12-sociology

Bihar board class 12th notes sociology

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भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ

(The Story of Indian Democracy)

स्मरणीय तथ्य

  • महिला सशक्तीकरण : जब महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती हैं और उनके

प्रति दृढ़ रहती हैं।

* गैर-सरकारी क्षेत्र : अर्थव्यवस्था का वह भाग जिसमें उत्पादन प्रक्रियाएँ गैर-सरकारी उद्यमों द्वारा चलाई जाती हैं।

* गैर-सरकारी उद्यम एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूहों द्वारा अधिकारित एवं चलाए जाते हैं। निजी क्षेत्र : वह आर्थिक क्षेत्र जहाँ उत्पादन की गतिविधियाँ निजी उद्यमियों द्वारा चलाई जाती हैं।

*एक निजी उद्यम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूहों के अधिकार में होता है।

* लोक क्षेत्र : इस केंद्रीय, राज्य एवं स्थानीय सरकारें सम्मिलित होती हैं और सभी उद्यम इनके द्वारा अधिकृत होते हैं और चलाए जाते हैं।

* निजीकरण : सामान्यतः सरकारी उद्यम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूहों को बचे जाते हैं अथवा चलाने के लिए दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया निजीकरण कहलाती है।

*उदारीकरण : इसमें दो चीजें शामिल की जाती हैं-(अ) निजी उद्यमियों को उन उद्यमों को चलाने की अनुमति दी जाती है, जो पहले सरकार के अधिकार में थे, (ब) निजी उद्यमों के लिए बनाए गए नियमों में ढील दी जाती है। इसमें विदेशी उद्यमों को भी चलाने की अनुमति दी जाती है। एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Questions) 

  1. भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के प्रथम भारतीय अध्यक्ष कौन थे ?

(क) महात्मा गाँधी

(ख) राजेन्द्र प्रसाद (ग) डब्लू. सी. बनर्जी

(घ) पंडित नेहरू

उत्तर-(ग)

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस साल हुई ?

(क) 1905 ई० में

(ख) 1869 ई० में (ग) 1857 ई० में

(घ) 1885 ई० में

उत्तर-(घ)

  1. भारत में पंचायतीराज एक्ट कब पारित हुआ ?

(क) 1951 ई० में

(ख) 1947 ई० में

(ग) 1952 ई० में

(घ) 1959 ई० में

उत्तर-(ख) 

  1. पंचायतीराज प्रशासन के कितने स्तरीय प्रशासन व्यवस्था है?

(क) दो स्तरीय

(ख) चार स्तरीय

(ग) तीन स्तरीय

(घ) पाँच स्तरीय

उत्तर-(ख) 

  1. निम्नलिखित में कौन एक संस्था है ?

(क) गाँव

(ख) राष्ट्र

(ग) विवाह

(घ) किसान संघ

उत्तर-(घ)

  1. पंचायतीराज व्यवस्था सर्वप्रथम किस राज्य में लागू किया गया ?

(क) बिहार

(ख) उत्तर प्रदेश

(ग) महाराष्ट्र

(घ) राजस्थान

उत्तर-(घ) 

  1. निम्नलिखित में किस कमिटी की अनुशंसा के आधार पर पंचायतीराज व्यवस्था लागू की गई?

(क) काका कालेलकर कमिटी

(ख) अशोक मेहता कमिटी

(ग) बलवंतराय मेहता कमिटी

(घ) भुंगन कमिटी

उत्तर-(ग)

8.निम्नलिखित में किस राज्य में सर्वप्रथम पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया ?

(क) मध्य प्रदेश

.(ख) राजस्थान

(ग) पश्चिम बंगाल

(घ) बिहार

उत्तर-(घ)

  1. भारतीय संविधान कब लागू किया गया ?

(क) 26 जनवरी, 1949

(ख) 26 नवंबर, 1949

(ग) 26 जनवरी, 1950

(घ) 2 अक्टूबर, 1950

उत्तर-(ग)

  1. “गाँव एक लघु गणराज्य है” किसने कहा ?

(क) मेटकॉफ

(ख) ए. आर. देसाई

(ग) कार्ल मार्क्स

(घ) महात्मा गाँधी

उत्तर-(क)

  1. “प्रजातंत्र जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता की सरकार है” प्रजातंत्र की यह परिभाषा किसने दी है ?

(क) बराक ओबामा

(ख) महात्मा गाँधी

(ग) अब्राहम लिंकन

(घ) जवाहरलाल नेहरू

उत्तर-(ग)

  1. स्वतंत्र भारत में सर्वप्रथम किस पंचवर्षीय योजना में उद्योग पर जोर दिया गया?

(क) प्रथम पंचवर्षीय योजना

(ख) द्वितीय पंचवर्षीय योजना

(ग) तृतीय पंचवर्षीय योजना

(घ) चतुर्थ पंचवर्षीय योजना

उत्तर-(ख)

  1. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना का काल क्या है ?

(क) 2002-2007

(ख) 2007-2009

(ग) 2007-2012

(घ) 2008-2013

उत्तर-(ग)

  1. पंचायतों को बल प्रदान करनेवाला विधेयक संविधान के किस संशोधन द्वारा लाया गया ?

(क) 71वाँ संशोधन

(ख) 73वाँ संशोधन

(ग) 75वाँ संशोधन

(घ) 69वाँ संशोधन

उत्तर-(ख)

  1. जातीय संगठन राजनीति में कैसी भूमिका निभा रही है- [M.Q.2009A]

(क) दबाव समूह

(ख) स्वार्थ समूह

(ग) सक्रिय समूह

(घ) कल्याणकारी समूह

उत्तर-(क)

  1. राज्य की परिभाषा का आधार क्या है ?

(क) जनसंख्या तथा निश्चित भू-भाग पर आधारित है

(ख) जनसंख्या निश्चित भू-भाग तथा सरकार पर आधारित है।

(ग) जनसंख्या निश्चित भू-भाग, सरकार तथा संप्रभुता पर आधारित है

(घ) उपर्युक्त सभी तत्त्वों पर आधारित है

उत्तर-(घ)

  1. निम्न में सही उत्तर पर चिह्न लगायें-

(क) संविधान धार्मिक नियमों तथा प्रावधानों का एक व्यवस्थित प्रलेख है

(ख) संविधान प्रशासनिक नियमों तथा प्रावधानों का एक व्यवस्थित प्रलेख है

(ग) संविधान प्रशासनिक नियमों तथा प्रावधानों का एक व्यवस्थित प्रलेख है

(घ) संविधान शैक्षणिक नियमों तथा प्रावधानों का एक व्यवस्थित प्रलेख है

उत्तर-(ग)

  1. निम्न में जो सही है उस पर चिह्न लगायें

(क) पंचायत का कार्यकाल तीन वर्षों के लिए निर्धारित है

(ख) पंचायत का कार्यकाल चार वर्षों के लिए निर्धारित है

(ग) पंचायत का कार्यकाल पाँच वर्षों के लिए निर्धारित है

(घ) पंचायत का कार्यकाल छः वर्षों के लिए निर्धारित है

उत्तर-(ग)

  1. किस वर्ष से बलवंत राय मेहता कमिटी की सिफारिशों के आधार पर विभिन्न राज्यों में नया पंचायतीराज कानून लागू होना शुरू हुआ ?

(क) 1947

(ख) 1950

(ग) 1959

(घ) 1965

उत्तर-(घ)

  1. निम्नांकित में कौन आधुनिक राज्य के कार्य हैं ?

(क) बाहरी आक्रमण से रक्षा करना

(ख) आंतरिक शाति स्थापित करना

(ग) लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था करना

(घ) उपर्युक्त सभी

उत्तर-(घ)

  1. जब सरकारी उद्यम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को बेच दिए जाते हैं अथवा चलाने

के लिए दिए जाते हैं तो यह प्रक्रिया कहलाती है

(क) उदारीकरण

(ख) निजीकरण

(ग) महिला सशक्तीकरण

(घ) लोक क्षेत्र

उत्तर-(ख)

  1. बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों को लागू करनेवाला पहला राज्य था

(क) बिहार

(ख) मध्य प्रदेश

(ग) राजस्थान

(घ) गुजरात

उत्तर-(ग)

  1. कितने वर्ष के अंतर्गत के बच्चों को किसी खतरनाक कार्य में लगाना दंडनीय अपराध माना गया है ?

(क) 14

(ख) 18

(ग) 10

(घ) 20

उत्तर-(क)

  1. 73वाँ संविधान संशोधन कब पास किया गया ?

(क) 1980

(ख) 1990

(ग) 1985

(घ) 1992

उत्तर-(घ)

  1. पंचायती राज्य के गाँव के विकास के लिए कितनी संस्थाएँ कार्य करती हैं

(क) दो

(ख) चार

(ग) तीन

(घ) पाँच

उत्तर-(ग)

 (ख) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

(1) सन् ………….. में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना की गई।

(2) पंचायती राज संस्थाओं को ……………. प्रस्थिति प्रदान की गई है।

(3) महाराष्ट्र में किसान आंदोलन ………….. के नेतृत्व में चलाया गया है।

(4) स्थानीय स्वशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का प्रावधान करनेवाला

संवैधानिक संशोधन पूरे देश में …………… से लागू है।

 उत्तर-(1) 1935, (2) संवैधानिक, (3) शरद जोशी, (4) 1992-93 ।

लघ उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Type Questions) 

प्रश्न 1. प्रत्येक राज्य के लिए संविधान की आवश्यकता और अनिवार्यता क्यों है?

उत्तर-प्रत्येक राज्य के लिए संविधान की आवश्यकता और अनिवार्यता इसलिए है कि इसमें सरकार के सभी अंगों के कार्य और अधिकार तथा नागरिकों और राज्य के आपसी संबंधों का खुलासा कर दिया जाता है। अतः शासन आसानी से चलाया जा सकता है।

प्रश्न 2. संविधान के अभाव में समाज की स्थिति कैसी होगी ?

उत्तर – संविधान के अभाव में समाज की स्थिति जंगल राज जैसा हो जायेगा .

प्रश्न 3. भारतीय संविधान किस तिथि से लागू हुआ ?

उत्तर-भारतीय संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 से लागू हुआ।

प्रश्न 4, मौलिक अधिकारों द्वारा अल्पसंख्यकों के हित किस तरह सुरक्षित किए गए हैं ?

उत्तर-मौलिक अधिकारों में अनुच्छेद 25-28 तक मजहबी या धार्मिक स्वतंत्रता और अनुच्छेद 29-30 में सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकारों की व्यवस्था में अल्पसंख्यकों के हित सुरक्षित कर दिए हैं।

प्रश्न 5 निजी क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-निजी क्षेत्र : वह आर्थिक क्षेत्र जहाँ उत्पादन की गतिविधियाँ निजी उद्यमियों द्वारा चलाइ जाती हैं। एक उद्यम जो निजी व्यक्ति या व्यक्तियों के प्रबंध नियंत्रण और स्वामित्व में होता है। उसे निजी क्षेत्र का उद्यम कहते हैं। वह लाभ कमाने के उद्देश्य से उत्पादन की क्रिया का संचालन । करता है।

प्रश्न 6. लोकक्षेत्र से क्या तात्पर है.

उत्तर-लो कक्षेत्र या सार्वजनिक क्षेत्र से अभिप्राय उस क्षेत्र से है जिसमें केन्द्रीय, राज्य व स्थानीय सरकारें सम्मिलित होती हैं। सभी उद्यमों पर सरकारी नियंत्रण और स्वामित्व होता है। ये उद्यम आर्थिक कल्याण की दृष्टि से संचालित किए जाते हैं।

प्रश्न 7. निजीकरण से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-जब सरकारी उद्यम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को बेचे जाते हैं अथवा चलाने के लिए दिए जाते हैं तो यह प्रक्रिया निजीकरण कहलाती है।

प्रश्न 8. उदारीकरण से क्या अभिप्राय है?

उत्तर-उदारीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो बातें सम्मिलित हैं :

  1. निजी उद्यमियों को उन उद्यमों को चलाने की अनुमति दी जाती है जो पहले सरकार के अधिकार में थे।
  2. निजी उद्यमों के लिए बनाए गए नियमों में ढील दी जाती है। इसमें विदेशी उद्यमों को भी चलाने की अनुमति दी जाती है।

प्रश्न 9. मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-मिश्रित अर्थव्यवस्था से तात्पर्य ऐसी अर्थव्यवस्था से है जिसमें निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों ही पाये जाते हैं। इसमें एक ओर तो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ पाई जाती हैं और दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र की विशेषताएँ पाई जाती हैं। निजी स्वामित्व के अंतर्गत जो उत्पादन इकाइयाँ होती हैं वे लाभ कमाने के उद्देश्य से उत्पादन करती हैं और जो उत्पादन इकाइयाँ सरकार द्वारा संचालित की जाती हैं वे अधिकतम सामाजिक लाभ के उद्देश्य से संचालित की जाती हैं।

प्रश्न 10. महिला सशक्तिकरण से क्या अभिप्राय है? [B.M.2009 A]

उत्तर-जब महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती हैं और उनके प्रति दृढ़ रहती हैं तो इसे महिला सशक्तिकरण कहते हैं।

प्रश्न 11. मौलिक अधिकारों से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर-भारतीय संविधान ने सभी नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार प्रदान किए हैं। वे मौलिक अधिकारों के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें मूलभूत अधिकार इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये मानव के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं। हमारे संविधान के संदर्भ में मौलिक अधिकार इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि वे लिखित संविधान द्वारा सुरक्षित हैं।

प्रश्न 12. भारतीय संविधान में कौन-से मौलिक अधिकारों का वर्णन किया है ?

उत्तर-भारतीय संविधान के तीसरे भाग के अनुच्छेद 12 से 35 में मूल अधिकार दिए गए हैं। ये निम्नलिखित हैं :

  1. समानता का अधिकार।
  2. स्वतंत्रता का अधिकार।
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार।
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।
  5. सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार।
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 13. भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्य बताइये। उत्तर-राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने से संबंधित मौलिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं : 

  1. भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए कार्य करना।
  2. देश की रक्षा करना।
  3. भारत के सभी लोगों के भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना।
  4. हमारी साँझी संस्कृति की समृद्ध धरोहर की सुरक्षा करना।
  5. भारत के संविधान का पालन करना तथा इसके राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
  6. राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को मानना और उनका अनुकरण करना।
  7. राष्ट्रीय पर्यावरण का संरक्षण तथा इसमें सुधार करना।
  8. वैज्ञानिक मनोवृत्ति तथा जिज्ञासा की भावना को विकसित करना।
  9. सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठता के लिए प्रयास करना।

 प्रश्न 14. मौलिक अधिकार हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं ?

उत्तर-1. मौलिक अधिकारों के अभाव में व्यक्ति अपना सर्वांगीण विकास नहीं कर सकता। मौलिक अधिकार हमें सुखी व स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने का नैतिक बल देते हैं।

  1. मौलिक अधिकार हमें नागरिक शोषण से बचाते हैं। ये कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों पर अंकुश लगाते हैं।
  2. मौलिक अधिकार सभी प्रकार की स्वतंत्रताएँ नागरिकों को उपलब्ध कराते हैं और सुरक्षा की भावना जगाते हैं।
  3. बच्चों, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण सुनिश्चित करते हैं।

प्रश्न 15. संवैधानिक उपचारों का अधिकार क्या है ?

उत्तर-संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह अधिकार है जो मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु संविधान में सम्मिलित अधिकारों में हस्तक्षेप करता है या उनका हनन करता है तो नागरिक न्यायपालिका का दरवाजा खटखटा सकता है। न्यापालिका आदेश, परमादेश, बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख, अधिकार पृच्छा लेख तथा उत्प्रेक्षण लेख जारी करके नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।

प्रश्न 16. हमारे संविधान में दिये गये समानता के अधिकार का वर्णन कीजिए।

उत्तर-समानता के अधिकार से तात्पर्य है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और समान अवसर प्राप्त हों। कानून की दृष्टि में सभी समान हैं। भारत का संविधान धर्म, लिंग, जाति या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता। समान अपराध के लिए समान दंड दिया जाएगा। सभी के लिए शिक्षा व रोजगार के समान अवसर उपलब्ध होंगे। सभी को सार्वजनिक स्थानों का बिना भेदभाव के प्रयोग करने का अधिकार है। समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है। सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।

प्रश्न 17. अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन क्यों आवश्यक है ?

उत्तर-अधिकार और कर्तव्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। ये एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। कर्तव्यों के बिना अधिकार अराजकता पैदा कर देंगे। अधिकारों के अभाव में कर्तव्य तानाशाही की ओर ले जा सकते हैं। अधिकार कर्तव्य-परायण नागरिक तैयार करते हैं और कर्तव्य नागरिकों को अधिकारों का उपयोग करने में सक्षम बनाने में राज्य की सहायता करते हैं।

प्रश्न 18. समानता लाने के लिए कुछ वर्गों के लिए क्या प्रयल किए गए हैं ?

उत्तर-संविधान में समानता के अधिकार का लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित करना है। सभी के लिए रोजगार के समान अवसर प्रदान करना आवश्यक है। अनुसूचित जातियों

और जनजातियों के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था की गई है। सामाजिक-आर्थिक रूप से ऊँचा उठाने के लिए उन्हें शिक्षा, रोजगार, आवास की सुविधाएँ दी गई हैं। सरकारी पदों में आरक्षण दिया गया है। छुआछूत को अपराध माना गया है। सार्वजनिक स्थानों पर आने-जाने में कोई रुकावट नहीं है।

प्रश्न 19. सामाजिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए संविधान में क्या व्यवस्था की गई है?

उत्तर-यद्यपि संविधान में नागरिकों के मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं लेकिन राज्य से यह भी अपेक्षा की गई है कि वह सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए आर्थिक विकास मार्ग में आने वाली सामाजिक बाधाओं को दूर करे। इसके लिए संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का प्रावधान किया गया है। इन सिद्धांतों का लक्ष्य भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाना है। संविधान में इन्हें देश का शासन चलाने के लिए मौलिक सिद्धांत घोषित किया है।

प्रश्न 20. धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन करें।

उत्तर-भारत में अनेक धर्म हैं। सभी धर्मों को समान माना गया है। धार्मिक स्वतत्रता के अधिकार के अन्तर्गत सभी नागरिकों को अपनी मर्जी के धर्म को मानने का अधिकार है। राज्य किसी धर्म विशेष के साथ पक्षपात नहीं करता। धर्म के आधार पर कोई निर्णय नहीं किया जायेगा। धर्म और राजनीति को अलग-अलग रखा जायेगा परंतु धार्मिक समुदाय अपने धर्म के शांतिपूर्ण प्रचार और प्रसार करने के लिए परोपकार संस्थाएँ स्थापित कर सकते हैं। अल्पसंख्यक समुदायों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। राज्य की संस्थाओं और सरकारी शिक्षा प्राप्त संस्थाओं को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है फिर भी वे मानवीय मूल्यों के आधार पर नैतिक शिक्षा देने को स्वतंत्र हैं।

प्रश्न 21. क्या भारत एक कल्याणकारी राज्य है ?

उत्तर-एक ऐसा राज्य जो अपनी सीमा के अंदर रहने वाले लोगों को बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करने का उत्तरदायित्व लेता है, उसे लोक कल्याणकारी राज्य कहते हैं। रोटी, कपड़ा,

उत्तर-संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह अधिकार है जो मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु संविधान में सम्मिलित अधिकारों में हस्तक्षेप करता है या उनका हनन करता है तो नागरिक न्यायपालिका का दरवाजा खटखटा सकता है। न्यापालिका आदेश, परमादेश, बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख, अधिकार पृच्छा लेख तथा उत्प्रेक्षण लेख जारी करके नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।

प्रश्न 22. राज्य से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-राज्य (State): यह बाहरी नियंत्रण से मुक्त निश्चित भू-भाग में निवास करने वाले लोगों का एक ऐसा समुदाय है जिसकी एक संगठित सरकार हो। राज्य एक सामाजिक संस्था है जो शक्ति प्रयोग पर अधिकार रखती है। वह अपने नागरिकों पर नियंत्रण करने का अधिकार भी रखती है। राज्य के आवश्यक तत्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, प्रभुसत्ता और सरकार।

राज्य कानून और व्यवस्था को नियंत्रित करता है तथा न्यायिक व्यवस्था के माध्यम से तमाम विवादों का निपटारा भी करता है। राज्य एक स्थिर संस्था है।

प्रश्न 23. कल्याणकारी राज्य क्या होता है?

उत्तर-कल्याणकारी राज्य वह व्यवस्था है जिसमें सरकार अपने नागरिकों के कल्याण का उत्तरदायित्व प्राथमिक रूप से स्वीकार करती है। लोगों के पास भोजन, मकान, स्वास्थ्य सुविधाएँ, शिक्षा, रोजगार जैसी सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में हैं। राज्य अपने सभी नागरिकों के कल्याण के लिए अनेक कार्यक्रम चलाता है। लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए भरसक प्रयास करता है।

 प्रश्न 24. भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन कीजिए।

उत्तर-धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। संविधान द्वारा नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। व्यक्तियों को अपने धर्म का प्रचार, प्रसार एवं पालन करने की स्वतंत्रता है। अनुच्छेद 25 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को, चाहे वे नागरिक हों या विदेशी, अंत:करण की स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म को स्वीकार करने, आचरण करने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता प्राप्त है।

. सरकारी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जायेगी। सरकार सार्वजनिक व्यवस्था के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। अतः यह अधिकार भी निरपेक्ष नहीं है।

प्रश्न 25. पंचायती राज का क्या महत्व है ?

उत्तर-गाँधी जी ने कहा था कि एक सच्चे जनतंत्र की स्थापना सबसे निचले स्तर से होती है जिसमें हर गाँव का एक आदमी शरीक हो। यह तभी संभव हो पाएगा जब हर गाँव में निर्वाचित लोकप्रिय पंचायत हो। पंचायतें स्थानीय मामलों में प्रबंध में स्थानीय भागीदारी संभव बनाती हैं। इसी से शक्ति का विकेन्द्रीकरण भी संभव हो पाता है। .

प्रश्न 26. बलवंतराय मेहता समिति के विषय में आप क्या जानते हैं ? .

उत्तर-बलवंतराय मेहता समिति का गठन 1957 में किया गया था। इस समिति ने पंचायती राज के त्रिस्तरीय गठन द्वारा जनतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की सिफारिश की थी। पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तर निम्नलिखित हैं :

(i) जिला स्तर पर जिला परिषद्।

(ii) ब्लॉक स्तर पर खंड या ब्लॉक समिति।

(iii) ग्राम स्तरपर ग्राम पंचायत।

बलवंतराय मेहता सिमति की सिफारिशों को 1959 में पहली बार राजस्थान में लागू किया गया। बाद में बाकी राज्यों ने भी इसे स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 27. अशोक मेहता समिति के विषय में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर-इस समिति का गठन पंचायती राज व्यवस्था की समीक्षा करने क लिए किया गया था। इस समिति ने 1978 में अपनी सिफारिश प्रस्तुत कर दी थी। समिति ने पाया कि पंचायती राज के कारण ग्रामीण जनता में राजनीतिक चेतना का संचार हुआ है किन्तु यह आर्थिक विकास लाने में सफल नहीं हुई है। इस समिति ने बुनियादी स्तर पर जनतंत्र के विस्तार के लिए पंचायतों के गठन को नितान्त आवश्यक माना।

प्रश्न 28. ग्राम सभा क्या है ?

उत्तर-ग्राम सभा में एक गाँव या गाँवों के समूह के सभी वयस्क नागरिक शामिल होते हैं। सामान्यतः वर्ष में दो बार ग्राम सभा की बैठक होनी चाहिए।

प्रश्न 29. ग्राम पंचायत के गठन के विषय में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर-देश में स्थापित पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचली और गाँव या ग्राम स्तर पंचायत को ‘ग्राम पंचायत’ कहते हैं। इसे अधिकांश राज्यों में ग्राम पंचायत के नाम से जाना जाता है। ग्राम पंचायत के सदस्य वहाँ की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं। ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या गाँव की आबादी के आधार पर तय की जाती है।

प्रश्न 30, पंचायती राज और नियोजन पर टिप्पणी लिखो।

उत्तर-पंचायती राज और नियोजन (Panchayati Rajand Planning): सभी कार्यों का ध्यान देने के लिए बलवंतराय मेहता कमेटी की सिफारिश पर त्रि-स्तरीय पंचायती राज स्थापित किये गये। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड स्तर पर खंड समिति और जिला स्तर पर जिला परिषद की स्थापना की गई और ग्रामों के विकास के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। नियोजन कार्य तीनों स्तरों में समन्वय करके किया जा रहा है।

प्रश्न 31. “विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर-विकन्द्रीकरण की आवश्यकता : भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। यहाँ पर सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया गया है। नियोजन में भी विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता अनुभव की गई है तथा नियोजन निचले स्तर से लेकर ऊपर तक जनता की सहभागिता तथा बहुस्तरीय नियोजन पर आधारित किया गया है। इसका कारण राष्ट्रीय विकास के कार्यों को पूर्ति किया जाना है।

प्रश्न 32. “जिला नियोजन समिति’ में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन द्वारा किए गए परिवर्तनों की प्रकृति का वर्णन कीजिए।

उत्तर-73वें और 74वें संविधान संशोधनों के द्वारा जिला स्तर तथा निम्न स्तरों पर नियोजन के लिए कुछ शक्तियाँ जनता को दी गई हैं। भारत जैसे विविधताओं के देश में जहाँ लोग क्षेत्रीय और अपने-अपने वर्गीय हितों के लिए आन्दोलनरत हो जाते हैं वहाँ लोगों को निर्णय करने के अधिकार तथा विकास प्रक्रिया लागू करने में जन सहभागिता देने से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुदृढ़ करने में सहायता मिली है क्योंकि मूल्न थोपने से नहीं वरन् उनकी स्वयं की सहभागिता से राष्ट्रीय अखंडता मजबूत होती है।

प्रश्न 33. आर्थिक नियोजन के दो मुख्य लाभ बताइए।

उत्तर-साधारण शब्दों में किसी भी व्यक्तिगत, सामूहिक अथवा सरकारी काम को योजनाबद्ध करना नियोजन कहलाती है। संक्षेप में योजना बनाने का अर्थ होता है किसी क्रिया संबंधी कार्यक्रम को निर्धारित तथा निश्चित करना। आधुनिक युग में नियोजन क्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग बन

चुका है।

आर्थिक नियोजन के दो मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं :

  1. आर्थिक नियोजन के माध्यम से एक निश्चित समय के अन्दर कमिक ढंग से बहुत से कार्य किये जा सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत व सामाजिक विकास एक निश्चित समय में ही सम्भव हो जाता है।
  2. आर्थिक नियोजन में पहले से आँकड़े तय कर लिए जाते हैं कि एक निश्चित समय में देश को कितनी आमदनी की सम्भावना है और उसी समय में किस-किस क्षेत्र में कितना खर्च किया जाना चाहिए। परिणामस्वरूप अति आवश्यक योजनाओं को प्राथमिकता मिल जाती है और इस प्रकार आर्थिक विकास में गति आती है।

प्रश्न 34. ग्राम पंचायतों के कार्य लिखिए। 

उत्तर-ग्राम पंचायतों के आवश्यक कार्य हैं – नागरिक कार्य तथा सफाई सड़क, सड़क

सफाई, नाले तथा तालाबों की सफाई व्यवस्था, जन सुविधाएँ तथा शौचालय, जन स्वास्थ्य तथा टीकाकरण, पेयजल आपूर्ति, कुंओं का निर्माण, सामाजिक स्वास्थ्य तथा प्रौढ़ शिक्षा।

प्रश्न 35. पंचायत समितियों के कार्य लिखिए।

उत्तर-पंचायत समिति एक प्रकार से विकास गतिविधियों के लिए धुरी का कार्य करती है। इन समितियों के जिम्मे कृषि, भूमि विकास, जलस्रोतों के विकास, सामाजिक वानिकी तथा तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा आदि से संबंधित आधुनिक कार्य रखे गये हैं।

प्रश्न 36. पंचायत का क्या अर्थ है ?

उत्तर-पंचायत शब्द का प्रयोग पाँच पंचों के लिए होता है जो.गाँव के सामूहिक मामलों पर फैसले करती है। यह एक स्वशासी संस्था है।

प्रश्न 37. पंचायती राज संस्था की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-पंचायती राज संस्था तीन स्तरों पर कार्य करती है जो निम्नलिखित हैं : –

  1. ग्राम सभा : ग्राम सभा पंचायती राज प्रणाली की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। पंचायत क्षेत्र में रहने वाले सभी वयस्कों को मिलाकर ग्राम सभा का गठन होता है। यह वार्षिक लेखा-संबंधी कार्य करती है।
  2. खंड समिति : पंचायती राज प्रणाली की दूसरी संस्था खंड समिति है। इसके अध्यक्ष को ब्लॉक प्रमुख कहा जाता है। यह अपने क्षेत्र की विकास योजनाओं का समन्वय और पर्यवेक्षण करती है। ग्राम पंचायत के कार्यों पर निगरानी रखती है।
  3. जिला परिषद : पंचायती राज प्रणाली की सर्वोच्च संस्था जिला परिषद होती है। इसके कुछ निर्वाचित सदस्य होते हैं। जिला परिषद के कार्यों में कल्याणकारी कार्य, सामाजिक कार्य और विकासात्मक कार्य प्रमुख हैं।

संविधान के 73वें संशोधन से पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ है और उसका सामाजिक एवं आर्थिक आधार बढ़ा है।

प्रश्न 38. 73 वें संवैधानिक संशोधन (1992) की मुख्य विशेषताएं क्या हैं ?

अथवा, पंचायती राज अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?

उत्तर-1. देश में पंचायती राज प्रणाली की ग्राम, प्रखंड और जिला स्तर पर तीन स्तरीय व्यवस्था होगी।

  1. सभी पंचायतों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित होंगे। एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
  2. पंचायतों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव इस संशोधन की प्रमुख विशेषता है। 4. पंचायत का कार्यकाल पाँच वर्ष होगा।

 प्रश्न 39. ग्राम पंचायत की संरचना पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-ग्राम पंचायत के सदस्य ग्राम सभा द्वारा चुने जाते हैं। इसका एक प्रधान और एक उपप्रधान होता है। प्रधान की अनुपस्थिति में उपप्रधान कार्य करता है। ये पाँच वर्ष के लिए चुने जाते हैं। कुल सीटों में 33 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।

प्रश्न 40. स्थानीय प्रशासन किसे कहते हैं ? 

उत्तर-स्थानीय स्तर के शासन को स्थानीय प्रशासन या स्थानीय समस्याओं का निदान करता है।

प्रश्न 41. ग्राम पंचायत के विकासात्मक कार्य बताइये।

उत्तर-सड़कें बनवाना, उनकी मरम्मत और देखभाल करना, सहकारी प्रबंध को विकसित करना, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना ग्राम पंचायत के कार्य हैं।

प्रश्न 42. खंड या ब्लॉक समिति के कार्य बताइये।

उत्तर-खंड समिति अपने क्षेत्र के विकासात्मक कार्यों पर निगरानी रखती है। कृषि और सिंचाई सुविधाओं का विकास करती है।

प्रश्न 43. लोकतंत्र क्या है ? प्रत्यक्ष लोकतंत्र को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है। लोकतंत्र की दो मुख्य श्रेणियाँ हैं : प्रत्यक्ष लोकतंत्र और प्रतिनिधिक (परोक्ष) लोकतंत्र। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में सभी नागरिक, बिना किसी चयनित या मनोनीत पदाधिकारी की मध्यस्थता के सार्वजनिक निर्णयों में स्वयं भाग लेते हैं। लेकिन यह पद्धति केवल वहीं व्यावहारिक है जहाँ लोगों की संख्या सीमित हो। उदाहरणार्थ, एक सामुदायिक संगठन या आदिवासी परिषद् या फिर किसी श्रमिक संघ की स्थानीय इकाई, जहाँ सभी सदस्य एक कक्ष में एकत्र होकर विभिन्न मुद्दों पर परिचर्चा कर सकें और सर्वसम्मति या बहुत से निर्णय ले सकें।

 प्रश्न 44. मौलिक अधिकारों को संविधान में शामिल करने के आधार क्या हैं ?

उत्तर-सामाजिक परिवर्तन के अंतर्गत सभी को समान अधिकार देने के लिए संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया है। इसके मूल आधार निम्न हैं :

(i) मौलिक अधिकार संविधान के मूल तत्व हैं।

(ii) ये भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला हैं।

(ii!) मौलिक अधिकार नागरिकों को राज्य की तानाशाही के विरुद्ध संरक्षण देते हैं।

(iv) मौलिक अधिकारों ने नागरिकों और सरकार के संबंधों को निश्चित किया है।

(v) मौलिक अधिकारों ने अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान की है।

(vi) मौलिक अधिकारों से सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय व्यवस्था बनाने में सहायता प्राप्त होती है।

(vii) मौलिक अधिकार साधारण कानूनों में श्रेष्ठ हैं। .

 प्रश्न 45. संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए क्या व्यवस्था की गई है ?

उत्तर-भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 25-30 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया है। अनुच्छेद 25-28 में उन्हें मजहबी या धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार दिया है। अनुच्छेद 29-30 में उन्हें सांस्कृतिक व शैक्षणिक अधिकार (Cultural and Educational rights) दिया जाना बहुत महत्वपूर्ण है। दुनिया के दूसरे देशों में अल्पसंख्यकों को इस तरह अलग से मौलिक अधिकार नहीं दिए गए हैं।

प्रश्न 46. मूल अधिकारों के बारे में बताइए एवं उनकी सूची बनाइए।

उत्तर-भारतीय संविधान ने सभी नागरिकों को कुछ मूल अधिकार प्रदान किए हैं। वे मौलिक अधिकारों के रूप में जाने जाते हैं। वे मौलिक अधिकार इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि वे लिखित संविधान द्वारा सुरक्षित हैं तथा संवैधानिक संशोधन के बिना उनमें बदलाव नहीं किया जा सकता।

संविधान के तीसरे भाग के अनुच्छेद 12 से 35 में इनका उल्लेख किया गया है। ये निम्नलिखित हैं : 1. समानता का अधिकार।

  1. स्वतंत्रता का अधिकार।
  2. शोषण के विरुद्ध अधिकार।
  3. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।

5, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार।

  1. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 47. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर–संविधान ने राज्य के लिए नीति निर्देशक तत्वों का प्रावधान किया है। मूल अधिकारों की तरह नीति निर्देशक तत्वों की अवधारणा हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के केन्द्र में समाहित है। स्वतंत्रता के पश्चात् राज्यों द्वारा बनाई जाने वाली योजनाओं एवं कार्यों को दिशा-निर्देश देने के

लिए संविधान में इन तत्वों का समावेश किया गया है। संविधान के चौथे भाग के अनुच्छेद 36 से 51 तक उनका वर्णन किया गया है। संविधान के अनुसार, “राज्य लोगों के कल्याण को बढ़ाने के लिए एक ऐसे सामाजिक ढंग को प्रभावी ढंग से सुदृढ़ करेगा जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को संपोषित करेगा।” इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए राज्य :

  1. सभी नागरिकों के लिए आजीविका के उपयुक्त स्रोत निश्चित करेगा।
  2. लोगों के हित के लिए संपत्ति का उचित नियंत्रण और वितरण करेगा।
  3. समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करेगा।
  4. आर्थिक उन्नति द्वारा सभी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था करेगा।
  5. बाल मजदूरी पर रोकथाम करेगा।
  6. मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगा।

प्रश्न 48. किन्हीं पाँच मूलभूत कर्तव्यों की सूची बनाइये।

अथवा, भारत के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य क्या हैं ?

उत्तर-भारतीय संविधान के नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का भी निर्धारण किया है। सन् 1976 में संविधान के बयालीसवें संशोधन में अनुच्छेद 51 के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा__

_1. संविधान का पालन करना।

  1. राष्ट्र के स्वतंत्रता आंदोलन के पीछे विद्यमान भावनाओं का सम्मान तथा अनुसरण करना।
  2. देश की प्रभुसत्ता और अखंडता को बनाए रखना तथा उसकी रक्षा करना।
  3. राष्ट्र की रक्षा करना और राष्ट्र के लिए अपनी सेवा प्रदान करना।
  4. आपसी भाईचारे का विकास करना और महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुँचाने वाली किसी कार्य को न करना।
  5. पर्यावरण की सुरक्षा करना।
  6. सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना।
  7. मिली-जुली संस्कृति की समृद्ध परंपरा को सुरक्षित रखना।
  8. कार्यकलापों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना। 16. वैज्ञानिक प्रकृति व सोच को विकसित करना।

 प्रश्न 49. भारत में योजनाओं के महत्व की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-पंचवर्षीय योजनाएँ समाज में परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक हैं। यह कारक सामाजिक नीति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करता है। यह सामाजिक उद्देश्यों को प्रतिबिंबित करता है तथा सामाजिक विकास में सहायक है।

भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ स्वतंत्रता के पश्चात् आरंभ की गईं। देश के संसाधनों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विकास के मानचित्र को तैयार करने के लिए योजना आयोग का गठन किया गया।

पंचवर्षीय योजनाओं के मुख्य उद्देश्य :

  1. लोगों के जीवन-स्तर को तेजी से सुधारना।
  2. विकास की उच्च दर को प्राप्त करना।
  3. संपत्ति व आय की असमानता को कम करना।
  4. बेरोजगारी को दूर करना।
  5. मूल्य स्तर में स्थिरता बनाए रखना।
  6. कृषि और उद्योग क्षेत्र का तेजी से विकास कर विदेशों से आयात को कम करना और भुगतान संतुलन की समस्याओं को हल करना।

प्रश्न 50. महिलाओं और बच्चों के लिए क्या संवैधानिक प्रावधान हैं ?

उत्तर-भारतीय संविधान के चौदहवें अनुच्छेद में महिलाओं और पुरुषों को राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में समान अधिकार एवं अवसर प्रदान करने का उल्लेख है। पंद्रहवें अनुच्छेद में लिंग के आधार पर व्यक्ति के साथ भेदभाव पर रोक लगाई गई है। राज्य को महिलाओं के हित में अलग से नियम बनाने का अधिकार प्राप्त है। आजीविका के समान अवसर तथा समान कार्य के लिए समान वेतन देने का निर्देश राज्यों को प्राप्त है। संविधान का अनुच्छेद 42 राज्यों को काम करने योग्य उपयुक्त और मानवीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने और प्रसूति सुविधाएँ प्रदान करने का निर्देश देता है। अनुच्छेद (51 क) प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य निर्धारित करता है कि वे किसी भी ऐसे कार्य से दूर रहें जो महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाता है। • संविधान का अनुच्छेद 15(3) बच्चों के हित के लिए भी नियम बनाने का अधिकार देता है। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कार्य कराने का निषेध करता है, उन्हें कारखाने, खदान और दूसरे खतरनाक व्यवसायों में काम पर नहीं लगाया जा सकता। 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 51. भारत की नौवीं पंचवर्षीय योजना के उद्देश्य बताइये।

उत्तर-नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2001) के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे :

  1. उत्पादक रोजगार में वृद्धि तथा गरीबी उन्मूलन के लिए कृषि और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
  2. आर्थिक विकास की दर को स्थिर मूल्यों द्वारा बढ़ाना।
  3. सभी के लिए भोजन एवं पोषण सुनिश्चित करना।
  4. सभी के लिए पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ, प्राथमिक शिक्षा, मकान और संपर्क साधन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
  5. जनसंख्या के विकास की दर को नियंत्रित करना।
  6. सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन एवं विकास के लिए महिलाओं और सामाजिक रूप से वंचित अन्य वर्गों; जैसे-अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग तथा अल्पसंख्यकों का सशक्तीकरण करना।

प्रश्न 52. भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियाँ की समालोचना कीजिए।

उत्तर-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं में 56 वर्षों में काफी प्रगति हुई है। कृषि क्षेत्र में इसे महत्वपूर्ण सफलता मिली है। रोजगार के अवसरों को बढ़ाने में उतनी सफलता नहीं मिल सकी। औद्योगिक विकास की दर लगभग ठीक रही है लेकिन लघु उद्योगों को भारी झटका लगा है। लघु उद्योगों की प्रगति संतोषजनक नहीं है।

सामाजिक क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हुई है। साक्षरता की दर बढ़ी है। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों की तेजी से संख्या बढ़ी है परंतु स्वास्थ्य के क्षेत्र में अधिक प्रगति नहीं हो सकी है। अधिकतर गाँवों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है। महिलाओं की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लेकिन आज भी भारत में बड़ी संख्या में महिलाएँ निरक्षर हैं। अब महिला सशक्तिकरण की बात कही जा सकती है।

समाज के उपेक्षित वर्गों के सशक्तिकरण और उन्हें सामाजिक न्याय प्रदान करने में भी स्वतंत्रता के पश्चात् काफी कार्य किया गया है। अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए विशेष योजनाएं बनाई गई हैं। आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक तथा आर्थिक विकास को मापने का कार्य भी आरंभ किया गया। मुसलमानों, ईसाइयों, सिक्खों, बौद्धों तथा पारसियों को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग धारा 1992 के अंतर्गत अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया गया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास और वित्तीय निगम की स्थापना की गई जो बेरोजगारों को रोजगार आरंभ करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। योजनाओं के

लाभ सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी नजर आ रहे हैं। लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था ने एक नई सामाजिक व्यवस्था का निर्माण किया है जो असमानता और भेदभावपूर्ण व्यवहार को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है।

प्रश्न 53. मिश्रित अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर-भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रणाली को अपनाया गया है। इसमें निजी क्षेत्रअ और, सार्वजनिक क्षेत्र दोनों का ही अस्तित्व है। निजी क्षेत्र में छोटे और बड़े दोनों प्रकार के उद्यम सम्मिलित हैं। कृषि, आवास, निर्माण से संबंधित कार्य, उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन आदि निजी क्षेत्रों में हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में बैंक, बीमा कंपनियाँ, इस्पात-संयंत्र, भारी इंजीनियरिंग उद्योग, रेल, डाक व्यवस्था आदि सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं। टाटा, अंबानी, बिड़ला, सिंघानिया आदि निजी क्षेत्र के प्रमुख उत्पादक हैं। योजना काल के दौरान भारत में पर्याप्त औद्योगिक विस्तार हुआ है। सार्वजनिक क्षेत्र ने देश में उद्योग का आधारभूत ढाँचा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार द्वारा सिंचाई, बिजली, सड़कें, पुल, बाँध, इस्पात, कारखाने, खानों का विकास, हवाई अड्डों का निर्माण आदि सार्वजनिक क्षेत्र में किए गए हैं परंतु अब विनिवेश की प्रक्रिया शुरू हो गई है और निजीकरण की गतिविधियाँ तेज हो रही हैं।

प्रश्न 54. भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का वर्णन कीजिएं और उनकी सूची बनाइए।

उत्तर-भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित मौलिक अधिकार दिए गए हैं :

  1. समता का अधिकार : भारत में जाति, लिंग, जन्म-स्थान तथा वर्ग आदि का भेदभाव किए बिना सभी को समानता का अधिकार दिया गया है। भारत जैसे विषमताओं वाले देश में इस अधिकार का बड़ा महत्व है।

2, स्वतंत्रता का अधिकार : भारत में नागरिकों को भाषण देने की, समुदाय बनाने की, आवागमन की, निवास करने आदि की पूर्ण स्वतंत्रता है।

  1. सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार : भारत में प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा एवं संस्कृति का विकास करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है।
  2. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है अतः उसके नागरिकों को किसी भी धर्म का अनुसरण करने का अधिकार है।
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार : भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे का शोषण नहीं कर सकता। यहाँ बेगार लेने, 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को कारखाने में रखने, स्त्रियों और बच्चों को खरीदने-बेचने आदि की मनाही है।
  4. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : भारत में कोई भी नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी न्यायालय की शरण ले सकता है।

प्रश्न 55. मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अंतर बताइये।

उत्तर-मौलिक अधिकार : मौलिक अधिकार व्यवहार्य होते हैं। यदि इन अधिकारों का हनन होता है तो नागरिक उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में जा सकते हैं और अपने अधिकारों की सुरक्षा की माँग कर सकते हैं। मौलिक अधिकारों का संबंध नागरिकों या व्यक्तियों से होता है। मौलिक अधिकार सरकार पर नियंत्रण रखने का कार्य करते हैं। मौलिक अधिकार नागरिकों के सर्वांगीण विकास के अवास प्रदान करते हैं।

राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत : निर्देशक सिद्धांत व्यवहार्य नहीं है। यदि कोई सरकार इनकी अवहेलना करे तो हम न्यायालय की सहायता नहीं ले सकते। निर्देशक सिद्धांतों का संबंध सरकारी नीतियों से होता है। निर्देशक सिद्धांत सरकार से अपेक्षा करते हैं कि इन सिद्धांतों को लागू करने के लिए कदम उठायें। राज्यनीति के निर्देशक सिद्धांत महान आदर्श हैं। वे सरकार के सम्मुख लक्ष्य निश्चित करते हैं। सरकार इन लक्ष्यों को प्राप्त कर देश को कल्याणकारी राज्य बना सकती है।

प्रश्न 56. मौलिक अधिकार हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं ?

उत्तर-मौलिक अधिकार हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि :

  1. मौलिक अधिकारों के अभाव में व्यक्ति अपना सर्वांगीण विकास नहीं कर सकता।
  2. मौलिक अधिकार ही सुखी और स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने का नैतिक बल देते हैं।
  3. मौलिक अधिकार कार्यपालिका और व्यवस्थापिका की शक्तियों पर अंकुश रखते हैं।
  4. इनके द्वारा नागरिक शोषण से बचता है। .
  5. मौलिक अधिकार सभी प्रकार की स्वतंत्रताएँ नागरिकों को उपलब्ध कराते हैं।
  6. मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना को जगाते हैं।
  7. बच्चों, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण सुनिश्चित करते हैं।

प्रश्न 57. भारतीय नागरिकों को प्राप्त किन्हीं तीन स्वतंत्रताओं को उल्लेख कीजिए।

उत्तर-1. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

  1. शस्त्रहीन और शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता।
  2. भारत के किसी भी भाग में आने-जाने और रहने-बसने की स्वतंत्रता।

प्रश्न 58. शोषण के विरुद्ध अधिकार की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-इस अधिकार का उद्देश्य है समाज का कोई भी शक्तिशाली वर्ग किसी कमजोर वर्ग पर अन्याय न कर सके। इस अधिकार के अनुसार :

  1. किसी व्यक्ति को किसी भी रूप में किसी मनुष्य का शोषण करने का अधिकार नहीं है।
  2. किसी भी व्यक्ति का क्रय तथा विक्रय नहीं हो सकता है।
  3. किसी अन्य व्यक्ति से बेगार अथवा जबरदस्ती से काम नहीं लिया जा सकता है।
  4. बच्चे राष्ट्र की संपत्ति हैं, उन्हीं के विकास पर राष्ट्र का भावी विकास निर्भर है। चौदह वर्ष से कम आयु के बालकों को किसी कारखाने, खान अथवा किसी संकटपूर्ण कार्यों में नहीं लगाया जा सकता है और न ही वे इस प्रकार के कार्यों में नौकरी कर सकते हैं।

प्रश्न 59, समाज के कमजोर वर्गों को क्या सुविधाएँ प्रदान की गई हैं ?

उत्तर-समाज के कमजोर वर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए विशेष अधिकार उपलब्ध कराए गए हैं। उनके लिए शिक्षण संस्थाओं में स्थान आरक्षित किए गए हैं ताकि उनका शैक्षणिक रूप से उत्थान हो सके। विधायिका में भी स्थानों का आरक्षण किया गया है। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए विशेष रियायतें दी गई हैं। रोजगार के क्षेत्र में भी उनके लिए स्थान आरक्षित हैं। छुआछूत को दंडनीय अपराध बना दिया गया है। वे सभी सार्वजनिक स्थानों का बिना भेदभाव के प्रयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 60. भारत में सामाजिक परिवर्तन लाने में पंचायती राज व्यवस्था कितनी सफल रही है?

. उत्तर-पंचायती राज व्यवस्था ने हमारे लोकतंत्रीय राजनीतिक ढांचे में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को प्राप्त करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास की गति में तीव्रता आई है। विकास के प्रयास में लोगों की सहभागिता बढ़ रही है। इस प्रकार इस व्यवस्था ने स्वशासन के प्रक्रिया में लोगों को पूरी तरह लगा दिया है। ग्राम संबंधी निर्णय की प्रक्रिया में कमजोर वर्गों की सहभागिता को कानूनी तौर पर सुनिश्चित किया गया है। इसने पंचायती राज के सामाजिक आधार को बढ़ावा दिया है। महिलाओं की समस्याओं को उजागर करने के लिए आरक्षण के माध्यम से उनका सशक्तिकरण किया गया। आरक्षण ने पंचायतों को ग्राम समुदाय का अधिक सटीक प्रतिनिधि बना दिया है। समाज के कमजोर वर्गों को ग्राम पंचायत के कार्यकलापों में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ है। सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के लिए यह आवश्यक है कि समाज का प्रत्येक वर्ग इसमें अपनी भागीदारी निश्चित करे और निर्णय करने की भूमिका में भाग ले।

प्रश्न 61. लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर-विकेन्द्रीकरण से अभिप्राय संस्थाओं और संगठनों में निर्णय करने के अधिकार में निचले वर्गों की सहभागिता से है। इसे लोकतांत्रिक इसलिए कहा जाता है कि इस प्रकार की सहभागिता लोकतंत्र और लोकतंत्रात्मकता के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। विकेन्द्रीकरण के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप हो सकते हैं। भारत जैसे देश में जहाँ धार्मिक, भाषाई, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से विविधता पाई जाती है, भौगोलिक तथा सामाजिक जटिलताओं के कारण योजना तथा प्रशासन के लिए विकेन्द्रीकरण की अत्यधिक आवश्यकता है। यह समाज के कमजोर और वंचित सामाजिक वर्गों को शक्ति संपन्न बनाता है। स्वतंत्रता के पश्चात् लोकतंत्र के उद्देश्यों की प्राप्ति और विकास के लिए विकेन्द्रीकरण विशेष रूप से आवश्यक हो गया है।

प्रश्न 62, खंड समिति के मुख्य कार्य बताएं।

उत्तर-1. अपने क्षेत्र की विकास परियोजनाओं का समन्वय और पर्यवेक्षण करना। वार्षिक योजनाओं और अन्य कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना।

  1. ग्राम पंचायतों द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों पर निगरानी रखना।
  2. कृषि और सिंचाई सुविधाओं के विकास पर निगरानी रखना।

प्रश्न 63, जिला नियोजन अभिकरण के विकास की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर-जिला नियोजन अभिकरण में निम्नलिखित शामिल हैं :

(i) जिला योजना समिति (District Planning Committee): प्रत्येक जिले में शहरी और ग्रामीण विकास की योजनाओं को लागू करने के लिए इनका गठन किया जाता है। इनमें 80 प्रतिशत सदस्य जिले की पंचायती संस्थाओं और नगरीय संस्थाओं से निर्वाचित होते हैं। कहीं-कहीं राज्य सरकार द्वारा मनोनीत मंत्री इसका अध्यक्ष होता है। जिला परिषद और नगरीय निकाय का सदस्य मनोनीत सदस्य होता है। ग्राम पंचायतों द्वारा विकास योजनाएँ क्षेत्र पंचायतों को भेजी जाती हैं तथा वे जिला परिषदों को भेजती हैं। नगरीय संस्थाएँ सीधे ही जिला योजना समिति को भेजती हैं। जिले के विभिन्न अधिकारी नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र के विकास में योगदान करते हैं।

(ii) जिला ग्रामीण विकास अभिकरण : जिला.ग्रामीण विकास योजनाओं को लागू करता है। इसका अध्यक्ष जिले का उपायुक्त होता है और उसके अधीन जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी, कार्यक्रम अधिकारी, खंड विकास अधिकारी, तहसीलदार, कृषि अधिकारी आदि होते हैं।

(iii) पंचायती राज व्यवस्था : इसके अंतर्गत ग्राम पंचायत, खंड समिति और जिला परिषद का निर्माण किया गया है। ये संस्थाएं ग्रामीण विकास कार्य करती हैं। इनके अन्तर्गत जवाहर ग्राम समृद्धि योजना, इंदिरा विकास योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजनाएँ चलाई गई हैं। 2001 में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना तथा अम्बेडकर, वाल्मीकि योजना पंचायती संस्थाओं द्वारा लागू की गई है।

इसके अतिरिक्त मत्स्यपालन योजना, किसान विकास एजेंसी आदि के गठन से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये हैं।

 प्रश्न 64. हित समूह किसे कहते हैं ?

अथवा, . दबाव समूह से क्या अभिप्राय है ? दबाव समूहों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?

उत्तर-मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए समाज में समान हितों के मनुष्यों के साथ सहयोग करता है। इस सहयोग के परिणामस्वरूप समाज में अनेक प्रकार के समूहों का उदय होता है। उदारहणतया-शिक्षक, विद्यार्थी, दुकानदार, मजदूर आदि के विभिन्न प्रकार के हित होते हैं। जब समान हित के व्यक्ति संगठित हो जाते हैं तो उसे हित समूह कहते हैं।

समाज में विभिन्न प्रकार के हित समूह होते हैं। ये व्यक्तियों के ऐसे समुदाय या संगठन होते हैं जिनका हित एक समान होता है। उदारहण के लिए व्यापारिक समूह कृषक तथा शिक्षा संघ आदि। ये हित समूह जब-तब अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार पर दबाव बनाते रहते हैं।

दबाव समूह स्वयंसेवी संस्थाएँ होती हैं जो समाज के किसी विशेष वर्ग या वर्गों को ध्यान में रखकर बनायी जाती हैं। ये एक राजनीतिक दल से भिन्न होते हैं।

प्रश्न 65. भारत में पाये जाने वाले कुछ दबाव समूहों के नाम बताइए।

उत्तर-भारत में विभिन्न प्रकार के दबाव समूह पाये जाते हैं; जैसे-व्यापारिक समूह, किसान संघ, शक्ति संगठन, धार्मिक समूह, जाति व क्षेत्र पर आधारित समूह, गाँधीवादी विचारधारा से सम्बन्धित समूह। 1. व्यापारिक समूह में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (फिक्की )।

  1. किसान संघ में महेन्द्र सिंह टिकैत की किसान यूनियन।

3 श्रमिक संगठनों में-ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस आदि प्रमुख हैं।

 प्रश्न 66. भारत क किन्हीं दो हित समूहों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-जब समान हित के व्यक्ति संगटिर टोकर अपने हितों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं तो ऐसे संगठन को हित समह कहते हैं; जैसे

आय समाज, विश्व हिन्दू पारषद्, यग मैन क्रिश्चियन एसोसिएशन आदि।

प्रश्न 67. अखिल भारतीय स्तर के श्रमिक संघों के नाम बताइए। उनके विभिन्न दलों से सम्बन्ध भी बताइए।

उत्तर-प्रमुख अखिल भारतीय स्तर के श्रमिक संघ इस प्रा . ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर संघ, सेंट्रल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस आदि। ए.टी.ए.सी. का संबंध कांग्रेस से है। एच.एम.एस. का संबंध भारतीय जनता पार्टी से है तो सी.आई.सी का सम्बन्ध संयुक्त श्रमिक संघ से है। हिंद मजदूर सभा अब हिंद मजदूर परिषद् कहलाती है।

प्रश्न 68. भारत में किन्हीं दो हित समूहों का उल्लेख कीजिए जो धर्म पर आधारित हों।

उत्तर-जब समान हित के व्यक्ति संगठित होकर अपने हितों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं तो इस संगठन को हित समूह कहते हैं। भारत में विभिन्न प्रकार के बहुत से हित समूह पाए जाते हैं।

  1. आर्य समाज : यह हित समूह सारे भारत में फैला हुआ है और लोगों को हिन्दू संस्कृति की श्रेष्ठता के बारे में जागरूक करता रहता है।
  2. विश्व हिन्दू परिषद : यह हिन्दुओं का धार्मिक समूह है जिसका क्षेत्र पूरा विश्व है। यह परम्परा व सनातन धर्म की रक्षा करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 69. राजनीतिक दल तथा दबाव समूह में अन्तर कीजिए।

उत्तर-राजनीतिक दल और दबाव समूहों में अन्तर निम्नलिखित हैं :

  1. राजनीतिक दलों का संगठन दबाव समूहों की अपेक्षा अधिक विस्तृत होता है।
  2. दबाव समूहों का कार्यक्षेत्र राजनीतिक दलों की अपेक्षा सीमित होता है।
  3. दबाव समूह केवल सार्वजनिक नीति को अपने हित में करवाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।
  4. राजनीतिक दलों की तरह दबाव समूह चुनाव में भाग नहीं लेते ।
  5. दबाव समूहों की सदस्यता परस्पर व्यापी (Over lapping) होती है।
  6. दबाव समूह प्रचार, प्रस्ताव जैसे माध्यमों से अपना हित साधन करते हैं जबकि राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए अनेक साधनों का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 70. भारत में ‘दबाव समूहों का उद्गम’ पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-भारत में दबाव समूहों की उत्पत्ति : भारत में दबाव समूहों की उत्पत्ति प्रारम्भ में ‘एके दबाव समूह के रूप में हुई थी जिसका उद्देश्य ब्रिटिश प्रशासन पर अपने अधिकारों की मांग रखने का कार्यक्रम होता था। इसके बाद विभिन्न ट्रेड यूनियन, कृषक संघ तथा व्यापारिक संघों

का जन्म हुआ। युवा संगठन तथा जाति और समुदाय के संगठनों का उदय हुआ। विभिन्न प्रकार के हितों की पूर्ति हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार के दबाव समूह बनते गये इन्हें चार श्रेणियों में रखा जा सकता है

  1. संस्थागत समूह, 2. व्यावसायिक समूह, 3. सामाजिक समूह, 4. तदर्थ समूह।

 प्रश्न 71. व्यापारिक समूह पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

उत्तर-वाणिज्य समूह : वाणिज्य समूहों की स्थापना स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही हो गई थी। वर्तमान समय में फिक्की (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैमबर ऑफ कॉमर्स एंड इण्डस्ट्री) निजी पूँजी का सबसे प्रभावशाली संगठन है। इसकी स्थापना सन् 1920 में हुई थी। फिक्की सरकार की वित्तीय नीतियों को प्रभावित करता है। जिन देशों में मिश्रित अर्थव्यवस्था होती है वहाँ व्यापारिक समूह बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 72. संस्थागत समूह पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-संस्थागत समूह : इसके अन्तर्गत प्रशासनिक सेवा संगठन, पुलिस कल्याण संगठन, प्रतिरक्षा, धार्मिक संगठन आदि प्रमुख हित समूह हैं। ये सभी समूह अपने सदस्यों के हितों के लिए सरकारी मशीनरी द्वारा ही दबाव डालने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 73. फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-भारत में फेडरेशन ऑफ इण्डियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री (अर्थात् फिक्की) लगभग चालीस हजार से अधिक प्रतिष्ठानों का नेतृत्व करता है। इस हित सूमह की स्थिति इतनी शक्तिशाली है कि वित्तमंत्री का चुनाव फिक्की की सहमति पर होता है। ऐसा सोचना भले ही अधिक उचित न हो परन्तु इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि फिक्की व्यापरियों व पूँजीपतियों के हितों की रक्षा करता है तथा अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार पर प्रभावशाली दबाव डालता है। इसका मुख्य तर्क यह है कि भारत के 20 बड़े औद्योगिक घरानों की कुल सम्पत्ति तीस हजार करोड़ रु. से भी अधिक है।

प्रश्न 74. अखिल भारतीय किसान सभा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर-स्वतंत्रता से पहले ही कृषकों से संबंधित हित समूह बनने लग गए थे। ऑल इंडिया किसान सभा की स्थापना सन् 1936 ई. में हुई थी। शीघ्र ही उस पर साम्यवादियों का नियंत्रण स्थापित हो गया था। आज स्थिति यह है कि लगभग सभी राजनीतिक दलों की माँग व अभिव्यक्ति किसानों की ओर रहती है क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए किसान सभाओं का यहाँ अत्यधिक महत्व है।

प्रश्न 75. प्रजातंत्र में दबाव समूह का क्या महत्त्व है ? = [M.Q.2009 A]

उत्तर-दबाव समूह का अस्तित्व और महत्त्व प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ही है, अन्यत्र नहीं। दबाव समूह हमलोगों के वैसे समूह को कहते हैं जो किसी खास समस्या से जुड़े होते हैं और सरकार या समाज पर दबाव डालकर हर हाल में अपनी उद्देश्य की प्राप्ति चाहते हैं। स्वतंत्र भारत में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में हमें दबाव समूह का अस्तित्व देखने को मिलता है चाहे वह रामजन्मभूमि या बाबरी मस्जिद का मसला हो या कावेरी जल विवाद का या अलग की माँग का। वर्तमान में आंध्र प्रदेश में अलग तेलंगाना राज्य की मांग में दबाव समूह की भूमिका देखी जा सकती है। इसी तरह महिला आरक्षण के लिए महिलाओं का दबाव समूह भी कार्यरत दिखता है। उपनिवेशवाद का संबंध साम्राज्यवादी व्यवस्था से रहा है। साम्राज्यवाद की नीति रही है अपनी साम्राज्य का विस्तार करना जिसके अंतर्गत वे किसी दूसरे देश पर राजनैतिक अधिकार जमाकर उसका आर्थिक शोषण करना। इंगलैंड, फ्रांस आदि यूरोपीय देश उपनिवेशवाद के पोषक रहे हैं। इंगलैंड ने भारत को अपना उपनिवेश बनाया यानी इस पर राजनैतिक स्वामित्व प्राप्त कर इसका भरपूर अश शोषण किया।

प्रश्न 76. संविधान की जरूरत हमें क्यों हैं ?

उत्तर-किसी भी देश का संविधान लिखित नियमों का एक दस्तावेज होता है जिसे देश की जनता स्वीकार करती है और उसी के आधार पर शासन और प्रशासन चलाया जाता है। संविधान की जरूरत प्रजातांत्रिक देश में होती है क्योंकि___

(i) यह लोगों में न केवल विश्वास जगाता है बल्कि भिन्न-भिन्न तरह के लोगों में सम्बन्ध स्थापित कर उन्हें एक साथ जीवन जीने के माहौल प्रदान करता है।

(ii) संविधान यह स्पष्ट करता है कि सरकार का निर्माण कैसे होगा और निर्णय का अधिकार किसके हाथों में होगा।

(iii) संविधान न केवल सरकार की शक्ति का निर्धारण करती है बल्कि लोगों के अधिकारों को भी परिभाषित करती है ताकि एक अच्छे समाज का निर्माण हो सके।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ।

(Long Answer Type Questions)

 प्रश्न 1. भारतीय संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का वर्णन कीजिए।

उत्तर-समानता का अधिकार : भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता या कानून के सामने संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। संविधान के अनुसार भारतीय संघ के समस्त नागरिक समान होंगे। नागरिकों में धर्म, जाति, रंग तथा लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा। समानता के अधिकार के अंतर्गत नागरिकों को निम्नलिखित समानतायें प्रदान की गई हैं :

  1. भेद भाव की समाप्ति : नागरिकों से धर्म, जाति, वर्ग, रंग तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। सभी वयस्क नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान किया गया है।
  2. सरकारी पद प्राप्त करने की समानता : सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी पद प्राप्त करने के अवसर प्रदान किया जायेगा। संविधान के अनुच्छेद 16(1) के अनुसार, समस्त नागरिकों के लिए सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए समान अवसर प्राप्त होंगे। अनुच्छेद 16(2) में कहा गया है कि केवल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर किसी नागरिक के लिए अयोग्यता न होगी तथा न विभेद ही किया जायेगा।
  3. अस्पृश्यता की समाप्ति : भारतीय संविधान द्वारा अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है। किसी भी रूप में अस्पृश्यता को मानना कानूनी अपराध है। यह सत्य है कि अस्पृश्यता की समाप्ति द्वारा किसी विशेष अधिकार की व्यवस्था नहीं की गई है, किंतु फिर भी अनुच्छेद 17 के परिणामस्वरूप भारतीय जनता के लगभग छठे भाग को एक दलित व्यवस्था से मुक्ति मिलती
  4. उपाधियों की समाप्ति : संविधान द्वारा सभी प्रकार की उपाधियों का अंत कर दिया गया है। कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी विदेशी सरकार से उपाधि प्राप्त नहीं करेगा। शिक्षा तथा राजनीति के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए ही उपाधियाँ प्रदान की जायेंगी। ____5. सार्वजनिक स्थानों का सभी के लिए खुला होना : प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग कर सकता है।

प्रश्न 2. संवैधानिक उपचारों के अधिकार से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर-संवैधानिक उपचारों का अधिकार : संवैधानिक सुरक्षा के अभाव में मूल अधिकार निरर्थक हो जाते हैं। जी. एन. जोशी के अनुसार, “मौलिक अधिकारों की केवल घोषणा करने तथा जिन्हें संविधान में सन्निहित करने से कोई लाभ नहीं है, जब तक कि उनकी सुरक्षा की प्रभावपूर्ण तथा सरल व्यवस्था न की जाए।”

अतः राज्य या नागरिक द्वारा संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का यदि उल्लंघन किया जाता है, तो उनकी रक्षा हेतु दी गई व्यवस्था को संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहा गया है। यदि नागरिकों के मूल अधिकारों में बाधा उपस्थित की जाती तो वे उच्चतम न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय में अपने अधिकारों की रक्षा हेतु जा सकते हैं। न्यायालय द्वारा संवैधानिक उपचार के अंतर्गत निम्नलिखित लेख जारी किये जा सकते हैं :

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण : इस लेख का अर्थ है, ‘बंदी के शरीर को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करो।’ यह अवैध रूप से बंदी किये गये व्यक्तियों की सुरक्षा करता है।
  2. परमादेश : इस लेख के अन्तर्गत न्यायालय द्वारा किसी भी अधिकारी या संस्था को अपने कर्तव्यपालन करने का आदेश दिया जा सकता है।
  3. प्रतिषेध : इस लेख के अंतर्गत न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति अथवा संस्था को उस कार्य को रोकने का आदेश दिया जा सकता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत न हो।
  4. उत्प्रेक्षण लेख : इसका अर्थ है पूर्ण रूप से सूचित करना। इस लेख के अंतर्गत उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय से कोई भी रिकॉर्ड माँग सकते हैं।
  5. अधिकार पृच्छा : अधिकार पृच्छा लेख किसी व्यक्ति के किसी पद पर रहने के अधिकार की जाँच करने के उद्देश्य से जारी किया जाता है। इसके अंतर्गत माँग की जाती है कि वह उस अधिकार को प्रस्तुत करे, जिसके अंतर्गत वह पदाधिकारी बना है।

प्रश्न 3. मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अंतर स्पष्ट कीजिए। ___

उत्तर-1. विषय-वस्तु में अंतर : मौलिक अधिकारों का विषय व्यक्ति है, जबकि नीति-निर्देशक तत्वों का विषय राज्य है।

  1. स्थायित्व में अंतर : मौलिक अधिकारों को कुछ परिस्थितियों में मर्यादित, सीमित, निलंबित या स्थगित किया जा सकता है, परंतु नीति निर्देशक तत्वों के साथ ऐसी कोई बात नहीं है।
  2. निर्माण में अंतर : मौलिक अधिकार नागरिकों को प्रत्यक्षतः संविधान द्वारा प्रदान किये गए हैं, लेकिन निर्देशक तत्वों का उपभोग वे राज्य-विधि के आधार पर ही कर सकते हैं।
  3. क्षेत्र में अंतर : निर्देशक तत्वों की विषय-वस्तु का क्षेत्र मौलिक अधिकारों से अधिक व्यापक है। मौलिक अधिकार राज्य-क्षेत्र के अंतर्गत व्यक्ति तक ही सीमित हैं, जबकि निर्देशक तत्वों में अंतर्राष्ट्रीय महत्व के सिद्धांतों की भी चर्चा की गई है।
  4. स्वरूप में अंतर : अंत में यदि मौलिक अधिकारों का अध्याय साध्य है, तो निर्देशक तत्वों का अध्याय साधन है। अगर एक उत्तम जीवन का दर्शन है तो दूसरा उसका व्यावहारिक स्वरूप है।

मौलिक अधिकारों व निर्देशक तत्वों में से कोई अंतर्विरोध नहीं पाया जाता है। दोनों का एक ही उद्देश्य है-व्यक्ति का विकास व जन-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना। पायली का मत है, “वास्तव में दोनों के बीच किसी प्रकार का संघर्ष नहीं हो सकता है। इनका परस्पर घनिष्ठ संबंध है। ये एक-दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते हैं।”

प्रश्न 4. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में समाजवादी सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-समाजवादी सिद्धांत : अधिकांश निर्देशक तत्व एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करते हैं। इस प्रकार राज्य का आधार समाजवाद होगा।

  1. सभी नागरिकों को समान रूप से जीवन-निर्वाह के पर्याप्त साधन प्राप्त हो सकें।
  2. सार्वजनिक कल्याण के लिए समाज के भौतिक साधनों का स्वामित्व और नियंत्रण का समुचित वितरण हो।
  3. सार्वजनिक हित के विरुद्ध धन के केन्द्रीयकरण को रोका जाये।
  4. पुरुषों तथा स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले।
  5. शिशु और किशोरावस्था को शोषण तथा नैतिक और भौतिक परित्याग से संरक्षण प्राप्त हो।
  6. 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा अत्यधिक सुरक्षा संबंधी दो और निर्देशक तत्व जोड़े गये हैं। ये निर्देशक तत्व कमजोर वर्गों के लिए नि:शुल्क कानूनी सहायता और औद्योगिक संस्थाओं के प्रबंध में कर्मचारियों को भागीदार बनाने की समस्या से संबंधित हैं।

निःसंदेह उपर्युक्त नीति-निर्देशक तत्व एक समाजवादी राज्य की स्थापना करना चाहते हैं।

 प्रश्न 5. बौद्धिक उदारवादी राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-बौद्धिक उदारवादी सिद्धांत : इस वर्ग में वे तत्व रखे जा सकते हैं जिन पर उदारवादियों का प्रभाव पड़ता है:

(i) राज्य सभी बच्चों को चौदह वर्ष की अवस्था तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था करेगा।

(ii) राज्य कृषि एवं पशुपालन का आधुनिक तथा वैज्ञानिक ढंग से संगठन करेगा।

(iii) राज्य नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।

(iv) राज्य देश की कार्यपालिका से न्यायपालिका को पृथक् करेगा।

(v) अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की उन्नति, राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करने के लिए प्रोत्साहन देगा।

प्रश्न 6. हित समूहों व दबाव समूहों में अंतर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-हित समूह और दबाव समूह समान प्रकृति और प्रवृत्ति के होते हुए भी दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं। समाज में किसान, श्रमिक, भूमिपति, मिल-मालिक, शिक्षक, व्यवसायी आदि के विभिन्न प्रकार के हित पाए जाते हैं। हर वर्ग के हित में कई छोटे-छोटे हित शामिल होते हैं। जब कोई छोटा अथवा बड़ा हित संगठित रूप धारण कर लेता है, तो उसे हित समूह कहा जाता है जिसका उद्देश्य अपने सदस्यों के सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक हितों की रक्षा करना है।

हित समूह और दबाव समूहों में भिन्नता :

  1. हित समूह का प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से सम्बंध नहीं होता जबकि समूह का राजनीति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

2.दोनों में पहला अन्तर कार्यविधि का होता है। हित समूह अपने हितों की वृद्धि या रक्षा के लिए मुख्यतया प्रेरक साधनों (Presurastive methods) का प्रयोग करते हैं, जबकि दबाव सह विशेष कर दबाव की तकनीकों (Presurising teachniques) का सहारा लेते हैं।

  1. हित समूह अपने हितों की रक्षा के लिए शासन प्रक्रिया को प्रभावित करने का लक्ष्य नहीं रखत परन्तु दबाव समूह राजनीतिक प्रक्रिया प्रभावित करने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते हैं।

प्रश्न 7. भारत में पाए जाने वाले व्यावहारिक समूहों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।

उत्तर-जहाँ मुक्त या मिश्रित अर्थव्यवस्था होती है, वहाँ व्यापारिक समूह बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीयों ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए सन् 1887 में भारतीय वाणिज्य मंडल का गठन किया। इस संस्था का कार्यक्षेत्र केवल बंगाल तक ही सीमित था। सन् 1907 में मुम्बई के व्यापारियों ने इसी प्रकार का एक संगठन बनाया। इसके बाद सन् 1909 में दक्षिण भारत में एक वाणिज्य मंडल की स्थापना की गई। भारत के विभिन्न वाणिज्य मंडल एक केन्द्रीय संगठन द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं जिसे ‘भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल संघ’ अर्थात ‘फिक्की’ कहते हैं। इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है। भारत के लघु निर्माताओं व उत्पादकों के केन्द्रीय संगठन का नाम ‘अखिल भारतीय निर्माण संघ’ है। फिक्की बड़े-बड़े व्यापारिक घरानों टाटा, बिड़ला, गोयनका, डी. सी. एम. डालमिया और हिन्दुस्तान लीवर्स आदि का भी प्रतिनिधित्व करती है और निर्माताओं के हितों की भी रक्षा करती है। ये संगठन सरकार की औद्योगिक नीति को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।

प्रश्न 8. भारत में श्रमिक संघों का विकास और उनकी भूमिका बताइए।

उत्तर-भारत में भी अन्य विकासशील देशों की भाँति अनेक श्रमिक संघ सक्रिय रहे हैं

  1. भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस।
  2. अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस।
  3. हिन्द मजदूर सभा। .
  4. संयुक्त श्रमिक संघ।
  5. सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन।
  6. भारतीय मजदूर संघ।
  7. राष्ट्रीय मजदूर संगठन।
  8. संयुक्त श्रमिक संघ कांग्रेस (L.S.)।
  9. भारतीय श्रमिक संघों का राष्ट्रीय मोर्चा।

ट्रेड यूनियनों का देश की राजनीति पर अत्यंत प्रभाव है, परन्तु वे अभी तक अपने स्वतंत्र अस्तित्व का विकास नहीं कर सके हैं और न ही अपने कोई सर्वमान्य आचारसंहिता बना सके हैं। अतः ट्रेड यूनियन न तो पूरी तरह दबाव समूह की ही भूमिका निभाते हैं और न ही राजनीतिक दलों की तरह कार्य करते हैं। ट्रेड यूनियनों का अभी तक केवल श्रमिक वर्ग के एक छोटे से भाग में ही अस्तित्व है। श्रमिकों का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है जो प्राय असंगठित है परन्तु संगठित श्रमिक जो प्रायः महानगरों में रहते हैं उनके संघों (यूनियन्स) ने सामाजिक और राजनीतिक जागरुकता पैदा करने में तथा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने में अहम् भूमिका निभायी है। श्रमिक संघों की शक्तिशाली भूमिका के कारण ही कोई भी सरकार उनके हितों की अनदेखी करने की स्थिति में नहीं होती है।

प्रश्न 9. आप कृषक और किसानों के समूह से क्या समझते हैं ? भारत में इनकी भूमिका का वर्णन कीजिए।

उत्तर-भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने जमींदारी उन्मूलन किया तथा सामुदायिक योजनाओं और विभिन्न उपायों से किसानों में राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना का मंत्र फूंका और अब किसान तथा ग्रामीण समाज भूस्वामियों तथा जमींदारों के शोषण से लगभग मुक्त हैं। किसान समूहों को दो भागों में बाँटा जाता है। किसान आन्दोलन में भारतीयय किसान यूनियन उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में तथा शेतकारी संगठन महाराष्ट्र और कर्नाटक में, रियोता संघ (Ryota Sangh) कर्नाटक में सक्रिय है। एक अन्य वर्ग छोटे किसान, खेतिहर मजदूर आदि की स्थिति कमजोर है। वे सरकारी नीतियाँ प्रभावित करने में सक्षम नहीं हैं।

प्रश्न 10. भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को भारत के कुछ प्रमुख दबाव समूहों ने किस प्रकार प्रभावित किया है ?

उत्तर-आधुनिक राजनीतिक युग की महत्वपूर्ण देन हित व दबाव समूहों का विकास है जो आजकल सभी लोकतंत्रीय देशों में पाए जाते हैं। जब समान हित के व्यक्ति संगठित होकर अपने हितों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं तो उस संगठन को हित समूह कहा जाता है। जब हित समूह अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार से सहायता चाहने लगते हैं और व्यवस्थापिका के सदस्यों को इस रूप में प्रभावित करने लगते हैं कि उन्हीं के हित के लिए कानून बनाए जायें तो उन्हें दबाव समूह कहा जाता है।

भारत में कई प्रकार के दबाव समूह कार्यरत हैं जैसे-‘भारतीय वाणिज्य मंडल’ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industries)-(FICCI), अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस, हिंद मजदूर संघ, किसान संगठन, सांप्रदायिक व धार्मिक समूह इत्यादि।

इन दबाव समूहों ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को निम्नलिखित तरीके से प्रभावित किया है:

  1. भारत के विभिन्न श्रमिक संगठनों ने श्रमिकों, आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए सरकार को प्रभावित करके कई प्रकार के कानून बनवाए हैं।
  2. भारत के व्यापारिक समूहों ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए सरकार की औद्योगिक नीति को प्रभावित किया है और अपने पक्ष में कानून बनवाए हैं।
  3. भारत में समय-समय पर कई धार्मिक समूहों ने सरकार पर दबाव डालकर अपने हितों की रक्षा के लिए कानून बनवाए हैं।

प्रश्न 11. भारतीय राजनीति में जाति हित समूह की विवेचना कीजिए।

उत्तर-भारत में जाति हित समूहों ने राजनीति को अत्यधिक प्रभावित किया है। भारत की राजनीति कठोर जाति प्रथा के शिकंजे में जकड़ी हुई है। यहाँ चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष न हो सकने का एक बड़ा कारण जाति हित समूह या जाति दबाव समूह भी हैं। सभी जातियों तथा

स्वतंत्र निर्णय के अनुसार नहीं करते बल्कि अपनी जातीय पंचायत या समुदाय के निर्णय के अनुसार करते हैं। परिणाम यह हुआ है कि सभी राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चयन करते हुए यह देखते हैं कि जिस जाति के मतदाता उस क्षेत्र में अधिक हैं उसी जाति का व्यक्ति दल द्वार अपना प्रत्याशी घोषित किया जाता है। मंत्रिमंडलों का निर्णय करते समय भी प्रधानमंत्री तथा राज्यों के मुख्यमंत्री जाति के आधार पर ही निर्णय लेते हैं और सभी जातियों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाता है। किसी जाति के विधायक को मंत्रिमंडल में लेते समय उसके व्यक्तिगत गुणों और योग्यताओं को इतना महत्व नहीं दिया जाता। बहुत से ऐसे उदाहरण दिये जा सकते हैं जबकि बड़े-बड़े राष्ट्रीय नेताओं की योग्यता भी यही थी कि वे किसी जाति के एकमात्र नेता माने जाते हैं। इन बातों से स्पष्ट है कि जाति ने हित समूह के रूप में भारतीय राजनीति को काफी प्रभावित किया है। सरकार की नीतियाँ तथा कानून निर्माण जाति आधार पर बने या उसमें परिवर्तन हुए।

प्रश्न 12. हमारे समाज में दबाव समूहों की भूमिका का विवेचन कीजिए।

उत्तर-भारत में हित समूह तथा दबाव समूह अपने हितों की सुरक्षा के लिए राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। वे अपने कार्यों द्वारा शासन पर प्रभाव डालते हैं तथा जनमत को प्रभावित करते हैं। बड़े-बड़े दबाव समूह चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। ये अपने विचारों का समर्थन करने वाले उम्मीदवारों को खड़ा करके उन्हें किसी दल का टिकट दिलवाने व उसे सफल करवाने का प्रयत्न करते हैं। दबाव समूह सकार की नीतियों को प्रभावित करने के लिए दबाव का सहारा लेते हैं और विधायकों को किसी बिल के पक्ष या विपक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं। दबाव समूह कई बार अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए हड़ताल, बन्द, घेराव, प्रदर्शन आदि का भी सहारा लेते हैं। ये मंत्रियों तथा सरकारी अधिकारियों से सम्पर्क करते रहते हैं। प्रचार साधनों के माध्यम से जनमत को अपने पक्ष में करते हैं। वकीलों एवं अन्य सहायकों की सहायता लेकर न्यायालयों में अपने पक्ष में कानूनों को चुनौती देत हैं।

प्रश्न 13. भारत में दबाव गुटों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

उत्तर-भारत में दबाव गुट काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं परन्तु अनेक कार्यों की कुछ आधारों पर आलोचना की जाती है। प्रथम दबाव गुट घूसखोरी या अन्य साजिशों के जरिए पदाधिकारियों को भ्रष्ट करने का प्रयास करते हैं। दूसरे जो समुदाय या संघ शक्तिशाली होते हैं वे अपनी बात मनवा लेते हैं, जबकि शेष वर्गों की सुनवाई नहीं हो पाती। इस दृष्टि से स्थानीय नागरिक की स्थिति दयनीय है। उत्पादक वर्ग और मजदूर संघ अपनी ऐसी मांगों को भी मनवा लेते हैं जो उपभोक्ताओं के हित में न हों। तीसरे राजनीतिक दलों की तरह दबाव गुटों और विशेषकर मजदूर संघों में दादागीरी चलती है। मजदूर यूनियनों के बहुत से नेता अपनी स्वार्थ पूर्ति में ही लगे रहते हैं।

गतिविधियों पर अंकुश का कार्य करते हैं

  1. जा सिविल कर्मचारी या जन नेता निष्पक्ष व ईमानदार होते हैं उन पर ये गुट अनुचित दबाव नहीं डाल सकते।
  2. कई दबाव गुट परस्पर एक-दूसरे के विरोधी होते हैं। मालिकों और मजदूरों के हित आपस में टकराते हैं तथा उत्पादक और उपभोक्ता के हित परस्पर एक-दूसरे के विरोधी हैं। .
  3. भारत में समय-समय पर ऐसे कई कानून बनाए गये हैं जो दबाव गुटों की अनुचित गतिविधियों पर अंकुश लगाते हैं। जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम तथा आवश्यक सेवा अधिनियम आदि।

संक्षेप में कोई भी लोकतंत्रीय सरकार हित समूहों पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती है। वे तो राजनीतिक व्यवस्था का अनिवार्य अंग हैं और लोकतंत्र की भावना के सर्वथा अनुकूल हैं।

प्रश्न 14. सामाजिक अथवा पहचान पर आधारित दबाव समूह से आप क्या समझते हैं ? भारत में इस प्रकार के समूहों का उदाहरण दीजिए।

उत्तर-भारतीय संविधान में राजनीतिक सत्ता का अन्तिम स्रोत जनता को माना गया है। परिणामस्वरूप राजनीतिक दलों ने विभिन्न वर्गीय हितों के आधार पर संगठित होना आरम्भ कर दिया। भारत में व्यापारिक, आर्थिक, जातीय तथा साम्प्रदायिक हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों का निर्माण हुआ। भारत में जाति एवं धर्म पर आधारित दबाव समूहों का भी उल्लेख किया जा सकता है। ये मूलतः सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाएँ हैं। सांस्कृतिक दबाव समूहों के रूप में भारत-चीन मैत्री समाज, अखिल भारतीय शान्ति परिषद आदि तथा जातीय एवं धार्मिक दबाव समूहों में भारतीय ईसाइयों के अखिल भारतीय सम्मेलन, आर्य प्रतिनिधि सभा, मारवाड़ी एसोसिएशन, हरिजन सेवक संघ, वैश्य महासभा आदि आते हैं। ये दबाव समूह अपनी जाति और सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए प्रयासरत रहते हैं। धार्मिक समूहों मुस्लिम लीग मुसलमानों में तथा अकाली दल सिक्खों में एक दबाव समूह के रूप से अधिक कार्यशील रहे हैं।

प्रश्न 15. इस समय भारत में कितने प्रकार के दबाव समूह कार्यरत हैं ? उनमें से किन्हीं . दो के स्वरूप तथा कार्यप्रणाली पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर-भारत में विभिन्न प्रकार के दबाव समूह पाए जाते हैं, जो निम्नलिखित हैं :

  1. व्यापारिक समूह
  2. Sarmik Sanghathan
  3. किसान संघ
  4. धार्मिक समूह
  5. जाति व क्षेत्र पर आधारित समूह
  6. गाँधीवादी विचारधारा से सम्बन्धित समूह।
  7. किसान संघ (Farmer’s Association) : यद्यपि भारत कृषि प्रधान देश है और भारतवासियों का मुख्य पेशी कृषि है तथापि कृषक समस्याएँ भी अनेक हैं। कृषि और कृषक समस्याओं का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। विडंबना यह है कि भारतीय कृषक अशिक्षित, असंगठित व रूढ़िवादी हैं। उनके संगठनों का प्रभाव शून्य है। प्रथम महायुद्ध के बाद किसानों में भी जागृति आई। सन् 1917-18 में बिहार के चम्पारन जिले में किसानों ने नील-बगीचों के मालिकों (Indigo planters) के विरुद्ध संघर्ष किया। सन् 1919 के असहयोग आन्दोलन के दौरान कई जगहों पर किसानों ने वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में एक बड़ा आन्दोलन किया था। सन् 1927 में बिहार किसान सभा और सन् 1935 में उत्तर प्रदेश किसान सभा की नींव डाली गई। सन् 1937 में ही प्रान्तीय विधान सभाओं के लिए जो चुनाव हुए उनमें कांग्रेस की विजय के लिए काफी हद तक किसान संगठन उत्तरदायी थे। अप्रैल 1987 में गुजरात में किसान आंदोलन चला। उन्हीं दिनों उत्तर प्रदेश के किसानों ने भी शामली ने एक बड़ा आन्दोलन किया। किसानों की माँग थी कि गाँवों में बिजली की पर्याप्त सप्लाई और कृषि पैदावार की लाभप्रद कीमतें मिलें। किसानों ने अपनी लड़ाई वहाँ स्वयं लड़ी और सफल रहे।
  8. जाति व क्षेत्र पर आधारित समूह (Interest groups based on caste and region) : भारत में व क्षेत्रों पर आधारित दबाव समूह अधिक शक्तिशाली हैं। कोई भी राजनीतिक दल उनकी उपेक्षा नहीं कर पाता। मंत्रिमंडल के निर्माण में जाति व क्षेत्र के प्रतिनिधित्व का विशेष ध्यान रखा जाता है। एक जाति के लोग अपने हितों के संरक्षण व संवर्धन के लिए अनेक प्रयास

करते हैं-विद्यालय खोलते हैं, छात्रावास बनवाते हैं। इनमें अपनी जाति के लोगों को वरीयता दी जाती है। अनुसूचित जाति व जनजातियों को संरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति संघ कार्यरत है।

क्षेत्रवाद भी एक विशिष्ट दबाव समूह है। विभिन्न क्षेत्रों की विशेष स्थिति की उपेक्षा नहीं की जा सकती। मध्य प्रदेश में वनवासी क्षेत्र, आन्ध्र में तेलंगाना, नक्सलवादी, बिहार में झारखंड, केरल में मुस्लिम बहुल क्षेत्र तथा दार्जिलिंग क्षेत्र में गोरखा पृथक राज्य के लिए किए जा रहे आन्दोलन आदि अनेक इस प्रकार के क्षेत्रीय दबाव गुट हैं जो प्रान्तीय राजनीति को प्रभावित करते हैं।

 प्रश्न 16. हित समूह प्रकार्यशील लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। चर्चा कीजिए।

उत्तर-हित समूह अपने हितों की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित साधनों का प्रयोग करते हैं :

  1. जनमत का निर्माण (Formation of public opinion): हित समूह विभिन्न प्रश्नों के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित करके जनमत का निर्माण करने में सहायता करते हैं। इसलिए वे समाचार पत्रों में लेख लिखवाते हैं, पोस्टर निकलवाते हैं तथा रेडियो, दूरदर्शन द्वारा प्रचार करवाते हैं।
  2. समाचार पत्रों पर नियंत्रण (To control on the Newspaper): हित समूह जनमत को अपने पक्ष में करने में लिए समाचार पत्रों पर नियंत्रण रखते हैं जिससे कि उनके हितों का प्रचार हो सके।
  3. चुनावों में सक्रिय योगदान (Active role in Election) : यद्यपि हित समूह राजनीति से दूर रखते हैं परंतु वे सभी दलों में अपनी सांठ-गांठ बनाए रखते हैं। जो भी दल चुनाव जीतता है वह उनके हितों के विरुद्ध कार्य नहीं करता।
  4. नौकरशाही पर दबाव डालना (To pressure on bureaucracy): हित समूहों के प्रतिनिधि नौकरशाही के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों के साथ संपर्क बनाए रखते हैं तथा अनुचित ढंग से उनको प्रभावित करके शासकीय नीति को अपने पक्ष में बनवाने का प्रयत्न करते रहते हैं।
  5. मंत्रियों को प्रभावित करना (To influence the ministers): जिन देशों में ससंदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई है वहाँ हित समूह मंत्रियों को प्रभावित करके शासकीय नीति को अपने पक्ष में करवाने का प्रयत्न करते रहते हैं कि उनके हितों के रक्षक व्यक्तियों को मंत्री बनाया जाए।
  6. हड़ताल तथा प्रदर्शन (Strike and Rallies) : कई बार हित समूह अपने हितों के लिए हड़ताल करवाते हैं तथा प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं जिससे शासन पर दबाव पड़ सके। विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा इस प्रकार के कार्य इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि हित समूह सरकार में शामिल न होकर भी लोकतंत्र में अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न 17. क्या आपने बाल मजदूर और किसान संगठन के बारे में सुना है ? उनके बारे में 200 शब्द लिखिए।

उत्तर-1. किसान संगठन (The Peasants Organisation) : सन् 1919 के असहयोग आन्दोलन के दौरान कई स्थानों पर किसानों ने लगान देने से मना कर दिया। गुजरात में सरदार पटेल ने बारदोली में किसान आंदोलन चलाया। सन् 1927 में बिहार किसान सभा तथा 1935 में अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना हुई परन्तु मजदूर आन्दोलन के मुकाबले किसान आन्दोलन शिथिल रहा है। आजकल किसान आन्दोलन में तेजी आने लगी है। महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आन्दोलन समय-समय पर प्रदेश के किसानों की समस्याओं को लेकर होत रहे हैं, महाराष्ट्र में शरद जोशी के नेतृत्व में आन्दोलन चलाया गया है। इसी प्रकार पंजाब, हरियाणा आदि प्रान्तों में भी किसान आन्दोलन सक्रिय हैं। ये किसान सभाएँ दबाव गुट की तरह की कार्य करती हैं।

  1. बाल मजदूर (Child Labour) : भारत में बाल-मजदूरी एक प्रमुख समस्या है। संविधान द्वारा बाल मजदूरी में गैर-कानूनी घोषित किया गया है। इसके लिए कई अधिनियम बनाए

गए हैं जिनके अंतर्गत 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को किसी खतरनाक कार्य में लगाना दंडनीय अपराध है। इसके बावजूद हमारे देश में बाल मजदूरी की संख्या सर्वाधिक है। अनेक देशों में बाल मजदूरी को प्रोत्साहित करने के लिए भारत कुछ उत्पादों जैसे कालीन, गलीचे आदि आयात स्थगित कर दिया है क्योंकि इन उद्योगों में सर्वाधिक बाल मजदूर लगे हैं। सरकार ने इस दिशा में काफी प्रयास किए हैं और बच्चों को शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराई है ताकि वे इधर-उधर न भटककर स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करें। स्वयंसेवी संगठन भी इस दिशा में अनेक सकारात्मक कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 18. भारत में जैसे आधुनिक लोकतंत्रीय राज्यों में हित व दबाव समूहों द्वारा कौन-कौन प्रमुख कार्य किए जाते हैं ? 

उत्तर-मानव अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समाज में हितों के मनुष्यों के साथ सहयोग करता है। इस सहयोग के परिणामस्वरूप समाज में अनेक प्रकार के समूहों का उदय होता है। जब समान हितों के व्यक्ति संगठित हो जाते हैं तो उसे हित समूह (Interest Groups) कहा जाता है। इसका उद्देश्य अपने सदस्यों के विविध सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक हितों की रक्षा करना होता है। जब हित समूह अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकार से सहायता चाहने लगते हैं और व्यवस्थापिका के सदस्यों को इस रूप से प्रभावित करने लगते हैं कि उन्हीं के हित के कानून बनाए जायें तो उन्हें दबाव समूह कहा जाता है।

आधुनिक लोकतंत्रीय राज्यों में हित समूह व दबाव समूह के द्वारा निम्नलिखित प्रमुख कार्य किए जाते हैं :

  1. जनमत का निर्माण (Formation of Public Opinion) : हित या दबाव सूमह समाचार-पत्रों में अपने लेख लिखवाते हैं, पोस्टर निकालते हैं।
  2. समाचार पत्रों पर नियंत्रण करना (To control on the Newspapers) : जनमत को अपने पक्ष में बनाने के लिए विभिन्न हित समूह समाचार-पत्रों पर नियंत्रण करके उनके माध्यम से अपने हितों का प्रचार करते हैं। इसके लिए वे अपने समाचार-पत्र भी निकालते हैं तथा समाचार पत्रों के सम्पादकों व स्तंभ लेखकों को प्रभावित करते हैं।
  3. हड़ताल और प्रदशर्नकों की व्यवस्था करना (To manage the strikes and demonstration) : कई बार जब दबाव समूह यह देखते हैं कि सरकार उनके हितों की ओर ध्यान नहीं दे रही तो वे सरकार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए प्रदर्शनों का आयोजन करते हैं और हड़ताल करवाते हैं। इन तरीकों से वे सरकार पर दबाव डालते हैं।
  4. निर्वाचन के समय राजनीतिक दलों का समर्थन करना (To help the political parties at the time of Election): देश में जब भी चुनाव होते हैं हित व दबाव समूह अपनी-अपनी पसन्द के राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों का समर्थन करते हैं। जब हित समर्थक विधायक चुनाव जीत जाते हैं तो वे हित समूहों के लिए उचित कानून बनाते हैं।
  5. विधायी समितियों को प्रभावित करना (To influence the Legislative Committees): किसी भी विधेयक के पास होने से पहले उस पर विधायी समितियों में भलीभाँति से सोच विचार किया जाता है। अतः हित समूह समिति के सदस्यों को कई तरीकों से प्रभावित करते हैं और अपना पक्ष प्रस्तुत करते हैं। वे अपने हितों के अनुरूप विधेयकों में आवश्यक संशोधन करवाते हैं।
  6. विधायकों को जनता से पत्र लिखवाना (To get letters written from the public to the Legislative): विधायकों को प्रभावित करने के लिए व अपने हितों की पूर्ति के लिए हित समूह जनता से बड़ी संख्या में सम्बन्धित विधायकों को व सरकार तथा शासनाध्यक्ष को पत्र लिखवाते हैं, तार भिजवाते हैं, इस प्रकार वे अपने हितों को ध्यान में रखते हुए किसी विधेयक के समर्थन या विरोध की बात कहते हैं।
  7. प्राकृतिक प्रकोप के समय सहायता देना (To help the people at the time of natural calamity) : हित समूह किसी प्राकृतिक प्रकोप के समय जैसे बाढ़ आने पर या भूकम्प

आने पर उत्पन्न हुई लोगों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्रयास करते हैं। इस प्रकार वे जनसाधारण का जनमत अपने पक्ष में कर लेते हैं। वे सरकार को भी प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 19. हित समूहों तथा दबाव समूहों की कार्यविधि को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ? 

उत्तर-हित समूहों तथा दबाव समूहों की कार्यविधि को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं :

  1. राजनीतिक संस्थाएँ (Political Institutions) : देश की राजनीतिक संस्थाएँ हित समूहों और दबाव समूहों के उद्देश्यों ओर कार्यविधि को प्रभावित करती हैं। भारत में मंत्री, नौकरशाही व राजनीतिक दलों के नेता हित समूहों को प्रभावित करते रहते हैं।
  2. राजनीतिक दल (Political Party) : देश की दलीय व्यवस्था भी दबाव समूहों को प्रभावित करती हैं। भारत में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (INTUC) का कांग्रेस और अखिल भारतीय मजदूर कांग्रेस (AITUS) का भारतीय साम्यवादी दल से सम्बन्ध है। इसी प्रकार ब्रिटेन में ब्रिटिश ट्रेड यूनियन का मजदूर दल से सम्बध है।
  3. राजनीतिक संस्कृति (Political Culture): राजनीतिक संस्कृति भी दबाव समूह की कार्यविधि को प्रभावित करती है। किसी देश की राजनीतिक संस्कृति जिस प्रकार की होगी दबाव समूहों को कार्य करने का ढंग उसी के अनुरूप होगा। भारत जैसे उदार लोकतंत्र वाले राज्यों में हित समूह या दबाव समूह कभी-कभी आक्रामक भी हो जाते हैं तथा ‘घेराव’ या ‘धरना’ आदि का भी प्रयोग करते हैं।
  4. हित समूहों के संगठन (Organisations of Interest Groups): एक हित समूह की कार्यविधि बहुत कुछ उसके संगठन पर निर्भर रहती है। संगठन में हित समूह की शक्ति, अनुशासन, सदस्य संख्या तथा वित्तीय साधनों का भी प्रयोग किया जाता है।
  5. विशिष्ट हित समूह (Special Interest Groups): विशिष्ट हित समूह भी विशेष प्रकार से हित समूहों की कार्यविधि को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए भारत में चिपको

आन्दोलन, हरिजन उद्धार आन्दोलन आदि मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए कार्य करते हैं।

प्रश्न 20. संविधान सभा की बहस के अंशों का अध्ययन कीजिए। हित समूहों को पहचानिए। समकालीन भारत में किस प्रकार के हित समूह हैं ? वे कैसे कार्य करते हैं ? (NCERT T.B.Q.2)

उत्तर-संविधान सभा की बहस के अंश :

* के. टी. शाह ने कहा की लाभदायक रोजगार को श्रेणीगत बाध्यता के द्वारा वास्तविक बनाया जाना चाहिए और राज्य की यह जिम्मेदारी हो कि वह सभी समर्थ व योग्य नागरिकों को लाभदायक रोजगार उपलब्ध कराए।

* बी. दास ने सरकार के कार्यों को अधिकार क्षेत्र व अधिकार क्षेत्र से बाहर की श्रेणियों में वर्गीकृत करने का विरोध किया, “मैं समझता हूँ कि भुखमरी को समाप्त करना, सभी नागरिकों को सामाजिक न्याय देना और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करता सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है……लाखों लोगों की सभा वह मार्ग नहीं ढूंढ पाई कि संघ का संविधान उनकी भूख से मुक्ति सुनिश्चित करेगा, सामाजिक न्याय, न्यूनतम मानक जीवन-स्तर और न्यूनतम जन-स्वास्थ्य सुनिश्चित करेगा।”

* अंबेडकर का उत्तर इस प्रकार था-“संविधान का जो प्रारूप बनाया गया है वह देश के शासन के लिए केवल एक प्रणाली उपलब्ध कराएगा। इसकी यह योजना बिल्कुल नहीं है कि कोई विशेष दल सत्ता में लाया लाए, जैसाकि कुछ देशों में हुआ है। अगर व्यवस्था लोकतंत्र को संतुष्ट करने की परीक्षा में खरी उतरती है, तो यह जनता द्वारा निश्चित किया जाएगा कि कौन सत्ता में होना चाहिए। लेकिन जिसके हाथ में सत्ता है वह मनमानी करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। उसे

निदेशक सिद्धांत कहे जाने वाले अनुदेशों का सामना करना पड़ेगा जिन्हें वह अनदेखा नहीं कर सकता। हाँ, इनके उल्लंघन के लिए वह न्यायालय में उत्तरदायी नहीं होगा। लेकिन चुनाव के समय निर्वाचकों के सामने उसे इन बातों का उत्तर देना होगा। निदेशक सिद्धांत जिन महान मूल्यों से संपन्न हैं उन्हें तभी अनुभव किया जा सकता है जब सत्ता पाने के लिए सही योजना का क्रियान्वयन किया जाए।”

* भूमि-सुधार के विषय में नेहरू ने कहा कि सामाजिक शक्ति इस तरह की है कि कानून इस संदर्भ में कुछ नहीं कर सकता जो इन दोनों की गतिशीलता का एक रोचक प्रतिबिंब है। “अगर कानून और संसद स्वयं को बदलते परिदृश्य के अनुकूल नहीं करते तो ये स्थितियों पर नियंत्रण नहीं कर पाएंगे।” _* संविधान-सभा की बहस के समय आदिवासी हितों की रक्षा के मामले में जयपाल सिंह जैसे नेता, नेहरू के निम्नलिखित शब्दों द्वारा आश्वस्त किए गए-“यथासंभव उनकी सहायता करना हमारी अभिलाषा और निश्चित इच्छा है; यथासंभव उन्हें कुशलतापूर्वक उनके लोभी पड़ोसियों से बचाया जाएगा और उन्हें उन्नत किया जाएगा।

* संविधान सभा ने ऐसे अधिकारों को जिन्हें न्यायालय लागू नहीं करवा सकता, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के शीर्षक के रूप में स्वीकार किया तथा इनमें सर्व-स्वीकृति से कुछ अतिरिक्त सिद्धांत जोड़े गए। इनमें के. संथानम का वह खंड भी सम्मिलित है जिसके अनुसार राज्य को ग्राम पंचायतों की स्थापना करनी चाहिए तथा स्थानीय स्वशासन के लिए उन्हें अधिकार व शक्ति भी देनी चाहिए।

* टी. ए. रामलिंगम चेटियार ने ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी कुटीर उद्योगों के विकास से संबंधित खंड जोड़ा। अनुभवी व वरिष्ठ सांसद ठाकुरदास भार्गव ने यह खंड जोड़ा कि राज्य को कृषि व पशुपालन को आधुनिक प्रणाली से व्यवस्थित करना चाहिए।

संवैधानिक भारत में राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक, धार्मिक हित समूह हैं। ये हित समूह सरकार या संबंधित संस्था पर दबाव डालकर अपने कार्य करवाते हैं।

प्रश्न 21. ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73वाँ संविधान संशोधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।

उत्तर-पहली बार सन् 1992 में 73वें संविधान संशोधन के रूप में मौलिक व प्रारंभिक स्तर पर लोकतंत्र और विकेंद्रीकृत शासन का परिचय प्राप्त होता है। इस अधिनियम ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक प्रस्थिति प्रदान की। अब यह अनिवार्य हो गया है कि स्थानीय स्वशासन के सदस्य गाँवों तथा नगरों में प्रत्येक पाँच साल में चुने जाएँ। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि स्थानीय संसाधनों पर अब चुने हुए निकायों का नियंत्रण होता है।

  1. 1992 में 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था को लागू किया गया। इसके अंतर्गत ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड या ब्लॉक स्तर पर खंड समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् के गठन का प्रावधान किया गया।
  2. संविधान के 73वें संशोधन ने बीस लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली लागू की।
  3. यह अनिवार्य हो गया कि प्रत्येक पाँच वर्ष में इसके सदस्यों का चुनाव होगा।
  4. इसने अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए निश्चित आरक्षित सीटें तथा महिलाओं के लिए 33% आरक्षित सीटें उपलब्ध कराईं।
  5. इसने पूरे जिले के विकास प्रारूप को निर्मित करने के लिए जिला योजना समिति गठित की।

73वें और 74वें संविधान संशोधन ने ग्रामीण व नगरीय दोनों ही क्षेत्रों के स्थायी निकायों के सभी चयनित पदों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण प्रदान किया। इनमें से 17% सीटें अनुसूचित जाति व जनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। यह संशोधन इसलिए

महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके अंतर्गत प्रथम बार निर्वाचित निकायों में महिलाओं को शामिल किया जिससे उन्हें निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त हुई। स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों, नगर निगमों, जिला परिषदों आदि में एक तिहाई पदों पर महिलाओं का आरक्षण है। 73वें संशोधन के तुरंत बाद 1993-94 के चुनाव में 8,00,000 महिलाएँ एक साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं से जुड़ीं। वास्तव में महिलाओं को प्रताधिकार देने वाला वाला एक बड़ा निर्णय था। स्थानीय स्वशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का प्रावधान करने वाला संवैधानिक संशोधन पूरे देश में 1992-93 से लागू है।

प्रश्न 22, विद्यालय में चुनाव लड़ने के समय अपने आदेश पत्र के साथ एक फड़ बनाइए (यह पांच लोगों के एक छोटे समूह में भी किया जा सकता है।)

उत्तर– अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 23. भारत में प्राचीन पंचायत व्यवस्था का महत्व स्पष्ट कीजिए।

उत्तर भारत में पंचायत का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। पंचायत शब्द का प्रयोग कुछ व्यक्तियों की एक सभा के लिए होता है जो गाँव के सामूहिक मामलों पर फैसले करती है। लोग पंच में इतना अधिक विश्वास करते थे कि उन्हें पंच-परमेश्वर कहा जाता था। यह कहा जाता है कि ईश्वर उन पाँच व्यक्तियों के माध्यम से बोलता है। यह सामान्यतः स्वशासी संस्था है। भारत में पंचायत का विकास अपने लंबे इतिहास के दौरान काफी उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। यह सामान्यतः स्वशासी संस्था है। भारत में पंचायत का विकास अपने लंबे इतिहास के दौरान काफी उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। महात्मा गाँधी के राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने का पंचायत के आदर्श पुनः जीवित हो उठे। गाँधी जी ने ग्राम पंचायत और स्वशासन पर बहुत जोर दिया। पंचायत की अवधारणा भारत के स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण मुद्दा बनी रही। स्वतंत्रता के पश्चात् संविधान के चालीसवें अनुच्छेद में राज्य के नीति निदेशक तत्व के रूप में इसे सम्मिलित किया गया। चालीसवें अनुच्छेद के अनुसार, “राज्य ग्राम पंचायतों के गठन के लिए कदम उठायेगा और उन्हें ऐसी शक्ति और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्थानीय स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाएगी।”

पंचायती राज व्यवस्था के महत्व को सभी राज्यों द्वारा स्वीकार किया गया। सामूहिक विकास योजना में ग्रामीण विकास की लगभग सभी गतिविधियों को सम्मिलित किया गया। विकास योजनाओं में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के सिद्धांत पर आधारित कई संस्थाओं का निर्माण किया गया।

प्रश्न 24. हाल के वर्षों में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए क्या प्रयास किए गए?

उत्तर-बलवंत राय मेहता समिति को सिफारिशों के आधार पर भारत में पंचायती राज व्यवस्था की तीन स्तरीय प्रणाली को लागू किया गया है। गाँव पंचायत, खंड समिति और जिला परिषद के स्तर पर भारत में पंचायतों की स्थापना की गई। कुछ राज्यों में पंचायतों का विकासात्मक कार्य उल्लेखनीय रहा, परंतु कुछ राज्यों में पंचायतों ने केवल शक्ति पर अधिकार संबंधी विवादों और प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया। इनसे समाज के कमजोर वर्गों को लाभ प्राप्त नहीं हुआ। सरकारी अधिकारियों ने पंचायत प्रतिनिधियों पर अंकुश लगाए रखा जिससे पंचायती राज संस्थाओं में लागू की रुचि कम हो गई। ___पंचायत पर संविधान का 73वाँ संशोधन अधिनियम 1992 में पास किया गया। 24 अप्रैल, 1993 से यह संशोधन प्रभावी हो गया। यह संशोधन जनता को शक्ति संपन्न करने के सिद्धांत पर आधारित है और पंचायतों को संवैधानिक गारंटी प्रदान करता है। इस अधिनियम के प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं :

  1. यह पंचायतों को स्वशासी संस्थाओं के रूप में स्वीकार करता है।
  2. यह पंचायतों को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने हेतु शक्ति और उत्तरदायित्व प्रदान करता है।
  3. यह 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले सभी राज्यों, ब्लॉक और जिला स्तर पर समान त्रिस्तरीय शक्ति संपन्न पंचायतों की स्थापना के लिए प्रबंध करता है।
  4. यह पंचायतों के संगठन, अधिकार और कार्यों, वित्तीय व्यवस्था तथा चुनावों एवं समाज के कमजोर वर्गों के लिए पंचायत के विभिन्न स्तरों पर स्थानों के आरक्षण के लिए दशा-निर्देश देता है।

संविधान के 73वें संशोधन से स्वशासन में लोगों की भागीदारी के लिए संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई।

पंचायत अधिनियम 1996 के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों में भी पंचायतों के गठन कार्य को प्रभावी बना दिया है।

प्रश्न 25. ग्राम सभा किसे कहते हैं ? ग्राम सभा के मुख्य कार्य क्या हैं ?

उत्तर-ग्राम सभा पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। पंचायत क्षेत्र में रहने वाले सभी वयस्कों को मिलाकर ग्राम सभा बनती है। इसमें ग्राम पंचायत क्षेत्र में आने वाले गाँव की मतदाता सूची में पंजीकृत सभी लोग शामिल होते हैं। ग्राम सभा को पंचायती राज की आत्मा कहा गया है। चूंकि ग्राम पंचायत के सभी पंजीकृत मतदाता ग्राम सभा में शामिल होते हैं। यह ग्राम पंचायत की सामान्य सभा की तरह कार्य करती है।

ग्राम सभा के कार्य :

  1. ग्राम सभा पंचायती राज व्यवस्था की सबसे निचले स्तर की आधारभूत संस्था है। भारतीय लोकतंत्र में यही एक संस्था है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करती है।
  2. पंचायत क्षेत्र में रहने वाले सभी वयस्कों को मिलाकर ग्राम सभा का गठन होता है। यह वार्षिक लेखा और लेखा परीक्षा प्रतिवेदन तथा प्रशासनिक रिपोर्ट को अनुमोदित करती है।
  3. ग्राम सभा नये विकासात्मक कार्यों को मंजूरी देती है।
  4. ग्राम सभा की वर्ष में दो बैठकें होती हैं।

प्रश्न 26. ग्राम पंचायत में सीटों के आरक्षण की क्या व्यवस्था की गई है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-सभी पंचायतों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए उस पंचायत क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण किया गया है। राज्य के निर्णय के अनुसार अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है। सीधे चुनाव के द्वारा भरी जाने वाली सीटों का कम-स-कम तिहार महिलाओं के लिए सुरक्षित रहता है। इसमें अनुसूचित जातियों और जनजातियों की महिलाओं के लिए आराक्षन को भी शामिल है। __पंचायत प्रमुख का पद भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षित रहता है। आरक्षित सीटों का निर्धारण उनकी जनसंख्या के आधार पर होता है। पंचायत प्रमुखों की आरक्षित सीटों की संख्या प्रत्येक स्तर पर कुल पदों की संख्या के एक तिहाई से कम नहीं हो सकती। राज्यों को अन्य पिछड़े वर्गों के लिए किसी भी स्तर पर सीटों तथा पदों में आरक्षण के लिए प्रावधान रखने का अधिकार मिला हुआ है।

प्रश्न 27. पंचायती राज का क्या अर्थ है ? ..

उत्तर-संविधान के 73वें संशोधन के द्वारा देश में पंचायजी राज प्रणाली की संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट किया गया है। इस संशोधन की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

  1. देश में पंचायती राज प्रणाली के ग्राम, प्रखंड और जिला स्तर पर तीन स्तरीय व्यवस्था होगी।
  2. सभी पंचायतों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित रहेंगे।
  3. अनुसूचित जातियों और जनजातियों की महिलाओं के लिए एक तिहाई स्थान आरक्षित होंगे। पंचायतों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव इस संशोधन की प्रमुख विशेषता है। पंचायत का कार्यकाल पाँच वर्ष होगा। यदि पंचायत समय से पूर्व भंग हो जाती है तो 6 माह के अंदर नये निर्वाचन करा लिए जायेंगे।
  4. प्रत्येक राज्य में पंचायतों का निर्वाचन एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग द्वारा कराया जायेगा, जिसकी नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी।

प्रश्न 28, शहरी क्षेत्र में पंचायत के गठन को समझाइये।

उत्तर-शहरी क्षेत्र में पंचायत के गठन के लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं। संसद ने सन् 1992 में संविधान के 74वें संशोधन अधिनियम को पारित किया जो नगरपालिकाओं से संबंधित था। इस धारा को 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली थी। यह अधिनियम तीन प्रकार की नगरपालिकाओं के गठन को स्पष्ट करता है-1. नगर पंचायत, 2. नगर परिषद या नगरपालिका, 3. नगरनिगम।

  1. नगर पंचायत : जो क्षेत्र न गाँव की तरह होते हैं और न नगर के समान उनके लिए पंचायत की व्यवस्था की जा सकती है। गाँवों के धीरे-धीरे नगरों में बदलने की स्थिति में ऐसा होता है।
  2. नगरपालिका : बड़े शहरों के अतिरक्ति सभी शहरों और कस्बों में नगरपालिकाएँ होती हैं। 3. नगरनिगम : दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और अन्य महानगरों में नगरनिगम होते हैं।

 प्रश्न 29. संविधान के 73वें संशोधन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?

उत्तर-पंचायतों से संबंधित 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 संसद में दिसंबर 1992 में पारित हुआ और 20 अप्रैल, 1993 को इसे भारत के राष्ट्रपति की सहमति मिली। यह उस वर्ष 24 अप्रैल से प्रभावी हो गया। यह संशोधन जनता को शक्ति संपन्न करने पर आधारित है और पंचायतों को संवैधानिक गारंटी प्रदान करता है। इस अधिनियम के प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं : .

  1. यह पंचायतों को स्वशासी संस्थाओं के रूप में स्वीकार करता है।
  2. यह पंचायत को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने हेतु शक्ति और उत्तरदायित्व प्रदान करता है।
  3. यह 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले सभी राज्यों के मध्य और जिला स्तर पर समान त्रिस्तरीय शक्ति संपन्न पंचायतों की स्थापना के लिए प्रबंध करता है।
  4. यह पंचायतों के संगठन, अधिकार और कार्यों, वित्तीय व्यवस्था तथा चुनावों एवं समाज के कमजोर वर्गों के लिए पंचायत के विभिन्न स्तरों पर स्थानों के आरक्षण के लिए दिशा-निर्देश देता है।

संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम को मूलभूत लोकतंत्र की दिशा में क्रांतिकारी कदम कहा गया है। इससे स्वशासन में लोगों की भागीदारी के लिए संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई है। सभी राज्यों में संशोधन के प्रावधानों के अनुकूल निश्चित विधान पारित किए गए हैं। इस प्रकार पंचायती राज व्यवस्था के इतिहास में पहली बार पंचायतों के उच्च स्तर में समानता आ पाई है।

प्रश्न 30. पंचायतों के अंतर्गत मुख्य मुद्दों की सूची बनाइए।

अथवा, पंचायत के उत्तरदायित्वों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-पंचायतों को स्वशासन की संस्था के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए कई अधिकार और शक्तियाँ मिली हुई हैं। इसके लिए दो प्रमुख क्षेत्र निर्धारित किए गए हैं। आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं का निर्माण करना तथा आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन। इन योजनाओं से संबंधित कुछ विषयों को सूचीबद्ध किया गया है जिसे विविध स्तरों पर पंचायतों द्वारा स्वीकार किया जा सकता है।

  1. कृषि, भूमिसुधार, चकबंदी, सिंचाई, जलाशयों का विकास।
  2. पशुपालन, मत्स्यपालन, सामाजिक वानिकी।
  3. लघु उद्योग, खादी ग्राम तथा कुटीर उद्योग।
  4. पेयजल, ग्रामीण आवास, सड़कें, पुलिया, पुल आदि।
  5. ग्रामीण विद्यतीकरण।
  6. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा, सांस्कृतिक कार्यकलाप, स्वास्थ्य एवं स्वचछता।

इनके अतिरिक्त पंचायतों को उपयुक्त कर तथा शुल्क लगाने तथा वसूलने के लिए अधिकृत करना।

प्रत्येक राज्य में राज्य चुनाव आयोग का गठन करके सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था को अधिक मजबूत बनाने का प्रयास किया है।

प्रश्न 31. राज्य के नीति निर्देशक गाँधीवादी सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-गाँधीवादी सिद्धांत : नीति-निर्देशक तत्वों पर गाँधीवादी विचारधारा का सबसे अधिक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। संविधान निर्माता स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही गाँधीवादी सिद्धांतों को संविधान का आधार बनाने के पक्ष में थे। गाँधीवादी दर्शन पर आधारित निम्नलिखित तत्वों को संविधान के इस भाग में स्थान दिया गया है :

  1. राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करेगा और उन्हें ऐसी शक्तियाँ प्रदान करेगा जिससे वे स्वायत्त शासन की इकाई के रूप में कार्य करने में समर्थ हो सकें।
  2. राज्य समाज के दुर्बल वर्गो के शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों की वृद्धि के लिए प्रयास करेगा।
  3. राज्य ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक तथा सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।
  4. राज्य कृषि एवं पशुपालन का वैज्ञानिक ढंग से संचालन करेगा तथा गोवंश की रक्षा करेगा, विशेषकर बछड़ों तथा दूध देने वाले पशुओं की नस्ल सुधार करेगा और इनका वध निषेध करेगा।
  5. राज्य मादक द्रव्यों का केवल चिकित्सा के लिए उपयोग को छोड़कर निषेध करेगा।

प्रश्न 32. पंचायती राजव्यवस्था सामाजिक बदलाव लाने में कहाँ तक सहायक रही

उत्तर-पंचायती राजव्यवस्था बलवंत राय मेहता कमिटी (1957) की अनुशंसा के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को सर्वप्रथम राजस्थान के नागौर जिला में लागू किया गया। पंचायी राज व्यवस्था के पीछे दो मूलभूत दर्शन थे-एक, सत्ता का विकेन्द्रीकरण तथा दूसरा जन सहभागिता। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए त्रि-स्तरीय व्यवस्था लागू की गई जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् के गठन की बात की गई। पंचायतीराज व्यवस्था का मूलभूत उद्देश्य प्रजातंत्र को जमीनी स्तर तक लाना रहा है ताकि ग्रामसभा से लोकसभा तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो और सत्ता सही मायने में आम जनता के हाथों में सौंपी जाय।

दुर्भाग्यवश कई राज्यों में पंचायतों के समय पर चुनाव ही नहीं हुए और इसकी हालत अत्यंत दयनीय हो गई। फलस्वरूप संविधान के. 73वें संशोधन द्वारा परिवर्तन लाकर पंचायतीराज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया और इसके अधिकार को बिल्कुल सुस्पष्ट कर दिया गया। पंचायतीराज व्यवस्था के अंतर्गत ग्राम पंचायत को 29 तरह के कार्य सौंपे गये हैं।

1993 के बाद पंचायतीराज व्यवस्था ने सामाजिक बदलाव लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। बिहार भारत में पहला राज्य बना जिसने पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया। बिहार सहित आज अनेक राज्यों में हमें इस तरह का आरक्षण देखने को मिलता है जो नि:संदेह महिला सशक्तीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। पंचायती राज व्यवस्था ने लोगों में न केवल राजनीतिक चेतना एवं जागरूकता का प्रसार किया है बल्कि यह आर्थिक एवं सामाजिक जागरूकता लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। दलित एवं कमजोर वर्गों की आवाज आज मुखर हो रही है जो इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।

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