Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 16 जन-आन्दोलन का उदय
Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 16 जन-आन्दोलन का उदय
BSEB Class 12th Political Science Notes Chapter 16 जन-आन्दोलन का उदय
→ भारत के पर्यावरणीय आन्दोलनों में ‘चिपको आन्दोलन’ एक विश्वप्रसिद्ध आन्दोलन था। आन्दोलन की शुरुआत सन् 1973 के उत्तराखण्ड के दो-तीन गाँवों में हुई थी।
→ औपनिवेशिक दौर में सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर भी विचार मन्थन चला जिससे अनेक स्वतन्त्र सामाजिक आन्दोलनों का जन्म हुआ; जैसे-जाति प्रथा विरोधी आन्दोलन, किसान सभा आन्दोलन और मजदूर संगठन के आन्दोलन।
→ आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में किसान तथा खेतिहर मजदूरों ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में अपना विरोध जारी रखा।
→ दलित हितों की दावेदारी के लिए महाराष्ट्र में सन् 1972 में दलित युवाओं का संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बना। आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की ऐसी नीतियों का कुशलतापूर्वक क्रियान्वयन इनकी प्रमुख माँग थी।
→ भारतीय संविधान में छुआछूत की प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
→ महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आन्दोलन को ‘इण्डिया’ की ताकतों (शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ ‘भारत’ (ग्रामीण कृषि क्षेत्र) का संग्राम घोषित किया।
→ सरकार पर अपनी मांगों को मानने के लिए दबाव डालने के क्रम में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो आन्दोलन का सहारा लिया।
→ 1980 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में आर्थिक उदारीकरण की नीति की शुरुआत हुई तो बाध्य होकर मछुआरों के स्थानीय संगठनों ने अपना एक राष्ट्रीय मंच बनाया।
→ आन्ध्र प्रदेश में महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी थी। इसे राज्य में ‘ताड़ी-विरोधी आन्दोलन’ के रूप में जाना गया।
→ संविधान के 73वें और 74वें संशोधन में महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया। इस व्यवस्था को राज्यों की विधान सभाओं तथा संसद में भी लागू करने की माँग की जा रही है।
→ नर्मदा नदी के बचाव के लिए नर्मदा बचाओ आन्दोलन चला। इस आन्दोलन ने बाँधों के निर्माण का विरोध किया।
→ जन आन्दोलनों का इतिहास हमें लोकतान्त्रिक राजनीति को ठीक ढंग से समझने में सहायता देता है।
→ जन आन्दोलनों द्वारा लामबन्द की जाने वाली जनता सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तथा अधिकारहीन वर्गों से सम्बन्ध रखती है।
→ सूचना के अधिकार का आन्दोलन जन आन्दोलनों की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
→ सन् 2002 में ‘सूचना की स्वतन्त्रता’ नाम का एक विधेयक पारित हुआ था। यह एक कमजोर अधिनियम था और इसे अमल में नहीं लाया गया। जून 2005 में ‘सूचना का अधिकार’ विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी।
→ जन आन्दोलन-ऐसे आन्दोलन जो दलगत राजनीति से दूर एवं जन सामान्य के हित में चलाए जाते हैं, उन्हें ‘जन-आन्दोलन’ कहा जाता हैजैसे—चिपको आन्दोलन, दलित पैंथर्स आन्दोलन, भारतीय किसान आन्दोलन आदि।
→ चिपको आन्दोलन-यह आन्दोलन पेड़ों या वनों की कटाई को रोकने वाला पर्यावरणीय सुधार आन्दोलन था। आन्दोलन सन् 1973 में उत्तराखण्ड राज्य के कुछ गाँवों में प्रारम्भ हुआ था। इसमें वृक्षों को काटने से बचाने के लिए महिलाएँ पेड़ों से चिपककर खड़ी हो जाती थीं।
→ दल आधारित आन्दोलन-ऐसे आन्दोलन जिन्हें शक्ति मुख्यतः राजनीतिक दलों से प्राप्त हो। उदाहरणार्थ-सन् 1885 से सन् 1947 तक का भारत का स्वाधीनता आन्दोलन।
→ सामाजिक आन्दोलन-ऐसे आन्दोलन जो मुख्य रूप से किसी भी संगठन द्वारा सामाजिक समस्याओं पर चलाए जाते हैं तथा इनसे समाज को एक नई दिशा मिलती है। उदाहरण सती प्रथा या नारी मुक्ति आन्दोलन, ताड़ी विरोधी आन्दोलन आदि।।
→ आर्थिक आन्दोलन-ऐसे आन्दोलन जो मुख्य रूप से किसी आर्थिक समस्या से जुड़े हुए हों; जैसे-किसान आन्दोलन, मजदूर आन्दोलन आदि।
→ दलित पैंथर्स-दलित हितों की दावेदारी के क्रम में महाराष्ट्र में सन् 1972 में दलित युवाओं का एक संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बनाया गया।
→ भारतीय किसान आन्दोलन (बी०के०यू०) यह उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों का एक महत्त्वपूर्ण संगठन था। सरकार पर अपनी मांगों को मानने के लिए दबाव डालने के क्रम में बीकेयू ने रैली, धरना, प्रदर्शन और जेल भरो अभियान का सहारा लिया।
→ शेतकारी संगठन-महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आन्दोलनों को ‘इण्डिया’ की ताकतों (शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ ‘भारत’ (यानि ग्रामीण कृषि क्षेत्र) का संग्राम करार दिया।
→ ताड़ी विरोधी आन्दोलन (शराब विरोधी आन्दोलन) आन्ध्र प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी थी। यह लड़ाई शराब माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी।
→ संविधान का 73वाँ तथा 74वाँ संशोधन-इन संशोधनों के अन्तर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया।
→ नर्मदा बचाओ आन्दोलन-नर्मदा नदी के बचाव में नर्मदा बचाओ आन्दोलन चला। इस आन्दोलन में बाँधों के निर्माण का विरोध किया गया।
→ ‘सूचना की स्वतन्त्रता’ विधेयक-सन् 2002 में ‘सूचना की स्वतन्त्रता’ नाम का एक विधेयक पारित हुआ था। यह एक कमजोर अधिनियम था और इसे अमल में नहीं लाया गया। जून 2005 में ‘सूचना के अधिकार’ के विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त हुई।
→ महेन्द्र सिंह टिकैत-भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के अध्यक्ष थे।
→ नामदेव दसाल-ये एक प्रसिद्ध कवि (मराठी भाषा) हैं। इनकी ‘गोलपीठ की मराठी कविता’ प्रसिद्ध है।