Bihar board class- 8th SST Geography chapter – 2
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भारतीय कृषि
पाठों का सारांश:- खेती करना जिसे हम कृषि कार्य कहते हैं। एक प्राथमिक क्रिया है। हमारे देश की 60% जनसंख्या कृषि कार्यों से ही जीविका पाती हैं। भूमि को जोतकर विभिन्न प्रकार की फसलें, सब्जियाँ, फल-फूल उपजाना, पशुओं को पालना, मत्स्य-पालन इत्यादि कृषि कार्य हैं। कृषि उत्पादों पर दूसरे अनेक उद्योग निर्भर करते हैं। खेती करना एक तंत्र की तरह है, जिसमें वीज, सिंचाई, खाद, उपकरण एवं श्रमिक लगते हैं। जुताई-बुआई, निराई, कटाई चरणबद्ध प्रक्रियाएँ की जाती हैं तब जाकर अन्तिम उत्पाद के रूप में हमें अनाज, दलहन, फल-सब्जी, ऊन, डेयरी उत्पाद-दुग्ध, माँस इत्यादि प्राप्त होते हैं। कृषि करने की विधियाँ एवं तकनीक प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार की होती हैं।
हर साल फसल उपजाते रहने से वहाँ जमीन की उर्वरता कम हो जाती है तब वहाँ खेती करना छोड़ देते हैं और जंगल के किसी दूसरे हिस्से को साफ करके वहाँ खेती करने लगते हैं इसे ‘स्थानान्तरित कृषि’ कहते हैं। इस तरह की खेती में न तो आधुनिक उपकरण उपयोग किये जाते हैं और न ही खाद । इसमें पारिवारिक श्रम का उपयोग ज्यादा होता है और उपज भी अपेक्षाकृत कम प्राप्त होती है। इस तरह की कृषि को कर्तन एवं दहन कृषि कहते हैं।
भारत के उन क्षेत्रों में जहाँ भूमि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होता है वहाँ गहन जीविका कृषि की जाती है। इस पद्धति में कम-से-कम जमीन से अधिक-से-अधिक उत्पादन का प्रयास किया जाता है तथा श्रम, उर्वरक और उपकरणों का भरपूर प्रयोग किया जाता है और एक वर्ष में एक ही खेत में अनेक फसलें उगाई जाती हैं। इसे ‘गहन कृषि’ भी कहते हैं। बिहार में इसी प्रकार की खेती होती है। “आधुनिक कृषि उपकरणों और बड़े पूँजी निवेश से जब बड़े पैमाने पर फसलों का उत्पादन करते हैं, जिसकी बिक्री के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध रहता है तो इस प्रकार की कृषि ‘वाणिज्यिक कृषि’ कहलाती है। उत्तरी बिहार में मखाना, केला और तम्बाकू की खेती वाणिज्यिक कृषि के उदाहरण हैं। भारतवर्ष में मुख्य रूप से तीन फसल ऋतुएँ हैं-खरीफ, रबी व जायद (गर्मा)। मानसून आने के साथ ही अर्थात् जून-जुलाई में बोये जाने वाली और अक्टूबर-नवम्बर में काटी जाने वाली फसलें, खरीफ फसलें कहलाती हैं। इसमें मुख्य रूप से धान, मक्का, जूट, मूंगफली इत्यादि फसलें आती हैं।
रबी फसलें अक्टूबर-नवम्बर में बोई जाती हैं और मार्च-अप्रैल में काट ली जाती हैं। इसमें मुख्य रूप से गेहूँ, चना, मटर, मसूर, जौ इत्यादि फसलें आती हैं। खरीफ व रबी के बीच अर्थात् गर्मी के मौसम में जो फसलें बोई जाती हैं, वे जायद कहलाती हैं। जायद फसलें कम समय में उपजने वाली फसलें हैं। जैसे–तरबूज, ककड़ी, खीरा, सब्जियाँ इत्यादि।
उपयोगिता के आधार पर फसलों को पाँच भागों में बाँटा गया है-
(1) खाद्य फसलें:- वे फसलें जिन्हें किसानों द्वारा भोजन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपजाया जाता है, खाद्य फसलें कहलाती हैं। जैसे–चना, अरहर, मूंग, मसूर, उरद, मटर, सरसों, तिल, अलसी, सूरजमुखी, सोयाबीन व नारियल इत्यादि ।
(2) रेशेदार फसलें:- कपास और जूट की फसलें प्रमुख रेशेदार फसलें हैं। कपास के पौधों के लिए काली मिट्टी और 50 से 100 सेमी. वर्षा के साथ 210 पाला रहित दिन व खिले धूप की आवश्यकता होती है। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान इत्यादि प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। बिहार में कपास की खेती तो नहीं होती, लेकिन जूट की फसल खूब उगाई जाती है, जिन्हें ‘सुनहरा रेशा’ भी कहते हैं। बिहार में किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, दरभंगा, सहरसा में इसकी खूब उपज होती है। जूट की उपज के लिए तापमान 25°C से 35°C तक तथा वर्षा 100 से 200 सेमी. तक होनी चाहिए ।
(3) पेय फसलें:-चाय, कॉफी, कोक इत्यादि पेय फसलों के उत्पाद हैं। भारत विश्व में चाय का अग्रणी निर्यातक देश है। बिहार के किशनगंज और पूर्णिया जिले में भी चाय की फसल होती है। दूसरी पेय फसल कॉफी है। भारतीय कॉफी को मधुर कॉफी भी कहा जाता है। यह कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल में पैदा किया जाता है।
(4) बागवानी फसलें:- ये फसलें ‘ट्रक फार्मिंग’ के नाम से भी जानी जाती है। केला, आम, चीनी, फूलों आदि की घरेलू खपत खूब है।
(5) व्यापारिक फसलें-रबर, मखाना, तम्बाकू, मिर्च, गन्ना ये सब व्यापारिक फसलें हैं। रबर को छोड़कर बाकी फसलें बिहार में बहुतायत में उपजायी जाती हैं। ये फसलें कई उद्योगों के लिए कच्चे माल का काम करती हैं। बीड़ी-सिगरेट, चीनी, टायर इत्यादि उद्योग इन्हीं फसलों पर आधारित हैं।
बिहार प्रांत की कृषि मानसून पर आधारित है। वर्षा पर निर्भर होने के कारण फसलों के उत्पादन में अनिश्चितता बनी रहती है। पर्याप्त वर्षा से अच्छी फसल होती है जबकि अल्पवृष्टि से फसलों का नुकसान होता है। इस तरह यहाँ की फसलें प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर करती हैं।
राज्य में कृषि जीवन निर्वहन के लिए किया जाता है। जनसंख्या का अत्यधिक बोझ, रोजगार के अन्य साधनों के अभाव से कृषि ही अर्थ प्राप्ति का स्रोत होता है। अभी बिहार में कृषि के क्षेत्र में ट्रैक्टर, पावर टीलर, बीडविमर आदि का उपयोग बढ़ा है। 1960 के दशक में कृषि के
क्षेत्र व्यापक बदलाव आये । इन्हीं बदलावों के कारण इसे ‘हरित क्रांति’ का नाम दिया गया ।
इसके अंतर्गत परंपरागत कृषि के बदले वैज्ञानिक उपकरणों, संकर बीजों, कीटनाशकों एवं सिंचाई के विभिन्न उन्नत तकनीकों का प्रयोग शुरू हुआ। एक ही फसल के साथ दूसरी फसलों को लगाना अन्तर कृषि कहलाती है। गेहूँ के साथ सरसों की फसल बोना, आलू के साथं बकुली, मूली, सरसों उपजाने से पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई। भारत में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने सबसे पहले वैज्ञानिक कृषि उपकरणों का उपयोग शुरू किया। यहां के किसान खेतों की जुताई तथा फसल की ढुलाई के लिए ट्रैक्टरों का उपयोग करने लगे। फसल काटने के लिए मशीनों का उपयोग होने लगा। प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा के लिए फसलों की बीमा का प्रावधान और कम ब्याज पर बैंक से या स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण उपलब्ध कराया जाने लगा। ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियों, किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा से किसानों को वित्तीय मदद उपलब्ध कराया जाने लगा। बिस्कोमान द्वारा खाद और बीज उपलब्ध कराने और सहकारी भूमि विकास बैंक की स्थापना से बिहार में कृषि कार्यों में बढ़ोत्तरी हुई। अपने प्रांत में ‘श्री विधि’ तकनीक से धान उपजाने की प्रक्रिया पर जोर दिया गया तथा कम लागत में ज्यादा
उत्पादन करने वालों को ‘किसान श्री’ पुरस्कार भी दिये जाते हैं। इसके अलावे कृषि उत्पादों की प्रदर्शनियाँ लगाकर, उत्पादों को पुरस्कृत करके भी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा ।
अभ्यास के प्रश्न
I. बहुवैकल्पिक प्रश्न-
सही विकल्प को चुनें।
1. कृषि कार्य में शामिल है-
(क) भूमि को जोतना
(ख) पशुओं को पालना
(ग) मछली पालन करना
(घ) उपर्युक्त सभी
2. भूमि पर जनसंख्या के अत्यधिक दबाव वाले क्षेत्रों में कौन-सी खेती की जाती है?
(क) झूम खेती
(ख) अन्तर कृषि
(ग) गहन कृषि
(घ) ट्रक फार्मिग
3. इनमें कौन समूह रबी की फसलों से संबंधित है ?
(क) गेहूँ, चावल
(ख) चना, धान
(ग) मक्का, जूट
(घ) गेहूँ मटर
4. जूट की फसल प्रमुखतः होती है-
(क) किशनगंज में
(ख) अररिया-आरा में
(ग) गया-औरंगाबाद में (घ) गया-जहानाबाद में
5. बिस्कोमान उपलब्ध कराती है-
(क) किसानों को खाद-बीज (ख) कृषि उपकरण
(ग) ऋण
(घ) सिंचाई की सुविधा
उत्तर-1. (क) भूमि को जोतना, 2. (ग) गहन कृषि, 3. (घ) गेहूँ-मटर, 4. (क) किशनगंज-पूर्णिया में, 5. (क) किसानों को खाद-बीज ।
II. खाली जगहों को उपयुक्त शब्दों से भरें-
(i) स्थानान्तरित कृषि को ………भी कहते हैं।
(ii) उत्तरी बिहार में ……और ……..की खेती वाणिज्यिक कृषि है।
(iii) जायद फसल का उदाहरण …..हैं
(iv) किसान क्रेडिट कार्ड से किसानों को ……..सुविधा उपलब्ध होती है।
(v) जैविक खादों से भूमि की उर्वरता शक्ति………हैं।
उत्तर-(i) दहन कृषि, (ii) मखाना, केला और तम्बाकू, (iii) तरबूज, ककड़ी, खीरा, सब्जियाँ, (iv) वित्तीय, (v) बढ़ती ।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें। (अधिकतम 50 शब्दों में)-
1. कृषि कार्य किसे कहते हैं?
उत्तर-खेती करने की प्राथमिक क्रिया को कृषि कार्य कहते हैं। भूमि को जोतकर विभिन्न प्रकार की फसलें, सब्जियां, फल-फूल उपजाना, पशुओं को पालना, मत्स्य-पालन इत्यादि करना कृषि कार्य हैं।
2. खरीफ और रबी फसलों में क्या अन्तर है ? सोदाहरण बताएँ।
उत्तर-
खरीफ फसल
मानसून आने के साथ ही अर्थात्
जून-जुलाई में बोये जाने वाली
और अक्टूबर-नवम्बर में काटी जाने
वाली फसलें खरीफ फसल कहलाती हैं।
जैसे—धान, मक्का, जूट, मूंगफली आदि ।
रबी फसल
अक्टूबर-नवम्बर में बोये जाने वाली
तथा मार्च-अप्रैल, में काटी जाने वाली
फसलें रबी फसल होती हैं। जैसे-
गेहूँ, चना, मटर, मसूर, जौ इत्यादि ।
जैसे—धान, मक्का, जूट, मूंगफली आदि ।
3. जीवन-निर्वहन कृषि क्या है?
उत्तर-जो कृषि जीवन निर्वहन के लिए की जाती है, उसे जीवन-निर्वहन कृषि कहते हैं। जनसंख्या का अत्यधिक बोझ, रोजगार के अन्य साधनों के अभाव से कृषि ही अर्थ प्राप्ति का स्रोत होता है।
4. व्यापारिक और बागवानी फसलों के बारे में क्या जानते हैं ? लिखिए।
उत्तर-व्यापारिक फसलें-रवर, मखाना, तम्बाकू, मिर्च, गन्ना ये सब व्यापारिक फसलें हैं। रबर को छोड़कर बाकी फसलें बिहार में बहुतायत में उपजायी जाती हैं। ये फसलें कई उद्योगों के लिए कच्चे माल का काम करती है। बागवानी फसलें ये फसलें “ट्रक फार्मिंग’ के नाम से भी जानी जाती हैं। केला, आम, चीनी, फूलों आदि की घरेलू खपत खूब है। फूलों की खेती पर्व-त्योहारों, शादी-ब्याह और औषधियों की आपूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें। (अधिकतम 200 शब्दों में)-
1. बिहार की कृषि की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर-बिहार की कृषि की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
* बिहार प्रांत की कृषि मानसून पर आधारित है। वर्षा पर निर्भर होने के कारण फसलों के उत्पादन में अनिश्चितता बनी रहती है। पर्याप्त वर्षा से अच्छी फसल होती है जबकि अल्पवृष्टि से फसलों का नुकसान होता है। इस तरह यहाँ की फसलें प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर करती हैं।
* खेती करने के तरीके पुराने हैं। हल-बैल, कुदाल, खुरपी ही प्रमुख उपकरण हैं। खेती श्रम पर अधिक आश्रित है। परंपरागत कृषि यहाँ की विशेषता है।
* छुपी हुई बेरोजगारी हमारी कृषि की खास विशेषता है। यहाँ परिवार के अधिकांश सदस्य फसल बुआई-कटाई के दौरान कृषि कार्यों में लगे रहते हैं। ऐसे में उन्हें स्वयं के लिए रोजगार में लगा होना समझ में आता है जबकि वे वस्तुतः रोजगार के अभाव में ही इन कार्यों में संलग्न होते हैं।
2. कृषि किन कारणों से प्रभावित होती है?
उत्तर-कृषि निम्नलिखित कारणों से प्रभावित होती है-
(i) वर्षा पर निर्भरता:-भारतीय कृषि क्षेत्र का एक-तिहाई भाग ही सिंचित है, शेष क्षेत्र मानसून की बारिश पर निर्भर करती है। कभी अल्पवृष्टि तो कभी अतिवृष्टि फसलों के उत्पादन को प्रभावित कर देते हैं।
(ii) खेतों के छोटे आकार:-भारत में छोटे और सीमान्त किसानों की संख्या अधिक है। जमीन के पारिवारिक बंटवारे के कारण खेतों का आकार छोटा होता जा रहा है। चकबंदी के अभाव में भू-जोत बिखरे हैं। छोटे भू-जोत आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी होते हैं।
(iii) भूमि का असमान वितरण:-भूमि का असमान वितरण से भी भारतीय कृषि प्रभावित है। अंग्रेजी शासन के दौरान भू-राजस्व वसूली के लिए लागू की गई। जमींदारी प्रथा ने किसानों का शोषण किया। स्वतंत्रता के बाद भू-सुधारों की प्रक्रिया शुरू तो हुई लेकिन इसमें गति लाने की आवश्यकता है।
(iv) कृषि ऋण:-छोटे किसान बीज, खाद, कीटनाशक, अमिक आदि के लिए महाजनों या अन्य संस्थाओं से कर्ज लेते हैं। ऊंची सूद दर, कम उत्पादन, मौसम की बेरूखी, बिचौलियों के कारण किसानों को पर्याप्त लाभ नहीं हो पाता । ऐसी स्थिति में ये ऋण नहीं लौटा पाते । यह इनके कृषि उत्पादन क्षमता को प्रभावित करती है।
(v) कृषि विपणन:-अच्छी बाजार व्यवस्था के अभाव में किसान अपने उत्पादों को बिचौलियों व व्यापारियों को सस्ते दामों पर बेचने के लिए बाध्य हैं जो उनको उचित मूल्य नहीं देते। फसलों की अत्यधिक उत्पादकता को न तो सही ढंग से बाजार में पहुंचा पाते हैं और न ही बिक्री कर पाते हैं। विचौलिये इस स्थिति का लाभ उठा लेते हैं।
3. आपके राज्य में कृषि कार्य उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए क्या प्रयास हुए हैं ? लिखिए ।
उत्तर-छात्र शिक्षक की सहायता से लिखें।