Bihar board class 12th sociology notes
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औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास
(Change and Development in Industrial Society)
स्मरणीय तथ्य
*औद्योगिक समाज : ऐसा समाज जहाँ का विकास उद्योगों के स्थापित होने से हुआ है।
*उत्पादन का अंतर्राष्ट्रीयकरण : बहुदेशीय कंपनियों द्वार उत्पादन का दुनिया के विभिन्न भागों में वितरण।
*भूमंडलीकरण ग्राम : व्यवसाय एक संबंधों को बढ़ाने के लिए विभिन्न देशों में तकनीकी रूप में विकसित एवं उद्यमों की स्थापना जो कि पूरे विश्व को एक वैश्विक ग्राम में बदल रही है।
*समाजिक शक्ति (अधिकार) : यह वैश्वीकरण की अवधारणा से जुड़ी हुई है और सामान्य नागरिकों के सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों को सीमित करती है।
एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(Objective Questions)
- इनके कौन श्रमिक संगठन है ?
__ [M.Q.2009A]
(क) सीटू
(ख) ए.आई.टी.यू.सी.
(ग) बी.एम.एस.
(घ) ये सभी
उत्तर-(घ)
2 सीटू का संबंध किस राजनीतिक दल से है ?
[M.Q.2009 A]
(क) कांग्रेस ‘आई’
(ख) भारतीय जनता पार्टी
(ग) कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी –
(घ) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर-(ग).
- औद्योगिकीकरण ने निम्न में किस प्रकार के प्रदूषण को उत्पन्न किया है ?
[M.Q.2009A]
(क) वायु प्रदूषण
(ख) जल प्रदूषण
(ग) ध्वनि प्रदूषण
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
- औद्योगिक नीति के अनुसार भारतीय उद्योगों को कितने श्रेणी में बाँटा गया है ?.
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) सात
उत्तर-(ग)
- जिसके स्वामित्व और प्रबंध तथा स्थापना एवं विकास का दायित्व पूर्णरूप में केन्द्रीय सरकार को सौंपा गया है, उसे किस श्रेणी में रखा गया है ?
(क) प्रथम
(ख) द्वितीय
(ग) तृतीय
(घ) चतुर्थ
उत्तर-(क)
- रेल यातायात किस श्रेणी के अन्तर्गत रखा गया है ?
(क) द्वितीय
(ख) तृतीय
(ग) चतुर्थ
(घ) प्रथम
उत्तर-(घ)
- लघु उद्योग में अधिकतम निवेश कितना करोड़ है ?
(क) दो
(ख) चार
(ग) पाँच
(घ) एक
उत्तर-(घ)
- रासायनिक खाद किस श्रेणी में रखा गया है ?
(क) प्रथम
(ख) द्वितीय
(ग) तृतीय
(घ) चतुर्थ .
उत्तर-(ख)
(ख) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
(1) सरकार ने लघु उद्योगों की कुछ वस्तुओं को …………… से मुक्त रखा है।
(2) कुछ वस्तुओं के उत्पादक का …………… लघु उद्योगों को दिया गया है।
(3) अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण ………….. श्रेणी के अन्तर्गत रखा गया है।
(4) …………… के उद्योगों को भविष्य में सरकारी क्षेत्रों में भी स्थापना की जा सकती
(5) कपास, जूट कोयला खानें एवं रेलवे भारत के …………… उद्योग थे।
उत्तर-(1) कर, (2) आरक्षण, (3) प्रथम, (4) द्वितीय श्रेणी, (5) प्रथम।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. लघु उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर-लघु उद्योगों को निवेश की मात्रा के आधार पर परिभाषित किया जाता है। समय-समय पर निवेश की मात्रा में परिवर्तन किया जाता है। 1950 में उस उद्योग को लघु उद्योग
कहा जाता था जिसमें अधिकतम निवेश 5,00,000 रुपये हैं वर्तमान समय में इस सीमा को बढ़ा कर एक करोड़ कर दिया गया है।
प्रश्न 2. लघु उद्योगों को विकसित करने के लिए भारत सरकार द्वारा कई कदम उठाये गए हैं। कोई चार उपाय लिखें।
उत्तर-1. सरकार ने लघु उद्योगों की कुछ वस्तुओं को कर से मुक्त रखा है।
- इन्हें बैंकों से कम ब्याज पर ऋण दिया जाता है।
- लघु उद्योगों के विकास के लिए देश में बड़ी संख्या में औद्योगिक बस्तियों की स्थापना की गई है।
- कुछ वस्तुओं के उत्पादन का आरक्षण लघु उद्योगों को दिया गया है।
प्रश्न 3. संरक्षण की नीति किस अवधारणा पर आधारित है?
उत्तर-संरक्षण की नीति इस अवधारणा पर आधारित है कि विकासशील देशों के उद्योग अधिक विकसित देशों से निर्मित वस्तुओं का मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसी मान्यता है कि यदि घरेलू उद्योगों को संरक्षण दिया जाता है तो वे कुछ समय के पश्चात् विकसित देशों में निर्मित वस्तुओं का मुकाबला कर सकेंगे।
प्रश्न 4. विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण की आलोचना किस आधार पर की जाती है?
उत्तर-ऐसा माना जाता है कि अधिक समय तक संरक्षण देने से, उद्योग अपनी वस्तुओं की गुणवत्ता नहीं बढ़ायेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि वह ऊँची कीमत पर अपनी निकृष्ट वस्तुएँ अपने देश में बेच सकते हैं।
प्रश्न 5. घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से किन दो रूपों में संरक्षण दिया गया है ? उन रूपों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से दो रूपों में संरक्षण दिया गया-प्रशुल्क (Tariffs) तथा कोटा (Quotas)। आयात की जाने वाली वस्तु महंगी हो जाती है। परिणामस्वरूप आयात की जाने वाली वस्तुओं का प्रयोग कम हो जाता है। कोय यह निर्धारित करता है कि कितनी मात्रा में वस्तुओं का आयात किया जा सकता है। प्रशुल्क और कोटे का उद्देश्य आयात पर प्रतिबंध लगाना और घरेलू फर्मों को विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण देना है। विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण मिलने पर हमारे देश में घरेलू इलैक्ट्रॉनिक (Electronic) तथा आटोमोबाइल (Automobile) उद्योग विकसित हो सके।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. औद्योगीकरण की प्रारंभिक दशा में समाजशास्त्र ने क्या कार्य किए ?
उत्तर-समाजशास्त्र के अनेकों महत्वपूर्ण कार्य उस समय किए गए थे जबकि औद्योगीकरण एक नई अवधारणा था और मशीनों ने एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया हुआ था। कार्ल मार्क्स, वेबर और एमील दुर्खाइम जैसे विचारकों ने उद्योग की अनेक नई संकल्पनाओं से स्वयं को जोड़ा। ये थीं नगरीकरण जिसने आमने-सामने के संबंध को बदला जो कि ग्रामीण समाजों में पाए जाते थे। जहाँ कि लोग अपने या परिचितों के भूस्वामियों के खेतों में काम करते थे, उन संबंधों का स्थान आधुनिक कारखानों एवं कार्यस्थलों के अज्ञात व्यावसायिक संबंधों ने ले लिया। औद्योगीकरण से एक विस्तृत श्रम विभाजन होता है। लोग आधिकांशतया अपने कार्यों का अंतिम रूप नहीं देख पाते क्योंकि उन्हें उत्पादन के एक छोटे से पुर्जे को बनाना होता है। अक्सर यह कार्य दोहराने और थकाने वाला होता है, लेकिन फिर भी बेरोजगार होने से यह स्थिति अच्छी है। मार्क्स ने इस स्थिति को ‘अलगाव’ कहा; जिसमें लोग अपने कार्य से प्रसन्न नहीं होते, उनकी उत्तरजीविता भी इस बात पर निर्भर करती है कि मशीनें मानवीय श्रम के लिए कितना स्थान छोड़ती हैं।
प्रश्न 2. औद्योगीकरण से आई समानता-असमानता के उदाहरण कीजिए।
उत्तर-ओद्योगीकरण कुछ एक स्थानों पर अभूतपूर्व समानता लाता है। उदाहरण के लिए रेलगाड़ियों, बसों और साइबर कैफे में जातीय भेदभाव के महत्व का न होना। दूसरी ओर, भेदभाव के पुराने स्वरूपों को नए कारखानों और कार्यस्थलों में अभी भी देखा जा सकता है। हालांकि, इस संसार में सामाजिक असमानताएँ कम हो रही हैं लेकिन आर्थिक अथवा आय से संबंधित असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं। बहुधा-सामाजिक और आय संबंधी असमानता परस्पर आच्छादित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए अच्छे वेतन वाले व्यवसायों जैसे दवा, कानून अथवा पत्रकारिता में उच्च जाति के लोगों का वर्चस्व आज भी बना हुआ है। महिलाएँ (अधिकांशतः) समान कार्य के लिए कम वेतन ही पाती हैं। _ कुछ समय से समाजशास्त्रियों ने औद्योगीकरण को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखा है, आधुनिकीकरण के सिद्धांत के प्रभाव से 20वीं शताब्दी के मध्य से औद्योगीकरण अपरिहार्य एवं सकारात्मक रूप में दिखाई दे रहा है। आधुनिकीकरण का सिद्धांत यह तर्क देता है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में पृथक् समाज की अवस्थाएँ अलग-अलग हैं परन्तु उन सभी की दिशा एक ही है। इन सिद्धांतकारों के अनुसार आधुनिक समाज पश्चिम का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
प्रश्न 3. भारत में स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में औद्योगीकरण की क्या दशा है?
उत्तर-कपास, जूट, कोयला खानें एवं रेलवे भारत के प्रथम आधुनिक उद्योग थे। स्वतंत्रता के पश्चात् सरकार ने आर्थिकी को ‘प्रभावशाली ऊँचाइयों’ पर रखा। इसमें सुरक्षा, परिवहन एवं संचार, ऊर्जा, खनन एवं अन्य परियोजनाओं को सम्मिलित किया गया जिन्हें करने के लिए सरकार ही सक्षम थी और यह निजी उद्योगों के विकास के लिए भी आवश्यक था। भारत की मिश्रित आर्थिक नीति में कुछ क्षेत्र सरकार के लिए आरक्षित थे जबकि कुछ निजी क्षेत्रों के लिए खुले थे। लेकिन उसमें भी सरकार अपनी अनुज्ञप्ति (लाइसेंसिंग) नीति द्वारा यह सुनिश्चित करने का प्रयत्न करती है कि ये उद्योग विभिन्न भागों में फैले हुए हों। स्वतंत्रता के पहले उद्योग मुख्यतः बंदरगाह वाले शहरों जैसे मद्रास, बंबई एवं कलकत्ता (चेन्नई, मुंबई एवं कोलकाता) तक ही सीमित थे लेकिन उसके पश्चात् अन्य स्थान जैसे बड़ौदा (वड़ोदरा), कोयंबटूर, बेंगलोर (बंगलुर), पूणे, फरीदाबाद एवं राजकोट भी महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र बन गए। सरकार अन्य छोटे पैमाने के उद्योगों को भी विशिष्ट प्रोत्साहन एवं सहायता देकर प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रही है। अनेक वस्तुएँ जैसे कागज एवं लकड़ी के सामान, लेखन सामग्री, शीशा एवं चीनी मिट्टी के उद्योग छोटे पैमाने के क्षेत्रों के लिए आरक्षित थे। 1991 तक कुल कार्यकारी जनसंख्या में से केवल 28% बड़े उद्योगों में नौकरी कर रहे थे, जबकि 72% लोग छोटे पैमाने के एवं परंपरागतं उद्योगों में कार्यरत थे।
प्रश्न 4. उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है?
(NCERTT.B.Q.3)
उत्तर-भारत अभी भी एक कृषि प्रधान देश है। सेवा क्षेत्र-दुकानें, बैंक, आई. टी. उद्योग, होस्टल्स और अन्य सेवाओं के क्षेत्र में अधिक लोग आ रहे हैं और नगरीय मध्यवर्ग की संख्या भी बढ़ रही है। नगरीय मध्यवर्ग के साथ वे मूल्य जो टेलीविजन सिरियलों और फिल्मों में दिखाई देते हैं, भी बढ़ रहे हैं। परंतु हम यह भी देखते हैं कि भारत में बहुत कम लोगों के पास सुरक्षित रोजगार उपलब्ध हैं, यहाँ तक कि छोटी संख्या के स्थायी सुरक्षित रोजगार भी अनुबंधित कामगारों के कारण असुरक्षित होते जा रहे हैं। अब तक सरकारी रोजगार ही जनसंख्या के अधिकांश लोगों का कल्याण करने का एक बड़ा मार्ग था, लेकिन अब वह भी कम होता जा रहा है। कुछ विश्वव्यापी उदारीकरण एवं निजीकरण के साथ आमदनी की असमानताएँ भी बढ़ रही हैं।
उदारीकरण के कारण बड़े उद्योगों में भी सुरक्षित रोजगार कम होता जा रहा है, सरकार ने भी उद्योग लगाने के लिए भूमि अधिग्रहण की नीति प्रारंभ की है। ये उद्योग आस-पास के क्षेत्र
के लोगों को रोजगार नहीं दिलवाते हैं बल्कि ये वहाँ जबरदस्त प्रदूषण फैलाते हैं। बहुत से किसान जिनमें मुख्य रूप से आदिवासी शामिल हैं, कुल विस्थापितों में से करीब 40% हैं ने क्षतिपूर्ति की कम दर के लिए विरोध किया और इन्हें जबरन दिहाड़ी मजदूर बनना पड़ा और उन्हें बड़े शहरों के फुटपाथ पर काम करते देखा जा सकता है। ।
प्रश्न 5. औद्योगिक नीति 1956 ने भारत के उद्योगों को कितनी श्रेणियों में बाँटा? इन वर्गों में किन उद्योगों को रखा गया ?
उत्तर-उद्योगों का वर्गीकरण (Classification of Industries): औद्योगिक नीति 1656 के अनुसार भारतीय उद्योगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया-(1) प्रथम वर्ग, (2) द्वितीय वर्ग तथा (3) तृतीय वर्ग। 1. प्रथम श्रेणी (First Category): प्रथम श्रेणी में युद्ध सामग्री का निर्माण, परमाणु शक्ति के उत्पादन एवं नियंत्रण, अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण, रेल यातायात तथा डाकघर रखा गया। इसके स्वामित्व और प्रबंध तथा स्थापना एवं विकास का दायित्व पूर्ण रूप से केन्द्रीय सरकार को सौंपा गया।
- द्वितीय श्रेणी (Second Category): इस श्रेणी में वे उद्योग रखे गये जिनके विकास में सरकार अधिक भाग लेगी। 12 उद्योगों को इस श्रेणी में रखा गया जैसे औजार, मशीन, दवाइयाँ, रासायनिक खाद, रबड़, जल यातायात, सड़क यातायात आदि। भविष्य में इस श्रेणी के उद्योगों की स्थापना सरकारी क्षेत्र में ही की जायेगी।
- तृतीय श्रेणी (Third Category): इस श्रेणी में उन सभी उद्योगों को रखा गया जो निजी क्षेत्र के लिए सुरक्षित रहेंगे। इनका विकास निजी क्षेत्र की प्रेरणा से होगा किन्तु इस श्रेणी में भी राज्य नए उद्योगों की स्थाना कर सकता है।
प्रश्न.6. भारत में औद्योगिक लाईसेंसिंग नीति के क्या प्रमुख उद्देश्य हैं ?
उत्तर-भारत में औद्योगिक लाईसेंसिंग नीति के प्रमुख उद्देश्य (Main Objectives of Industrial Licensing): भारत में औद्योगिक लाईसेंसिंग नीति के प्रमुख उद्देश्य हैं :
- विभिन्न योजनाओं के लक्ष्यों के अनुसार औद्योगिक निवेश तथा उत्पादन को विकसित एवं नियंत्रित करना।
- छोटे और लघु उद्यमों को प्रोत्साहन देना तथा उन्हें संरक्षण प्रदान करना।
- औद्योगिक स्वामित्व के रूप में आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकना। —
- आर्थिक विकास के क्षेत्र में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करना तथा समुचित संतुलित औद्योगिक विकास के लिए प्रेरित करना।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अपने आसपास वाले किसी भी व्यवसाय को चुनिए और इसका वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में कीजिए :
(क) कार्य शक्ति का सामाजिक संघटन-जाति, लिंग, आयु, क्षेत्र; (ख) मजदूर प्रक्रिया-काम किस तरह किया जाता है; (ग) वेतन एवं अन्य सुविधाएँ (घ) कार्यावस्था-सुरक्षा, आराम का समय, कार्य के घंटे इत्यादि। (NCERTT.B. Q. 1)
अथवा, ईंटें बनाने के, बीड़ी रोल करने के, सॉफ्टवेयर इंजीनियर या खदान के काम जो बॉक्स में वर्णित किए गए हैं के कामगारों के सामाजिक संघटन का वर्णन कीजिए। कार्यावस्थाएँ कैसी हैं और उपलब्ध सुविधाएँ कैसी हैं ? मधु जैसी लड़कियाँ अपने काम के बारे में क्या सोचती हैं ?
उत्तर-मैंने प्रकाशन व्यवसाय को चुना।
कार्यशक्ति का सामाजिक संघटन : प्रकाशन व्यवसाय में सभी जातियों के लोग कार्य करते हैं। इसमें जातिगत भेदभाव बिल्कुल नहीं है। स्त्री-पुरुष एक साथ कार्यरत हैं। कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है। इस व्यवसाय में अधिकांशतः युवा ही कार्यरत हैं फिर भी प्रौढ़ व वृद्ध व्यक्ति युवा पीढ़ी •को दिशा -निर्देशित करते हैं। सभी कर्मचारी सेल्स, प्रोडक्शन से जुड़े हाते हैं। उच्च स्तर पर प्रबंधन होता है।
मजदूर प्रक्रिया : पुस्तिकों के लेखन से यह कार्य प्रारंभ होता है। इसके बाद कंपोजिंग प्रूफ रीडिंग, छपाई, बाईंडिंग, विक्रय के स्तर पर यह कार्य किया जाता है। सभी कर्मचारियों को योग्यतानुसार पारिश्रमिक प्रदान किया जाता है। आवास व वाहन की सुविधा भी प्रदान की जाती है।
कार्य के घंटे : प्रकाशन व्यवसाय में कार्य के घंटे 8-10 तक हैं। सीजन होने पर अधिक कार्य भी करना पड़ता है जिसका अतिरिक्त पारिश्रमिक के रूप में भुगतान किया जाता है।
अथवा,
उत्तर-छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2. 1982 की हड़ताल के बारे में दिए गए परिच्छेद को पढ़कर अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें:
जय प्रकाश भिलोरे : (मिल के भूतपूर्व कामगार : महाराष्ट्र गिरनी कामगार संघ और महासचिव) : कपड़ा मिल के कामगार केवल अपना वेतन और मँहगाई भत्ता लेते हैं। इसके अलावा उन्हें कोई और भत्ता नहीं मिलता। हमें केवल पाँच दिन का आकस्मिक अवकाश मिलता है। दूसरे उद्योगों के कामगारों को अन्य भत्ते जैसे यातायात, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ इत्यादि मिलने शुरू हो गए साथ ही 10-12 दिन का आकस्मिक अवकाश भी। इससे कपड़ा मिल के कामगार डॉ. दत्ता सामंत के घर गए और उनसे अपनी अगुआई करने को कहा। पहले सामंत ने मना कर दिया, उन्होंने कहा कि कपड़ा मिलें बी.आई.आर.ए. के अंतर्गत आती हैं, और मुझे इसके बारे में अधिक जानकारी भी नहीं है। परंतु ये कामगार किसी भी हालत में नहीं सुनना चाहते थे। वे रात भर उनके घर के बाहर चौकसी करते रहे और अंत में सुबह सामंत मान गए।
लक्ष्मी भाटकर : (हड़ताल की सहभागी) : मैंने हड़ताल का समर्थन किया। हम रोजाना गेट के बाहर बैठ जाते थे और सलाह करते थे कि आगे क्या करना होगा। हम समय-समय पर संगठित होकर मोर्चे भी निकालते थे… मोर्चे बहुत बड़े हुआ करते थे… हमने किसी को लूटा या चोट नहीं पहुंचाई। मुझे कभी-कभी बोलने के लिए कहा गया, लेकिन मैं भाषण नहीं दे सकती। मेरे पाँव बुरी तरह काँपने लगते हैं.? इसके अलावा मैं अपने बच्चों से भी डरती हूँ-वो क्या कहेंगे? वो सोचेंगे कि यहाँ हम भूखे मर रहे हैं और वो वहाँ अपना फोटो अखबार में छपवा रही है.. . एक बार हमने सेंचुरी मिल के शोरूम की तरफ भी मोर्चा निकाला। हमें गिरफ्तार करके बोरीवली ले जाया गया। मैं अपने बच्चों के बारे में सोच रही थी। मैं अपने बारे में सोचने लगी कि हम लोग कोई अपराधी नहीं, मिल के कामगार हैं। हम अपने खून-पसीने की कमाई के लिए लड़ रहे हैं।
किसन सालुंके : (स्पिन मिल्स का भूतपूर्व कामगार) : सेंचुरी मिल के हड़ताल शुरू हुए मुश्किल से डेढ़ महीना ही हुआ होगा कि आर.एम.एम.एस. वालों ने मिल खुलवा दी। वे ऐसा कर सकते हैं क्योंकि उन्हें राज्य और सरकार दोनों का समर्थन प्राप्त है। बाहर के लोगों को बिना उनके बारे में पूरी तरह जाने मिल के अंदर ले आए…. भोंसले (तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री) ने. 30 रुपए बढ़ाने की पेशकश की। दत्ता सामंत ने इस विषय पर विचार करने के लिए मीटिंग बुलाई। आगे के सारे क्रियाकलाप यहीं होते थे। हमने कहा, ‘हमें यह नहीं चाहिए। अगर हड़ताल के नेताओं के पास कोई मर्यादा, कोई बातचीत नहीं है, हम बिना किसी उत्पीड़न के काम पर पापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं।
दत्ता इसवालकर : (मिल चाल्स टेनैंट ऐसोसिएशन के अध्यक्ष) : कांग्रेस के बाबू रेशिम रमा नायक और अरूण गावली जैसे भी गुंडों को स्ट्राइक खत्म करवाने के लिए जेल से बाहर कर दिया। हमारे पास स्ट्राइक तोड़ने वालों को मारने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। हमारे लिए यह जीवन-मृत्यु का प्रश्न था।
भाई भोंसले : (1982 की हड़ताल में आर.एम.एम.एस. के महासचिव) : हमने तीन महीने की हड़ताल के बाद लोगों को वापस काम पर बुलाना शुरू कर दिया… हम सोचते थे, कि अगर लोग काम पर जाना चाहते हैं तो उन्हें जाने देना चाहिए, वास्तव में यह उनकी सहायता ही थी. माफिया गैंग के बीच में आ जाने के बारे में, मैं उसके लिए उत्तरदायी था… ये दत्ता सामंत जैसे लोग सुविधाजनक समय का इंतजार कर रहे हैं, और आराम से काम कर जाने वालों का इंतजार कर रहे हैं। हमने परेल एवं अन्य स्थानों पर प्रतिपक्षी समूहों को तैयार किया था। स्वाभाविक रूप से वहाँ कुछ झगड़ा कुछ खूनखराबा हो सकता था… जब रमा नायक की मृत्यु हुई तो उस वक्त के मेयर भुजबल उसके सम्मान में अपनी ऑफिस की कार में आए। इन लोगों की ताकतों को एक समय या अन्य अनेक लोगों द्वारा राजनीति में इस्तेमाल किया गया।
किसन सालुंके : (भूतपूर्व मिल कामगार): वह मुश्किल समय था हमने अपने सारे बर्तन बेच दिए थे। हमें अपने बर्तनों को सीधा उठाकर ले जाते हुए शर्म आती थी इसलिए हम उन्हें बोरियों में लपेटकर बेचने के लिए दुकानों पर ले जाते थे। वो ऐसे दिन थे जब हमारे खाने के लिए पानी के अलावा कुछ नहीं था, हम लकड़ी के बुरादे को ईंधन की जगह जलाते थे। मेरे तीन बेटे हैं। कई बार बच्चों के पीने के लिए दूध नहीं होता था, मुझसे उनकी यह भूख बर्दाश्त नहीं होती थी। मैं अपनी छतरी लेकर घर से बाहर चला जाता था।
सिंदु मरहने : (भूतपूर्व मिल कामगार) : आर.एम.एम.एस. वाले और गुंडे मुझे भी जबरदस्ती काम पर वापस ले जाने के लिए आए। मैंने जाने से इंकार कर दिया… जो महिलाएँ मिल में रहकर काम कर रही थीं उनके साथ क्या हो रहा था। इस बारे में तरह-तरह की अफवाहें चारों तरफ फैली थीं। वहाँ बलात्कार की घटनाएँ घटी थीं।
- 1982 की कपड़ा मिल हड़ताल के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
- कामगार हड़ताल पर क्यों गए?
- दत्ता सामंत ने किस हड़ताल की नेतागिरी स्वीकार की?
- हड़ताल तोड़ने वालों की क्या भूमिका थी?
- माफिया गिरोहों ने किस तरह इन स्थानों पर अपनी जगह बनाई ?
- इस हड़ताल के दौरान महिलाएं कैसे परेशान हुईं और उनके मुख्य सरोकर क्या थे?
7.हड़ताल के दौरान कामगार और उनके परिवार कैसे अपने आप को बचाए रख पाए?
उत्तर-1. 1982 की कपड़ा मिल की हड़ताल मजदूरों ने अपने हक के लिए की थी, जिसमें वेतन, बोनस, छुट्टी के मुद्दे शामिल थे।
- कामगार वेतन और महंगाई भत्ते के अलावा मिलने वाले अन्य भत्तों व सुविधाओं की माँग को लेकर हड़ताल पर गए। ___
- दत्ता सामंत मजदूरों के अत्यधिक आग्रह करने पर ही नेतागिरी स्वीकार कर सके। ___
- हड़ताल तोड़ने वालों को राज्य और सरकार दोनों का समर्थन प्राप्त था। इसलिए उन्होंने जबरदस्ती मिल खुलवा दी।
- माफिया तोड़ने वालों को राज्य और सरकार दोनों का समर्थन प्राप्त था। इसलिए उन्होंने दबाव बनाकर मजदूरों में अपनी जगह बनाई।
- महिलाओं को मोर्चा निकालने के अपराध में जेल भेज दिय गया। उन्हें बेइज्जत किया गया। महिलाओं का सरोकर इज्जत के साथ मजदूरी करके अपने बच्चों की भूख की शांत करना था।
- ड़ताल के दौरान कामगार और उनके परिवार घर की वस्तुएँ, बर्तन आदि बेचकर अपने आप को बचाए रख पाए।
प्रश्न 3. योजना अवधि के दौरान औद्योगिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक को ही अग्रणी भूमिका क्यों सौंपी गई थी ?
उत्तर-सार्वजनिक उपक्रम से अभिप्राय ऐसी व्यावसायिक या औद्योगिक संस्था से है जिनका स्वामित्व, प्रबन्ध एवं संचालन सरकार या उसकी किसी संस्था के अधीन होता है। स्वतन्त्रता के बाद भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को निम्नलिखित कारणों से महत्व दिया गया है :
- विशाल विनियोग की आवश्यकता (Need for huge investment) : कई ऐसे आधारभूत तथा देश के लिए आवश्यक उद्योग होते हैं जिनमें इतने निवेश की आवश्यकता होती है कि निजी क्षेत्र के उद्योग उनमें रुचि नहीं लेते। अतः उन उद्योगों की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र में ही करनी पड़ती है।
- क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिए (For removing regional disparities) : भारत जब स्वतंत्र हुआ था तो उस समय क्षेत्रीय असमानताएँ बहुत थीं। इन क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में उपक्रमों की स्थापना आवश्यक थी। सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना उन क्षेत्र में की जाती है जो आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं।
- आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को रोकने के लिए (To check concentration of economic power): जब भारत स्वंतत्र हुआ था तो उस समय आय तथा संपत्ति का असमान वितरण था। देश के कुछ लोगों के पास ही देश का अधिकांश धन केन्द्रित था। अमीर लोग बहुत अमीर थे और गरीब लोग बहुत ही गरीब थे। आय की विषमताओं को कम करने के लिए स्वतन्त्रता के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र को महत्व दिया गया।
- आधारभूत संरचनाओं का विकास करने के लिए (To develop the infrastructure): स्वतंत्रता के समय भारत में आधारभूत संरचनायें अविकसित तथा असंतोषजनक थीं। बिना आधारभूत संरचनाओं में सुधार लाये देश का विकास नहीं हो सकता। आधारभूत संरचनाओं को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र आगे आने को तैयार नहीं था, क्योंकि आधारभूत संरचनाओं में काफी निवेश होता है। अतः इन संरचनाओं को विकसित करने के लिए सरकार को आगे आना पड़ा।
- सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण (Important for defence purpose) : जब देश स्वतंत्र हुआ तो उस समय भारत की सुरक्षा खतरे में थी। देश की सुरक्षा के लिए युद्ध सामग्री (बम, गोले, अस्त्र, शस्त्र) के निर्माण की आवश्यकता थी। युद्ध सामग्री के निर्माण के लिए हम निजी क्षेत्र पर भरोसा नहीं कर सकते। अतः इन सबका निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र में किया गया।