (Redlist) रेड लिस्ट के नाम से सूचना प्रकाशित करता है।
(ii) कमजोर प्रजातियाँ (Vulnerable species)- इसमें वे प्रजातियाँ सम्मिलित हैं। जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक यदि जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है। इनकी संख्या अत्यध्यिक कम होने के कारण, इनका जीवित रहना सुनिश्चित नहीं है,
(iii) दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare species)-संसार में इन प्रजातियों की संख्या बहुत कम है। ये प्रजातियाँ कुछ ही स्थानों पर सीमित हैं या बड़े क्षेत्र में बिखरी हुई हैं।
4. जैव विविधता की हानि के चार कारण वताएँ।
उत्तर-(i) प्राकृतिक आपदाएँ, (ii) कीटनाशक, (ii) विदेशज प्रजातिया, (iv) अवैध शिकार।
5. प्रजातियों के संरक्षण के दो पहलू बताएं।
उत्तर-(i) मानव को पर्यावरण-मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों का प्रयोग करना चाहिए।
(ii) विकास के लिए सतत् पोषणीय गतिविधियाँ अपनाई जाए।
(iii) स्थानीय समुदायों की इसमें भागीदारी हो।
6. महाविविधता केन्द्र से क्या अभिणय है? विश्व के महत्त्वपूर्ण महाविविधता केन्द्र वताएँ।
उत्तर-जिन देशों में उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में अधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती हैं, उन्हें महाविविधता केन्द्र कहते हैं। विश्व में 12 ऐसे देश हैं-मैक्सिको, कोलम्बिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राजील, जायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया तथा आस्ट्रेलिया।
7. मानव के लिए पौधे किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर-पौधे मनुष्य को कई प्रकार की फसलें, प्रोटीन देते हैं यह जनसंख्या के पोषण के लिए एक प्राकृतिक साधन है।
8. जैविक विविधता का संरक्षण क्या है?
उत्तर-जैविक विविधता का संरक्षण एक ऐसी योजना है जिसका लक्ष्य विकास की निरंतरता को बनाये रखना है। विभिन प्रजातियों को कायम रखने के लिए, विकसित करने तथा उनके जीवन कोष को बनाये रखना जो भविष्य में लाभदायक हो।
9. जैव विविधता का इतिहास बताएं। किस कटिबन्ध में जैव विविधता अधिक है?
उत्तर-आज जो जैव विविधता हम देखते हैं, वह 25 से 35 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है। मानव जीवन के प्रारम्भ होने से पहले, पृथ्वी पर जैव विविधता किसी भी अन्य काल से अधिक थी। मानव के आने से जैव विविधता में तेजी से कमी आने लगी, क्योंकि किसी एक या अन्य प्रजाति की आवश्यकता से अधिक उपभोग होने के कारण, वह लुप्त होने लगी। अनुमान के अनुसार, संसार में कुल प्रजातियों की संख्या 20 लाख से 10
करोड़ तक, लेकिन एक करोड़ ही इसका सही अनुमान है। नयी प्रजातियों की खोज लगातार जारी है और उनमें से अधिकांश का वर्गीकरण भी नहीं हुआ है। (एक अनुमान के अनुसार दक्षिण अमेरिका की ताजे पानी की लगभग 40 प्रतिशत मछलियों का वर्गीकरण नहीं हुआ।) उष्ण कटिबन्धीय वनों में जैव-विविधता की अधिकता है।
10. स्पष्ट कीजिए किस प्रकार अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता हेतु उत्तरदायी है?
उत्तर-पृथ्वी पर जैव विविधता मुख्यतः वनों पर आधारित होता है और वन अपक्षयी प्रवाह की गहराई पर आधारित है। अपक्षय प्रक्रिया शैलों को तोड़कर आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण हेतु मार्ग प्रशस्त करती हैं और अपरदन एवं वृहत संचालन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है जो जैव विविधता हेतु उत्तरदायी होती है।
11. परितन्त्र में प्रजातियों की भूमिका बताएं।
(i) जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण करती है।
(ii) ये कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न करती है।
(iii) ये जल व पोषण चक्र बनाने में सहायक हैं।
(iv) वायुमण्डलीय गैसों को स्थिर करती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
उत्तर-
1. जैव विविधता का विभिन्न स्तरो पर वर्णन करें।
उत्तर-जैव-विविधता को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है-(i) आनुवंशिक विविधता (Geneticdiversity), (ii) प्रजातीय विविधता (Species diversity) तथा (iii)पारितन्त्रीय विविधता (Ecosystem diversity)।
(i) आनुवांशिक जैव विविधता (Genetic biodiversity)-जीवन निर्माण के लिए जीन-(Gene) एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुांशिक जैव-विविधता है। समान भौतिक लक्षणे वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते है। मानव आनुवांशिक रूप से ‘हेमोसेपियन’ (Homosapiens) प्रजाति से सम्बन्धित है जिससे कद,
रग और अलग दिखावट जैसे शारीरिक लक्षणों में काफी भिन्नता है। इसका कारण आनुवंशिक विविधता है। विभिन्न प्रजातियों के विकास के फलने-फूलने के लिए आनुवंशिक विविधता अत्यधिक अनिवार्य है।
(ii) प्रजातीय विविधता (Species diversity)-यह प्रजातीयों की अनेकरूपता को बताती है। यह किसी निर्धारित क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या से सम्बन्धित है। प्रजातियों की विविधता, उनकी समृद्धि, प्रकार तथा बहुलता से आंकी जा सकती है। कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की संख्या अधिक होती है और कुछ में कम। जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के हॉट-स्पॉट (Hot spots) कहते है।
(iii) पारितन्त्रीय विविधता (Ecosystem diversity)-आपने पिछले अध्याय में पारितन्त्रों के प्रकारों में व्यापक भिन्नता और प्रत्येक प्रकार के पारितन्त्रों में होने वाली पारितन्त्रीय प्रक्रियाएं तथा आवास स्थानों की भिन्नता ही पारितन्त्रीय विविध्ता बनाते हैं। पारितन्त्रीय विविधता का परिसीमन करना मुश्किल और जटिल है, क्योंकि समुदायो (प्रजातियों का समूह) और पारितन्त्र की सीमाए निश्चित नहीं हैं।
2. प्रकृति को बनाए रखने में जैव विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर-जैव विविधता का महत्व (Importance of biodiversity)
जैव विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया है और इसी प्रकार मानव समुदायों ने भी आनुवंशिक, प्रजातीय व पारिस्थितिक स्तरों पर प्राकृतिक विविधता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दिया है। जैव विविधता के चार प्रमुख योगदान है-(i) पारिस्थितिक(Ecological), (ii) आर्थिक (Economic), (iii) नैतिक (Ethical),
(iv) वैज्ञानिक(Scientific)
(i) जैव विविधता की पारिस्थितिकीय भूमिका (Ecological role of biodiversity)-पारितन्त्र में विभिन्न प्रजातियां कोई न कोई क्रिया करती है। पारितन्त्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती हैं और न ही बनी रह सकती हैं। अर्थात्, प्रत्येक जीव अपनी जरूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। (i) जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती है। (ii) कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं। (iii) पारितन्त्र में जल व पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती है। इसके अतिरिक्त प्रजातियाँ वायुमण्डलीय गैस को स्थिर करती हैं। (iv) जलवायु को नियन्त्रित करने में सहायक होती हैं। ये पारितन्त्रीय क्रियाएं मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण क्रियाएं हैं। पारितन्त्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की सम्भावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। प्रजातियों की क्षति से तन्त्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवांशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितन्त्र में पर्यावरण के बदलावों को सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, जिस पारितन्त्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितन्त्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।
(ii) जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका (Ecological role of biodiversity)-सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में विविधता एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। जैव विविधता का एक महत्त्वपूर्ण भाग फसलों की विविधता (Cropdiversity) है, जिसे कृषि जैव विविधता भी कहा जाता है। जैव विविधता को संसाधनों के उन भण्डारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियाँ और सौन्दर्य प्रसाधन आदि बनाने में है। जैव संसाधनों की ये परिकल्पना जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी हैं। साथ ही यह संसाधनों के विभाजन और बंटवारे को लेकर उत्पन्न नये मत्स्य और दवा संसाधन आदि हैं।
कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद है, जो मानव को जैव विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते है।
(iii) जैव-विविधता की वैज्ञानिक भूमिका (Scientific role of biodiversity)-जैव विविधता इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें यह संकेत दे सकती है कि जीवन का आरम्भ कैसे हुआ और यह भविष्य में कैसे विकसित होगा। जीवन कैसे चलता है और पारितन्त्र, जिसमें हम भी एक प्रजाति है, उसे बनाये रखने में प्रत्येक प्रजाति की क्या भूमिका है, इन्हें हम जैव विविधता से समझ सकते हैं। हम सभी को यह तथ्य समझना चाहिए कि हम स्वयं जियें और दूसरी प्रजातियों को भी जीने दें।
(iv) जैव विविधता की नैतिक भूमिका (Ethical role of biodiversity)-
यह समझना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हमारे साथ सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार है। अत: कई प्रजातियों को स्वेच्छा से विलुप्त करना नैतिक रूप से गलत है। जैव विविधता का स्तर अन्य जीवित प्रजातियों के साथ हमारे सम्बन्ध का एक अच्छा पैमाना है। वास्तव में, जैव विविधता की अवधारणा कई मानव संस्कृतियों का अभिन्न अंग है।
3. जैव विविधता के विनाश के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करो। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर-जैव विविधता की हानि (Loss of bodiversity)-पिछले कुछ दशकों से, जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अधिक होने लगा है। इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेजी से कमी हुई है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र, जो विश्व के कुछ क्षेत्र का मान एक चौथाई भाग है, यहाँ संसार की तीन चौथाई जनसंख्या रहती है। अधिक जनसंख्या की जरूरत को पूरा करने के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है। उष्णकटिबन्धीय वर्षा वाले वनों में पृथ्वी की लगभग 50 प्रतिशत प्रजातियाँ पाई जाती है और प्राकृतिक आवासों का विनाश पूरे जैवमण्डल के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है।
(i) प्राकृतिक आपदाएँ-प्रकृतिक आपदाएँ जैसे भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी, उद्गार, दावानल, सूखा आदि पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्राणिजात और वनस्पतिजात को क्षति पहुंचाते है और परिणामस्वरूप सम्बन्धित प्रभावित प्रदेशों की जैव विविधता में बदलाव आता है।
(ii) कीटनाशक-कीटनाशक और अन्य, जैसे- हाइड्रोकार्बन (Hydro carbon) और विषैजी भारी धातु (Toxic heavy metals) संवेदनशील और कमजोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।
(iii) विदेशज प्रजातियाँ-वे प्रजातियाँ, जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तन्त्र में स्थापित की गई है, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियाँ (Exoticspecies) कहा जाता है। ऐसे कई उदाहरण है, जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से पारितन्त्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ है।
(iv) अवैध शिकार :-पिछले कुछ दशकों के दौरान, कुछ जन्तुओं जैस-बाघ, चीता, हाथी, गैंडा, मगरमच्छ, मिक और पक्षियों का, उनके सींग, सूंड व खालों के लिए निर्दयतापूर्वक अवैध शिकार किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गई है।
जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of bodiversity) -मानव के अस्तित्व के लिए जैव-विविधता अति आवश्यक है। जीवन का हर रूप एक-दूसरे पर इतना निर्भर है कि किसी एक प्रजाति पर संकट आने से दूसरों में असन्तुलन की स्थिति पैदा हो जाती है।
यदि पौधों और प्राणियों की पजातियाँ संकटापन्न होती है, तो इससे पर्यावरण में गिरावट उत्पन्न होती है, और अन्ततोगत्वा मनुष्य का अपना अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है। आज यह अति अनिवार्य है कि मानव को पर्यावरण-मैत्री सम्बन्धी पद्धतियों के प्रति जागरूक किया जाए और विकास की ऐसी व्यावहारिक गतिविधियाँ अपनाई जाएं, जो स्थायी (Sustaniable) हो। इस तथ्य के प्रति भी जागरूकता बढ़ रही है कि सरक्षण तभी संभव और दीर्घकालिक होगा, जब स्थानीय समुदायों व प्रत्येक व्यक्ति की इसमें भागीदारी होगी।
इसके लिए स्थानीय स्तर पर संस्थागत संरचनाओं का विकास आवश्यक है। केवल प्रजातियां का संरक्षण और आवास स्थान की सुरक्षा ही अहम समस्या नहीं है, बल्कि संरक्षण की प्रक्रिया को जारी रखना भी उतना ही जरूरी है।
सन् 1992 में ब्राजील के रियो-डी-जेनेरो (Rio-de-Janeiro) में हुए जैव विविधता के सम्मेलन (Earth summit) में लिए गए संकल्पों का भारत अन्य 155 देशों सहित हस्ताक्षरी है। विश्व सरक्षण कार्य योजना में जैव-विविधता संरक्षण के निम्न तरीके सुझाए गए हैं-
(i) संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करना चाहिए।
(ii) प्रजातियों को विलुप्ति से बचाने के लिए उचित योजनाएं प्रबन्धन अपेक्षित है।
(iii) खाद्यन्नों की किस्में, चारे सम्बन्धी पौधों की किस्में, इमारती पेड़, पशुधन, जन्तु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।
(iv) प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को रेखांकित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
(v) प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हों।
(vi) वन्य जीवों व पौधों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नियामों के अनुरूप हो।
भारत सरकार ने प्राकृतिक सीमाओं के भीतर विभिन्न प्रकार की प्रजातियों को बचाने सरक्षित करने और विस्तार करने के लिए, वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 (Wild life protectionact,1972), पास किया है, जिसक अन्तर्गत राष्ट्रीय पार्क (National parks). अभ्यारण्य (Sanctuaries) स्थापित किये गए तथा जैव संरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) घोषित किये गए। वे देश, जो उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित है, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय विविधता पाई जाती है। उन्हें ‘महा विविधता केन्द्र (Megadiversity centers) कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और उनके नाम हैं: मैक्सिको, कोलम्बिया इक्वेडोर, पेरू, ब्राजील, जायरे, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया और आस्ट्रेलिया। इन देशों में समृद्ध महा-विविधता के केन्द्र स्थित है। ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव विविधता हॉट-स्पॉट (Hotspots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए हैं। पादप महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये ही किसी पारितन्त्र की प्राथमिक उत्पादकता को निर्धारित करते हैं। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर हॉट-स्पॉट रहने वाले भोजन, जलाने के लिए लकड़ी, कृषि भूमि और इमारती लकड़ी आदि के लिए वहाँ पाई जाने वाली प्रजाति समृद्ध पारितन्त्रों पर ही निर्भर है। उदाहरण के लिए मेडागास्कर में, जहाँ 85 प्रतिशत पौधे व प्राणी संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं पाए जाते वहां के रहने वाले संसार के सर्वाधिक गरीबों में से एक है और वे जीवित खेती के लिए जंगलों को काटकर और (Slash and burn) पायी गयी कृषि भूमि पर निर्भर हैं। अन्य हॉट-स्पॉट, जो समृद्ध देशों में पाए जाते हैं, वहाँ कुछ अन्य प्रकार की समस्याएँ हैं। हवाई द्वीप जहाँ विशेष प्रकार की पादप व जन्तु प्रजातियाँ मिलती है, वह विदेशज प्रजातियों के आगमन और भूमि विकास के कारण असुरक्षित है।