12th Political Science

Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 13 भारत के विदेश संबंध

Bihar Board Class 12th Political Science Notes Chapter 13 भारत के विदेश संबंध

BSEB Class 12th Political Science Notes Chapter 13 भारत के विदेश संबंध

→ भारत को स्वतन्त्रता कठोर एवं चुनौतीपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में प्राप्त हुई थी।

→ उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद नए देशों के सामने लोकतन्त्र बनाए रखने की तथा लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना करने की दोहरी चुनौती थी।

→ एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ था। ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की सम्प्रभुता का सम्मान करने व शान्ति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने रखा।

→ द्वितीय विश्वयुद्ध के तुरन्त बाद के दौर में अनेक विकासशील देशों ने ताकतवर देशों की इच्छानुसार अपनी विदेश नीति बनायी क्योंकि उन्हें इन देशों से अनुदान या कर्ज मिल रहा था। इस कारण से दुनिया के विभिन्न देश दो गुटों में बँट गए—(1) संयुक्त राज्य अमेरिका का गुट एवं (2) सोवियत संघ का गुट।

→ सुभाषचन्द्र बोस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ‘इण्डियन नेशनल आर्मी’ (आई०एन०ए०) का गठन किया था।

→ भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेण्डा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाई। प्रधानमन्त्री और विदेशमन्त्री के रूप में सन् 1946 से 1964 तक इन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और उसके क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला।

→ भारत अपने आप को दोनों ही गुटों से दूर रखना चाहता था। सन् 1956 में जब ग्रेट ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर आक्रमण किया तो भारत ने इस नव-औपनिवेशिक हमले के विरुद्ध विश्वव्यापी विरोध का नेतृत्व किया था।

→ भारत ने नेहरू के नेतृत्व में मार्च 1947 में एशियाई सम्बन्ध सम्मेलन का आयोजन किया।

→ इण्डोनेशिया के शहर बाण्डंग में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन सन् 1955 में हुआ। आमतौर पर इसे ‘बाण्डुंग सम्मेलन’ के नाम से जाना जाता है। अफ्रीका और एशिया के नव-स्वतन्त्र देशों के साथ भारत के बढ़ते सम्पर्क का यह चरम बिन्दु था।

→ बाण्डुंग सम्मेलन में ही गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी।

→ गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम सम्मेलन सितम्बर 1961 में बेलग्रेड में सम्पन्न हुआ। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना में नेहरू जी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।

→ पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धों के विपरीत स्वतन्त्र भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत बड़े मित्रतापूर्ण ढंग से की।

→ सन् 1949 की चीनी क्रान्ति के बाद भारत, चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता देने वाला प्रथम देश
था।

→ शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों (जिन्हें पंचशील के नाम से जाना जाता है) की घोषणा भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू व चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 में की। दोनों देशों के मध्य मजबूत सम्बन्धों की दिशा में यह एक अच्छा कदम था।

→ चीन ने सन् 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया। तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत से । राजनीतिक शरण माँगी और सन् 1950 में भारत ने उन्हें शरण दे दी।

→ सन् 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

→ चीन ने ‘स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र’ बनाया है और इस क्षेत्र को वह चीन का अभिन्न अंग मानता है। तिब्बती जनता चीन के इस दावे को नहीं मानती कि तिब्बत, चीन का अभिन्न अंग है।

→ सन् 1962 में चीन ने सीमा विवाद को लेकर भारत पर अचानक हमला कर दिया और नेफा एवं लद्दाख में एक बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

→ भारत-चीन युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को गहरी चोट पहुंची।

→ भारत-चीन संघर्ष का प्रभाव विपक्षी दलों पर भी हुआ। इस युद्ध से चीन-सोवियत संघ के बीच बढ़ते मंतभेद से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के अन्दर बड़ी उठा-पटक मची। सोवियत संघ का पक्षधर गुट भाकपा में ही रहा और उसने कांग्रेस के साथ नजदीकियाँ बढ़ाईं।

→ दूसरा गुट कुछ समय के लिए चीन का पक्षधर रहा तथा यह गुट कांग्रेस के साथ किसी भी प्रकार की नजदीकी के खिलाफ था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सन् 1964 में टूट गई। इस पार्टी के भीतर जो गुट चीन का पक्षधर था उसने मार्क्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनाई।

→ भारत-चीन युद्ध के बाद नागालैण्ड को राज्य का दर्जा दिया गया।

→ कश्मीर मामले को लेकर पाकिस्तान के साथ बँटवारे के तुरन्त बाद ही संघर्ष छिड़ गया था। सन् 1947 में ही कश्मीर में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच एक छद्म युद्ध छिड़ गया था। यह संघर्ष पूर्ण रूप से व्यापक युद्ध का रूप न ले सका।

→ विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के मध्य नदी जल में हिस्सेदारी को लेकर चला आ रहा एक लम्बा विवाद सुलझा लिया गया। नेहरू और जनरल अयूब खान ने सिन्धु नदी जल सन्धि पर सन् 1960 में हस्ताक्षर किए।

→ भारतीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सन् 1966 में ताशकन्द समझौता हुआ। सोवियत संघ ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई।

→ भारत ने मई 1974 में परमाणु परीक्षण किया। भारत का कहना था कि भारत अणु शक्ति का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए करेगा।

→ सन् 1999 में भारत-पाकिस्तान के मध्य ‘कारगिल संघर्ष’ हुआ।

→ भारत ने मई 1998 में परमाणु परीक्षण (द्वितीय) किया।

→ भारत की परमाणु नीति ने सैद्धान्तिक तौर पर यह बात स्वीकार की कि भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणुहथियार रखेगा लेकिन वह हथियारों का प्रयोग पहले नहीं करेगा।

→ सन् 1971 में पाकिस्तान से जंग के बाद इन्दिरा गांधी की लोकप्रियता में चार चाँद लग गए।

→ 3 जुलाई, 1972 को इन्दिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए और इससे अमन की बहाली हुई।

→ भारत और पाकिस्तान के मध्य विश्वास की कमी और सुरक्षा की दुविधा है। दोनों के बीच आपसी सौहार्द की कमी है।

→ उपनिवेशवाद-कई विदेशी शक्तियों ने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए अन्य देशों पर कब्जा करके उन्हें अपना उपनिवेश बनाया।

→ सम्प्रभुता-यह किसी राष्ट्र का अनिवार्य तत्त्व है। सम्प्रभुता का अर्थ यह है कि भारत अपनी आन्तरिक व विदेश नीति का निर्धारण स्वयं करेगा।

→ गुटनिरपेक्षता की नीति-गुटनिरपेक्षता का तात्पर्य है किसी भी गुट में शामिल न होना तथा किसी भी गुट या राष्ट्र के कार्य की सराहना या आलोचना, बिना सोचे-समझे न करना।

→ इण्डियन नेशनल आर्मी (I.N.A.)-नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज (आई० एन० ए०) का गठन किया था।

→ नाटो (NATO)-नाटो (NATO) का पूरा नाम ‘उत्तर अटलाण्टिक सन्धि संगठन’ है। यह एक सैन्य गुट है।

→ वारसा पैक्ट-सोवियत संघ ने ‘वारसा पैक्ट’ नामक सन्धि संगठन बनाया था। इसकी स्थापना सन् 1955 में हुई थी। इसका मुख्य कार्य नाटो में सम्मिलित देशों का यूरोप में मुकाबला करना था।

→ पंचशील के सिद्धान्त-पंचशील का अर्थ है-पाँच सिद्धान्त। ये सिद्धान्त भारतीय विदेशी नीति के मूलाधार हैं। इन पाँच सिद्धान्तों के लिए ‘पंचशील’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 24 अप्रैल, 1954 को किया गया। पंचशील के ये पाँच सिद्धान्त विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

→ ताशकन्द समझौता-सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष का अन्त संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से हुआ। तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सन् 1966 में ताशकन्द समझौता हुआ। सोवियत संघ ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई।

→ विदेश नीति-विदेश नीति से अभिप्राय उस नीति से है जो एक देश द्वारा अन्य देशों के प्रति अपनाई जाती है।

→ शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व-शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है-बिना किसी मनमुटाव के मैत्रीपूर्ण ढंग से एक देश का दूसरे देश के साथ रहना।

→ निःशस्त्रीकरण-नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शान्ति को बनाए रखा जा सकता है तथा अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए।

→ पं० जवाहरलाल नेहरू-स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री। इन्होंने 29 अप्रैल, 1954 को चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई के साथ संयुक्त रूप से शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों (पंचशील) पर हस्ताक्षर किए।

→ सी० राजगोपालाचारी–स्वतन्त्र भारत के प्रथम एवं अन्तिम भारतीय गवर्नर। इन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

→ दलाई लामा–तिब्बत के धार्मिक नेता। तिब्बत पर चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में असफल सशस्त्र विद्रोह होने के पश्चात् भारत में शरण ली।

→ वी० के० कृष्ण मेनन-पं० जवाहरलाल नेहरू सरकार में रक्षामन्त्री रहे। इन्होंने सन् 1962 में . भारत-चीन युद्ध के पश्चात् पद से त्यागपत्र दे दिया।

→ लाल बहादुर शास्त्री-पं० जवाहरलाल नेहरू के पश्चात् भारत के प्रधानमन्त्री बने। इन्होंने सन् 1966 में पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के साथ ताशकन्द समझौता किया।

→ इन्दिरा गांधी-पं. जवाहरलाल नेहरू की पुत्री जो लाल बहादुर शास्त्री के बाद भारत की प्रधानमन्त्री बनीं। इन्होंने 3 जुलाई, 1972 को पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए।

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