bihar board class 8th history | शिल्प एवं उद्योग
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शिल्प एवं उद्योग
पाठ का सारांश–भारत वैसे तो मूलत: एक कृषि प्रधान देश है, परंतु यह शिल्प एवं दद्योगके क्षेत्र में भी विश्व में अग्रणी रहा है। भारत में शिल्प एवं उद्योग अंग्रेजों के शासन से पहले काफी विकसित अवस्था में थे। यहाँ का प्रमुख उद्योग वस्त्र उद्योग था। मुगलों के शासनकाल में यहाँ से एशिया और यूरोप के देशों में सामान निर्यात होता था। विशेषकर ढाके की मलमल, बंगाल एवं लखनऊ की छींट, अहमदाबाद की धोतियाँ और दुपट्टे, नागपुर तथा मुर्शिदाबाद के रेशमी किनारी वाले कपड़े एवं कुछ अन्य सूती वस्त्र का निर्यात बड़ी मात्रा में होता था।
अठारहवीं शताब्दी के पूर्वाध्द में भारतीय शिल्प एवं उद्योग की स्थिति खराब होने लगी थी।
मुगल साम्राज्य के पतन के बाद राजनैतिक अस्थिरता और विदेशी आक्रमणों तथा यूरोपीय शासकों के आगमन ने भारतीय व्यापारियों को नुकसान पहुँचाया । कई क्षेत्रीय शासकों ने, अपने राज्य की सीमा में प्रवेश करने वाले व्यापारियों पर अधिक कर लगा दिया, जिससे व्यापार में गिरावट आयी। इससे उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ा।
उस समय कपड़ा उद्योग के प्रमुख केन्द्र थे-बंगाल में ढाका, गुजरात में अहमदाबाद, सूरत और भड़ौच, उत्तर प्रदेश में लखनऊ, बनारस, जौनपुर और आगरा, कर्नाटक में बंगलौर, तमिलनाडु में कोयम्बटूर एवं मदुरै तथा आंध्रप्रदेश में विशाखापत्तनम और मछलीपट्टम । कश्मीर ऊनी वस्त्र
के लिए प्रसिद्ध था।
यूरोप का शिल्प उद्योग भारतीय शिल्प उद्योग के साथ प्रतियोगिता करने में अक्षम था। अपने उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इंगलैंड ने सन् 1720 में कैलिको अधिनियम बनाया और भारत के बने छापेदार सूती कपड़े और छीट के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा उनके आयात को इंग्लैंड में रोक दिया। इसके बावजूद यूरोप के बाजार में भारतीय कपड़ों की मांग बहुत अधिक थी।
उन्नीसवीं शताब्दी में सूरत एवं अहमदाबाद में पटोला बुनाई वाले कपड़े तैयार किए जाते थे, जिसका विदशों में निर्यात होता था।
इसी तरह बारीक मलमल पर जामदानी बुनाई की जाती थी, जिस पर करघे है से सजावटी डिजाइने बनायी जाती थी। ढाका तथा लखनऊ इस तरह के बुनाई केन्द्र थे। यूरोप के बड़े घरों तथा यहाँ के रजवाड़े परिवार के लोगों द्वारा इन महंगे कपड़ों की खरीदारी की जाती थी।
भारत के वस्त्र उद्योग एवं उनकी यूरोप में विक्री खत्म या कम करने के लिए सन् 1813 ई. में इंगलैंड सरकार ने ‘मुक्त व्यापार की नीति अपनाई । इस एकतरफा नीति से इंग्लैंड को भारत में अपना माल बेचने पर कोई कर नहीं लगता था। पर, भारतीय माल पर इंग्लैंड में आयात कर
लगने से यहाँ के वह वहाँ महंगे विकते थे जिससे उनकी बिक्री बहुत कम हो गई। परिणामस्वरूप भारतीय बुनकरों एवं सूत कातने वालों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी।
अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों से भारतीय शिल्प एवं उद्योगों का धीरे-धीरे पतन होने लगा।
अंग्रेजी शासन से पहले कृषि, हस्त शिल्प एवं कुटीर उद्योग का बहुत बढ़िया संतुलन था, लेकिन कुटीर उद्योग एवं हस्तशिल्प के विनाश ने इस संतुलन को नष्ट कर दिया। शिल्प एवं उद्योग में लगे हुए कारीगर अब शहर छोड़कर गाँवों में लौट खेती करने को बाध्य हो गये।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कुछ भारतीय मशीनी उद्योग की तरफ आकर्षित हुए। सबसे पहले उन्होंने वस्त्र उद्योग की स्थापना की क्योंकि इसके कारखाने को खोलने के लिए कम पूँजी की आवश्यकता थी। उसके बाद जूट एवं कोयला खान उद्योगों की भी स्थापना की गयी। सन्
1880 ई. तक पूरे भारत में 56 सूती कपड़ा मिलें स्थापित हो चुकी थी।
सन् 1855 ई. में बंगाल के रिशरा में पहली जूट मिल स्थापित की गयी। 1906 में कोयलाखान उद्योग की शुरुआत की गयी । बीसवीं शताब्दी में स्थापित महत्वपूर्ण उद्योग लौह उद्योग था।
सन् 1907 में जमशेद जी टाटा ने बिहार (झारखंड) के साकची नामक स्थान पर यटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना की। आज यह स्थान जमशेदपुर नाम से जाना जाता है। यहाँ स्टील का उत्पादन होने लगा।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में कागज, चीनी, आटा आदि की मिलें भी खोली गयी । यहाँ नमक, अभ्रक और शोरे जैसे खनिज उद्योगों की भी स्थापना हुई। नील, चाय और कॉफी जैसे बगान उद्योगों का भी विकास हुआ। भारत का औद्योगिक विकास सन् 1914 के बाद ही हो सका। 1945 ई. तक इंग्लैंड दो विश्वयुद्धों के बीच युद्ध की सामग्री बनाने व उनको नियत स्थानों पर पहुंचाने में ही व्यस्त रहा।
इन दो विश्वयुद्धों के बीच भारतीय उद्योगों, विशेषकर कपड़ा उद्योग को काफी बढ़ावा मिला और इनका तीव्र विकास हुआ। अब भारत में दो वर्ग प्रमुखता से दिखने लगे—एक तो औद्योगिक पूँजीपति वर्ग दूसरे मजदूर वर्ग । मजदूरों का जीवन अत्यन्त कठिन था और आमदनी बेहद कम ।
उस पर से उन्हें 15-16 घंटों से लेकर 18 घंटों तक काम करना पड़ता था। वे कारखानों के बगल में झुग्गी-झोपड़ियों में रहते थे जहाँ सफाई एवं पानी तक की सुविधा नहीं थी।
अपनी दयनीय दशा के खिलाफ मजदूरों ने आंदोलन किया जिसका अंग्रेजों ने साथ दिया ।
उनके काम के घंटे और न्यूनतम मजदूरी तय कर दी गयी। अंग्रेजों ने ऐसा भारतीय उद्योगपतियों को मुश्किल में डालने के लिए किया था। ताकि उत्पादन-दर बढ़ जाए उनके माल का और वे यूरोप के माल से प्रतियोगिता न कर सकें।
फिर तो अन्य सुविधाओं के लिए भारतीय मजदूरों ने आन्दोलनों की राह पकड़ ली। आगे चलकर यही मजदूर भारत स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत बनाने में सहायक रहे।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार भारत के शिल्प एवं उद्योग के विकास के लिए भी सतत् प्रयत्नशील रही। एक ‘औद्योगिक नीति’ बनायी गयी जिसके द्वारा कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए भी कारगर कदम उठाए गए।
पाठ के अन्दर आए प्रश्नों के उत्तर
1. जामदानी बुनाई वाले कपड़े महंगे क्यों होते थे? इसका उपयोग सिर्फ रजवाड़े परिवार के लोग ही क्यों करते थे?
उत्तर—बारीक मलमल पर जामदानी बुनाई की जाती थी, जिस पर करघे से सजावटी डिजाइन बनायी जाती थीं। आमतौर पर इसमें सूती और सोने के धागे का इस्तेमाल किया जाता था। ढाका तथा लखनऊ इस तरह की बुनाई के केन्द्र थे। मलमल का कपड़ा महंगा तो था ही उस पर जामदानी बुनाई में सोने के धागों के प्रयुक्त होने से ये कपड़े अत्यन्त मूल्यवान या महंगे हो जाते थे। उनको खरीदना भारत के रजवाड़े परिवार के लोगों द्वारा ही संभव था। इसलिए, जामदानी बुनाई वाले महंगे कपड़ों का उपयोग सिर्फ रजवाड़े परिवार के लोग ही करते थे।
2. मुक्त व्यापार की नीति क्या थी?
उत्तर-मुक्त व्यापार की नीति के द्वारा भारतीय व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार समाप्त हो गया था। अब इंग्लैंड का कोई भी व्यक्ति भारत के साथ स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकता था।
3. उद्योग में लगे हुए भारतीय कारीगर उद्योग को छोड़ कृषि की तरफ क्यों लौट गए?
उत्तर-अंग्रेजों ने भारतीय वस्त्र उद्योग को आघात पहुंचाने के लिए मुक्त व्यापार की एकतरफा नीति अपनायी। ‘मुक्त व्यापार की नीति’ के तहत अब कंपनी के अलावे अन्य अंग्रेज उद्यमी भी भारत से व्यापार कर सकते थे। भारत से जो सामान इंग्लैंड जाता था, उस पर वहाँ आपात कर लगता था, लेकिन जो सामान भारत में आता था, उस पर कोई कर नहीं लगता था।
इसलिए भारत में इंग्लैंड के सामान सस्ते दामों पर उपलव्य होते थे जबकि भारत के सामान इंग्लैंड में महंगे बिकने से उनकी विक्री यतुत कम हो गयी। परिणामस्वरूप भारतीय बुनकरों एवं सूत कातने वालों की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी।
रेलवे के विकास से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इंगलैंड की वस्तुओं का पहुंचना शुरू हो गया। अब हस्तशिल्प की वस्तुओं की कीमतें बढ़ गयीं और मशीन निर्मित चीजें बाजार में सस्ती मिलने लगीं। शिल्प एवं उद्योग में लगे हुए कारीगर बेकार होने लगे और वे बाध्य होकर कृषि की तरफ लौटने लगे।
4. निःऔद्योगिकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-नि:औद्योगिकरण का अर्थ होता है जब देश के लोग शिल्प एवं उद्योग को छोड़कर खेती को अपनी जीविका का आधार बना लें।
5. अंग्रेजी सरकार ने इग्लैंड के कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए क्या किया? भारतीय उद्योगपतियों को यह सुविधा क्यों नहीं मिली ? भारत में स्टील के उत्पादन से भारतीयों को क्या लाभ मिला?
उत्तर-अंग्रेजी सरकार ने इंग्लैंड के कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ‘मुक्त व्यापार की नीति’ अपनायी। इसके तहत अब कंपनी के अतिरिक्त इंग्लैंड के अन्य व्यवसायी भी भारत से खुलकर व्यापार कर सकते थे। यह नीति एकतरफा थी। अंग्रेजों ने इंग्लैंड से भारत आने वाले सामानों पर तो कोई कर नहीं लगाया पर भारत के सामानों को इंग्लैंड में बिक्री पर आयात कर लगा दिया ताकि भारतीय सामान इंग्लैंड में महंगी हो जाए और उनका खरीदार न मिल पाए । भारतीय उद्योगपतियों ने यही सुविधा जब मांगी कि इंग्लैंड से आ रहे कपड़ों पर सरकार विशेष कर लगाए ताकि वे भारत में यहाँ के बने हुए कपड़ों से महंगा विके । पर अंग्रेजों ने ऐसी नीति नहीं अपनायी ताकि भारत का औद्योगिक विकास धीमा रहे।
भारत में स्टील के उत्पादन से भारतीय उद्योगपतियों को मुनाफा तो हुआ ही, यहाँ की भारतीय जनता को भी सस्ते में देश की बनी स्टील मिलने का लाभ प्राप्त हुआ।
6. मशीन उद्योग के शुरू होने से पूर्व भारत में किस तरह का उद्योग था ? मशीनी उद्योग की आवश्यकता भारतीयों को क्यों पड़ी?
उत्तर-मशीन उद्योग के शुरू होने से पूर्व भारत में कुटीर उद्योग एंव हस्तशिल्प उद्योग थे ।
अंग्रेजों ने रेलवे का विकास कर मशीनीकरण एवं उद्योगों के विकास की राह खोल दी थी। अब विकास की डगर पर आगे चलने के लिए भारतीयों को मशीनी उद्योग की आवश्यकता पड़ गयी।
यह काम वे नहीं करते तो अंग्रेज लोग यहाँ भी छा जाते।
अभ्यास:-
आइए याद करें-
1. सही विकल्प को चुनें।
(i) अठारहवीं शताब्दी में भारत का प्रमुख उद्योग निम्नलिखित में से कौन था?
(क) वस्त्र उद्योग
(ख) कोयला उद्योग
(ग) लौह उद्योग
(घ) जूट उद्योग
(ii) फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री (FICCI) की स्थापना कब हुई?
(क) सन् 1920 में
(ख) सन् 1927 में
(ग) सन् 1938 में
(घ) सन् 1948 में
(iii) जूट उद्योग का प्रमुख केन्द्र कहाँ था?
(क) गुजरात (ख) आंध्र प्रदेश
(ग) बंगाल (घ) महाराष्ट्र
(iv) सन् 1818 में अंग्रेजी सरकार ने किस उद्देश्य से मजदूरों के लिए नियम बनाए?
(क) मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए
(ख) अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए
(ग) प्रशासनिक सुविधा के लिए
(घ) अपने आर्थिक लाभ के लिए
(v) ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITVC) की स्थापना कब हुई?
(क) 1818 में
(ख) 1920 में
(ग) 1938 में
(घ) 1947 में
उत्तर-(1) (क), (ii) (ख), (iii) (ग), (iv) (घ), (v) (ख)।
निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ।
(क) जूट उद्योग (क) लखनऊ
(ख) ऊनी वस्त्र उद्योग (ख) बंगाल
(ग) जामदानी बुनाई (ग) चम्पारण
(घ) लौह उद्योग (घ) कश्मीर
(ङ) नील बगान उद्योग (ङ) जमशेदपुर
उत्तर-
(क) जूट उद्योग (ख) बंगाल
(ख) ऊनी वस्त्र उद्योग (घ) कश्मीर
(ग) जामदानी बुनाई (क) लखनऊ
(घ) लौह उद्योग (ङ) जमशेदपुर
(ङ) नील बगान उद्योग (ग) चम्पारण
आइए विचार करें-
(i) कैलिको अधिनियम के क्या उद्देश्य थे?
उत्तर-अपने उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इंगलैंड ने सन् 1720 ई. में ‘कैलिको अधिनियम’ बनाया। इसके अनुसार इंग्लैंड में भारत के बने छापेदार सूती कपड़े और छींट के इस्तेमाल पर पाबंदी (रोक) लगा दी गई और उनके आयात को इंग्लैंड में रोक दिया गया। कैलिको अधिनियम बनाने के पीछे अंग्रेजों के उद्देश्य थे एक तो अपने उद्योग को बढ़ावा देना, दूसरा भारतीय उद्योग को हानि पहुँचाना, जिसमें उनको सफलता भी मिली ।
(ii) मुक्त व्यापार की नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर भारतीय उत्पादों की इंगलैंड में बढ़ती हुई मांगों को देखकर सन् 1813 ई. में इंगलैंड की सरकार ने ‘मुक्त व्यापार की नीति’ अपनायी । पहले केवल ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ को ही भारत के साथ व्यापार करने का एकाधिकार था। अब, मुक्त व्यापार की नीति द्वारा अन्य अंग्रेजी उद्योगपतियों के लिए भारत में व्यापार करने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई। इस नीति के तहत आयात-निर्यात में भेदभाव भी इंग्लैंड के द्वारा किया गया। भारत में इंगलैंड के माल आने पर कोई कर नहीं लगता था पर भारतीय माल की इंगलैंड में विक्री पर आयात कर लगाया जाता था जिससे भारतीय माल महंगा बिके और इस प्रकार ना के बराबर बिके।
(iii) भारतीय उद्योगपतियों को भारत में उद्योग की स्थापना के मार्ग में क्या-क्या बाधाएँ थीं ?
उत्तर– सन् 1854 में बम्बई पहला सूती वस्त्र का कारखाना कावस जी नानाजी दाभार नामक एक पारसी ने स्थापित किया। सन् 1880 ई. तक पूरे भारत में 56 सूती कपड़ा मिलें स्थापित हो चुकी थीं। इन कारखानों के लिए मशीनें विदेशों से मंगाई जाती थी। भारतीय कपड़ा उद्योग की प्रगति ने विदेशों को चिंता में डाल दिया था। भारतीय उद्योगपतियों के सामने समस्या यह थी कि यदि किसी तरह अंग्रेजी सरकार भारतीय उद्योगों को बढ़ावा देने का कार्य करती, तो उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जा सकती थी। अत: उन्होंने मांग की, कि इंग्लैंड से आ रहे कपड़ों पर सरकार विशेष कर लगाए ताकि वे भारत में यहाँ के बने हुए कपड़ों से महंगा बिके । लेकिन अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया बल्कि ऐसी नीति अपनायी कि भारत का औद्योगिक विकास धीमा रहे। साथ ही अंग्रेजों के निर्देश पर बैंक ऊँचे व्याज दर पर भारतीय उद्योगपतियों को कर्ज देते थे जिससे उन्हें काफी परेशानी होती थी।
(iv) मजदूरों के हित में पहली बार कब नियम बनाया गया ? उन नियमों का मजदूरों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर भारतीय उद्योगपति, भारतीय मजदूरों से 15-16 घंटे से लेकर 18 घंटे तक काम कराते थे। उन्हें कोई सुविधा भी नहीं देते थे और बेहद कम मजदूरी देते थे। अत: मजदूरों ने हंगामा व हड़ताल कर दिया। भारतीय उद्योगपतियों ने उनकी मांगों को नहीं माना। उनकी मांगों को मानने का मतलब होता मालिकों का खर्च बढ़ जाता और कारखानों में बनी वस्तुओं का दाम बढ़ जाता । ऐसी स्थिति में इंगलैंड की बनी वस्तुएँ सस्ती और भारत में बनी वस्तुएँ महंगी हो जाती और भारतीय उद्योग का विकास धीमा पड़ जाता।
अपने स्वार्थ के लिए इंगलैंड के उद्योगपतियों ने भातीय मजदूरों का साथ दिया। अंग्रेजी सरकार ने सन् 1881 में मजदूरों के हित में पहली बार नियम बनाए जिससे मजदूरों की स्थिति में सुधार हुआ।
(v) स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए कौन-कौन से कदम उठाए ?
उत्तर-स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए ‘न्यूनतम मजदूरी कानून’ बनाकर मजदूरी दरों को निश्चित किया, जिससे उनकी स्थिति में और सुधार आने लगा। उनके काम के घंटों में कमी की गयी, साप्ताहिक अवकाश दिया गया, काम के दौरान घायल श्रमिकों को मुआवजा देने का नियम भी बनाया गया जिससे मजदूरों की स्थिति पहले से सुधरी।
आइए करके देखें-
(i) अठारहवीं शताब्दी के भारत के मानचित्र को देखकर यह बताएं कि कौन-सा राज्य सूती कपड़ा उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र था?
उत्तर-महाराष्ट्र।
(ii) इस पाठ के आधार पर यह बताएँ कि मजदूरों को अपने अधिकरों को प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-मजदूरों को अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना चाहिए, आन्दोलन हड़ताल, धरना-प्रदर्शन करना चाहिए।